शनिवार, 14 मार्च 2015

डीमापुर की घटना और समाज की प्रतिक्रिया दोनों डरावनी

अवधेश कुमार
जिस तरह डीमापुर में भीड़ ने बलात्कार के एक आरोपी को सरेआम सारी सुरक्षा को तोड़कर जेल से बाहर निकाला, उसे नंगा किया, करीब 8 कि. मी. तक उसका जुलूस निकाला और फिर काम तमाम कर दिया, उससे हर विवेकशील व्यक्ति के अंदर सिहरन पैदा हो जाती है। किंतु विडम्बना देखिए कि देश में भारी संख्या मंें ऐसे लोग हैं जिनने इस हत्या को सही करार दिया है। आप सोशल मीडिया या समाचार पत्रों में आ रही प्रतिक्रियाओं को देखिए तो आप अंदर से दहल जाएंगे। ऐसा लगता है जैसे हमारे देश में एक इतना बड़ा वर्ग हो गया है जिसे न तो घटना का सच जानने में अभिरुचि है, न उसे इस तरह आतंक के राज की तरह अंजाम देने के खतरनाक परिणामों की चिंता ही है। समाज का यह रवैया अत्यंत चिंताजनक है। आप अगर ऐसी घटना का समर्थन करते हैं, तो फिर माओवादियों की हिंसा को जायज मान लीजिए। आखिर वे भी तो यही कहते हैं कि हम राज्य एवं पूंजी के अन्याय के विरुद्ध लड़ रहे हैं। हिंसा चाहे वह निजी हो या सामूहिक....उसके पीछे किसी भी कारण को न्यायसंगत मान लिया गया तो फिर हिंसक अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी।
बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने वाले के साथ केवल मानसिक रुप से असंतुलित लोग ही खड़े हो सकते हैं। पर इसके लिए हमारे यहां न्यायिक प्रक्रिया है। फरीद खान नामक युवक न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही जेल मे बंद था। उसके साथ न्यायालय फैसला करता। वैसे भी बलात्कार के खिलाफ इतने कड़े कानून बन गए हैं कि सामान्यतः किसी दोषी का बच जाना नामुमकिन है। किंतु अपराध साबित भी तो हो। हमारी  भूमिका यदि पुलिस जांच में कोताही बरतती है तो उस पर दबाव बनाने की हो सकती है, लेकिन हम ही अगर पुलिस, साक्ष्य, न्यायालय ....सबकी भूमिका निभाने लग जाएं तो क्या होगा? कोइ आवश्यक नहीं कि जो आरोप लगा है वह सच ही हो।
वैसे भी डीमापुर की घटना का जितना सच सामने आया है उससे मामले को लेकर निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचना जरा कठिन है। आरंभ 23 फरवरी को हुआ। जिस नगा युवती की ओर से बलात्कार का मामला दर्ज हुआ है वह फरीद के साथ एक होटल में रात भर रही थी। उसे उसके साथ घूमते हुए भी देखा गया था। 24 फरबरी को होटल से निकलने के बाद वह बलात्कार का मामला दायर करती है और यह वहां बड़ा मुद्दा बन जाता है। जब उससे पूछा गया कि आप उसके साथ बाजार मंे क्यों घूम रहीं थीं, फिर होटल में क्यों गईं तो उसका जवाब होता है, मजबूरी में। यह प्राथमिकी में भी लिखा है। क्या मजबूरी थी इसका खुलासा पुलिस ने नहीं किया है। उसके बाद से वहां आक्रोश प्रदर्शन का सिलसिला चलने लगता है। जैसा आम तौर पर होता है वक्ता मांग करते हैं कि या तो उसे तुरत सजा दो या फिर हमें सौंप दो। पिछले दिनों राज्य सभा में एक महिला सांसद ने निर्भया बर्बर दुष्कर्म कांड के आरोपी मुकेश के बारे में यही कहा। डीमापुर में वह लड़की एक विशेष आदिवासी समुदाय से आती है, इसलिए यह भी मांग थी कि हमें अपनी परंपरा के अनुसार न्याय करने की छूट दी जाये। और वे अंततः यही करते हैं।
 डॉक्टरी जांच में लड़की के साथ यौन कर्म की पुष्टि होती है। हम इसे जो भी मानें, पर इस बावेला और सरेआम हत्या के एक साथ कई पहलू सामने आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यहां बलात्कार और उसकी न्यायिक प्रक्रिया नहीं, एक समूह की राजनीति ने सारा कांड करा दिया। इस समय नागालैण्ड के जो मुख्यमंत्री हैं, जेलियांग उनको हटाने की मांग का भी आंदोलन चल रहा है। यह लगभग स्पष्ट हो रहा है कि जो विधायक उनसे असंतुष्ट हैं उनने भी इस आग को भड़काया और उसे इतना परवान चढ़ाने की कोशिश की ताकि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाए, गोलियां चले, गिरफ्तारियां हों, और फिर सरकार को विफल करार देकर उनको हटाया जाए। एक पहलू इसका नगा आदिवासियों के बीच कई कारणों से बढ़ा हुआ द्वंद्व भी माना जा रहा है।  हम जानते हैं कि नगालैंड में केवल डीमापुर ही एक स्थान है जहां किसी को जाने या रहने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इससे वहां की आबादी के चरित्र में व्यापक परिवर्तन आया है। वहां अब तक अपने कबिले तक सीमित रहे आदिवासियों के जीवन शैली संबंधी सीमायें टूटी हैं। खासकर जिस लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाया वह सेमा कबीले की थी। उस कबीले की लड़कियों के साथ असम से आकर वहां रहने वाले मुसलमानों की शादियां हुईं हैं जिनके कारण वहां तनाव बढ़ा है। दूसरे कबीलों को और कुछ उस कबीले के अंदर के लोग भी इसके खिलाफ क्षुब्घ हैं। इस कारण वहां तनाव और आपसी मारपीट होती रही है। बाहरी लोगों के आने के कारण डीमपुर में प्रोपर्टी का बाजार भी गरम हुआ है, कई प्रकार के धंधे चल पड़े हैं, कुछ माफिया और अपराधी तत्व भी वहां जमे हैं। कॉल गर्ल या सैक्स का अवैध धंधा भी होटलों के माध्यम से चलता है। समय-समय पर गैरकानूनी हथियारों का जखीरा भी पकड़ में आता है। चूंकि वहां पहले से सक्रिय उग्रवादी गुटों के बीच प्रतिस्पर्धा है उस कारण भी समस्या जटिल हुई है। हालांकि उग्रवादी युद्धविराम के कारण सरकार के खिलाफ हिंसा नहीं कर रहे, पर उनका आपसी टकराव तो होता ही रहता है।
कहने का अर्थ यह कि डीमापुर में एक साथ राजनीतिक-आर्थिक अवस्था, उसके कारण आ रहे बदलाव, सामाजिक द्वंद्व, सांप्रदायिकता की भावनायें, माफियाओं और अपराधियों की उपस्थिति, उग्रवादियों का आपसी हिंसक दशा.....इन सबने मिलकर.पूरी स्थिति को ऐसा बना दिया है जिसमें ऐसी अकल्पनीय घटना को अंजाम देना संभव हो सका। जरा सोचिए न कोई भी भीड़ किसी जेल की सुरक्षा को तोड़कर कैसे अंदर घुसेगा और आरोपी को बाजाब्ता बाहर निकाल लायेगा। आखिर जेल से सुरक्षित कोई जगह कैसे हो सकता है? बिना पुलिस, प्रशासन और राजनीति के मिलीभगत के यह संभव ही नहीं है। किसी ने भीड़ में कहा भी कि इसके बाद न तो बाहरी बदमाश लड़कियों को फुसलाकर उनके शादियां करेंगे, प्यार का नाटक करेगे और न लड़किया ही उनके साथ जाना चाहेंगी। तो यह भी एक सोच है। वस्तुतः बलात्कार का मामला दर्ज होने के बाद धीरे-धीरे जितना कुछ सामने आया उसे देखने के बाद स्थिति को समझना आसान हो गया था। न तो वहां की पुलिस के लिए, न सरकार के लिए और न हमारे आपके लिए। इतना बड़ा बवण्डर वहां 10 दिनों तक चलता रहा, पर किसी में हिम्मत नहीं थी कि इसके सारे पक्षों को सामने रखकर बात करे। मुख्यमंत्री ने लोगों से अपील तो की, पर जब उनके असंतुष्ट इसके पीछे थे तो फिर उसका असर कहां होना था।
कुछ लोग तर्क दे रहे हैं कि लोगांें का पुलिस और न्याय प्रक्रिया से विश्वास उठेगा तो यही होगा। यहां यह पहलू लागू नहीं होता है। इसके परे मुल प्रश्न तो यह है कि आखिर हमारा समाज कहां पहुंच गया है जहां एक आरोप लगा और उसे राजनीतिक नेता, सामाजिक नेता, एनजीओ, छात्र संगठन.... सब या तो बिना सोचे या निहित स्वार्थ से सही तरीके से जांच और न्यायिक प्रक्रिया का रास्ता बनाने की जगह ज्वालामुखी बनाने में लग जाते हैं। लड़की किस कारण से उसके साथ घूमती थी, क्यों होटल मंें साथ रुकी, उससे उसका क्या संबंध था......संबंध बना तो क्यों बना....ये सारे पहलू अभी तक छिपे हुए हैं। लेकिन जिस पर आरोप लगा उसकी ऐसी मौत, जो वाकई बर्बर असभ्य युग की याद दिला देता है।
अवधेश कुमार, ई.ः 30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः 110092, दूर.ः 01122483408, 09811027208


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/