शुक्रवार, 30 सितंबर 2022
शास्त्री पार्क वार्ड 213 के बुलंद मस्जिद कॉलोनी में 50 अधिक लोगों ने आम आदमी पार्टी जॉइन की
मंगलवार, 27 सितंबर 2022
क्षेत्र के विकास के लिए शमां एनजीओ व जाफराबाद आरडब्लूए ने शासन प्रशासन के साथ जनता-संवाद का आयोजन किया
सोमवार, 26 सितंबर 2022
शुक्रवार, 23 सितंबर 2022
ज्ञानवापी को सुनवाई के योग्य मानने का फैसला महत्वपूर्ण
अवधेश कुमार
वाराणसी जिला न्यायालय द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद मामले को सुनवाई के योग्य माननीय को गलत बताने वाले न्यायालय को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है । वास्तव में यह महत्वपूर्ण फैसला है। सामान्य तौर पर देखें तो कहा जा सकता है कि इतने सघन विवाद का मामला न्यायालय में है तो उसको सुनवाई के योग्य करार देना बिलकुल स्वाभाविक है। किंतु मुस्लिम पक्ष की ओर से मुकदमा लड़ रहे अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने इसी बात पर पहली कानूनी लड़ाई लड़ी कि यह मामला सुनवाई के योग्य है ही नहीं। जिस तरह के तर्क न्यायालय में दिए गए उनसे एकबारगी लगने लगा था कि कहीं मामला उलझ न जाए। मुस्लिम पक्ष इसके विरुद्ध उच्च न्यायालय जा रहा है, किंतु इससे जिला न्यायालय में मामले की सुनवाई नहीं रुक सकती। यहां मुख्य मामले की सुनवाई जारी रहेगी। इस फैसले के बाद वाराणसी के गंगा घाट पर जैसा उत्सव का दृश्य दिखा और पूरे देश में हिंदुओं ने जैसा उत्साह प्रदर्शित किया उससे समझा जा सकता है कि ज्ञानवापी मामले पर किस तरह की सामूहिक भावना देश में मौजूद है।
आइए पहले यह देखें कि न्यायालय में क्या-क्या तर्क दिए गए। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि पूजा स्थल कानून, 1991 के अनुसार धर्म स्थल का स्वरूप नहीं बदला जा सकता। जैसा हम जानते हैं यह कानून बताता है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले जो धर्म स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा। हालांकि इसी कानून में उसके अपवाद भी दिए गए हैं। उनका यह भी कहना था कि ज्ञानवापी में सैकड़ों सालों से नमाज हो रही है इसलिए इस कानून की धारा 4 के तहत इस मामले में मुकदमे की सुनवाई को रोका जाना चाहिए। इनका एक तर्क यह भी था कि ज्ञानवापी वक्फ की संपत्ति है। वक्फ कानून की धारा 85 के अनुसार वक्फ संबंधी मामलों की सुनवाई सिविल न्यायालय में हो ही नहीं सकती। तीसरा तर्क यह दिया था कि 1983 के श्री काशी विश्वनाथ मंदिर कानून के प्रावधानों के तहत न्यायालय सुनवाई नहीं कर सकती उन्हें। इसके विरुद्ध हिंदू पक्ष ने तर्क दिया कि ज्ञानवापी की नींव में विश्वेश्वर का मंदिर है। ऊपर का जो ढांचा बिल्कुल अलग है। दो, जब तक किसी स्थान का धार्मिक स्वरूप तय नहीं हो जाता तब तक पूजा स्थल कानून प्रभावी नहीं माना जा सकता। यानी इस स्थान का धार्मिक स्वरूप क्या है यह मंदिर है या मस्जिद है जब तक यह तय नहीं होता तब तक कैसे आप उस कानून को प्रभावी मानेंगे। तीन, वक्फ के संबंध में हिंदू पक्ष ने दलील दिया कि औरंगजेब ने मस्जिद निर्माण के लिए वक्फ नहीं बनाया था। उसने ज्ञानवापी पर हमला कर उसे कब्जा किया था।
साफ है कि न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की दलीलों को स्वीकार नहीं किया। न्यायालय का फैसला 26 पन्नों का है। न्यायालय ने पूजास्थल कानून के संदर्भ में भी अपना मत स्पष्ट किया है। इसने लिखा है कि हिंदू पक्ष का कहना है कि वे 15 अगस्त, 1947 के पहले से साल 1993 तक ज्ञानवापी में प्रतिदिन श्रृंगार गौरी की पूजा कर रहे थे। ऐसे में इस कानून की धारा 4 के अनुसार मामले की सुनवाई नहीं रोकी जा सकती। हिंदू पक्ष को अपने दावों को साबित करने के लिए साक्ष्य पेश करने का पूरा मौका मिलना चाहिए। वक्फ के बारे में न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि याची गैर मुस्लिम है और वह कानून से अनजान है। ऐसे में धारा 85 इस मामले में लागू नहीं हो सकती। याचिका में सिर्फ पूजा की इजाजत मांगी गई है संपत्ति का स्वामित्व नहीं। काशी विश्वनाथ मंदिर कानून ,1983 के संदर्भ में भी न्यायालय की टिप्पणी महत्वपूर्ण है। इसने स्पष्ट कहा है कि पूजा के अधिकार के दावे सुनने के लिए कानून में निषेध नहीं है। मुस्लिम पक्ष साबित करने में विफल रहा कि यह मामला विश्वनाथ मंदिर कानून के तहत आता है। जिला न्यायाधीश ने अपने फैसले के निष्कर्ष में लिखा है कि दलीलों और विश्लेषण को देखने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यह मामला पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम ,1991, वक्फ अधिनियम, 1995 और उत्तर प्रदेश श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम ,1983 तथा बचाव पक्ष संख्या चार (अंजुमन इंतजामिया ) द्वारा दाखिल याचिका 35 सी के तहत वर्जित नहीं है। लिहाजा इसे निरस्त किया जाता है।
न्यायालय की टिप्पणियों और फैसले से साफ है कि मुस्लिम पक्ष ने मामले को लटकाने के लिए सारे तर्क दिए थे। सच यही है कि अभी तक ज्ञानवापी से संबंधित मामलों में मुस्लिम पक्ष की ओर से ऐसा कोई प्रमाण नहीं दिया गया जिनसे यह साबित होता हो कि हिंदुओं द्वारा मूल काशी विश्वनाथ मंदिर का दावा ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार गलत है। जैसा हम जानते हैं जिला न्यायालय के समक्ष यह मामला मां श्रृंगार गौरी की पूजा के अधिकार से संबंधित है। पिछले वर्ष पांच महिलाओं राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने याचिका दायर कर प्रतिदिन पूजा करने का अधिकार मांगा था। हालांकि अब हिंदू पक्ष की ओर से मुकदमा लड़ने वालों के बीच व्यापक मतभेद हो गए हैं। इसकी मुख्य लड़ाई सनातन संस्था लड़ रही थी जिसने पांचों महिलाओं द्वारा याचिका डलवाया था। हरिशंकर जैन,विष्णु जैन तथा इनके साथ खड़े कुछ लोगों से मतभेद के कारण इस संस्था ने इन दोनों को मुकदमे से अलग कर दिया था। बाद में कुछ लोगों ने इनमें से चार महिलाओं को तोड़कर अपने साथ लिया तथा उनके वकालतनामा पर दोनों पिता-पुत्र मुकदमा लड़ रहे हैं। लेकिन इससे न्यायालय को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसके सामने पांचों महिलाओं का केस है। जब न्यायालय ने मस्जिद परिसर के वीडियोग्राफी सर्वे का आदेश दिया था तब भी मुस्लिम पक्ष ने इसे रोकने के लिए पूरा जोर लगाया था। उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी। उच्चतम न्यायालय ने उनकी दलीलों को खारिज करके वीडियोग्राफी पर रोक लगाने से इनकार किया। बस केवल मामला सामान्य सिविल न्यायालय से जिला न्यायालय को भेज दिया। उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया था कि कोई वरिष्ठ न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई करे। उसी में यह कहा गया था कि वही तय करेंगे कि हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई के योग्य है या नहीं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व को लेकर चल रहा है जिसकी सुनवाई 28 सितंबर को होगी। उसके फैसले से तय होगा कि मस्जिद का धार्मिक स्वरूप क्या है।
तो यहां से श्रृंगार गौरी के पूजन के अधिकार का मामला फिर आरंभ हुआ है। हालांकि पूजन के अधिकार पर बहस में यह भी तय होगा कि वह वाकई मस्जिद है या मंदिर। सच कहा जाए तो न्यायालय द्वारा वीडियोग्राफी कराने का उद्देश्य यही था कि देख लिया जाए वहां अंदर क्या है। जितने दृश्य सामने आए हैं उनसे बहुत साफ दिखता है कि अंदर के निर्माण को मस्जिद मानना कठिन है। हिंदुओं के शिवलिंग के दावे के विपरीत उसे फव्वारा बताने पर बहस अभी खत्म नहीं हुआ है। 20 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय के समक्ष यह मामला सुनवाई के लिए आ सकता है। उच्चतम न्यायालय ने जिला न्यायालय को मामले की सुनवाई का आदेश देते हुए यही तिथि तय की थी। हालांकि जिला न्यायालय ने जो टिप्पणियां की है उनको देखने के बाद यह मानना मुश्किल है कि उच्चतम न्यायालय सुनवाई के विरुद्ध फैसला दे सकता है।जैसा हिंदू पक्ष के वकील ने कहा कि अब हम मस्जिद के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सर्वे की मांग करेंगे। इसके साथ जो सामग्री मिली है खासकर शिवलिंग उसके कार्बन डेटिंग की मांग भी की जाएगी ताकि उसकी आयु सीमा का निर्धारण किया जा सके। कहने का तात्पर्य कि मामला मां श्रृंगार गौरी की पूजा का जरूर है लेकिन इसी में स्वयमेव निहित था कि वह मस्जिद है या मंदिर। जब यह स्पष्ट हो जाएगा तभी तय होगा कि मां श्रृंगार गौरी की पूजा स्थाई रूप से प्रतिदिन होनी चाहिए या नहीं। उच्च न्यायालय ने 30 अगस्त को 9 सितंबर, 2021 के अंतरिम आदेश को 30 सितंबर , 2022 तक के लिए बढ़ा दिया था, जिसमें ज्ञानवापी परिसर के एक समग्र भौतिक सर्वेक्षण कराने के वाराणसी के न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी गई थी।
तो यह देखना होगा कि उच्च न्यायालय 28 सितंबर को इस संदर्भ में क्या आदेश देता है। जिला न्यायालय में सुनवाई 22 सितंबर से शुरू हो गई। हिंदू पक्ष ने समग्र सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग की मांग किया है। इस पर न्यायालय को फैसला देना है। कुल मिलाकर ज्ञानवापी का मामला अब महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है। यह मामला जितना संवेदनशील है उसके ध्यान में रखते हुए दोनों पक्षों को संजय बरतने की आवश्यकता है। जब फैसला न्यायालय की हो को ही देना है तो अनावश्यक बयानबाजी या सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन से बिल्कुल बचना चाहिए। न्यायालय जो भी फैसला दे उसे दोनों पक्ष स्वीकार करें इसी में सबका हित है।
गुरुवार, 22 सितंबर 2022
दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों को रोकने के लिए दिल्ली नगर निगम और जाफराबाद आरडब्ल्यूए की विशेष बैठक हुई
सोमवार, 19 सितंबर 2022
गुरुवार, 15 सितंबर 2022
सेंट्रल विस्टा को प्रखर राष्ट्रवाद का प्रतीक बनाने के मायने
अवधेश कुमार
जिन व्यक्तियों और समूहों ने सेंट्रल विस्टा परियोजना को अनर्थकारी बताते हुए विरोध किया था इसके पहले चरण के उद्घाटन के बाद उनकी मानसिकता बदली होगी या नहीं कहना कठिन है। हालांकि तीन वर्ष पहले इसकी योजना सामने आने से निर्माण प्रारंभ होने तक के विरोध के स्वर कर्तव्य पथ के उद्घाटन के अवसर पर गायब दिखे। पूरी परियोजना को पर्यावरण से लेकर कानूनी पचड़े तक में उलझाने की कोशिश की गई। भूमिपूजन और शिलान्यास कार्यक्रम पर रोक लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया गया। वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि और संकल्पबद्धता के कारण ही यह साकार हुआ। आने वाले समय में भारतीय दृष्टि से अनुकूल, सुविधाजनक एवं आकर्षक संसद भवन तथा केंद्रीय सचिवालय देखने को मिलेगा। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर जो बातें कहे उनमें चार प्रमुख है।
एक, गुलामी का प्रतीक चिन्ह यानी राजपथ इतिहास हो गया है और कर्तव्य पथ के रूप में नए इतिहास का सृजन हुआ है।
दो, राजपथ का आर्किटेक्चर और भावना गुलामी के प्रतीक थे। अब इसका आर्किटेक्चर भी और आत्मा भी बदली है।
तीन,देश के सांसद, अधिकारी, मंत्री जब यहां से गुजरेंगे तो उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध होगा।
चार, कर्तव्य पथ पर नेताजी की प्रतिमा देश को नई ऊर्जा देगी। देश की नीति और निर्णय में उनकी इच्छा की प्रेरणा यह प्रतिमा देगी।
इस तरह उन्होंने पूरी परियोजना को गुलामी के अवशेषों को खत्म कर उसकी जगह अतीत, वर्तमान एवं भविष्य के भारत का जीवंत और प्रेरणादायी निर्माण साबित किया। कहा जा सकता है कि जानबूझकर उन्होंने अपनी विचारधारा के अनुरूप राष्ट्रवाद का भावनात्मक चरित्र देने की रणनीति अपनाई । प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से जिन पांच प्रणों की घोषणा की थी उनमें गुलामी की छोटी से छोटी चीज से भी मुक्ति पाने की बात शामिल थी। संसद भवन सहित समूची सेंट्रल विस्टा परियोजना उनकी इसी सोच का साकार रूप कहा जा सकता है। गहराई से देखें तो कुछ बातें बिल्कुल स्पष्ट होती हैं।
एक, गुलामी की चीजों को मिटाने की सोच केवल नकारात्मक नहीं है। हम केवल इसलिए नहीं मिटाते कि उन्हें औपनिवेशिक शासकों ने बनाया बल्कि उन्होंने अपनी सोच के अनुरूप बनाया जो हमारे अनुकूल नहीं है।
इसी के साथ दूसरा विंदू यह है कि हम अपने अतीत, वर्तमान एवं भविष्य का ध्यान रखते हुए उसकी जगह नया निर्माण करते हैं जो वर्षों प्रेरणा का कारक बना रहता है।
तीन, यह निर्माण कराने वालों पर निर्भर है कि किस तरह का प्रतीक बनाएं।
इस दृष्टि से देखें तो प्रधानमंत्री ने इसे प्रेरणादायी बनाने की शुरुआत भी कर दी। लोगों से वहां आने और सेल्फी लेकर हैसटैग कर्तव्य पथ के साथ सोशल मीडिया पर डालने की अपील से एक अभियान आरंभ हो गया है। भारी संख्या में लोग आ रहे हैं, तस्वीरें ले रहे हैं। यह ऐसी स्थिति है जिसकी कल्पना मोदी विरोधियों ने नहीं की होगी । इस अवसर का उपयोग करते हुए मोदी ने सरकार के ऐसे कुछ कदमों का सिलसिलेवार ब्यौरा देकर यही साबित किया कि भारत में पहली बार उनकी सरकार ने ही गुलामी से जुड़े अवशेषों को भारतीय दृष्टि और आवश्यकता के अनुरूप परिणत किया है।
निश्चित रूप से इसके राजनीतिक निहितार्थ ढूंढे जाएंगे। मोदी प्रधानमंत्री के साथ एक पार्टी के नेता हैं और उन्हें आगामी समय में कई विधानसभाओं के साथ 2024 में लोकसभा चुनाव का सामना करना है। प्रखर राष्ट्रवाद का सामूहिक भाव भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से लाभकारी होगा। विरोधियों के लिए पुनर्निर्मित सेंट्रल विस्टा की दृष्टि और उसकी उपादेयता पर भाजपा को होने वाले संभावित राजनीतिक लाभ की चिंता हाबी हो गई होगी। प्रधानमंत्री ने इस विषय को जिस तरह उठाया है उस संदर्भ में भी कुछ बिंदुओं का उल्लेख जरूरी है।
एक, लोग निश्चित रूप से प्रश्न उठाएंगे कि पहले की सरकारों ने किंग्सवे को राजपथ क्यों बनाया?
दो, आजादी मिलने के बाद 21 वर्षों तक कैनोपी में जार्ज पंचम पंचम की मूर्ति क्यों लगी रही?
तीन,इंडिया गेट पर ब्रिटिश शासन के लिए युद्धों में लड़ने वाले सैनिकों के ही नाम क्यों खुदे ही रहे?
चार,अंग्रेजों द्वारा बनाए गए संसद को स्वतंत्र भारत का संसद भवन तथा वायसराय भवन को राष्ट्रपति भवन के रूप में क्यों स्वीकार किया गया? किसी ने भी इनकी जगह नव निर्माण करने का साहस क्यों नहीं दिखाया? मोदी ने पूरी बहस को यहीं तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने इस संदर्भ में तीन प्रमुख बातें और कहीं। एक, आजादी के बाद अगर भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो देश ज्यादा ऊंचाइयों पर होता। न केवल इस महानायक को भुला दिया गया बल्कि उनके विचारों प्रतीकों तक को नजरअंदाज कर दिया गया। दो, कर्तव्य पथ पर नेताजी की प्रतिमा देश की नीति और निर्णयों में उनकी छाप रखने की प्रेरणा देगी। और तीन, राजपथ का अस्तित्व समाप्त होकर कर्तव्य पथ बना है, जॉर्ज पंचम की जगह पर नेताजी की प्रतिमा लगी है तो यह गुलामी की मानसिकता से आजादी की न शुरुआत है न अंत है, यह निरंतर चलने वाली यात्रा है। इसके मायने क्या है? मोदी ने अब तक की सरकारों नेता जी के विचारों का बहुत ही बनाकर कटघरे में खड़ा कर दिया। दूसरे उन्होंने यह संदेश दिया कि जो कुछ अभी हमने किया वह पहले से कर रहा हूं और आगे भी करेंगे। जो भी भारतीय इंडिया गेट पर एक साथ वार मेमोरियल, नेताजी की प्रतिमा, कर्तव्य पथ को देखेगा और आगे संसद भवन में सचिवालय आदि देखेगा उसके अंदर क्या भाव पैदा होगा? पूरे क्षेत्र में लोगों का ध्यान रखते हुए सौंदर्यीकरण, लाइटें, फव्वारे से लेकर बैठने, खाने-पीने, टहलने, नौका विहार की संपूर्ण अनुकूल व्यवस्थाएं की गई है। जब आपको आपके अनुकूल व्यवस्थाएं मिलती है तो प्रसन्नता में आपके अंदर सकारात्मक भाव आते हैं। साफ है कि एक ओर यह सब अगर लोगों में भारत के संदर्भ में आत्मगौरव व कर्तव्य बोध कराएगा तो दूसरी ओर उन्हें प्रधानमंत्री और सरकार के प्रति कृतज्ञता भाव भी पैदा करेगा। इस तरह इसका राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना ज्यादा बढ़ गई है।
निश्चित रूप से आगे संसद भवन से लेकर केंद्रीय सचिवालय तक के उद्घाटन का कार्यक्रम इससे ज्यादा भव्य,आकर्षक एवं प्रभावी होगा। कहा गया है कि जो साहस और संकल्प दिखाएगा विजय उसे ही प्राप्त होगा। ऐसा नहीं है कि संसद भवन से लेकर केंद्रीय सचिवालय और यहां तक कि इंडिया गेट के पूरे क्षेत्र में परिवर्तन का विचार और योजनाएं पहले नहीं आई। संसद भवन की योजना तो पिछली यूपीए सरकार में भी आई थी। किसी ने न उसे इतना व्यापक दृष्टिकोण न दिया और न साकार करने का साहस दिखाया।राजनीतिक पार्टियों ने इस परियोजना का तीखा विरोध करके अपनी नकारात्मक छवि निर्मित की। पूरी परियोजना साकार होते - होते प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उनके साथी अवश्य ही उन सारे वक्तव्यों और विचारों को जनता के समक्ष रखेंगे। वे जनता के सामने प्रश्न उठायेंगे कि गुलामी के अवशेषों से मुक्ति तथा वर्तमान समय के अनुकूल नव निर्माण का विरोध करने वाले के साथ आप कैसा व्यवहार करेंगे तो आमजन का उत्तर क्या होगा यह बताने की आवश्यकता नहीं। बदलाव के समर्थकों द्वारा भी यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि केवल सड़कों का नाम बदलने या कुछ प्रतीक खड़ा कर देने भर से गुलामी के अवशेष नहीं खत्म जाएंगे? गुलामी मानसिकता में होती है और जब तक पूरी व्यवस्था भारतीयता नहीं हो हम गुलामी से मुक्ति का दावा नहीं कर सकते मोदी ने बिना यह प्रश्न उठाए नई शिक्षा नीति की चर्चा की । वास्तव में नई शिक्षा नीति गुलामी की सोच को तोड़ने और भारतीय दृष्टि पैदा करने का बड़ा आधार साबित होगा। न्यायालयों की भाषा, नौकरशाही की औपनिवेशिक संरचना आदि में बदलाव आवश्यक है। न्यायालयों की भाषा का प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में उल्लेख किया है। काफी संख्या में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून बदले हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण आदि को इससे अलग करके नहीं देख सकते। इन सबको एक साथ मिलाकर देखेंगे तो निष्कर्ष यही आएगा कि आजाद भारत में गुलामी के अवशेषों से मुक्ति और भारतीय राष्ट्रीयता की आत्मा के अनुरूप बदलाव और निर्माण के निरंतरता में इतने कदम उठाने की कभी कल्पना तक नहीं की गई।
अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092,मोबाइल 98110 27208
मंगलवार, 13 सितंबर 2022
भारत में चीता से पुनः परिचय करवाने के लिए जागरूकता अभियान की शुरुआत
नई दिल्ली। राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय व पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय द्वारा भारत में चीता को पुनः बसाने के महत्वपूर्ण विषय पर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। संग्रहालय की वरिष्ठ शिक्षक सहायक सुशीला कुमारी यादव के द्वारा दिल्ली के मंगोलपुरी एवं रोहिणी क्षेत्रों में विभिन्न स्कूलों के छात्रों को चीता के प्रति व्यापक स्तर पर लेक्चर, प्रेजेंटेशन एवं फिल्म दिखाकर जागरूक किया जा रहा है। चीता 1947 से पहले भारतीय जंगल में मौजूद एक मांसाहारी प्रजाति थी जिन्हें 1952 में अधिकारिक रूप से विलुप्त घोषित कर दिया गया था।
उन्होंने बताया कि एक पारिस्थितिक तंत्र में शिकार प्रजातियों की आबादी को नियंत्रित करने और बनाए रखने के लिए शीर्ष मांसाहारी प्रजाति महत्वपूर्ण है। शीर्ष मांसाहारी का नुकसान केवल पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य श्रृंखला के निचले स्तर को असंतुलित करता है। इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन को बनाए रखने के लिए शीर्ष मांसाहारी का अस्तित्व महत्वपूर्ण है।
सोमवार, 12 सितंबर 2022
फेडरेशन फॉर एजुकेशनल डेवलपमेंट द्वारा आयोजित 7 दिवसीय नेत्र जांच शिविर का समापन
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