शुक्रवार, 26 जून 2015

उपराष्ट्रपति योग दिवस विवाद को कैसे देखें

 

अवधेश कुमार

योग दिवस के संदर्भ में उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी बनाम राम माधव को लेकर जिस तरह का बवण्डर खड़ा करने की कोशिशें हुईं, उन पर आप अपने दृष्टिकोण से कुछ भी मत व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। ट्विटर पर स्टैण्ड विद हामिद अंसारी से अभियान चलाने वाले झंडाबरदारों या फिर समाचार चैनलों पर तर्क कुतर्क से राम माधव, भाजपा, नरेन्द्र मोदी सरकार आरएसएस को कठघरे में खड़ा करने वालों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की। इसमें कुछ तो निरपेक्ष और निर्दोष लोग थे जिन्हें लगा कि उप राष्ट्रपति जैसे बड़े पद की गरिमा को बनाए रखना आवश्यक है। यानी उनकी नजर में राम माधव के ट्विट से उस पद की गरिमा को ठेस पहुंचा था। हालांकि राम माधव के ट्विट में सच्चाई नहीं थी। न तो राज्य सभा टीवी ने राजपथ योग दिवस कार्यक्रम को ब्लैक आउट किया था और न ही उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी को उसमें शामिल होने का निमंत्रण दिया गया था। किंतु राम माधव ने अपना ट्विट वापस लिया, उसके लिए क्षमा याचना भी कर दी। बावजूद इसके इरादे, संस्कार, विचार, मंशा आदि पर बहस होती रही और कुछ दिनों तक यह विषय चलेगा।

वैसे हामिद अंसारी के कार्यालय से यह बयान जारी कर दिया गया है कि सरकार के पक्ष आने के बाद उनकी ओर से यह अध्याय खत्म हो गया है। दरअसल, इस कार्यक्रम के आयोजक आयुष मंत्री श्रीपद नाईक ने अपने बयान में साफ किया कि इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी थे। चूंकि प्रोटोकॉल में राष्ट्रपति एवं उप राष्ट्रपति दोनों उनसे उपर हैं, इसलिए उन्हें निमंत्रण नहीं दिया गया। इससे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का यह वक्तव्य सच साबित हुआ कि उन्हें निमंत्रण नहीं दिया गया था। श्रीपद नाईक ने कहा कि राम माधव को सही जानकारी नहीं रही होगी, अगर उप राष्ट्रपति जी को कोई कष्ट हुआ है तो उसके लिए मैं क्षमा मांग लूंगा। यह एक विनम्र और शालीन व्यवहार है। इस तरह के व्यवहार से ही राजनीति में आचरण की मर्यादा कायम रहती है, लोकतंत्र कायम रह सकता है, जीवन और सत्ता में लोकतंत्र के जीवित रहने की संभावना बनी रहती है।

यहां तक तो ठीक है। किंतु क्या इतने से यह मान लिया जाए कि उप राष्ट्रपति जी का पक्ष सबल था, ठीक था? सतही तौर पर इसका उत्तर हां ही आएगा। आखिर जब उन्हें निमंत्रण ही नहीं मिला तो फिर वे क्या कर सकते थे? वे बिना निमंत्रण योग दिवस समारोह में कैसे भाग ले सकते थे। इसलिए भाग न लेने के पीछे उनका कोई दोष नहीं था। लेकिन इसे जरा दूसरे पहलू से देखिए। कई बार सतह पर जो सुनाई देता है, दिखाई पड़ता है, सच उसके परे भी होता है। क्या राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को निमंत्रण गया था? नहीं। तो उनने कुछ किया या पूरे आयोजन से स्वयं को दूर रखा? राष्ट्रपति ने बाजाब्ता राष्ट्रपति भवन में योग दिवस का आयोजन किया, हाथ में माइक लेकर उन्होंने अपना संक्षिप्त उद्बोधन दिया। इसे सभी चैनलों ने प्रसारित भी किया। प्रश्न है कि जब राष्ट्रपति बिना निमंत्रण के ऐसा कर सकते थे तो फिर उप राष्ट्रपति क्यों नहीं?

यह ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी या अनावश्यक रुप मेें उनके पक्ष में झंडा उठाकर इसे बहुत बड़ा मुद्दा बनाने में लगे लोगांें के पास भी नहीं होगा। जब राष्ट्रपति को ऐसा करने में कोई प्रोटोकॉल बाधा नहीं आया, संविधान का कोई प्रावधान आड़े नहीं आया, जब कोई कन्वेंशन रास्ते खड़ा नहीं हुआ तो उप राष्ट्रपति के लिए कैसे हो सकता था? भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव पर यानी भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों ने योग दिवस मनाना निश्चय किया तो भारत के हर व्यक्ति का दायित्व था कि इसमें जितना संभव हो योगदान करे। भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर था। 192 देशों में योग हो रहा था। करोड़ों लोग इसमें मजहब, संप्रदाय, देश, संस्कृति, पद, भाषा सबके परे उत्साहपूर्वक शामिल हो रहे थे। इसमें भारत की सत्ता से जुड़े ऐसे शीर्ष व्यक्तित्व की मौन निष्क्रियता का आखिर क्या अर्थ हो सकता है? सत्ता के शीर्ष पर बैठै लोगों को तो स्वयं अपना दायित्व समझना चाहिए था। उन्हें स्वयं यह तय करना चाहिए था कि इस ऐतिहासिक दिवस पर जब पूरा विश्व भारत की पहल पर उत्साहजनक सक्रियता दिखा रहा है, हमें क्या करना है।

उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी यही तय करने से चूक गए। उनके पक्ष में कई तर्क दिए जा रहे हैं। मसलन, कोई आवश्यक है क्या कि राष्ट्रपति जो करें वे उसका अनुसरण करें ही या उसी अनुसार आचरण करें? संविधान में तो कहीं नहीं लिखा है। कोई ऐसा कन्वेंशन भी नहीं है। निस्संदेह, संविधान में ऐसा नहीं लिखा है और न कोई कन्वेंशन ही है। लेकिन संविधान में हम ऐसा न करें, यह भी नहीं लिखा है। और कन्वेंशन कौन बनाता है? हम आप ही तो। फिर संविधान लिखने वाले या प्रोटोकॉल बनाने वाले ने उस समय कल्पना तो नहीं की थी कि 65 वर्ष बाद कोई प्रधानमंत्री होगा जो योग का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्रसंघ मंें रखेगा और उसे दुनिया स्वीकार कर एक दिवस तय कर देगी। अगर इसकी कल्पना की गई होती तो निश्चय ही इसमें किस पद के लोगों का क्या दायित्व है यह भी निश्चित कर दिया गया होता। परिस्थिति और समय के अनुसार अपने विवेक से भूमिका तय करनी पड़ती है। यह भी कहा जा रहा है कि योग तो स्वेच्छा का विषय है। जिसकी इच्छा हुई किया जिसकी नहीं हुई नहीं किया। राष्ट्पति की हुई उनने किया, उप राष्ट्रपति की नहीं हई उनने नहीं किया। आप उनको मजबूर तो नहीं कर सकते।

बेशक, किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता। किंतु उप राष्ट्रपति कोई आम नागरिक नहीं है। उसकी संवैधानिक के साथ राष्ट्रीय जिम्मेवारी भी है। वे भारतीय तो हैं। भारतीय हैं तभी तो उप राष्ट्पति बने है। तो एक भारतीय के नाते ऐसे महत्वपूर्ण दिवस पर अपना दायित्व वो कैसे भूल गए। क्या वे नहीं जानते थे कि प्रोटोकॉल के मुताबिक  वहां नहीं जा सकते? अगर नहीं जा सकते तो फिर उन्हें इस दिवस पर क्या करना है यह उनने क्यों नहंीं तय किया? भारत का उप राष्ट्रपति किसी राष्ट्रीय आयोजन से पूरी तरह अपने को अलग कैसे रख सकता है? यह तो सामान्य कल्पना से परे है। उपराष्ट्रपति पद की गरिमा का पूरा ख्याल रखते हुए भी कहना होगा कि हामिद अंसारी से भूल हुई है, चूक हुई है। वह अनजाने में हुई हो या जानबूझकर लेकिन हुई है। वे अपने तरीके से अपने अनुसार आयोजन कर सकते थे। ऐसा न करके उनने हमें निराश किया है। यह तो अच्छा हुआ कि दूसरे देशों का ध्यान इस ओर नहीं गया, अन्यथा यह संदेश भी निकल सकता था कि भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान के शीर्ष तीन व्यक्तित्वों में ही योग दिवस को लेकर एकमत नहीं है।

इसलिए उपराष्ट्रपति महोदय के पक्ष में खड़ा होने वाले जरा इसे दूसरे दृष्टिकोणों से देखें, उनके पद के अनुरुप राष्ट्रीय दायित्वांे को कसौटी बनाकर देखें तो उनके सामने सही निष्कर्ष अपने आप आ जाएगा। और निष्कर्ष यह होगा कि उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी को इस पूरे आयोजन से स्वयं को कतई दूर नहीं रखना चाहिए था। यह राम माधव के गलत ट्विट से परे का विषय है। उसे अपनी जगह छोड़ दीजिए। वो ट्विट नहीं आता तब भी उप राष्ट्रपति जी की भूमिका पर प्रश्न खडा होता ही। वास्तव में उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की तरह कुछ करना चाहिए था। इससे उनकी वाहवाही होती तथा एक अच्छा संदेश भी जाता। तो उप राष्ट्रपति इस अवसर से चूक गए है जिसका समर्थन कभी नहीं किया जा सकता।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

शुक्रवार, 19 जून 2015

ललित मोदी मामले की पूरी जांच क्यों नहीं कराई जाती

सुषमा स्वराज ललित मोदी प्रकरण
अवधेश कुमार

तो सुषमा स्वराज ने अपने ट्विट में यह प्रश्न उठा दिया कि मुझे नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली कौन है? नविका कुमार। नविका टाइम्स नाउ की पत्रकार है। आखिर सुषमा स्वराज ने नविका कुमार का नाम क्यों लिया? इसके कई अर्थ बताये जा रहे हैं। इसका एक अर्थ तो वही लगाया जा रहा है जो भाजपा के सांसद कीर्ति आजाद ने कहा कि सुषमा स्वराज आस्तिन के सांप का शिकार हुईं हैं। उसी बात को ताकत देने के लिए सुषमा स्वराज ने भी संकेत दे दिया। वह संकेत क्या हो सकता है? यही कि नविका कुमार की उनकी पार्टी में किससे साथ संबंध हैं? यानी उनकी पार्टी के लोग या जो सरकार में प्रमुख पद पर हैं उनने ही यह सारा खेल कराया है। यह संभव है कि कीर्ति आजाद को भी ऐसा ट्विट करने के लिए तैयार किया गया हो। कीर्ति क्रिकेट को लेकर अपनी पार्टी के एक नेता से दुखी रहते हैं। वो हमेशा यह पीड़ा व्यक्त करते हैं कि क्रिकेट में उनकी विशेषज्ञता है, पर उनकी पार्टी के नेता जो क्रिकेट की राजनीति में पूरी तरह संलिप्त हैं, उनसे न कुछ पूछते हैं, न कभी मुझे मेरी भूमिका निभाने देते हैं, न मैं कुछ कहता हूं उसके अनुसार आचरण करते हैं।
लेकिन हम इसमें फंसने की जगह पूरे मामले के केन्द्र ललित मोदी पर आएं। आईपीएल के जनक ललित मोदी ने क्रिकेट को एक अजीब किस्म का तमाशा बनाया। पहली बार खिलाड़ियों की नीलामी हुई जो तब शर्मनाक लगता था। मेरे जैसे लोगों ने इसका विरोध किया कि इस तरह मनुष्य को बाजार का उत्पाद बनाकर नीलामी नहीं होनी चाहिए। करोड़ों में खिलाड़ी खरीदे गए। जिसने खरीदा वो चाहे तो दूसरे को खिलाड़ी बेच भी सकता था। ये अजीब स्थिति थी। चीयर लीडर्स का प्रयोग आईपीएल में आरंभ हुआ। खेल के पहले डांस और गाने का लुत्फ दर्शकों को मिले इसकी व्यवस्था की गई। सबसे आपत्तिजनक खेल के बाद रात्रि की पार्टी जिसमें शराब और शबाब दोनों। तो इसका विरोध मेरे जैसे अनेक लोगों ने किया। यह मांग भी कि खेल को खेल ही रहने दे। इस तरह भोग की आकांक्षा पैदा करने वाला इवेंट न बनाएं।
यह ललित मोदी के न रहने पर चल रहा है। जो स्थिति है उसमें आगे भी आईपीएल तब तक चलता रहेगा जब तक लोगों की रुचि खत्म न हो जाए और इसमें आय कम न हो जाए। इसमें इतना धन था और है कि नेताओं, पूंजीपतियों, कारोबारियों, अभिनेताओं, जिनका कभी खेल से रिश्ता नहीं रहा, सब आ गए, खिलाड़ी खरीदे और तमाशा के भागीदार बने। बहुत सारे लोगों के लिए काला धन को सफेद धन बनाने का यह अवसर बन गया। कई लोगों के पास मोटी रकम केवल इसलिए आ गई कि उनने उनको आईपीएल में टीम बनाने और खिलाड़ी खरीदने में मदद कर दी। तो यह भ्रष्टाचार और अय्याशी का ऐसा आयोजन हो गया जिसमें न जाने कितने लोग डुबकी लगाने लगे और ललित मोदी इसके रिंग मास्टर थे। जहां इस तरह धन की अवैध और अति वर्षा हो रही हो वहां अनेक प्रकार के पाप और अपराध होते हैं। फिर दुश्मनी और विरोध भी पैदा होता है। यही हुआ। लड़ाई आरंभ हो गई।  इसी लड़ाई में कुछ लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, कुछ खिलाड़ी फिक्सिंग मंे फंसे, जेल गए, उनका खेल छुटा, लेकिन नेताओं और अभिनेताओं के साथ कुछ नहीं हुआ। एक पूरी ताकत ललित मोदी के खिलाफ थी और उसे देश छोड़कर भागना पड़ा।
उसके वकील महमूद आब्दी ने दावा किया है कि उनके खिलाफ कोई ब्लू कॉर्नर नोटिस नहीं है। कोई मामला उनके खिलाफ पेंडिंग नहीं है। वे प्रवर्तन निदेशालय और आयकर अधिकरियों के साथ बातचीत कर रहे हैं। यह दावा पहली बार आया है। अभी तक हमयही जानते हैं कि उनके खिलाफ ब्लू कॉर्नर नोटिस था। इंटरपोल का सदस्य भारत की सीबीआई है उसे ही इस बारे मे स्पष्टीकरण नहीं देना चाहिए। अगर मामला ही नहीं है तो फिर उनका पासपोर्ट क्यों जब्त हुआ था? हालांकि यह अगस्त 2014 में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश से उनको वापस किया गया। इस वापसी का एक अर्थ यह था कि उनके मामले को वैसा न्यायालय ने नहीं माना जिससे उनका पासपोर्ट जब्त रखी जाए। पासपोर्ट वापस मिलने का अर्थ यही है कि ललित मोदी भारतीय नागरिक के रुप में किसी देश में जाने और उस देश की अनुमति तक वहां रहने को स्वतंत्र है।
ललित मोदी के वकील ने आज वो कागजात भी दिखाए जिससे ललित की पत्नी के पूर्तगाल में ऑपरेशन होने के प्रमाण हैं। ललित वहां गए थे यह भी सच है। ललित ने उस वीजा का और क्या उपयोग किया यह बात अलग है। पूर्व गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने अगर उनके खिलाफ ब्रिेटेन को लिखा कि बाहर का वीजा दिए जाने से दोनों देशों के संबंध प्रभावित होंगे तो उसके पीछे कांग्रेस के अंदर ललित मोदी का विरोध माना जाता है। किंतु इसके लिए चिदम्बरम को बतौर गृहमंत्री कारण देने पड़े होंगे। सरकार बदलने के बाद भी वह पत्र तब तक प्रभावी था जब तक कि नई सरकार अपनी नीति नहीं बदलती। सरकार ने घोषित तौर पर नीति नहीं बदली है। सुषमा का उच्चायुक्त को फोन तथा भारतीय मूल के सांसद कीथ वाज से बातचीत उनको वीजा मिलने का कारण बना। भारत सरकार मानती है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं था तभी सभी सुषमा स्वराज के साथ सभी खड़े हैं।
ललित मोदी के वकील महमूद आब्दी ने कहा कि जबसे ललित मोदी ने शशि थरुर की तत्कालीन गर्ल फ्रेंड और बाद में उनकी पत्नी बनीं स्व. सुनंदा पुष्कर के टीम में शेयर होने की बात कही तबसे उनके पीछे यूपीए सरकार के लोग पड़ गए। आब्दी ने तीन नेता सलमान खुर्शीद, पी. चिदम्बरम एवं शशि थरुर का नाम लिया। सच है कि इसके खुलासे के बाद ही कि शशि थरुर ने टीम खरीदने मंे अपने पद के प्रभाव का उपयोग किया उन्हें मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। ललित मोदी को मिली सुरक्षा हटा ली गई, जबकि उनके अनुसार दाउद इब्राहिम ने उनको जान से मारने की धमकी दी थी। किंतु यही आश्चर्यजनक था कि ललित को कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने सुरक्षा कवच दिया। किसी को सुरक्षा देने का आधार क्या होता है? उस आधार पर ललित मोदी नहीं ठहरते थे। इसलिए सुरक्षा देना ही गलत था। दूसरे, अगर दाउद ने ललित को जान से मारने की धमकी दी तो सरकार ने उनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था की या नहीं? इसका जवाब तो कांग्रेस के उस समय के मंत्री ही दे सकते हैं। अगर कांग्रेस के अनुसर ललित मोदी भागे तो उसमें किसका दोष था? अगर वो इतना बड़ा आर्थिक अपराधी था या है तो उनको पकड़कर भारत लाने की कोशिश क्यों नहीं हुई? वह आराम से लंदन में रह रहा है, हवाना वेनिस जा रहा है, शादियों में भाग ले रहा है और आप केवल कहते रहे कि उसके खिलाफ ब्लू कौर्नर नोटिस है। क्या भय यह था कि ललित अन्य लोगों के बारे में ऐसा खुलासा कर देगा जिससे कई लोगों का सार्वजनिक जीवन बरबाद हो जाएगा?
ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर आज ढूंढा जाना चाहिए। लेकिन ललित के वकील ने जो कुछ कहा उससे उभर रहे सारे प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलता। खासकर प्रसारण अधिकार बेचने में मिले 125 करोड़ रुपए के आरोप का कोई जवाब इसमें नहीं था।  उनके खिलाफ फेमा के 16 मामले हैं जिनमें 1700 करोड़ रुपया हवाला से लेन देन करने का आरोप है उसका क्या हुआ? अब चूंकि मामला सामने आ गया है, इसलिए नरेन्द्र मोदी सरकार को चाहिए कि इसकी जांच नये सिरे से कराकर दूध का दूध और पानी का पानी करे। सुषमा स्वराज के बारे मेें कहा जा सकता है कि ऐसा करने के पहले उन्हें सरकार के अंदर बातचीत करनी चाहिए थी। इसे पारदर्शी तरीके से किया जा सकता था। देश को भी बताया जा सकता था कि उनके पास अनुरोध आया था जिसमें मानवीय आधाार पर उनने मदद का निर्णय लिया है। अगर वो ऐसा कर चुकीं होतीं तो आज स्थिति विस्फोटक नहीं होती।
अवधेश कुमार, ई.: 30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर: 01122483408, 09811027208


शुक्रवार, 12 जून 2015

तोमर की गिरफ्तारी को कैसे देखें

 

अवधेश कुमार

फर्जी डिग्री मामले में दिल्ली सरकार के कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी ने दिल्ली की राजनीति के पहले से बढ़े तापमान को और बढ़ा दिया है। तोमर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। ये जालसाजी, धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र से जुड़ीं धाराएं हैं। दिल्ली सरकार ने केन्द्र सरकार तथा उप राज्यपाल के खिलाफ एक साथ कई मोर्चा पहले से खोल रखा है उसमें एक मोर्चा और जुड़ गया है। आम आदमी पार्टी ने सड़क पर उतरकर इसका विरोध किया है। उनके सारे नेताओं का स्वर एक ही है कि अगर मामला न्यायालय में है तो फिर गिरफ्तारी की आवश्यकता क्या थी? वैसे उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने तो इसे सरकार द्वारा सीएनजी घोटाले को लेकर मुकदमा दर्ज करने के फैसले से भी जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल की भूमिका फिटनेस घोटाले में जाहिर हो रही है। सिसौदिया ने कहा कि यह बदले की कार्रवाई है। तोमर को झूठ बोलकर पुलिस ने घर से उठाया।

यह उस पार्टी के स्वभाव के अनरुप है। वह किसी मामले को सीधे तौर पर देखने की बजाय ऐसे हर फैसले और कदम को जो उसकी चाहत के विरुद्ध होतीं हैं, अपने किसी तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी कदम की प्रतिक्रिया में उठाया गया साबित करती है। इससे पूरा मामला गलत दिशा में जुड़ जाता है। ऐसा ही इस मामले में हुआ है। तोमर की गिरफ्तारी का विरोध आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार के मंत्रियों का अधिकार है और उन्हें करना चाहिए। किंतु उसे दूसरे मामले के साथ जोड़ने का अर्थ स्वयं को सरकार में होते हुए भी उत्पीड़ित साबित करना है। वास्तव में दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी पूरे मामले को इस तरह पेश कर रही है मानो केन्द्र सरकार दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग एवं अपने अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस के द्वारा उसे परेशान कर रही है। कुमार विश्वास ने कहा भी कि 32 से 3 होने को प्रधानमंत्री पचा नहीं पा रहे हैं। दिल्ली के पुलिस आयुक्त बी. एस. बस्सी का कहना है जो भी हो रहा है वह कानून के अनुसार हो रहा है।

इस मामले के तीन पहलू हैं। पहला, तोमर की डिग्री फर्जी होने का आरोप, दूसरा, उनके खिलाफ मामले का कानूनी पहलू तथा तीसरा,  इसका राजनीतिक फलक। राजनीतिक फलक की चर्चा हम पहले कर चुके हैं। इसलिए पहले एवं दूसरे पहलू पर ही विचार किया जाए। जितेंद्र तोमर पर आरोप है कि उनकी ग्रैजुएशन और एलएलबी की डिग्री फर्जी है। बिहार की भागलपुर स्थित तिलका मांझी विश्वविद्यालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि जितेंद्र सिंह तोमर का अंतरिम प्रमाणपत्र जाली है और इसका संस्थान के रिकॉर्ड में अस्तित्व नहीं है। आज जो दिल्ली पुलिस ने बताया उसके अनुसार बार काउंसिल ने शिकायत थी कि जीतेन्द्र सिंह तोमर ने अधिवक्ता के रुप में निबंधन के लिए जो डिग्रियां और दस्तावेज पेश किया था वो फर्जी लगती हैं। इसके अनुसार ऐसी जो भी शिकायत आती है उसकी पहले प्रारंभिक जांच करते हैं और फिर उसके आधार पर कार्रवाई करते हैं। सबसे पहले अवध विश्वविद्यालय से बीएससी करने का इनका दावा गलत निकला। इसमे जों रॉल नंबर दिया गया है वह इनके नाम पर नहीं थी। वहां से इनके बीएससी करने का कोई प्रमाण नहीं है। दूसरे, एलएलएबी की डिग्री के बारे में तिलका मांझी विश्वविद्यालय से पता किया गया। वहां जो रोल नंबर अंकित है वह किसी दूसरे छात्र संजय कुमार चौधरी के नाम था। तीसरे, जो अस्थायी पमाण पत्र इनने दिया है उसे भी फर्जी पाया गया। कोई अस्थायी प्रमाण पत्र इनके नाम पर उस विश्वविद्यालय से निर्गत ही नहीं हुआ। तीसरे, इनके कागजात में एक माइग्रेशन प्रमाण पत्र लगा था बुंदेलखंड विश्वविद्यालय का। वहां पता चला कि इनके नाम से कोई माइग्रेशन प्रमाण पत्र नहीं निर्गत किया था। जो रॉल नंबर दिया गया था वह 2001 का था इनने 1999 में कानून की डिग्री ले ली थी। तो इस तरह पुलिस की मानें तो बीए से लेकर कानून की सारी डिग्री ही नकली है। इसके बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उनको गिरफ्तार किया है।

तो यह पुलिस का पक्ष है। जहां तक कानूनी प्रक्रिया का प्रश्न है तो पुलिस का कहना है कि उसके पास 11 मई को बार काउंसिल ने शिकायत की। हमने पूरा समय लेकर इसकी जांच की और 8 जून को मुकदमा दर्ज कर 9 जून को गिरफ्तार किया है।  यानी गिरफ्तार करने से पहले शिकायत की पूरी छानबीन की गई है। किसी भी विधायक की गिरफतारी के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष को पूरे मामले की जानकारी दी जाती है। पुलिस का कहना है इस मामले में सारी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है। मामले की पूरी जानकारी विधानसभा अध्यक्ष और गृह मंत्रालय दे दी गई है। विधानसभा अध्यक्ष कार्यालय द्वारा जारी बयान में गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए कहा गया है कि दिल्ली पुलिस को बिना सदन की अनुमति के किसी सदस्य को हिरासत में लेने का भी अधिकार नहीं है। इसमंे यह नहीं कहा गया है कि उन्हें सूचना नहीं दी गई। पुलिस कह रही है कि विधानसभा अध्यक्ष को इसकी बाजाब्ता जानकारी दी गई है।  इस मत पर सहमति नहीं है कि किसी सदस्य की गिरफ्तारी के लिए सदन की अनुमति चाहिए। विधानसभा सदस्यों के विशेषाधिकार हैं, पर वे इस सीमा तक जाते हैं कि पुलिस जांच में मामला साबित हो जाने पर भी उनकी गिरफ्तारी का आदेश सदन से लेनी हो ऐसा नहीं है। ऐसे मामलों में उच्चतम न्यायालय के कई फैसले आ गए हैं।

दिल्ली सरकार कानूनी प्रक्रिया को लेकर न्यायालय मेें जा सकती है। लेकिन कानूनी प्रक्रिया से ज्यादा महत्व यहां मामले का है। सवाल है कि अगर कोई ईमानदार है तो कानूनी प्रक्रिया का पालन करके भी उसे गिरफ्तार करना गलत होगा। इसके विपरीत यदि वह दोषी है, अपराध किया है तो कानूनी प्रक्रिया का पालन न होने के आधार पर उसे दोषमुक्त नहीं किया जा सकता। इसलिए हमारे लिए मामला महत्वपूर्ण है। सामान्यतः यह विश्वास करना कठिन है कि कोई पूरी तरह फर्जी डिग्रियांे के आधार पर जीवन की इतनी लंबी यात्रा कर सकता है। कहां फैजाबाद का महाविद्यालय, फिर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, फिर बिहार का तिलका मांझी विश्वविद्यालय.......। इतनी लंबी यात्रा केवल ग्रेज्युएशन एवं कानून की डिग्री के लिए असामान्य सा लगता है। हम न्यायालय के फैसले के पहले कोई निष्कर्ष नहीं दे सकते। वैसे अगर तीनों विश्वविद्यालय से रिकॉर्ड न होने की रिपोर्ट है तो फिर पहली नजर में आप उसे गलत कैसै करार दे सकते है। किंतु यह भी तो संभव है कि कुछ लोगों ने तोमर के खिलाफ साजिश की हो। हालांकि ऐसा साजिश जिसमें तीनों विश्वविद्यालयों से रिकॉर्ड बदलवा दिए जाएं अविश्सनीय है। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा था कि मामला सामने आते ही उनने तोमर से पूछा। उनके अनुसार भाजपा के जिस व्यक्ति ने आरटीआई दाखिल की उसकी कॉपी और जवाब तोमर ने मुझे दिखाए। आरटीआई में सवाल किया गया कि क्या इस रोल नंबर पर तोमर को डिग्री मिली है? जब जवाब ना में मिला, तो मीडिया ने तोमर की डिग्री को फर्जी करार दिया। उन्होंने कहा कि तोमर का कहना है कि उनका रोल नंबर दूसरा था। कुछ ही दिन में सच्चाई सबके सामने आ जाएगी।

आज की स्थिति यह है कि दिल्ली बार काउंसिल ने तोमर का लाइसेंस सस्पेंड कर रखा है। तो हमें आम आदमी पार्टी एवं तोमर के दावों तथा पुलिस की छानबीन के बावजूद न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए। वैसे एक मामला तोमर के खिलाफ न्यायालय में चल रहा है। वहां तोमर ने अपना शपथ पत्र दिया था। वह मामला अलग है और पुलिस का वर्तमन मामला अलग। यह मामला बार काउंसिल द्वारा की गई शिकायत के आधार पर दायर हुआ है। समस्या दोनों मामलोें को मिलाने से हो रही है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

 

 

शुक्रवार, 5 जून 2015

भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार की यही है तो है गुहार

 ....तो राम मंदिर बनवा दें नरेन्द्र मोदी

अवधेश कुमार

भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने बयान दिया है कि इस समय हमारी बहुमत की सरकार है, इसलिए राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण का संसद से रास्ता बन सकता है। उन्हांेने यह भी कहा कि एक वर्ष सरकार को हो गए। यानी अब यह उपयुक्त समय है जब सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए। विनय कटियार का यह बयान ऐसे समय आया है जब एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों के बारे में आए कुछ बयानों को गलत करार दिया है। उनने मुसलमानों के प्रतिनिधिमंडल को वचन दिया है कि उनके काम से मूल्यांकन करें। वे आधी रात को भी उनकी सेवा करने को तैयार हैं। स्वाभाविक ही बहुत सारे लोग इसे  मुसलमान विरोधी बयान मानकर विनय कटियार को तो कठघरे में खड़ा कर ही रहे हैं, मोदी सरकार को भी लपेटे में ले रहे हैं। यह होगा। किंतु, क्या यह एक सांप्रदायिक बयान है? क्या यह मोदी सरकार के अल्पसंख्यकों की रक्षा करने के बयान के विपरीत मुद्रा है? या हमें इसे दूसरे प्रकार से देखना चाहिए?

इन प्रश्नों का उत्तर अपने नजरिये से आप कुछ भी दे सकते हैं। जो लोग अयोध्या विवाद को ही बेवजह मानते हैं उन पर कोई टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं। हां, आज भाजपा एवं सरकार के अंदर इस बयान से असहमत होने वालों की संख्या काफी बड़ी है। कुछ दिनांे पहले जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पत्रकार वार्ता कर रहे थे उनसे राममंदिर निर्माण के बारे मंे प्रश्न पूछा गया। उनने क्षण भर के अंदर यह उत्तर दिया कि मंदिर बनाने के लिए हमें 370 स्थान चाहिए जो नहीं है। यह बात ठीक है कि अगर संसद के अंदर राम मंदिर पर विधेयक पारित कराना हो तो उसके लिए दोनों सदनों में बहुमत चाहिए। हालांकि इस बात पर अभी मतभेद है कि वह बहुमत कितना चाहिए, किंतु अध्यक्ष का बयान तो अंतिम बयान हो गया। उसके परे अगर कोई बयान देता है तो वह पार्टी का अधिकृत मत नहीं हो सकता। दूसरे, कुछ लोग अगर पीछे पड़ जाएं तो वह पार्टी के अनुशासन का उल्लंघन भी हो जाएगा। इस मामले में भाजपा का नेतृत्व अनुशासन के उल्लंघन की सीमा तक जाने का रुख नहीं अपनायेगा। हां, पार्टी का मान्य रुख अभी दो ही है। एक वो जो अमित शाह ने कह दिया और दूसरा कि मामला उच्चतम न्यायालय में है, इसलिए हमें उसके फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

कुछ लोग यह तर्क दे रहे हैं कि चूंकि कटियार पार्टी एवं सरकार दोनों मंें प्रभावहीन बना दिए गए हैं, इसलिए वे जानबूझार ऐसी बातें उठा रहे हैं ताकि किसी तरह लोगों की नजर में आएं। हो सकता है कटियार ने सुर्खियों में आने के लिए भी बयान दिया हो। हम इस बारे मंें निश्चयात्मक रुप से तो कुछ नहीं कह सकते। लेकिन संघ परिवार के अंदर ऐसे लोग भी हैं जो कटियार की बात का समर्थन कर रहे हैं। तो कटियार इस मायने में सफल हैं कि उन्होंने एक बयान से अपने पक्ष और विपक्ष में वातावरण बना दिया है, चर्चा में आ गये हैं। हम न भूलें कि कटियार की पृष्ठभूमि हिन्दुत्व की है। वे बजरंग दल के संस्थापक अध्यक्ष रहे हैं। वहां से उनकी यात्रा संसद और भाजपा तक पहुंची। यानी भाजपा में वे विश्व हिन्दू परिषद के चेहरा माने जाते थे। इस समय अगर वे प्रभाव में नहीं है तो उनके सामने या तो अपने को चुपचाप निष्क्रिय कर देने का विकल्प है या फिर सामने आकर सक्रिय होने का। निष्क्रियता का विकल्प कोई नहीं चुनता। तो उन्होंने दूसरा विकल्प चुना।

विहिप के नेता यही मांग करते रहे हैं। अभी भी विहिप का रुख यही है कि संसद में कानून बनाकर राममंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया जाए। इस परिप्रेक्ष्य में विचार करें तो कटियार का बयान विहिप के विचारों की अभिव्यक्ति ही है। जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे तो विहिप के वरिष्ठतम नेता अशोक सिंघल ने कहा था कि यदि वे प्रधानमंत्री बन गए तो मुझे उम्मीद है राम मंदिर अवश्य बन जाएगा। यह एक आम धारणा नरेन्द्र मोदी को लेकर संघ परिवार के अंदर रही है। इस तरह कटियार ने वही बात बोली है जो विहिप का माना हुआ जाना हुआ स्टैण्ड है। जो लोग यह मान रहे हैं कि अयोध्या विवाद पर गतिविधि केवल न्यायालय तक सीमित है, वे सही नहीं हैं। राममंदिर के समर्थक संत समाज की भी कई बैठकें हुईं हैं। वो भी मंदिर बनाने की बात इसी तरह कर रहे हैं। विहिप भी इस पर कई अयोजन कर चुका है। तो गतिविधियां चल रहीं हैं।

वैसे विनय कटियार को भी इसका पता होगा कि उनके बयान पर किस ओर से क्या प्रतिक्रियायें आएंगी। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के अध्यक्ष जफरयाब जिलानी ने कहा है कि जब मामला उच्चतम न्यायालय में चल रहा है तो इस तरह की मांग गलत है। इसमें यदि संसद ऐसा करती है तो यह संविधान का उल्लंघन होगा। संसद और सरकार को ऐसा करना चाहिए या नहीं इस पर मतभेद हो सकता है, किंतु उच्चतम न्यायालय में लंबित मामले पर संसद में कानून बनाना अंसवैधानिक कैसे हो जाएगा। संविधान में कहां लिखा है कि उच्चतम न्यायालय किसी दीवानी मामले की सुनवाई कर रही हो तो उस पर संसद में कानून नहीं बन सकता। हां, उस कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। सामान्यतः उच्चतम न्यायालय संसद के कानून बनाने के अधिकार में हस्तक्षेप करने से बचता है। लेकिन जिलानी जो बोल दें वही सही। जिलानी क्या संविधान के विशेषज्ञ हैं? अगर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी नहीं बनी होती तो उनको कोई जानता भी नहीं। आज वे संपन्न हैं, उ. प्र. के जाने माने अधिवक्ता हैं, सरकार की उन पर कृपा है तो उसका केवल एक कारण है, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का प्रमुख होना। वे अपनी संस्था की ओर से बाबरी मस्जिद के पक्ष में वकालत करते हैं। इससे ही उनकी प्रसिद्धि है। कटियार के बयान पर उनका प्रतिवाद स्वाभाविक है। फिर वे क्यों चाहेंगे कि मामला हल हो जाए? वो इसी तरह की प्रतिक्रिया देंगे। इस देश में ऐसी प्रतिक्रियाओं का संघ परिवार के बाहर विरोध करने की पंरपरा भी नहीं है। इसलिए कटियार के समानांतर उनका बयान आ गया...और कटियार का तो विरोध हुआ, पर जिलानी पर खामोशी है। क्यों?

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी कोई इस्लाम की मान्य मजहबी ईकाई नहीं है। वह एक विवाद को लड़ने के लिए गठित हुआ समूह है। पर उसके अध्यक्ष के रुप में जिलानी इस्लाम और मुसलमानों के हर विषय पर बोलते हैं। वे मुस्लिम पर्सनल लौ बोर्ड में भी है। बोर्ड का काम मजहब के संदर्भ में कोई मत देना नहीं है, पर वो देते हैं। जैसे उनने योग एवं सूर्य नमस्कार को गैर इस्लामी करार दे दिया। इस्लामी विद्वानों ने ही कहा कि उनको ऐसा बोलने का अधिकार नहीं है। सूर्य नमस्कार में यदि मंत्र को हटा दिया जाए तो गैर इस्लामिक कैसे हो जाएगा? यह तो एक व्यायाम है ऐसा मानने वाले मुस्लिम नेताओं की संख्या बहुत ज्यादा है। पर बाबरी मामले पर कोई मुसलमान जिलानी के विरुद्ध नहीं जाता। उसके कारण समझने की भी आवश्यकता नहीं।

यही बात दूसरी ओर लागू नहीं होती। यह हिन्दू समाज का खुलापन कि यहां बहस और हमले की पूरी आजादी है।  कटियार के बयानों से असहमति हिन्दुओं की ओर ही ज्यादा जताई जा रही है। अरे भैया, यहां भाजपा, संघ परिवार को कुछ समय अलग करके सोचिए कि जिस व्यक्ति की राजनीति मे पैदाइश ही राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन से हुई वह इस पर बात नहीं करेगा तो और किस पर करेगा? अगर बाबरी के समर्थन में बोलना सांप्रदायिक नहीं है तो फिर मंदिर पर बोलना सांप्रदायिक कैसे हो जाएगा?

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

सोमवार, 1 जून 2015

कभी आपने कल्पना की थी ऐसे महाप्रचार अभियान की

 

ये है मोदी का जनता तक बात पहुंचाने का तरीका

अवधेश कुमार

निस्संदेह, किसी सरकार के एक वर्ष पूरा होने का यह ऐसा महाप्रचार है अभियान जिसकी पहले कल्पना नहीं की गई थी। आज यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश में किसी सरकार की एक वर्ष की उपलब्धियों पर देशव्यापी इतना व्यापक, बहुपक्षीय, संघन और लंबा कार्यक्रम पहली बार हो रहा है। 22 मई से जो पत्रकार वार्ता आरंभ हुई वह जारी है और उस तारीख से एक महीने यानी 21 जून तक ऐसे ही चलेगा। मंत्री तो पत्रकार वार्ता कर ही रहे हैं, प्रवक्ताओं और नेताओं को भी जिम्मेवारी मिली है। एक महीने तक पत्रकार वार्ता अपने में रिकॉर्ड होगा। यह देश के कोने-कोने में हो रहा है। उदाहरण के लिए अरुण जेटली ने दिल्ली में पत्रकार वार्ता की तो ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेन्द्र सिंह ने केरल में। इसके अलावा सरकार के कामकाज को जनता तक पहुंचाने के लिए 10 करोड़ सदस्यों के बीच रिपोर्ट कार्ड भी बांटी जा रही है। सरकार की ओर से संवाद नामक 25 करोड़ बुकलेट तैयार हुई। इस बुकलेट में 11 मंत्रालयों की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

मथुरा रैली से जनसभा की शुरुआत स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर की। मथुरा की रैली में हमने पूर्व तैयारी देखी। भीड़ देखी, और मोदी का भाषण सुनां। इसके साथ दूसरे नेताओं की रैलियां सभायें भी हुईं, हो रही हैं..। अब विपक्ष लगाता रहे आरोप, करता रहे बहस, कहती रहे सरकार को कॉरपोरेट समर्थक......किसान विरोधी.....। महाअभियान यही तक यह सीमित नहीं है। भाजपा सरकारी योजनाओं के लिए मेला लगा रही है, प्रदर्शनियां लगा रही है। इसका क्या जवाब है विपक्ष के पास?  देशभर में कुल 200 बड़ी रैलियां तथा 5000 सभाओं की योजना है। मोबाइल वैन चल पड़ा है जो 600 से ज्यादा जिलों में जाकर रुकेगा। तैयारी के तहत दूरदर्शन और आकाशवाणी को सरकार की उपलब्धियों पर ऑडियो और वीडियो क्लिप मुहैया कराने को कहा गया। इन क्लिप्स को विभिन्न वेबसाइट्स पर डाला गया है। विभिन्न राज्यों से चलने वाले मीडिया संगठनों को भी इस योजना में शामिल किया गया है। इसके लिए वार्तालाप नाम से वीडियो कांफ्रेंस के जरिए विशेष तौर पर प्रेस कांफ्रेंस भी हो रही है। मीडिया को विभिन्न मुद्दों पर इंफोग्राफिक्स भी जारी किया जा रहा है। नरेंद्र मोदी ने 26 मई को किसान चैनल की शुरुआत से यह संदेश देने की कोशिश की कि विपक्ष की आलोचनाओं के विपरीत उनका उनके प्रति कितना समर्पण है। किसान चैनल को मोदी सरकार के किसान हितैषी के साकार प्रतिरुप के तौर पर पेश किया जा रहा है। यही नहंीं मोदी सरकार ने इसे सरकार एक वर्ष नाम देने की जगह कहा है कि यह जनकल्याण पर्व है। इस जन कल्याण पर्व के तहत सरकार के मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ सांसद रैली कर सरकार की एक साल की उपलब्धि के बारे में अपने नजरिए से बातें रख रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि केवल घोषणा हो गई और लोग चल पड़े पत्रकार वार्ता करने या भाषण देने। बाजाब्ता प्रवक्ताओं के लिए वर्कशौप का आयोजन हुआ। उसमें यह बताया गया कि उनको क्या बोलना है। किन प्रश्नों का उत्तर किस तरह देना है। उनको पूरी जानकारियां उपलब्ध कराईं गईं। कहा जा रहा है कि मंत्रियों की बैठक में भी किस मंत्री को क्या-क्या मुद्दे उठाने है, कैसे उठाने है यह भी निर्धारित कर दिया गया है। उनके पूरे तथ्यों के साथ उपस्थित रहना है। इस तरह की तैयारी न हमने पहले देखी न सुनी। हम देख रहे हैं कि किस तरह वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री पत्रकार वार्ता कर रहे हैं, साक्षात्कार दे रहे हैं। यहां तक कि मंत्री सोशल मीडिया (फेसबुक और ट्विटर) पर भी इंटरव्यू दे रहे हैं।ं वेबसाइट्स को भी पर्याप्त अहमियत दी जा रही है। मंत्री ब्लॉग या लेख लिख रहे हैं।

कहने की आश्यकता नहीं कि सरकार इस अवसर का हर संभव अधिकतम प्रचार तरीकों, प्रचार साधनों तथा अपने सामने उपलब्ध एक-एक व्यक्ति का इसमें उपयोग करने की योजना पर चल रही है। पहले विपक्ष के कौरपोरेट समर्थक, किसान विरोधी, गरीब आदमी विरोधी आरोप का जवाब एक ही दिन में दो इन्श्योरेंस और एक पेंशन योजनाओं का एक साल 16 शहरों से आरंभ करके दिया गया। यह कार्यक्रम ऐसा था और इसको इस ढंग से पेश किया गया कि लोगों को लगा कि वाकई सरकार तो हम आम व्यक्तियों के लिए काम कर रही है। वास्तव में जन कल्याण पर्व के महाअभियान के द्वारा सरकार देश के अधिकतम आबादी तक पहुंचना चाहती है, तथा उनके दिमाग में यह बात बार-बार बोलकर बिठा देना चाहती है कि उसने एक वर्ष में कितना काम किया है। 365 दिन और 300 काम। अब आप एक-एक काम को काटते रहिए। लोगों तक अगर वाकई 25 करोड़ न सही 10 12 करोड़ बुकलेट भी पहुंच गई तो उसका कितना असर होगा इसका अनुमान लगाइए। सच कहा जाए तो सरकार इस तरह से एक वर्ष पूरा होने को महाअभियान बना देगी इसकी कल्पना विरोधियों ने नहीं की होगी।

वस्तुतः यह नरेन्द्र मोदी का अपना तरीका है। किसी विषय को एकदम जनता के दिमाग में पैठाने के लिए हर उस एक साधन का इस्तेमाल करो जो संभव है। इतना सघन प्रचार करो कि विरोधियों की आवाज उसकी गूंज में सुनाई भी न पड़ेा। यह तरीका उनने गुजरात में आजमाया। जैसे-जैसे उनको अनुभव आया उनने धीरे-धीरे इसे विस्तार दिया और अब इसे देश भर में आजमा रहे हैं। विपक्ष के हमलों, आलोचनाओं का इतने व्यापक स्तर पर और इस तरह जवाब देने के अयोजनों का देश पहली बार साक्षात्कार कर रहा है। यह पूरे देश को सरकारमय बना देने का तरीका है। यह देश को मोदीमय माहौल में फिर से ले आने की जबरदस्त कोशिश है। यह देश को चुनाव पूर्व में उभरी उम्मीदों के पायदान पर अपने कामों दावों से फिर खड़ा करने की रणनीति है। पूरा देश इस पर बहस कर रहा है, अन्य मुद्दों के बीच यही मुख्य मुद्दा बना है, चर्चा का विषय है। इतने बड़े शोर में विपक्ष की आवाज इस रुप में और इतने विस्तार से तो सुनाई नहीं पड़ रही है। टेलीविजन चैनलों के बहस में या जवाबी बयानों में विपक्ष दिखाई दे रहा है। वास्तव में इस सच को स्वीकार करना होगा कि विपक्ष में किसी दल या नेता के पास इतनी तैयारी या क्षमता नहीं कि उसी तरह उनका मुकाबला कर सके। तो अभी तक के सारे हमलों को परास्त करने का यह महाअभियान आरंभ हो चुका है। हां, इसकी प्रभाविता, सफलता और विफलता को लेकर दो राय हो सकती है, किंतु इसके अभूतपूर्व, अतुलनीय होने में नहीं।

जाहिर है, मोदी के चेहरे पर आलोचनाओं के बावजूद जो आत्मविश्वास दिखता है उसका कारण इसी में निहित है। उनको अपने आजमाये तरीकों के परिणामों पर पूरा विश्वास है। विपक्ष को यदि इसका मुकाबला करना है तो फिर उसे अपनी रणनीति, तरीके तथ्यों, उद्गारों, प्रतिकिं्रयाओं पर नये सिरे से विचार करना होगा। उसका पाला परंपरागत तरीके से काम करने वाले या राजनीति करने वाले नेता से अलग चरित्र और व्यवहार वाले नेता से पड़ा है। आप सोचिए न, नरेन्द्र मोदी जब अपनी पांच दिवसीय विदेश यात्रा से 20 मई को वापस आए तो उनके दिमाग में एक साल पूरा होने के अयोजनों की बात सबसे उपर थी। तभी तो उन्होंने 20 मई को ही अपने वरिष्ठ मंत्रियों के साथ बैठक की। हालांकि विदेश जाने के पहले वे इसकी पूरी योजना अपने रणनीतिकारों के साथ बना चुके थे। इस पर काम हो रहा था। मंत्रालय अपनी उपलब्धियों की सूची बनाकर भेज रहे थे। उनकी प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा संवीक्षा भी की जा रही थी। इन सबकी सूचना हमें 14 मई को ही केन्द्रीय मंत्री अनंत कुमार की पत्रकार वार्ता से मिल चुकी थी। लेकिन कितना हुआ है और इसे किस तरह आरंभ कर देना है इसके लिए मोदी ने बैठक ली और फिर जो हो रहा है हमरे सामने है। आप खुद इसका उत्तर तलाशिए कि क्या इस तरह सुनियोजित तरीेके से विपक्ष की कोई पार्टी या नेता मुकाबला कर रहा है?

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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