शुक्रवार, 3 जून 2016

...तो अखलाक के घर में गोमांस ही था

 

अवधेश कुमार

जरा पिछले वर्ष अक्टूबर और वर्तमान समय के माहौल की तुलना कीजिए। पिछले वर्ष अक्टूबर के आरंभ में दादरी का बिसाहड़ा गांव नेताओं के जमावड़े का केन्द्र था। वहां जाने की होड़ ऐसी थी मानो जो वहां न गया उसकी सेक्युलर प्रतिबद्धता संदेहों के घेरे में आ जाएगी। जो नहीं जा पाए उनने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर अपनी संवेदना मृतक अखलाक के परिवार के प्रति प्रकट की। पूरे देश की सुर्खियां और चारों और बयानवाजी। इस समय देखिए। मथुरा की फोरेंसिक लेबोरेटरी ने यह साफ कर दिया कि अखलाक की फ्रीज में रखा हुआ मांस या तो गाय का था या फिर बछड़े का। यह बड़ी खबर इसलिए है, क्योंकि उस सतय आरोप यही लगा था कि उसके घर मंे गोमांस नहीं था लेकिन गोमांस का शोर मचाकर सांप्रदायिक तत्वों ने इसे हिंसक रुप दिया एवं मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। हिंसा का कोई समर्थन नहीं कर सकता। अखलाक की हत्या निंदनीय थी एवं जिनने हत्या की उनको उसके अनुरुप सजा मिलनी चाहिए। कानून के राज का तकाजा है कि हमें या आपको किसी से शिकायत है तो हम पुलिस तक जाएं और पुलिस कार्रवाई नहीं करती तो फिर उसके आगे भी रास्ता है। किसी सूरत में कानून हाथ में लेने या किसी की नृशंस हत्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन अब जबकि यह स्पष्ट हो गया है जिन लोगों ने यह आरोप लगाया कि अखलाक का परिवार गोमांस खाता है वे गलत नहीं थे तो फिर पूरे मामले को नए सिरे और नए नजरिए से देखने की आवश्यकता है।

निस्संदेह, इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार कठघरे मंे खड़ा हो जाती है। आखिर सरकार ने किस आधार पर उस परिवार को दो तीन दिनांे में ही पाक साफ होने का प्रमाण पत्र दे दिया? मांस की फोरेंसिक जांच एक दिन का काम है। यह संभव नहीं कि सरकार को इसका पता न हो। बावजूद इसके यदि उसने सच छिपाया तथा अखलाक के परिवार की लखनउ बुलाकर आवभगत की उसे मोटी वित्तीय सहायता दी गई तो क्यों? लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि स्वयं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फोरेंसिक जांच पर प्रश्न उठा रहे हैं। मुख्यमंत्री के ऐसा बोलने का मतलब है जांच कर रही पुलिस प्रशासन का प्रभावित होना। यह आपत्तिजनक है। यह प्रश्न उठाना कि मांस कहां से मिला अब बिल्कुल अप्रासंगिक है। प्राथमिकी के अनुसार लोगांे ने अगर घरे में घुसकर अखलाक को मारा और वहां से मांस निकला तो फिर इस पर प्रश्न उठाना केवल अपनी गलतियों को ढंकने का खतरनाक प्रयास है। सच सामने आ गया है और इसके अनुसार ही कार्रवाई होनी चाहिए। दादरी के पशु चिकित्सालय में मांस भेजा गया था जिसने मथुरा फोरेंसिक लैब में भेजने की अनुशंसा की थी और यही रिपोर्ट अंतिम है चाहे उस पर मुख्यमंत्री प्रश्न उठाएं या कोई और।

 हत्या करने वालों को सजा देना एक बात है तथा गोवध एवं गोमांस के सेवन जैसे अपराध को छिपाना दूसरी बात। उत्तर प्रदेश में गोवध प्रतिबंधित है। अगर गोवध हुआ नही ंतो अखलाक के घर मंे गोमांस आया कैसे? जाहिर है गोवध या गोवंश का वध हुआ था। जरा घटनाक्रम की ओर लौटिए तो इसे समझना ज्यादा आसान हो जाएगा। बकरीद के एक दिन पहले दादरी के बिसहड़ा गांव में एक बछड़ा चोरी हो गया था। 28 सितंबर की रात अखलाक को एक प्लास्टिक बैग लिए घर से निकलते देखा गया। अखलाक ने इसे कचरे में डाल दिया। वहां मौजूद एक बच्चे ने यह बात लोगों को बता दी। उसके बाद गांव में यह बात फैलने लगी कि अखलाक ने उस बछड़े को जिबह कर उसका मांस खाया है और रखा है। उसी रात यानी 28 सितंबर को कुछ लोग मंदिर में गए एवं लाउडस्पीकर से यह ऐलान हुआ कि वहां गोवंश काटा गया है और सभी वहां एकत्रित हों। उसके बाद आक्रोशित भीड़ अखलाक के घर पहुंची और उसकी इतनी पिटाई हुई कि वह मर गया।

इस घटनाक्रम को हम चाहे जैसे लें। अब तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है। लेकिन उस समय गोमांस के आरोप को गलत साबित करने की कोशिश भाजपा को छोड़कर पूरी राजनीति ने की। आज भी अखिलेश यादव की ओर से यही कोशिश की गई है और दूसरी आवाजें भी उठेंगी। आज 18 लोग उस मामले में जेल में हैं। उनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है। चूंकि अखलाक की हत्या हो गई इसलिए पूरी कार्रवाई ही एकपक्षीय हुई। किसी ने दूसरा पक्ष समझने की कोशिश ही नहीं की। राजनीतिक दलों और मीडिया का दबाव इतना था कि पुलिस के सामने कठोर कार्रवाई करते दिखने का ही एकमात्र विकल्प था। वैसे भी जब मामला अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का बना दिया जाए और अल्पसंख्यक की हत्या हो जाए तो फिर पलड़ा बहुसंख्यकों के खिलाफ ही भारी होता है। सवाल है कि आज उस मामले को कैसे लिया जाए? पुलिस की कार्रवाई की दिशा अब क्या हो? अब प्रदेश सरकार की भूमिका क्या हो? राजनीतिक दलों को क्या करना चाहिए?

सबसे पहले तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसमें न्याय करते दिखें। इस बात की जांच होनी चाहिए कि वाकई जो बछड़ा गायब हुआ उसको गायब करने में अखलाक का हाथ था या उसकी जानकारी में हुआ? क्या उसका वध हुआ या दूसरे गोवंश का वध हुआ? उसका वध करने में कौन-कौन शामिल थे? पुलिस इस आधार पर अगर अब कार्रवाई नहीं करेगी तो यह अन्याय होगा और संदेश यही जाएगा कि जानबूझकर एक पक्ष को बचाने और दूसरे को फंसाने की कोशिश पुलिस करती है। प्रदेश सरकार को वाकई अब न्याय करते दिखना चाहिए जो नहीं दिख रहा है। अगर गोवध उत्तर प्रदेश में प्रतिबंधित है और यह हुआ है तो फिर अपराधियों को पकड़कर सजा दिलाना प्रदेश सरकार की जिम्मेवारी है। अगर उसने ऐसा नहीं किया तो उस पर लगता यह आरोप सही माना जाएगा कि सपा सरकार मुसलमान वोटों के लिए जानबूझकर उनके अपराध को नजरअंदाज करती है। कुछ लोगों का मानना है कि लोग पुलिस के पास जाने की बजाय गांव में ही मामला निपटाने में इसलिए लग गए थे क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं था कि पुलिस इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई करेगी। इसके पूर्व भी पुलिस को अखलाक के पशु तस्करों से संबंध होने तथा गौहत्या में सलिप्त होने की बात पुलिस को बताई गई थी पर कार्रवाई कुछ नहीं हुई।

ऐसे माहौल में लोग कानून अपने हाथ में लेने के लिए उतावले हो जाते हैं। हालांकि किसी भी परिस्थिति में कानून हाथ में नहीं लिया जाना चाहिए। किंतु गोहत्या का मामला ऐसा है जिसकी खबर पर आम हिन्दू को गुस्सा आएगा। यह स्वाभाविक है। इसे हम आप किसी सूरत मंें नहीं रोक सकते। हां, कई बार कुछ विवेकशील लोग गुस्से को हिंसा में नहीं बदलने में कामयाब हो जाते हैं और कई बार नहीं होते हैं। निश्चय ही बिसहाड़ा में भी कुछ ने जरुर लोगों को हिंसा से रोकने तथा मांस सहित अखलाक को पुलिस के हवाले करने की कोशिश की होगी, पर व्यापक आक्रोश में उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती बन गई। यह स्थिति बिसहाड़ा के साथ समाप्त हो जाएगी ऐसा नहीं है। सच तो यह है कि फोरेंसिक रिपोर्ट के बाद पूरे प्रदेश में ही नहीं देश भर में उन सारे राजनीतिक दलों एवं उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ गुस्सा पैदा हुआ है। अखिलेश के बयान से यह गुस्सा और बढ़ा है। यह जानते हुए भी कि हत्या अपराध है जो जेल में बंद हैं उनके प्रति अचानक सहानुभूति की भावना पैदा हुई है। आप आम प्रतिक्रिया देखकर दंग रह जाएंगे। कई लोग यह कहते मिल जाएंगे कि अगर गोहत्या करने वाले को मारा गया तो इसमें गलत क्या है! जाहिर है, यह सोच अनुचित है और इस पर हर हाल में रोक लगनी चाहिए किंतु राजनीतिक दल अगर इसी तरह बिना आगा-पीछा सोचे केवल मुसलमान वोटांे की लालच में छाती पीटते पहुंचने लगेंगे तो इस प्रकार की सोच को बढ़ावा मिलेगा।

वास्तव में यह सभी राजनीतिक दलों के लिए एक सबक बनना चाहिए। यानी ऐसी किसी घटना पर निष्कर्ष निकालने तथा प्रतिक्रिया देने में संयम बरती जाए। एक पार्टी या संगठन परिवार से राजनीतिक विरोध के कारण किसी पक्ष को नायक एवं किसी को खलनायक बनाने का रवैया खतरनाक है और इसका अंत होना चाहिए। राजनीतिक दलों के नेताओं के बयान निकालकर पूछा जाए कि अब उनका क्या जवाब है तो वे क्या बोलेंगे? याद करिए जब वह घटना हुई पुलिस के भय से गांव के पुरुष तो कुछ समय के लिए भाग गए थे लेकिन महिलाएं उस समय भी चिल्ला-चिल्लाकर कहतीं थीं कि हम मुसलमानों के साथ वर्षों से रहते आए हैं....उनकी मस्जिदेें हमने बनवाई है.. हमारे बीच कोई मतभेद नहीं ....लेकिन तब उनकी सुनने वाला कौन था। उन महिलाओं ने कई बार नेताओं के गांवों जाने के रास्ते को ही घेर लिया था। वो अपनी बात सुनाना चाहतीं थीं। केजरीवाल उनके पास भी गए थे और महिलाओं ने उनसे कहा था कि यह एक व्यक्ति के खिलाफ मामला है पूरे हिन्दू मुसलमान का मामला नहीं। सच यही था। अगर हिन्दू मुसलमान का मामला होता तो वहां दंगा हो गया होता। ऐसा हुआ नही ंतो इसका कारण वर्षों का उनका आपसी संबंध ही था। अखलाक मुसलमान अवश्य था और उसकी हत्या हिन्दुओं की पिटाई से हुई यह सच है, किंतु यह हिन्दू बनाम मुसलमान का मामला नहीं था। केवल एक व्यक्ति के घर पर हमला हुआ, उसे निशाना बनाया गया। अगर गोहत्या नहीं हुई होती तो ऐसा नहीं होता। सवाल तेा यही है कि क्या वाकई राजनीतिक पार्टियां सबक लेंगी? अखिलेश यादव के बयान से तो ऐसा लगता नहीं।

अवधेश कुमार, ई.ः30 गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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