रविवार, 12 जून 2016

एमटीसीआर में भारत की सदस्यता ऐतिहासिक कूटनीतिक उपलब्धि

 

अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत का एमटीसीआर या मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था में प्रवेश अब औपचारिक मात्र रह गया है। वास्तव में यह एक बड़ी और ऐतिहासिक कूटनीतिक सफलता है। इसमंे हम अमेरिका के सहयोग को नहीं भूल सकते। पिछले वर्ष जब भारत ने इसकी सदस्यता के लिए आवेदन दिया तो कई देशों ने इसका तीखा विरोध किया। कुछ देश आसानी से ऐसे महत्वपर्ण क्लबों का विस्तार नहीं करना चाहते। लेकिन भारत का अक तक का रिकॉर्ड तथा अमेरिका के साथ संयुक्त कूटनीति ने माहौल को बदल दिया। विरोध करने वालों के लिए औपचारिक विरोध की अंतिम तिथि 6 जून रख दी गई थी। ध्यान रखिए 7 जून को मोदी और बराक ओबामा की मुलाकात होनी थी। इसके मद्दे नजर ही यह तिथि तय की गई थी। भारत एवं अमेरिका की इस संबंध में चलने वाली कूटनीति पर नजर रखने वालों को इसमें कोई संदेह नहीं था कि वर्षों की भारत की आकांक्षा पूरी होने का ऐतिहासिक क्षण आ गया है। मिसाइल बनाने और उनका परीक्षण करने में समर्थ राष्ट्र होने के बावजूद भारत के साथ रंगभेद की नीति का अंत होगा और हम उस क्लब मंे शामिल होंगे और यह हो गया। एमटीसीआर की सितंबर-अक्टूबर में होने वाली प्लेनरी में भारत की सदस्यता की घोषणा हो जाएगी। हालांकि सदस्यता की घोषणा के लिए किसी प्रकार की बैठक की आवश्यकता नहीं है। इसके अध्यक्ष रोनाल्ड वीज अगले महीने भारत के दौरे पर भी आ सकते हैं।

पहले यह समझें कि एमटीसीआर है क्या? इसकी स्थापना 1987 में हुई थी। ं इसमें आरंभ में केवल 7 देश अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, जापान, इटली, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल थे। आज इस समूह में 34 सदस्य हैं। भारत 35 वंां होगा। यानी 29 वर्षों में इसकी संख्या पांच गुणी बढ़ी है। इसका उद्देश्य जैसा नाम से ही स्पष्ट है बैलिस्टिक मिसाइल, इसकी तकनीक, सामग्री आदि के प्रसार या बेचने की सीमाएं तय करना है। यह मुख्य रुप से 500 किलोग्राम पेलोड ले जाने वाली और 300 किमी तक मार करने वाली मिसाइल और अनमैन्ड एरियल व्हीकल टेक्नोलॉजी (ड्रोन) के खरीदे-बेचे जाने पर नियंत्रण रखता है। जाहिर है, भारत को भी इस सीमा का पालन करना होगा। एमटीसीआर के अलावा तीन ऐसी नियंत्रण व्यवस्था है जिसमें भारत प्रवेश चाहता है और अमेरिका मजबूती से भारत का साथ दे रहा है। ये तीन है- न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप यानी एनएसजी, ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और वैसेनार अरेंजमेंट हैं। ऑस्ट्रेलिया ग्रुप रासयनिक हथियारोे और वैसेनार अरेंजमेंट छोटे हथियारों पर नियंत्रण संबंधी व्यवस्था है। इन सबकी सदस्यता मिल जाने के बाद भारत दुनिया में हर किस्म के हथियार और उसकी तकनीकों की बिक्री, हस्तांतरण, सहयोग के तौर पर देने आदि के नीति निर्धारण में भूमिका अदा कर पाएगा। एनएसजी का फैसला भी तुरत होने वाला है। भारत का दावा एमटीसीआर की तरह ही इसलिए मजबूत है कि भारत ने कभी हथियारों के प्रसार में भूमिका नहीं निभाई और इसका रिकॉर्ड दुनिया के सामने है। किंतु हम यहां इनमें विस्तार से नहीं जाएंगे और एमटीसीआर पर ही केन्द्रित रहेंगे।

 हम यह देखें कि एमटीसीआर में शामिल होने का भारत के लिए क्या महत्व है। मूल महत्व तो यही है कि हमारे लिए मिसाइल रंगभेद के दौर का अंत हो गया। हम दुनिया के उन विशिष्ट 35 देशों मंेे शामिल हो गए। इसके बाद 300 कि. मी. और 500 ग्राम की सीमा का घ्यान रखते हुए भारत दूसरे देशों को मिसाइल तकनीक दे सकेगा। भारत रुस के साथ संयुक्त उद्यम में ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल का निर्माण कर रहा है। अब यह उन दूसरे देशों को बेच सकता है जिनका रिकॉर्ड अच्छा हो, जिनके द्वारा इसके दुरुपयोग करने की क्षमता नहीं है। इस प्रकार भारत एक अस्त्र निर्यातक देश हो सकता है। भारत को भी बेहतरीन तकनीक प्राप्त करने का द्वार खुल गया है। अब भारत को मिसाइल संबंधी उच्च तकनीकांे की प्राप्ति के रास्ते कोई बाधा नहंी रही। अब भारत अमेरिका से प्रिडेटर ड्रोन्स खरीद सकेगा। प्रिडेटर ड्रोन्स मिसाइल तकनीक ने ही अफगानिस्तान में तालिबान के ठिकानों को तबाह किया था। जनरल एटॉमिक्स कंपनी द्वारा बनाए गए प्रीडेटर ड्रोन्स अनमैन्ड एरियल व्हीकल  है। इन्हें जनरल एटॉमिक्स एमक्यू-1 प्रीडेटर भी कहा जाता है। भारत लंबे समय से इसके पाने की कोशिश कर रहा था लेकिन एमटीसीआर में नहीं होने के कारण अमेरिका के लिए इसे बेचना संभव नहीं था। जैसा हम जानते हैं। यह एक परीक्षित अस्त्र है। सबसे पहले इसका उपयोग अमेरिका वायुसेना और सीआईए ने किया था।  नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) की फौजों ने बोस्निया, सर्बिया, इराक, यमन, लीबिया में भी इनका प्रयोग किया था। प्रीडेटर के अद्यतन प्रारुप में हेलफायर मिसाइल के साथ कई अन्य हथियार भी लोड होते हैं।  प्रीडेटर में कैमरा और सेंसर्स भी लगे होते हैं जो इलाके की पूरी मैंपिंग में खासे मददगार होते हैं।

पाकिस्तान और चीन भारत के एमटीसीआर में जाने से परेशान हैं तो यह अकारण नहीं है। पाकिस्तान को भय है कि भारत आतंकवादियों का ड्रोन से पीछा कर हमला कर सकता है। आतंकवादियों से संघर्ष में यह ज्यादा कामयाब होगा। अपने क्षेत्र में जम्मू कश्मीर में ही नहीं, समय आने पर आतंकवादियों के लिए सीमा पार भी इसका इस्तेमाल हो सकता है। पाकिस्तान की मीडिया में इस बात की बड़ी चर्चा हो रही है कि भारत एमटीसीआर में जाने के बाद क्या क्या कर सकता है और पाकिस्तान उससे मुकाबले में कहां ठहरता है। तो यह है एमटीसीआर में हमारे जाने का महत्व और प्रिडेटर ड्रोन आने की संभावना मात्र से पैदा हो रहा भय। निश्चय मानिए इसका प्रभाव आतंकवादी समूहों पर भी पड़ेगा। उनके अंदर यह भय कायम होगा कि जिस तरह अमेरिका ने अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान की स्वात घाटी आदि में इसका उपयोग करके हजारों आतंकवादियों को मार डाला है वैसा ही भारत भी कर सकता है। अगर हम प्रिडेटर ड्रोन से इतना भय पैदा कर सके तो यही बड़ी उपलब्धि होती है।

ध्यान रखिए एमटीसीआर ने पूर्व में हमारे विकास को काफी बाधित करने की कोशिश की है। हमारे लिए केवल अपने मिसाइल कार्यक्रम ही नहीं अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए भी दुनिया से तकनीक और सामग्री हासिल करना कठिन बना दिया गया। हालांकि इसने विश्व को मिसाइल प्रसार से काफी हद तक बचाया भी है। वास्तव में इस व्यवस्था ने अनेक देशों के मिसाइल कार्यक्रम को रोका है, नष्ट कराया है या फिर उसे धीमा करा दिया है। कई देशों के खरीदने के कार्यक्रम स्थगित हो गए। उदाहरण के लिए अर्जेंटिना, मिस्र, और इराक को बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम रोकना पड़ा। ब्राजिल, दक्षिण अफ्रिका, दक्षिण कोरिया और ताइवान को मिसाइल और अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण कार्यक्रम को ठंढे बस्ते में डालना पड़ा। कुछ पूर्वी यूरोपीय देशांें जैसे पोलैण्ड एवं चेक गणराज्य को एमटीसीआर में प्रवेश की लालच में अपने बैलिस्टिक मिसाइलों को नष्ट तक करना पड़ा। ऐसे कुछ और वाकये हैं जब एमटीसीआर के भय ने देशों को मिसाइल कार्यक्रम से दूर कर दिया।

 भारत पर भी कम दबाव नहीं था और हमारी बांहे मरोड़ने की कम कोशिशें नहीं हुईं, लेकिन भारत ने अपने पड़ोस के नाभिकीय अस़्त्र तथा प्रक्षेपास्त्र विकास के मद्दे नजर स्वतः विकास और निर्माण की दिशा में काम करना आरंभ किया और प्रगति भी की। भारत ने इतना किया कि इसके प्रसार से अपने को दूर रखा तथा कभी अंधराष्ट्रवाद का प्रदर्शन नहीं किया, किसी को धमकी नहीं दी, अपनी ताकत की धौंस नहीं दिखाई। इसके विपरीत ईरान पर सीरिया को मिसाइल हस्तांतरण करने का आरोप है। पाकिस्तान को भी इसी श्रेणी का देश माना जाता है। भारत के इसी व्यवहार ने एमटीसीआर में प्रवेश का रास्ता बना दिया है। ध्यान रखिए चीन को इसकी सदस्यता नहीं मिली है। हालांकि उसने इसके नियमों के पालन की स्वतः घोषणा की हुई है। हम न भूलंे कि सदस्यता के साथ कुछ दायित्व भी आते हैं। वह दायित्व है दुनिया में मिसाइलों के गलत हाथों में पड़ने से रोकने का। आतंकवाद के खतरनाक विस्तार तथा दुनिया के अनेक क्षेत्रों में बढ़ते तनाव और अशांति के कारण अनेक देशों के अंदर मिसाइल पाने का विचार घर कर रहा है। संभव है उत्तर कोरिया की उदण्डता ने उन्हें यह अहसास कराया हो कि अगर वह कर सकता है तो हम क्यों नहीं। इस विचार को रोकना होगा। भारत को इसमें अन्य देशों के साथ भूमिका निभानी होगी। साथ ही कुछ देशों को प्रक्षेपास्त्र और अंतरिक्ष यान विकसित करने की क्षमता को मान्यता भी देनी होगी। तो भारत को दोनों स्तरों पर भूमिका निभानी है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

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