शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड से आज एक अधिकारी हुआ सेवानिवृत्त

संवाददाता

भिवानी।  हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड से श्री भुपेन्द्र सिंह, सहायक सचिव आज सेवानिवृत्त हुए। इन्हें एक गरिमापूर्ण समारोह में विदाई दी गई। इस अवसर पर सेवानिवृत हुए अधिकारी एवं शिक्षा बोर्ड के अधिकारी मौजूद रहे।

हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के प्रवक्ता ने बताया कि श्री भुपेन्द्र सिंह, सहायक सचिव 35 वर्ष 08 महीने 17 दिन तक बोर्ड में अपनी सेवाएं देने उपरान्त सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंनेे सेवानिवृत्त हुए अधिकारी के कार्यों की सराहना की तथा उनके सुखद एवं उज्ज्वल भविष्य की कामना की।  

उन्होंने आगे कहा कि बोर्ड के अधिकारियों व कर्मचारियों के प्रयासों के फलस्वरूप शिक्षा बोर्ड प्रगति के पथ पर अग्रसर है। उन्होंने सभी से अपील की कि बोर्ड कर्मी अपनी सक्रिय सहभागिता को बढ़ाते हुए पूर्ण कर्तव्‍यनि‍ष्ठ व लगन से कार्य करें। उन्होंने अधिकारी को भेंट स्वरूप स्मृति चिह्न व उपहार देकर शिक्षा बोर्ड से सेवानिवृत किया।

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

भारतीय चुनावों में विदेशी भूमिका का सच

अवधेश कुमार 

भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के नाम पर यूएसएड या यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के माध्यम से 21 मिलियन डॉलर यानी 182 करोड रुपए आने की सूचना ने पूरे देश में खलबली पैदा की है। ट्रंप प्रशासन के अंदर नवनिर्मित डिपार्मेंट आफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी डोजे यानी सरकारी दक्षता विभाग ने उसकी जानकारी देते हुए सूची जारी की। आरंभ में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे रोकने की घोषणा की और कहा कि भारत के पास स्वयं काफी रुपया है तो हम क्यों दे। उस समय ऐसा लगा मानो भारत द्वारा अमेरिकी सामग्रियों पर लगने वाले आयत शुल्क के विरुद्ध कदम उठा रहे हैं। फिर उन्होंने मियामी और उसके बाद वाशिंगटन डीसी के आयोजनों में कहा कि हमें भारत में मतदान बढ़ाने पर 21 मिलियन खर्च करने की आवश्यकता क्यों है? मुझे लगता है कि वे किसी और को जिताने की कोशिश कर रहे थे। हमें भारत सरकार को बताना होगा। क्योंकि जब हम सुनते हैं कि रूस ने हमारे देश में 2 डॉलर का खर्च किया है तो यह हमारे लिए बड़ा मुद्दा बन जाता है। भारत सरकार की ओर से सूचना है कि जानकारियों के आधार पर जांच आरंभ हो गई है। हमारे देश की समस्या है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र व भाजपा की राज्य सरकारों के रहते जब भी ऐसी खबर आती है सोशल मीडिया और मीडिया पर प्रभाव रखने वाला बड़ा वर्ग इसे गलत साबित करने पर तुल जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसा कह रहे हैं तो उसे खारिज नहीं किया जा सकता।

हमारे पास भारतीय चुनाव में हस्तक्षेप को साबित करने के लिए सटीक प्रमाण नहीं हैं। कुछ तथ्यों के आधार पर इसकी विवेचना की जा सकती है। डोजे द्वारा यूएस एड की जारी सूची में 15 तरह के कार्यक्रम के लिए धन देने की बात है। इनमें एक दुनियाभर में 'चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया सुदृढ़ीकरण' के लिए 48.6 करोड़ डॉलर यानी 4200 करोड़ का अनुदान था। इसी में भारत की हिस्सेदारी 182 करोड़ रुपए की है। बांग्लादेश को मिलने वाली 251 करोड़ रुपए बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल को मजबूत करने के लिए दिया जा रहा था। विश्व में चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया के सुदृढ़िकरण की आवश्यकता अमेरिकी प्रशासन को क्यों महसूस हुई? बांग्लादेश में राजनीतिक सुधारों के लिए अमेरिकी सहायता राशि की जरूरत क्यों थी?  मोजांबिक में पुरुष खतना कराएं, कंबोडिया में स्वतंत्र आवाज मजबूत हो तो प्राग में नागरिक समाज अंदर सशक्त हो इनका केवल समाज सेवा या उस देश का हित उद्देश्य नहीं हो सकता। इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य हैं। सच है कि सन् 2012 में भारत के चुनाव आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स के साथ एमओयू यानी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया था। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने इन आरोपों और समाचारों को निराधार बताया है कि आईएफएससी से धन आयोग को स्थानांतरित हुआ था।  कहीं नहीं कहा गया है कि इसने सीधे चुनाव आयोग को पैसा दिया। इस एजेंसी को यूएसएड से धन मिलता था और यह जार्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के साथ संबद्ध है। ऐसी संस्थाएं किसी माध्यम से अपनी भूमिका को वैधानिकता का आवरण देने की दृष्टि से समझौते करती हैं और फिर अपने अनुसार कार्य करती है। 

ध्यान रखिए 2012 में महत्वपूर्ण गुजरात विधानसभा चुनाव था तथा उसके पहले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर का। 2013 में पहले कर्नाटक उसके बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का। भारतीय चुनावों और राजनीति में विदेशी भूमिका की बात पहली बार नहीं आई है। नरेंद्र मोदी सरकार गठित होने के बाद से इसका चरित्र और व्यवहार बदला है किंतु हमारे देश में यह बीमारी लंबे समय से है। जब देश के नेता नौकरशाही, बुद्धिजीवी, पत्रकार, एक्टिविस्ट आदि छोटे-छोटे लाभ के लिए खिलौना बनने को तैयार हो जाएं तो कुछ भी हो सकता है। शीतयुद्ध काल में सोवियत संघ और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धायें थीं। दोनों अपने प्रभाव के लिए हस्तक्षेप करते थे। भारत में 1967, 77, 80 के चुनाव में विदेशी भूमिका की सबसे ज्यादा चर्चा हुई। सोवियत संघ के विघटन के बाद मित्रोखिन पेपर नाम से ऐसी जानकारियां आईं जिनसे पढ़ने वाले भौचक रह गए थे। वासिली मित्रोखिन, जो सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी से संबद्ध थे, और क्रिस्टोफ़र एन्ड्र्यूज ने अपनी पुस्तकों में खुलासा किया कि केजीबी ने भारत के अनेक समाचार पत्रों एक्टिविस्टों ,पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, नेताओं पर उस समय अरबों खर्च किए। भारत में अमेरिका के राजदूत रह चुके डेनियल मोयनिहान ने पुस्तक ए डैंजरस प्लेस में लिखा है कि भारत में कम्युनिस्टों के विस्तार को रोकने के लिए अमेरिका ने भारतीय नेताओं को धन दिए।

सन् 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से अनेक ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिनसे संदेह बढ़ा। 2019 में दोबारा उनके सत्ता में लौटने के बाद अलग तरह के स्वरुपों में आंदोलन हुए । इनमें नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध शाहीनबाग धरना और उसके समर्थन में देश और दुनिया में सोशल मीडिया से लेकर अन्य अभियान तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का सरकार के विरुद्ध सीधे बयान देना शामिल है। कृषि कानून के विरुद्ध हुए आंदोलन में भी हमने देखा कि देश के बाहर से टूलकिट बनाकर अभियान चलाए जा रहे थे। इस तरह के आंदोलन भारत ने कभी देखे नहीं जिसमें प्रत्यक्ष हिंसा नहीं हो, पर उग्रता और हठधर्मिता ऐसी कि मुख्य सड़क पर धरना दो, आवश्यकतानुसार निर्माण भी कर लो और बैठे रहो, किसी सूरत में हटो नहीं। यूएसएड द्वारा 2021 में भारतीय मिशन के प्रमुख के रूप में वीणा रेड्डी को भेजा गया था। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद उनका भारत का कार्यकाल समाप्त हो गया और वह वापस लौट गईं हैं। उस समय भी उनकी भूमिका को लेकर प्रश्न उठे थे। 

विदेशी हस्तक्षेप की बातें भारत के अलावा दूसरे देशों और नेताओं द्वारा भी कहा जा रहा है। विश्व के अनेक देशों की चुनावी प्रक्रियाओं को प्रभावित करने में विदेशी शक्तियों और संस्थाओं की भूमिका सामने आती रही हैं। माइक्रोसाफ्ट ने डीपफेक और एआई के माध्यम से भारतीय चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशों पर चेतावनी दिया था। 2018 में अमेरिकी सीनेट ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि 2016 में डोनाल्ड ट्रंप को जितवाने के लिए रूसी खुफिया एजेंटों ने फेसबुक विज्ञापनों के साथ कई तरीके से चुनावों को प्रभावित किया था। कनाडा और आस्ट्रेलिया के चुनावों में चीनी फंडिंग से चलने वाले अभियानों की भूमिका सामने आई। आस्ट्रेलिया में राजनीतिक संप्रभुता पर विदेशी हस्तक्षेप के प्रभाव पर व्यापक चर्चा हो रही है और इसे ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव किए गए हैं। 

सेबेस्टियन व्हाइटमैन की किताब 'द डिजिटल डिवाइड इन डेमोक्रेसी' में कहा गया है कि माइक्रोसॉफ्ट ने भी अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि चीनी सरकार के समर्थन से चीन की साइबर आर्मी आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों, दक्षिण कोरिया और भारत के चुनावों को प्रभावित कर सकती है। हांगकांग यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिक्स एंड पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में सहायक प्रोफेसर डोव एच लेविन ने 2020 में अपनी किताब किताब 'मेडलिंग इन द बैलेट बॉक्स: द कॉजेज एंड इफेक्ट्स ऑफ पार्टिजन इलेक्टोरल इंटरवेंशन' में लिखा है कि 1946 से वर्ष 2000 के दौरान 938 चुनावों का परीक्षण किया गया। इनमें से 81 चुनावों में अमेरिका, जबकि 36 चुनावों में रूस ने हस्तक्षेप किया। इस तरह 938 में से 117 यानी हर 9 चुनाव में से 1 चुनाव में दोनो की भूमिका रही है। वैराइटीज ऑफ डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट, स्वीडन द्वारा 2019 में प्रकाशित जर्मन राजनीति विज्ञानी अन्ना लुहरमैन के अध्ययन के अनुसार हर देश ने कहा है कि मुख्य राजनीतिक मुद्दों को लेकर झूठ फैलाये गये और चीन और रूस सबसे ज्यादा झूठ फैलाने वाले देश थे।  संभव नहीं कि चीन और रूस ऐसा करें और अमेरिका इससे वंचित हो। 

भारत पर विस्तृत अध्ययन नहीं आया, किंतु 2019 के चुनाव में ज्यादातर देशों ने स्वीकार किया कि झूठ और अफवाह फैला कर चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की गई।  2024 के चुनाव में हमने देखा कि संविधान खत्म हो जाएगा, आरक्षण खत्म हो जाएगा जैसे झूठ ने भूमिका अदा की। इसमें सोशल मीडिया, मुख्य मीडिया,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पूरी भूमिका थी। दलितों और जनजातियों के बीच लोगों का समूह जाकर का प्रचार करता था। इसलिए इन बातों की ठीक प्रकार से जांच हो। जांच रिपोर्ट में अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे राष्ट्रीय हित प्रभावित होते हों तो भले उन्हें सार्वजनिक न किया जाए किंतु भविष्य में ऐसी खतरनाक भूमिकाओं को रोकने के कदम उठाए जाने चाहिए।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कम्पलेक्स, दिल्ली- 110092, मोबाइल 9811027208

आज चाकचौबंद व्यवस्था में संचालित हुई सीनियर सैकेण्डरी की अंग्रेजी विषय की परीक्षा

-  नकल के कुल 37 मामले दर्ज तथा 02 पर्यवेक्षक रिलीव

भिवानी। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित करवाई गई सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) अंग्रेजी विषय की परीक्षा में अभी तक प्राप्त रिपोर्ट अनुसार कुल 37 अनुचित साधन प्रयोग के मामले पकड़े गए है तथा ड्यूटी में कौताही बरतने पर 02 पर्यवेक्षकों को कार्यभार मुक्त कर दिया गया है। आज प्रदेशभर में 1054 परीक्षा केंद्रों पर अंगे्रजी विषय की परीक्षा संचालित हुई।
यह जानकारी देते हुए बोर्ड प्रवक्ता ने बताया कि आज संचालित हुई सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) अंग्रेजी विषय की परीक्षा में 37 अनुचित साधन प्रयोग के मामले दर्ज किए गए। उन्होंने आगे बताया कि बोर्ड अध्यक्ष के उडऩदस्ते द्वारा जिला -कैथल एवं बोर्ड सचिव के उडऩदस्ते द्वारा जिला-रोहतक व झज्जर के परीक्षा केंद्रों का निरीक्षण किया गया, जहां परीक्षाएं सुव्यवस्थित व नकल रहित संचालित हो रही थी। उन्होंनेे आगे बताया कि नकल पर अकुंश लगाने के प्रदेश में गठित अन्य उडऩदस्तों द्वारा अनुचित साधन के 37 मामला दर्ज किए गए।
उन्होंने बताया कि जिला-नूंह के परीक्षा केन्द्र रा०व०मा०वि०, टपकान-01 से अंग्रेजी विषय की परीक्षा का प्रश्र पत्र आउट होने की सूचना बोर्ड कट्रोल रूम में प्राप्त होने पर तुरन्त कार्यवाही करते हुए बोर्ड के जिला प्रश्र पत्र उडऩदस्ता द्वारा मौके पर पंहुचकर एल्फा न्यूमेरिक कोड, क्यूआर कोड व हिडन फीचर की सहायता से पेपर वायरल करने वालो को धर-दबोचा। इसके अतिरिक्त सम्बन्धित परीक्षार्थियों मोनिश, नफीश व मुश्तकीन एवं पर्यवेक्षक श्री शौकत अली, श्री रकमूदीन, जे.बी.टी. अध्यापक राजकीय प्राथमिक पाठशाला, रिठोरा (नूंह) तथा केन्द्र अधीक्षक संजय कुमार, पीजीटी हिन्दी, रा०क०व०मा०वि०,खोड बशई के खिलाफ  पुलिस प्रशासनिक कार्यवाही अमल में लाई जा रही है।
उन्होंने आगे बताया कि इसके अतिरिक्त परीक्षा केन्द्र रा०व०मा०वि०, पलवल-33 से भी आज का अंग्रेजी विषय का पेपर आऊट होने की सूचना बोर्ड कट्रोल रूप में प्राप्त हुई थी, जिस पर तुरन्त संज्ञान लेते हुए बोर्ड की जिला प्रश्र पत्र उडऩदस्ता पलवल टीम द्वारा मौके पर पंहुचकर पेपर वायरल करने वालो को धर पकड़ा तथा जांच उपरान्त इस केन्द्र पर संचालित हुई आज की परीक्षा को रद्द करने की सिफारिश की गई। सम्बन्धित केन्द्र अधीक्षक श्री देवेन्द्र सिंह द्वारा परीक्षार्थी सचिन तथा पर्यवेक्षक श्री गोपाल दत्त शर्मा, गणित अध्यापक रा०व०मा०वि०, रसूलपूर के विरूद्ध एफ.आई.आर. दर्ज करवाई गई।
उन्होंने बताया कि उप-मण्डल प्रश्र पत्र उडऩदस्ता पुन्हाना द्वारा परीक्षा केन्द्र रा०व०मा०वि०, जमालगढ़ पर नियुक्त पर्यवेक्षक अरशद हुसैन, टीजीटी अध्यापक एवं आर.ए.एफ-12 द्वारा परीक्षा केन्द्र रा०व०मा०वि०, पनहेड़ा खुर्द पर तैनात पर्यवेक्षक श्रीमती प्रवीन, साईस अध्यापिका को ड्यूटी में कौताही बरतने पर ड्यूटी से कार्यभार मुक्त किया गया। सभी सम्बन्धित के विरूद्ध शिक्षा निदेशालय को विभागीय कार्यवाही के लिए लिखा जा रहा है।
प्रदेशभर में परीक्षाओं की मॉनिटरिंग के लिए अलग-अलग जिलों में 02 कंट्रोल रूम स्थापित किए गए हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेशभर में 1355 परीक्षा केन्द्रों पर कल सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) गणित विषय की परीक्षा में 2,87,023 परीक्षार्थी प्रविष्ठ होंगे।

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

'तस्वीर की सियासत' बनाम 'सियासत की तस्वीर'?

निर्मल रानी

देश सरकारी कार्यालयों में  प्रायः राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी,देश के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के चित्र लगाये जाते हैं। जबकि राज्यों में इनके साथ मुख्यमंत्री व राजयपाल के चित्र भी लगाये जाते हैं। इस व्यवस्था को 'प्रोटोकॉल ' अथवा शिष्टाचार / नवाचार कहा जाता है। शीर्ष पदों पर बैठे लोग समय समय पर अपनी सुविधानुसार या किसी पूर्वाग्रह के चलते स्वेच्छा से इसमें बदलाव भी करते रहते हैं। उदाहरण के तौर पर आपको झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कार्यालय में मुख्यमंत्री की कुर्सी के ठीक पीछे मुख्य रूप से केवल उनके पिता शिबू सुरेन का ही चित्र लगा मिलेगा। ज़ाहिर है वे उन्हें ही अपना आदर्श नेता मानते हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कार्यालय में राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के चित्र से आकार में भी बड़ा तथा बिल्कुल मध्य में गुरु गोरखनाथ का चित्र लगाया गया है। अनेक मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों में उनकी अपनी पसंद के आधार पर चित्र लगाये गए हैं। 

दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी जनवरी 2022 में गणतंत्र दिवस से एक दिन पूर्व दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय सहित राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों में केवल बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह के चित्र लगाने के निर्देश जारी किये थे। उन्होंने अधिकारियों को यह भी निर्देशित किया था कि दिल्ली सरकार के सभी कार्यालयों में किसी अन्य नेता की तस्वीरें प्रदर्शित नहीं की जायें । तब से लेकर पिछले दिनों दिल्ली की सत्ता बदलने तक दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर राज्य के अधिकांश कार्यालयों में महात्मा गाँधी, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति की तस्वीर हटाकर बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह के चित्र लगा दिए गये थे। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी कुर्सी के ठीक पीछे बाबासाहेब और भगत सिंह के चित्र लगाये थे जो उनके बाद आतिशी के मुख्यमंत्री काल में भी लगे रहे। 

परन्तु जिस दिन दिल्ली में 27 साल का 'वनवास' ख़त्म कर भाजपा सत्ता में आई व भाजपा की नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कार्यभार संभाला उस दिन उन्होंने सबसे पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी के पीछे लगे अंबेडकर और भगत सिंह के चित्रों को हटाकर उनके स्थान पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी,प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति के चित्र लगा दिए। जबकि पूर्व में लगे चित्रों को दूसरी दीवार पर स्थान दिया गया। इसी बात पर आम आदमी पार्टी ने हंगामा खड़ा करते हुये इसे राजनैतिक मुद्दा बना लिया। पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने तस्वीर हटाने पर कहा कि “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली विधानसभा का नेतृत्व ऐसी पार्टी कर रही है, जो दलित और सिख विरोधी है। भाजपा ने अपना दलित विरोधी रुख़ दिखाते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय से बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर और शहीद भगत सिंह के चित्र हटा दिए हैं।” परन्तु तस्वीरों पर सियासत करने वाली 'आप' भी ऐसे सवालों से बच नहीं सकती। आम आदमी पार्टी नेताओं को भी यह बताना पड़ेगा कि उन्होंने अपने कार्यालय से राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की फ़ोटो क्यों हटाई थी ? यदि मान लिया जाये की नरेंद्र मोदी उनके घोर विरोधी नेता हैं परन्तु वे देश के प्रधानमंत्री भी हैं। मान लीजिये कि राजनैतिक पूर्वाग्रह के कारण उन्होंने  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चित्र नहीं लगाया परन्तु उन्होंने आख़िर राष्ट्रपति का चित्र क्यों नहीं लगाया गया ? 

जहाँ तक सवाल है तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा मात्र चित्र लगाकर बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह को सम्मान दिये जाने का, तो यदि अरविंद केजरीवाल के वक्तव्यों पर नज़र डालें तो केजरीवाल की बातें तो इन नेताओं के मूल विचारों के बिल्कुल विरुद्ध हैं। मिसाल के तौर पर अरविंद केजरीवाल ने 27 अक्टूबर 2022 को मुख्यमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र के माध्यम से यह मांग की थी कि भारतीय नोटों पर गांधी जी के साथ-साथ लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर भी छपे। उनका कहना था कि इससे देश की अर्थव्यवस्था को भगवान का आशीर्वाद मिलेगा। विघ्नहर्ता का आशीर्वाद होगा तो अर्थव्यवस्था सुधर जाएगी। इसलिए मेरी केंद्र सरकार से अपील है कि भारतीय करेंसी के ऊपर लक्ष्मी गणेश की तस्वीर छापें।' क्या केजरीवाल का यह सुझाव बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह जैसे महापुरुषों के विचार सम्मत है ? किसी का चित्र लगाने का अर्थ आख़िर क्या होता है ? केवल उस महापुरुष के समर्थकों या उनके समुदाय को ख़ुश करना या उनके आदर्शों को मानना व उनपर चलना ? बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह के जीवन की कौन सी शिक्षा है जिसने केजरीवाल को इस बात के लिये प्रेरित किया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को उपरोक्त सलाह दे डाली। वह भी स्वयं एक शिक्षित व राजस्व सेवाओं के अधिकारी होने के बावजूद। हद तो यह है कि प्रधानमंत्री को यह पत्र लिखते समय केजरीवाल ने यह भी लिहा था कि "यह देश के 130 करोड़ लोगों की इच्छा है कि भारतीय करेंसी पर एक ओर महात्मा गांधी व दूसरी ओर लक्ष्मी-गणेश जी की तस्वीर भी लगाई जाए।' केजरीवाल ने 130 करोड़ लोगों का प्रतिनिधि होने के नाते नहीं बल्कि सही मायने में देश के बहुसंख्य समाज को वरग़लाने के लिये ही 'तस्वीर की सियासत' यह शगूफ़ा छोड़ा था। 

इसी तरह विधान सभा चुनावों की घोषणा से पूर्व दिसंबर 2024 में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने एक और ऐसी ही चुनावी फुलझड़ी छोड़ते हुये यह घोषणा कर डाली कि आम आदमी पार्टी के चुनाव जीतने पर मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को 18 हज़ार रुपए प्रति माह की सम्मान राशि दी जाएगी। केजरीवाल ने इसे  'पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना' का नाम दिया। इस घोषणा की आलोचना करते हुये भाजपा ने उसी समय यह जवाब दिया था कि 'चुनावी हिंदू केजरीवाल' ने मंदिर और गुरुद्वारों के बाहर शराब के ठेके खोले हैं और उनकी पूरी राजनीति हिंदू विरोधी रही है। यहाँ भी यही सवाल है कि क्या  'पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना' की घोषणा बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह जैसे महापुरुषों की सोच के अनुरूप थी जिनके चित्र उन्होंने अपने कुर्सी के पीछे लगा रखे थे? 

भाजपा भी इसी तरह गांधी व बाबासाहेब अंबेडकर व भगत सिंह जैसे आदर्श पुरुषों के केवल चित्र लगाकर या उनपर ख़ास अवसरों पर माल्यार्पण कर उनके प्रति अपने आदर व सम्मान का दिखावा तो ज़रूर करती है परन्तु हक़ीक़त में वह भी दिखावा मात्र ही है। अन्यथा घोर हिंदुत्ववादी राजनीति  का गांधी व बाबासाहेब आंबेडकर व भगत सिंह जैसे महान देशभक्त मानवतावादी नेताओं से क्या लेना देना ? यह तो धर्म और राजनीति के ऐसे घालमेल को ही विध्वंसक मानते थे। कहना ग़लत नहीं होगा की इसी 'तस्वीर की सियासत' ने ही देश की 'सियासत की तस्वीर' को बदनुमा कर डाला है जिसकी भरपाई महात्मा गांधी व बाबासाहेब , व भगत सिंह जैसे आदर्श पुरुषों के केवल चित्र लगाकर या उन की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर नहीं बल्कि केवल सच्चे मन से उनके बताये हुये रास्तों व उनके आदर्शों पर चलकर ही की जा सकती है?

कल से आरम्भ होंगी बोर्ड की वार्षिक परीक्षाएं- बोर्ड अध्यक्ष

संवाददाता

भिवानी। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष श्री पंकज अग्रवाल, भा.प्र.से. ने  बताया कि सैकेण्डरी व सीनियर सैकेण्डरी(शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) परीक्षा फरवरी/मार्च-2025 के सफल संचालन के लिए शिक्षा बोर्ड ने सभी प्रकार की तैयारियां पूर्ण कर ली हैं।

उन्होंने बताया कि सैकेण्डरी व सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) की वार्षिक परीक्षाओं में प्रदेशभर में लगभग 1433 परीक्षा केन्द्रों पर कुल 05 लाख 16 हजार 787 परीक्षार्थी प्रविष्ठ होगें, जिसमें 2,72,421 लडक़े व 2,44,366 लड़कियां शामिल हैं। परीक्षाओं का समय दोपहर 12:30 बजे से 3:30 बजे तक रहेगा। उन्होंने बताया कि सभी पात्र परीक्षार्थियों को प्रवेश-पत्र जारी कर दिए गए हैं। बिना प्रवेश-पत्र के परीक्षा केन्द्र में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।
बोर्ड अध्यक्ष ने बताया कि परीक्षा केन्द्रों के औचक निरीक्षण हेतु 219 उडऩदस्तों का गठन किया गया है, जिसमें बोर्ड अध्यक्ष व बोर्ड सचिव के प्रभावी उडऩदस्तों के अलावा 22 जिला प्रश्र पत्र उडऩदस्ते, 70 उप-मण्डल प्रश्र पन्न उडऩदस्ते, 21 रैपिड एक्शन फोर्स, 08 एस.टी.एफ. एवं 02 नियंत्रण कक्ष उडऩदस्ते गठित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त उप-मण्डल अधिकारी (ना०) के 70 उडऩदस्ते, जिला शिक्षा अधिकारी के 22 उडऩदस्ते एवं उप-सचिव (संचालन) व  सहायक सचिव (संचालन) के उडऩदस्ते भी गठित किये गये हैं, जोकि परीक्षा केंद्रों पर पैंनी निगाहें बनाए रखेंगे। परीक्षाओं की शुचिता, विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए सभी परीक्षा केन्द्रों के आसपास धारा-163 लागू कर दी गई है। परीक्षा केंद्रों के निकट फोटोस्टेट की दुकानें व कोचिंग सेंटर भी बंद रहेंगे।
उन्होंने बताया कि प्रश्र पत्रों पर अल्फा न्यूमेरिक कोड, क्यू आर कोड और हिडन सिक्योरिटी फीचर भी अंकित किए गए हैं। इससे यदि कोई परीक्षार्थी, पर्यवेक्षक, कर्मचारी व अन्य कोई व्यक्ति प्रश्र पत्र की फोटो लेता है तो तुरंत पता लग जाएगा कि प्रश्र पत्र किस परीक्षार्थी का है एवं कहां से आउट हुआ है, जिससे परीक्षाओं के दौरान होने वाली किसी भी प्रकार की अनियमितताओं पर लगाम लगाई जा सकेगी। उन्होंने आगे बताया कि यदि किसी परीक्षा केन्द्र से पेपर आउट होने का मामला पाया जाता है, तो उस केन्द्र के अधीक्षक, पर्यवेक्षक व नकल में संलिप्त परीक्षार्थी के विरूद्ध नियमानुसार सख्त कार्यवाही अमल में लाई जाएगी।
बोर्ड अध्यक्ष ने बताया कि परीक्षा की सुचिता सुनिश्चित करने के लिए इस बार विशेष सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं। अधिकतर परीक्षा केन्द्र सीसीटीवी कैमरो की निगरानी में रहेंगे। यह कदम पेपर लीक की संभावना को समाप्त करने और परीक्षा में पारदर्शिता लाने के लिए उठाया गया है। उन्होंने छात्रों को सलाह दी है कि वे तनावमुक्त होकर परीक्षा की तैयारी करें। नियमित रूप से सिलेबस का रिवीजन करें, पुराने प्रश्र पत्र हल करें और स्वस्थ दिनचर्या अपनाएं। उन्होंने कहा कि पढ़ाई के साथ छोटे विराम भी आवश्यक हैं, जो परीक्षा का तनाव कम करने में सहायक होते है।
 इसके अतिरिक्त  शिक्षा बोर्ड द्वारा डी.एल.एड.(रि-अपीयर/मर्सी चांस) की परीक्षाओं का संचालन भी 03 मार्च से करवाया जा रहा हैं। इस परीक्षा में 5,070 छात्र-अध्यापक परीक्षा देंगे।

सरकार की त्रिभाषा नीति पर विवाद दुर्भाग्यपूर्ण

बसंत कुमार

सरकार की त्रिभाषा नीति के तहत अब देश के हर राज्य में मात्र भाषा सहित तीन भाषाएं सिखनी होंगी और इसमें एक भाषा हिंदी हो सकती है। यद्यपि यह तय करने का अधिकार शिक्षण संस्थान के पास होगा कि वे कौन-कौन सी तीन भाषाएं पढ़ाएंगे, सरकार की इस पॉलिसी में यह सिफारिश की गई है कि छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी होगी, इस पॉलिसी के अनुसार प्राइमरी कक्षाओं (कक्षा एक से पांचवीं तक) में पढ़ाई मातृभाषा या स्थानीय भाषा में कराई जाए। माध्यमिक कक्षाओं (कक्षा 6 से 10 तक) में तीन भाषाओं की पढ़ाई अनिवार्य होगी। गैर हिंदी भाषी राज्यों में तीसरी भाषा अंग्रेजी या कोई एक आधुनिक भाषा होगी। सेकेंडरी कक्षाओं (11वीं व 12वीं) में स्कूल चाहे तो विदेशी भाषा को विकल्प के रूप में पढ़ा सकेंगे। वहीं गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जा सकेगा। हिंदी भाषी राज्यो में दूसरी भाषा के रूप में अन्य भारतीय भाषाओं जैसे बांग्ला, तमिल और तेलगु भाषा हो सकती है। भारत के दक्षिण राज्यों विशेष रूप से तमिलनाडु में इस पॉलिसी का विरोध हो रहा है क्योंकि वहां पर अभी भी 2 लैंग्वेज पॉलिसी लागू है और तमिलनाडु के स्कूलों में तमिल और अंग्रेजी ही पढ़ाई जाती है और नई शिक्षा नीति यानि ट्राई लैंग्वेज फार्मूले पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार आमने-सामने आ गई है और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु सरकार से राजनीति से ऊपर उठकर काम करने की सलाह दी है। यहां तक की उनके और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के स्टालिन के बीच इस मामले में जुबानी जंग तेज हो गई है जो बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण हो गई है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आजादी के बाद से ही दक्षिण भारत के राज्यों की राजनीति हिंदी भाषा के विरोध में टिकी रही है और इस बार भी ऐसा दिखायी दे रहा है और केंद्र के ट्राई लैंग्वेज फॉर्मूले का विरोध फिर सामने आ रहा है। जहां केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि नई शिक्षा नीति का पालन तमिलनाडु सरकार द्वारा नहीं किया गया तो तमिलनाडु को समग्र शिक्षा नीति के लिए मिलने वाली 2400 करोड़ की राशि नहीं मिलेगी। तमिलनाडु सरकार को लिखे गए पत्र में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्पष्ट किया है कि यह किसी के ऊपर किसी भाषा को थोपने का प्रश्न नहीं है क्योंकि विदेशी भाषाओं पर जरूरत से अधिक निर्भरता अपनी भाषा को सीमित करती हैं और यह पॉलिसी इसे दुरुस्त करने का प्रयास है। इसके विरोध में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा है कि तमिलनाडु के लोग इस धमकी को सहन नहीं करेंगे। यदि राज्य को समग्र शिक्षा फंड से वंचित किया गया तो केंद्र को तमिलों के विरोध का सामना करना पड़ेगा।

जहां तक दक्षिण भारत के राज्यो में लोगों के हिंदी बोलने वालों की संख्या का सवाल है तो इसे पहली भाषा के रूप में इस्तेमाल करने वालों की संख्या सबसे कम दक्षिण भारत के लोगों की है।, पूर्वोत्तर भारत के लोगों का ऐसा ही हाल है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश के 43.63% लोगों की पहली भाषा हिंदी ही है अर्थात् वर्ष 2011 में 125 करोड़ आबादी वाले देश में 53 करोड़ लोग हिंदी को मातृभाषा मानते थे। इसी जनगणना से यह बात सामने आई कि वर्ष 1975 से वर्ष 2011 के बीच हिंदी भाषियों की संख्या में 6% की वृद्धि हुई है। जहां तक दक्षिण के राज्यों में हिंदी भाषा बोलने की बात है लक्षद्वीप में 0.2%, पुडुचेरी में 0.51%, तमिलनाडु में 0.54% और केरल में 0.15% पाई गई। कर्नाटक में 3.29% लोग बोलचाल में हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को मिलाकर यह आंकड़ा 3.6% है और उड़ीसा में यह आंकड़ा 2.95% है। दक्षिण की भाँति पूर्वोत्तर में भी हिंदी बोलने वालों की संख्या में काफी कमी पाई गई है। वर्ष 2011 की जनगणना की माने तो सिक्किम में 7.9% और अरुणाचल में यह आंकड़ा 7.09% है? ऐसे ही नागालैंड में 3.18%। लोग हिंदी भाषी है। त्रिपुरा में केवल 2.11% लोग हिंदी बोलते पाए गए, मिजोरम में 0.97% और मणिपुर में 1.11 लोगों को हिंदी भाषी बताया गया और आसाम में यह आंकड़ा, 6.73 पाया गया था।

इन परिस्थितियों में सरकार का त्रिभाषा फॉर्मूला देश की सांस्कृतिक एकता के लिए बहुत सार्थक है। दरअसल नई शिक्षा नीति सतत विकास के लिए सरकार के एजेंडा 2030 के अनुकूल है और इसका उद्देश्य 21वीं शताब्दी की आवश्यकताओं के अनुकूल स्कूल और कालेज की शिक्षा को अधिक समग्र, लचीला बनाते हुए भारत को एक ज्ञान आधारित जीवन्त समाज और वैश्विक महाशक्ति में बदलकर प्रत्येक छात्र में निहित अद्वितीय क्षमताओं को सामने लाना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बहुभाषा वाद और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए त्रिभाषा सूत्र पर बल देने का निर्णय लिया गया परंतु दक्षिण के कुछ राज्यों ने उन पर हिंदी थोपने के नाम पर इस नीति का विरोध शुरू कर दिया है जो गलत है।

उत्तर दक्षिण के भाषाई विरोध को भांपते हुए संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा में राष्ट्रीय भाषा के रूप में संस्कृत का समर्थन किया था, उनका मानना था कि देश को आजादी के बाद अंग्रेजी को कम से कम 15 वर्षों तक आधिकारिक भाषा के रूप में बनाए रखा जा सकता है तब तक संस्कृत आम जन मानष में पूरी तरह से स्वीकार्य जनभाषा नहीं हो जाती। वे इस बात से आशंकित थे कि आजाद भारत कहीं भाषायी झगड़े की भेट न चढ़ जाए और भाषा को लेकर कोई विवाद न पैदा हो इसलिए जरूरी है कि राजभाषा के रूप में ऐसी भाषा का चुनाव हो जिसका सभी भाषा भाषी आदर करते हों।

बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर यह मानते थे कि सभी भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत है और उन्हें पूरा भरोसा था कि संस्कृत के नाम पर देश के किसी भी भाग में कहीं भी कोई भी विवाद नहीं होगा। डॉ. आंबेडकर ने राज्य भाषा परिषद में अपना, पंडित लक्ष्मीकांत मैत्रे, टीटी कृष्णमाचारी समेत अन्य 15 सदस्यों से हस्ताक्षर युक्त प्रस्ताव पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार के समक्ष रखा और इस प्रस्ताव के तीन मुख्य बिन्दु थे-

1. भारतीय संघ की आधिकारिक भाषा संस्कृत को बनाया जाए।

2. शुरुआती 15 वर्षो तक अंग्रेजी संघ की अधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

3. संसद में अंग्रेजी का उपयोग सिर्फ 15 वर्षों के लिए हो इसके लिए कानून बना दें।

पर राजभाषा परिषद ने डॉ. आंबेडकर के प्रस्ताव को नहीं माना और यह निश्चय किया कि अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी को प्रतिष्ठित किया जाए और संस्कृत को भारतीय संघ की अधिकारिक भाषा बनाने का डॉ. आंबेडकर का सपना पूरा नहीं हो सका।

विश्व में संभवतः भारत ही एक ऐसा देश है जहां आजादी के 75 वर्ष बाद भी हम अपनी अधिकारिक/ सम्पर्क भाषा विकसित नहीं कर पाए है और ट्राई लैंग्वेज के सवाल पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के स्टालिन के बीच विवाद और दुर्भाग्यपूर्ण है। देश की समृद्धि और एकता के लिए हमे क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर सोचना होगा। यदि 1947 में पंडित नेहरू ने डॉ. आंबेडकर की संस्कृत को अधिकारिक भाषा बनाने की बात मान ली होती आज भाषा के नाम पर यह विवाद नहीं होता पर यह उस समय न हो सका। पर पूरा देश अपनी रुढिवादी सोच को त्यागकर 45% लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा हिंदी को अपनी सम्पर्क भाषा के रूप में अपना ले जो देश को समृद्ध व एकता के सूत्र में पिरो सके।

(लेखक एक पहल एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव और भारत सरकार के पूर्व उपसचिव है।)

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी उच्च शिक्षा में नए मानक स्थापित करने की दिशा में अग्रसार : प्रोफेसर केके अग्रवाल

 

SAU के अध्यक्ष प्रो. के. के. अग्रवाल ने मीडिया के सामने शिक्षण सत्र 2025-26 के लिए प्रवेश प्रकिया की शुरुआत करते हुए।

रविवार, 23 फ़रवरी 2025

ज़हर उगलने वाले क्या जानें 'उर्दू की मिठास'

तनवीर जाफ़री 

आपने छात्र जीवन में उर्दू कभी भी मेरा विषय नहीं रहा। हाँ हिंदी में साहित्य रत्न होने के नाते मेरा सबसे प्रिय विषय हमेशा हिंदी ही रहा। और आज भी मैं प्रायः हिंदी में ही लिखता पढता हूँ। परन्तु शेर-ो-शायरी का शौक़ बचपन से ही था। इसके तथा कुछ पारिवारिक व सामाजिक परिवेश के चलते उर्दू से ख़ासकर उसके शब्दों के उच्चारण के आकर्षक तौर तरीक़ों से बहुत प्रभावित रहा। और जब बचपन और जवानी में बड़े मुशायरों में शिरकत करने का मौक़ा मिलता और कुंवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर' जैसे अज़ीम शायर को यह कहते सुनता कि उन्हें  'उर्दू ज़बान से मुहब्बत है ,इश्क़ है  क्योंकि यह ज़ुबान आब ए हयात(अमृत ) पीकर आई है' तो यक़ीनन यह एहसास ज़रूर होता कि आख़िर कुछ बात तो है कि भारत में पैदा होने वाली तथा फ़ारसी व हिंदी के मिश्रण से तैयार उर्दू को हमारे देश के क्रांतिकारियों से लेकर बड़े से बड़े कवियों,साहित्यकारों,राज नेताओं,बुद्धिजीवियों ने न केवल अपनाया बल्कि उसे पाला पोसा और संवारा भी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी उर्दू को भारतीय भाषा कहते थे।                              

मुगल शासक भी उर्दू भाषा को हिंदी या हिंदवी कहते थे। परन्तु चूँकि उर्दू के लिखने में फारसी लिपि का उपयोग होता है इसलिये लोग इसे मुसलमानों की भाषा कहने लगे। शायद यही वजह है कि आज  हिंदी व उर्दू भाषा रुपी दो बहनें एक दूसरे में इतनी रम चुकी हैं कि यदि आप इन दोनों को एक दूसरे से अलग भी करना चाहें तो संभव नहीं। उदाहरण के तौर पर केवल चंद ऐसे अल्फ़ाज़ पेश हैं जो आम तौर पर हिंदी भाषा में बोले जाते हैं परन्तु दरअसल इन शब्दों का स्रोत अथवा उद्भव फ़ारसी अथवा उर्दू से ही हुआ है। जैसे हिन्दोस्ताँ,अदालत,वकील,इंसाफ़,मुंसिफ़,पाएजामा,पेशाब,पंजाब,दरवाज़ा, ख़िलाफ़,मुख़ालिफ़त शराब, किताब, इंक़ेलाब ज़िंदाबाद, 'शाही'(स्नान), डाकख़ाना, दवा, ईलाज, वज़ीर, शाह, बादशाह, हकीम, हाकिम, हुक्म, सब्ज़ी, मकान जैसे अनगिनत शब्द हैं जो प्रत्येक भारतीय रोज़ाना दिन में कई कई बार इस्तेमाल करता है परन्तु शायद उसे इस बात का एहसास भी नहीं होता कि वह उर्दू के शब्द बोल रहा है।                                    
इसके बावजूद उर्दू जैसे मीठी व अदब साहित्य से सम्बन्ध रखने वाली भाषा का हमारे देश में दशकों से विरोध होता आ रहा है। विरोध तो समय समय पर अंग्रेज़ी का भी हुआ परन्तु दक्षिण भारत व पूर्वोत्तर में अंग्रेज़ी की व्यापक स्वीकार्यता व उसे मिलने वाले समर्थन के चलते राष्ट्रीय स्तर पर उसका विरोध नहीं हो सका। परन्तु उर्दू का विरोध करने का ठेका उसी विचारधारा के लोगों के पास है जो देश को एक रंग में रंगना चाहते हैं। बड़ी आसानी से इस भाषा को मुसलमानों की भाषा या विदेशी भाषा बताते हुये उर्दू का विरोध शुरू हो जाता है। जैसा कि पिछले दिनों  उत्तर प्रदेश में बजट सत्र के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुंह से सुनने को मिला। मुख्यमंत्री ने सदन में विपक्ष पर हमलावर होते हुये यह कहा कि - ये  'अपने बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूलों में पढ़ाएंगे और दूसरों के बच्चों को उर्दू पढ़ने को प्रेरित करेंगे। ये उन्हें मौलवी, कठमुल्ला बनने को प्रेरित करेंगे? यह नाइंसाफ़ी है, यह नहीं चलेगा।' योगी आदित्यनाथ के इस बयान से यह सवाल तो ज़रूर खड़ा होता है कि क्या उर्दू को जानने वालों का, उर्दू पढ़ने या पढ़ने वालों का मक़सद केवल मौलवी बनना बनाना होता है? क्या उर्दू पढ़कर लोग "कठमुल्ला " बन जाते हैं ?                          
यदि ऐसा होता तो भारत में उर्दू की पहली ग़ज़ल लिखने वाले कश्मीरी पंडित,पंडित चंद्र भान 'ब्राह्मण' न होते। मुंशी नवल किशोर,दया नारायण निगम,जगत मोहन लाल 'रवां', नौबत राय 'नज़र', मुंशी महाराज बहादुर 'बर्क़', नाथ मदन सहाय ,पंडित दया शंकर कौर 'नसीम',पंडित रतन नाथ 'सरशार',राम कृष्ण 'मुज़तर', जमुना दास अख़्तर , राम लाल, डॉ. जगन्नाथ 'आज़ाद', कृष्ण बिहारी नूर, संजय मिश्रा 'शौक़, राम प्रकाश ‘बेखुद’, खुशबीर सिंह ‘शाद’ ,मनीष शुक्ल,आनंद मोहन जुत्शी, गुलज़ार देहलवी, कृष्ण चंदर,रतन सिंह, भारत भूषण पंत और मलिक राम जैसे हिन्दू उर्दू प्रेमियों के अनगिनत नाम हैं जिनके बिना भारत में उर्दू अदब का इतिहास लिखा जाना संभव ही नहीं है। सही मायने में तो इन लोगों के योगदान ने ही उर्दू को पूरे विश्व में समृद्ध बनाया। इनके अलावा शहीद व क्रन्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल,अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान,सुभाष चंद्र बोस,महात्मा गाँधी,पंडित जवाहरलाल नेहरू,रघुपति सहाय फ़िराक़,आनंद नारायण 'मुल्ला',ब्रज नारायण 'चकबस्त' जैसे अनेक सम्मानित नाम हैं जिन्होंने उर्दू से व उसकी मिठास से प्यार किया। इनमें न तो कोई कठमुल्ला बना न मौलवी न ही इन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण की ख़ातिर इस भाषा से प्यार किया। दरअसल उर्दू को प्यार करने व इसे प्रोत्साहित करने वाले वे लोग थे जिनके मस्तिष्क में नफ़रत वैमनस्य या कुंठा नहीं भरी थी। वह साहित्य के क़द्रदान लोग थे। वह उर्दू को हिंदी की छोटी बहन मानते थे। वह उर्दू को भारतीय भाषा मानते थे मुसलमानों की भाषा नहीं। वह लोग पूर्वाग्रही नहीं थे। समाज में प्यार व सद्भाव बांटते थे इसीलिये उन्होंने अपने संवाद व अपनी रचनाओं का माध्यम उर्दू रखा। 
मगर अफ़सोस की बात है कि देश इस समय ऐसे लोगों के हाथों में है जिन्हें अन्य धर्मों व जातियों से नफ़रत है, जिन्हें लोगों के निजी खान पान व पहनावे से नफ़रत है। जिन्हें क्षेत्र व भाषाओँ से विद्वेष है। आपसी  प्यार मोहब्बत इन्हें अच्छा नहीं लगता। यही वजह है कि कहीं उर्दू बाज़ार का नाम बदल कर हिंदी बाज़ार कर दिया गया। उर्दू के प्रतीत होने वाले अनेक ज़िलों,शहरों,क़स्बों व रेल स्टेशंस के नाम बदल दिए गये हैं। जैसे फ़ैज़ाबाद,मुग़लसराय,इलाहबाद जैसे अनेक प्रसिद्ध नाम इसी नफ़रती सियासत के कारण इतिहास बन चुके हैं। ऐसे ही संकीर्ण मानसिकता के लोगों की नज़रों में उर्दू पढ़ने वाला सिर्फ़ 'मौलवी' बनता है वह भी 'कठमुल्ला '? कहना ग़लत नहीं होगा कि ऐसी ही संकीर्ण मानसिकता के लोग हमारे देश की सांझी तहज़ीब के दुश्मन हैं। इन्हें मुसलमानों से नफ़रत,मस्जिदों से नफ़रत,मदरसे इन्हें नहीं भाते,उर्दू शब्दों वाले नामों से इन्हें नफ़रत। क़ब्रिस्तान और शमशान में भेद करना इन संकीर्ण मानसिकता वादियों का व्यसन। धर्मों,जातियों व भाषाओं का विरोध करने वाले यह लोग इतने शातिर हैं कि यदि कोई इन संकीर्ण अतिवादियों का विरोध करे तो यह उसे विधर्मी,देशद्रोही,राष्ट्र विरोधी कुछ भी कह डालते हैं। क्योंकि दुर्भाग्यवश देश की सत्ता आज विषवमन करने वाले ऐसे लोगों  के हाथों में है जो 'उर्दू की मिठास' व उसके एहसास व प्रभाव को समझ पाने की क्षमता क़तई नहीं रखते। संपर्क : 9896219228

शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा में संभावनायें

अवधेश कुमार

केवल भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व की दृष्टि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बातचीत तथा प्रतिफलों पर लगी होगी। प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस में एआई शिखर बैठक की सह-अध्यक्षता करने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप के आमंत्रण पर अमेरिका जा रहे हैं। अपने इस दूसरे कार्यकाल में ट्रंप अवैध अप्रवासन, व्यापार घाटा, आतंकवाद,  वैश्विक संघर्ष, पश्चिम एशिया ,यूएसएड आदि को लेकर जिस आक्रामकता और तीव्र गति से कदम उठा रहे हैं उसमें यात्रा की गंभीरता काफी बढ़ गई है। प्रधानमंत्री की यात्रा के पूर्व अमेरिका के सैन्य विमान से हथकड़ी लगाकर वापस किए गए अवैध अप्रवासियों का मुद्दा भारत में कितना गर्म हुआ यह बताने की आवश्यकता नहीं है। उम्मीद है और जैसा विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में बयान दिया प्रधानमंत्री की यात्रा में यह विषय उठाया जाएगा।  अवैध प्रवासियों वाले देशों पर उन्होंने पहले दिन से निशाना साधा और अपनी घोषणा के अनुरूप उनको पकड़ कर कैदियों की तरह विमान से देश में भेजना शुरू किया। व्यापार घाटा भी इसी से जुड़ गया।  ट्रंप ने चीन से आने वाली सामग्रियों पर 10 प्रतिशत तथा मेक्सिको और कनाडा पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगा दिया। हालांकि भारत को उन्होंने टैरिफ किंग यानी विदेशी सामानों पर सबसे ज्यादा शुल्क लगाने वाले देश की संज्ञा दी है लेकिन ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। हां,  अप्रवासियों के मुद्दे पर अवश्य उन्होंने आक्रामकता दिखाई है।

तो प्रधानमंत्री के दौरे एवं ट्रंप कल में भारत अमेरिकी संबंधों पर विचार करते समय इस पहलू का ध्यान रखना होगा। उन्होंने ब्राजील के नागरिकों को भी इसी तरह वापस भेजा जिस पर ब्राजील ने विरोध जताया। भारत की ओर से ऐसा नहीं किया गया। यहां तक कि संसद में विदेश मंत्री ने कांग्रेस की आलोचनाओं का जवाब देते हुए आंकड़े प्रस्तुत किए जिनसे पता चलता है कि हर कार्यकाल में अमेरिका से अप्रवासियों को वापस भेजा गया है। किंतु इस तरह हथकड़ी लगाकर सैन्य विमान से भेजने का पहला मामला है। विरोध करने के बाद उन्होंने कहा कि अमेरिका के समक्ष मामला उठाया गया है। यह संभव नहीं कि प्रधानमंत्री इस विषय पर‌ बातचीत न करें। किंतु भारत क्या कर सकता है? क्या हम विश्व में इस प्रकार से किसी देश में अवैध घुसपैठ को प्रोत्साहित कर सकते हैं? हमारा कोई नागरिक अगर वीजा लेकर उचित रास्ते से अमेरिका या किसी देश में जाए और वहां उसके साथ आम मानवीय या किसी तरह के अंतर्राष्ट्रीय मानक के विपरीत व्यवहार हो तो भारत अवश्य सीना ठोक कर खड़ा होगा। इस तरह पढ़े-लिखे लोग भी झूठे एजेंटों के चक्कर में पड़कर चोरी छिपे रास्ते अवैध तरीके से किसी देश में घुसेंगे तो उनके साथ आम मनुष्य की तरह व्यवहार नहीं हो सकता।  विश्व का एक सम्मानित देश होने के नाते भारत अमेरिका से बात कर सकता है कि जो भी अवैध रूप से आए हैं उन्हें हम वापस लेंगे जिसका तरीका ज्यादा मानवीय और न्यायोचित हो। ध्यान रखिए, कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो कम्युनिस्ट हैं। वे अमेरिका के खिलाफ स्टैंड लेते हैं। इस मामले में वे यहां तक कह बैठे कि यह उसकी प्रभुसत्ता पर अमेरिका का अतिक्रमण है इसलिए  अमेरिकी सैनिक विमान को धरती पर नहीं उतरते देंगे। जैसे ही ट्रंप ने सीमा शुल्क बढ़ाने की धमकी दी वो चुप हो गए तथा अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए अमेरिका विमान भेजा। वास्तव में अवैध घुसपैठ या अप्रवास हर देश में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपराध है। कोई देश अपने ऐसे नागरिकों के साथ खड़ा नहीं हो सकता न इसका समर्थन कर सकता है। हालांकि जैसे अवैध रूप से किसी देश में घुसना अस्वीकार्य है वैसे ही इस तरह का व्यवहार भी। ऐसा लगता है कि ट्रंप इस तरह के अतिवादी कदमों से उन लोगों को भयभीत करना चाहते हैं जो अवैध तरीके से उनके देश में आने या घुसने की सोच रहे होंगे या कोशिश कर रहे होंगे। जिन देशों से ज्यादा अवैध लोग आ रहे हैं वहां के नेतृत्व पर भी दबाव डालने की रणनीति दिखाई देती है। अमेरिका में एक करोड़ के आसपास अप्रवासी अवैध रूप से हैं। इनको वापस करना आसान नहीं है। सैनिक जहाज या अपने नागरिक विमान से भी वापस करेंगे तो कितना समय लगेगा? एक दिन में आप 2000, 3000 ,4000 लोगों को वापस कर सकते हैं। तो इसमें कई वर्ष लग जाएंगे। सैन्य विमान में वैसे भी जबरदस्त खर्च आता है और स्वयं अमेरिका की वित्तीय स्थिति लंबे समय तक इसे जारी रखने की अनुमति नहीं देता।तो ऐसा सतत होगा यह नहीं माना जा सकता।  इसका रास्ता निकालना पड़ेगा।

अमेरिका के साथ व्यापार में सर्वाधिक लाभ को देखते हुए भारत नहीं चाहेगा कि किसी प्रकार का व्यापारिक तनाव हो और अत्यधिक सीमा शुल्क की व्यवस्था में से हमें क्षति पहुंचे। भारत ने अमेरिका के साथ संबंधों की गंभीरता को देखते हुए संयम का परिचय दिया और यह उचित ही है। यह मानने में समस्या नहीं है कि भारतीय राजनयिक ट्रंप की रणनीति को समझ चुके हैं। मेक्सिको , चीन,  ब्राजील , कोलंबिया सबके विरुद्ध उन्होंने घोषणाएं की और अब उन पर भी शांत भी हैं, कुछ कदम वापस भी लिया है। ट्रंप भारत पर अन्य देशों की तरह आयात शुल्क ठोकने से बचेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि भारत को रक्षा और संवेदनशील तकनीक  सहित गैस आदि की आवश्यकता है। वह अमेरिका से खरीद कर क्षतिपूर्ति कर सकता है। भारत की नीति अपना वैश्विक व्यापार बढ़ाने, अधिकाधिक निवेश भारत लाने, सूचना अनुसंधान या यों कहे कि एआई के क्षेत्र में चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए उसका हित में उपयोग के लिए ढांचा खड़ी करने तथा बढ़ती अंतरराष्ट्रीय जटिलताओं के मध्य प्रमुख देशों से रणनीतिक और सामरिक साझेदारी को सशक्त करने  की है। ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में विदेश मंत्री एस जयशंकर को आगे बिठाकर तथा तुरंत बाद क्वॉड विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित कर संदेश दिया कि पहले कार्यकाल की तरह वे क्वॉड और भारत के वैश्विक महत्व को पूर्ण साझेदारी के साथ आगे बढ़ाने की नीति पर चल रहे हैं। 2017 में ट्रंप ने ही क्वॉड की स्थापना की जिसे बिडेन ने आगे बढ़ाया।

ट्रंप एवं उनके सलाहकारों के पास इतनी समझदारी है कि बगैर पूरी योजना, अन्य देशों की सहमति और साझेदारी के एक सीमा से ज्यादा चीन आदि से टकराव लाभकारी नहीं होगा। हिंद प्रशांत से लेकर अरब सागर , लाल सागर सबमें  सप्लाई चैन या आपूर्ति श्रृंखला पर चीन के बढ़ते आधिपत्य को रोकने के लिए कदम उठाना ही होगा। बगैर भारत के साथ सहयोग के यह संभव नहीं है। ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह समझौता भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है लेकिन अमेरिका ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों को लेकर भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्क रुबियो के एजेंडा में चाबहार बंदरगाह व ईरान भारत संबंध भी है। हमारी पूरी कोशिश यही है कि ईरान से संबंधों के आधार पर कम प्रशासन भारत पर किसी तरह का प्रतिबंध न लगाए। भारत अवैध अप्रवासियों को वापस लेने को तैयार है तो अमेरिका को इसका रास्ता निकालने में समस्या नहीं होनी चाहिए। जहां तक सीमा शुल्क का प्रश्न है तो भारत ने केंद्रीय बजट में अनेक उत्पादों पर आयात शुल्क और ड्यूटी घटाने का प्रावधान किया है। इससे अनेक अमेरिकी उत्पादों और कंपनियों को राहत मिली है। इससे वातावरण अनुकूल होने का आधार बना है। सिख अलगाववादियों और अतिवादियों के साथ अमेरिकी भूमि पर भारत विरोधियों की गतिविधियां हमारे लिए चिंताजनक है। भारत की अपेक्षा है कि ट्रंप प्रशासन उन पर हमारी भावनाओं का सम्मान करे। जो बिडेन प्रशासन की तरह ऐसे तत्वों को भारत विरोधी गतिविधियों की खुली छूट तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर  किसी तरह की बंदिश न लगाने का रवैया उचित नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।ट्रंप ने पहले कार्यकाल में भारत को महत्व दिया तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अमेरिकी हितों का ध्यान रखते हुए भी व्यक्तिगत संबंध आत्मीय बना रहा। इसलिए तनाव उभरने या संबंध बिगड़ने की संभावना नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते संघर्ष तथा पहले से  उलझे मुद्दों के और उलझने के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उथल-पुथल की स्थिति है। यह भारत और अमेरिका दोनों के लिए चिंताजनक है। भारत जैसे देशों के महत्व को ट्रंप समझते हैं और भारत भी अमेरिका की आवश्यकता को। उम्मीद करनी चाहिए कि दो दूरदर्शी नेताओं और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लंबे लक्ष्य पर काम करने वाले देशों के बीच वार्ता में भविष्य के लिए लंबे सहयोग, साझेदारी तथा परस्पर सौहार्द्र बनाए रखने का प्रतिफल सामने आएगा। 

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर काम्पलेक्स, दिल्ली 110092, मोबाइल 9811027208

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

दिल्ली यातायात पुलिस ने सड़क सुरक्षा और कुशल यातायात प्रबंधन पर सेमिनार आयोजित किया

संवाददाता

नई दिल्ली। 21.02.2025 को दिल्ली यातायात पुलिस द्वारा आदर्श सभागार, पुलिस मुख्यालय जय सिंह रोड, नई दिल्ली में सड़क सुरक्षा और कुशल यातायात प्रबंधन पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार में दिल्ली के पुलिस आयुक्त मुख्य अतिथि थे। इस सेमिनार का उद्देश्य दिल्ली में सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन में सुधार के लिए अभिनव समाधानों पर चर्चा करने के लिए वरिष्ठ दिल्ली यातायात पुलिस अधिकारियों, विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और हितधारकों को एक साथ लाना था।

सेमिनार में दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने मुख्य भाषण दिया, जिसमें उन्होंने सड़क पर यातायात पुलिस की मौजूदगी के कारण यातायात पुलिस के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने सभी को सभी मौतों के कारणों का विस्तार से विश्लेषण करने और सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने यातायात मुद्दों के लिए समाधान-उन्मुख दृष्टिकोण को लागू करने पर भी जोर दिया। विशेष सीपी/टी/जोन-I, श्री के. जगदेसन, आईपीएस और अतिरिक्त सीपी/यातायात/जोन-I, सुश्री मोनिका भारद्वाज, आईपीएस ने भी दुर्घटनाओं और भीड़भाड़ को कम करने में सड़क सुरक्षा और कुशल यातायात प्रबंधन के महत्व पर प्रकाश डाला। विशेषज्ञों और चिकित्सकों ने सड़क सुरक्षा और कुशल यातायात प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर अपने अनुभव और अंतर्दृष्टि साझा की। सेमिनार में लगभग 400 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें यातायात पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी और आईआईटी दिल्ली, गैर सरकारी संगठनों, पीडब्ल्यूडी, एनएचएआई आदि के प्रतिनिधि शामिल थे।

सेमिनार के दौरान चर्चा किये गये कुछ प्रमुख विषय निम्नलिखित थे:-

हॉटस्पॉट, मृत्यु दर, भीड़भाड़ और सर्वोत्तम प्रथाओं जैसे मुद्दे।

सड़क सुरक्षा के लिए जन जागरूकता अभियान।

सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन में सुधार लाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका।

प्रवर्तन में एआई अनुप्रयोगों की प्रासंगिकता।

  1. सीआरआरआई के मुख्य वैज्ञानिक और प्रमुख डॉ. वेलमुरुगन ने विभिन्न यातायात मुद्दों पर एक प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने कहा, "सेमिनार ने विशेषज्ञों और हितधारकों को सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन पर अपने ज्ञान और अनुभव साझा करने के लिए एक मंच प्रदान किया। हमें उम्मीद है कि सेमिनार के दौरान की गई सिफारिशें और सुझाव दिल्ली में सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन को बेहतर बनाने में योगदान देंगे।" 
  2. आईआईटी दिल्ली के दोनों संकाय सदस्यों श्री गिरीश अग्रवाल और डॉ. राहुल गोयल ने प्रवर्तन में एआई अनुप्रयोगों की प्रासंगिकता पर एक प्रस्तुति दी। उन्होंने सावधानी बरतते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी को सभी सड़क समस्याओं के समाधान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए और कुशल यातायात प्रबंधन में मानवीय हस्तक्षेप हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। एआई और प्रौद्योगिकी केवल इन मुद्दों को हल करने में सहायता कर सकते हैं, लेकिन इन्हें एकमात्र समाधान नहीं माना जाना चाहिए।
  3. ह्यूमनक्वाइंड की सीईओ सुश्री रुचि वर्मा ने स्कूली बच्चों के लिए सुरक्षित क्षेत्र बनाने पर जोर दिया और 'सुरक्षित स्कूल क्षेत्र' बनाने के लिए विभिन्न जिलों में किए जा रहे पायलट प्रोजेक्ट के बारे में चर्चा की।

कार्यक्रम में यातायात पुलिस कर्मियों के साथ प्रश्न-उत्तर सत्र भी हुआ, जिसका एनएचएआई और पीडब्ल्यूडी सहित विभिन्न एजेंसियों के विशेषज्ञ पैनल ने प्रभावी ढंग से समाधान किया।

सेमिनार के परिणामस्वरूप दिल्ली यातायात और सड़कों से संबंधित मुद्दों की बेहतर समझ विकसित हुई; और दिल्ली यातायात पुलिस द्वारा राजधानी दिल्ली में सड़क सुरक्षा के साथ-साथ कुशल यातायात प्रवाह सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत संकल्प लिया गया।

कार्यक्रम का समापन मुख्य अतिथि, दिल्ली के पुलिस आयुक्त और विभिन्न एजेंसियों के सभी प्रतिष्ठित विशेषज्ञों को धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

22, 23 व 26 फरवरी को अवकाश के दिनों में खुला रहेगा हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड कार्यालय

संवाददाता

भिवानी हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की सैकेण्डरी/सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक व मुक्त विद्यालय) की वार्षिक परीक्षाएं 27 फरवरी, 2025 से आरम्भ हो रही हैं। सभी पात्र परीक्षार्थियों के अनुक्रमांक 18 फरवरी, 2025 से बोर्ड की वेबसाइट www.bseh.org.in पर जारी कर दिए गए हैं।

इस आशय की जानकारी देते हुए बोर्ड सचिव अजय चोपड़ा, ह.प्र.से. ने बताया कि जिन परीक्षार्थियों के प्रवेश-पत्र के विवरणों में शुद्धि करवाई जानी है तथा जिन विद्यालयों/परीक्षार्थियों के अनुक्रमांक किसी कारणवश रोके गये हैं, ऐसे परीक्षार्थी/विद्यालय मुखिया 22, 23 व 26 फरवरी, 2025 को अवकाश के दिनों में भी बोर्ड कार्यालय में सम्बन्धित शाखाओं में मूल रिकार्ड व सत्यापित प्रति सहित उपस्थित होकर निर्धारित शुल्क जमा करवाते हुए विवरणों में शुद्धि करवा सकते हैं।  

इसके अतिरिक्त सूचित किया जाता है कि परीक्षाएं आरम्भ होने उपरान्त फोटो व हस्ताक्षर सम्बन्धी शुद्धियां नहीं की जाएंगी। इन दिनों में बोर्ड कार्यालय की सैकेण्डरी/सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक व मुक्त विद्यालय) शाखाएं प्रात: 10:00 बजे से सांय 04:00 बजे तक खुली रहेंगी। ऐसे परीक्षार्थी एवं विद्यालय सम्बन्धित दस्तावेज लेकर बोर्ड कार्यालय में व्यक्तिगत तौर पर आ सकते हैं।

बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

03 मार्च से आरम्भ होंगी डी.एल.एड.(रि-अपीयर/मर्सी चांस) परीक्षा

संवाददाता

भिवानी। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित करवाई जाने वाली डी.एल.एड. रि-अपीयर/मर्सी चांस परीक्षा मार्च-2025 के प्रवेश-पत्र आज से लाईव कर दिए गए हैं। सभी संस्थान/कॉलेज के प्राचार्य/मुखिया संस्था की लॉग-इन आई0डी0 से तिथि-पत्र अनुसार पात्र छात्र-अध्यापकों के प्रवेश-पत्र डाउनलोड करना सुनिश्चित करें। डी.एल.एड. प्रवेश वर्ष 2020-2022, 2021-2023 के छात्र-अध्यापकों की मर्सी चांस एवं  प्रवेश-वर्ष 2022-2024 प्रथम व द्वितीय वर्ष (रि-अपीयर) व प्रवेश-वर्ष 2023-2025 प्रथम वर्ष (रि-अपीयर) पात्र छात्र-अध्यापकों की परीक्षाएं 03 मार्च, 2025 से आरम्भ हो रही हैं। इस परीक्षा में करीब 5070 छात्र-अध्यापक प्रविष्ट होंगे।

इस आशय की विस्तृत जानकारी देते हुए बोर्ड सचिव अजय चोपड़ा, ह.प्र.से. ने बताया कि सभी छात्र-अध्यापकों के प्रवेश पत्र (एडमिट कार्ड) बोर्ड की अधिकारिक वेबसाइट www.bseh.org.in पर दिए गए लिंक से सम्बन्धित संस्था अपना यूजर आई0डी0 पासवर्ड प्रयोग कर डाउनलोड कर सकते हैं। सम्बन्धित छात्र-अध्यापक अपने प्रवेश-पत्र बारे संस्था से सम्पर्क करें।

उन्होंने बताया कि छात्र-अध्यापक प्रवेश पत्र (एडमिट कार्ड) पर दर्शाए गए महत्वपूर्ण निर्देशों को ध्यान से पढक़र/समझकर उनकी पालना करना सुनिश्चित करें। सभी छात्र-अध्यापक को अपने आधार कार्ड/फोटो आई.डी. में अपने विवरणों को अपडेट करना आवश्यक होगा। बिना अपडेशन परीक्षार्थी को परीक्षा केन्द्र में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।

उन्होंने आगे बताया कि डी.एल.एड. शिक्षण संस्थान/कॉलेज के प्राचार्य/मुखिया इस बात के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी होंगे कि ऐसे सभी छात्र-अध्यापक जो निर्धारित नियम/विनियम अनुसार परीक्षा हेतु योग्य/पात्र नहीं हैं, उनके अनुक्रमांक जारी न किए जाएं तथा उनके अनुक्रमांक रिपोर्ट सहित बोर्ड कार्यालय को परीक्षा आरम्भ होने से पूर्व बोर्ड कार्यालय को वापिस भेजे जाने हैं।

उन्होंने बताया कि डी.एल.एड. (रि-अपीयर/मर्सी चांस) परीक्षा फरवरी/मार्च-2025 से सम्बन्धित बाह्य प्रायोगिक परीक्षाएं सम्बन्धित जिले की डाइट एवं आन्तरिक प्रायोगिक परीक्षा सम्बन्धित शिक्षण संस्थानों में संचालित करवाई जाएगी। उन्होंने बताया कि सभी शिक्षण संस्थाएं आंतरिक एवं बाह्य प्रायोगिक मूल्यांकन व SIP के अंक ऑनलाइन 27 मार्च से 04 अप्रैल, 2025 तक बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट www.bseh.org.in पर दिए गए लिंक से भर सकते हैं।

उन्होंने आगे बताया कि अंतिम तिथि उपरांत आंतरिक प्रायोगिक मूल्यांकन की अंक सूचियां 500/-रूपये प्रति छात्र-अध्यापक या अधिकतम 5000/-रूपये प्रति शिक्षण संस्थान जुर्माने के साथ ही स्वीकार की जाएंगी। किसी शिक्षण संस्थान को निर्धारित तिथि तक आन्तरिक एवं बाह्य प्रायोगिक मूल्यांकन व एसआईपी के अंक भरने में तकनीकी कारणों से कठिनाई आती है तो इसके निवारण हेतु ई-मेल dledexam2017@gmail.com व दूरभाष नम्बर 01664-254300 पर सम्पर्क कर सकते है।

उन्होंने बताया कि ऐसे परीक्षार्थी जो Visually Impaired, Dyslexic and Spastic, Deaf & Dumb, Permanently Disabled for writing with their own hands श्रेणियों के अन्तर्गत आते हैं तथा जिनकी अशक्तता 40 प्रतिशत या इससे अधिक मुख्य चिकित्सा अधिकारी (C.M.O.) द्वारा चिकित्सा प्रमाण-पत्र में प्रमाणित की गई है, व लिखने में असमर्थ है तथा लेखक की सुविधा लेना चाहते हैं, तो कॉलेज/शिक्षण संस्थान के प्राचार्य/प्रतिनिधि द्वारा दिव्यांग छात्र-अध्यापक के लिए लेखक के मूल एवं सत्यापित दस्तावेजों/प्रलेखों जैसे शैक्षणिक योग्यता, जन्म प्रमाण-पत्र, दो नवीनतम फोटो ( एक सत्यापित), फोटो आई०डी० जैसे-आधार कार्ड, पत्राचार व स्थाई पता सहित परीक्षा से 02 दिन पूर्व लेखक की स्वीकृति परीक्षा केन्द्र अधीक्षक से लेना अनिवार्य है। जिस व्यक्ति की लेखक के रूप में मांग की गई है, की आयु परीक्षा में प्रविष्ट होने वाले परीक्षार्थी से कम हो एवं शैक्षणिक योग्यता वरिष्ठ माध्यमिक से अधिक न हो।

कश्मीरी पंडितों को उनके घर वापसी के बगैर हिंदू राष्ट्र की बात करना बेमानी

बसंत कुमार

आज कल पूरे भारत में प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ की चर्चा जोरों पर है कहा जाता है कि अब तक 50 करोड़ से अधिक लोग संगम में स्नान कर चुके है और मौनी अमावस्या के स्नान के दिन भारी भीड़ के बीच अफरा-तफरी के बीच सैकड़ों लोगों की मौत और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में 18 लोगों की मौत के बावजूद महाकुंभ में जाने वालों की भीड़ में कमी नहीं आ रही है। आम आदमी से लेकर नेता, अभिनेता, उद्योगपति सभी संगम में आस्था की डुबकी लगाना चाहते हैं पर इसी बीच में कुछ स्वयंभू सनातन के पोषक रह रहकर भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मंशा की घोषणा कर देते हैं। उनकी यह मांग अयोध्या में भगवान राम के भव्य मन्दिर के निर्माण के बाद से ही शुरू हो गई थी, यहां तक की प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान संतों की धार्मिक संसद में भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया था।

महाकुंभ प्रारंभ होने पर विभिन्न अखाड़ों की जिद पर कुंभ परिसर में अन्य धर्म (विशेष रूप से मुसलमानों) के लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी और रेहड़ी-पटरी सहित सभी दुकानों पर दुकानदारों को अपनी नाम की प्लेट लगाना अनिवार्य कर दिया था जिससे तीर्थ यात्री किसी मुसलमान या किसी छोटी जाति (अछूत) से खाने-पीने का सामान न खरीद सकें। इसी प्रकार के आदेश कुंभ से पूर्व हरिद्वार में कांवड़ यात्रा के समय दिए गए थे और यह आदेश हिंदू राष्ट्र का समर्थन करनी वाली सरकारों ने दिया था। ये लोग ये कैसे भूल गए कि बाबा बर्फानी प्रसिद्ध अमरनाथ गुफा एक मुसलमान चरवाहे ने देखी थी और आज भी वहां के मुसलमान अमरनाथ यात्रियों की सेवा व सहायता करते हैं और उसी प्रकार मां वैष्णो देवी की यात्रा पर गए यात्रियों को पिट्ठू और समान ढोने का काम मुसलमान करते हैं पर इन नए पाखंडियों के कारण हिंदुओं और मुसलमानों का एक दूसरे के त्योहारों में शामिल होना बंद हो गया है। मैंने अपने दो दशक के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में अनेक राजनेताओं और सामाजिक संगठन से जुड़े लोगों के यहां होली दिवाली और ईद मनाई है और सबसे अच्छी होली पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और सबसे अच्छी ईद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार जी के यहां मनाई जाती है। पर विगत कुछ वर्षो में ऐसी रुढिवादिता क्यों?

दो दिन पूर्व मुझे इंद्रेश कुमार जी के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर मिला, उस कार्यक्रम में हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध धर्म मानने वाले तिब्बती भी मिले और सब ने बड़े उत्साह से इंद्रेश कुमार जी का जन्मदिन मनाया, वहां मुझे यह अनुभव हुआ कि यहां आने वाले न हिंदू हैं, न मुसलमान हैं, न सिक्ख हैं, न सवर्ण हैं और न दलित हैं बल्कि ये वे लोग हैं जो भारत से बेइंतहा मुहब्बत करते हैं। इनका धर्म और ईमान हिंदुस्तान से मुहब्बत है फिर वो कौन लोग हैं जो हिंदू राष्ट्र के नाम पर देश और समाज की बांट रहे हैं।

कुछ वर्ष पूर्व मैंने प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खां का एक इंटरव्यू देखा था जिसमें उन्होंने बनारस की संस्कृति और गंगा की भूरि-भूरि प्रसंशा की थी। उनके पूरे इंटरव्यू में कहीं हिंदू या मुसलमान होने की झलक नहीं दिखी बस दिखी तो हिंदुस्तनियत ही दिखी। जैसा हम सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की ओर से अजमेर शरीफ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मुख्तार अब्बास नकवी चादर चढ़ाने जाया करते थे और संघ के वरिष्ठ प्रचारक कई बार हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर दिया जलाने जाया करते है और वे राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संरक्षक भी हैं फिर ऐसा क्या है कि हिंदुओं के धार्मिक त्योहारों पर मुसलमानो का क्यों? भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति में सभी धर्मों व जातियों का समावेसित किया जाता रहा है पर आज हम हिंदू राष्ट्र की आड़ में हिंदू-मुसलमान करके लड़ रहे है।

हिंदू राष्ट्र का राग अलापने वाले सनातनी संस्कृति के झंडा बरदारों को हिंदुओं के धार्मिक त्योहारों विशेषकर महाकुंभ और कांवड़ के दौरान मुसलमानों का प्रवेश रोकने के बजाय तिरस्कृत हिंदुओं को सनातन की मुख्यधारा में लाने का प्रयास करना चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी को भी उसकी जाति के आधार पर मन्दिर में जाने से न रोका जाए और दलित दूल्हे को अपनी बारात में घोड़ी पर चढ़ने से न रोका जाए। इसके साथ ही हर सनातनी का कर्तव्य बनता है कि वर्ष 1990 में आतंकवादियों की धमकी से डर कर हजारों कश्मीरी पंडितों को घर छोड़कर भागना पड़ा था और आज भी विस्थापितों की तरह जिंदगी जी रहे हैं। वर्ष 2019 में संविधान में विवादित अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया और कश्मीर शेष भारत से जुड़ गया है पर आज भी इन कश्मीरी पंडितों को उनके घरों में नहीं बसाया जा सका और हिंदू राष्ट्र का राग अलापने वाले लोग इन कश्मीरी पंडितों को अपने घर वापस लाने के बजाय अन्य नकारात्मक कामों में लगे है।

जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ राजनेता व पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने यह बात स्वीकार की कि "भारत में मुसलमान नहीं थे, हिंदुओं के धर्म बदलकर मुसलमान बनाए गए। 600 साल पहले कश्मीर में मुसलमान नहीं थे यहां भी पंडितों का धर्म बदला गया" जब गुलाम नबी आजाद के स्तर का बड़ा नेता जो स्वयं मुसलमान है और यह स्वीकार करते हैं कि कश्मीर में मूल रूप से कश्मीरी पंडित और अन्य हिंदू रहते थे तो फिर यहां से पलायन करने के लिए मजबूर कश्मीरी पंडितों को वापस क्यों नहीं बसाया जा रहा जबकि पिछले एक दशक से केंद्र में राष्ट्रवादी विचारधारा वाली सरकार सत्ता में है। पर आज भी पाकिस्तानी कश्मीर के लोगों को आजाद कश्मीर का सपना नहीं दिखाते और इसी भय से कश्मीरी पंडित घर वापसी का साहस नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिए केंद्र सरकार या राज्य सरकार को दोष दिया जाए पर असली नुकसान तो कश्मीरी पंडितों का है जो 35 वर्षों से निर्वासित जीवन जी रहे हैं।

यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के दृढ़ संकल्प से आजादी के सात दशक बाद संविधान के विवादित अनुच्छेद 370 और 35 समाप्त कर दिया गया है फिर भी कश्मीरी पंडितों की घर वापसी नहीं हो पा रही है फिर हम कैसे हिंदू राष्ट्र का सपना देख सकते हैं। इसलिए कुछ कट्टर हिंदुओं का ऐसे हालत में हिंदू राष्ट्र का राग अलापना बेमानी होगी।

(लेखक एक पहल एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव और भारत सरकार के पूर्व उपसचिव है।)

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