शुक्रवार, 28 मार्च 2025

न्यायपालिका के प्रति आम जनमानस की आस्था पर प्रश्न चिन्ह?

बसंत कुमार

1970-80 के दशक में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में देश के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठतम जज जस्टिस एच.आर. खन्ना को नजर अंदाज करते हुए जब जस्टिस एच. एन. रे को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया तो सरकार की बड़ी आलोचना हुई और जनसंघ समेत सारे विपक्ष ने इस निर्णय को न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सरकार का हस्तक्षेप माना। इस पर यह कहा गया कि देश के आम नागरिक अमीर-गरीब सभी देश की न्यायपालिका पर अटूट श्रद्धा रखते हैं और न्यायपालिका पर इतना विश्वास रखते हैं कि कमजोर से कमजोर व्यक्ति अपने विरोधी को यह कह देता है कि "आई विल सी यू इन द कोर्ट"! पर विगत कुछ वर्षों में यह धारणा बन गई है कि अब तो न्यायालयों में न्याय बिकने लगा है, जहां आम आदमी वकीलों की भारी फीस नहीं वहन कर सकता वहीं अमीर आदमी जजों को पैसा खिलाकर अपने माफिक फैसला करवा लेता है। कुछ दिन पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ जज न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से करोड़ों रूपये का कालाधन मिलने की खबर सामने आई तब से यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि क्या अब भी देश की जनता न्यायपालिका की निष्पक्षता पर अटूट विश्वास रख सकेगी।

इस मामले को विस्तार से जानने के लिए इस घटना पर दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय की रिपोर्ट पर एक दृष्टि डालना जरूरी है, रिपोर्ट के अनुसार यह घटना 14 मार्च की रात को जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के स्टोर रूम में हुई जहां जस्टिस वर्मा के बंगले में रहने वाले लोग ही पहुंच सकते थे। दिल्ली पुलिस के आयुक्त को 15 मार्च को शाम 4.50 बजे इस आग की सूचना दी। इसके बाद चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार के साथ घटना स्थल पर पहुंच और जस्टिस वर्मा सी मुलाकात की। इसी दौरे के आधार पर उन्होंने अपनी रिपोर्ट तैयार की। चीफ जस्टिस उपाध्याय ने इस घटना की जानकारी 16 मार्च को भारत के मुख्य न्यायाधीश को दी और फिर जस्टिस वर्मा से संपर्क करके उन्हें इस घटना से संबंधित वो तस्वीरे दिखाई जो दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने उन्हें भेजी थी। तब जस्टिस वर्मा ने इसे लेकर साजिश की आशंका व्यक्त की पर इसी बीच फायर ब्रिगेड के प्रमुख ने आनन-फानन में एक बयान जारी कर दिया कि जस्टिस वर्मा के यहां लगी आग में नोट बिलकुल नहीं मिले।

जहां तक जस्टिस वर्मा के विरुद्ध साजिश की बात है तो वे और उनका परिवार देश की न्यायपालिका में नए नहीं थे कि उनके खिलाफ साजिश की जाती। जस्टिस वर्मा के पिता अमरेंद्र नाथ वर्मा इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे और उनके बड़े भाई एस.एन. वर्मा सीनियर एडवोकेट थे यानी बार और बेंच में वर्मा परिवार का दबदबा रहा है। ऐसी पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के खिलाफ साजिश की बात गले नहीं उतरती। आश्चर्य है कि करोड़ों रुपए के कालाधन के मामले में देश की प्रमुख जांच एजेंसिया (सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग) चुप्पी साधे रही। हाई कोर्ट के एक जज के यहां करोड़ों रुपए के कालाधन के जलने की घटना 14 मार्च को घटी और उसकी सूचना देश के मुख्य न्यायाधीश को चौथे दिन यानि 17 मार्च को मिली जो घटना स्थल से मुश्किल से 5-7 सौ मीटर दूर रहते हैं। लगता है कि इस मामले की लीपापोती के प्रयास किये गए हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या इस तरह की घटना किसी साधारण व्यक्ति के घर पर होती तो क्या जांच एजेंसियां या पुलिस इसी रफ्तार से काम करती।

इस घटना की वजह से वर्ष 2017 की एक घटना की याद ताजा हो गई जब मद्रास हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश जस्टिस चिन्नास्वामी कर्णन ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर उच्च न्यायपालिका के 20 न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की जानकारी दी। ऐसा पत्र लिखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने जस्टिस कर्णन के खिलाफ न्यायालय की अवमानना का मामला दर्ज किया और उन्हें पांच साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई। उस समय उनका विरोध करने वालों ने इस दलित जस्टिस को पागल तक कह दिया था और इतिहास के ऐसे पहले न्यायाधीश बने जिसे अपनी कुर्सी से जेल भेजा गया हो। लेकिन अब जब एक जज के घर से करोड़ों का काला धन मिला है तो यह कहा जा सकता है कि जस्टिस कर्णन का आरोप सही था।

कई वर्षों पूर्व दिल्ली से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र में खबर छपी थी जिसमें दिल्ली के एक हास्पिटल में कार्यरत एक अटेडेंट ने किसी का मेडिकल बनवाने के लिए 20 की रिश्वत ली जिसमें उसे 5 मिले और बाकी मेडिकल सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करने वाले डाक्टर को दिए। शिकायत मिलने पर एंटी करप्सन ब्रांच ने उसे गिरफ़्तर' किया। वह सस्पेंड हुआ और ट्रायल कोर्ट द्वारा दशकों तक मुकदमा चलने के बाद वह दोषी करार दिया गया और उसे नौकरी से डिस्मिस कर दिया गया। लगभग बीस वर्षों बाद भी उच्च न्यायालय में उसकी अपील का निपटारा नहीं हो सका और वह एक सजायाफ्ता का ठप्पा लगवाए इस दुनिया से विदा हो गया। दूसरी ओर यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान चारा घोटाले में नाम आने के बाद भी लालू प्रसाद यादव देश के रेल मंत्री बने रहे और उनके बचाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यह कहा कि जब तक उन पर दोष सिद्ध नहीं हो जाता तब तक वह निर्दोष माना जाना चाहिए पर यह सिद्धांत गरीब कर्मचारियों पर लागू नहीं होता है। उन्हें तो केस दर्ज होते ही निलंबित कर दिया जाता है, यह तो अच्छा हुआ कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार द्वारा प्रस्तावित अध्यादेश को प्रेस कॉन्फ्रेंस में फाड़ दिया नहीं ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराये जाने के बाद भी कई नेता आज भी सांसद या मंत्री बने रहते।

चिंता का विषय यह है कि एक आम व्यक्ति को छोटा मोटा अपराध हो जाने पर अपराध से कई गुना सजा दे दी जाती है और उनके बाल बच्चों को भूखा मरना पड़ता है पर हमारी न्यायपालिका के जजों को भ्रष्टाचार में लिप्त पाये जाने के बाद भी उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया नहीं पूरी हो पाती। इस पर उन्हें त्यागपत्र देने का विकल्प मिल जाता है जिसके कारण उन्हें पेंशन सहित सारे लाभ मिल जाते हैं और देश में अपराध करने पर सजा व्यक्ति की जाति व हैसियत देख कर दी जाती है जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे ही विचार जस्टिस वर्मा के मामले के उजागर होने के बाद देश के उपराष्ट्रपति ने व्यक्त किए है। अब देखना यह है कि उनकी चिंता के बाद स्थित में कोई परिवर्तन होता है या नहीं।

जस्टिस वर्मा की यह आशंका की उनके आउट हाउस में पाए जाने वाले करोड़ों के नोट किसी की साजिश का हिस्सा हो सकते हैं। यह सब सही पाया जाए और साजिशकर्ता पकड़ा जाए जिससे देश की न्यायपालिका में अटूट श्रद्धा और विश्वास रखने वाले देश के करोड़ों लोगों का विश्वास बना रहे और लोगों की यह आशंका की भारत में न्याय मिलता नहीं खरीदा जाता है निराधार साबित हो नहीं तो लोग यह कहना छोड़ देंगे कि आई विल सी यू इन द कोर्ट।

(लेखक एक पहल एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव और भारत सरकार के पूर्व उपसचिव है।)

गुरुवार, 27 मार्च 2025

नागपुर हिंसा के पीछे की सोच को समझना होगा

अवधेश कुमार

नागपुर के दृश्य निस्संदेह फिर देश को भयभीत कर रहे हैं। 33 से ज्यादा पुलिसकर्मियों का घायल होना, भारी संख्या में वाहनों की तोड़फोड़ या जलाना, जगह-जगह घरों और दुकानों का क्षतिग्रस्त होना बताता है कि हमले सुनियोजित थे। विधानसभा में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बयान भी दिया कि यह सुनियोजित हमला लगता है। नागपुर पुलिस की प्राथमिकी, अभी तक की छानबीन तथा हिंसा के पैटर्न बताते हैं कि यह त्वरित उत्तेजना और गुस्से की परिणति नहीं थी। तत्काल किसी मुद्दे ,विषय या बयान से उत्तेजना हो तो छिटपुट समूह निकलकर हल्की-फुल्की हिंसा कर सकता है। वीडियो फुटेज में हमलावर चेहरे ढंके हुए हैं,नकाबपोश हैं , कई के पत्थरबाजी, तोड़फोड़ करते समय चेहरे से नकाब उतार रहे हैं , फिर वे लगा रहे हैं। पेट्रोल बम तक चले।  इतने व्यापक क्षेत्र में बगैर पूर्व योजना और षड्यंत्र के वैसी हिंसा संभव नहीं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 13 प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है तथा 100 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी भी।

घटनाक्रम देखिए। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने 17 मार्च को औरंगजेब की कब्र हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन किया और छत्रपति शिवाजी महाराज चौक पर प्रतीकात्मक पुतला जलाया। माइनॉरिटी डेमोक्रेटिक पार्टी के शहर अध्यक्ष फ़हीम अहमद लगभग 50-60 लोगों को लेकर गणेशपेठ पुलिस थाना पहुंचा और लिखित शिकायत दर्ज कराई कि हरे कपड़े पर पवित्र कुरान की आयत लिखकर जलाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाई गई कि पवित्र कुरान की आयतें जलाई गई है , लोगों के घर से निकलने की अपील की गई। सोशल मीडिया पर झूठ फैलाया गया कि हिंसा में दो लोगों की मृत्यु हो गई है। एक सोशल मीडिया अकाउंट बांग्लादेश से मिला है जिसमें लिखा गया कि यह छोटा दंगा था, इससे बड़ा दंगा आगे होगा। फहीम खान थाने से आकर 400-500 लोगों, जिनके हाथों में हथियार थे को लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज चौक यानी धरना स्थल पर पहुंच गया। पुलिस द्वारा भीड़ से वापस जाने के आग्रह को अनसुना करते हुए भड़काऊ और उकसाऊ नारे लगे। आप सोचिए, अगर कुछ निहत्थे लोग मांगों के लिए प्रदर्शन कर रहे हों, पुतले जल रहे हों और वहां कुल्हाड़ियों ,पत्थरों, लाठी, रोड और अन्य ऐसी सामग्रियां लेकर 400-500 लोग लहराने लगें तथा दृश्य ऐसे हों मानो टूट पड़ने वाले हैं तो लोगों की कैसी मनोदशा होगी। इसी दौरान भालदारपुरा में पुलिस पर पत्थरों से हमले की भी घटना हुई। सबसे शर्मनाक अंधेरे का लाभ उठाकर महिला पुलिस के साथ छेड़खानी और दुर्व्यवहार था। गीतांजलि चौक पर भीड़ ने पुलिस वाहनों पर पेट्रोल बम से हमला किया और पुलिस के दो वाहनों में आग लगा दी। गंजीपुरा में फ्लाईओवर निर्माण के लिए खड़ी दो क्रेन को पेट्रोल बम से आग लगा दी गई। ड्यूटी पर मौजूद पुलिस अधिकारियों पर पत्थरों और घातक हथियारों से हमलाकर घायल कर दिया गया। बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग आक्रामक तेवर और तैयारी में महल, कोतवाली, गणेशपेठ और चिटनिस पार्क समेत शहर के विभिन्न इलाकों में हिंसा करने लगे। 

नागपुर के सीए रोड, भालदारपुरा, गंजी पेठ, हंसापुरी, गांधी बाग, चिटनवीस पार्क, आदि क्षेत्र में ज्यादातर दुकानें पुराने मोटरसाइकिल एवं ऑटो स्पेयर पार्ट्स की हैं। सभी दुकानें मुस्लिम समुदाय की है। सोमवार को दुकानें सुबह से ही बंद रखी गई थी। क्यों? मोबिनपुरा में 150 गाड़िया इन्हीं लोगों की खड़ी रहती थी, वहां एक भी गाड़ी नहीं थी।  क्यों?  शाम की हिंसा में केवल हिंदू घर एवं दुकान ही निशाना बने। नागपुर के डीसीपी निकेतन कदम पत्‍थरबाजी की घटना में घायल हुए। उनका वक्तव्य देखिए, ‘‘जिस तरह से हर तरफ से पत्थरबाजी हुई, उसमें कई अधिकारी घायल हो गए। एक घर में कुछ लोग छिपकर पत्थरबाजी कर रहे थे। टीम वहां गई तो दूसरी ओर से 100 से ज्यादा लोगों की भीड़ आई। मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की तो एक ने कुल्हाड़ी से हमला कर दिया। कई छतों से पत्थर फेंके जा रहे थे। पत्थर छत पर कैसे पहुंचे, कुछ तो प्लानिंग थी।’ भीड़ उन्मादित और कुछ भी करने पर उतारू थी तो कारण सामान्य नहीं हो सकता। पुलिस वालों से मोर्चाबंदी कर रहे हैं, घायल कर रहे हैं तो इसका गहराई से विश्लेषण करना होगा। 

ऐसी घटना को हम सामान्य राजनीतिक और दलीय चश्मे से देखेंगे तो  भविष्य में होने वाले भयावह परिणामों के भागीदार बनेंगे। सच को सच के रूप में समझ कर स्पष्ट न बोला जाए तो परिणाम सतत भयावह से भयावहतम की ओर बढ़ेंगे। सामान्य सामाजिक व्यवहार की दृष्टि से देखें तो इस हिंसा का कोई कारण नहीं था। कोई समूह किसी विषय पर लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहा है तो उसे मजहब विरोधी कार्रवाई मानकर हमले की व्याख्या कैसे की जाएगी? साफ है कि ऐसा कुछ जलाया ही नहीं गया जिसका प्रचार किया गया। असदुद्दीन ओवैसी ने बयान  दिया कि हरे कपड़े पर पवित्र पाक कुरान शरीफ की आयतें लिखकर जलाई गई है। इस तरह के अफवाह फैलाने वाले कौन हो सकते हैं? भारी संख्या में सोशल मीडिया अकाउंट बंद किए गए हैं और उनके आधार पर लोगों की गिरफ्तारियां हुई है। मानकर चलना चाहिए कि प्रदेश सरकार या अगर जांच केंद्रीय एजेंसी को दी जाती है तो केंद्र दोषियों को अंतिम सीमा तक दंड दिलाएगा। केवल दंड दिलाने से ऐसी समस्याओं का निदान नहीं हो सकता । विचार करने वाली बात है कि पूरे देश में जगह-जगह इस तरह की हिंसा के पैटर्न क्यों पैदा हो रहे हैं?  इतने ईंट , पत्थर , पेट्रोल बम आदि तत्काल पैदा नहीं हो सकते। इसकी पूरी तैयारी करनी होती है। हाल में महू, संभल से लेकर नागपुर तक मोटा- मोटी एक ही तरह का पैटर्न देखा जिसमें हमलावर पूरी तरह तैयार थे तथा सबके पास हमले की पर्याप्त सामग्रियां थीं। कोई औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग कर रहा है तो उससे इतनी संख्या में किसी समुदाय के लोगों के अंदर गुस्सा क्यों पैदा हो गई? औरंगजेब जैसे आततायी, धर्मांध, बुरे शासक के लिए उसकी मृत्यु के 300 से ज्यादा वर्षों बाद इतने लोगों के अंदर उसे अपना या इस्लाम का आदर्श मानने की इतनी संवेगी भावना कि मरने - मारने को उतारू हो जाएं कैसे पैदा हो गई? पहले भी सोशल मीडिया पर औरंगजेब का महिमामंडन कर  हिंसा फैलाने की कोशिश की गई है। केवल औरंगजेब नहीं,  महमूद गजनवी और उसके भांजे सालार मसूद तक के प्रति इतना समर्थन कैसे कि उन पर प्रश्न उठाने के विरुद्ध खुलेआम बयानबाजी और हिंसा तक की घटनाएं हो रही हैं?  क्या कल कोई नादिर शाह और अहमदशाह अब्दली को भी इस्लाम का ध्वजवाहक मानकर लड़ना शुरू कर देगा?  कल्पना करिए कि कोई जनरल डायर , लॉर्ड क्लाइव आदि के पक्ष में खड़ा हो तो देश उसे किस दृष्टि से दिखेगा? यही दृष्टि औरंगजेब, महमूद गजनवी, सालार मसूद गाजी जैसों के प्रति क्यों नहीं पैदा होती? 

यह विचारधारा है जिसमें इस्लाम के नाम पर काफिरों या विरोधियों के विरुद्ध अत्याचार, पवित्रतम स्थलों को ध्वस्त कर इस्लामी ढांचा खड़ा करना सही माना जाता है। इस्लाम को उच्च तथा काफिरों या विरोधियों के साथ  बुरे व्यवहार की विचारधारा को व्यापक स्वीकृति मिलती दिख रही है।

यही आचरण दुनिया में आतंकवाद और अन्य प्रकार की हिंसा का है। भारत विभाजन के पीछे भी यही था। इसलिए दलीय बयानबाजी द्वारा ऐसे तत्वों को परोक्ष समर्थन देना इनको हिंसा के लिए प्रोत्साहित करना है जो भविष्य में आत्मघाती साबित होगा। शिवसेना नेता संजय राऊत का बयान देखिए, “नागपुर में हिंसा होने का कोई कारण नहीं है। यहीं पर आरएसएस का मुख्यालय है। यह देवेंद्र जी का निर्वाचन क्षेत्र भी है। यहां हिंसा फैलाने की हिम्मत कौन कर सकता है? हिंदुओं को डराने, अपने ही लोगों से उन पर हमला करवाने और फिर उन्हें भड़काकर दंगों में शामिल करने का यह एक नया पैटर्न है।” हिंसा कौन कर रहे थे साफ दिख रहा है और संजय राऊत को भाजपा और संघ दोषी नजर आ रहा है। इसी समय बेंगलुरु में संघ की प्रतिनिधि सभा से अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर का बयान है कि औरंगजेब अप्रासंगिक है और हिंसा अनुचित। सामना के संपादकीय में औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग करने वालों को हिंदू तालिबान कहा गया। लिखा गया कि औरंगजेब की कब्र मराठों और शिवाजी के शौर्य का प्रतीक है और उसे खत्म करने की मांग करने वाले इतिहास को समझने की कोशिश नहीं कर रहे। जब अबू आजमी ने औरंगजेब को महान शासक बताया तो अखिलेश यादव ने एक्स पर सच्चाई छुप नहीं सकती जैसे पोस्ट कर दिया। संसद के अंदर और बाहर सारा विपक्ष हमलावरों की आलोचना की जगह केवल प्रदेश और केंद्र की भाजपा सरकार को घेरने पर लगा रहा। भाजपा की आलोचना और विरोध करिए किंतु इतने बड़े खतरे की अनदेखी कर आप कैसे तत्वों को प्रोत्साहित कर रहे हैं, इसका परिणाम क्या होगा इन पर अवश्य विचार कर लीजिए।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कौम्प्लेक्स, दिल्ली -110092,  मोबाइल -9811027208

मंगलवार, 25 मार्च 2025

बजट में मान्यता प्राप्त पत्रकारों के इलाज की दी जाए सुविधा: बिधूड़ी


मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को दिए सुझाव - दिल्ली सरकार के कर्मचारियों के आयुर्वेद इलाज को फिर किया जाए चालू

संवाददाता

नई दिल्ली। दक्षिण दिल्ली से भाजपा सांसद रामवीर सिंह बिधूड़ी ने मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता को सुझाव दिया है कि आगामी बजट में दिल्ली के मान्यता प्राप्त पत्रकारों के इलाज की सुविधा को शामिल करें और उन्हें डीजीएचएस कार्ड जारी करने की घोषणा करें। केजरीवाल सरकार ने पत्रकारों के इलाज की सुविधा को वापस ले लिया था। बिधूड़ी ने दिल्ली सरकार के कर्मचारियों के आयुर्वेदिक इलाज पर आप सरकार द्वारा लगाई गई रोक को भी समाप्त करने का अनुरोध किया है।

बिधूड़ी ने कहा है कि दिल्ली सरकार 1995 में भाजपा शासन के दौरान यह नियम बनाया था कि दिल्ली सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ‘ए’ क्लास अधिकारियों की तरह इलाज की सुविधा होगी। उन्हें यह सुविधा सूचना एवं प्रचार निदेशालय के माध्यम से दी जाती थी और इलाज के बाद बिलों का भुगतान किया जाता था। केजरीवाल सरकार ने कुछ वर्ष पहले इस सुविधा को खत्म कर दिया। बिधूड़ी ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सीजीएचएस द्वारा हैल्थ कार्ड जारी किया जाता है। उन्होंने मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता को सुझाव दिया है कि मान्यता प्राप्त पत्रकारों को दिल्ली सरकार का डीजीएचएस कार्ड उसी तर्ज पर जारी किया जाना चाहिए। इससे बिल पास कराने की जटिलताएं भी खत्म हो जाएंगी और मान्यता प्राप्त पत्रकारों को बड़ी राहत मिलेगी।

बिधूड़ी ने कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार ने दिल्ली सरकार के कर्मचारियों के आयुर्वेदिक इलाज पर भी रोक लगा रखी है। आयुर्वेदिक पद्धति पूरी तरह सुरक्षित है और इससे किसी प्रकार का साइड इफेक्ट नहीं होता। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी लगातार आयुर्वेद को बढ़ावा देने की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि बजट में दिल्ली सरकार के कर्मचारियों के आयुर्वेदिक इलाज की घोषणा की जानी चाहिए। इसके लिए जो संस्थान सीजीएचएस के पैनल में हैं, फिलहाल उन्हीं संस्थानों से इलाज की सुविधा दे दी जाए। दिल्ली सरकार के कर्मचारी लंबे समय से यह मांग करते आ रहे हैं लेकिन आम आदमी पार्टी सरकार को ऐसे जनहित कार्यों की परवाह नहीं थी।

शास्त्री पार्क पुलिस की करेक्ट टीम द्वारा लगातार किए जा रहे हैं अति सराहनीय कार्य

24 घंटे के भीतर शास्त्री पार्क पुलिस ने सुलझाई लूट की वारदात, तीन लुटेरे गिरफ्तार

असलम अल्वी 

नई दिल्ली। शास्त्री पार्क पुलिस ने एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए 24 घंटे के भीतर लूट की एक वारदात को सुलझा लिया है। पुलिस ने तीन लुटेरों को गिरफ्तार कर उनके कब्जे से लूटी गई नकदी, मोबाइल फोन और अपराध में इस्तेमाल किया गया पेपर कटर बरामद किया है।
घटना का विवरण - 19 मार्च 2025 को, शास्त्री पार्क निवासी दीपांशु धुरिया ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि 18 मार्च को जब वह शास्त्री पार्क फ्लाईओवर से सीलमपुर की ओर जा रहे थे, तो तीन लोगों ने उनसे 4400 रुपये नकद और उनका मोबाइल फोन लूट लिया। शिकायत पर कार्रवाई करते हुए, शास्त्री पार्क पुलिस स्टेशन में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 309(4)/311/317(2)/3(5) के तहत मामला दर्ज किया गया और जांच शुरू की गई।

पुलिस की त्वरित कार्रवाई - इंस्पेक्टर मंजीत तोमर के नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन किया गया, जिसमें एसआई रॉकी कटिंगल, एएसआई सतीश कुमार, एचसी शिवराज, एचसी रोहित पलसानिया और कांस्टेबल ज्ञान सिंह शामिल थे। टीम ने विभिन्न स्रोतों से जानकारी जुटाई और 24 घंटे के भीतर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार किए गए आरोपियों की पहचान इकबाल खान उर्फ बल्लू (24), मोनू कोली (23) और अजीम अंसारी (19) के रूप में हुई है।

बरामदगी और पूछताछ - पूछताछ के दौरान, आरोपियों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। पुलिस ने उनके कब्जे से लूटी गई 2700 रुपये की नकदी, मोबाइल फोन और अपराध में इस्तेमाल किया गया पेपर कटर बरामद किया है। पुलिस अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या ये आरोपी अन्य आपराधिक गतिविधियों में भी शामिल थे।

पुलिस की प्रशंसा - शास्त्री पार्क पुलिस की इस त्वरित और सफल कार्रवाई की हर तरफ प्रशंसा हो रही है। स्थानीय निवासियों ने पुलिस की तत्परता और पेशेवरता की सराहना की है। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि दिल्ली पुलिस अपराध पर अंकुश लगाने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

पुलिस का बयान - इस सफलता पर टिप्पणी करते हुए, पुलिस अधिकारी ने कहा, "हम क्षेत्र में अपराध को कम करने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह गिरफ्तारी हमारी टीम के समर्पण और कड़ी मेहनत का प्रमाण है।"

शुक्रवार, 21 मार्च 2025

गांवों के शहरीकरण से नष्ट हो रहा है ग्रामीण जीवन

बसंत कुमार

कई वर्षों के पश्चात यह इच्छा हुई कि इस वर्ष की होली गांव में मनाई जाए और मैं अपनी श्रीमती जी के साथ आठ दस दिन के लिए अपने गाँव जौनपुर चला गया, जैसा की सभी परिचित है कि पूर्वांचल की होली और फगुआ का कोई भी जोड़ नहीं है। होलिका दहन से लेकर होली के दिन तक जो मस्ती और हुड़दंग होता है उसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। मेरे मन में भी गांव की उसी होली की स्मृतियां घर किए हुए थी और मुझे लगता था कि वही भाईचारा जो मेरे मन में था लोग शाम तक एक दूसरे को रंग लगते और फगुआ गाते मस्त रहते पर अब तो सब कुछ शराब और मोबाइल में सिमट कर रह गया है। 1990 के आर्थिक सुधार के युग और आधुनिकीकरण के बाद से शहर की कल्चर के साथ-साथ ग्रामीण भारत का भी कल्चर भी बदल गई है। आज विकास के नाम पर जिस तरह से गांवों को शहरीकरण की ओर ढकेला जा रहा है वह ग्रामीण भारत की मूल संस्कृति को विनष्ट कर रहा है या यूं कह सकते हैं कि अब ग्रामीण जीवन समाप्त हो रहा है।

मेरे गांव पहुंचने के एक दिन के बाद ही पता लगा कि घर का समर्सिबल खराब हो गया है और उसे ठीक करवाने के लिए दिया गया है और समर्सिबल के अत्यधिक प्रयोग के कारण पानी का जल स्तर नीचे चला गया है और आस-पड़ोस के सभी हैंड पंप ने पानी छोड़ दिया है और हमें पीने के लिए पानी बाजार से मंगवाना पड़ा जैसे कभी-कभी दिल्ली में करना पड़ता है क्योंकि कुंयें तो पहले से सूख गए थे और जब से वहां ट्यूबवेल और समर्सिबल आ गए हैं तब से हैंड पंपों ने भी काम करना बन्द कर दिया है। समर्सिबल के दुरूपयोग का आलम यह है कि उत्तर प्रदेश में गांवों में बिजली का मीटर न होने के कारण समर्सिबल से निकलने वाले पानी को खेतों में खुला छोड़ दिया जाता है जब तक बिजली रहती है तब तक समर्सिबल चलता रहता है चाहे पानी की आवश्यकता हो या न हो। पानी का इतना दुरूपयोग मैंने अन्यत्र कहीं नहीं देखा। ये लोग इस बात से बेखबर है कि निकट भविष्य में पूरा विश्व पानी की किल्लत झेलने वाला है।

1990 के दशक के पहले तक कुंये में पानी 30-40 फीट नीचे तक मिल जाया करता था और इतने ही नीचे तक बोरिंग करके हैंड पंप से भी पानी मिल जाता था और इस पानी के स्वाद में मिठास होती थी और सभी लोग इसे बगैर वाटर फिल्टर के पीते थे। अब जबसे समर्सिबल का प्रयोग शुरू हो गया पानी का स्तर 250 से 400 फीट तक पहुंच गया है और ये पानी बगैर फिल्टर किये हुए पीने लायक नहीं रह गया है और इसी कारण गांव के लोग भी वाटर प्युरिफायर या वाटर फिल्टर का उपयोग करने को मजबूर है अन्यथा वहां के मेहनतकश लोग भी पेट से संबंधित बीमारियों से जूझ रहे हैं। इसी बीच पता चला है कि गांव में भी पानी की लाइन बिछाई जा रही है और हर घर को नल से पानी मिलेगा और हर गांव में पानी की टंकी बनेगी अर्थात नलों से आने वाला पानी अब सिर्फ पीने के लिए नहीं अपितु घर के आस-पास उगने वाली सब्जियों आलू टमाटर प्याज आदि की सिचाई के लिए इस्तेमाल होगा यानि पीने वाला पानी अब सिचाई के लिए इस्तेमाल होगा और आने वाली पीढी पीने वाले पानी के लिए तरसेगी।

जब वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत घर-घर में शौचालय बनाने की घोषणा कि तो उनकी इस घोषणा ने उन महिलाओं को राहत की सांस दिलाई जो शौच जाने के लिए अंधेरा होने का इंतजार करती थीं लेकिन गांवों को आंख मूंद कर शहरों जैसा बनाने की होड़ ने गांव वालों की जिंदगी मुश्किल कर दी है। अंधाधुंध ट्यूबवेल-समर्सिबल लगने के कारण जमीन के नीचे जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है और कुंयें-हैंड पंप सूख जाने से लोगों को शौच के लिए दूर पीने के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। सरकार को घर-घर शौचालय की मुहिम के साथ-साथ गांवों में घर-घर कुंआ की मुहिम चलानी चाहिए थी। जिससे पानी की हार्वेस्टिंग करने में मदद मिलती और बरसात का पानी नदी नालों में बर्बाद होने के बजाय कुंओं में इकट्ठा होता जिससे जमीन के नीचे जल स्तर बढ़ेता। उत्तर प्रदेश व अन्य राज्य सरकारे लोगों को नल का पानी देने के लिए हर गाँव में पानी की टंकी बनवाने की योजना बनवा रही है उसकी जगह हर गाँव में तालाब बनवाने की बात करती तो यह ग्रामीण संस्कृति के लिए वरदान होता, इससे जमीन के नीचे जल स्तर में सुधार होता और गाँव में पशुओं, गाय, भैंस, नील गाय, सांड आदि को पीने के लिए पानी मिलता। गांवों में मशीनों पर आधारित खेती प्रारंभ हो जाने के कारण पशु अब किसानों की संपत्ति (asset) होने के बजाय अब बोझ बन गये है। गांव के लोग दूध की आपूर्ति हेतु गाय, भैंस, बकरी पर आश्रित होने के बजाय मदर डेयरी के पैक्ड दूध पर आश्रित हो गये है।

आधुनिक मशीनीकरण पर अत्यधिक आश्रित होने के कारण गांव के युवा अब शरीरिक रूप से बहुत कमजोर हो गये हैं अब वे अपने पीने के लिए पानी रस्सी के सहारे कुंए से खींचना या हैंडपंप से पानी निकालने के लिए सक्षम नहीं रह गए हैं जबकि आज से तीन दशक पूर्व यही युवा कुंए से पानी खींचकर घर में पानी पीने से लेकर पशुओं के पीने के लिए उनकी नाद में दसियों बाल्टी पानी भरते थे पर आज ये लोग नल या समर्सिबल के पानी पर आश्रित हो गए हैं। पहले गाँव के लोग शाम को मील दो मील पैदल चलकर गांव की बाजार में जाते थे, वहां बैठकर एक-दूसरे का हाल चाल और देश-दुनिया की खबरों पर चर्चा करते थे और लौटते समय घर के लिए जरूरी समान लाते थे यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा होता था और इसी बहाने उनका पैदल चलना हो जाता था।

अब ये चीजे बिलकुल समाप्त हो गई हैं अब हर घर में मोटर साइकिल आ गई है जो खरीद नहीं पाते उन्हें बेटे की शादी में दहेज में मिल जाती है परिणाम यह हो रहा है कि अब कोई दस कदम पैदल चलने की जहमत नहीं उठाता और यही कारण है कि गांव के लोगों को शहर के लोगों की शाही बीमारी यानि डाइबिटीज, हाईपरटेंशन, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां होने लगी हैं। जो शरीरिक फिटनेस उनकी रोजमर्रा की गति विधियों से हो जाता था वे उसे अब जिम व ट्रेड मिल चलकर पाने की कोशिश कर रहे है जो ठीक नहीं है।

देश के गांवों में आँख मूंद कर बिना विचार किए शहरी योजनाओं को ले जाई जा रही है जिसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि अंधाधुंध मशीनीकरण से गाँवों की बेफिक्री व बिंदास जिंदगी गायब होती जा रही है और शहरों में प्रदूषण से फैल रही बीमारियां अब गाँव के लोगों में फैल रही है। जहां शुगर, हृदय रोग, हाईपरटेंशन जिस बीमारियां शहर के लोगों को होती थी अब गांव के गरीब मजदूरों और किसानों को हो रही है। शारीरिक श्रम जो गांव के लोगों के स्वस्थ रहने का मूलमंत्र होता था अब समाप्त हो गया है। यह तो त्रासदी है कि दिल्ली और मुंबई में 12-14 घंटे काम कर लेता है पर अपने खेतों में 6-8 घंटे काम करके सम्मान के साथ जीना नहीं चाहता।

(लेखक एक पहल एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव और भारत सरकार के पूर्व उपसचिव है।)

गुरुवार, 20 मार्च 2025

प्रधानमंत्री मोदी और संघ

अवधेश कुमार 

स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार देश के शीर्ष पर बैठे किसी व्यक्ति या प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर इतने विस्तार से बातचीत की है। प्रधानमंत्री ने अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के साथ तीन घंटे के अपने लंबे पॉडकास्ट में अनेक विषयों बातचीत की जिनमें संघ भी एक महत्वपूर्ण विषय था। अगर साक्षात्कार लेने वाला दुराग्रह या पूर्वाग्रह न पाले तो सकारात्मक दृष्टि से उसके साथ बातचीत संभव है और इससे सही परिप्रेक्ष्य लोगों के समक्ष आता है। हाल के दिनों में प्रधानमंत्री ने तीसरी बार संघ पर अपना मत प्रकट किया है और सबमें सुसंगती है , स्वर एक ही है। पिछले 21 फरवरी, 2025 को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित 100 वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा था कि वेद से विवेकानंद तक भारत की महान परंपरा और संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक संस्कार यज्ञ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से चला रहा है। मेरा सौभाग्य है कि मेरे जैसे लाखों लोगों को आरएसएस ने देश के लिए जीने की प्रेरणा दी है। उसके पहले 12 अक्टूबर, 2024 को संघ के शताब्दी वर्ष में प्रवेश करने पर सरसंचालक डॉ. मोहन भागवत के एक वीडियो का लिंक साझा करते हुए उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया था कि राष्ट्र सेवा में समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस आज अपने 100 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। अविरल यात्रा के इस ऐतिहासिक पड़ाव पर समस्त स्वयंसेवकों को मेरी हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनायें। मां भारती के लिए यह संकल्प और समर्पण देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करने के साथ ही विकसित भारत को साकार करने में भी ऊर्जा भरने वाला है। फ्रिडमैन के साथ उन्होंने संघ की विचारधारा ,उत्पत्ति, संगठन की कला और उससे जुड़े संगठनों के विराट स्वरूप पर बातचीत की है।

 राजनीतिक विश्लेषक मानेंगे कि प्रधानमंत्री लोकसभा चुनाव के दौरान एक वक्तव्य से पैदा  संभ्रम को समाप्त कर पूरे संगठन परिवार में सही संदेश स्थापित करने की दृष्टि से ऐसा कर रहे हैं। देखने वालों की दृष्टि है किंतु संघ के स्वयंसेवक और संगठन परिवार के कार्यकर्ता इसे संपूर्ण जीवन लगा देने वाले एक वरिष्ठ स्वयंसेवक के सही मंतव्य के रूप में ही लेंगे। वास्तव में जिन्हें संघ समझना हो वे इसे उस रूप में लेंगे तो समस्या नहीं आएगी। अभी भी आप संघ के बारे में प्रत्यक्ष साकार से परे दुराग्रह, वैचारिक विरोध या घृणा के कारण लिखने - बोलने के आलोक में देखेंगे तो सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते। प्रधानमंत्री के पूरे वक्तव्य का मूल समझना हो तो उनकी इस पंक्ति को आधार बनाना होगा कि आरएसएस आपके जीवन में एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है जिसे वास्तव में जीवन का उद्देश्य कहा जा सकता है। दूसरी बात, राष्ट्र सब कुछ है और लोगों की सेवा करना भगवान की सेवा के समान है यह वैदिक युग से कहा गया, हमारे ऋषि मुनियों ने जो कहा, विवेकानंद जी ने जो कहा उसका संघ प्रतिनिधित्व करता है। आरएसएस पर निष्पक्षता से अध्ययन करने वाले उनके इस बात से शत- प्रतिशत सहमत होंगे। संघ को संघ की दृष्टि से समझने की कोशिश करने वाले प्रधानमंत्री के इस मत को भी स्वीकार करेंगे कि संघ को समझना इतना आसान नहीं है। इसके काम की प्रकृति को वास्तव में समझने के लिए प्रयास करना पड़ता है। उन्होंने अपने बारे में स्पष्ट किया कि उनके जीवन में एक दिशा, राष्ट्र की सेवा और लक्ष्य को पाने की प्रेरणा, संकल्प तथा काम करने की अंत:शक्ति केवल संघ के स्वयंसेवक होने के कारण मिले जो बाद में अध्यात्म और संतों के कारण सशक्त होते हुए आगे बढ़ा। उनका कहना था कि मुझे ऐसे पवित्र संगठन से जीवन के मूल्य हासिल करने का सौभाग्य मिला है। संघ के माध्यम से मुझे एक उद्देश्यपूर्ण जीवन मिला, फिर मुझे संतों के बीच कुछ समय बिताने का सौभाग्य मिला जिसने मुझे एक मजबूत आध्यात्मिक आधार दिया , मुझे अनुशासन और उद्देश्यपूर्ण जीवन मिला।

वास्तव में यह आम सक्रिय स्वयंसेवकों के सामूहिक अनुभवों की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति है। संघ के स्वयंसेवकों से पूछिए कि संघ आपको क्या सिखाता है तो कहेंगे कि जिस तरह हम परिवार की चिंता करते हैं उसी तरह देश की करें। दूसरी बात यह बताएंगे कि कोई हमारा सहयोग करे न करे, साथ आए न आए उसका प्रयास करते हुए भी राष्ट्र की सेवा, आमजन की सेवा, उन्हें समुन्नत्त शिक्षित करते हुए देश को परम वैभव तक ले जाना है। स्वयंसेवक से जब आप राजनीति पर प्रश्न करेंगे तभी शायद कोई उत्तर मिलेगा और अनेक उत्तर भी नहीं देंगे। राजनीति हम पर इतना हाबी है कि उसके बाहर हम सोचने और देखने की आसानी से कल्पना नहीं करते इसलिए यह चरित्र समझ में नहीं आता। प्रधानमंत्री मोदी ने इसलिए संघ के विविध कार्यों को भी फ्रिडमैन के माध्यम से दुनिया के समक्ष रख दिया है। 

अब विश्व समुदाय को महसूस होगा कि वाकई 100 वर्षों में इस संगठन ने मुख्यधारा के ध्यान से दूर रहकर अनुशासन और भक्ति के साथ स्वयं को देश सेवा, मानवता की सेवा में समर्पित किया है और इसी कारण आज विश्व में इससे बड़ा कोई संगठन नहीं और न इतने बड़े संगठन परिवार बनने की कोई सोच सकता है। उदाहरण के लिए उन्होंने संघ के अनुषांगिक संगठनों में सेवा भारती की चर्चा की जो 1 लाख 25 हजार सेवा परियोजनाएं बिना सरकारी सहायता केवल समाज की मदद से चला रहा है। यह उन झुग्गी - झोपड़ियों और बस्तियों में बच्चों को पढ़ाने, उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखने, स्वच्छता के साथ अन्य प्रकार की मदद देने का काम करते हैं जहां सबसे गरीब लोग रहते हैं। दूसरे,  वनवासियों के बीच संघ का बनवासी कल्याण आश्रम आज जंगलों में पूरा समय लगाकर जनजातियों की सेवा के काम करने में लगा है जो 70 हजार से ज्यादा एकल विद्यालय चलता है। उन्हें धन कैसे मिलता है तो प्रधानमंत्री के अनुसार अमेरिका के कुछ लोग 10 से15 डौलर दान देते हैं और उन्हें कहा जाता है कि एक कोका कोला नहीं पीयो उतना पैसा विद्यालय को दो और फिर एक महीने कोका कोला छोड़ दो और उस पैसे को एकल विद्यालय को दो। यह बाहर से समझ नहीं आएगा । जरा सोचिये कि इतनी संख्या में एकल शिक्षक इतने बच्चों को वर्षों से शिक्षित कर रहे हैं तो कितने छात्र इससे निकले होंगे और उन्हें आत्मनिर्भर बनने और राष्ट्र के लिए काम करने की प्रेरणा मिलती है। इसी तरह स्वयंसेवकों ने शिक्षा में क्रांति के लिए विद्या भारती की स्थापना की जिसके इस समय लगभग 25 हजार विद्यालय हैं जिनमें 30 लाख से ज्यादा छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। आसानी से कल्पना की जा सकती है कि इतने वर्षों में कितने करोड़ छात्र निकले होंगे और वहां से प्राप्त समग्र शिक्षा के साथ जीवन मूल्य ,कौशल आदि से वो समाज पर बोझ न बनाकर परिवार और राष्ट्र की सेवा का समन्वय बनाते हुए काम कर रहे होंगे। जानकारों को पता है कि समाज जीवन का कोई क्षेत्र नहीं जहां संघ   नहीं-  महिला, युवा , छात्र, मजदूर सभी क्षेत्रों में संघ संगठनों के माध्यम से सक्रिय है। आज छात्रों के बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद केवल भारत नहीं विश्व का सबसे बड़ा संगठन है तो भारतीय मजदूर संघ 50 हजार यूनियन चलाता है वह भी दुनिया का सबसे बड़ा मजदूर संघ है। अन्य संगठनों से अलग इसकी दृष्टि वही है। प्रधानमंत्री ने बिल्कुल सही कहा कि वामपंथी विचारधाराओं ने दुनिया के मजदूर एक हो जाओ का नारा देते हुए बताया कि पहले आप एक हो जाओ और हम बाकी कुछ संभाल लेंगे। संघ प्रशिक्षित स्वयंसेवकों के मजदूर संघों का नारा दिया, ‘मजदूर दुनिया को एक करो’। आप सोचिए जो लोग संघ को विभाजनकारी मानते हैं उसने इस छोटे से शब्द के द्वारा कितना बड़ा बदलाव सोच और व्यवहार में लाया होगा।

निश्चित रूप से प्रधानमंत्री स्तर के व्यक्ति द्वारा संघ के बारे में इस तरह बात करने के बाद राजनीतिक कारणों से उसके विरोध में खड़े लोगों को छोड़ दें तो विश्व भर के थिंक टैंक , बुद्धिजीवी, पत्रकार,  नेता, एक्टिविस्ट, समाजसेवी, एनजीओ चलाने वाले आदि नई दृष्टि से मूल्यांकन करेंगे। उन्होंने जो कुछ कहा वह अमूर्त नहीं है जिसे देखा और समझ न जा सके। प्रधानमंत्री के बोलने के बाद संपूर्ण विश्व में संघ को देखने की जो दृष्टि बनेगी उसके आलोक में योजनानुसार भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में प्रचार, सुदृढ़िकरण, कार्य विस्तार के लिए संघ की कार्ययोजना हो। स्वयंसेवकों व कार्यकर्ताओं का भी दायित्व  है कि प्रधानमंत्री के कथनों का स्वरूप विस्तार से साकार दिखे उसके लिए सतत कार्य में लगे रहें।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्लीः 110092, मोबाइल -9811027208 

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

तिलहर नगर पालिका में तैनात सफाई नायक सत्यपाल का आकस्मिक निधन


असलम अल्वी
शाहजहांपुर। शाहजहांपुर के तिलहर नगर पालिका परिषद में बैकलाग भर्ती में नौकरी पर लगे  सफाई नायक तथा चेयरपर्सन के निजी कार चालक व्यवहार कुशल सत्यपाल का असामयिक निधन हो गया। सत्यपाल रविवार को चेयरपर्सन हाजरा बेगम को लेकर हल्द्वानी गया था । सुबह अचानक सत्यपाल की हालत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया।
जहां इलाज के दौरान अपरान्ह में सत्यपाल की दुखद मौत हो गई। इस हादसे से चेयरपर्सन, ईओ समेत पूरा पालिका परिवार शोकग्रस्त है।
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