शुक्रवार, 11 मई 2018

पर्यटक की मौत पर आंसू बहाना पर्याप्त नहीं

 

अवधेश कुमार

कश्मीर में पत्थरबाजी आतंक से निपटना सुरक्षा बलांे के लिए गंभीर चुनौती रही है। यह एक आम स्थिति हो गई है कि सुरक्षा बल जहां भी आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन करते हैं पत्थरबाज वहां पहंचकर पत्थरबाजी शुरु करते हैं। उसमें सुरक्षा बल भी घायल होते हैं, शहीद होते हैं और पत्थरबाज भी सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई का निशाना बनते हैं। पत्थर आतंक से हुई दर्दनाक घटनाओं की एक लंबी सूची है। ंिकंतु इस समय पत्थरबाजों का शिकार हुए चेन्नई के 22 वर्षीय पर्यटक आर थिरुमनी की दर्दनाक मौत ने इसे एक नया मोड़ दे दिया है। आप देख लीजिए मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती एवं फारुख अब्दुल्ला दोनांे ने तो एक स्वर से इसकी निंदा की ही है, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने भी इसकी आलोचना की है। मेहबूबा मुफ्ती ने कहा कि इससे मेरा सिर शर्म से झुक गया है। यह अत्यंत दुखद और पीड़ादायक है। उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर लिखा कि हमने एक पर्यटक की जान उसके वाहन पर पथराव करके ली है। यह एक कठोर सच्चाई है कि हमने एक मेहमान की जान ली है और वह भी इन पत्थरबाजों के तरीकों को सही ठहराते हुए। हमें इस पर सोचना चाहिए। कृपया इस तथ्य पर गौर करें कि हमने एक पर्यटक, एक अतिथि पर पत्थर मारे जिससे उसकी मौत हो गई। ऐसा तब है जब हम इन पत्थरबाजों और उनके तरीकों का महिमामंडन करते हैं। इस युवा पर्यटक की मेरे चुनावी क्षेत्र में मौत हो गई। जबकि मैं इन गुंडों, उनके तरीकों और उनकी विचारधारा का समर्थन नहीं करता।

वास्तव में यह ऐसी घटना है जिसका खुलकर समर्थन करना किसी के लिए संभव नहीं। सभी राजनीतिक दलों ने एक स्वर से इस घटना की निंदा की है तथा पीडीपी भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला है। उमर अब्दुल्ला पूछ रहे हैं कि आखिर राज्य सरकार हत्यारों को बचाने का प्रयास क्यों कर रही है। हमेशा अलगावादी भाषा बोलने वाले निर्दलीय विधायक इंजीनियर रशीद ने भी सरकार पर पर्यटक को बचाने में नाकाम रहने का आरोप लगा दिया है। नैशनल पैंथर्स पार्टी के प्रमुख भीम सिंह  सरकार को पूरी तरह से विफल बता रहे हैं। उनका कहना है कि जिस दिन जनता सरकार को बदल देगी, सूबे में पत्थर बरसने बंद हो जाएंगे। यहां तक कि शोपियां में हुई मौत के खिलाफ बंद और प्रदर्शन का अह्वान करने वाले अलगावावादी नेता मीरवाइज उमर फारूक ने इस घटना को गुंडागर्दी करार दे दिया। अन्य नेताओं के भी ऐसे ही बयान हैं।

इससे ऐसा लग सकता है कि कश्मीर में सारी पार्टियां और नेता पत्थरबाजों के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। इंजिनियिर राशिद का बयान है कि यदि घाटी में पत्थरबाजी का लोग निशाना बनेंगे तो फिर कोई यहां क्यों आएगा। किंतु इससे किसी प्रकार की गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए। पर्यटन कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। वहां की बहुसंख्य जनता के लिए यह जीविकोपार्जन का मुख्य साधन है। यदि पर्यटक वहां इस तरह हमले का शिकार होंगे तो फिर कश्मीर में कौन पांव रखना चाहेगा। चंूंकि पर्यटक के मारे जाने तथा कुछ के घायल होने के कारण वहां का वातावरण अभी प्रतिकूल है इसलिए ऐसे बयान आ रहे हैं। उदाहरण के लिए उमर अब्दुल्ला का ही बयान ले लीजिए। वे कह रहे हैं कि हम अपनी मेहमाननवाजी के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं और हमने अपने मेहमानों के साथ जैसा सलूक किया और चेन्नै से एक मेहमान इसमें मारे गए, इससे ज्यादा शर्म की बात नहीं हो सकती। एक आंकड़ा हमारे सामने आया है। 8 जुलाई 2016 को आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद जबसे पत्थरबाजी तेज हुई है कश्मीर आने वाले पर्यटकांे की संख्या में गिरावट आई इै।  2016 के पहले चार महीने में 3,91,902 पर्यटक आए थे। अगले साल इन्हीं महीने में इनकी संख्या 1,69,727 तथा इस वर्ष इसी अवधि में 1,54,062 पर्यटक आए हैं। यह सरकार के साथ सभी पार्टियों के लिए चिंता का विषय है। कारण, पर्यटन नही ंतो फिर कश्मीरी जिएंगे कैसे?  सवाल है कि अगर पर्यटक नहीं मारे गए होते तो क्या इनका स्वर ऐसा ही निकलता? यही मूल प्रश्न है जिसका उत्तर हमेे तलाशना है।

शोपियां में 6 मई को एक बड़े आतंकरोधी अभियान में पांच आतंकवादी मारे गए। इस अभियान से बुरहान वानी गैंग का सफाया हो गया। यह सुरक्षा एजेंसियों की बहुत बड़ी सफलता थी। ंिकंतु इन आतंकवादियों को बचाने आए पत्थरबाजों मंे से भी पांच की मौत हो गई। इसके बाद हुर्रियत एवं अन्य समर्थकों ने बंद तथा प्रदर्शन की घोषणा कर दी। इस कारण पथराव का विस्तार अन्य क्षेत्रांे में भी हुआ। पत्थरबाज जहां वाहन देखते उसी पर हमला करने लगते। 7 मई शाम को गुलमर्ग से पर्यटकों का एक दल श्रीनगर लौट रहा था। रास्ते में श्रीनगर-बारामुला हाईवे पर स्थित नारबल के पास भड़काऊ नारेबाजी कर रहे तत्वों ने उनके वाहनों पर पथराव शुरू कर दिया। इन वाहनों में सवार पर्यटकों को चोटें आई और दो गंभीर रूप से घायल हो गए। पुलिस ने घायल पर्यटकों को तुरंत शेरे कश्मीर आयुर्विज्ञान अस्पताल सौरा पहुंचाया, जहां चेन्नई के पर्यटक की मौत हो गई। उसके सिर पर गंभीर चोटें आई थीं। उनके साथ घायल होने वाली हंदवाड़ा की सबरीना की हालत भी गंभीर बनी हुई है। हालांकि दिवंगत पर्यटक का शव जहां पोस्टमार्टम के लिए पुलिस अस्पताल ले जाया गया था वहां मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और स्वास्थ्य राज्यमंत्री आसिया नक्काश भी पहुंचीं। मुख्यमंत्री ने पीडित पर्यटक परिवार के साथ अपनी संवेदना जताई। यह एक सही कदम था। किंतु कल्पना करिए यदि पत्थरबाजों द्वारा कोई सुरक्षा बल शहीद किया गया होता तो भी मेहबूबा इसी तरह संवेदना व्यक्त करने पहुंचतीं और नेताओं के बयान इसी तरह आते?

अभी तक के इनके रवैये को देखते हुए तो इसका उत्तर है, नहीं। इंजिनियर राशिद को ही देखिए। एक तरफ तो वे पर्यटक के मारे जाने पर अफसोस प्रकट करते हैं दूसरी ओर कहते हैं कि शोपियां में सिर्फ 1 दिन में 11 कश्मीरियों ने अपनी जवान गईं। आतंकवादी और उनके समर्थकांे के प्रति ऐसी हमदर्दी इन नेताओं में लगातार देखी जा रही है। यह इन्हीं का रवैया है जिससे पत्थरबाजी अब वहां आतंकवादियों के लिए रक्षा कवच तथा सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। ऐसी दुखद घटनाओं की लंबी सूची यहां प्रस्तुत की जा सकती है जिसमंे आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पहुंचे सुरक्षा बलांे सामने पत्थरबाज आ धमके और उनकी आड़ में हमारे जवान शहीद हुए और घायल हुए। अगर उसमें कुछ पत्थरबाज मारे गए तो नेताओं का बयान उनके पक्ष में ही जाता था। उमर अब्दुल्ला ने ही कई बार बयान दिया कि सुरक्षा बलों ने संयम से काम लिया होता तो नागरिक नहीं मारे जाते। उसके साथ अलगाववादी ताकतें बंद आयोजित कर देतीं हैं जिसमें प्रदर्शन होता है, पत्थर चलते हैं और उनकी चपेट में कोई भी आ सकता है। वैसे इन्हीं पत्थरबाजों ने कुछ समय पहले बच्चों की स्कूल बस पर हमला कर दिया था। क्यों? आखिर इन बच्चों ने इनका क्या बिगाड़ा था? पर्यटकों पर भी इनके हमले बढ़े हैं। पिछले महीने ही  श्रीनगर और उससे सटे इलाकों में इनके हमले में कई पर्यटक जख्मी हो गए थे। उनमें दो महिला पर्यटकों को गंभीर चोटें आई थीं। पहलगाम के पास केरल के पर्यटकों पर पथराव हुआ और उसमें सात पर्यटक जख्मी हुए थे। यह प्रवृत्ति बढ़ रही है। यह केवल संयोग है कि इन पूर्व के हमले में कोई पर्यटक मारा नहीं गया। वस्तुतः इस तरह के हमले हो रहे हैं और इनको इन्हीं नेताआंे की शह मिलती है जो इस समय छाती पीटकर स्यापा कर रहे हैं।

इस दोहरे चरित्र से हिंसा का समाधान नहीं हो सकता। अलगाववादी तो पत्थरबाजों का बाजाब्ता उपयोग करते हैं। कभी लाउडस्पीकरांें से घोषणा होती है कि अमुक जगह हमारे मुजाहिद्दीन फंस गए हैं उनके पक्ष में आएं तो कभी सोशल मीडिया पर अपील वायरल की जाती है। मेहबूबा की नीति थी कि अगर इन नवजवानों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाएगा तो ये सुधर जाएंगे। केन्द्र सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा ने भी कश्मीर से लौटकर सरकार को कुछ रिपोर्टें दीं। उसके बाद काफी संख्या में पत्थरबाजों पर से मुकदमा वापस लेकर उनको जेल से रिहा किया गया। किंतु इसका अपेक्षित असर नहीं हुआ है। खैर, ऑपरेशन ऑल आउट के तहत सुरक्षा बलों ने अब पत्थरबाजों के आगे घुटने टेकने या वापस आने की नीति का परित्याग कर दिया है। वे हर हालत मंे ऑपरेशन पूरा करके ही वहां से हटते हैं। किंतु इसकी प्रतिक्रिया में यदि पत्थरबाज आम हिंसा पर उतारु हो गए, पर्यटक हमलों का शिकार होने लगे, स्कूली बच्चे होने लगे तो फिर इनसे निपटने के अन्य रास्ते भी तलाशने होंगे बिना इस बात की चिंता किए कि सरकार इससे लोकप्रिय हो रही है या अलोकप्रिय।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408ष् 9811027208

 

 

 

 

 

 

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