शनिवार, 19 सितंबर 2020

जाकिर खान मंसूरी बने जमीयतुल मंसूर के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

संवाददाता
 
नई दिल्ली। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष व जमीयतुल मंसूर दिल्ली प्रदेश के उपाध्यक्ष जाकिर खान मंसूरी को संगठन ने पदोन्नति देते हुए जमीयतुल मंसूर का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है। 
आज दिल्ली के यूपी भवन में जमीयतुल मंसूर के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व राज्यमंत्री (उत्तर प्रदेश सरकार) जावेद इकबाल मंसूरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया की जाकिर खान मंसूरी को जमीयतुल मंसूर दिल्ली प्रदेश के उपाध्यक्ष पद के स्थान पर उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया जाए।
जमीयतुल मंसूर के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा है कि हमें उम्मीद है कि जाकिर खान मंसूरी जी संगठन को मजबूत करें व समाज के लिए ज्यादा बेहतरी के लिए काम करें। 
राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (पूर्व राज्य मंत्री) हाजी आर.ए. उस्मानी, सूफी मकसूद अली मंसूरी, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष, मेहदी हसन, नियाज अहमद पप्पू मंसूरी, मुफ्ती मोहम्मद मुबारक हुसैन अल अजहरी शेख-उल-हदीस वलादर जामिया फातिमा जहेरा धोराजी गुजरात, डायरेक्टर एजुकेशन मोहम्मदी एजुकेशनल ट्रस्ट दिल्ली आदि शामिल थे।
बैठक में मौजूद दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जाकिर खान मंसूरी ने कहा कि जमीयतुल मंसूर से मेरा सालों से नाता रहा है और मुझे जो संगठन ने नई जिम्मेदारी (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) दी है मैं उसे पूरी ईमानदारी से निभाऊंगा और सारे देश का दौरा कर संगठन को और मजबूत बनाऊंगा।
 

 

शनिवार, 12 सितंबर 2020

स्वामी अग्निवेश को श्रद्धांजलि दी

भोपाल। शोषितों के अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के मजबूत स्तंभ आर्यसमाजी स्वामी अग्निवेश कल (11 सितबंर 2020 को) नहीं रहे। वे लंबे समय से लीवर की बीमारी से ग्रस्त थे. बंधुआ मजदूरों को आजाद कराने के लिए उन्होंने अनेक लड़ाईयां लड़ीं.

उनका भोपाल से लंबा नाता रहा. उन्होंने गैस पीड़ितों की त्रासदी को दुनिया के अनेक फोरमों पर उठाया था. गैस पीड़ितों के मुद्दे को लेकर उन्होंने भोपाल से लोकसभा चुनाव भी लड़ा. उनपर जीवन में कई बार हिंसक हमले भी हुए. अभी कुछ दिनों पहले झारखंड में हुए हमले में वे बाल-बाल बचे थे.

उन्हें अनेक अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय सम्मान मिले. ऐसे सम्मानों में  सबसे महत्वपूर्ण था सन् 2004 में मिला राइट लाइवलीहुड सम्मान जो नोबल पुरस्कार के समकक्ष समझा जाता है.

राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक एल. एस. हरदेनिया एवं डॉ राम पुनियानी ने यहां जारी एक वक्तव्य में उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है.

सोमवार, 7 सितंबर 2020

बंधुत्व को बढ़ावाः अदालतें आगे आईं

सुदर्शन टीवी पर नफरत फैलाने वाले कार्यक्रम पर रोक

राम पुनियानी

प्रतिबद्ध व सत्यनिष्ठ विधिवेत्ता प्रशान्त भूषण ने हाल में न्यायपालिका को आईना दिखलाया. इसके समानांतर दो मामलों में न्यायपालिका ने आगे बढ़कर प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने की अपनी भूमिका और जिम्मेदारी का शानदार निर्वहन किया. इनमें से पहला मामला था अनेक अदालतों द्वारा तबलीगी जमात के सदस्यों को कोरोना फैलाने, कोरोना बम होने और कोरोना जिहाद करने जैसे फिजूल के आरोपों से मुक्त करना. और दूसरा था सुदर्शन टीवी की कार्यक्रमों की श्रृंखाल ‘बिंदास बोल’ के प्रसारण पर रोक लगाना. सुदर्शन टीवी के संपादक सुरेश चव्हाणके ने ट्वीट कर यह घोषणा की थी कि उनका चैनल मुसलमानों द्वारा किए जा रहे ‘यूपीएससी जिहाद’ का खुलासा करने के लिए कार्यक्रमों की एक श्रृंखला प्रसारित करेगा. उनके अनुसार एक षड़यंत्र के तहत मुसलमान यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के जरिए नौकरशाही में घुसपैठ कर रहे हैं. इस परीक्षा के जरिए वे आईएएस और आईपीएस अधिकारी बन रहे हैं.

इस श्रृंखला के 45 सेकंड लंबे प्रोमो में यह दावा किया गया था कि ‘जामिया जिहादी’ उच्च पद हासिल करने के लिए जिहाद कर रहे हैं. यह दिलचस्प है कि जामिया मिलिया के जिन 30 पूर्व विद्यार्थियों ने सिविल सेवा परीक्षा में सफलता हासिल की है उनमें से 14 हिन्दू हैं. जामिया के विद्यार्थियों ने अदालत में याचिका दायर कर इस श्रृंखला के प्रसारण पर रोक लगाने की मांग की जिसे न्यायालय ने इस आधार पर स्वीकृत कर दिया कि यह कार्यक्रम समाज में नफरत फैलाने वाला है. सिविल सेवाओं के पूर्व अधिकारियों के एक संगठन कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप, जो किसी राजनैतिक दल या विचारधारा से संबद्ध नहीं है, ने एक बयान जारी कर कहा कि “यह कहना विकृत मानसिकता का प्रतीक है कि एक षड़यंत्र के तहत सिविल सेवाओं में मुसलमान घुसपैठ कर रहे हैं’’. उन्होंने कहा कि “इस संदर्भ में यूपीएससी जिहाद और सिविल सर्विसेस जिहाद जैसे शब्दों का प्रयोग निहायत गैर-जिम्मेदाराना और नफरत फैलाने वाला है. इससे एक समुदाय विशेष की गंभीर मानहानि भी होती है”.

देश में इस समय 8,417 आईएएस और आईपीएस अधिकारी हैं. इनमें से मात्र 3.46 प्रतिशत मुसलमान हैं. कुल अधिकारियों में से 5,682 ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास की है. शेष 2,555 अधिकारी, राज्य पुलिस व प्रशासनिक सेवाओं से पदोन्नत होकर आईपीएस या आईएएस में आए हैं. कुल 292 मुसलमान आईएएस और आईपीएस अधिकारियों में से 160 सिविल सेवा परीक्षा के जरिए अधिकारी बने हैं. शेष 132 मुस्लिम अधिकारी पदोन्नति से आईएएस या आईपीएस में नियुक्त किए गए हैं. सन् 2019 की सिविल सेवा परीक्षा में चयनित कुल 829 उम्मीदवारों में से 35 अर्थात 4.22 प्रतिशत मुसलमान थे. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार मुसलमान देश की कुल आबादी का 14.2 प्रतिशत हैं. सन् 2018 की सिविल सेवा परीक्षा में जो 759 उम्मीदवार सफल घोषित किए गए उनमें से केवल 20 (2.64 प्रतिशत) मुसलमान थे. सन् 2017 की सिविल सेवा परीक्षा में 810 सफल उम्मीदवारों में से मात्र 41 (5.06 प्रतिशत) मुसलमान थे.

चव्हाणके का आरोप है कि मुस्लिम विद्यार्थी इसलिए इस परीक्षा में सफलता हासिल कर पा रहे हैं क्योंकि उन्हें वैकल्पिक विषय के रूप में अरबी चुनने का अधिकार है जिसके कारण वे आसानी से उच्च अंक हासिल कर लेते हैं. सुदर्शन टीवी और उसके मुखिया चव्हाणके की यह स्पष्ट मान्यता है कि मुसलमानों को किसी भी स्थिति में ऐसे पद पर नहीं होना चाहिए जहां उनके हाथों में सत्ता और निर्णय लेने का अधिकार हो. बहुसंख्यकवादी राजनीति का भी यही ख्याल है.

सच यह है कि सिविल सेवाओं में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व, उनकी आबादी के अनुपात में बहुत कम है. हमारे देश  नौकरशाही से यह अपेक्षा की जाती है कि वह भारतीय संविधान के मूल्यों और प्रावधानों के अनुरूप काम करे. नौकरशाहों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर कोई भेदभाव न करें. इसलिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की किसी अधिकारी का धर्म क्या है. चव्हाणके और उनके जैसे अन्य व्यक्ति हमेशा ऐसे मुद्दों की तलाश में रहते हैं जिनसे वे मुसलमानों का दानवीकरण कर, उन्हें खलनायक और देश का दुश्मन सिद्ध कर सकें. दरअसल होना तो यह चाहिए था कि इस श्रृंखला के प्रसारण पर रोक लगाने के साथ-साथ इसके निर्माताओं पर मुकदमा भी चलाया जाता.

सरकारी सेवाओं में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व अत्यंत कम है. सभी श्रेणियों के सरकारी कर्मचारियों में मुसलमानों का प्रतिशत 6 से अधिक नहीं है और उच्च पदों पर 4 के आसपास है. इसका मुख्य कारण मुसलमानों का शैक्षणिक  और सामाजिक पिछड़ापन तो है ही इसके अतिरिक्त समय-समय पर इस समुदाय के खिलाफ होने वाली सुनियोजित हिंसा भी उनकी प्रगति में बाधक है. भिवंडी, जलगांव, भागलपुर, मेरठ, मलियाना, मुज्जफ्फरनगर और हाल में दिल्ली में जिस तरह की हिंसा हुई क्या उससे पढ़ने-लिखने वाले मुस्लिम युवाओं की शैक्षणिक प्रगति बाधित नहीं हुई होगी?

विभिन्न सरकारी सेवाओं में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर आयोगों और समितियों ने विचार किया है. वे सभी इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मुसलमानों का सेवाओं में प्रतिनिधित्व बहुत कम है. गोपाल सिंह व रंगनाथ मिश्र आयोग और सच्चर समिति आदि की रपटों से यह साफ है कि जेल ही वे एकमात्र स्थान हैं जहां मुसलमानों का प्रतिशत उनकी आबादी से अधिक है. पिछले कुछ वर्षों में संसद और विधानसभाओं में भी मुसलमानों के प्रतिनिधित्व में कमी आई है. कई मुस्लिम नेताओं ने तो यहां तक कहा है कि चूंकि उनके समुदाय को राजनीति और समाज के क्षेत्रों में हाशिए पर ढ़केल दिया गया है इसलिए अब मुस्लिम युवाओं को केवल अपनी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देना चाहिए. विदेश में रह रहे भारतीय मुसलमानों के कई संगठन भी देश में मुसलमानों की शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए कार्यक्रम चला रहे हैं.

सईद मिर्जा की शानदार फिल्म ‘सलीम लंगड़े पर मत रोओ’ मुसलमान युवकों को अपनी भविष्य की राह चुनने में पेश आने वाली समस्याओं और उनके असमंजस का अत्यंत सुंदर और मार्मिक चित्रण करती है. जामिया मिल्लिया इस्लामिया जैसी प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थाओं को चव्हाणके जैसे लोगों द्वारा निशाना बनाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. चव्हाणके यूपीएससी की प्रतिष्ठा भी धूमिल कर रहे हैं जिसकी चयन प्रक्रिया पर शायद ही कभी उंगली उठाई गई हो. उनके जैसे लोगों की हरकतों से देश में सामाजिक सौहार्द पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और मुसलमानों का हाशियाकारण और गंभीर स्वरूप अख्तियार कर लेगा. सुदर्शन चैनल विचारधारा के स्तर पर संघ के काफी नजदीक है. उसके संपादक को अनेक चित्रों में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के काफी नजदीक खड़े देखा जा सकता है. यह विवाद तबलीगी जमात के मुद्दे पर खड़े किए गए हौव्वे की अगली कड़ी है. मुसलमानों पर अब तक लैंड जिहाद, लव जिहाद, कोरोना जिहाद व यूपीएससी जिहाद करने के आरोप लग चुके हैं. शायद आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगा. अदालत ने सुदर्शन टीवी की श्रृंखला के प्रसारण पर रोक लगाकर अत्यंत सराहनीय काम किया है. इससे एक बार फिर यह आशा बलवती हुई है कि हमारी न्यायपालिका देश के बहुवादी और प्रजातांत्रिक स्वरूप की रक्षा करने के अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुई है. (हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया) (लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

प्रश्नकाल की अवहेलना संसदीय प्रजातंत्र के मूल चरित्र की अवहेलना है

एल. एस. हरदेनिया

प्रश्नोत्तर काल संसदीय व्यवस्था की आत्मा होता है। प्रश्न पूछकर सांसद या विधायक सच पूछा जाए तो सरकार की मदद करते हैं।

आपातकाल के दौरान भी प्रश्नोत्तर काल सस्पेंड कर दिया गया था। सरकार के इस निर्णय के बाद हम सब पत्रकार तत्कालीन मुख्य सचिव श्री एस. सी. वर्मा से मिले थे। उन्होंने आपाताकाल के दौरान लिए गए दो  खतरनाक निर्णयों पर गंभीर चिंता प्रगट की थी। पहला निर्णय था विधानसभा के प्रश्नोत्तर काल का सस्पेंशन और दूसरा समाचारों पर सेंसर। उनका कहना था कि विधायकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर एकत्रित करने के लिए बड़ी कवायद करनी होती है। इस कवायद के दौरान अन्य ऐसी जानकारियां भी मिल जाती हैं जिनसे आम आदमियों की समस्याओं का निराकरण हो जाता है।

इसी तरह समाचार पत्रों में प्रकशित समाचारों से मुझे दूरदराज की जगहों पर क्या हो रहा है इसका पता चल जाता है। उस समय सभी विपक्षी पार्टियों ने सरकार के इन दोनों निर्णयों की कड़ी आलोचना की थी। आलोचना करने वालों में भारतीय जनता पार्टी की पूर्व अवतार भारतीय जनसंघ भी थी। आज भारतीय जनता पार्टी स्वयं वही कर रही है जिसकी उसने आलोचना की थी।

दुनिया की सबसे प्राचीन संसद ब्रिटेन की है। वहां की संसद का निचला सदन हाउस ऑफ़ कामन्स कहलाता है। इतिहास बताता है कि ब्रिटेन के लंबे संसदीय इतिहास में प्रश्नोत्तर काल केवल एक बार ही सस्पेन्ड हुआ है जो इसलिए सस्पेन्ड हुआ था क्यांेकि उस दिन वहां के संसद भवन पर बम गिरने की संभावना थी।

यद्यपि प्रश्नकाल सदन की सबसे महत्वपूर्ण कार्यवाही है इसके बावजूद कुछ अवसरों पर स्वयं विपक्षी सदस्य प्रश्नकाल को सस्पेन्ड करने की मांग करते हैं। ऐसी मांग वे इसलिए करते हैं ताकि वे एक अत्यधिक महत्वपूर्ण मुद्दा उठा सकें। इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि यदि विधायक मंत्री से कोई फेवर चाहते हैं और मंत्री उन्हें घास नहीं डालते तो विधायक कोई ऐसा प्रश्न पूछने का प्रयास करते हैं जिससे मंत्री महोदय की प्रतिष्ठा पर आंच आए।

मध्यप्रदेश विधानसभा के एक ऐसे अध्यक्ष थे जो किसी मंत्री पर दबाव बनाने के लिए किसी विधायक से एक विवादग्रस्त मुद्दा उठवाते थे। इन सब कमियों के बावजूद प्रश्न पूछना सांसदों या विधायकों के हाथ में एक जबरदस्त हथियार है जिसका उपयोग वे जनहित में कर सकते हैं।

कभी-कभी  सभी की सहमति से प्रश्नकाल सस्पेंड किया जाता है। जैसे सन् 1962 में चीनी आक्रमण के समय और आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित विशेष सत्र आदि।

हमारे प्रदेश की विधानसभा के अनेक ऐसे सदस्य रहे हैं जिन्हें प्रश्न पूछने की कला पर जबरदस्त पकड़ थी। ऐसे कुछ विधायक मुझे बरबस याद आ रहे हैं। इस तरह के विधायकों में सबसे पहले मोतीलाल वोरा याद आते हैं। वोराजी सुबह जल्दी उठकर उस स्थान पर पहुंच जाते थे जहां हाकर उनके हिस्से के समाचार पत्र एकत्रित करते थे। उस समय वह स्थान न्यू मार्केट के काफी हाउस के सामने था। वोराजी समाचार पत्र खरीदकर उनमें छपी महत्वपूर्ण खबरों के आधार पर हाथ से लिखकर प्रश्न विधानसभा सचिवालय में पहुंचा देते थे।

इस तरह वे लगभग प्रतिदिन विधानसभा की कार्यवाही पर छाए रहते थे। ऐसे अन्य विधायक बाबूलाल गौर, लक्ष्मीकांत शर्मा और बसंतराव उईके थे। प्रक्रिया के नियमों के अनुसार तारांकित प्रश्न पर पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं। ऐसे में कभी-कभी ऐसा होता था कि एक ही प्रश्न पर इतने पूरक प्रश्न पूछे जाते थे कि प्रष्नकाल का पूरा समय एक ही प्रश्न  पूरक प्रश्नों में निकल जाता था।

जहां प्रश्न पूछना एक कला है वहीं प्रश्न का जवाब देना मंत्री की क्षमता को मापने का आधार है। विशेषकर पूरक प्रश्न के उत्तर से मंत्री की उत्तर देने की क्षमता प्रदर्शित होती है। एक दिन बसंतराव उईके एक प्रश्न के उत्तर में इतनी जानकारी लेकर आए थे कि विधायकों ने कहा कि बस इससे ज्यादा जानकारी नहीं चाहिए। ऐसे ही एक मंत्री बाबू तख्तमल जैन थे।

कभी-कभी प्रश्न काल के दौरान ऐसा विवाद हो जाता है कि सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती है।     

यहां एक बात का और उल्लेख करना चाहूंगा। ब्रिटेन में सप्ताह में एक दिन ऐसा होता है जिस दिन सिर्फ प्रधानमंत्री से प्रश्न पूछे जाते हैं। उसे प्राईम मिनिस्टर क्वेश्चन ऑवर कहते हैं। हाउस ऑफ़ कामन्स की तर्ज पर दिग्विजय सिंह ने भी मुख्यमंत्री प्रश्नकाल प्रारंभ किया था।

कुल मिलाकर प्रश्नकाल की अवहेलना संसदीय प्रजातंत्र के मूल चरित्र की अवहेलना है

रविवार, 6 सितंबर 2020

नए पदाधिकारियों का स्वागत हुआ

 संवाददाता
नई दिल्ली। डेसू मजदूर संघ ने गत दिनों बीएसईएस यमुना पावर में आऊटसोर्स के कर्मचारियों को पद देकर उन्हें पदाधिकारी घोषित किया है। यह सभी पदाधिकारी आउटसोर्सिंग स्टाफ की परेशानी को दूर करने में मदद करेंगे। उसी कड़ी में डिवीजन जीटीआर कंप्लेंट सेंटर न्यू जाफराबाद में एक स्वागत समारोह का आयोजन किया गया जिसमें डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव व आऊटसोर्स के ईस्ट दिल्ली के ज्वाइंट सेक्रेट्री अब्दुल रज्जाक का डिवीजन जीटीआर कंप्लेंट सेंटर न्यू जाफराबाद की पूरी टीम के साथ ऋषि पाल, दिनेश, सैन्तुल त्यागी, अशोक कुमार आदि ने जोरदार स्वागत किया गया।
इस मौके पर डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव ने कुछ कर्मचारियों की समस्याएं सुनी व जल्द उसे निपटाने का आश्वासन दिया। स्वागत सम्मान के बाद बिजली विभाग में कोरोना काल में भी बिना डरे अपनी सेवा दे रहे ऐसे कुछ कर्मचारियों को कोरोना योद्धा सम्मान के सर्टिफिकेट देकर  सम्मानित किया गया।
वैसे आपको बता दें डेसू मजदूर संघ बीएसईएस यमुना पावर व राजधानी में काम करने वाले मजदूरों के हक के लिए काम करती है चाहे वह कर्मचारी आउटसोर्स पर ही काम क्यों नहीं करता हो।


 

शनिवार, 5 सितंबर 2020

डेसू मजदूर संघ ने पदाधिकारी चुने

 

संवाददाता

नई दिल्ली। डेसू मजदूर संघ ने बीएसईएस यमुना पावर में आऊटसोर्स के कर्मचारियों को पद देकर उन्हें पदाधिकारी घोषित किया है। यह सभी पदाधिकारी आउटसोर्सिंग स्टाफ की परेशानी को दूर करने में मदद करेंगे। डेसू मजदूर संघ बीएसईएस यमुना पावर व राजधानी में काम करने वाले मजदूरों के हक के लिए काम करती है चाहे वह कर्मचारी आउटसोर्स पर ही काम क्यों नहीं करता हो।
डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव की अध्यक्षता में डेसू मज़दूर संघ के महामंत्री सुभाष ने आऊटसोर्स के कर्मचारियों के पद की घोषणा की जो इस प्रकार है: अशोक कुमार (अध्यक्ष), ऋषि पाल (महामंत्री), प्रमोद वर्मा (उपाध्यक्ष), दिनेश कुमार (सर्किल चैयरमेन), सैनतुल त्यागी (संगठन मन्त्री), दलबीर सिंह (सह संगठन मन्त्री), अजीत गुप्ता (सचिव, नोर्थ), परवीन त्यागी (सचिव, साउथ-ईस्ट), नसीरूद्दीन (सचिव, सेेंटर), अब्दुल रज़्ज़ाक (जॉइंट सेक्रेटरी), दीपक यादव (जॉइंट सेक्रेटरी), दीपक गौड़ (जॉइंट सेक्रेटरी), शक्ति सिंह (आफिस सेक्रेटरी), सतीश भाटी (ऑफिस सेक्रेटरी), निरजन धरौवर (कोषाध्यक्ष), विनोद कुमार (सह कोषाध्यक्ष)।
डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव ने इस मौके पर कहा कि हम मजदूरों के हक के लिए लड़ते हैं और लड़ते रहेंगे। आज जो पदाधिकारी हमने चुने हैं यह इस काम में हमारी मदद करेंगे ताकि हम और अच्छी तरह से मजदूरों के हक की आवाज को बुलंद कर सकें।


 
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