शुक्रवार, 31 मई 2024
FARQ SIRF ITNA SA THA
भारत के समाचार पत्रों के महापंजीयक कार्यालयों की मनमानी नीतियों का कड़ा विरोध करने के लिए आंदोलन करने पर विचार
कुछ रह तो नहीं गया
तस्वीर वैसी नहीं जैसा विरोधी बता रहे
अवधेश कुमार
अब जब लोकसभा चुनाव का एक चरण बाकी है नेताओं, पार्टियों और विश्लेषकों के दावों पर बात किया जाना आवश्यक है। विरोधी दलों, नेताओं और उनका समर्थन करने वाले मुख्य मीडिया, सोशल मीडिया के पत्रकारों ,एक्टिविस्टों ने ऐसा माहौल बनाया है मानो 4 जून के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का अंत हो जाएगा और उसकी जगह विपक्ष के गठबंधन की सरकार बनेगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब चौथे दौर के साथ बहुमत एवं पांचवें दौड़ के साथ 310 सीटों तक पहुंचने की बात की तो ऐसे लोगों ने उसका उपहास उड़ाना शुरू कर दिया। आजकल डिबेट में भी पूछा जा रहा है कि अब भाजपा 400 से आकर 300 की बात कैसे करने लगी है? न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, न गृह मंत्री अमित शाह ने कभी कहा है कि हमारा 400 पार का दावा खत्म हो गया है। सरकार में वरिष्ठ क्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह दूसरे नंबर पर आते हैं लेकिन नेतृत्व और नियंत्रण के आधार पर देखें तो प्रधानमंत्री के बाद गृह मंत्री अमित शाह ही सरकार और संगठन के दूसरे मुख्य निर्णायक हैं। इन दोनों ने 400 पार का दावा छोड़ नहीं है तो विरोधियों की बात कैसे मान ली जाए कि भाजपा ने 300 तक का मन बना लिया है। 4 जून को किसको कितनी सीटें आएंगी इसकी भविष्यवाणी जोखिम भरी होगी। किंतु क्या देश में ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि बहुसंख्य मतदाता मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की सीमा तक विद्रोह कर दे? इसी के साथ यह भी प्रश्न है कि क्या विपक्ष ने अपनी छवि ऐसी बना ली है कि लोग वर्तमान परिस्थितियों में उनके हाथों सत्ता सौंपने का निर्णय कर लें?
निष्पक्ष होकर विचार करेंगे तो इन दोनों प्रश्नों का उत्तर हां में नहीं आ सकता है। तीन चरणों के मतदान में कमी से माहौल ऐसा बनाया गया मानो लोग मोदी सरकार से रुष्ट थे जिस कारण मतदान गिरा है। यह भी अजीब बात है कि सामान्यतः मतदान घटने को सत्ता के पक्ष का संकेत माना जाता था। हालांकि 2010 से मतदान के घटने या बढ़ने से किसी की सत्ता जाने या आने के संकेत की धारणा खत्म हो चुकी है। विपक्ष का यह दावा कैसे मान लिया जाए कि भाजपा के मतदाता नहीं आ रहे हैं और उनके मतदाता निकल रहे हैं? क्या जिन परिस्थितियों में और जिन अपेक्षाओं से 2014 में भारत के लोगों ने 1984 के बाद एक नेता और दल के नेतृत्व में बहुमत दिया और 2019 में सशक्त किया उनके संदर्भ में ऐसी निराशाजनक प्रदर्शन सरकार है कि लोग उसे वाकई हटाने के लिए तैयार हो जाएं?
सच यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ने उन परिस्थितियों और अपेक्षाओं के संदर्भ में कुछ ऐसे काम किए हैं जिनकी उम्मीद उनके अनेक समर्थकों ने नहीं की थी। भाजपा को राजनीति में संघ विचारधारा का प्रतिनिधि माना जाता है। हिंदुत्व, हिंदुत्व आधारित राष्ट्र भाव और वैश्विक दर्शन इसके मूल में है। इस कारण देश का बहुत बड़ा वर्ग उससे हिंदुत्व के मामलों पर विचार और व्यवहार में प्रखरता की उम्मीद करता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने पहले दिन से इस दिशा में पूर्व सरकारों से अलग मुखर भूमिका निभाने की कोशिश की। यह नहीं कह सकते कि हिंदुत्व के मामले में जितनी अपेक्षाएं थीं सब पूरी हुई पर जो कमी पहली सरकार में थी वह अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद काफी हद तक खत्म हुईं हैं। उदाहरण के लिए किसी ने कल्पना नहीं की थी कि सरकार धारा 370 को एक दिन में समाप्त कर देगी। इसी तरह मुस्लिम समुदाय में समाज सुधार की दृष्टि से एक साथ तीन तलाक जैसे विषय को जिसे गलत तरीके से मजहब से जोड़ दिया गया है उसे खत्म करने का कानून बनाया जाएगा इसकी भी अपेक्षा नहीं थी। 1985 में शाहबानो प्रकरण के बाद भारत के राजनीतिक प्रतिष्ठान में धारणा बन गई थी कि मुसलमान से संबंधित कुरीतियों ,गलत प्रथाओं आदि को यूं ही छोड़ दिया जाए अन्यथा समुदाय कट्टरपंथियों के आह्वान पर उथल-पुथल मचा देगा। अयोध्या में वाकई श्री राम मंदिर बन जाएगा और रामललि की प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी इसकी भी उम्मीद बहुत कम लोगों को थी। उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया लेकिन सभी केंद्र में सत्ता का नियंत्रण मोदी और शाह के हाथों नहीं होता तथा उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार नहीं होती तो न समय सीमा में मंदिर का निर्माण होता और न रामलला की प्रण प्रतिष्ठा हो पाती। विदेश नीति में इस समय भारत संपूर्ण विश्व में उस प्रभावी और विश्वसनीय स्थान पर है जहां एक दूसरे के दुश्मन देश या देशों का समूह इसके साथ संबंध बनाए रखने के लिए तत्परता दिखा रहे हैं। पहली बार इतनी प्रखरता से भारत अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अपनी बात रख रहा है और विश्व समुदाय सुन भी रहा है। चीन जैसा आर्थिक एवं सैन्य दृष्टि से शक्तिशाली देश हमारे विरुद्ध है। उतना सशक्त न होते हुए भी विश्व कूटनीति में हम सफलतापूर्वक मुकाबला कर रहे हैं। विश्व भर में भारत में वांछित आतंकवादियों की लगातार हत्याएं हो रही हैं। कौन कर रहा है कैसे कर रहा है इस विषय पर अलग-अलग मत हो सकते हैं। कनाडा ने भारत सरकार पर आरोप लगाया तो अमेरिका ने भी आतंकवादी पन्नू की हत्या के प्रयास के पीछे भारत की भूमिका का उल्लेख किया है। पाकिस्तान लगातार कह रहा है कि भारत की एजेंसियां ही उसके देश के अंदर नागरिकों की हत्याएं करा रहा है। पाकिस्तान में जितने को मारा गया वह सब आतंकवादी थे। भारत विरोधी आतंकवादियों में पूरी दुनिया के अंदर दहशत पैदा हो चुका है। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में दुनिया की सबसे तेजी से विकास करता हुआ देश भारत है। हमारा शेयर बाजार जबरदस्त ऊंचाइयों पर है। ऐसा नहीं है कि लोगों की सारी अपेक्षाएं पूरी हो गई हैं और हर व्यक्ति सुख समृद्धि और निश्चिंतता की अवस्था में पहुंच गया है। क यूपीए सरकार की निराशाजनक स्थिति से उलट सकारात्मक और आशाजनक तस्वीर अवश्य है।
उम्मीदवारों के चयन, गठबंधन आदि को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं, नेताओं और समर्थकों के अंदर असंतोष और नाराजगी देखी गई है जो स्वाभाविक है मोदी और शाह का नेतृत्व, प्रबंधन, नियंत्रण, जगह-जगह नेताओं से संवाद करने, उन्हें संभालने की क्षमता तथा उसके साथ केंद्र से प्रदेश के स्तरों पर विश्वसनीय लोगों के समूह की सक्रियता का सामना विपक्ष करने की स्थिति में नहीं है। भाजपा का समर्थन और विरोध दोनों के पीछे उसकी विचारधारा को लेकर निर्मित सोच होती है। भारत और दुनिया भर के विरोधी अगर मोदी सरकार को हर हाल में सत्ता से हटाना चाहते हैं तो उसके पीछे मूल कारण इस विचारधारा के आधार पर खड़ा होता हुआ स्वाभिमानी भारत ही है जिसे वह पसंद नहीं करते या जो उनके लिए खतरा हो सकता है। भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग इस विचारधारा को समझ कर खड़ा है और उसे लगता है कि हमारे सामने राजनीति में एक मात्र विकल्प इस समय भाजपा ही है। विरोधी भारतीय राजनीति में आए इस बदलाव की शक्ति को अभी तक नहीं पहचान सके। प्रधानमंत्री ने अपने इंटरव्यू में कहा कि पहले केवल मोदी करते थे और बाद में इसमें योगी को भी जोड़ लिया। कानून व्यवस्था के प्रति योगी सरकार की सख्ती और सांप्रदायिकता के आरोपों की चिंता न करते हुए कठोरतापूर्वक कदम उठाने के कारण लोगों में अलग प्रकार की धारणा बनी है। विरोधियों का एक वर्ग हमेशा दुष्प्रचार करता रहता है कि अमित शाह योगी की लोकप्रियता से ईर्ष्या रखते हैं। सच यही है कि उनको मुख्यमंत्री बनाने के पीछे मोदी और शाह दोनों की भूमिका थी। ऐसी स्थिति में यह मान लेना कि विपक्ष के प्रचार के अनुरूप लोगों ने सरकार को हटाने का मन बना लिया है किसी के गले नहीं उतर सकता। आईएनडीआईए घटकों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जिम्मेवार और देश के लिए दूरगामी वाली सोच, कार्ययोजना एवं नेतृत्व की छवि प्रस्तुत नहीं की है। इसलिए यह मत मानिए कि देश भर के मतदाता उनके दावों के अनुरुप मतदान कर रहा है।
क्या वनवासी-मुसहर मोदी सरकार में समाज की मुख्यधारा में आ सकते हैं
बसंत कुमार
पिछली दीपावली के अवसर पर मुझे अपने गृह जनपद जौनपुर से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट देखने को मिली जिसमे वहां के वरिष्ठ भाजपा नेता व सामाजिक कार्यकर्ता राजेश सिंह पटाखों के साथ पास की मुसहर बस्ती में उनके बच्चों के साथ दीपावली का त्योहार मना रहे थे। उस पोस्ट में पटाखों की रोशनी तो दिखाई दे रही थी पर मुसहर बच्चों के चेहरे की उदासी और उनके तन पर मैले कुचैले फटे कपड़े उनकी बदहाली की दास्तां भी सुना रहे थे कि समाज में गरीबों के साथ खुशिया मनाने का दिखावा करने वाले लोग सही मायने में उनके साथ त्योहार मनाकर उनके साथ खुशिया बांटते हैं या समाज में दिखावा करके उनका मजाक उड़ाते हैं। यह शत प्रतिशत सही है कि श्री राजेश सिंह का मुसहर बस्ती के बच्चों के साथ दीपावली मनाने के पीछे उनकी मंसा अच्छी थी पर समाज के ठेकेदारों को इन मुसहर बस्तियों में रह रहे बच्चो की गरीबी, फटे कपड़े और बच्चों की अशिक्षा दिखाई नहीं देती।
इस विषय में वर्ष 2014 को एक वाक्या मुझे याद है उस समय आम चुनाव चल रहे थे और उत्तर प्रदेश की देवरिया लोकसभा सीट से भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक श्री कलराज मिश्र चुनाव लड़ रहे थे और उनके चुनाव प्रचार की टीम में मैं भी शामिल था और वहां लोग मुझे कलराज जी का हनुमान कहते थे। मैं चुनाव प्रचार करते हुए वहां की मुसहरी टोला नामक बस्ती में चला गया और नदी किनारे बसी बस्ती में न कोई स्कूल था, न कोई दुकान थी, न कोई चिकित्सक था बस जिस रास्ते मुसहर बस्ती में घुसा जा सकता था वहां एक देशी शराब की दुकान थी और अगल-बगल चखना (अंडा, नमकीन आदि) बेचने के ठेले थे, जिसका मुख्य उद्देश्य यह था कि शाम को 100 रुपए की दिहाड़ी कमा कर लौटने वाला मुसहर मजदूर उस ठेके पर घर पहुंचने से पहले 60 रु. ठेके पर खर्च कर दे बाकी 40 रु. में उसके घर का खर्च चले। अब आप समझ सकते है कि इन पैसों में उनके बच्चे और बूढ़े खाएंगे क्या और बच्चों को पढ़ायेंगे क्या, मैंने सोचा की अब मोदी जी प्रधानमंत्री बनेंगे और कलराज जी मंत्री बनेंगे तो शायद इस बस्ती के दिन बदलेंगे क्या, पर मोदी जी प्रधानमंत्री बने, कलराज जी मंत्री बने पर, उनकी स्थिति जस की तस रही क्योंकि वहां के चाटुकारों ने मंत्री जी को ऐसा घेरा कि मैं चुनाव के बाद कभी देवरिया जा ही नहीं पाया। अब ठीक दस वर्ष बाद आम चुनाव पुन: हो रहे हैं और उम्मीद है कि मोदी जी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे फिर मेरे मन में प्रश्न उठ रहा है कि क्या बनवासी मुसहर समाज की मुख्य धारा में शामिल हो पाएंगे।
यह सिर्फ मुसहरी टोला बस्ती के मुसहरों का हाल नहीं है सदियों से गांव के एक कोने में रहने वाले मुसहर की हालत पूरे देश में ऐसी ही है। पहले के समय में गांव में शादी-विवाह में पत्तल और दोने बनाकर देते और शादी विवाह में बचा-खुचा ले जाते। इनके बच्चों को स्कूल जाने के विषय में सोचना भी दुस्कर था। बच्चे बड़े होते ही पेड़ों पर चढ़कर पत्तल बनाने के लिए पत्ता इकट्ठा करते या ईट के भट्ठे पर बोझाइ करते या जमींदार के यहां ठटवारी (बंधुआ मजदूरी) करते। यही जीवनपर्यंत पेशा रहता, पर जब से शादियों में पेपर प्लेट्स का चलन हो गया और खाना बनाने और खिलाने का काम कैटरर्स ने शुरू कर दिया तब से मुसहरों का दोना पत्तल बनाने का काम भी ठप्प हो गया और इनकी जिंदगी उन्ही अंधेरो में भटक रही है जहां सदियों पहले थी और आजादी के 7 दशक के बाद भी इनके जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ा।
ब्रिटिश इंडिया के समय में एक क्रिमिनल ट्राईबस एक्ट आया जिसके अंतर्गत जब कोई भी अपराध होता था तो पुलिस मुसहरों सहित अन्य आदिवासियों को संदेह के घेरे में ले लेती थी। आजाद भारत में ये एक्ट तो समाप्त हो गया पर उत्तर भारत में मुसहरों के साथ ऐसा ही सलूक किया जाता है। 70-80 के दशक में उत्तर प्रदेश में जब वी.पी. सिंह मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने डाकू उन्मूलन अभियान शुरू किया पर उस अभियान में डाकू तो मरे नहीं पर डाकू कहकर सैकड़ों मुसहरों को मौत के घाट उतार दिया गया।
आज भी जब किसी अपराध में गिरफ्तारी के लिए दबाव पड़ता है तो पुलिस द्वारा इन बेचारे मुसहरों को गिरफ्तारी दिखाकर जेल में डाल दिया जाता हैं आए भी उत्तर प्रदेश और बिहार की जेलों में सैकड़ों मुसहर जेल में बंद मिल जाएंगे, जिन्हें चोरी, गांजा चरस आदि नशीले पदार्थों के धंधे में लिप्त होने के आरोप में डाल दिया जाता है जबकि वास्तविकता यह है कि इन बेचारों का इन अपराधों से कोई वास्ता नहीं होता उन्हें तो असली गुनहगार को बचाने के उद्देश्य से बलि का बकरा बना दिया जाता है क्योंकि इनका इतनी हैसियत नहीं होती कि ये अपने को बेगुनाह साबित करने हेतु वकील कर सके। गावों में ग्राम प्रधानों के इनके प्रति पूर्वग्रहों के चलते इन्हे बीपीएल और सरकारी आवास की सुविधाएं नहीं मिल पाती है और ये आज भी समाज से दूर झोपड़ियों में बनवासी जंगली की तरह रहने को मजबूर है।
देश में वर्ष 2014 के चुनावों में जहां भारत की राजनीति में नरेंद्र मोदी नाम के सितारे का उदय हुआ और वहीं बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने दलितों के लिए अपनी सहानुभूति दिखाने के लिए मुसहर परिवार में जन्मे जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया और उन्होंने अपने 14 माह के कार्यकाल में दलितों पिछड़ों के कल्याण से संबंधित लिए और मुसहरों सहित अन्य वनवासियों के समाज की मुख्यधारा से जुड़ने की संभावना दिखने लग गई थी पर नीतीश जी को जीतन राम मांझी जी का फैसले लेने वाले मुख्यमंत्री का रूप पसंद नहीं था। उन्हें तो ऐसा दलित मुख्यमंत्री चाहिए था जो रिमोट से चले, इसी लिए उन्हें पूरा कार्यकाल देने के बजाय कुछ ही माह में गद्दी से उतार दिया गया और मुसहरों एवं अन्य वनवासियों को समाज की मुख्यधारा में लाने का स्वप्न अधूरा रह गया।
जैसा कि संभावना दिख रही है कि 4 जून की मतगणना के बाद के मोदी जी तीसरी बार देश की बागडोर सम्हालेंगे और मुसहर परिवार में जन्मे जीतन राम मांझी पहली बार ससद सदस्य के रूप में देश की राजनीति में प्रवेश करेंगे और यह देश के सभी मुसहरों के लिए गौरव का क्षण होगा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी यह भली भांति जानते हैं कि जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा का एनडीए से गठबंधन होने के कारण पूरे उत्तर भारत में मुसहर समेत अन्य महादलितों ने भाजपा के समर्थन में वोट दिया है और जीतन राम मांझी के बिहार के मुख्यमंत्री और मंत्री के रूप में लिए गए निर्णयों और उनके अनुभव के कारण उनको मोदी सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलना भी लगभग तय लगता है तो क्या यह मान लिया जाए कि सदियों से समाज की धारा से अलग थलग पड़े वनवासी मुसहरों का समाज की मुख्य धारा में शामिल होने का समय आ गया है।
गुरुवार, 30 मई 2024
अग्नि सुरक्षा के लिए सहयोग की आवश्यकता है, दोषारोपण की नहीं
संवाददाता
नई दिल्ली। विवेक विहार में बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल में हुई दुखद घटना के मद्देनजर, डीएमए ने अग्नि सुरक्षा में सुधार के लिए एकता और सहयोग का आह्वान किया। विवेक विहार में बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल में हुई घटना एक ऐसी त्रासदी है जो राजधानी को कई वर्षों तक परेशान करेगी। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं।
घटना के बाद के दिनों में, नर्सिंग होम के अवैध रूप से संचालित होने और अग्नि सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन करने के बारे में मीडिया में कई टिप्पणियां आई हैं। विभिन्न गुटों की ओर से राजनीतिक टिप्पणियों की झड़ी भी लगी हुई है। हम इनकी कड़ी निंदा करते हैं और महसूस करते हैं कि यह समय सभी संबंधित संस्थाओं के लिए मतभेदों को दूर करने और भविष्य में आग से संबंधित त्रासदियों को रोकने के लिए सहयोग करने का है।
नीचे नर्सिंग होम के लिए अग्नि मानदंडों के संबंध में स्थिति की पृष्ठभूमि और हमारे शहर में ऐसी आपदाओं को दोबारा होने से रोकने के लिए डीएमए द्वारा नियोजित उपायों को संक्षेप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
दिल्ली में अस्पतालों और नर्सिंग होम के लिए शासी निकाय, स्वास्थ्य सेवा निदेशालय (DHS), दिल्ली नर्सिंग होम पंजीकरण अधिनियम 1953 के आधार पर कई दशकों से दिल्ली में नर्सिंग होम का पंजीकरण कर रहा है। पंजीकरण के नवीनीकरण के लिए अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता 2019 में शुरू की गई थी। हालाँकि, 2020-2021 में कोविड महामारी के प्रकोप के साथ, सभी अस्पतालों को पंजीकरण विवरण या अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र की परवाह किए बिना अपनी पूरी बिस्तर क्षमता का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। महामारी की गंभीरता और उस समय राजधानी में निराशाजनक स्थिति को देखते हुए यह समझ में आता था।
2022 में, DHS ने उन नर्सिंग होम के लिए पंजीकरण नवीनीकरण रोकना शुरू कर दिया, जिनके पास अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं था। हालाँकि, यह तुरंत स्पष्ट हो गया कि पहले से मौजूद इमारतों के लिए NOC प्राप्त करने के लिए बुनियादी ढाँचे की आवश्यकताएँ अव्यावहारिक थीं, यदि असंभव नहीं थीं। इसके अलावा, उन परिसरों पर संस्थागत अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता की प्रयोज्यता जो मूल रूप से आवासीय थे, लेकिन MPD21 के अनुसार मिश्रित भूमि उपयोग के तहत अस्पतालों के रूप में कार्य करने की अनुमति थी, स्पष्ट नहीं थी। यह मामला वर्तमान में विचाराधीन है। 2022 से विचाराधीन है। भ्रम को और बढ़ाने के लिए, डीएचएस द्वारा जारी एक सलाह में कहा गया था कि एनओसी केवल 15 मीटर से अधिक ऊंची इमारतों में अस्पतालों के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में आवासीय परिसर में संचालित नर्सिंग होम के लिए कोई स्पष्ट अग्नि सुरक्षा मानदंड नहीं हैं, जैसा कि एमपीडी 21 के मिश्रित भूमि उपयोग प्रावधान के तहत अनुमत है। हाल के समाचार लेखों के अनुसार, डीएफएस अधिकारियों ने भी नर्सिंग होम के लिए उपयुक्त अग्नि सुरक्षा मानदंडों की अनुपस्थिति को स्वीकार किया है। दिल्ली सरकार ने 2019 में इन मानदंडों को विकसित करने के लिए एक समिति भी बनाई थी, लेकिन समिति की सिफारिशों को संप्रेषित या प्रकाशित नहीं किया गया है। पिछले कुछ वर्षों में, डीएमए ने इस मुद्दे के लिए संबंधित सरकारी अधिकारियों के साथ कई बैठकें की हैं। ये चर्चाएँ जारी हैं।
उपरोक्त के बावजूद, उपयुक्त मानदंडों की अनुपस्थिति में, और विवेक विहार में त्रासदी के मद्देनजर, डीएमए अपने सदस्य नर्सिंग होम में अग्नि सुरक्षा में सुधार के लिए उपाय करने की योजना बना रहा है।
हम डीएफएस और डीएचएस के साथ परामर्श करेंगे और सभी नर्सिंग होम के लिए अग्नि सुरक्षा का एक मानक विकसित करेंगे। हम आंतरिक रूप से यह अनिवार्य करेंगे कि सभी नर्सिंग होम द्वारा मानदंडों का पालन किया जाए और डीएमए द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र अग्नि लेखा परीक्षक द्वारा ऑडिट किया जाए। अग्नि लेखा परीक्षा सालाना की जानी चाहिए, और इसमें कर्मचारियों को अग्नि सुरक्षा प्रशिक्षण शामिल होगा। लेखा परीक्षक प्लॉट के आकार, ऊंचाई, चिकित्सा देखभाल की प्रकृति आदि में अंतर को ध्यान में रखते हुए विशिष्ट भवनों के लिए आवश्यक अतिरिक्त अग्नि सुरक्षा उपायों की सिफारिश करेगा। सभी ऑडिट रिपोर्ट नर्सिंग होम में दाखिल की जाएंगी और जब भी आवश्यकता होगी अधिकारियों को उपलब्ध कराई जाएंगी। हमारा उद्देश्य नर्सिंग होम में अग्नि सुरक्षा को वर्तमान स्थिति से बढ़ाना है, जबकि हमारे शहर में 1000 से अधिक नर्सिंग होम सुविधाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा को संरक्षित करना है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये सुविधाएं लोगों को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा प्रदान करती हैं और 2/3 2021 की आपदा अवधि के दौरान चिकित्सा देखभाल की अग्रिम पंक्ति के रूप में काम करती हैं।
हम सभी चिकित्सा प्रतिष्ठानों में अग्नि सुरक्षा बढ़ाने के प्रयास में सभी संबंधित अधिकारियों के साथ पूरी तरह से खड़े हैं। यह स्पष्ट रूप से हम सभी के लिए राजनीति से ऊपर उठने, दोषारोपण से बचने और ऐसी त्रासदी को दोबारा होने से रोकने के उपायों पर ध्यान केंद्रित करने का समय है। बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल के मालिक की दोषीता के संबंध में हमारा विचार है कि मालिक को धारा 304 ए के आधार पर गिरफ्तार किया गया था और धारा 336 के तहत मामला दर्ज किया गया है, लेकिन धारा 304 और धारा 308 का बाद में लगाया जाना अनुचित लगता है क्योंकि यह जानबूझकर या पूर्व-नियोजित अपराध नहीं था। हमें विश्वास है कि अधिकारी मामले के तथ्यों और लागू कानून के आधार पर जांच और सुनवाई करेंगे। डीएमए ने इस त्रासदी के कारणों का पूरा विवरण जानने के लिए एक तथ्य-खोज समिति भी गठित की है।
बुधवार, 29 मई 2024
छोटे और मंझोले पत्र-पत्रिकाओं पर लटक रही तलवार
शुक्रवार, 24 मई 2024
स्वाति मालीवाल एपिसोड ने महिला सशक्तिकरण नारे की खोली पोल
दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद स्वाति माली वाल की दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास में उनके निजी सहायक विभव कुमार द्वारा पिटाई के मामले के तूल पकड़ने के बाद आखिरकार दिल्ली पुलिस ने विभव कुमार को गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट ने उसे पांच दिन की रिमांड पर भेज दिया और इसी बीच स्वाति की प्राथमिक मेडिकल रिपोर्ट भी आ गई और रिपोर्ट के अनुसार स्वाति के बायें पैर, दाहिनी आँख, चेहरे और सिर पर चोट के निशान की पुष्टि हो चुकी है, यद्यपि यह मामला पुलिस के पास पहुँच चुका है और सिर्फ न्यायालय ही इस बात का निर्णय ले सकता हैं कि विभव कुमार दोषी है या नहीं, पर प्रश्न यह उठता है कि 'नारी सर्वत्र पूज्यते' वाले देश भारत में जब एक महिला राज्यसभा सांसद राज्य के मुख्यमंत्री के आवास में सुरक्षित नहीं रह सकती तो देश में आम महिला की सुरक्षा की गारंटी कैसे दी जा सकती हैं और इस मामले में रक्षक ही भक्षक बन गया है।
कुछ दशक पूर्व देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश की पहली दलित मुख्यमंत्री सुश्री मायावती की समाजवादी के गुंडों द्वारा इज्जत तार तार करने का असफल प्रयास किया गया और इस घटना को आज भी गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है उस समय भी इस कांड की आलोचना करने के लिए बहुत कम ही नेता सामने आये थे पर आज के समय में सभी दलों में राष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों महिला नेत्रिया स्थापित है। निर्मला सितारमन और स्मृति ईरानी केंद्रीय मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री है और सोनिया गाँधी, ममता बनर्जी, मायावती अपने अपने दल की मुखिया है, राज्यसभा सांसद जया बच्चन संसद में कई बार महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर लोगों को भावुक करने वाले भाषण दे चुकी हैं पर एक महिला सांसद पर हुए हमले पर इन लोगों की चुप्पी सबको आश्चर्य चकित कर दे रही हैं। शायद इस चुप्पी का एक ही कारण समझ में आ रहा है कि चुनाव के समय एक मुख्यमंत्री के आवास में हुई इस घटना पर कुछ बोलना उन्हे नुक्सान पहुँचा सकता है।
स्त्रियों के अपमान पर चुप्पी साधे रहने के मामले में हिंदुत्व भारतीय संस्कृति की पोषक माने जाने वाली भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना जैसी पार्टिया भी पीछे नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश में भाजपा के तत्कालीन प्रदेश उपाध्यक्ष ने बसपा सुप्रीमो मायावती की टिकट वितरण के मामले में पैसा लेने का आरोप लगते हुए उन्हे वैश्या जैसे विशेषण से संबोधित कर दिया था और पार्टी नेतृत्व ने उन्हे इसके लिए 6 साल के लिए पार्टी से निष्काषित कर दिया गया और कुछ समय पश्चात उन्हे ससम्मान पार्टी में वापस लिया गया और आज वे योगी सरकार में वरिष्ठ मंत्री है, वहीं एक टीवी डिबेट में एक मुस्लिम धर्मगुरु द्वारा बार बार उकसाये जाने के बाद भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने पैगम्बर मुहम्मद के लिए कुछ अवांछित टिप्पणी कर दी तो उन्हें प्रवक्ता पद से हटाकर भाजपा से निष्काषित कर दिया गया और आज उनका कोई नाम लेने वाला नहीं है और न ही उनकी राजनीति में वापसी के कोई संकेत दिखते है आखिर इस समाज में पुरुष और महिला हेतु क्यो अलग अलग पैमाने निर्धारित किये जाते हैं, एक महिला सांसद की पिटाई के बावजूद आरोपी विभव कुमार कई दिनों तक मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ घूमता रहा और काफी दबाव के बाद ही उसके गिरफ्तारी हो पायी।
विभव कुमार की गिरफ्तारी के पश्चात इस केस में रोज नये नये खुलासे हो रहे है जहां पहले दिल्ली सरकार की इकलौती महिला मंत्री अतिशी ने स्वाति मालीवाल की शिकायत को झूठ का पुलिंदा कहा था पर अब ये बात सामने आ चुकी है कि स्वाति मालीवाल के साथ मुख्यमंत्री आवास में यह घटना घटी और घटना के समय मुख्यमंत्री अपने आवास में मौजूद थे उसके बावजूद वे इस मामले में निष्पक्ष जाँच की मांग कर रहे हैं'। उनकी निष्पक्ष जाँच की मांग चुनाव के मद्दे नजर बिलकुल राजनैतिक लग रही है और कोई भी दल भी इस पर आपत्ति नहीं कर रहा है। आज के समय में संसद के अंदर और संसद के बाहर सैकड़ों नेत्रियां हैं जो महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के ऊपर घंटों लंबे भाषण दे सकती हैं और लोगों को इस भाषा से आंसू बहाने को मजबूर कर देती हैं पर चुनाव के समय इस मामले में चुप्पी इसलिए साधे हुए है कि कही कुछ बोलने पर उनके गठबंधन पर प्रतिकूल असर न पड़े।
क्या अब यह मान लिया जाए कि जिस भारत में युगो युगो से स्त्री की पूजा की जाती रही है और आज भी नौ रात्रो में कन्याओं को देवी मानकर उनकी पूजा की जाती है और कंजके खिलायी जाती है और हम अपने आप को अध्यात्मिक रूप से विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने का स्वप्न देख रहे है उसी देश में एक महिला सांसद की प्रदेश के मुख्यमंत्री के आवास में मुख्यमंत्री के निजी सहायक द्वारा पीटा जाता हैं और महिला सशक्तिकरण का नारा लगाने वाले चुप्पी साधे हुए हैं।
एक वर्ष पूर्व पैगम्बर मुहम्मद के विषय में एक अप्रिय टिप्पणी करने पर भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पीछे कट्टरपंथी इतने पीछे पड़ गए कि उन्हें सार्वजनिक जीवन से विलुप्त होना पड़ा और उनके बचाव में कोई भी सनातनी एवं हिंदू धर्म का झंडा बरदार नहीं खड़ा हुआ, उसी तरह से महिला सांसद स्वाति मालीवाल के साथ मारपीट के मामले में महिला सशक्तिकरण का राग अलापने कोई नेता या नेत्री सामने नहीं आ रहे है, जबकि महिला सुरक्षा के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने वाली एक दर्जन से अधिक नेत्रिया राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति कर रही हैं, सबसे आश्चर्य की बात है कि दिल्ली सरकार की एक मात्र महिला मंत्री अतिशी ने स्वाति मालीवाल के आरोपो को झूठा करार दिया क्योकि उन्हे महिला सुरक्षा से अधिक कुर्सी प्यारी है। जब देश में एक महिला सांसद अपने आप को सुरक्षित नहीं रख सकती आम महिला को सुरक्षा की गारंटी कैसे दी जा सकती हैं। कम से कम इस मामले में सोनिया गाँधी, प्रियंका वाड्रा और ममता बनर्जी को तो चुप्पी नहीं साधनी चाहिए थी।
http://nilimapalm.blogspot.com/
musarrat-times.blogspot.com