मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

कार्गो के रूप में लदा हुआ इंसानी जिस्म

लेखक: नदीम अब्बास क़ुरैशी, ज़िला लेया

आज आप फर्स्ट क्लास में उड़ान भरते हैं, और कल एक सामान की तरह जहाज़ में लाद दिए जाते हैं।
इसलिए हमेशा विनम्र रहिए।
हमेशा अल्लाह का शुक्र अदा कीजिए।
लोगों से हमेशा मुहब्बत और अच्छे अख़्लाक से पेश आइए।

कभी-कभी मय्यत को कई दिनों तक फ्रीज़र में रखा जाता है।
ज़रा सोचिए! माइनस डिग्री वाले ठंडे कोल्ड स्टोरेज में एक लाश कितनी तकलीफ़ और बेबसी में पड़ी रहती होगी?
और यह तकलीफ़ कोई और नहीं, बल्के उनके अपने ही उन्हें देते हैं।

एक और तकलीफ़देह और शर्मनाक मामला यह होता है जब यूरोप या किसी दूसरे मुल्क से मय्यत को पाकिस्तान लाया जाता है।
क्या आप जानते हैं कि ऐसी मय्यत का पहले “एम्बाल्मिंग (Embalming)” किया जाता है?
यानी मय्यत के जिस्म से खून और बाकी तरल पदार्थ निकालकर उसमें ऐसे केमिकल डाले जाते हैं जो इन्फेक्शन वग़ैरह को रोक सकें।

इस प्रक्रिया के दौरान:

मय्यत को पूरी तरह बेपर्दा किया जाता है।

गर्दन के पास एक नस को बाहर निकालकर उसमें चीरा लगाया जाता है और उसमें कैनूला डाला जाता है।

फिर मशीन के ज़रिए केमिकल्स पूरे जिस्म में पहुंचाए जाते हैं।

खून निकालने के लिए टांग के पास एक और नस को काटा जाता है।

पेट और सीने में चीरे लगाकर अंदर के नाज़ुक अंगों को पंचर किया जाता है और फिर उन्हें केमिकल से भरकर सील कर दिया जाता है।

मुँह बंद करने के लिए या तो कोई चिपकाने वाला पदार्थ लगाया जाता है या फिर उसे सिल दिया जाता है।

मैंने यह सब विस्तार से इसलिए लिखा है ताकि हम सब अपनी भावनाओं को एक पल के लिए अलग रखकर सोचें —
क्या यह सब वाक़ई एक मय्यत के साथ ज़रूरी है?
क्या आख़िरी दीदार के लिए यह अज़ीयत देना जायज़ है?

क्या यह बहुत महँगा सौदा नहीं है?
हम अपने मरहूम अज़ीज़ को इस कदर कष्ट क्यों देते हैं?
सिर्फ़ इसलिए कि कोई दूर का रिश्तेदार आखिरी बार चेहरा देख सके?
या इसलिए कि लोग कहें, “बहुत बड़ा जनाज़ा था”?
या इसलिए कि अगर कम लोग आए तो समाज में हमारी “बेज़ती” न हो?

हक़ीक़त तो यह है कि जब किसी का इंतिक़ाल हो जाए,
तो जनाज़े में उतना ही वक़्त लगना चाहिए जितना कि क़ब्र खोदने और तजहीज़ व तक़्फ़ीन के लिए ज़रूरी हो।
अगर कोई अज़ीज़ दूर है तो वह सब्र करे, मय्यत के लिए दुआ और सदक़ा करे।
सिर्फ़ चेहरा देखने के लिए किसी मय्यत को अज़ीयत न दें।

जिसकी मौत जहाँ लिखी है, वहीं आनी है।
अगर किसी को परदेस में मौत आए तो वहीं दफ़न कर देना बेहतर है।
अगर किसी को भीड़ जुटाने का शौक है तो याद रखे —
अल्लाह के यहाँ तौलने का पैमाना दुनिया से बिल्कुल अलग है।

अल्लाह तआला हम सबका अंजाम ख़ैर से करे
और हमें मौत के बाद की बे-हुरमती और अज़ीयत से महफ़ूज़ रखे…
आमीन।

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