शुक्रवार, 27 मई 2016

सरकार के तूणिर में उपलब्धियों के अनेक तीर हैं

 

अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सहारनुपर रैली से अपने दो वर्षीय कार्यकाल के आयोजन की शुरुआत की और इंडिया केट के जरा मुस्करा दो महाजलसे को सबसे आकर्षक कार्यक्रम बनाने की कोशिश थी। लेकिन विपक्ष मोदी के दावों और कार्यक्रमों में की गई प्रस्तुतियों से असहमत हैं। अगर विपक्षी विशेषकर कांग्रेस की बात मानी जाए तो नरेन्द्र मोदी सरकार ने दो साल में देश को आगे बढ़ाने की बजाय पीछे धकेल दिया है और उनके राज में तो तमाम स्थितियां संतोषजनक थी। वाह, क्या मूल्यांकन है? अगर उनका राज जनता को इतना ही संतोष दे रहा था तो फिर 2014 के आम चुनाव में उनके खिलाफ पूरे देश में इतना आक्रामक वातावरण कैसे बन गया कि वे 44 के शर्मनाक आंकड़े तक सिमट गए, बहुमतविहीन लोकसभा के दौर का अंत हुआ और भाजपा को आश्चर्यजनक रुप से अकेले बहुमत मिल गया? जब हम दो वर्ष बाद उस वातावरण को याद करते हैं तो दिखाई देता है कि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए देश में जैसी आक्रामकता थी वैसा शायद ही कभी रहा हो। ऐसा वातावरण यूं ही नहीं बनता है। वास्तव में आलोचना के लिए कांग्रेस कुछ भी कहे उस समय और आज के देश की आंतरिक, वैदेशिक वातावरण एवं आर्थिक पहलुओं में जमीन आसमान का अंतर है। यह अंतर ही साबित कर देता है कि कांग्रेस की आलोचना निराधार है। मोदी सरकार के तूणिर में उपलब्धियों के ऐसे अनेक तीर हैं जिनसे आलोचनाओं के प्रहार परास्त हो जाते हैं।

जरा याद कीजिए जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर विदेशी मीडिया ने यह आलोचना आरंभ कर दी थी कि सरकार पॉलिसी पारालायसिस यानी नीतिगत निर्णय के मामले में लकवाग्रस्त हो गई है। दुनिया की प्रमुख पत्रिकाओं में भारत सरकार की छवि एक निर्णय न करने वाले दब्बू देश की बन गई थी। खासकर 2011 के बाद से उस मनमोहन सिंह को दुनिया में कहीं से भी प्रशंसा नहीं मिली जिसे पश्चिम के देशों ने ही भारत में आर्थिक सुधार का हीरो कहकर स्वागत किया था। इसके कारण साफ थे। मनमोहन सिंह जिस अर्थव्यवस्था के मर्मज्ञ माने जाते थे वही दुर्दशा का शिकार हो गई थी। एक समय विदेशी निवेश का बेहतर स्थान माने जाने वाले भारत में निवेश के लाले पड़ गए। भारत की छवि दुनिया में एक ऐसे देश की बन गई जहां सत्ता प्रतिष्ठान में बैठे लोग ही उसे लूटने में लगे हैं। यानी भारत भ्रष्टाचार का सिरमौर देश है। दुनिया भर में फैले भारतवंशियों की एक समय भारत आने की ललक लगभग खत्म हो गई। इससे जरा आज की स्थिति की तुलना करिए। आज भारत केा दुनिया की वही मीडिया कठोर निर्णय करने वाला देश घोषित कर रहा है। दुनिया में भारत की सशक्त होकर अपनी बात कहने और मनवाने वाले देश की बन गई है। दुनिया भर की प्रमुख संस्थाएं कह रही हैं कि भारत निवेश के लिए सबसे बेहतर स्थल है। भले एकदम चमत्कार नहीं हुआ है, लेकिन देश में वैसी निराशा का वातावरण कहीं नहीं है। दुनिया भर में फैल भारतवंशी गदगद हैं। सच कहा जाए तो आंतरिक एवं वैदेशिक दोनों मार्चे पर देश का पूरा वर्णक्रम बदलता दिख रहा है। 

ये केवल कहने के लिए नहीं है। आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे हैं। विदेशी निवेश में भारत दो वर्षों से दुनिया का नंबर एक देश बना हुआ है। चीन का स्थान अब हमारे बाद आ रहा है। 2015 में 63 अरब डॉलर का विदेशी निवेश वैश्विक मंदी के इस दौर में असाधारण है। जिस मेक इन इंडिया की आलोचना होती है उसमें 358 विदेशी निवेश के प्रस्ताव आ चुके हैं। 7.5 प्रतिशत से उपर की विकास गति वाला भारत दुनिया का अकेला देश है। मनमोहन सिंह सरकार के अंतिम समय में विकास दर 5 प्रतिशत के नीचे था और इसके उपर उठने की संभावना तक नहीं दिखाई जा रही थी। यह तब है जब पिछले दो वर्षों से मानसून की खराब स्थिति के कारण कृषि पर विपरीत असर पड़ा है। मनमोहन सरकार के जाते समय विदेशी मुद्रा भंडार 275 अरब डॉलर था और इसके और सूखने का खतरा था। आज यह 361 अरब डॉलर के आसपास बना हुआ है। भारतीय खजाना खतरे की सीमा को पार कर 4.9 प्रतिशत के घाटा तक पहुंच गया था। अब यह चार प्रतिशत के नीचे है और इस वर्ष के बजट मंे इसे 3.5 प्रतिशत से नीचे सीमित करने का लक्ष्य रखा गया है। यह तब है जब मनमोहन सरकार ने जाते-जाते जिस सातवें आयोग का गठन कर दिया उसका और सेवानिवृत्त सैनिकों के एक रैंक एक पेंशन का भार सिर पर आया है। व्यापार घाटा कुल अर्थव्यवस्था के 4.8 प्रतिशत यानी 190 अरब डॉलर के रिकॉर्ड को छू गई थी। आज यह उसके एक तिहाई से नीचे है।

ऐसे और आंकड़े हम यहां प्रस्तुत कर सकते है जिनसे यह स्पष्ट हो जाएगा कि स्थितियों में वाकई गुणात्मक अंतर आया है। यह यूं ही नहीं होता। रक्षा क्षेत्र को देख लीजिए। भ्रष्टाचार के आरोप के भय से सेना के आधुनिकीकरण का काम रुक गया था। आवश्यक अस्त्र, लड़ाकू विमान और कल पूर्जे तक के सौदे नहीं किए जा रहे थे। देश की रक्षा से बड़ी प्राथकिता क्या हो सकती है? वह भी पीछे थी। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने हाल के एक साक्षात्कार में कहा है कि करीब 3 लाख करोड् रुपए के रक्षा सौदे संपन्न होने वाले हैं। कल्पना करिए यदि मोदी सरकार नहीं आती और वही सरकार सत्ता में रहती तो हमारे रक्षा की क्या हालत होती? पड़ोसी चीन और पाकिस्तान के मुकाबले हम कहां होते? रक्षा कूटनीति के मामले में भी भारत ने बड़ी छलांग लगाई है। आने वाले समय में यह संभव है कि दुनिया के बड़े देशों की तरह दुनिया के कुछ क्षेत्रों जिसमें समुद्री क्षेत्र भी शामिल हैं की रक्षा का प्रभार हमारे हाथों आए। दुनिया में नरेन्द्र मोदी ने अपनी कूटनीति से भारत की जो धाक जमाई है उसे तो कोई अस्वीकार कर ही नहीं सकता। क्या कोई सोच सकता था कि संयुक्त राष्ट्र संध के अपने पहले भाषण में प्रधानमंत्री मोदी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव रखेंगे और उसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया जाएगा?

हम नहीं कहते कि सब कुछ जैसा होना चाहिए वैसा ही है, लेकिनं मोदी सरकार की सबसे बड़ी देन देश के अंदर आत्मविश्वास पैदा करने तथा बाहर भारत के विकास और इसकी संक्षमता के प्रति विश्वास जगा देने की है। इन सबके बावजूद यदि किसी को नहीं लगता कि मोदी सरकार ने दो वर्षों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं तो उनके लिए किसी विशेष उपचार की आवश्यकता है ताकि उन्हें सच दिखाई दे सके।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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