गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

शेख हसीना की भारत यात्रा

अवधेश कुमार

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की चार दिवसीय यात्रा समाप्त हो चुकी है। हसीना ने 3 और 4 अक्टूबर को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम यानी विश्व आर्थिक मंच की बैठक में हिस्सा लिया था। उसके बाद उनकी द्विपक्षीय यात्रा हुई। इसमें उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उनसे अलग से मुलाकात कर कई मुद्दों पर चर्चा की। भारत-बांग्लादेश बिजनेस फोरम को संबोधित करते हुए शेख हसीना ने जब हिन्दी में कहा कि मैंने अपने खानसामे को बोल दिया है कि अब से खाने में प्याज मत डालना तो वहां उपस्थित सभी को सुखद आश्चर्य हुआ। हसीना ने कहा, ‘‘प्याज से थोड़ी दिक्कत हो गई हमारे लिए। मुझे मालूम नहीं क्यों आपने प्याज भेजना बंद कर दिया। थोड़ा सा नोटिस अगर देते तो दूसरी जगह से ला सकते थे। आगे से अगर किसी भी तरह से ऐसा कुछ करना है, तो हमें थोड़ा पहले बता देना।’’ हिन्दी में बोलने से पता चलता है कि भारत के साथ उनका कितना आंतरिक जुड़ाव है। भारत ने उनसे प्याज की आपूर्ति का वायदा किया है। देश में प्याज की बढ़ती कीमतों को थामने के लिए 29 सितंबर को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने हर तरह के प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी थी। इसका उल्लेख इसलिए आवश्यक है ताकि आम भारतीय को यह समझ में आ जाए कि द्विपक्षीय संबंधों में छोटी-छोटी चीजों का कितना महत्व है। किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री प्याज को लेकर शिकायत कर सकतीं हैं। निकट पड़ोसी मित्र देशों से संबंध बेहतर करने के लिए कई बार अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की जरुरत होती है।

शेख हसीना के काल में बांग्लादेश ने भारत के साथ संबंधों को विश्वास का आधार देने के लिए पूरी कोशिश की है। संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा के अधिवेशन में शेख हसीना ने पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश में किए गए नरसंहार एवं महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कारों का चित्रण कर मानवाधिकारों पर इमरान के प्रवचन की धज्जियां उड़ा दीं थीं। हालांकि यह कहना कठिन है कि भारत और बांग्लादेश के बीच 1971 के मुक्ति संग्राम की भावना व्याप्त है, पर यह निश्चित तौर कहा जा सकता है कि शेख हसीना द्वारा सत्ता संभालने के बाद से संबंध बिल्कुल सामान्य पटरी पर आ गए हैं। यह हमारी रणनीति पर निर्भर है कि हम मुक्ति संग्राम की भावनाओं को कैसे जीवित रखें। वैसे बांग्लादेश में अभी भी उस समय को याद करने वाले लोग हैं जो भारत के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। उस समय जैसा माहौल था यदि भारत बांग्लादेश को अपना भाग बनाता तो एक छोटे वर्ग को छोड़कर पूरा समर्थन मिलता। भारत ने ऐसा नहीं किया। इसका अहसान मानने वाले वहां हैं। किंतु यह भी सच है कि पिछले वर्षों में भारत विरोधियों की संख्या वहां बढ़ गई थी। कट्टरपंथियों की एक बड़ी जमात भारत विरोधी है। भारत को इसका ध्यान रखते हुए संबंधों को गति देनी पड़ती है।

 मोदी और शेख हसीना की मुलाकात के बाद भारत-बांग्लादेश में 7 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इसमें बंदरगाहों (चटगांव और मोंगला), जल संसधान, युवा मामलों, शिक्षा, संस्कृति और तटीय निगरानी शामिल हैं। इससे इलाज व शिक्षा के लिए बांग्लादेशी नागरिकों को असानी से आने-जाने की सुविधा प्राप्त होगी। लेकिन इनमें भारत की तरफ से ढाका को तटीय निगरानी राडार तंत्र मुहैया कराने का समझौता सबसे अहम है। भारत इससे ना सिर्फ बांग्लादेश को एक प्रभावशाली सुरक्षा घेरा दे सकेगा बल्कि बंगाल की खाड़ी से लेकर अपने समूचे पूर्वी तट की निगरानी भी बेहतर तरीके से कर सकेगा। चीन की तरफ से भी बांग्लादेश को निगरानी तंत्र देने की कोशिश हो रही थी। 2016 में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने ढाका दौरे पर बांग्लादेश की समुद्री सुरक्षा की बात कही थी। भारत ने ऐसा करके चीन को लगभग वंचित कर दिया है। इस तरह की व्यवस्था भारत ने अपने पूर्वी तट पर स्थित देश मालदीव को भी दी है। यह बहुत बड़ी बात है। भारत जिस तरह समुद्र में अपनी प्रभावी उपस्थिति बढ़ाने की रणनीति पर चल रहा और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों सहित ऑस्ट्रेलिया और जापान तक का समर्थन हालिस हुुआ है वह भविष्य में विश्व की एक प्रमुख समुद्री शक्ति के रुप में भारत को खड़ा करने वाला है। भारत बांग्लादेश को कई तरह के रक्षा उपकरण भी बेचना चाहता है और इसके लिए 50 करोड़ डॉलर की राशि बतौर कर्ज भी उपलब्ध कराई गई है।

मोदी और हसीना ने वीडियो लिंक के जरिये तीन परियोजनाओं का उद्घाटन किया। ये हैं पूर्वात्तर भारत की ईंधन जरूरत पूरी करने के लिए बांग्लादेश से थोक में एलपीजी आयात, खुलना में एक कौशल विकास संस्थान और ढाका के रामकृष्ण मिशन में विवेकानंद भवन की परियोजनाबांग्लादेश महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक  डाक टिकट जारी करेगा। इस तरह एक वर्ष में भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त रुप से 12 परियोजनाओं का उद्घाटन कर दिया है। जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा बांग्लादेश से भारी मात्रा एलपीजी आपूर्ति दोनों देशों के लिए लाभकारी है।  इससे बांग्लादेश में निर्यात, आमदनी और रोजगार बढ़ेगा, ट्रांसपोर्टेशन की दूरी 1500 किमी कम हो जाने से आर्थिक लाभ भी होगा और पर्यावरण को भी कम नुकसान होगा। बांग्लादेश के पास गैस का भरपूर भंडार है जिसे भारत को देने की बात पिछले दो दशक से चल रही है। पूर्व यूपीए सरकार के कार्यकाल में बांग्लादेश से भारत तक गैस पाइपलाइन बिछाने की भी बात हुई थी लेकिन वहां राजनीतिक विरोध की वजह से इसे टाल दिया गया। अभी ट्रकों के जरिये एलपीजी को भारत लाया जाएगा। भारत पहले इस पड़ोसी देश को पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति शुरू करने के लिए एक पाइपलाइन बिछा रहा है। इसी तरह बांग्लादेश-इंडिया प्रफेशनल स्किल डिवेलपमेंट इंस्टिट्यूट बांग्लादेश के औद्योगिक विकास के लिए कुशल मानव शक्ति और तकनीशियन तैयार करेगा। ढाका के रामकृष्ण मिशन में विवेकानंद भवन की परियोजना दोनों महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा का केन्द्र होगा। अभी इसका महत्व किसी को न समझ में आए, पर भविष्य में सांस्कृतिक निकटता की दृष्टि से इसका प्रभाव सामने आएगा। विवेकानंद भवन में 100 से अधिक विश्वविद्यालयी छात्रों और शोधकर्ताओं के रहने की व्यवस्था की गई है।

अगर सातों समझौतों, तीन परियोजनओं के उद््घाटन दोनों नेताओं की पत्रकार वार्ता तथा संयुक्त बयान को एक साथ मिलाकर देखें तो यह साफ हो जाएगा कि भारत बांग्लादेश केवल कहने के लिए औपचारिक रुप से मित्र देश नहीं हैं, व्यवहार में भावनात्मक लगाव इसी स्तर का है। पत्रकार वार्ता में नरेंद्र मोदी का यह कहना बिल्कुल सही था कि दोनों देशों ने दुनिया के सामने पड़ोसी देशों के रिश्तों का बेहतरीन उदाहरण रखा है। संयुक्त बयान और समझौतों का लब्बोलुआब यही है कि भारत अपना विशाल बाजार बांग्लादेश के लिए खोलकर उसे आर्थिक लाभ पहुंचाने को तैयार है, तो पड़ोसी देश भी भारत की रणनीतिक चिंताओं को दूर करने के लिए तत्पर है। जो सूचना है दोनों नेताओं की बातचीत में कश्मीर व एनआरसी का मुद्दा भी उठा। हसीना ने स्वाभाविक ही एनआरसी पर चिंता जताईं, क्योंकि इसका निशाना घुसपैठिए हैं जिनमें सबसे ज्यादा संख्या बांग्लादेशियों की है। बांग्लादेश इसे स्वीकार नही करता। न्यूयॉर्क में मोदी हसीना मुलाकात में भी यह मुद्दा उठा था। मोदी ने अपनी ओर से उन्हें जितना आश्वासन देना था दिया होगा लेकिन यह मुद्दा आने वाले समय में दोनों के बीच विवाद का कारण बनेगा। यह सच है कि बांग्लादेशियों की भारी संख्या भारत में है और वे अवैध रुप से आए हैं। किंतु वे बांग्लादेशी ही हैं यह बात बांग्लादेश को समझा पाना कठिन होगा। शेख हसीना ने तीस्ता जल बंटवारे का मुद्दा भी उठाया। यह मामला लंबे समय लटका हुआ है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जल बंटवारे में हिस्सा कम करने को तैयार नहीं हैं। दोनों देशों के संबंधों को देखते हुए नदी जल बंटवारा विवाद हमें शीघ्र निपटाना होगा। बांग्लादेश की फेनी नदी से त्रिपुरा को जलापूर्ति पर सहमति हो गई है। इसी तरह रोहिंग्या मुसलमानों का मामला है। बांग्लादेश भी इनसे छुटकारा चाहता है और भारत भी। हालांकि ये रोहिंग्या वर्षों पहले बांग्लादेश के क्षेत्र से ही म्यान्मार गए थे। बावजूद आज ये म्यान्मार के ही नागरिक हैं। दोनों देश म्यान्मार को इसके लिए तैयार करेंगे, पर इनके पुनर्वास के साथ कटृटरता और हिंसक व्यवहार से निपटने के लिए म्यान्मार को मदद भी करनी होगी।

आतंकवाद और अतिवाद से निपटना भारत के लिए चुनौती है। इसमें बांग्लादेश ने पूरा साथ दिया है। अनेक आतंकवादियों को फांसी पर चढ़ाया है तथा भारत को भी सौंपा है। शख हसीना ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को बांग्लादेश जारी रखेगा। भारत ने शेख हसीना को पूरा महत्व देते हुए उनके स्वागत समारोह में विभिन्न देशों के दिल्ली स्थित करीब 80 राजदूतों को भी आमंत्रित किया था। यह शेख हसीना के लिए एक बेहतर जनसंपर्क अभियान का समारोह बन गया था। दोनों देश जब एक दूसरे को पसंद करते हैं तो अनेक क्षेत्रों सहयोग का रास्ता आसानी से निकल जाता है। अनेक विवादित मुद्दों का हमने समाधान किया है। 1974 की भू-सीमा संधि को स्वीकार करते हुऐ गलियारों की अदला-बदली को मोदी और हसीना ने पूरा कर लिया है। उम्मीद करनी चाहिए कि आपसी विश्वास और सहयोग का भाव आगे भी विवाद को कभी संबंधों में रोड़ा नहीं बनने देगा।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/