रविवार, 18 जुलाई 2021

हर युग में डॉ. अंबेडकर की सार्थकता

बसंत कुमार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक पूज्य मोहन जी भागवत ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के विषय में एक बार कहा था कि यदि डॉ. अंबेडकर राजनेता होते तो वह उच्च कोटि के राजनेता होते, यदि वह एक अर्थशास्त्राr होते तो वह अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के अर्थशास्त्राr होते और यदि वह एक समाज सुधारक होते तो उच्च कोटि के समाज सुधारक होते। एक कानूनविद् के रूप में उनके ज्ञान के कारण ही उन्हें संविधान सभा की प्रारूप समिति का चेयरमैन बनाया गया और उनके प्रयास से देश को एक खूबसूरत संविधान मिला। अब 21वीं सदी में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन हुए पर आज बाबा साहब व उनके सिद्धांत पूर्ण रूप से सार्थक हैं।

कुछ ही दिनों में देश में अंबेडकर जयंती मनाई जाने वाली है और सभी दल चाहे वह वामपंथी हों, दक्षिणपंथी हों या वह मध्यमार्गी हों सभी यह दर्शाने का प्रयास करेंगे कि वह बाबा साहब डॉ. अंबेडकर को अपना आदर्श मानते हैं पर क्या कोई दल अंबेडकर के आदर्शों को मानता है। पर उन्होंने संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन के रूप में जो संविधान देश को दिया उसने पूरे देश को तमाम विविधताओं के बावजूद एक में बांधकर रखा है। अपने खुद के जीवन में कितनी उपेक्षाओं, कितने तिरस्कार, कितने अपमान उन्होंने झेले परन्तु उन्होंने आहत मन की तनिक भी आहट संविधान निर्माण में नहीं आने दी। विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद उन्होंने यही कहा कि मैं भारत में ही रहूंगा और भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करूंगा।

संविधान निर्माण में उन्होंने कितना दुष्कर कार्य किया इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संविधान निर्माण में 7435 प्रस्ताव आए जिनमें से 4100 से अधिक प्रस्तावों को अलग किया गया और बाद में 2431 प्रस्तावों को स्वीकृत करने में कामयाबी हासिल की। भारत के हर नागरिक के ससम्मान जीवन के लिए उन्होंने भारतीय संविधान में मूलभूत अधिकारों की व्यवस्था दी जिसके अंतर्गत अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 और 18 के माध्यम से समता का अधिकार, अनुच्छेद 19, 20, 21 एवं 22 में स्वतंत्रता का अधिकार, अनुच्छेद 23 व 24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया। बाबा साहब यह भलीभांति जानते थे कि भारत विभिन्न धर्मों एवं धार्मिक आस्थाओं का देश है इसी कारण उन्होंने संविधान में अनुच्छेद 25, 26, 27 एवं 28 में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की व्यवस्था की। इन मूल अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 32 की व्यवस्था की गई, जिसके अंतर्गत मूल अधिकारों का हनन होने पर कोई भी नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर सकता है। अनुच्छेद 29 और 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यकों को अपनी स्वेच्छा से अपने सामाजिक और शैक्षणिक अधिकार के अंतर्गत अपनी शैक्षणिक संस्थाएं खड़ी करने का अधिकार है।

एक अर्थशास्त्री और एक विजनरी के रूप में भी बाबा साहब का योगदान अद्वितीय है। श्रमिकों के कल्याण हेतु और श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए विधि मंत्री के रूप में अनेक कानून बनाए। मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी, मजदूरों की भविष्य निधि के लिए व्यवस्था दी और मजदूर और मालिक के बीच बेहतर संवाद पर बल दिया। उन्होंने देश के संविधान के साथ-साथ एक आर्थिक ढांचे का निर्माण किया। सेंट्रल वॉटरवेज इरिगेशन एंड नेविगेशन कमीशन को स्थापित करने की योजना एवं दामोदर वैली प्रोजेक्ट, हीरा कुंड प्रोजेक्ट तथा पानी और सिंचाई से संबंधित कई प्रोजेक्ट बाबा साहब के मस्तिष्क की उपज थे। भारत में रिजर्व बैंक की स्थापना के समय हिल्टन यंग कमीशन ने डॉ. अंबेडकर के दिए गए सुझावों को आधार बनाया। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में उन्होंने रिसर्च के दौरान एक थिसिस लिखीö‘नेशनल डिवीडेंट ऑफ इंडिया’ जो 1924 में प्रकाशित हुई जिसमें उन्होंने फाइनेंस कमीशन का कंसेप्ट दिया और उसी कंसेप्ट के आधार पर भारत में फाइनेंस कमीशन की स्थापना भी हुई। आज से सात दशक पूर्व उन्होंने महिला सशक्तिकरण की बात की और उन्होंने राइट टू एडॉप्शन और सम्पत्ति का अधिकार देकर महिलाओं को सुरक्षा दी।

देश में एकता और समरसता के बाबा साहब प्रबल पक्षधर थे इसीलिए जब संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ने के लिए शेख अब्दुल्ला ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को तो पंडित नेहरू ने प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. अंबेडकर के पास शेख अब्दुल्ला को भेजा, पर डॉक्टर अंबेडकर ने इसे मना कर दिया क्योंकि वह अनुच्छेद 370 के प्रबल विरोधी थे परन्तु नेहरू जी की जिद के कारण बहुमत के आधार पर अनुच्छेद 370 लागू हुआ। परन्तु डॉ. अंबेडकर के कारण संविधान में यह लिख दिया गया कि यह अनुच्छेद अस्थायी होगा और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के साहसिक फैसले से अगस्त 2019 में अंतत इस विभाजनकारी प्रोविजन को समाप्त कर दिया गया।

बाबा साहब के आर्थिक दृष्टिकोण को मूर्तरूप देने के लिए प्रधानमंत्री बनने के पश्चात श्री नरेंद्र मोदी ने अपने प्रशासन का मूल मंत्र ‘सबका साथ-सबका विकास’ निर्धारित किया। गरीब व वंचित लोगों को देश की बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने के लिए जनधन योजना प्रारंभ की जिससे देश के करोड़ों लोग बैंकों में खाता खोलकर देश की बैंकिंग व्यवस्था से जुड़े। बाबा साहब की 125वीं जयंती मनाने के लिए संसद में विशेष सत्र का आयोजन किया गया। इस अवसर पर संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री जी ने कहा कि जन सामान्य की गरिमा और देश की अखंडता के लिए बाबा साहब की भूमिका को हम नकार नहीं सकते। प्रारूप समिति के अध्यक्ष के नाते डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद 368 के विषय में कहा था ‘संविधान एक आधारभूत दस्तावेज है जो राज्य के तीनों अंगोंöकार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका की स्थिति और शक्तियों को परिभाषित करता है। यह कार्यपालिका की शक्तियों और विधायिका की शक्तियों को नागरिकों के प्रति भी परिभाषित करता है जैसे कि हमारे मौलिक अधिकारों के विषय में किया है। वस्तुत संविधान का उद्देश्य राज्यों के अंगों का सृजन करना मात्र नहीं है बल्कि उसके अधिकार को सीमित करना है क्योंकि यदि उसके अधिकार में कोई सीमा नहीं लगाई गई तो वह पूर्ण निरंकुशता होगी। विधायिका किसी भी कानून को बनाने में स्वतंत्र हो, कार्यपालिका कोई भी निर्णय लेने में स्वतंत्र हो तो इसकी परिणिति अराजकता में होगी।’

बाबा साहब धर्मविरोधी व अधार्मिक दृष्टिकोण से कतई सहमत नहीं थे और उनके अनुसार धर्म मनुष्य के सामाजिक जीवन का अंग है तथा व्यक्ति की धरोहर है। धर्म की सामाजिक शक्ति में बाबा साहब का दृढ़ विश्वास था। इसी कारण वामपंथियों के भौतिकवाद से सदैव असहमत रहते थे। वामपंथियों के भौतिकवादी सिद्धांतों की जड़ों पर प्रहार करते हुए डॉ. अंबेडकर कहते हैं कि कुछ लोगों का सोचना है कि धर्म समाज के लिए आवश्यक नहीं है, मैं इस दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करता, मैं धर्म की आधारशिला को जीवन और समाज के व्यवहारों के लिए आवश्यक मानता हूं। डॉ. अंबेडकर का धर्म दर्शन (पृष्ठ 70) वहीं लाइन एंड मिशन (पृष्ठ 305) पर वह कहते हैं कि मैं धर्म चाहता हूं परन्तु धर्म के नाम पर किसी भी प्रकार का पाखंड या ढोंग नहीं चाहता।

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की महत्ता का पता इसी बात से लगता है कि अगर किसी को सरकार पर प्रहार करना है तो कोटेशन बाबा साहब का देता है और अगर किसी को अपना बचाव करना होता है तो कोटेशन बाबा साहब का काम आता है। मतलब उनमें कितनी दूरदृष्टि थी, कितना विजन था कि आज भी विरोध करने के लिए वह मार्गदर्शक हैं, शासन चलाने के लिए वह मार्गदर्शक हैं और जो न्यूट्रल हैं उनके लिए भी मार्गदर्शक हैं। बाबा साहब के विचार हर पीढ़ी के लिए, हर कालखंड के लिए, हर तबके के लिए उपकारक हैं। उनके विचारों में एक ताकत थी जो राष्ट्र के लिए समर्पित थी और उसमें वह सामर्थ्य था जो 100 वर्ष बाद भी देश कैसा होगा यह देख सकता थे। परन्तु यह देश का दुर्भाग्य था कि निजी स्वार्थ की राजनीति के कारण देश का सर्वोच्च सम्मान 42 वर्षों के बाद मिला और विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने ढंग और मतलब से उनको प्रस्तुत करते रहे और एक महान राष्ट्र निर्माता को मात्र दलित आइकॉन के रूप में प्रस्तुत करते रहे।

(लेखक भारत सरकार के पूर्व उपसचिव हैं।)

 

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