शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड से आज एक अधिकारी हुआ सेवानिवृत्त

संवाददाता

भिवानी।  हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड से श्री भुपेन्द्र सिंह, सहायक सचिव आज सेवानिवृत्त हुए। इन्हें एक गरिमापूर्ण समारोह में विदाई दी गई। इस अवसर पर सेवानिवृत हुए अधिकारी एवं शिक्षा बोर्ड के अधिकारी मौजूद रहे।

हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के प्रवक्ता ने बताया कि श्री भुपेन्द्र सिंह, सहायक सचिव 35 वर्ष 08 महीने 17 दिन तक बोर्ड में अपनी सेवाएं देने उपरान्त सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंनेे सेवानिवृत्त हुए अधिकारी के कार्यों की सराहना की तथा उनके सुखद एवं उज्ज्वल भविष्य की कामना की।  

उन्होंने आगे कहा कि बोर्ड के अधिकारियों व कर्मचारियों के प्रयासों के फलस्वरूप शिक्षा बोर्ड प्रगति के पथ पर अग्रसर है। उन्होंने सभी से अपील की कि बोर्ड कर्मी अपनी सक्रिय सहभागिता को बढ़ाते हुए पूर्ण कर्तव्‍यनि‍ष्ठ व लगन से कार्य करें। उन्होंने अधिकारी को भेंट स्वरूप स्मृति चिह्न व उपहार देकर शिक्षा बोर्ड से सेवानिवृत किया।

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

भारतीय चुनावों में विदेशी भूमिका का सच

अवधेश कुमार 

भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के नाम पर यूएसएड या यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के माध्यम से 21 मिलियन डॉलर यानी 182 करोड रुपए आने की सूचना ने पूरे देश में खलबली पैदा की है। ट्रंप प्रशासन के अंदर नवनिर्मित डिपार्मेंट आफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी डोजे यानी सरकारी दक्षता विभाग ने उसकी जानकारी देते हुए सूची जारी की। आरंभ में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे रोकने की घोषणा की और कहा कि भारत के पास स्वयं काफी रुपया है तो हम क्यों दे। उस समय ऐसा लगा मानो भारत द्वारा अमेरिकी सामग्रियों पर लगने वाले आयत शुल्क के विरुद्ध कदम उठा रहे हैं। फिर उन्होंने मियामी और उसके बाद वाशिंगटन डीसी के आयोजनों में कहा कि हमें भारत में मतदान बढ़ाने पर 21 मिलियन खर्च करने की आवश्यकता क्यों है? मुझे लगता है कि वे किसी और को जिताने की कोशिश कर रहे थे। हमें भारत सरकार को बताना होगा। क्योंकि जब हम सुनते हैं कि रूस ने हमारे देश में 2 डॉलर का खर्च किया है तो यह हमारे लिए बड़ा मुद्दा बन जाता है। भारत सरकार की ओर से सूचना है कि जानकारियों के आधार पर जांच आरंभ हो गई है। हमारे देश की समस्या है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र व भाजपा की राज्य सरकारों के रहते जब भी ऐसी खबर आती है सोशल मीडिया और मीडिया पर प्रभाव रखने वाला बड़ा वर्ग इसे गलत साबित करने पर तुल जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसा कह रहे हैं तो उसे खारिज नहीं किया जा सकता।

हमारे पास भारतीय चुनाव में हस्तक्षेप को साबित करने के लिए सटीक प्रमाण नहीं हैं। कुछ तथ्यों के आधार पर इसकी विवेचना की जा सकती है। डोजे द्वारा यूएस एड की जारी सूची में 15 तरह के कार्यक्रम के लिए धन देने की बात है। इनमें एक दुनियाभर में 'चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया सुदृढ़ीकरण' के लिए 48.6 करोड़ डॉलर यानी 4200 करोड़ का अनुदान था। इसी में भारत की हिस्सेदारी 182 करोड़ रुपए की है। बांग्लादेश को मिलने वाली 251 करोड़ रुपए बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल को मजबूत करने के लिए दिया जा रहा था। विश्व में चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया के सुदृढ़िकरण की आवश्यकता अमेरिकी प्रशासन को क्यों महसूस हुई? बांग्लादेश में राजनीतिक सुधारों के लिए अमेरिकी सहायता राशि की जरूरत क्यों थी?  मोजांबिक में पुरुष खतना कराएं, कंबोडिया में स्वतंत्र आवाज मजबूत हो तो प्राग में नागरिक समाज अंदर सशक्त हो इनका केवल समाज सेवा या उस देश का हित उद्देश्य नहीं हो सकता। इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य हैं। सच है कि सन् 2012 में भारत के चुनाव आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स के साथ एमओयू यानी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया था। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने इन आरोपों और समाचारों को निराधार बताया है कि आईएफएससी से धन आयोग को स्थानांतरित हुआ था।  कहीं नहीं कहा गया है कि इसने सीधे चुनाव आयोग को पैसा दिया। इस एजेंसी को यूएसएड से धन मिलता था और यह जार्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के साथ संबद्ध है। ऐसी संस्थाएं किसी माध्यम से अपनी भूमिका को वैधानिकता का आवरण देने की दृष्टि से समझौते करती हैं और फिर अपने अनुसार कार्य करती है। 

ध्यान रखिए 2012 में महत्वपूर्ण गुजरात विधानसभा चुनाव था तथा उसके पहले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर का। 2013 में पहले कर्नाटक उसके बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का। भारतीय चुनावों और राजनीति में विदेशी भूमिका की बात पहली बार नहीं आई है। नरेंद्र मोदी सरकार गठित होने के बाद से इसका चरित्र और व्यवहार बदला है किंतु हमारे देश में यह बीमारी लंबे समय से है। जब देश के नेता नौकरशाही, बुद्धिजीवी, पत्रकार, एक्टिविस्ट आदि छोटे-छोटे लाभ के लिए खिलौना बनने को तैयार हो जाएं तो कुछ भी हो सकता है। शीतयुद्ध काल में सोवियत संघ और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धायें थीं। दोनों अपने प्रभाव के लिए हस्तक्षेप करते थे। भारत में 1967, 77, 80 के चुनाव में विदेशी भूमिका की सबसे ज्यादा चर्चा हुई। सोवियत संघ के विघटन के बाद मित्रोखिन पेपर नाम से ऐसी जानकारियां आईं जिनसे पढ़ने वाले भौचक रह गए थे। वासिली मित्रोखिन, जो सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी से संबद्ध थे, और क्रिस्टोफ़र एन्ड्र्यूज ने अपनी पुस्तकों में खुलासा किया कि केजीबी ने भारत के अनेक समाचार पत्रों एक्टिविस्टों ,पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, नेताओं पर उस समय अरबों खर्च किए। भारत में अमेरिका के राजदूत रह चुके डेनियल मोयनिहान ने पुस्तक ए डैंजरस प्लेस में लिखा है कि भारत में कम्युनिस्टों के विस्तार को रोकने के लिए अमेरिका ने भारतीय नेताओं को धन दिए।

सन् 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से अनेक ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिनसे संदेह बढ़ा। 2019 में दोबारा उनके सत्ता में लौटने के बाद अलग तरह के स्वरुपों में आंदोलन हुए । इनमें नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध शाहीनबाग धरना और उसके समर्थन में देश और दुनिया में सोशल मीडिया से लेकर अन्य अभियान तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का सरकार के विरुद्ध सीधे बयान देना शामिल है। कृषि कानून के विरुद्ध हुए आंदोलन में भी हमने देखा कि देश के बाहर से टूलकिट बनाकर अभियान चलाए जा रहे थे। इस तरह के आंदोलन भारत ने कभी देखे नहीं जिसमें प्रत्यक्ष हिंसा नहीं हो, पर उग्रता और हठधर्मिता ऐसी कि मुख्य सड़क पर धरना दो, आवश्यकतानुसार निर्माण भी कर लो और बैठे रहो, किसी सूरत में हटो नहीं। यूएसएड द्वारा 2021 में भारतीय मिशन के प्रमुख के रूप में वीणा रेड्डी को भेजा गया था। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद उनका भारत का कार्यकाल समाप्त हो गया और वह वापस लौट गईं हैं। उस समय भी उनकी भूमिका को लेकर प्रश्न उठे थे। 

विदेशी हस्तक्षेप की बातें भारत के अलावा दूसरे देशों और नेताओं द्वारा भी कहा जा रहा है। विश्व के अनेक देशों की चुनावी प्रक्रियाओं को प्रभावित करने में विदेशी शक्तियों और संस्थाओं की भूमिका सामने आती रही हैं। माइक्रोसाफ्ट ने डीपफेक और एआई के माध्यम से भारतीय चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशों पर चेतावनी दिया था। 2018 में अमेरिकी सीनेट ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि 2016 में डोनाल्ड ट्रंप को जितवाने के लिए रूसी खुफिया एजेंटों ने फेसबुक विज्ञापनों के साथ कई तरीके से चुनावों को प्रभावित किया था। कनाडा और आस्ट्रेलिया के चुनावों में चीनी फंडिंग से चलने वाले अभियानों की भूमिका सामने आई। आस्ट्रेलिया में राजनीतिक संप्रभुता पर विदेशी हस्तक्षेप के प्रभाव पर व्यापक चर्चा हो रही है और इसे ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव किए गए हैं। 

सेबेस्टियन व्हाइटमैन की किताब 'द डिजिटल डिवाइड इन डेमोक्रेसी' में कहा गया है कि माइक्रोसॉफ्ट ने भी अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि चीनी सरकार के समर्थन से चीन की साइबर आर्मी आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों, दक्षिण कोरिया और भारत के चुनावों को प्रभावित कर सकती है। हांगकांग यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिक्स एंड पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में सहायक प्रोफेसर डोव एच लेविन ने 2020 में अपनी किताब किताब 'मेडलिंग इन द बैलेट बॉक्स: द कॉजेज एंड इफेक्ट्स ऑफ पार्टिजन इलेक्टोरल इंटरवेंशन' में लिखा है कि 1946 से वर्ष 2000 के दौरान 938 चुनावों का परीक्षण किया गया। इनमें से 81 चुनावों में अमेरिका, जबकि 36 चुनावों में रूस ने हस्तक्षेप किया। इस तरह 938 में से 117 यानी हर 9 चुनाव में से 1 चुनाव में दोनो की भूमिका रही है। वैराइटीज ऑफ डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट, स्वीडन द्वारा 2019 में प्रकाशित जर्मन राजनीति विज्ञानी अन्ना लुहरमैन के अध्ययन के अनुसार हर देश ने कहा है कि मुख्य राजनीतिक मुद्दों को लेकर झूठ फैलाये गये और चीन और रूस सबसे ज्यादा झूठ फैलाने वाले देश थे।  संभव नहीं कि चीन और रूस ऐसा करें और अमेरिका इससे वंचित हो। 

भारत पर विस्तृत अध्ययन नहीं आया, किंतु 2019 के चुनाव में ज्यादातर देशों ने स्वीकार किया कि झूठ और अफवाह फैला कर चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की गई।  2024 के चुनाव में हमने देखा कि संविधान खत्म हो जाएगा, आरक्षण खत्म हो जाएगा जैसे झूठ ने भूमिका अदा की। इसमें सोशल मीडिया, मुख्य मीडिया,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पूरी भूमिका थी। दलितों और जनजातियों के बीच लोगों का समूह जाकर का प्रचार करता था। इसलिए इन बातों की ठीक प्रकार से जांच हो। जांच रिपोर्ट में अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे राष्ट्रीय हित प्रभावित होते हों तो भले उन्हें सार्वजनिक न किया जाए किंतु भविष्य में ऐसी खतरनाक भूमिकाओं को रोकने के कदम उठाए जाने चाहिए।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कम्पलेक्स, दिल्ली- 110092, मोबाइल 9811027208

आज चाकचौबंद व्यवस्था में संचालित हुई सीनियर सैकेण्डरी की अंग्रेजी विषय की परीक्षा

-  नकल के कुल 37 मामले दर्ज तथा 02 पर्यवेक्षक रिलीव

भिवानी। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित करवाई गई सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) अंग्रेजी विषय की परीक्षा में अभी तक प्राप्त रिपोर्ट अनुसार कुल 37 अनुचित साधन प्रयोग के मामले पकड़े गए है तथा ड्यूटी में कौताही बरतने पर 02 पर्यवेक्षकों को कार्यभार मुक्त कर दिया गया है। आज प्रदेशभर में 1054 परीक्षा केंद्रों पर अंगे्रजी विषय की परीक्षा संचालित हुई।
यह जानकारी देते हुए बोर्ड प्रवक्ता ने बताया कि आज संचालित हुई सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) अंग्रेजी विषय की परीक्षा में 37 अनुचित साधन प्रयोग के मामले दर्ज किए गए। उन्होंने आगे बताया कि बोर्ड अध्यक्ष के उडऩदस्ते द्वारा जिला -कैथल एवं बोर्ड सचिव के उडऩदस्ते द्वारा जिला-रोहतक व झज्जर के परीक्षा केंद्रों का निरीक्षण किया गया, जहां परीक्षाएं सुव्यवस्थित व नकल रहित संचालित हो रही थी। उन्होंनेे आगे बताया कि नकल पर अकुंश लगाने के प्रदेश में गठित अन्य उडऩदस्तों द्वारा अनुचित साधन के 37 मामला दर्ज किए गए।
उन्होंने बताया कि जिला-नूंह के परीक्षा केन्द्र रा०व०मा०वि०, टपकान-01 से अंग्रेजी विषय की परीक्षा का प्रश्र पत्र आउट होने की सूचना बोर्ड कट्रोल रूम में प्राप्त होने पर तुरन्त कार्यवाही करते हुए बोर्ड के जिला प्रश्र पत्र उडऩदस्ता द्वारा मौके पर पंहुचकर एल्फा न्यूमेरिक कोड, क्यूआर कोड व हिडन फीचर की सहायता से पेपर वायरल करने वालो को धर-दबोचा। इसके अतिरिक्त सम्बन्धित परीक्षार्थियों मोनिश, नफीश व मुश्तकीन एवं पर्यवेक्षक श्री शौकत अली, श्री रकमूदीन, जे.बी.टी. अध्यापक राजकीय प्राथमिक पाठशाला, रिठोरा (नूंह) तथा केन्द्र अधीक्षक संजय कुमार, पीजीटी हिन्दी, रा०क०व०मा०वि०,खोड बशई के खिलाफ  पुलिस प्रशासनिक कार्यवाही अमल में लाई जा रही है।
उन्होंने आगे बताया कि इसके अतिरिक्त परीक्षा केन्द्र रा०व०मा०वि०, पलवल-33 से भी आज का अंग्रेजी विषय का पेपर आऊट होने की सूचना बोर्ड कट्रोल रूप में प्राप्त हुई थी, जिस पर तुरन्त संज्ञान लेते हुए बोर्ड की जिला प्रश्र पत्र उडऩदस्ता पलवल टीम द्वारा मौके पर पंहुचकर पेपर वायरल करने वालो को धर पकड़ा तथा जांच उपरान्त इस केन्द्र पर संचालित हुई आज की परीक्षा को रद्द करने की सिफारिश की गई। सम्बन्धित केन्द्र अधीक्षक श्री देवेन्द्र सिंह द्वारा परीक्षार्थी सचिन तथा पर्यवेक्षक श्री गोपाल दत्त शर्मा, गणित अध्यापक रा०व०मा०वि०, रसूलपूर के विरूद्ध एफ.आई.आर. दर्ज करवाई गई।
उन्होंने बताया कि उप-मण्डल प्रश्र पत्र उडऩदस्ता पुन्हाना द्वारा परीक्षा केन्द्र रा०व०मा०वि०, जमालगढ़ पर नियुक्त पर्यवेक्षक अरशद हुसैन, टीजीटी अध्यापक एवं आर.ए.एफ-12 द्वारा परीक्षा केन्द्र रा०व०मा०वि०, पनहेड़ा खुर्द पर तैनात पर्यवेक्षक श्रीमती प्रवीन, साईस अध्यापिका को ड्यूटी में कौताही बरतने पर ड्यूटी से कार्यभार मुक्त किया गया। सभी सम्बन्धित के विरूद्ध शिक्षा निदेशालय को विभागीय कार्यवाही के लिए लिखा जा रहा है।
प्रदेशभर में परीक्षाओं की मॉनिटरिंग के लिए अलग-अलग जिलों में 02 कंट्रोल रूम स्थापित किए गए हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेशभर में 1355 परीक्षा केन्द्रों पर कल सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) गणित विषय की परीक्षा में 2,87,023 परीक्षार्थी प्रविष्ठ होंगे।

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

'तस्वीर की सियासत' बनाम 'सियासत की तस्वीर'?

निर्मल रानी

देश सरकारी कार्यालयों में  प्रायः राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी,देश के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के चित्र लगाये जाते हैं। जबकि राज्यों में इनके साथ मुख्यमंत्री व राजयपाल के चित्र भी लगाये जाते हैं। इस व्यवस्था को 'प्रोटोकॉल ' अथवा शिष्टाचार / नवाचार कहा जाता है। शीर्ष पदों पर बैठे लोग समय समय पर अपनी सुविधानुसार या किसी पूर्वाग्रह के चलते स्वेच्छा से इसमें बदलाव भी करते रहते हैं। उदाहरण के तौर पर आपको झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कार्यालय में मुख्यमंत्री की कुर्सी के ठीक पीछे मुख्य रूप से केवल उनके पिता शिबू सुरेन का ही चित्र लगा मिलेगा। ज़ाहिर है वे उन्हें ही अपना आदर्श नेता मानते हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कार्यालय में राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के चित्र से आकार में भी बड़ा तथा बिल्कुल मध्य में गुरु गोरखनाथ का चित्र लगाया गया है। अनेक मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों में उनकी अपनी पसंद के आधार पर चित्र लगाये गए हैं। 

दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी जनवरी 2022 में गणतंत्र दिवस से एक दिन पूर्व दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय सहित राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों में केवल बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह के चित्र लगाने के निर्देश जारी किये थे। उन्होंने अधिकारियों को यह भी निर्देशित किया था कि दिल्ली सरकार के सभी कार्यालयों में किसी अन्य नेता की तस्वीरें प्रदर्शित नहीं की जायें । तब से लेकर पिछले दिनों दिल्ली की सत्ता बदलने तक दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर राज्य के अधिकांश कार्यालयों में महात्मा गाँधी, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति की तस्वीर हटाकर बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह के चित्र लगा दिए गये थे। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी कुर्सी के ठीक पीछे बाबासाहेब और भगत सिंह के चित्र लगाये थे जो उनके बाद आतिशी के मुख्यमंत्री काल में भी लगे रहे। 

परन्तु जिस दिन दिल्ली में 27 साल का 'वनवास' ख़त्म कर भाजपा सत्ता में आई व भाजपा की नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कार्यभार संभाला उस दिन उन्होंने सबसे पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी के पीछे लगे अंबेडकर और भगत सिंह के चित्रों को हटाकर उनके स्थान पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी,प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति के चित्र लगा दिए। जबकि पूर्व में लगे चित्रों को दूसरी दीवार पर स्थान दिया गया। इसी बात पर आम आदमी पार्टी ने हंगामा खड़ा करते हुये इसे राजनैतिक मुद्दा बना लिया। पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने तस्वीर हटाने पर कहा कि “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली विधानसभा का नेतृत्व ऐसी पार्टी कर रही है, जो दलित और सिख विरोधी है। भाजपा ने अपना दलित विरोधी रुख़ दिखाते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय से बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर और शहीद भगत सिंह के चित्र हटा दिए हैं।” परन्तु तस्वीरों पर सियासत करने वाली 'आप' भी ऐसे सवालों से बच नहीं सकती। आम आदमी पार्टी नेताओं को भी यह बताना पड़ेगा कि उन्होंने अपने कार्यालय से राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की फ़ोटो क्यों हटाई थी ? यदि मान लिया जाये की नरेंद्र मोदी उनके घोर विरोधी नेता हैं परन्तु वे देश के प्रधानमंत्री भी हैं। मान लीजिये कि राजनैतिक पूर्वाग्रह के कारण उन्होंने  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चित्र नहीं लगाया परन्तु उन्होंने आख़िर राष्ट्रपति का चित्र क्यों नहीं लगाया गया ? 

जहाँ तक सवाल है तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा मात्र चित्र लगाकर बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह को सम्मान दिये जाने का, तो यदि अरविंद केजरीवाल के वक्तव्यों पर नज़र डालें तो केजरीवाल की बातें तो इन नेताओं के मूल विचारों के बिल्कुल विरुद्ध हैं। मिसाल के तौर पर अरविंद केजरीवाल ने 27 अक्टूबर 2022 को मुख्यमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र के माध्यम से यह मांग की थी कि भारतीय नोटों पर गांधी जी के साथ-साथ लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर भी छपे। उनका कहना था कि इससे देश की अर्थव्यवस्था को भगवान का आशीर्वाद मिलेगा। विघ्नहर्ता का आशीर्वाद होगा तो अर्थव्यवस्था सुधर जाएगी। इसलिए मेरी केंद्र सरकार से अपील है कि भारतीय करेंसी के ऊपर लक्ष्मी गणेश की तस्वीर छापें।' क्या केजरीवाल का यह सुझाव बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह जैसे महापुरुषों के विचार सम्मत है ? किसी का चित्र लगाने का अर्थ आख़िर क्या होता है ? केवल उस महापुरुष के समर्थकों या उनके समुदाय को ख़ुश करना या उनके आदर्शों को मानना व उनपर चलना ? बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह के जीवन की कौन सी शिक्षा है जिसने केजरीवाल को इस बात के लिये प्रेरित किया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को उपरोक्त सलाह दे डाली। वह भी स्वयं एक शिक्षित व राजस्व सेवाओं के अधिकारी होने के बावजूद। हद तो यह है कि प्रधानमंत्री को यह पत्र लिखते समय केजरीवाल ने यह भी लिहा था कि "यह देश के 130 करोड़ लोगों की इच्छा है कि भारतीय करेंसी पर एक ओर महात्मा गांधी व दूसरी ओर लक्ष्मी-गणेश जी की तस्वीर भी लगाई जाए।' केजरीवाल ने 130 करोड़ लोगों का प्रतिनिधि होने के नाते नहीं बल्कि सही मायने में देश के बहुसंख्य समाज को वरग़लाने के लिये ही 'तस्वीर की सियासत' यह शगूफ़ा छोड़ा था। 

इसी तरह विधान सभा चुनावों की घोषणा से पूर्व दिसंबर 2024 में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने एक और ऐसी ही चुनावी फुलझड़ी छोड़ते हुये यह घोषणा कर डाली कि आम आदमी पार्टी के चुनाव जीतने पर मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को 18 हज़ार रुपए प्रति माह की सम्मान राशि दी जाएगी। केजरीवाल ने इसे  'पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना' का नाम दिया। इस घोषणा की आलोचना करते हुये भाजपा ने उसी समय यह जवाब दिया था कि 'चुनावी हिंदू केजरीवाल' ने मंदिर और गुरुद्वारों के बाहर शराब के ठेके खोले हैं और उनकी पूरी राजनीति हिंदू विरोधी रही है। यहाँ भी यही सवाल है कि क्या  'पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना' की घोषणा बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह जैसे महापुरुषों की सोच के अनुरूप थी जिनके चित्र उन्होंने अपने कुर्सी के पीछे लगा रखे थे? 

भाजपा भी इसी तरह गांधी व बाबासाहेब अंबेडकर व भगत सिंह जैसे आदर्श पुरुषों के केवल चित्र लगाकर या उनपर ख़ास अवसरों पर माल्यार्पण कर उनके प्रति अपने आदर व सम्मान का दिखावा तो ज़रूर करती है परन्तु हक़ीक़त में वह भी दिखावा मात्र ही है। अन्यथा घोर हिंदुत्ववादी राजनीति  का गांधी व बाबासाहेब आंबेडकर व भगत सिंह जैसे महान देशभक्त मानवतावादी नेताओं से क्या लेना देना ? यह तो धर्म और राजनीति के ऐसे घालमेल को ही विध्वंसक मानते थे। कहना ग़लत नहीं होगा की इसी 'तस्वीर की सियासत' ने ही देश की 'सियासत की तस्वीर' को बदनुमा कर डाला है जिसकी भरपाई महात्मा गांधी व बाबासाहेब , व भगत सिंह जैसे आदर्श पुरुषों के केवल चित्र लगाकर या उन की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर नहीं बल्कि केवल सच्चे मन से उनके बताये हुये रास्तों व उनके आदर्शों पर चलकर ही की जा सकती है?

कल से आरम्भ होंगी बोर्ड की वार्षिक परीक्षाएं- बोर्ड अध्यक्ष

संवाददाता

भिवानी। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष श्री पंकज अग्रवाल, भा.प्र.से. ने  बताया कि सैकेण्डरी व सीनियर सैकेण्डरी(शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) परीक्षा फरवरी/मार्च-2025 के सफल संचालन के लिए शिक्षा बोर्ड ने सभी प्रकार की तैयारियां पूर्ण कर ली हैं।

उन्होंने बताया कि सैकेण्डरी व सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) की वार्षिक परीक्षाओं में प्रदेशभर में लगभग 1433 परीक्षा केन्द्रों पर कुल 05 लाख 16 हजार 787 परीक्षार्थी प्रविष्ठ होगें, जिसमें 2,72,421 लडक़े व 2,44,366 लड़कियां शामिल हैं। परीक्षाओं का समय दोपहर 12:30 बजे से 3:30 बजे तक रहेगा। उन्होंने बताया कि सभी पात्र परीक्षार्थियों को प्रवेश-पत्र जारी कर दिए गए हैं। बिना प्रवेश-पत्र के परीक्षा केन्द्र में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।
बोर्ड अध्यक्ष ने बताया कि परीक्षा केन्द्रों के औचक निरीक्षण हेतु 219 उडऩदस्तों का गठन किया गया है, जिसमें बोर्ड अध्यक्ष व बोर्ड सचिव के प्रभावी उडऩदस्तों के अलावा 22 जिला प्रश्र पत्र उडऩदस्ते, 70 उप-मण्डल प्रश्र पन्न उडऩदस्ते, 21 रैपिड एक्शन फोर्स, 08 एस.टी.एफ. एवं 02 नियंत्रण कक्ष उडऩदस्ते गठित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त उप-मण्डल अधिकारी (ना०) के 70 उडऩदस्ते, जिला शिक्षा अधिकारी के 22 उडऩदस्ते एवं उप-सचिव (संचालन) व  सहायक सचिव (संचालन) के उडऩदस्ते भी गठित किये गये हैं, जोकि परीक्षा केंद्रों पर पैंनी निगाहें बनाए रखेंगे। परीक्षाओं की शुचिता, विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए सभी परीक्षा केन्द्रों के आसपास धारा-163 लागू कर दी गई है। परीक्षा केंद्रों के निकट फोटोस्टेट की दुकानें व कोचिंग सेंटर भी बंद रहेंगे।
उन्होंने बताया कि प्रश्र पत्रों पर अल्फा न्यूमेरिक कोड, क्यू आर कोड और हिडन सिक्योरिटी फीचर भी अंकित किए गए हैं। इससे यदि कोई परीक्षार्थी, पर्यवेक्षक, कर्मचारी व अन्य कोई व्यक्ति प्रश्र पत्र की फोटो लेता है तो तुरंत पता लग जाएगा कि प्रश्र पत्र किस परीक्षार्थी का है एवं कहां से आउट हुआ है, जिससे परीक्षाओं के दौरान होने वाली किसी भी प्रकार की अनियमितताओं पर लगाम लगाई जा सकेगी। उन्होंने आगे बताया कि यदि किसी परीक्षा केन्द्र से पेपर आउट होने का मामला पाया जाता है, तो उस केन्द्र के अधीक्षक, पर्यवेक्षक व नकल में संलिप्त परीक्षार्थी के विरूद्ध नियमानुसार सख्त कार्यवाही अमल में लाई जाएगी।
बोर्ड अध्यक्ष ने बताया कि परीक्षा की सुचिता सुनिश्चित करने के लिए इस बार विशेष सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं। अधिकतर परीक्षा केन्द्र सीसीटीवी कैमरो की निगरानी में रहेंगे। यह कदम पेपर लीक की संभावना को समाप्त करने और परीक्षा में पारदर्शिता लाने के लिए उठाया गया है। उन्होंने छात्रों को सलाह दी है कि वे तनावमुक्त होकर परीक्षा की तैयारी करें। नियमित रूप से सिलेबस का रिवीजन करें, पुराने प्रश्र पत्र हल करें और स्वस्थ दिनचर्या अपनाएं। उन्होंने कहा कि पढ़ाई के साथ छोटे विराम भी आवश्यक हैं, जो परीक्षा का तनाव कम करने में सहायक होते है।
 इसके अतिरिक्त  शिक्षा बोर्ड द्वारा डी.एल.एड.(रि-अपीयर/मर्सी चांस) की परीक्षाओं का संचालन भी 03 मार्च से करवाया जा रहा हैं। इस परीक्षा में 5,070 छात्र-अध्यापक परीक्षा देंगे।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी उच्च शिक्षा में नए मानक स्थापित करने की दिशा में अग्रसार : प्रोफेसर केके अग्रवाल

 

SAU के अध्यक्ष प्रो. के. के. अग्रवाल ने मीडिया के सामने शिक्षण सत्र 2025-26 के लिए प्रवेश प्रकिया की शुरुआत करते हुए।

रविवार, 23 फ़रवरी 2025

ज़हर उगलने वाले क्या जानें 'उर्दू की मिठास'

तनवीर जाफ़री 

आपने छात्र जीवन में उर्दू कभी भी मेरा विषय नहीं रहा। हाँ हिंदी में साहित्य रत्न होने के नाते मेरा सबसे प्रिय विषय हमेशा हिंदी ही रहा। और आज भी मैं प्रायः हिंदी में ही लिखता पढता हूँ। परन्तु शेर-ो-शायरी का शौक़ बचपन से ही था। इसके तथा कुछ पारिवारिक व सामाजिक परिवेश के चलते उर्दू से ख़ासकर उसके शब्दों के उच्चारण के आकर्षक तौर तरीक़ों से बहुत प्रभावित रहा। और जब बचपन और जवानी में बड़े मुशायरों में शिरकत करने का मौक़ा मिलता और कुंवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर' जैसे अज़ीम शायर को यह कहते सुनता कि उन्हें  'उर्दू ज़बान से मुहब्बत है ,इश्क़ है  क्योंकि यह ज़ुबान आब ए हयात(अमृत ) पीकर आई है' तो यक़ीनन यह एहसास ज़रूर होता कि आख़िर कुछ बात तो है कि भारत में पैदा होने वाली तथा फ़ारसी व हिंदी के मिश्रण से तैयार उर्दू को हमारे देश के क्रांतिकारियों से लेकर बड़े से बड़े कवियों,साहित्यकारों,राज नेताओं,बुद्धिजीवियों ने न केवल अपनाया बल्कि उसे पाला पोसा और संवारा भी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी उर्दू को भारतीय भाषा कहते थे।                              

मुगल शासक भी उर्दू भाषा को हिंदी या हिंदवी कहते थे। परन्तु चूँकि उर्दू के लिखने में फारसी लिपि का उपयोग होता है इसलिये लोग इसे मुसलमानों की भाषा कहने लगे। शायद यही वजह है कि आज  हिंदी व उर्दू भाषा रुपी दो बहनें एक दूसरे में इतनी रम चुकी हैं कि यदि आप इन दोनों को एक दूसरे से अलग भी करना चाहें तो संभव नहीं। उदाहरण के तौर पर केवल चंद ऐसे अल्फ़ाज़ पेश हैं जो आम तौर पर हिंदी भाषा में बोले जाते हैं परन्तु दरअसल इन शब्दों का स्रोत अथवा उद्भव फ़ारसी अथवा उर्दू से ही हुआ है। जैसे हिन्दोस्ताँ,अदालत,वकील,इंसाफ़,मुंसिफ़,पाएजामा,पेशाब,पंजाब,दरवाज़ा, ख़िलाफ़,मुख़ालिफ़त शराब, किताब, इंक़ेलाब ज़िंदाबाद, 'शाही'(स्नान), डाकख़ाना, दवा, ईलाज, वज़ीर, शाह, बादशाह, हकीम, हाकिम, हुक्म, सब्ज़ी, मकान जैसे अनगिनत शब्द हैं जो प्रत्येक भारतीय रोज़ाना दिन में कई कई बार इस्तेमाल करता है परन्तु शायद उसे इस बात का एहसास भी नहीं होता कि वह उर्दू के शब्द बोल रहा है।                                    
इसके बावजूद उर्दू जैसे मीठी व अदब साहित्य से सम्बन्ध रखने वाली भाषा का हमारे देश में दशकों से विरोध होता आ रहा है। विरोध तो समय समय पर अंग्रेज़ी का भी हुआ परन्तु दक्षिण भारत व पूर्वोत्तर में अंग्रेज़ी की व्यापक स्वीकार्यता व उसे मिलने वाले समर्थन के चलते राष्ट्रीय स्तर पर उसका विरोध नहीं हो सका। परन्तु उर्दू का विरोध करने का ठेका उसी विचारधारा के लोगों के पास है जो देश को एक रंग में रंगना चाहते हैं। बड़ी आसानी से इस भाषा को मुसलमानों की भाषा या विदेशी भाषा बताते हुये उर्दू का विरोध शुरू हो जाता है। जैसा कि पिछले दिनों  उत्तर प्रदेश में बजट सत्र के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुंह से सुनने को मिला। मुख्यमंत्री ने सदन में विपक्ष पर हमलावर होते हुये यह कहा कि - ये  'अपने बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूलों में पढ़ाएंगे और दूसरों के बच्चों को उर्दू पढ़ने को प्रेरित करेंगे। ये उन्हें मौलवी, कठमुल्ला बनने को प्रेरित करेंगे? यह नाइंसाफ़ी है, यह नहीं चलेगा।' योगी आदित्यनाथ के इस बयान से यह सवाल तो ज़रूर खड़ा होता है कि क्या उर्दू को जानने वालों का, उर्दू पढ़ने या पढ़ने वालों का मक़सद केवल मौलवी बनना बनाना होता है? क्या उर्दू पढ़कर लोग "कठमुल्ला " बन जाते हैं ?                          
यदि ऐसा होता तो भारत में उर्दू की पहली ग़ज़ल लिखने वाले कश्मीरी पंडित,पंडित चंद्र भान 'ब्राह्मण' न होते। मुंशी नवल किशोर,दया नारायण निगम,जगत मोहन लाल 'रवां', नौबत राय 'नज़र', मुंशी महाराज बहादुर 'बर्क़', नाथ मदन सहाय ,पंडित दया शंकर कौर 'नसीम',पंडित रतन नाथ 'सरशार',राम कृष्ण 'मुज़तर', जमुना दास अख़्तर , राम लाल, डॉ. जगन्नाथ 'आज़ाद', कृष्ण बिहारी नूर, संजय मिश्रा 'शौक़, राम प्रकाश ‘बेखुद’, खुशबीर सिंह ‘शाद’ ,मनीष शुक्ल,आनंद मोहन जुत्शी, गुलज़ार देहलवी, कृष्ण चंदर,रतन सिंह, भारत भूषण पंत और मलिक राम जैसे हिन्दू उर्दू प्रेमियों के अनगिनत नाम हैं जिनके बिना भारत में उर्दू अदब का इतिहास लिखा जाना संभव ही नहीं है। सही मायने में तो इन लोगों के योगदान ने ही उर्दू को पूरे विश्व में समृद्ध बनाया। इनके अलावा शहीद व क्रन्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल,अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान,सुभाष चंद्र बोस,महात्मा गाँधी,पंडित जवाहरलाल नेहरू,रघुपति सहाय फ़िराक़,आनंद नारायण 'मुल्ला',ब्रज नारायण 'चकबस्त' जैसे अनेक सम्मानित नाम हैं जिन्होंने उर्दू से व उसकी मिठास से प्यार किया। इनमें न तो कोई कठमुल्ला बना न मौलवी न ही इन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण की ख़ातिर इस भाषा से प्यार किया। दरअसल उर्दू को प्यार करने व इसे प्रोत्साहित करने वाले वे लोग थे जिनके मस्तिष्क में नफ़रत वैमनस्य या कुंठा नहीं भरी थी। वह साहित्य के क़द्रदान लोग थे। वह उर्दू को हिंदी की छोटी बहन मानते थे। वह उर्दू को भारतीय भाषा मानते थे मुसलमानों की भाषा नहीं। वह लोग पूर्वाग्रही नहीं थे। समाज में प्यार व सद्भाव बांटते थे इसीलिये उन्होंने अपने संवाद व अपनी रचनाओं का माध्यम उर्दू रखा। 
मगर अफ़सोस की बात है कि देश इस समय ऐसे लोगों के हाथों में है जिन्हें अन्य धर्मों व जातियों से नफ़रत है, जिन्हें लोगों के निजी खान पान व पहनावे से नफ़रत है। जिन्हें क्षेत्र व भाषाओँ से विद्वेष है। आपसी  प्यार मोहब्बत इन्हें अच्छा नहीं लगता। यही वजह है कि कहीं उर्दू बाज़ार का नाम बदल कर हिंदी बाज़ार कर दिया गया। उर्दू के प्रतीत होने वाले अनेक ज़िलों,शहरों,क़स्बों व रेल स्टेशंस के नाम बदल दिए गये हैं। जैसे फ़ैज़ाबाद,मुग़लसराय,इलाहबाद जैसे अनेक प्रसिद्ध नाम इसी नफ़रती सियासत के कारण इतिहास बन चुके हैं। ऐसे ही संकीर्ण मानसिकता के लोगों की नज़रों में उर्दू पढ़ने वाला सिर्फ़ 'मौलवी' बनता है वह भी 'कठमुल्ला '? कहना ग़लत नहीं होगा कि ऐसी ही संकीर्ण मानसिकता के लोग हमारे देश की सांझी तहज़ीब के दुश्मन हैं। इन्हें मुसलमानों से नफ़रत,मस्जिदों से नफ़रत,मदरसे इन्हें नहीं भाते,उर्दू शब्दों वाले नामों से इन्हें नफ़रत। क़ब्रिस्तान और शमशान में भेद करना इन संकीर्ण मानसिकता वादियों का व्यसन। धर्मों,जातियों व भाषाओं का विरोध करने वाले यह लोग इतने शातिर हैं कि यदि कोई इन संकीर्ण अतिवादियों का विरोध करे तो यह उसे विधर्मी,देशद्रोही,राष्ट्र विरोधी कुछ भी कह डालते हैं। क्योंकि दुर्भाग्यवश देश की सत्ता आज विषवमन करने वाले ऐसे लोगों  के हाथों में है जो 'उर्दू की मिठास' व उसके एहसास व प्रभाव को समझ पाने की क्षमता क़तई नहीं रखते। संपर्क : 9896219228

शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा में संभावनायें

अवधेश कुमार

केवल भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व की दृष्टि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बातचीत तथा प्रतिफलों पर लगी होगी। प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस में एआई शिखर बैठक की सह-अध्यक्षता करने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप के आमंत्रण पर अमेरिका जा रहे हैं। अपने इस दूसरे कार्यकाल में ट्रंप अवैध अप्रवासन, व्यापार घाटा, आतंकवाद,  वैश्विक संघर्ष, पश्चिम एशिया ,यूएसएड आदि को लेकर जिस आक्रामकता और तीव्र गति से कदम उठा रहे हैं उसमें यात्रा की गंभीरता काफी बढ़ गई है। प्रधानमंत्री की यात्रा के पूर्व अमेरिका के सैन्य विमान से हथकड़ी लगाकर वापस किए गए अवैध अप्रवासियों का मुद्दा भारत में कितना गर्म हुआ यह बताने की आवश्यकता नहीं है। उम्मीद है और जैसा विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में बयान दिया प्रधानमंत्री की यात्रा में यह विषय उठाया जाएगा।  अवैध प्रवासियों वाले देशों पर उन्होंने पहले दिन से निशाना साधा और अपनी घोषणा के अनुरूप उनको पकड़ कर कैदियों की तरह विमान से देश में भेजना शुरू किया। व्यापार घाटा भी इसी से जुड़ गया।  ट्रंप ने चीन से आने वाली सामग्रियों पर 10 प्रतिशत तथा मेक्सिको और कनाडा पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगा दिया। हालांकि भारत को उन्होंने टैरिफ किंग यानी विदेशी सामानों पर सबसे ज्यादा शुल्क लगाने वाले देश की संज्ञा दी है लेकिन ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। हां,  अप्रवासियों के मुद्दे पर अवश्य उन्होंने आक्रामकता दिखाई है।

तो प्रधानमंत्री के दौरे एवं ट्रंप कल में भारत अमेरिकी संबंधों पर विचार करते समय इस पहलू का ध्यान रखना होगा। उन्होंने ब्राजील के नागरिकों को भी इसी तरह वापस भेजा जिस पर ब्राजील ने विरोध जताया। भारत की ओर से ऐसा नहीं किया गया। यहां तक कि संसद में विदेश मंत्री ने कांग्रेस की आलोचनाओं का जवाब देते हुए आंकड़े प्रस्तुत किए जिनसे पता चलता है कि हर कार्यकाल में अमेरिका से अप्रवासियों को वापस भेजा गया है। किंतु इस तरह हथकड़ी लगाकर सैन्य विमान से भेजने का पहला मामला है। विरोध करने के बाद उन्होंने कहा कि अमेरिका के समक्ष मामला उठाया गया है। यह संभव नहीं कि प्रधानमंत्री इस विषय पर‌ बातचीत न करें। किंतु भारत क्या कर सकता है? क्या हम विश्व में इस प्रकार से किसी देश में अवैध घुसपैठ को प्रोत्साहित कर सकते हैं? हमारा कोई नागरिक अगर वीजा लेकर उचित रास्ते से अमेरिका या किसी देश में जाए और वहां उसके साथ आम मानवीय या किसी तरह के अंतर्राष्ट्रीय मानक के विपरीत व्यवहार हो तो भारत अवश्य सीना ठोक कर खड़ा होगा। इस तरह पढ़े-लिखे लोग भी झूठे एजेंटों के चक्कर में पड़कर चोरी छिपे रास्ते अवैध तरीके से किसी देश में घुसेंगे तो उनके साथ आम मनुष्य की तरह व्यवहार नहीं हो सकता।  विश्व का एक सम्मानित देश होने के नाते भारत अमेरिका से बात कर सकता है कि जो भी अवैध रूप से आए हैं उन्हें हम वापस लेंगे जिसका तरीका ज्यादा मानवीय और न्यायोचित हो। ध्यान रखिए, कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो कम्युनिस्ट हैं। वे अमेरिका के खिलाफ स्टैंड लेते हैं। इस मामले में वे यहां तक कह बैठे कि यह उसकी प्रभुसत्ता पर अमेरिका का अतिक्रमण है इसलिए  अमेरिकी सैनिक विमान को धरती पर नहीं उतरते देंगे। जैसे ही ट्रंप ने सीमा शुल्क बढ़ाने की धमकी दी वो चुप हो गए तथा अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए अमेरिका विमान भेजा। वास्तव में अवैध घुसपैठ या अप्रवास हर देश में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपराध है। कोई देश अपने ऐसे नागरिकों के साथ खड़ा नहीं हो सकता न इसका समर्थन कर सकता है। हालांकि जैसे अवैध रूप से किसी देश में घुसना अस्वीकार्य है वैसे ही इस तरह का व्यवहार भी। ऐसा लगता है कि ट्रंप इस तरह के अतिवादी कदमों से उन लोगों को भयभीत करना चाहते हैं जो अवैध तरीके से उनके देश में आने या घुसने की सोच रहे होंगे या कोशिश कर रहे होंगे। जिन देशों से ज्यादा अवैध लोग आ रहे हैं वहां के नेतृत्व पर भी दबाव डालने की रणनीति दिखाई देती है। अमेरिका में एक करोड़ के आसपास अप्रवासी अवैध रूप से हैं। इनको वापस करना आसान नहीं है। सैनिक जहाज या अपने नागरिक विमान से भी वापस करेंगे तो कितना समय लगेगा? एक दिन में आप 2000, 3000 ,4000 लोगों को वापस कर सकते हैं। तो इसमें कई वर्ष लग जाएंगे। सैन्य विमान में वैसे भी जबरदस्त खर्च आता है और स्वयं अमेरिका की वित्तीय स्थिति लंबे समय तक इसे जारी रखने की अनुमति नहीं देता।तो ऐसा सतत होगा यह नहीं माना जा सकता।  इसका रास्ता निकालना पड़ेगा।

अमेरिका के साथ व्यापार में सर्वाधिक लाभ को देखते हुए भारत नहीं चाहेगा कि किसी प्रकार का व्यापारिक तनाव हो और अत्यधिक सीमा शुल्क की व्यवस्था में से हमें क्षति पहुंचे। भारत ने अमेरिका के साथ संबंधों की गंभीरता को देखते हुए संयम का परिचय दिया और यह उचित ही है। यह मानने में समस्या नहीं है कि भारतीय राजनयिक ट्रंप की रणनीति को समझ चुके हैं। मेक्सिको , चीन,  ब्राजील , कोलंबिया सबके विरुद्ध उन्होंने घोषणाएं की और अब उन पर भी शांत भी हैं, कुछ कदम वापस भी लिया है। ट्रंप भारत पर अन्य देशों की तरह आयात शुल्क ठोकने से बचेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि भारत को रक्षा और संवेदनशील तकनीक  सहित गैस आदि की आवश्यकता है। वह अमेरिका से खरीद कर क्षतिपूर्ति कर सकता है। भारत की नीति अपना वैश्विक व्यापार बढ़ाने, अधिकाधिक निवेश भारत लाने, सूचना अनुसंधान या यों कहे कि एआई के क्षेत्र में चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए उसका हित में उपयोग के लिए ढांचा खड़ी करने तथा बढ़ती अंतरराष्ट्रीय जटिलताओं के मध्य प्रमुख देशों से रणनीतिक और सामरिक साझेदारी को सशक्त करने  की है। ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में विदेश मंत्री एस जयशंकर को आगे बिठाकर तथा तुरंत बाद क्वॉड विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित कर संदेश दिया कि पहले कार्यकाल की तरह वे क्वॉड और भारत के वैश्विक महत्व को पूर्ण साझेदारी के साथ आगे बढ़ाने की नीति पर चल रहे हैं। 2017 में ट्रंप ने ही क्वॉड की स्थापना की जिसे बिडेन ने आगे बढ़ाया।

ट्रंप एवं उनके सलाहकारों के पास इतनी समझदारी है कि बगैर पूरी योजना, अन्य देशों की सहमति और साझेदारी के एक सीमा से ज्यादा चीन आदि से टकराव लाभकारी नहीं होगा। हिंद प्रशांत से लेकर अरब सागर , लाल सागर सबमें  सप्लाई चैन या आपूर्ति श्रृंखला पर चीन के बढ़ते आधिपत्य को रोकने के लिए कदम उठाना ही होगा। बगैर भारत के साथ सहयोग के यह संभव नहीं है। ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह समझौता भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है लेकिन अमेरिका ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों को लेकर भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्क रुबियो के एजेंडा में चाबहार बंदरगाह व ईरान भारत संबंध भी है। हमारी पूरी कोशिश यही है कि ईरान से संबंधों के आधार पर कम प्रशासन भारत पर किसी तरह का प्रतिबंध न लगाए। भारत अवैध अप्रवासियों को वापस लेने को तैयार है तो अमेरिका को इसका रास्ता निकालने में समस्या नहीं होनी चाहिए। जहां तक सीमा शुल्क का प्रश्न है तो भारत ने केंद्रीय बजट में अनेक उत्पादों पर आयात शुल्क और ड्यूटी घटाने का प्रावधान किया है। इससे अनेक अमेरिकी उत्पादों और कंपनियों को राहत मिली है। इससे वातावरण अनुकूल होने का आधार बना है। सिख अलगाववादियों और अतिवादियों के साथ अमेरिकी भूमि पर भारत विरोधियों की गतिविधियां हमारे लिए चिंताजनक है। भारत की अपेक्षा है कि ट्रंप प्रशासन उन पर हमारी भावनाओं का सम्मान करे। जो बिडेन प्रशासन की तरह ऐसे तत्वों को भारत विरोधी गतिविधियों की खुली छूट तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर  किसी तरह की बंदिश न लगाने का रवैया उचित नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।ट्रंप ने पहले कार्यकाल में भारत को महत्व दिया तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अमेरिकी हितों का ध्यान रखते हुए भी व्यक्तिगत संबंध आत्मीय बना रहा। इसलिए तनाव उभरने या संबंध बिगड़ने की संभावना नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते संघर्ष तथा पहले से  उलझे मुद्दों के और उलझने के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उथल-पुथल की स्थिति है। यह भारत और अमेरिका दोनों के लिए चिंताजनक है। भारत जैसे देशों के महत्व को ट्रंप समझते हैं और भारत भी अमेरिका की आवश्यकता को। उम्मीद करनी चाहिए कि दो दूरदर्शी नेताओं और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लंबे लक्ष्य पर काम करने वाले देशों के बीच वार्ता में भविष्य के लिए लंबे सहयोग, साझेदारी तथा परस्पर सौहार्द्र बनाए रखने का प्रतिफल सामने आएगा। 

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर काम्पलेक्स, दिल्ली 110092, मोबाइल 9811027208

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

22, 23 व 26 फरवरी को अवकाश के दिनों में खुला रहेगा हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड कार्यालय

संवाददाता

भिवानी हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की सैकेण्डरी/सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक व मुक्त विद्यालय) की वार्षिक परीक्षाएं 27 फरवरी, 2025 से आरम्भ हो रही हैं। सभी पात्र परीक्षार्थियों के अनुक्रमांक 18 फरवरी, 2025 से बोर्ड की वेबसाइट www.bseh.org.in पर जारी कर दिए गए हैं।

इस आशय की जानकारी देते हुए बोर्ड सचिव अजय चोपड़ा, ह.प्र.से. ने बताया कि जिन परीक्षार्थियों के प्रवेश-पत्र के विवरणों में शुद्धि करवाई जानी है तथा जिन विद्यालयों/परीक्षार्थियों के अनुक्रमांक किसी कारणवश रोके गये हैं, ऐसे परीक्षार्थी/विद्यालय मुखिया 22, 23 व 26 फरवरी, 2025 को अवकाश के दिनों में भी बोर्ड कार्यालय में सम्बन्धित शाखाओं में मूल रिकार्ड व सत्यापित प्रति सहित उपस्थित होकर निर्धारित शुल्क जमा करवाते हुए विवरणों में शुद्धि करवा सकते हैं।  

इसके अतिरिक्त सूचित किया जाता है कि परीक्षाएं आरम्भ होने उपरान्त फोटो व हस्ताक्षर सम्बन्धी शुद्धियां नहीं की जाएंगी। इन दिनों में बोर्ड कार्यालय की सैकेण्डरी/सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक व मुक्त विद्यालय) शाखाएं प्रात: 10:00 बजे से सांय 04:00 बजे तक खुली रहेंगी। ऐसे परीक्षार्थी एवं विद्यालय सम्बन्धित दस्तावेज लेकर बोर्ड कार्यालय में व्यक्तिगत तौर पर आ सकते हैं।

बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

03 मार्च से आरम्भ होंगी डी.एल.एड.(रि-अपीयर/मर्सी चांस) परीक्षा

संवाददाता

भिवानी। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित करवाई जाने वाली डी.एल.एड. रि-अपीयर/मर्सी चांस परीक्षा मार्च-2025 के प्रवेश-पत्र आज से लाईव कर दिए गए हैं। सभी संस्थान/कॉलेज के प्राचार्य/मुखिया संस्था की लॉग-इन आई0डी0 से तिथि-पत्र अनुसार पात्र छात्र-अध्यापकों के प्रवेश-पत्र डाउनलोड करना सुनिश्चित करें। डी.एल.एड. प्रवेश वर्ष 2020-2022, 2021-2023 के छात्र-अध्यापकों की मर्सी चांस एवं  प्रवेश-वर्ष 2022-2024 प्रथम व द्वितीय वर्ष (रि-अपीयर) व प्रवेश-वर्ष 2023-2025 प्रथम वर्ष (रि-अपीयर) पात्र छात्र-अध्यापकों की परीक्षाएं 03 मार्च, 2025 से आरम्भ हो रही हैं। इस परीक्षा में करीब 5070 छात्र-अध्यापक प्रविष्ट होंगे।

इस आशय की विस्तृत जानकारी देते हुए बोर्ड सचिव अजय चोपड़ा, ह.प्र.से. ने बताया कि सभी छात्र-अध्यापकों के प्रवेश पत्र (एडमिट कार्ड) बोर्ड की अधिकारिक वेबसाइट www.bseh.org.in पर दिए गए लिंक से सम्बन्धित संस्था अपना यूजर आई0डी0 पासवर्ड प्रयोग कर डाउनलोड कर सकते हैं। सम्बन्धित छात्र-अध्यापक अपने प्रवेश-पत्र बारे संस्था से सम्पर्क करें।

उन्होंने बताया कि छात्र-अध्यापक प्रवेश पत्र (एडमिट कार्ड) पर दर्शाए गए महत्वपूर्ण निर्देशों को ध्यान से पढक़र/समझकर उनकी पालना करना सुनिश्चित करें। सभी छात्र-अध्यापक को अपने आधार कार्ड/फोटो आई.डी. में अपने विवरणों को अपडेट करना आवश्यक होगा। बिना अपडेशन परीक्षार्थी को परीक्षा केन्द्र में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।

उन्होंने आगे बताया कि डी.एल.एड. शिक्षण संस्थान/कॉलेज के प्राचार्य/मुखिया इस बात के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी होंगे कि ऐसे सभी छात्र-अध्यापक जो निर्धारित नियम/विनियम अनुसार परीक्षा हेतु योग्य/पात्र नहीं हैं, उनके अनुक्रमांक जारी न किए जाएं तथा उनके अनुक्रमांक रिपोर्ट सहित बोर्ड कार्यालय को परीक्षा आरम्भ होने से पूर्व बोर्ड कार्यालय को वापिस भेजे जाने हैं।

उन्होंने बताया कि डी.एल.एड. (रि-अपीयर/मर्सी चांस) परीक्षा फरवरी/मार्च-2025 से सम्बन्धित बाह्य प्रायोगिक परीक्षाएं सम्बन्धित जिले की डाइट एवं आन्तरिक प्रायोगिक परीक्षा सम्बन्धित शिक्षण संस्थानों में संचालित करवाई जाएगी। उन्होंने बताया कि सभी शिक्षण संस्थाएं आंतरिक एवं बाह्य प्रायोगिक मूल्यांकन व SIP के अंक ऑनलाइन 27 मार्च से 04 अप्रैल, 2025 तक बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट www.bseh.org.in पर दिए गए लिंक से भर सकते हैं।

उन्होंने आगे बताया कि अंतिम तिथि उपरांत आंतरिक प्रायोगिक मूल्यांकन की अंक सूचियां 500/-रूपये प्रति छात्र-अध्यापक या अधिकतम 5000/-रूपये प्रति शिक्षण संस्थान जुर्माने के साथ ही स्वीकार की जाएंगी। किसी शिक्षण संस्थान को निर्धारित तिथि तक आन्तरिक एवं बाह्य प्रायोगिक मूल्यांकन व एसआईपी के अंक भरने में तकनीकी कारणों से कठिनाई आती है तो इसके निवारण हेतु ई-मेल dledexam2017@gmail.com व दूरभाष नम्बर 01664-254300 पर सम्पर्क कर सकते है।

उन्होंने बताया कि ऐसे परीक्षार्थी जो Visually Impaired, Dyslexic and Spastic, Deaf & Dumb, Permanently Disabled for writing with their own hands श्रेणियों के अन्तर्गत आते हैं तथा जिनकी अशक्तता 40 प्रतिशत या इससे अधिक मुख्य चिकित्सा अधिकारी (C.M.O.) द्वारा चिकित्सा प्रमाण-पत्र में प्रमाणित की गई है, व लिखने में असमर्थ है तथा लेखक की सुविधा लेना चाहते हैं, तो कॉलेज/शिक्षण संस्थान के प्राचार्य/प्रतिनिधि द्वारा दिव्यांग छात्र-अध्यापक के लिए लेखक के मूल एवं सत्यापित दस्तावेजों/प्रलेखों जैसे शैक्षणिक योग्यता, जन्म प्रमाण-पत्र, दो नवीनतम फोटो ( एक सत्यापित), फोटो आई०डी० जैसे-आधार कार्ड, पत्राचार व स्थाई पता सहित परीक्षा से 02 दिन पूर्व लेखक की स्वीकृति परीक्षा केन्द्र अधीक्षक से लेना अनिवार्य है। जिस व्यक्ति की लेखक के रूप में मांग की गई है, की आयु परीक्षा में प्रविष्ट होने वाले परीक्षार्थी से कम हो एवं शैक्षणिक योग्यता वरिष्ठ माध्यमिक से अधिक न हो।

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

महाकुंभ : आयोजन का श्रेय बनाम कुप्रबंधन की ज़िम्मेदारी

निर्मल रानी

 भारतवर्ष में आयोजित होने वाले सबसे विशाल एवं विराट धार्मिक समागम को 'कुंभ मेला' के नाम से जाना जाता है। यह आयोजन प्रयाग व  हरिद्वार में पवित्र गंगा नदी के तट पर, उज्जैन में शिप्रा नदी तथा नासिक में गोदावरी नदी के किनारे किया जाता है। देश दुनिया से आने वाले लाखों श्रद्धालु इन पवित्र नदियों में पौष पूर्णिमा व मकर संक्रान्ति जैसे पावन अवसरों पर स्नान करते हैं। यदि हम आयोजन स्थल की बात करें तो वार्षिक माघ मेला हो या 6 वर्षों के अंतराल में पड़ने वाले अर्ध कुंभ या फिर 12 वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाले पूर्ण कुंभ,सभी आयोजनों के लिये सबसे उपयुक्त, खुला व विशाल स्थान प्रयागराज ही है। यहाँ गंगा-यमुना तथा संगम के दोनों किनारों पर कई किलोमीटर लंबे खुले स्थान हैं जहाँ लाखों श्रद्धालु एक ही समय में सुगमता पूर्वक रुक सकते हैं स्नान कर सकते हैं। परन्तु इस बार सरकार द्वारा इस आयोजन को 'महाकुंभ' के रूप में प्रचारित किया गया तथा यह भी बताया गया कि यह 144 वर्षों बाद आयोजित होने वाला 'महाकुंभ ' है। हालांकि इस दावे पर उँगलियाँ उठ रही हैं। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जैसे संत 144 वर्ष बाद के दावे पर यह कहते हुये सवाल उठा रहे हैं कि इससे पहले 2013 व 2001 के कुंभ को भी 144 वर्ष बाद पड़ने वाला महाकुंभ बताया गया था।

इसके अतिरिक्त इस बार का आयोजन जहाँ श्रद्धालुओं का करोड़ों की संख्या में मेले में आवागमन, विदेशी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में शिरकत , विशिष्ट व्यक्तियों की उपस्थिति,आधुनिकता,उच्चस्तरीय हाई टेक ठहरने की व्यवस्था जैसी अनेक बातों को लेकर चर्चा में रहा वहीं पहली बार यह देखा गया कि स्वयं मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी द्वारा राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री सहित देश के तमाम विशिष्ट जनों को महाकुंभ में आने का न्योता दिया गया। हालाँकि मुख्यमंत्री द्वारा व्यक्तिगत तौर पर लोगों को निमंत्रण देने की कई जगह आलोचना भी हुई। कुछ लोगों का कहना था कि यह धार्मिक आयोजन है इस पर सभी का अधिकार है इसलिये आयोजक के रूप में न्योता देने का कोई अर्थ नहीं है। परन्तु राजनीति के वर्तमान दौर में जबकि बिना कुछ किये ही राजनेता श्रेय लेने को आतुर रहते हैं ऐसे में इतने बड़े आयोजन की भव्यता दिव्यता व सफलता का श्रेय डबल इंजन की सरकारें न लें यह आख़िर कैसे हो सकता है।

इस महाकुंभ के व्यापक प्रचार प्रसार की ग़रज़ से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 'मन की बात' के 117वें एपिसोड में 'महाकुंभ-2025' की विस्तृत चर्चा की गयी। प्रधानमंत्री ने  'मन की बात' में बताया था कि किस तरह संगम तट पर मेले की ज़ोरदार तैयारियां चल रही हैं । साथ ही उन्होंने मेले से पूर्व हेलीकाप्टर से पूरा कुम्भ क्षेत्र देखने के अनुभव को साँझा करते हुये कहा कि- 'इतना विशाल, इतना सुन्दर, इतनी भव्यता'। मोदी ने कहा कि अगर कम शब्दों में कहें तो 'महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश' और दूसरे तरीक़े से कहूंगा 'गंगा की अविरल धारा, न बंटे समाज हमारा'। और इसी अपील के साथ प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न केवल अपने देश बल्कि पूरे विश्व के श्रद्धालुओं को भी  महाकुंभ में आमंत्रित किया। स्वयं मुख्यमंत्री योगी ने दिसंबर माह में 4 बार महाकुंभ का निरीक्षण किया। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि 2019 में आयोजित हुये कुंभ मेले की तुलना  में इस बार पूरे महाकुंभ मेला क्षेत्र में लगभग प्रत्येक जनोपयोगी सुविधाओं में व्यापक विस्तार किया गया। ज़ाहिर है भारतीय मीडिया भी काफ़ी पहले से महाकुंभ आयोजन का दिन रात प्रचार कर रहा था। सरकार द्वारा टी वी,समाचारपत्र-पत्रकाओं सहित लगभग सभी प्रचार माध्यमों में सैकड़ों करोड़ के विज्ञापन दिए गये थे। हद तो यह है कि बागेश्वर धाम के पंडित धीरेन्द्र शास्त्री सरीखे नाममात्र प्रवचन कर्ताओं द्वारा यह तक कह दिया गया था कि इस महाकुंभ में स्नान न करने वाला देशद्रोही है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये सरकार द्वारा हज़ारों की संख्या में विशेष रेलगाड़ियां,बसें,विमान आदि भी चलाये गये। इस तरह के व्यापक प्रचार प्रसार तथा धार्मिक आस्था के घालमेल में करोड़ों लोगों का प्रयागराज में इकठ्ठा होना तो स्वभाविक था ही। 

परन्तु दुर्भाग्यवश इतना विशाल आयोजन प्रयागराज से लेकर दिल्ली तक कुप्रबंधन का शिकार रहा। मेला क्षेत्र में 30 दिन के अंदर अलग अलग क्षेत्रों में पांच बार तो आगज़नी की घटनायें घटीं। जबकि पूरे मेला क्षेत्र में 350 से ज़्यादा फ़ायर ब्रिगेड, 2000 से अधिक प्रशिक्षित अग्निशामक , 50 अग्निशमन केंद्र और 20 फ़ायर पोस्ट बनाए गए थे साथ ही अखाड़ों और टेंट में अग्नि सुरक्षा उपकरण भी लगाए गए थे। उसके बावजूद यह हादसे पेश आये ? इसी तरह कुंभ मेला क्षेत्र में अनेक बार भगदड़ मची। जिसमें दर्जनों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। अभी भी कई लोगों को अपने खोये परिजनों की तलाश है। 

पूरा शहर कई दिनों तक जाम की चपेट में रहा। यहाँ तक कि वी आई पी पास निरस्त करने पड़े और प्रयागराज को 'नो वेहिकिल ज़ोन' तक घोषित करना पड़ा। और आख़िरकार श्रद्धालुओं के इस सैलाब ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी भगदड़ का रूप ले लिया। यहाँ भी 14 महिलाओं व 4 पुरुषों की मौत हो गयी। महाकुंभ में न आने वालों को देशद्रोही बताने वाले बागेश्वर के पंडित धीरेन्द्र शास्त्री ने भगदड़ में मरने वालों को लेकर यह विवादित बयान दे दिया कि -'जो कोई गंगा किनारे मरेगा वह मरेगा नहीं बल्कि मोक्ष प्राप्त करेगा'। इसतरह सरकार को ख़ुश करने के लिये अनेक साधु संतों द्वारा तरह तरह की भ्रामक बातें की गयीं जबकि इन हादसों के लिये सरकार के कुप्रबंधन को ज़िम्मेदार ठहराने वालों को सनातन विरोधी,हिन्दू विरोधी,कांग्रेसी,नकारात्मक सोच रखने वाला कहा जाने लगा। हद तो यह है कि भगदड़ पर सवाल उठाने वाले शंकराचार्य के विरोध में तो सारा संत समाज ही इकठ्ठा हो गया ? शंकराचार्य ने भगदड़ में मृतकों के प्रति हमदर्दी व सरकार की लापरवाही पर ऊँगली क्या उठा दी कि उनके पद को ही चुनौती दी जाने लगी ? 

ऐसे में यह सवाल उठना तो लाज़िमी है कि जब राज्य से लेकर केंद्र सरकार के मुखिया तक महाकुंभ के आयोजन की चर्चा कर रहे हों,लोगों को स्वयं व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित कर रहे हों। '144 वर्ष बाद हो रहे आयोजन का' अप्रमाणित हौव्वा खड़ा किया गया हो,अतिथियों के लिये प्रोटोकाल के अनुसार मंत्री स्तर के लोग उन्हें स्नान कराने के लिये तैनात हों,टी वी अख़बार महाकुंभ के गुणगान व प्रचार से पटे पड़े हों, ऐसे में भारत जैसे विशाल एवं धर्म प्रधान देश में करोड़ों लोगों का पहुंचना तो स्वभाविक ही था। इसमें भी कोई शक नहीं कि इसबार का आयोजन पिछले कुंभ आयोजन की तुलना में अधिक भव्य रहा। परन्तु सवाल यह भी है कि कि चाहे वह सरकार हो या राजनेता,जो भी इस महाआयोजन का श्रेय लेगा निश्चित रूप से इस मेले में हुये कुप्रबंधन तथा असामयिक मौतों की ज़िम्मेदारी भी उसी को लेनी पड़ेगी।

सैकेण्डरी/सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) के एडमिट कार्ड लाइव

संवाददाता

भिवानी। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा सैकेण्डरी व सीनियर सैकेण्डरी  (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) नियमित/स्वयंपाठी वार्षिक परीक्षा फरवरी/मार्च-2025 के लिए प्रवेश-पत्र (एडमिट कार्ड) आज से बोर्ड वेबसाइट www.bseh.org.in पर जारी कर दिए गए हैं। सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) नियमित/स्वयंपाठी की वार्षिक परीक्षाएं 28 फरवरी से 19 मार्च तक तथा सीनियर सैकेण्डरी की परीक्षाएं 27 फरवरी से 29 मार्च, 2025 तक संचालित करवाई जाएगी। इन परीक्षाओं में प्रदेशभर में 1431 परीक्षा केन्द्रों पर करीब 516787 परीक्षार्थी प्रविष्ट होंगे। जिसमें 2,72,421 लडक़े व 2,44,366 लड़कियां शामिल हैं। परीक्षाओं का समय दोपहर 12:30 बजे से 3:30 बजे तक रहेगा।

इस आशय की जानकारी देते हुए बोर्ड सचिव श्री अजय चोपड़ा, ह.प्र.से. ने आज यहां बताया कि सैकेण्डरी एवं सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) की वार्षिक परीक्षा फरवरी/मार्च-2025 हेतु प्रवेश-पत्र (एडमिट कार्ड) आज से बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट पर लाईव कर दिए गए हैं। सभी विद्यालय मुखिया बोर्ड वेबसाइट www.bseh.org.in पर अपने यूजर आई.डी. व पासवर्ड से लॉगिन करके आवश्यक दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए विद्यालय में अध्ययनरत परीक्षार्थियों के प्रवेश-पत्र का रंगीन प्रिंट आऊट ए-4 साईज पेपर पर डाउनलोड करना सुनिश्चित करें। यदि विवरणों में कोई त्रुटि है तो तुरंत बोर्ड कार्यालय में सम्पर्क करते हुए शुद्धि से सम्बन्धित मूल दस्तावेज एवं वांछित शुद्धि शुल्क सहित बोर्ड कार्यालय में उपस्थित होकर शुद्धि करवा सकते हैं। सभी परीक्षार्थी प्रवेश पत्र पर दिए गए आवश्यक दिशा-निर्देशों का पालन करना सुनिश्चित करें। इसके अतिरिक्त स्वयंपाठी परीक्षार्थी जिन द्वारा कम्पार्टमैंट(E.I.O.P.), अंक सुधार, अतिरिक्त विषय एवं पूर्ण विषय की परीक्षा दी जानी है वे अपना प्रवेश-पत्र बोर्ड वेबसाइट पर दिये गये लिंक से पिछला अनुक्रमांक/नाम, पिता का नाम, माता का नाम भरते हुए प्रवेश पत्र का रंगीन प्रिंट आऊट ए-4 साईज पेपर पर डाउनलोड कर सकते हैं।

उन्होंने आगे बताया कि मुक्त विद्यालय परीक्षा (फै्रश, रि-अपीयर, सी.टी.पी., ओ.सी.टी.पी., मर्सी चांस, पूर्ण विषय अंक सुधार व आंशिक अंक सुधार श्रेणी) के लिए परीक्षार्थी अपना पिछला अनुक्रमांक/नाम, पिता का नाम, माता का नाम /रजिस्ट्रेशन नं0 भरते हुए प्रवेश पत्र का रंगीन प्रिंट आऊट ए-4 साईज पेपर डाउनलोड करें। यदि विवरणों में कोई अशुद्धि है तो शुद्धि हेतु परीक्षार्थी 24 फरवरी, 2025 तक मूल दस्तावेजों व शुद्धि शुल्क सहित बोर्ड कार्यालय में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होकर शुद्धि करवा सकते हैं। परीक्षा समाप्ति उपरांत फोटो व हस्ताक्षर में परिवर्तन की अनुमति किसी भी परीक्षार्थी को नहीं होगी। यदि किसी विद्यालय/स्वयंपाठी या मुक्त विद्यालय परीक्षार्थी का अनुक्रमांक किसी कारण से रोका गया है तो ऐसे विद्यालय/परीक्षार्थी बोर्ड कार्यालय में किसी भी कार्यदिवस में व्यक्तिगत तौर पर वांछित साक्ष्यों/दस्तावेज सहित उपस्थित होकर अपना प्रवेश-पत्र जारी करवा सकते है।

सैकेण्डरी/सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक) छात्र संख्या - उन्होंने बताया कि फरवरी/मार्च-2025 में संचालित होने वाली परीक्षा में 475620 परीक्षार्थी प्रविष्ट होंगे। जिसमें सैकेण्डरी कक्षा के 277460 तथा सीनियर सैकेण्डरी के 198160 परीक्षार्थी शामिल हैं।

सैकेण्डरी/सीनियर सैकेण्डरी (मुक्त विद्यालय) छात्र संख्या - उन्होंने आगे बताया कि मुक्त विद्यालय परीक्षा में प्रदेशभर में करीब 41167 परीक्षार्थी प्रविष्ट होंगे। जिसमें सैकेण्डरी (मुक्त विद्यालय) कक्षा के 15935 परीक्षार्थी तथा सीनियर सैकेण्डरी (मुक्त विद्यालय) के 25232 परीक्षार्थी शामिल हैं।

उन्होंने बताया कि किसी भी प्रकार की कठिनाई आने पर बोर्ड वेबसाइट पर जारी हैल्पलाइन नं० 01664-254309, सैकेण्डरी शाखा की ई-मेल assec@bseh.org.in सीनियर सैकेण्डरी शाखा की  ई-मेल assrs@bseh.org.in व adhos@bseh.org.in पर तुरन्त सम्पर्क करते हुए समाधान करवाना सुनिश्चित करें।

सोमवार, 17 फ़रवरी 2025

लोकसभा आम चुनाव-2024 और दिल्ली विधानसभा चुनाव-2025 के लिए बेस्ट इलेक्टोरल प्रक्रियाओं के लिए राज्य स्तरीय पुरस्कार

संवाददाता 

नई दिल्ली। एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में आयोजित एक विशेष समारोह में माननीय उपराज्यपाल श्री विनय कुमार सक्सेना ने लोकसभा आम चुनाव 2024 और दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान चुनावी प्रक्रिया में उनके असाधारण योगदान के लिए प्रतिष्ठित अधिकारियों को सम्मानित किया।

चुनाव प्रबंधन में उत्कृष्टता को मान्यता देने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्य सचिव श्री धर्मेंद्र कुमार, दिल्ली पुलिस आयुक्त श्री संजय अरोड़ा, एमसीडी आयुक्त श्री अश्विनी कुमार, एनडीएमसी के अध्यक्ष श्री केशव चंद्रा, एलजी के प्रधान सचिव श्री आशीष कुंद्रा, प्रधान सचिव, गृह श्री ए. अनबरसु, दिल्ली की मुख्य निर्वाचन अधिकारी श्रीमती आर. एलिस वाज और विभिन्न विभागों के अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए।

ये पुरस्कार कई श्रेणियों में दिए गए, जिनमें महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे वैधानिक प्रक्रिया पूर्ण करना, आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का प्रवर्तन, आईटी नवाचार, सोशल मीडिया निगरानी, ​​चुनावी आउटरीच और मीडिया प्रबंधन में उत्कृष्ट प्रदर्शन को मान्यता दी गई।

दिल्ली के उपराज्यपाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव-2025 में समग्र चुनाव संचालन में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए श्रीमती आर एलिस वाज को लिए बेस्ट इलेक्टोरल प्रक्रियाओं के लिए राज्य स्तरीय पुरस्कार प्रदान किया।

उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए विशेष श्रेणी के पुरस्कारों में, श्री राजेश कुमार (विशेष सीईओ) को वैधानिक प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए सम्मानित किया गया, जबकि श्री सचिन राणा, आईएएस (अतिरिक्त सीईओ) को आदर्श आचार संहिता लागू करने और सोशल मीडिया की निगरानी में उनकी उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, श्री डी. कार्तिकेयन (अतिरिक्त सीईओ) को आईटी नवाचारों के लिए, श्री मुकेश राजोरा (संयुक्त सीईओ) को चुनावी आउटरीच गतिविधियों के लिए और श्री गौरव यादव (संयुक्त सीईओ) को मीडिया और एमसीएमसी प्रबंधन के लिए सम्मानित किया गया। अन्य पुरस्कार विजेताओं का विवरण इस प्रकार है:

लोकसभा-2024 के आम चुनाव में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए पुरस्कार।


1. रिटर्निंग अधिकारियों के लिए पुरस्कार 

सुश्री ईशा खोसला - PC नई दिल्ली

सुश्री वेदिता रेड्डी - PC उत्तर-पूर्व

श्री यश चौधरी  - PC चांदनी चौक


2. जिला निर्वाचन अधिकारियों (डीईओ) के लिए पुरस्कार

सुश्री ऋषिता गुप्ता - जिला शाहदरा

सुश्री अंकिता आनंद  - जिला उत्तर-पश्चिम

श्री अमोल श्रीवास्तव - जिला पूर्व


3. एसडीएम (चुनाव) के लिए पुरस्कार

श्री वीरेंद्र कुमार - जिला उत्तर-पश्चिम 

श्री तपन कुमार झा - जिला उत्तर 

रविवार, 16 फ़रवरी 2025

केजरीवाल की हठधर्मिता ने डुबोई 'आप ' की नैय्या

तनवीर जाफ़री

दिल्ली की 70 सदस्यों की विधान सभा हेतु हुए 2015 के चुनाव में 70 में से 67 सीटें तथा 2019 में दिल्ली की सातवीं विधानसभा चुनाव में 62 सीटें जीतकर ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त करने वाली आम आदमी पार्टी पिछले दिनों दिल्ली चुनाव की जंग  हार गयी। भारतीय जनता पार्टी को जहां पूर्ण बहुमत के साथ जहां 48 सीटें हासिल हुई वहीं 'आप ' को केवल 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। आप के लिये सबसे बड़ा झटका यह भी रहा कि सत्ता गंवाने के साथ ही उसके राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल सहित पार्टी के और भी कई दिग्गज नेता चुनाव हार गये। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पराजय से  पार्टी के अंत की शुरुआत हो चुकी है। यदि ऐसा है तो वास्तव में इसका ज़िम्मेदार कौन है ? क्या वजह थी कि  दिल्ली विधानसभा चुनाव में 43.57 प्रतिशत मत प्राप्त होने के बावजूद आप को केवल 22 विधानसभा सीटों पर ही जीत हासिल हुई जबकि भाजपा ने मात्र दो प्रतिशत अधिक यानी 45.56 प्रतिशत मत प्राप्त कर 48 सीटों पर जीत दर्ज की। नतीजों से साफ़ है कि भाजपा ने त्रिकोणीय संघर्ष का लाभ उठाकर ही आम आदमी पार्टी से 26 सीटें अधिक हासिल कीं और दिल्ली की सत्ता आप के हाथों से झटक ली। हालांकि हार के बावजूद आम आदमी पार्टी के इस तर्क को भी नकारा नहीं जा सकता कि बावजूद इसके कि बीजेपी के साथ प्रोपेगंडा,सरकार की सारी मशीनरी ,मीडिया,धनबल व बाहुबल सब कुछ थे,फिर भी उसे आप से मात्र दो प्रतिशत ही ज़्यादा वोट मिले हैं।

सवाल यह है कि 2011 में यू पी ए सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद  26 नवंबर 2012 को देश के अनेक बुद्धिजीवियों द्वारा अरविन्द केजरीवाल के राष्ट्रीय संयोजकत्व में स्थापित की गयी आम आदमी पार्टी जोकि न केवल दिल्ली में सत्ता में थी बल्कि वर्तमान समय में देश के समृद्ध राज्य पंजाब में भी सत्तारूढ़ है वही नया नवेला राजनैतिक दल आख़िर किन वजहों से और किन परिस्थितियों में इस अंजाम तक जा पहुंचा कि आज 'आप ' के 'अंत' पर चर्चा छिड़ गयी है ? सच पूछिये तो दिल्ली में भाजपा की संभावित फ़तेह की सुगबुगाहट तो दरअसल उसी समय शुरू हो गयी थी जबकि 'आप ' ने विगत अक्टूबर 2024 को हरियाणा में हुये विधानसभा चुनाव में 'इण्डिया ' गठबंधन घटक का सदस्य होने के बावजूद राज्य की 89 सीटों पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस को हरियाणा की सत्ता में वापसी से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ग़ौरतलब है कि कांग्रेस हरियाणा में 90 में 7 सीटें आप के लिये छोड़ने को तैयार थी परन्तु केजरीवाल की ज़िद थी कि कांग्रेस उसे 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने दे। इस बात पर दोनों दलों में समझौता नहीं हो सका। और आप ने 89 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिये। नतीजतन  AAP को राज्य भर में केवल 1.53% वोट प्राप्त हुए। जिन्होंने कांग्रेस को हराने व भाजपा को जिताने में अहम भूमिका निभाई। 2024 में आप द्वारा 10 सीटें तब मांगीं जा रही थीं जबकि 2019 में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर NOTA से भी काफ़ी कम था। इसी हरियाणा चुनाव परिणाम के बाद ही दिल्ली में भी इसी तरह के चुनाव परिणाम की उम्मीद की जाने लगी थी। 

ज़ाहिर है ऐसे विध्वंसक फ़ैसले लेने के लिये स्वयं अरविन्द केजरीवाल ही ज़िम्मेदार थे। वैसे भी 2012 में 'आप ' अपने गठन के साथ ही उस समय विवादों में आ गयी थी जबकि अन्ना हज़ारे ने केजरीवाल द्वारा आम आदमी पार्टी के रूप में नया राजनैतिक दल बनाने की कोशिश का विरोध किया था। हालांकि अन्ना हज़ारे व केजरीवाल दोनों ही नेताओं को लेकर एक बड़े राजनैतिक विश्लेषक वर्ग का यह भी मानना है कि अन्ना आंदोलन हो या केजरीवाल की तर्ज़ -ए -सियासत,दरअसल यह सब कांगेस के विरोध में तथा भाजपा को फ़ायदा पहुँचाने के लिये रचा गया एक बड़ा राजनैतिक चक्रव्यूह है,अन्यथा क्या कारण है कि जिस जनलोकपाल को लेकर आंदोलन व राजनैतिक दल खड़ा किया गया था उसका ज़िक्र इन्हीं नेताओं के मुंह से अब क्यों सुनाई नहीं देता। पिछले दस सालों में बड़े से बड़े घोटाले उजागर हुये, उनके विरोध अन्ना हज़ारे ने आंदोलन क्यों नहीं किया ? 

इसके अलावा आप के गठन के फ़ौरन बाद ही जिसतरह पार्टी के संस्थापक लोगों व अनेक बुद्धिजीवियों द्वारा पार्टी छोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ उसका भी मुख्य कारण केजरीवाल का ज़िद्दीपन व उनकी हठधर्मिता ही थी। क्या वजह थी कि आम आदमी पार्टी को सबसे पहले चंदा देने वाले पूर्व क़ानून मंत्री सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील शांति भूषण जिन्होंने पार्टी की स्थापना पर 1 करोड़ रुपए का चंदा दिया था, 2014 से ही उनका 'आप' से मोहभंग हो गया ? शांति भूषण ने उसी समय केजरीवाल को अनुभवहीन, दिल्ली विधानसभा चुनावों में टिकट बंटवारे में गड़बड़ी करने व पार्टी में मनमानी चलाने जैसे अनेक आरोप लगाए थे। इसी तरह केजरीवाल के एक और ख़ास साथी एक्टिविस्ट आशीष खेतान, एक प्रसिद्ध टीवी न्यूज़ चैनल के मैनेजिंग एडिटर के पद से इस्तीफ़ा देकर आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले आशुतोष,पार्टी का थिंक टैंक व पार्टी की क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाले वाले प्रशांत भूषण जैसे साथियों को केजरीवाल संभाल नहीं सके। इसी तरह राजनीतिक विचारक योगेंद्र यादव को जोकि आम आदमी पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाते थे उन्हें भी प्रशांत भूषण के साथ ही पार्टी विरोधी गतिविधिय़ों के आरोप में पार्टी से निकाल दिया गया। समाजशास्त्री आनंद कुमार,पैथोलॉजिस्ट अंजली दमानिया, सामाजिक कार्यकर्ता मयंक गांधी,किरन बेदी ,शाज़िया इल्मी, विनोद कुमार बिन्नी,कपिल मिश्रा,एमएस धीर सहित और भी कई नेता या तो पार्टी छोड़ गये या फिर निष्क्रिय हो गये। ऐसे सभी नेता केजरीवाल के साथ काम कर पाने में स्वयं को असहज महसूस कर रहे थे। परिणामस्वरूप अनेक साथी नेताओं के मना करने के बावजूद केजरीवाल अपनी ज़िद में ही दिल्ली में विवादित शराब नीति लाये जोकि उनकी राजनैतिक तबाही व बदनामी का कारक साबित हुई।   

अब सत्ता से हटते ही भाजपा ने केजरीवाल को राजनैतिक रूप से समाप्त करने का प्लान तैयार कर लिया है। जहाँ भाजपा की गिद्ध दृष्टि अब पंजाब की आप सरकार पर जा टिकी है वहीँ भाजपा ने एम सी डी के भी फ़िलहाल तीन 'आप ' पार्षद झटक लिये हैं। साथ ही केंद्रीय सतर्कता आयोग ने केजरीवाल के 6 फ़्लैग स्टाफ़ बंगले के नवीनीकरण पर हुए बेतहाशाख़र्च की जांच का आदेश भी दे दिया है। भाजपा द्वारा केजरीवाल के इस सरकारी आवास को 'शीश महल' का नाम दिया गया था तथा इसे उनके विरुद्ध चुनावी मुद्दा बनाया गया था। बहरहाल मात्र दिल्ली की हार से आप के अंत की भविष्यवाणी करना तो फ़िलहाल मुनासिब परन्तु इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि केजरीवाल की ज़िद व उनकी हठधर्मिता के चलते ही 'आप ' की नैय्या डूब रही है। 

संपर्क: 9896219228

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) एवं डी.एल.एड. प्रथम वर्ष (रि-अपीयर) परीक्षा फरवरी/मार्च-2025 के तिथि-पत्र में हुआ संशोधन

संवाददाता

भिवानी।  हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड सचिव श्री अजय चोपड़ा, ह.प्र.से. ने आज यहां बताया कि सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) एवं डी.एल.एड. प्रथम वर्ष (रि-अपीयर) परीक्षाओं के तिथि-पत्र में संशोधन किया गया है।

उन्होंने बताया कि सीनियर सैकेण्डरी (शैक्षिक/मुक्त विद्यालय) की 01 मार्च को होने वाली Hindi Core, Hindi Elective, English Special for foreign Student in Lieu of Hindi Core विषय की परीक्षा 26 मार्च को तथा 26 मार्च को होने वाली Sanskrit, Urdu, Bio-Technology की परीक्षा 19 मार्च को संचालित होंगी। 27 मार्च को होने वाली Computer Science, IT&ITES(Information Technology & Enabling Services, For Govt. Model Sr. Sec. School, SLCE Sec-28 Faridabad Only) की परीक्षा 13 मार्च एवं 01 अप्रैल को होने वाली Physical Education की परीक्षा 28 मार्च, 2025 को संचालित होगी। इसके अतिरिक्त 02 अप्रैल को होने वाली Retail(NSQF), Automotive(NSQF), Private Security(NSQF), IT-ITES(NSQF), Healthcare(NSQF), Physical Education(NSQF), Beauty& Wellness(NSQF), Tourism and Hospitality(NSQF), Agriculture(NSQF), Banking, Financial Services & Insurance(NSQF), Apparel, Made-ups and Home Furnishing(NSQF), Office Secretary ship and Stenography in Hindi, Office Secretary Ship and Stenography in English, Sanskrit Vyakran Part-2(Aarsh Padhdti Gurukul), Sanskrit Vyakran Part-2 (Paramparagat Sanskrit Vidyapeeth) विषय की परीक्षा 27 मार्च तथा 28 मार्च  को होने वाली Agriculture, Philosophy विषय की परीक्षा अब 05 मार्च, 2025 को संचालित करवाई जाएगी।

उन्होंने आगे बताया कि डी.एल.एड. प्रथम वर्ष (रि-अपीयर) की 01 मार्च को होने वाली DE-102-Education, Society, Curriculum and Learner विषय की परीक्षा 25 मार्च को संचालित करवाई जाएगी। शेष परीक्षाओं की तिथियां यथावत् रहेंगी।

बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

दिल्ली भाजपा की जीत में मुस्लिम मतों का मिथक

अवधेश कुमार

भाजपा जब भी कोई चुनाव जीती है मुस्लिम मतों को लेकर विश्लेषण सामने आते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के साथ टीवी चैनलों से लेकर समाचार पत्रों, वेबसाइटों ,यूट्यूब चैनलों पर ऐसी ध्वनियां निकल रही है कि मुसलमानों के एक बड़े वर्ग ने उसके पक्ष में मतदान किया। क्या वाकई ऐसा हुआ है? इमामों का एक संगठन चलाने वाले मौलाना ने मतदान के बाद वीडियो जारी करते हुए कहा कि मैंने भाजपा को मत दिया है। वे टीवी चैनलों पर दिखते हैं इसलिए उनका चेहरा मोटा-मोटी पहचाना है और भाजपा एवं संघ के विरुद्ध उनकी कट्टरता भी सब सामने है। उन्होंने कहा कि मैंने वोट इसलिए दिया क्योंकि कहा जाता है कि मुसलमान एकजुट होकर भाजपा के विरुद्ध मतदान करते हैं। इस धारणा को तोड़ने के लिए मैंने वोट दिया। उन्होंने दूसरा कारण आप के द्वारा मुसलमानों के विरुद्ध आचरण को बताया। दरअसल, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल द्वारा घोषित इमामों का वेतन चुनाव तक 18 महीना से नहीं मिला था। इनका संगठन उसके लिए धरना प्रदर्शन कर रहा था जिसका संज्ञान तक केजरीवाल और उनके साथियों ने नहीं लिया। क्या उनके अलावा किसी अन्य बड़े मुस्लिम चेहरे ने सामने आकर परिणाम के पहले घोषित किया कि उन्होंने भाजपा को मत दिया है? भाजपा की जीत के बाद लोग टीवी कैमरों के सामने आए और कह दिया कि हम नरेंद्र मोदी जी और योगी जी अच्छा शासन चला रहे हैं, इसलिए समर्थन दिया है।

दरअसल, मुस्लिम प्रभाव वाले मुस्तफाबाद और जंगपुरा सीट पर भाजपा की विजय के बाद से यह ध्वनि ज्यादा गुंजित हुई है। ये दोनों क्षेत्र मुस्लिम प्रभाव वाले हैं। अभी तक धारणा थी कि बगैर उनके समर्थन के कोई उम्मीदवार चुनाव जीत नहीं सकता। दिल्ली में 11-12 ऐसे क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक माने जाते हैं। इसके अलावा भी 7-8 क्षेत्रों में मुसलमानों का प्रभाव है। इनमें चार सीटें भाजपा ने जीती हैं। किंतु इसके अलावा ये सारी सीटें एकपक्षीय आप को गई है। पहले मुस्तफाबाद को देखें। मुस्तफाबाद में भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट ने आप के आदिल अहमद खान को 17 हजार 578 वोटों से हराया। उन्हें 85 हजार 215 तथा आदिल अहमद को 67 हजार 637 मत मिले। यहां एआईएमआईएम के उम्मीदवार और 2020 दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को 33 हजार 474 वोट मिला और कांग्रेस के अली मेहंदी को केवल 11 हजार 763।  ताहिर हुसैन ने जब कहा कि आपकी लड़ाई हमने लड़ी और आपके कारण जेल में है तो मुसलमानों के एक बड़े वर्ग की सहानुभूति मिली। ताहिर हुसैन को इतना वोट नहीं मिलता तो बिष्ट नहीं जीत पाते। आप सोचिए ,कांग्रेस के उम्मीदवार को इतना कम मत मिला। 

 जंगपुरा में तरविंदर सिंह मारवाह किसी तरह 675 मतों से पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को हरा पाए। उन्हें 38 हजार 859,  मनीष सिसोदिया को 38 हजार 184 और कांग्रेस के फरहाद सूरी को 7 हजार 350 वोट मिला। मुस्लिम मतदाताओं ने तरविंदर के पक्ष में मतदान किया होता तो जीत का अंतर ज्यादा होता। उनकी और पारिवार कि पृष्ठभूमि कांग्रेस की है। इस कारण मुस्लिम वोट उनको मिलता रहा है। इस बार आंकड़े ऐसा नहीं बताते। कांग्रेस के मुस्लिम मत काटने का उनको लाभ मिला।

ईमानदारी से विश्लेषण किया जाए तो साफ दिखाई देगा कि 2020 के दंगों में मुस्लिम नेताओं की भूमिका देखने के बाद गैर मुसलमानों के बीच थोड़ी एकजुटता हुई। दूसरे, पिछले लोकसभा चुनाव एवं महाराष्ट्र व हरियाणा विधानसभा चुनावों में राजनीतिक, मजहबी मुस्लिम नेताओं, शीर्ष मुस्लिम व्यक्तियों के द्वारा वोट को इस्लाम और दीन का विषय बनाने तथा भाजपा के विरुद्ध मतदान करने के फतवे आदि के कारण एकजुटता का सुदृढ़ीकरण हुआ है। अरविंद केजरीवाल इसे भांपते हुए ही हिंदुत्व पर मुखर हुए तथा पुजारियों और ग्रंथियों तक को 18। हजार वेतन देने की घोषणा की। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने वंदे मातरम और भारत माता की जय का नारा लगाया तथा भाजपा की ही तरह भारत को विश्व गुरु एवं महाशक्ति बनाने के लिए भाजपा को हराने का हवन कर दिया। इस कारण हिंदुत्व के मुद्दे पर वैसी क्षति नहीं हुई जैसी आईएनडीआईए अन्य दलों को हो रही है।

दिल्ली में सबसे बड़ी दो जीत आप को मिली और वह मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्र में ही। आप प्रत्याशी आले मुहम्मद इक़बाल को मटियामहल से इस चुनाव में 42 हजार 724 वोट के अंतर से सबसे बड़ी जीत हासिल हुई। सीलमपुर से आप के चौधरी जुबेर अहमद 42 हजार 477 मतों से जीते जो दूसरी बड़ी जीत है। इससे पता चलता है कि मुस्लिम वोटो का रुख क्या रहा।

मटियामहल से आले मुहम्मद ने भाजपा की दीप्ति इंदौर को हराया। आले को 58 हजार 120 और दिप्ती को केवल 15 हजार 396 मत मिला। भाजपा प्रत्याशी आप प्रत्याशी से पहले राउंड में ही पीछे गए। यहां कांग्रेस के असीम अहमद को केवल 10 हजार 295 मत मिला। सीलमपुर में चौधरी जुबेर को 79 हजार 09 और भाजपा के अनिल शर्मा को 36 हजार 532 मत मिले और कांग्रेस के अब्दुल रहमान 16 हजार 551 तक सिमट गये। चांदनी चौक के 10 विधानसभा सीटों में चार मुस्लिम बहुल हैं। चारों में एक भी भाजपा नहीं जीत सकी । बल्लीमारान  में भाजपा के पार्षद कमल बागड़ी को केवल 27 हजार 181 और दिल्ली कांग्रेस के प्रमुख मुस्लिम चेहरे और जाने-माने नेता हारून यूसुफ भी 13 हजार 569  मत पा सके जबकि आप के इमरान हुसैन को 57 हजार 04 मत मिला। सदर बाजार में आप के सोमदत्त को 56 हजार 177 वोट मिला और उन्होंने भाजपा के मनोज कुमार जिंदल को 6307 वोट से हराया। यह भी मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्र है लेकिन यहां हिंदुओं और गैर मुसलमानों की भी बड़ी आबादी है। इस कारण मनोज जिंदल ने 49 हजार 870 मत पाया और कांग्रेस के अनिल भारद्वाज को 10 हजार 057 ही मिला। चांदनी चौक से कांग्रेस के मुदित अग्रवाल को केवल ने 9 हजार65 वोट मिले जबकि आप के पुनरदीप सिंह को 38 हजार 993 और भाजपा के सतीश जैन को 22 हजार 421।

इन आंकड़ों से साफ हो जाता है कि ज्यादातर क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं ने पूर्व की तरह भाजपा को हराने के लिए रणनीतिक मतदान किया। बहुचर्चित ओखला क्षेत्र आइए। ओखला में आप के अमानतुल्लाह खान को 88 हजार 943 जबकि एआईएमआईएम के सिफ़उर रहमान को केवल 3 हजार 958 मत मिला और भाजपा के मनीष चौधरी को 65 हजार 304। बाबरपुर में गोपाल राय को 76 हजार 192 और भाजपा के अनिल वशिष्ठ को 57 हजार 198 मत  मिला। यहां भी कांग्रेस के मोहम्मद इशराक को केवल 8 हजार 797 मत प्राप्त हुए। गोकुलपुर से आप के सुरेंद्र कुमार ने 80 हजार 504 मत पाकर भाजपा के प्रवीण निमेष को 8 हजार 260 मतों से पराजित किया जिन्हें 72 हजार 297 मत मिला और कांग्रेस के ईश्वर सिंह केवल 5 हजार 905 तक सीमित रह गए।  करावल नगर में कपिल मिश्रा को 1 लाख 7367 वोट मिला जबकि आप के मनोज त्यागी को 84 हजार 12 और कांग्रेस के पीके मिश्रा को 3921। गांधीनगर में भी अरविंदर सिंह लवली केवल 12 हजार 748 मतों से जीते। क्यों? उन्हें 56 हजार 858 मत मिला जबकि आप के नवीन चौधरी को 44 हजार 110 एवं कांग्रेस के कमल अरोड़ा को 3 हजार 453। अरविंदर सिंह कांग्रेस से आए हैं और मुसलमानों के बीच भी उनका अच्छा प्रभाव माना जाता रहा है। वैसे गांधीनगर और करावल नगर सीट पिछली बार भी भाजपा के खाते में गया था और कारण यही था कि कांग्रेस ने ठीक-ठाक वोट काटा । सीमापुरी आरक्षित सीट है किंतु यहां भी मुस्लिम मत प्रभावी है। यहां आप के वीर सिंह धिंगाना ने 10 हजार 368 मतों से जीत हासिल की। उन्हें 66 हजार 353 और भाजपा के कुमारी रिंकू को 55 हजार 985 मत मिले तथा कांग्रेस के राजेश लिलोठिया केवल 11 हजार 823 मत पा सके। 

 इस तरह मतों के आंकड़ों का विश्लेषण करेंगे तो कहीं नहीं दिखेगा कि मुस्लिम मत भाजपा की ओर गया। भाजपा के सदस्य तथा एक दो प्रतिशत कहीं मतदान कर दें तो अलग बात है, अन्यथा मुस्लिम मतों की प्रवृत्ति भाजपा को हराने की ही रही। दरअसल , अलग-अलग मुस्लिम संगठनों, इमामों , मौलवीयों, मुल्लाओं, मुस्लिम बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों आदि प्रमुख चेहरों ने हिंदुत्व विचारधारा के साथ भाजपा की इस्लाम विरोधी , दीन विरोधी छवि बना दिया है। इस कारण उनका वोट मिलना तत्काल मुश्किल है। भविष्य के बारे में अभी कुछ कहना कठिन है।

 पता– अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली- 110092 ,मोबाइल 981027208



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