शनिवार, 22 नवंबर 2025

देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती पैदा करता पाकिस्तान का परोक्ष युद्ध

कर्नल शिवदान सिंह

जब कोई देश अपने दुश्मन देश सेआमने-सामने के युद्ध में नहीं जीत पता है तो वह फिर परोक्ष युद्ध का सहारा लेता है जैसे कि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध कर रहा है क्योंकि भारत से1947 से लेकर अब तक वह चार युद्ध हार चुका है इसलिए अब उसने परोक्ष युद्ध का सहारा लेने का निर्णय लिया है। यह युद्ध सीमाओं पर नहीं लड़ा जाता है बल्कि देश के आंतरिक हिस्सों में आंतरिक सुरक्षा पर हमले के रूप में लड़ा जाता है। देश की सामाजिक, आर्थिक और कानून व्यवस्था आंतरिक सुरक्षा के मुख्य हिस्से होते हैं। इसलिए पाकिस्तान 80 के दशक से ही हमारे देश के विभिन्न राज्यों जैसे पहले पंजाब मेंऔर बाद में कश्मीर राज्य में धार्मिक कट्टरपंथी सोच का प्रचार करके वहां परआतंकवाद को बढ़ावा दिया किया है। इन राज्यों में सांप्रदायिक तनाव के द्वारा वह पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा करके कानून व्यवस्था को बर्बाद करना चाह रहा था। इसी क्रम में अभी दिल्ली में ऐतिहासिक लाल किले पर धमाके के पीछे यही मुख्य कारण था। इस धमाके के पीछे के रहस्य की परते खुलने पर पता लग रहा है कि आतंकियों का इरादा दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर और इसी प्रकार के देश के 37 प्रसिद्ध स्थान पर विस्फोट करकेसांप्रदायिक तनाव पैदा करके दंगे करवाना था। जिससे विश्व को दिखाया जा सके की भारत में कितनी अशांति है और इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को गिराया जा सके। परंतु हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी चौकसी एवं कर्तव्य निष्ठा से इनके इरादों को नाकाम कर दिया।

80 के दशक में रूसी सेना के द्वारा अफगानिस्तान में कब्जे के बाद अमेरिका ने इसे दक्षिण एशिया में अपने लिए चुनौती माना। इसके बाद अमेरिका ने रूसी सेना को वहां से हटाने के लिए पाकिस्तान को अपना मोहरा बनाते हुए उसकेमदरसो में पढ़ने वाले जवानों को तालिबान बनाकर अफगानिस्तान मेंछापा मार युद्ध के लिए भेजना शुरू कर दिया। इसके लिए अमेरिका की सी आइ ए ने पाकिस्तान की आइ ईस आइ को इस प्रकार केऑपरेशन के लिए प्रशिक्षित किया। अमेरिका के इस ऑपरेशन मेंअफगानिस्तान के लोग भी शामिल थे। जिन्हें अफगानिस्तान में रूसी सेना केहर ठिकाने की पूरी जानकारी थी। इस प्रकार के छापामार युद्ध के आगे रुसी सेना ज्यादा देर टिक नहीं पाई और वह वापस चली गई। इसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तान की पीठ थपथपाई और उसे इसी प्रकार चीन के विरुद्ध भी इस्तेमाल किया। इसके लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को बहुत सी आर्थिक सहायता दी। इस प्रकार आतंकवादको कमाई का जरिया बनाते हुए पाकिस्तान ने इसको राष्ट्रीय नीति के रूप में अपना लिया। इस कारण तरह - तरह के आतंकी संगठन जैसे लश्कर ए तोयबा जैसे मोहम्मद इत्यादि वहां पर बन गए। जिन्हें वहां पर खुलेआम अपनी गतिविधि चलाने की पुरी छूट मिल गई। इसलिए पाकिस्तान के जिन नौजवानों को देश की आर्थिक प्रगति में सहयोग करना चाहिए था वह आतंकी बन गए। इस करण पाकिस्तान ना तो औद्योगिक क्षेत्र मेंकोई प्रगति की और ना ही पाकिस्तान में विदेशी निवेश आया इस कारण आज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का यह हाल है।

किसी भी देश में देश विरोधी आतंकी गतिविधि चलाने के लिए पहले वहां पर ऐसे कारण तैयार किए जाते हैं जिनके द्वारा वहां की जनता को दिगभ्रमित किया जा सकेऔर इसके द्वारा वहां के कुछ तत्वों को देश विरोधी गतिविधियों में लगाया जा सके। इसके लिए उसने सर्वप्रथम पाकिस्तान से सीमा लगने वाले पंजाब को अपना निशाना बनाया। पंजाब में सिखों में असंतोष फैलाने के लिए उसने उन्हें अलग खालिस्तान बनाने के लिए प्रेरित करने के लिएअपने रेडियो तथा टेलीविजन द्वारा इसका दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। उसने पंजाब के सिखों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि भारत में उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है। इसलिए उन्हें अपना अलग देश खालिस्तान बनाना चाहिए। इस सोच को आगे बढ़ाने के लिए उसने पहले कुछ सफेद पोश लोगों को इसके प्रचार के लिए तैयार किया जिनमे संत जरनेलसिंह भिंडर वाले का नाम प्रमुख है  जिन्होंने वहां के कुछ नौजवानों को पंजाब में खालिस्तान के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने के लिए अपने आतंकवादियों के द्वारा हिंसा करवानी शुरू की। इसमें इनका मुख्य निशाना हिंदू आबादी होती थी। इन आतंकियों को ट्रेनिंग देने के लिए उसने पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्र में इनके ट्रेनिंग कैंप स्थापित किये। आखिर मेंपंजाब की राष्ट्रवादी जनता के सहयोग से पाकिस्तान के इस नापाक इरादे को भारत ने कुचल दिया तथा पंजाब दोबारा देश का प्रगतिशील प्रदेश बन गया। इसके बाद पाकिस्तान की आइ एस आइ ने यही हरकत 90 के दशक में कश्मीर में शुरू की और वहां परदुष्प्रचार करना शुरू किया कि भारत में मुसलमानों का भविष्य सुरक्षित नहीं है इसलिए कश्मीर को आजादी चाहिए। इसके लिए उसने वहां के नौजवानों को आतंकवादी बनाने के लिए उनकी सोच को कट्टरवादी बनाने के लिए मुस्लिम कट्टरपन को बढ़ावा वहां के कुछ मौलवियों से दिलवाना शुरू किया तथा वहां के कुछ नौजवानों को पाक अधिकृत कश्मीर में ले जाकर उन्हें आतंकवाद की ट्रेनिंग देकर अपने देश के आतंकियों के साथ कश्मीर में भेजकर उनसे हिंदुओं पर आतंकवादी हमले करवाए। 

इसके फलस्वरूप वहां के तीन लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से विस्थापन पलायन करना पड़ा। इस सबके लिएआतंकवाद को बढ़ावा देने वाले ओवर ग्राउंड काम करने वाले स्थानीय एजेंट को को वहां पर लागू धारा 370 से मदद मिल रही थी। इसके कारण कश्मीर की जनता अपने आप को काफी प्रताड़ित महसूस कर रही थी। इसको देखते हुए भारत सरकार ने कश्मीर में अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करते हुए वहां पर लागू धारा 370 को हटाकर वहां पर भारत का संविधान लागू किया जिससे आतंकवाद को समर्थन देने वालेतत्वों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जा सके। इस प्रकार कश्मीर में पंजाब की तरह आतंकवाद को खत्म किया गया। आज जम्मू कश्मीर राज्य विकास के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।देश विरोधीआतंकवाद को देश के अंदर चलाने के लिए तीन तत्व मुख्य भूमिका निभाते हैं। पहले धार्मिक कट्टरपन कोबढ़ावा देने वाले तत्व तथा आतंकवाद के साथ सहानुभूति रखने वाले ,दूसरे उनके लिए धन एकत्रित करने वाले तथा इन आतंकी तत्वों के रहन-सहन का इंतजाम करने वाले तथा कट्टरपन की सोच को बढ़ाने वाले जिन्हें ओवर ग्राउंड वर्कर या सफेद पोश भी कहा जाता है। इस प्रकार इन तीनों तत्वों के सहयोग से आतंकी तैयार होते हैं जो देश में हिंसा फैलाने के लिए बेगुनाह लोगों पर हमले तथा सार्वजनिक स्थानों जैसे लाल किला इत्यादि पर हमला करके देश में आप शिक्षा असुरक्षा कथा सांप्रदायिक तनाव की भावना पैदा करते हैं। इससे देश की देश की आंतरिक सुरक्षा नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। परंतु अक्सर वोट बैंक की राजनीति के कारण राज्य सरकारे देशद्रोही तत्वों और उनके द्वारा फैलाई जा रहे हैं दुष्प्रचार की अनदेखी करती हैं जिसके कारणदेश में अस्थिरता फैलती है जैसा की उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगों के रूप में देखने में आया था।

उपरोक्त को देखते हुए देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति देश के हर नागरिक को भी उतना ही जागरूक रहना चाहिए जितना की सुरक्षा एजेंसी रहती है। फरीदाबाद की यूनिवर्सिटी में पिछले काफी दिनों से उसके अध्यक्ष की मंजूरी और उसके डॉक्टर उमर जैसे देश विरोधी तत्व अपनी गतिविधियां चला रहे थे। परंतु लाल किले के धमाके तक किसी भी सुरक्षा एजेंसी कोइस यूनिवर्सिटी के अंदरचल रही इन देश विरोधी गतिविधियों के बारे में कोई सूचना नहीं मिली। इसको देखते हुए सामरिक दृष्टि से इन जमीन की सतह के ऊपर सफेद पोश देशद्रोहियों और इन गतिविधियों के लिए धन देने वालों केविरुद्ध भी आतंकियों जैसी कार्रवाई करते हुए उन्हें कानून के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए। जहां से इन्हें कड़ी सजा दिलवानी चाहिए। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर जिसमें एनआईए, आईबी और राज्यों की एटीएस के प्रतिनिधियों के साथ एक कमेटी स्थापित की जानी चाहिए जिससे पूरे देश में इस प्रकार की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर शीघ्रता से कार्रवाई की जा सके। इसके साथ ही कट्टरपंथी दुष्प्रचार को रोकने के लिए संप्रदाय विशेष के उदारवादी लोगों तथा उनके समाजसेवी और शिक्षा विदों का सहयोग लिया जाना चाहिए जो अपने समाज की सोच को धार्मिक कट्टरपन और देश विरोधी सोच से बदलकर इसे राष्ट्रवादी बना सकें। इसके बाद जिस प्रकार सरकार ने छत्तीसगढ़ में समर्पण किये नक्सली और माओवादियों का पुनर्वास किया हैऔर उन्हें देश की सकारात्मक गतिविधियों में लगाया है उसी प्रकार मुस्लिम समाज के उन युवाओं का पुनर्वास किया जाना चाहिए जो कट्टरपन से दिग्ग्रहित होकर देश विरोधी गतिविधियों मेंलग गए हैं।

जिस प्रकार भारतीय सेना का हर सैनिक सीमाओं की सुरक्षा में तैनात रहता है। उसी प्रकार देश के हर नागरिक को देश की आंतरिक सुरक्षा में तैनात रहना चाहिएम।और जहां भी किसी देश विरोधी गतिविधि की शंका हो उसकी सूचना फौरन सुरक्षा एजेंसी को दी जानी चाहिए जिससे वह समय पर कार्रवाई करके इन तत्वों को समाप्त कर सकें।

 

मंगलवार, 18 नवंबर 2025

मानवता के रक्षक श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की शहीदी एवं आध्यात्मिक दर्शन

आचार्य राघवेंद्र पी. तिवारी

सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी (1621-1675) भारतीय इतिहास के उथल-पुथल वाले कालखंड में अवतरित हुए। औरंगज़ेब के दमनकारी शासनकाल में धार्मिक असहिष्णुता और जबरन धर्मांतरण ने भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को खतरे में डाल दिया था। जहाँ मुग़ल साम्राज्य में हिंदुओं का धर्मांतरण व्यापक पैमाने पर हो रहा था, वहीं कश्मीर का मुग़ल गवर्नर अपने बादशाह का कृपापात्र बनने हेतु, धर्मांतरण की नीति को बड़े उत्साह से लागू कर रहा था। परिणामस्वरूप कश्मीरी पंडितों पर भीषण अत्याचार हुए। उनके मंदिर तोड़े गए। उन्हें इस्लाम स्वीकारने पर विवश किया गया। कश्मीरी पंडितों ने आनंदपुर साहिब में गुरु साहिब से भेंटकर अपने धर्म एवं आस्था की रक्षा हेतु प्रार्थना की।

असाधारण साहस, करुणा और अंतःकरण की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक समर्थक गुरु साहिब ने कश्मीरी पंडितों के धार्मिक स्वतन्त्रता की रक्षा करने का निर्णय लिया। उन्होंने पंडितों को आश्वासन दिया कि वे दिल्ली जाकर मुगल सम्राट से चर्चा करेंगे। साथ ही पंडितों से कहा कि वे अपने गवर्नर को सूचित करें कि यदि गुरु जी अपना धर्म परिवर्तित कर इस्लाम अपना लेते हैं, तो हम भी इस्लाम धर्म अपना लेंगे, लेकिन यदि वे इसका विरोध करते हैं, तो हमें धार्मिक रूप से स्वतंत्र रखा जाए।

गुरु साहिब के बढ़ते प्रभाव और जनसमर्थन को देखकर मुगल शासन घबरा उठा। दिल्ली यात्रा के दौरान मुगल शासक ने गुरु साहिब एवं उनके अनुयायियों को गिरफ्तार कर लिया। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति को तोड़ने हेतु उन्हें और उनके अनुयायियों को रास्ते भर यातनाएँ दी एवं अपमानित किया। परन्तु गुरु साहिब ने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। काजी द्वारा झूठे मुकदमें के दौरान उन्हें धर्म परिवर्तन का प्रस्ताव दिया गया, जिसे गुरूजी ने दृढतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। उनके आँखों के समक्ष उनके तीन अनुयायियों, भाई मती दास जी, भाई सती दास जी और भाई दयाला जी को निर्ममतापूर्वक मार दिया गया, फिर भी गुरू साहिब शांतचित्त होकर नाम-स्मरण में लीन रहे।

24 नवंबर, 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक में स्वयं उपस्थित होकर गुरु साहिब ने धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार की रक्षा हेतु अपनी शहीदी दी। दृढ़ संकल्प एवं अटूट साहस के माध्यम से उन्होंने भारत की संप्रभुता की रक्षा की और धर्म के शाश्वत आदर्शों को कायम रखा। उनकी इस शहीदी ने भावी पीढ़ियों को भय और व्यक्तिगत सुरक्षा के बजाय विवेक, साहस और नैतिक कर्तव्य को बनाए रखने हेतु प्रेरित कर रही हैं। गुरु साहिब का जीवन इस आदर्श का प्रमाण है कि सच्ची वीरता अस्त्र-शस्त्र, सत्ता या क्रूरता में नहीं, अपितु आत्मविश्वास, बलिदान, नैतिक साहस, न्याय हेतु निडरता से खड़े होने में भी निहित है। इस सर्वोच्च बलिदान हेतु उन्हें ‘हिंद दी चादर’ अर्थात भारत की ढाल की उपाधि से विभूषित किया गया। युद्धकला में निपुण होने के बावजूद, गुरु साहिब का स्वभाव अत्यंत गंभीर, विचारशील, एवं आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख था। उनका साहस एवं वीरता केवल सांसारिक रक्षा के लिए नहीं बल्कि वैराग्य, ध्यान और धर्म के प्रति निष्ठाजनित नैतिक साहस के उच्चतम आदर्श के रूप में भी थी।

गुरु साहिब की शहादत मनुष्य के स्वतंत्र रूप से जीने के सार्वभौमिक अधिकार हेतु दिया गया सर्वोच्च बलिदान है। यह सिखाता है कि दूसरों के स्वतंत्रता की रक्षा करना आध्यात्मिक कर्तव्य का सर्वोच्च रूप है। अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध प्रतिरोध इस बात का भी प्रमाण था कि धर्म-पालन का विषय साम्राज्यों के अधिकार से परे है। गुरु साहिब ने बलिदान के माध्यम से उद्घोष किया था कि स्वतंत्रता, समानता और मानवीय गरिमा, मन की पवित्रता में अंतर्निहित हैं। उन्होंने जाति, पंथ, लोभ अथवा धन के आधार पर सभी प्रकार के भेदभाव को अस्वीकार किया और संदेश दिया कि ईश्वरीय प्रकाश सभी में विद्यमान है। उनकी शहादत मानवाधिकारों के वैश्विक इतिहास में मील का पत्थर बनकर भावी पीढ़ी को न्याय और स्वतंत्रता के समर्थन हेतु प्रेरित करती रहेगी।

गुरु साहिब आस्था के नैतिक मूल्यों को पुनर्परिभाषित करने हेतु सिख इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्होंने सिख धर्म को न्याय, मानवीय गरिमा एवं अंतःकरण की स्वतंत्रता हेतु प्रतिबद्धता के रूप में स्थापित किया। उनके बलिदान ने सामूहिक रूप से सिख धर्म के दायरे को  क्षेत्रीय धार्मिक समुदाय से सार्वभौमिक नैतिक धर्म के रूप में स्थापित किया। उन्होंने गुरु अर्जन देव जी की शहादत को सिख धर्म के सार्वभौमिक अंतरात्मा के जीवंत उदाहरण तथा रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे धार्मिक आस्था की रक्षा को नैतिक साहस एवं मानवाधिकारों के प्रतिमान के रूप में पहचान मिली।

गुरु साहिब के आध्यात्मिक योगदान उनके भजनों में परिलक्षित होते हैं। उदाहरणार्थ, वे कहते हैं, “किसी से डरो मत, किसी को भयभीत मत करो; इस प्रकार तुम ज्ञान प्राप्त करोगे” (गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 1427), जहाँ वे आध्यात्मिक अनुशासन और नैतिक साहस के समन्वय को स्पष्ट करते हैं, संत-सिपाही (संत-सैनिक) आदर्श की रूपरेखा स्थापित करते हैं, और सभी के कल्याण (सरबत दा भला) के लिए कार्य करते हैं। उनकी विरासत व्यापक मानवतावादी चिंतन को आलोकित करती है। उनका जीवन यह प्रमाणित करता है कि सच्चा धर्म सभी सांप्रदायिक सीमाओं से परे है। उनके जीवन का संदेश सरल किन्तु शाश्वत है: “दूसरों की स्वतंत्रता की रक्षा उसी प्रकार करो जैसे तुम अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करते हो; इसी में ईश्वर का सच्चा मार्ग निहित है।”  साथ ही उनके सबद सांसारिक आसक्तियों की अनित्यता पर ज़ोर देते हैं और मानव को अहंकार, लोभ तथा क्षणिक सुखों से ऊपर उठने का आह्वान करते है। इन भजनों से सीख मिलती है कि हर परिस्थिती में समभाव बनाए रखना ही सच्ची आध्यात्मिकता है। गुरु जी की आध्यात्मिक दृष्टि विवेकपूर्ण एवं व्यावहारिक है, जो गहन सिमरन (ध्यान) एवं समर्पण (सेवा) के संयोजन पर आधारित है, जिससे स्पष्ट होता है कि ईश्वर भक्ति का सार मानवता के प्रति करुणा एवं सेवा में ही निहित है।

गुरु साहिब ने सिख धर्म को आध्यात्मिकता से आलोकित किया जो ध्यान, नैतिक सामर्थ्य तथा सार्वभौमिक करुणा पर आधारित है। उनके अनुसार  सच्ची आध्यात्मिकता किसी कर्मकांड, संन्यास में नहीं, बल्कि निडरता, विनम्रता और सांसारिक चुनौतियों के मध्य ईश्वर के स्मरण में निहित है। उन्होंने सिख धर्म को एक सार्वभौमिक दर्शन के रूप में स्थापित किया, जो आंतरिक जागृति, नैतिकता एवं मानवता की सेवा पर केंद्रित है। उन्होंने सीख दी कि आध्यात्मिक बोध और नैतिक साहस सत्य के दो अविभाज्य आयाम हैं।

गुरु साहिब का जीवन और बलिदान न केवल सिख इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है, अपितु समूची मानवता के लिए शाश्वत सीख भी हैं। उनकी सीख सद्भाव और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की है। ये ऐसे जीवन मूल्य है जो अशांत एवं संघर्षग्रस्त विश्व में अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि सच्चा सुख भौतिक संपत्ति अथवा क्षणिक सुखों में नहीं, बल्कि सत्य, नि:स्वार्थता और मानव सेवा में निहित है। उनका जीवन प्रेरणा देता है कि कैसे सभी प्राणियों के प्रति गहरी करुणा रखते हुए भी धर्म पर दृढ़ रहा जा सकता है। यह संदेश संस्कृतियों की सीमाओं से परे मानव समाज को हमेशा प्रेरित करता रहेगा। गुरु साहिब का जीवन हमें विपत्ति में वीरता, शक्ति में करुणा और सेवा में निस्वार्थता की सीख देता है। उनकी विरासत लोगों को स्वतंत्रता, समानता, न्याय और सर्वजन हिताय, बहुजन सुखाय के आदर्शों के लिए जीने हेतु प्रेरणा देती है। उनका साहस और बलिदान मानव समाज का अमर प्रेरणा स्त्रोत रहेगा।  हमेशा स्मरण कराएगा कि वास्तविक शक्ति सत्य और धर्म की रक्षा में निहित है। यह न्याय और करुणा का सार्वभौमिक संदेश है, जो कालातीत है।

(लेखक कुलपतिपंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालयबठिंडा हैं और यह इनके व्यक्तिगत विचार हैं।)

मंगलवार, 11 नवंबर 2025

ई-रिक्शा चालक जुम्मन की दर्दनाक मौत! परिवार ने की सरकार से मदद की गुहार


नई दिल्ली। सोमवार के दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार विस्फोट ने कई जिंदगियों को तबाह कर दिया है। इन्हीं में से एक कहानी बुलंद मस्जिदशास्त्री पार्क निवासी 35 वर्ष के मोहम्मद जुम्मन कीजो ई-रिक्शा चलाते थे और सोमवार शाम से गायब थे। इनके परिवार ने उन्हें हर जगह तलाशा और अंत में उनकी पहचान क्षत-विक्षत शव के रूप में हुई। 
शास्त्री पार्क इलाके में रहने वाला जुम्मन लाल किले के आसपास ई-रिक्शा चलाता था। हादसे वाले दिन वह भी ब्लास्ट हुई कार के पास मौजूद थे, जिस कारण उनका शव टुकड़ों में सड़क पर फैल गया। जुम्मन के परिजन रो-रोकर LNJP के बाहर उसे खोज रहे थे, लेकिन काफी समय तक उसे कुछ पता नहीं चला। इस बीच नीले कलर की जैकेट से उसकी पहचान हुई। शव की हालत देख परिजनों के होश उड़ गए। शव कई टुकड़ों में था।
मोहम्मद चांद और नजमा खातून को अपने भाई मोहम्मद जुम्मन की बेचैनी से तलाश करते हुए रहे पर उनको किसी भी तरह से उनकी खबर नहीं मिल रही थी। 12 घंटे से ज्यादा बीत चुके था। उनकी चिंता जायज़ है: जुम्मन की आखिरी लोकेशन वही जगह है जहां लाल किले के पास कार ब्लास्ट हुआ।
ई-रिक्शा चालक जुम्मन के भाई मोहम्मद चांद ने बताया कि जब विस्फोट स्थल पर उसके रिक्शे का जीपीएस बंद हो गया, तो परिवार चिंता में पड़ गया।
उन्होंने रात भर अस्पतालों में खोजबीन की और पुलिस द्वारा उनकी मौत की पुष्टि होने से पहले गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई। परिवार को उनका शव इतनी बुरी तरह क्षत-विक्षत अवस्था में मिला कि उनकी पहचान करना मुश्किल था।
जुम्मन की पत्नी शारीरिक रूप से अक्षम हैं, वे अपने परिवार और तीन बच्चों का पालन-पोषण अपनी मेहनत की दिहाड़ी से कर रहे थे। परिवार वालों का कहना है कि सरकार उनकी पत्नी व परिवार की मदद करे क्योंकि वे परिवार की आय का एकमात्र स्रोत थे, जो अब इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं।

 

सोमवार, 10 नवंबर 2025

बैटरी रिक्शा चालक जुम्मन धमाके में लापता, तलाश में परिजन बेहाल

नई दिल्ली:

जुम्मन की फोटो
लाल किला के पास सोमवार शाम हुए धमाके के बाद से इलाके में अफरा-तफरी का माहौल है। इस हादसे में 20 लोगों के घायल होने और 12 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है, वहीं कई लोग अब भी लापता हैं। इन्हीं में एक हैं बुलंद मस्जिद, शास्त्री पार्क निवासी 35 वर्ष के मोहम्मद जुम्मन, जो ई-रिक्शा चलाते थे और सोमवार शाम से गायब है। जुम्मन की आखिरी लोकेशन लाल किला के पास मिली थी। परिवार नम आंखों से उनकी तलाश कर रहा है।

जुम्मन के चाचा इदरीश ने बताया कि भतीजा रोज की तरह सवारियों को छोड़ने चांदनी चौक गया था। रात से हम उसे ढूंढ रहे हैं, पर कोई सुराग नहीं मिला। ई-रिक्शा में जीपीएस लगा था, जिसकी आख़िरी लोकेशन लाल किला के एक नंबर गेट के पास दिखी थी। लेकिन जब वहां पहुंचे तो गाड़ी की लोकेशन ऑन दिख रही थी, बाद में लोकेशन बंद हो गई।

ई-रिक्शा चालक जुम्मन धमाके में लापता: उन्होंने बताया कि जब परिजन लोकेशन पर पहुंचे तो पुलिस ने अंदर जाने की इजाजत नहीं दी और अस्पताल जाकर देखने की सलाह दी। हम एलएनजेपी अस्पताल पहुंचे, लेकिन अंदर जाने नहीं दिया गया। किसी ने कहा कि मोर्चरी में जाकर देख लो। हमने देखा, पर कोई कंफर्मेशन नहीं मिला। इदरीश ने बताया कि पुलिस बस यही कह रही है कि अस्पताल और मुर्दाघर में जाकर देखो। हमने चांदनी चौक थाने में शिकायत दर्ज कराई है। अब उम्मीद है कि जल्द कुछ खबर मिले।

जुम्मन की तलाश में परिजन बेहाल: इदरीश ने बताया कि जुम्मन को इलाके के अन्य रिक्शा चालकों ने सोमवार शाम करीब 6 बजे के आसपास आख़िरी बार देखा था। जुम्मन की पत्नी और परिजन का रो-रोकर बुरा हाल है। परिजन लगातार पुलिस से मदद की गुहार लगा रहे थे, हर गुजरते घंटे के साथ यह उम्मीद थी कि जुम्मन सुरक्षित मिल जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

बता दें कि दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के पास सोमवार शाम हुए विस्फोट ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया। शाम 6 बजकर 52 मिनट पर लालकिले के पास एक कार में धमाका हुआ, जिसमें अबतक 12 लोगों की मौत हो गई और 20 लोग घायल हो गए। यह धमाका, लालकिला मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर एक के बाहर आई-20 कार में हुआ। इस धमाके ने न केवल आसपास के बाजार क्षेत्र में अफरा-तफरी मचा दी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए हैं।

मंगलवार, 4 नवंबर 2025

सेवा, एकता और इंसानियत ही सच्चा धर्म है: सरदार बलविंदर सिंह


संवाददाता

नई दिल्ली। गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में आज चांदनी चौक गुरुद्वारे से भव्य नगर कीर्तन का आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं की भारी संख्या देखने को मिली। इस पावन अवसर पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भाग लेकर गुरु नानक देव जी के उपदेशों को नमन किया और समाज में एकता, भाईचारा और सेवा का संदेश दिया।

कार्यक्रम में पार्टी के दिल्ली प्रदेश संयोजक डी.सी. कपिल, प्रदेश उपाध्यक्ष सरदार बलविंदर सिंह, प्रदेश महासचिव राजेश घाघट, चांदनी चौक विधान सभा अध्यक्ष सुखबीर सिंह ने विशेष रूप से भाग लिया।

इस अवसर पर चांदनी चौक मार्केट एसोसिएशन की ओर से उपरोक्त नेताओं को सामाजिक कार्यों और जनसेवा में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इस आयोजन की मुख्य भूमिका चांदनी चौक विधान सभा अध्यक्ष सुखबीर सिंह और मुण्डका विधानसभा अध्यक्ष गुरप्रीत सिंह ने निभाई, जिन्होंने नगर कीर्तन के सफल संचालन में अहम योगदान दिया।

इस मौके पर दिल्ली प्रदेश उपाध्यक्ष सरदार बलविंदर सिंह ने कहा गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि मानवता, समानता और सेवा का प्रतीक है। गुरु साहिब ने सिखाया कि असली धर्म वही है जो इंसान को इंसान से जोड़े।

आज आवश्यकता है कि हम उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतारें और समाज में प्रेम, भाईचारा तथा एकता को मजबूत करें। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) दिल्ली में हर धर्म और हर वर्ग को साथ लेकर शांति और सद्भावना के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है।

दिल्ली प्रदेश संयोजक डी.सी. कपिल ने इस मौके पर कहा कि गुरु नानक देव जी ने सत्य, समानता और करुणा का मार्ग दिखाया। उन्होंने सिखाया कि सेवा और सच्चाई ही मानवता का सबसे बड़ा धर्म है।

आज के समय में जब समाज को बांटने की कोशिशें हो रही हैं, गुरु साहिब का संदेश हमें एकजुट रहने की प्रेरणा देता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) ऐसे आयोजनों के माध्यम से एकता और भाईचारे का संदेश देती रहेगी।

वहीं प्रदेश महासचिव राजेश घाघट ने कहा कि गुरु नानक देव जी ने ‘सरबत दा भला’ का जो संदेश दिया, वह समाज को जोड़ने का सबसे बड़ा सूत्र है। हमें जात-पात और धर्म के भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता की सेवा करनी चाहिए। हमारी पार्टी हमेशा ऐसे सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर भाईचारे और एकता को बढ़ावा देती रहेगी।

चांदनी चौक विधान सभा अध्यक्ष सुखबीर सिंह ने कहा कि गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह पर्व हमें सिखाता है कि समानता, सेवा और करुणा ही सच्चे धर्म के आधार हैं। आज चांदनी चौक की गलियों में नगर कीर्तन का आयोजन देखकर मन अत्यंत प्रसन्न हुआ। मैं चांदनी चौक मार्केट एसोसिएशन और सभी श्रद्धालुओं का आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने इस आयोजन को सफल बनाया और गुरु साहिब के उपदेशों को आत्मसात किया।

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