शनिवार, 29 अप्रैल 2017

इनकी शहादत व्यर्थ न जाए

 

अवधेश कुमार

बस्तर के सुकमा जिले के बुरकापाल गांव के पास सड़क की सुरक्षा में लगे केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों पर घात लगाकर माओवादियों द्वारा किए गए खूनी हमले से पूरे देश में गम और क्षोभ का माहौल है। एक साथ दो दर्जन से ज्यादा सीआरपीएफ जवानों के शहीद होने की खबर पर भी अगर देश में क्षोभ पैदा न हो तो फिर माना जाएगा कि हम मृत समाज हैं। वैसे शहीद जवानों की संख्या बढ़ सकती है। राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री सहित अनेक नेताओं ने जवानों को श्रद्वांजलि दे दी, उनके चले जाने पर शोक व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनको जवानों की बहादूरी पर गर्व है और उनकी मौत व्यर्थ नहीं जाएगी। गर्व पूरे देश को है और देश भी चाहेगा कि उनका बलिदान व्यर्थ नहंीं जाए। आखिर हमारे जवान हमारे लिए ही अपना बलिदान दे रहे है। ऐसे में पूरा देश उनका प्रति कृतज्ञ रहेगा। किंतु सवाल है कि केवल कृतज्ञता ज्ञापन तक ही हमारी प्रतिक्रियाएं सीमित रहेंगी या इसके आगे भी कुछ होगा? आखिर हमारे जवान कब तक माओवादियों के हाथों शहीद होते रहेंगे? यह सवाल आज हर भारतीय के अंदर कौंध रहा है। इसमें दो राय नहीं कि हाल के वर्षों में माओवादियांे की हिंसक गतिविधियों में काफी कमी आई है। इससे पता चलता है कि उनके खिलाफ चल रहे ऑपरेशन में सुरक्षाबलांे को सफलता मिली है। किंतु अगर कुछ अंतराल पर वे ऐसे हमले करने तथा हमारे जवानों की जानें लेने में सफल होते रहेंगे तो फिर यह मानना मुश्किल होगा कि उनकी कमर टूट गई है। इससे माओवादियों तथा उनके समर्थकों का हौंसला बढ़ता है, उनको पुनर्संगठित होने की ताकत मिलती है तथा वे हमले की तैयारी में लग जाते हैं।

देश चाहता है कि इस खूनी सिलसिले का अंत हो। ऐसी स्थिति में जब गम और क्षोभ का माहौल हो कटु सच बोलना जरा कठिन होता है, लेकिन यदि माओवादियों का अंत करना है तो हमें अपनी कमजोरियों पर बात करनी ही होगी। हम मानते हैं कि जिन परिस्थितियों में जवानों पर माओवादियों ने हमला किया उसमें उन पर विजय पाना जरा कठिन था। सीआरपीएफ की 74 वीं बटालियन सड़क ओपनिंग के लिए निकली थी। दोरनापाल से जगरगुंडा के बीच 56 किमी सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है। बुरकापाल कैंप में तैनात सीआरपीएफ की 74 वीं बटालियन के करीब 150 जवानों की तैनाती रोड ओपनिंग के लिए की गई थी। जवान सुबह 6 बजे से पैदल गश्त पर निकले थे। दोपहर करीब 12.55 बजे सड़क से कुछ मीटर अंदर जंगल में जवानों ने भोजन करना आरंभ किया। माओवादियों को इनकी प्रत्येक गतिविधि की जानकारी थी। ये कितने बजे और कहां दोपहर का भोजन करेंगे इसकी पूरी जानकारी नहीं होती तो वे उनपर उसी समय हमला नहीं करते। बगल की काली पहाड़ी से माओवादियों ने फायरिंग शुरू कर दी। इनने ग्रेनेड के अलवा रॉकेट लॉन्चर भी दागे। जब तक जवान संभल पाते, उनमें से कई को गोली लग चुकी थी। माओवादी ऊंचाई पर थे, जबकि जवानों का दल नीचे थे। उपर से माओवादियों के लिए इनकी गतिविधियों को देखना आसान था, इसलिए उनकी स्थिति मजबूत थी। हालांकि भोजन करने के बारे में नियम है कि एक साथ सभी भोजन नहीं करते। कूुछ जवान करीब आधे पहरा देते हैं और शेष भोजन करते हैं। बताया जा रहा है कि ऐसा ही वंहां भी था। बावजूद इतने जवान शहीद हो गए तो साफ है कि ये कमजोर पड़ गए थे। क्यों?

एक कारण तो उनका उंचाई पर होना मान लिया जाएगा। दूसरे, उनकी संख्या जवानों से काफी ज्यादा थी। तीसरे, उनके पास अत्याधुनिक हथियार थे। किंतु इससे भी चिंताजनक बात जो घायल जवानों ने बताया है वह यह कि इस बार कुछ गांवों के लोग उनको जवानों के लोकेशन के बारे में बता रहे थे। माओवादियों ने गांवों की महिलाओं और बच्चों की आड़ लेकर भी हमला किया। इसमें जवानों के लिए कठिनाई थी, क्योंकि ये बच्चों और निर्दोष महिलाओं को नहीं मारना चाहते थे। इस तरह यहां यह कहा जा सकता है कि माओवादियों ने कायरों की तरह हमला किया जिसके लिए उनको शर्म आनी चाहिए। लेकिन क्या ऐसा उन्होंने पहली बार किया है? उनके लिए केवल अधिक से अधिक जवानों का खूना बहाना लक्ष्य है उसके लिए जो भी करना पड़े करंेगे। वे कोई सैद्वांतिक और नैतिक युद्ध नहीं लड़ रहे हैं। कहने के लिए वे माओवादी हैं किंतु माओ के सिद्धांत से भी उनका लेना-देना नहीं। माओ के विचार में हिंसा का प्रमुख स्थान है और इसलिए वह पूरी तरह अस्वीकार्य एवं निदंनीय है। किंतु माओ ने चीन में लाल मार्च किया तो उसमें कुछ भी छिपा नहीं था। सब कुछ खुला हुआ था। उसने गुरिल्ला युद्ध भी किए। हमारे यहां तथाकथित माओवादियों की तरह अकारण हिंसा उसने नहीं किया। इसलिए इनको माओवादी या नकस्लवादी दोनों कहना गलत है। ये केवल आतंकवादी हैं, हत्यारे हैं और इनसे इस तरह निपटा जाना चाहिए।

किंतु जरा यहां अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर भी आत्मविश्लेषण जरुरी है। ऐसा तो है नहीं कि जवानों पर यहां पहली बार हमला हुआ जिसके लिए पूर्व तैयारी नहीं थी। सुकमा में 11 मार्च को भी भेज्जी में पुल निर्माण को सुरक्षा दे रहे सीआरपीएफ जवानों पर माओवादियों ने हमला किया था जिसमें 12 जवान शहीद हो गए थे। माओवादी जवानों के हथियार भी लूट ले गए। माओवादियों ने सुबह 9 बजकर 15 मिनट पर तब हमला बोला, जब सीआरपीएफ के 219 जी बटालियन के जवान रोड ओपनिंग टास्क के लिए जा रहे थे। इसके पूर्व 30 जनवरी को दंतेवाड़ा के निकट राशन वाली जवानों की गाड़ी विस्फोट से उड़ा दी गई थी, जिसमें 7 जवान शहीद हुए थे। इस साल माओवादी वारदातों में अर्धसैन्य बलों के 49 जवान शहीद हो चुके हैं। यह तो इस साल की बात है। ये दो घटनाएं ही हर दृष्टि से सम्पूर्ण पूर्व तैयारी का कारण होना चाहिए था। हम यहां सारी घटनाओं का विवरण नहीं दे सकते। लेकिन दो घटनाओं को याद करना जरुरी है। इसी सुकमा जिले की दर्भा घाटी में नक्सलियों ने 25 मई 2013 को बड़ा हमला किया था। इस हमले में कांग्रेस के सारे वरिष्ठ नेता मार डाले गए थे। कुल मरने वालांे की संख्या 27 थी। उसके बाद कहा गया कि सुरक्षा की पूरी समीक्षा की गई है। तो क्या हुआ उसका? यही वह क्षेत्र है जहां माओवादियों ने 6 अप्रैल 2010 को सीआरपीएु के काफिले पर हमला किया था। इसमें 2 पुलिसकर्मियों सहित 76 जवानों की जान गई थी। क्या उस घटना के बाद सुरक्षा की समीक्षा नहीं हुई थी? तो फिर ऐसी घटनाआंें की पुनरावृत्ति क्यों हो रही है?

ध्यान रखिए जवानों और माओवादियों के बीच करीब सवा तीन बजे तक मुठभेड़ हुआ लेकिन तब तक वहां बैकअप पार्टी नही पहुंच पाई। जहां वारदात हुई, वहां से दोनों ओर चिंतागफा और बुरकापाल कैंप हैं, लेकिन घटना की सूचना काफी देर बाद अधिकारियों को मिली। जब तक मदद पहुंचती माओवादी भाग चुके थे। बुरकापाल से चिंतागुफा थाने की दूरी 5 किमी है, जबकि बुरकापाल से घटनास्थल की दूरी केवल 2 किमी है। 3 बजकर 10 मिनट के आसपास चिंतलनार व चिंतागुफा थाने से बैकअप पार्टी पैदल रवाना हुई। बैकअप पार्टी 4 बजकर 25 मिनट पर घटनास्थल पहुंची। इसे क्या कहेंगे? सुकमा हमले की खबर वायुसेना की एंटी नक्सल टास्कफोर्स को करीब 3 बजे मिली। उसके बाद जगदलपुर से दो हेलिकॉप्टर घायलों को लाने के लिए रवाना किए गए। 7 घायलों को रायपुर के हॉस्पिटल में पहुंचाया गया। इस दौरान रास्ते में एक घायल जवान की मौत हो गई। हो सकता है समय पर उसे अस्पताल पहुंचाया जाता तो उसकी जान बच जाती। अगर सूचना तंत्र मजबूत होता, समय पर सूचना पहुंचती और बैकअप पार्टी के वहां त्वरित पहुंचने की तैयारी होती तो तसवीर कुछ अलग होती। यह भी ध्यान रखिए कि इस सड़क पर हर 5 किमी पर सीआरपीएफ के कैंप हैं। दोरनापाल से आगे पोलमपल्ली, कांकेरलंका, तिमिलवाड़ा, चिंतागुफा, बुरकापाल और चिंतलानार में कैंप हैं। इन कैंपों तक सूचना क्यों नहीं पहुंची? ये सक्रिय क्यों नहीं हुए? ये ऐसे सवाल है जिनका जवाब देश चाहेगा। विस्फोट के लिए बदनाम रही सड़क का निर्माण पुलिस हाउसिंग बोर्ड कर रहा है। अब यहां एक मीटर मोटी सीसी सड़क बनाई जा रही है। यह पता है कि माओवादियों के लिए इस तरह की सड़के मौत का वारंट होती हैं। अगर आने जाने का रास्ता बन गया तो उनके लिए हिंसक औपरेशन चलाना कठिन हो जाएगा। इसलिए सड़कों या ऐसे किसी भी विकास कार्यों का वो हर संभव विरोध करते हैं। जाहिर है, इसके लिए हमारी पूर्व तैयारी होनी चाहिए थी। पूरे दुख के साथ यह स्वीकारना पड़ता है कि हमारी तैयारी खतरे के अनुरुप नहीं थी। चुनौती सामने होते हुए भी उसका पूरा आकलन हमारे सुरक्षा मकहमे ने नहीं किया था। इसका परिणाम हमें भुगतना पड़ा है। क्या इसके बाद गारंटी मिलेगी कि ऐसा दोबारा नहीं होगा? इसका उत्तर हां में देना कठिन है।

टवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

 

रविवार, 16 अप्रैल 2017

आप के कार्यकर्ता एआईएमआईएम में शामिल

 



  • कई समाज के लोगो ने दिया ए आई एम आई एम को समर्थन


नई दिल्ली । दिल्ली में एआईएमआईएम का जनाधार लगातार बढ़ रहा है। कांग्रेस आप, सपा, भाजपा के सभी दलों के लोग एआईएमआईएम में लगातार शामिल हो रहे है।
इसी सिलसिले ने आप के एक ग्रुप ने एक सभा के मंच पर आकर एआईएमआईएम का दामन थाम लिया।आप के लोगो के पार्टी में जुड़ने से हाजी अब्दुल हन्नान की जीत पक्की मानी जा रही है।
लोगो को ख़िताब करते हुए हाजी अब्दुल हन्नान ने कहा कि दूसरे दलों के आकर पार्टी में जुड़ना, इस बात का साबुत है कि पार्टी की जीत पक्की है उत्तर पूर्वी लोकसभा के संयोजक आस मोहम्मद कुरैशी ने कहा कि शास्त्री पार्क वार्ड में एआईएमआईएम की आंधी चल रही है। हमारा मुकाबला सीधा भाजपा से है।
इस मौके पर आप के डॉ ज़ाहिद अहसास, हाजी मोहम्मद अली शेरवानी वाले, नदीम कुरैशी, बाबु भाई, मो सलीम, मो साजिद अंसारी जीन्स वाले, इमरान अंसारी ने पार्टी छोड़ ए आई एम आई एम का दामन थाम लिया।इस सभा को कामयाब बनाने में मेहरुद्दीन उस्मानी ने अहम रोल अदा किया।
 

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

कुलभूषण की सजा भारत को दी गई सीधी चुनौती है

 

अवधेश कुमार

भारत ने जिस तरह की कड़ी प्रतिक्रिया पाकिस्तान को दी है वही देश से अपेक्षित था। विेदेश सचिव एस जयशंकर ने पाकिस्तान के उच्चायोग अब्दुल बासित को बुलाकर साफ कर दिया है कि अगर हमारे नागरिक कुलभूषण जाधव को फांसी दी जाती है तो भारत इसे सुनियोजित ंिहंसा मानेगा। यानी भारत यह मानेगा कि पाकिस्तान ने हमारे एक निर्दोष नागरिक का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी। यह सीधे-सीधे पाकिस्तान को चेतावनी है। अगर कोई हमारे देश के नागरिक की सरेआम हत्या करेगा तो फिर उसका जवाब किस तरह दिया जाएगा इसकी केवल कल्पना की जा सकती है। जाहिर है, अब पाकिस्तान को तय करना है कि वह क्या करता है। लेकिन क्या वहां की नागरिक सरकार की इतनी हैसियत है कि वह सेना के खिलाफ जा सके? कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान सैन्य न्यायालय ने मृत्युदंड दिया है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर अहमद बाजवा ने उस सजा पर हस्ताक्षर कर दिया है। सैन्य न्यायालय के खिलाफ अगर पाकिस्तान में अपील का कोई प्रावधान नहीं है तो फिर एक ही रास्ता बचता है कि कुलभूषण जाधव वहां के राष्ट्रपति के यहां दया याचिका लगाए। यह तो प्रक्रिया की बात हुई। पूरा भारत कुलभूषण जाधव की दशा से सकते में है। उसके साथ क्या किया जा रहा था किसी को पता नहीं। पाकिस्तानी मीडिया में भी कोई खबर नहीं थी। जाहिर है, यह कंगारु कोर्ट का न्याय था जिसमें न कोई गवाह, न बचाव के लिए वकील न मौका.... सब कुछ पूर्व निर्धारित कि इस आदमी को मौत की सजा देनी है।

पिछले वर्ष मार्च में जब भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव की पाकिस्तान द्वारा गिरफ्तारी की सूचना आई पूरा भारत हतप्रभ रह गया। दो देशों के बीच जासूसी कोई नई बात नहीं। लेकिन भारत कभी भी ऐसे जासूस किसी देश में नहीं भेजता जो किसी तरह की हिंसा को बढ़ावा देने की भूमिका निभाए। पाकिस्तान का आरोप था कि कुलभूषण जाधव रॉ का एजेंट है जो बलूचिस्तान की सीमा के पास से पकड़ा गया। वह बलूचिस्तान और कराची में हिंसा, विध्वंस और जातीय संघर्ष बढ़ाने तथा चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे  को तोड़ने के लिए काम कर रहा था। हालांकि सैन्य न्यायालय में उस पर विस्तार से क्या-क्या आरोप लगाए गए यह किसी को पता नहीं। ंिकंतु उस समय पकड़े जाने के बाद 30 मार्च 2016 को पाकिस्तान की ओर से जाधव के कथित कबूलनामे का एक वीडियो जारी करने के साथ पाकिस्तानी सेना के इंटर सर्विसेस पब्लिक रिलेशन्स विभाग के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल असीम बाजवा और सूचना मंत्री परवेज रशीद ने पत्रकार वार्ता में उस पर यही आरोप लगाए थे।। उस वीडियो में कुलभूषण जाधव ने कबूल किया है कि वह रॉ के लिए बलूचिस्तान में काम कर रहा था। इन दोनों ने पत्रकार वार्ता में कहा कि जाधव भारतीय नौसेना का सर्विंग अफसर है जो 2022 में सेवानिवृत्त होने वाला है।  उसे सीधे रॉ प्रमुख हैंडल करते हैं। वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के संपर्क में भी है। इन दोनों ने भारत को संबोधित करते हुए कहा कि आपका मंकी (जासूस) हमारे पास है। उसने वो कोड भी बताया है, जिससे वह रॉ से संपर्क करता था।

जाधव का नाम आते ही भारत सरकार ने छानबीन की और यह स्पष्ट किया कि हां, वह भारतीय नागरिक है। हां, वह भारतीय नौसेना का अधिकारी रहा है लेकिन उसने समय से पूर्व सेवानिवृत्ति ले लिया और अपना व्यापार करता है। यानी उसके कथित कबूलनामे में जो कुछ भी कहा गया वो सब झूठ था। भारत ने यह भी सार्वजनिक किया कि जाधव का एक पासपोर्ट 2014 में मुंबई के ठाणे से जारी हुआ था जिसका नंबर 9630722 है। इस पर जसदनवाला कॉम्पलेक्स ओल्ड मुंबई-पुणे रोड का पता दर्ज है। यह एक सभ्य तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनों को मानने वाले देश का आचरण था। यह पाकिस्तान के रवैये के विपरीत आचरण था। वह कभी भी अपने देश के आतंकवाद में पकड़े गए लोगों को अपना मानता ही नहीं। मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब को भी उसने आरंभ में अपना नागरिक मानने से इन्कार किया था। वहीं की मीडिया ने उसके गांव तक का पता बता दिया। करगिल युद्ध में अपने सैनिकों के होने से भी उसने इन्कार किया था और उनके शव भारत ने सम्मानपूर्वक मजहबी रीति से दफना दिए। भारत पाकिस्तान की तरह नकारने वाला देश नहीं है। हमने कहा कि वह भारतीय नागरिक है और आपने पकड़ा है तो हमारे उच्चायोग को उसके पास तक जाने दिया जाए। यही अंतरराष्ट्रीय कानून है। आप किसी देश के नागरिक को पकड़ते हैं और मुकदमा चलाते हैं तो उस देश के उच्चायोग या दूतावास के प्रतिनिधियों से उसे मिलने दिया जाता है ताकि वह अपनी बात कह सके एवं उसे कानूनी मदद पहुंचाई जा सके। भारत ने 25 मार्च 2016 से 31 मार्च 2017 तक पाकिस्तान से 13 बार इसके लिए लिखा लेकिन जाधव को उच्चायोग के अधिकारियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई। आखिर क्यों? पाकिस्तान को इसका जवाब देना पड़ेगा। दुनिया भी जानना चाहेगी आखिर उच्चायोग की पहुंच जाधव तक क्यों नहीं होने दिया गया? 

यह तो कहीं का न्याय नहीं हुआ। भारत ने इस सजा को न्याय और इंसाफ की धज्जी उड़ाने जैसा माना है। जरा पाकिस्तान के आरोपों का पोस्टमार्टम करिए। उसे बलूचिस्तान के चमन इलाके से पकड़ने की बात की जा रही है। वह पूरा अशांत इलाका है। वैसे वह किस रास्ते घुसा इस पर भी कोई स्पष्ट सूचना नहीं है। किंतु उस पर 12 बार बलूचिस्तान आने का आरोप है। पाकिस्तान अफगानिस्तान के बीच डुरंड रेखा 2640 कि. मी. का है। उस पर इतना कड़ा पहरा है कि आसानी से कोई प्रवेश नहीं कर सकता। कोई व्यक्ति 12 बार आया गया और पकड़ा नहीं गया? वैसे भी 12 बार उतनी लंबी सीमा को पार करना किसी आम मानव के बस की बात नहीं है। ऐसा कोई महामानव ही कर सकता है जो अभी धरती पर पैदा नहीं हुआ। कोई एक व्यक्ति कितनी शक्ति रखेगा जो कि एक साथ बलूचिस्तान में आग भड़का दे, ग्वादर बंदरागह और चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को ध्वस्त करने का षडयंत्र रच दे तथा कराची में भी दंगा भड़का दे? पाकिस्तान की ओर से यह खबर आई कि उसने एजेंटों का एक तंत्र बना लिया था। तो कहां है वह तंत्र? क्या उसके अलावा किसी एक को भी पाकिस्तान ने पकड़ा है? पकड़ा है तो उसे सामने लाए? जाहिर है, पाकिस्तान ने केवल झूठ का पुलिंदा बनाया यह साबित करने के लिए भारत उसके देश में आतंकवाद को प्रायोजित करता है। चंूकि भारत मे आतंकवाद के उसके प्रायोजन प्रमाणित हो चुके हैं इसलिए भारत को भी वह अपने जैसा साबित करना चाहता है। किंतु उसके दावे पर कोई विश्वास नहीं कर सकता और उसने जिस तरह सजा दी है उसके बाद तो उसकी रही सही विश्वसनीयता भी धूल धुसरित हो जाएगी।

सबसे पहले कबूलनामा वाला वीडियो 358 सेकेण्ड का है जिसमें विशेषज्ञों ने 102 कट पकड़े हैं। अलग-अलग एंगल से कैमरे लगाकर उसे सूट किया गया है। उसमें जाधव कई बार टेलिप्रॉम्प्टर से पढ़ते हुए दिखते हैं। वह वीडियो पूरे बचकाने ढंग का है जो पाकिस्तान के झूठ का पर्दाफाश कर देता है। दूसरे, कोई देश यदि कहीं अपना जासूस भेजता है तो उसे राजनयिक कवर देता है। इस तरह किसी को नहीं भेजता। तीसरे, वीडियो में उसका ईरानी वीजा दिखाया गया है जिसमें चाबाहार मुक्त व्यापार क्षेत्र में उसके काम करने की बात अंकित है। ईरान के राष्ट्रपति जब पाकिस्तान दौरे पर आए थे उनके सामने ये बातें रखीं गईं और उन्होंने इसे नकार दिया। कहा तो यहां तक जा रहा है कि पाकिस्तान को उन्होंने इसके लिए झिड़की तक दे दी। सवाल मुकदमे का भी है। पूरी दुनिया यह जानना चाहेगी कि आखिर किस कानून के तहत किसी देश का सैन्य न्यायालय किसी विदेशी पर मुकदमा चला सकता है? किसी लोकतंत्र में सैन्य न्यायालय प्रायः अपने आंतरिक मामलों के लिए होते हैं। कोर्ट मार्शल किसी सैन्य अधिकारी का हो सकता है। पाकिस्तान कैसा देश है जहां आम न्यायालय का मामला सैन्य न्यायालय में चलता है जिसमें किसी का प्रवेश ही नहीं। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान किस दशा में पहुंच गया है। यानी वहां का राजनीतिक शासन और नागरिक न्यायालय केवल नाम के लिए है पूरी व्यवस्था का सूत्र सेना के हवाले है। सेना मनमाने तरीके से फैसले करती है और उसका प्रतिकार करने की हिम्मत किसी में भी नहीं। चौथे, अगर कोई जासूस हो भी तो उसे मौत की सजा देने का प्रावधान कहां है?

बहरहाल, हमारे सामने निर्णय लेने की घड़ी आ गई है। अगर कुलभूषण जाधव को फांसी दी जाती है तो यह भारत को सीधी चुनौती होगी। भारत ने यह स्पष्ट भी कर दिया है कि इस चुनौती का जवाब हर हाल में दिया जाएगा। कैसे दिया जाएगा यह तय करना होगा। किंतु उसकी सजा की प्रतिक्रिया में तो कुछ कठोर कदम तत्काल उठाए ही जाने चाहिए। भारत ऐसा देश नहीं है जो अपने एक निर्दोष नागरिक की हत्या के प्रयास को चुपचाप देखता रह जाए।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

 

 

बुलंद मस्जिद कालोनी के सैंकड़ों मुसलमनों ने थामा भाजपा का दामन

  • शास्त्री पार्क वार्ड के बुलंद मस्जिद कालोनी में मुस्लिमों की 95 प्रतिशत आबादी
  • पिछले चुनाव में यहां से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार बने थे विधायक
  • भाजपा के उम्मीदवार को तौला लड्डूओं में
  • कार्यालय का भी उद्घाटन हुआ
  • सैंकड़ों मुसलमनों के भाजपा में शामिल होने के बाद आप और कांग्रेस को हो सकता है बड़ा नुकसान
संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली में नगर निगम चुनावी की सरगर्मी सातवें आसमान पर है इसी के चलते आज दिल्ली के शास्त्री पार्क वार्ड 25-ई में बुलंद मस्जिद कालोनी के सैंकड़ों मुसलमानों ने आज भाजपा का दामन धाम लिया। भाजपा में अधिकतर लोग आम आदमी पार्टी और कांग्रेस छोड़कर शामिल हुए। भाजपा में शामिल होने वाले लोग ऐसा लग रहे थे जैसे यहां कोई मुस्लिम जलसा हो रहा हो मगर हकीकत यह थी कि लोगों का आप और कांग्रेस से मोहभंग हो गया है।

बुलंद मस्जिद वह कालोनी है जहां भाजपा को 180 से 250 के बीच ही वोट पड़ते थे और यह मुस्लिम बहुल इलाका है जहां पहले कांग्रेस को और पिछले 3 चुनाव से आप को वोट पड़ रहे हैं मगर आज के दृश्य को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि यह वही मुस्लिम इलाका है जिसे कांग्रेस या आप का गड़ कहा जाता है। इस इलाके की सबसे बड़ी खासियत यह है जिसको भी यहां के लोगों ने गले लगाया है वह विजय होकर ही गया है। यह पहला मौका है जब यहां के लोग भाजपा में इतनी बड़ी तादाद में शामिल हुए।

भाजपा के उम्मीदवार रोमेश चन्द्र गुप्ता ने कहा कि आज इस इलाके से इतनी बड़ी तादाद में मुस्लिम समाज मेरे साथ व भाजपा के साथ जुड़ा है यह जीत की निशानी है। आज बुलंद मस्जिद के लोगों ने मेरा जो स्वागत किया मैं उसको कभी नहीं भूल सकता यहां के लोगों ने फूल-मालाओं से स्वागत तो किया ही मुझे मेरे वजन के बराबर लड्डू से भी तोला। हमारे एक कार्यालय का भी उद्घाटन हो गया है। इस पर भाजपा के उम्मीदवार ने अपनी जीत का दावा करते हुए कहा की जीतने के बाद वह इस इलाके की सड़कें को पक्का करना और इलाके में जो कब्रिस्तान है उसका बड़ा कर सुन्दर बनाना है।

आज के प्रोग्राम की सरपरस्ती हाजी मुस्तकीम ने की और उन्होंने बताया की आज तक कांग्रेस के लोग मुसलमानों को भाजपा का डर दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते थे मगर काम नहीं करते थे। काम के नाम पर अनाधिकृत कालोनी का राग अलाप दिया जाता था। यहां लगभग 11000 वोट है और सबसे ज्यादा वोट पड़ता है। इसके साथ ही यहां के वोट से ही जीत सुनिश्चित होती है जिस कारण कांग्रेस और आप वाले लोगों को फिर भाजपा का डर दिखा रहे हैं मगर अब मुस्लिम समाज इनके बहकावे में नहीं आने वाला।

हाजी मुस्तकीम ने आगे बताया है इस इलाके में पिछले निगम पार्षद ने कुछ काम नहीं किया है जिससे इलाके में कोई काम नहीं हुआ पाया है। इस इलाके को हमेशा से ही विकास कार्य से अछुता रखा गया है।
 


 

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

रूस में आतंकवादी हमला गंभीर और चिंताजनक

 

अवधेश कुमार

मास्को के बाद रूस के दूसरे सबसे बड़े शहर सेंट पीटर्सबर्ग में भूमिगत मेट्रो में हुए धमाके ने फिर से दुनिया का ध्यान खींचा है। हालांकि इसमें 10 लोगों के मरने तथा 50 के घायल होने की ही खबर है। इस आधार पर इसे छोटी घटना करार दिया जा सकता है। हालांकि सेन्नया प्लोशद और टेक्नोलॉजीचेस्की इंस्टीट्यूट स्टेशनों के बीच दोपहर बाद 2.40 बजे भूमिगत मेट्रो में धमका करने का मतलब है वो ज्यादा से ज्यादा क्षति पहुंचाना चाहते थे। वह समय काफी भीड़ का होता हैं। कम लोगों का हताहत होना केवल संयोग है। वैसे भी रुसी आतंकवादी विरोधी समिति नेे कहा है कि उसने सेंट पीटर्सबर्ग के एक अन्य भूमिगत स्टेशन से जीवित बम बरामद किया और उसे निष्फल किया। अगर वह फट जाता तो और क्षति होती। हमल छोटा था या बड़ा था, इसमंे कम लोग मारे गए या ज्यादा मारे गए यह अब मायने नहीं रखता। आतंकवादी या आतंकवादियों को हमला करने में सफलता मिली यह महत्वपूर्ण है और दुनिया के लिए यही चिंता की बात है। अभी पिछले 22 मार्च को लंदन के वेस्टमिंस्टर पुल पर एक कार हमले में 5 लोग मारे गए एवं 13 घायल हुए। वहां तो हताहतों की संख्या और कम थी। तो क्या इससे उस हमले को नजरअंदाज कर दिया जाएगा? पिछले 26 मार्च को बंगलादेश के सिलहट में दो विस्फोटांें में 6 लोग मारे गए एवं 40 घायल हुए। इसका निष्कर्ष यह है कि आतंकवादी अब इस तरह उतर आए हैंं कि जैसे भी हो हमला करो... यह न सोचो कि छोटा है या बड़ा और उसमें कितने लोग मरे। इसमें उनको अपनी जान की परवाह नहीं। यह साफ हो गया है कि सेंट पीटर्सबर्ग का हमला भी आत्मघाती था। यह आतंकवाद की नई प्रवृत्ति है और इसमें हमले का स्रोत ज्यादातर स्थानीय होता है। यह संगठित और बड़े वारदात से ज्यादा खतरनाक है। दुनिया में इससे दहशत तो फैलती है। रुसी मेट्रो पर हमले ने दुनिया को फिर नए सिरे सतर्क होने और सुरक्षा व्यवस्था को सख्त करने पर विवश किया है। दुनिया भर में मेट्रो एवं रेलों की सुरक्षा बढ़ाई जा रही है।

संयोग देखिए, जिस समय हमला हुआ उस समय रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शहर में ही थे। वह बेलारूस के नेता एलेक्जेंडर लुकाशेंको से मुलाकात के लिए यहां आए हैं। पुतिन ने हमले के बारे में तत्काल कुछ नहीं कहा लेकिन उन्होंने इसे आतंकवादी हमला मानने से इन्कार नहीं किया। सुरक्षा एजेंसियों ने तो इसे आतंकवादी घटना मान ही लिया है। विस्फोटक से किसी रेल के डिब्बे को उड़ाना आतंकवाद का ही कारनामा तो है। विस्फोट इतना तगड़ा था कि मेट्रो के कोच के परखच्चे उड़ गए।रूस के स्थानीय न्यूज चैनलों के फुटेज में खून से लथपथ घायल लोग प्लेटफॉर्म पर जहां-तहां पड़े दिखाई दिए।एक प्लेटफॉर्म के पास धमाके से एक बड़ा गड्ढा बन गया। यह भी साफ हो गया है कि मेट्रो में धमाका कील बम (नेल बम) से किया गया। ज्यादा लोगों को घायल करने के लिए कीलों का प्रयोग किया जाता है। कीलें छर्रे के रूप में काम करती हैं, जिससे छोटे क्षेत्र में अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाया जाता है। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि उन्होंने हमलावर को अपनी पीठ पर लटका बैग ट्रेन के भीतर फेंकते देखा। इसके बाद धमाका हुआ। माना जा रहा है कि कीलों से भरा विस्फोटक किसी ब्रिफकेस में रेल के भीतर रखा गया था। विस्तृत जानकारियां तो छानबीन के बाद ही आएंगी, लेकिन दुनिया भर में आतंकवाद की वर्तमान स्थिति तथा उसमें रुस की भूमिका को देखते हुए कुछ अनुमान तो लगाया ही जा सकता है।

 वर्तमान वैश्विक आतंकवाद की जब चर्चा होती है तो प्रायः उसमें रुस का नाम नंहीं लिया जाता, जबकि सच यह है कि रुस लंबे समय से आतंकवादी हमले का शिकार रहा है और वहां बड़े-बड़े आतंकवादी हमले हुए हैं। यह उन सबको एक बार उद्धृत करना आवश्यक है। 31 अक्टूबर 2015 को इस्लामिक स्टेट ने एक रुसी विमान को मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप के उपर उड़ा दिया जिसमें 224 लोग मारे गए थे। आईएस द्वारा विमान को उड़ने की यह पहली घटना थी। आईएस ने केवल एक ही हमला करने का तय किया होगा ऐसा तो है नहीं। इसके पूर्व 29-30 दिसंबर 2013 को दो आत्मघाती आतंकवादियों ने वोल्गोग्राद शहार के एक रेलवे स्टेशत तथा एक ट्रौली बस में विस्फोट कर 34 लोगों की जान ले ली। यह हमला सोचि में 2014 के विंटर ओलिम्पिक आरंभ होने के केवल दो महीने पहले हुआ था। 24 जनवरी 2011 को मॉस्को के दोमोदेदोवो हवाई अड्डे पर आत्मघाती हमले में 30 लोग मारे गए। 29 मार्च 2010 को मॉस्को के दो मेट्रो स्टेशनों पर दो महिला आत्मघाती हमले में 40 लोग मारे गए थे और 100 से ज्यादा घायल हुए थे। हमले की जिम्मेदारी चेचेन विद्रोहियों ने ली थी। 27 नवंबर 2009 को मास्को एवं सेंट पीटर्सबर्ग के बीच एक रेल में विस्फोट किया गया जिसमें 26 लोग मारे गए तथा 100 घायल हुए। इसकी जिम्मेवारी भी चेचेन विद्रोहियों ने ली थी। 21 अगस्त 2006 को मास्को के एक उपनगरीय बाजार में विस्फोट से 10 लोग मरे तथा 50 घायल हुए। 1 सितंबर 2004 को आतंकवादियों ने बेसलान के एक स्कूल को कब्जे में ले लिया। दो दिनों तक सुरक्षा बल उनको घेरे रहे। जब वे चेतावनी से नहीं निकले तो 3सिंतबर को सुरक्षा बलों ने कार्रवाई की और 330 लोग मारे गए। यह भी चेचेन उग्रवादियों की ही कार्रवाई थी। 24 अगस्त 2004 को दो रुसी यात्री विमानों को उड़ा दिया गया जिसमें 90 लोग मारे गए। एक विमान वोल्वोग्राड जा रहा था जो मास्को के दक्षिण में गिरा और कुछ ही क्षणों में दूसरा विमान रोस्तोव ऑन दोन में ध्वस्त हुआ। 6 फरबरी 2004 को मास्को के भूमिगत रेलवे में आत्मघाती विस्फोट में 39 लोग मारे गए तथा 100 घायल हुए। यह भी चेचेन विद्रोहियों की कार्रवाई मानी गई। 5 दिसंबर 2003 को दक्षिण रुस के येस्सेन्तुकी स्टेशन के निकट एक रेल में विस्फोट से 46 मारे गए एवं 160 घायल हुए। 23 अक्टूबर को चेचेन विद्रोहियों ने मास्को के एक थिएटर को कब्जे में ले लिया। यह तीन दिनों तक चला। अंत में पुतिन ने थिएटर में गैस छोड़ने का आदेश दिया और 129 बंधकों तथा 41 चेचेन गुरिल्लाओं की मौत हो गई। मास्को के एक अंडरपास में 8 अगस्त 2000 को हुए विस्फोट में 13 लोग मारे गए एवं 90 घायल हुए। सितंबर 1999 में मास्को में दो अपार्टमेंट बम विस्फोट से नष्ट हुए जिसमें 200 लोग मारे गए।

अपने-आपसे प्रश्न करिए कि इतने अधिक हमले आखिर किस पश्चिमी देश में हुए हैं? हाल के वर्षों में फ्रांस कई हमलों का शिकार हुआ है। किंतु वह भी रुस से काफी पीछे है। संेट पीटर्सबर्ग का हमला इसी कड़ी की अगली घटना है। चेचेन विद्रोही करें, आईएस करे या और कोई हमारे लिए तो यह भयावह आतंकवाद का विस्तार ही है। यह हमला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आतंकवादियों के रडार पर होने के कारण रुस के प्रमुख शहरों और स्थानों पर विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई है। सेंट पीटर्सबर्ग उनमें शामिल है। वास्तव में रुस जिस अलगाववादी चेचेन उग्रवादियों के द्वारा लक्षित हमलांे का शिकार हो रहा है तथा आईएस ने भी उसे लक्ष्य बनाया है उसें सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करना अपरिहार्य था। ध्यान रखने की बात है कि इस्लामिक स्टेट यानी आईएसआईएस ने भी चेचेन विद्रोहियों को अपने संगठन में शामिल किया है। जाहिर है, चेचेन विद्रोही उस संगठन में शामिल हुए तो रुस को दहलाने के लिए ही। वैसे भी सीरिया में रुस के सैनिक हस्तक्षेप के विरुद्ध इस्लामिक स्टेट ने हमले की धमकी दिया हुआ है। रुसी सेना और विशेष बल राष्ट्रपति बशर अल असद को विद्रोही समूहों तथा इस्लामिक स्टेट से लड़ने में मदद कर रहा है। इससे आईएस रुस से नाराज है। रुस इस धमकी को लेकर सतर्क है भी। वह सीरिया से लौटने वाले चेचेन विद्रोहियों द्वारा हमले की आशंका को लेकर पहले से तैयार है। पुतिन वैसे भी आतंकवाद को लेकर दुनिया के सख्त प्रशासकों में माने जाते हैं। विमान उड़ाए जाने की घटना के बाद पुतिन ने पूरी सुरक्षा की नए सिरे से समीक्षा की और आवश्यक बदलाव किए गए। बावजूद इसके यदि आतंकवादी हमला करने में सफल हुए तो इसे हर दृष्टि से गंभीर और चिंताजनक घटना मानना होगा। इससे पूरी दुनिया को सबक लेना होगा।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

 

 

 

 

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

दलाई लामा की पूर्वोत्तर यात्रा एवं चीन का रुख

 

अवधेश कुमार

दलाई लामा को लेकर चीन की खीझ एवं उनके बारे में की गई टिप्पणियां दुनिया के लिए नई नहीं हैं। चीन की ओर से उनको मनुष्य की खाल में राक्षस और भेड़िया तक कहा जा चुका है। इस समय अगले 1 अप्रैल से वे असम की यात्रा पर हैं जहां राजधानी गुवाहाटी में पांच दिवसीय नमामी ब्रह्मपुत्र उत्सव में भाग लेंगे। उसके बाद वे 4 अप्रैल से आठ दिन की अरुणाचल यात्रा पर जाने वाले हैं। कुल मिलाकर पूर्वोत्तर की उनकी यात्रा 13 दिनों की हो जाती है। स्वाभाविक ही दलाई लामा का अरुणाचल में तवांग मठ भी जाने का कार्यक्रम है। तवांग के बारे में हम जानते हैं कि चीन उसे किस रुप में लेता है। वैसे तो पूरे अरुणाचल पर ही वह दावा करता है किंतु तवांग को वह अपना इसलिए मानता है कि क्योंकि इसकी स्थापना पूर्व दलाई लामा ने किया था। तिब्बत में चीन के जबरन कब्जे के विरुद्व छः दशक पूर्व जो विद्रोह हुआ था उसका भारत में एक बड़ा केन्द्र तवांग मठ हो गया था। तिब्बत से भागने वाले बौद्ध भिक्षु भी आरंभ में वहीं पहुंचे। चीन दलाई लामा और तवांग दोनों से सशंकित रहता है। उसे पता है कि बौद्ध धर्मावलंबियों के बीच दोनों का महत्व कितना है। शायद उसे यह अशंका बनी रहती है कि फिर कहीं तवांग को केन्द्र बनाकर दलाई लामा उसके खिलाफ विद्रोह न करा दे।

हालांकि इस बात की तत्काल कोई संभावना नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है कि भारत ने दलाई लामा सहित उनके साथ आए तिब्बतियों को शरण अवश्य दिया है, उन्हें यहां धर्मशाला में निर्वासित सरकार चलाने तथा उनके लिए जन प्रतिनिधियों के निर्वाचन की भी छूट दिया हुआ है, तिब्बतियों को आम शरणार्थियों से ज्यादा अधिकार भारत में हासिल है, किंतु उन्हें किसी तरह की चीन विरोधी गतिविधियां चलाने की इजाजत नहीं है। जब भी चीनी नेताओं की यात्राएं होतीं हैं और तिब्बती विरोध प्रदर्शन की कोशिश करते हैं उनको रोका जाता है। भारत की नीति अभी तक अपनी भूमि से तिब्बतियों को चीन के खिलाफ विद्रोह करने या तिब्बत के अंदर भी विद्रोह भड़काने की किसी भी गतिविधि को न चलने देने का है। स्वयं चीन ने भी पूर्व तिब्बत के भूगोल, राजनीति और मानवीकी को जिस सीमा तक परिवर्तन कर दिया है उसमें उसकी आजादी के लिए विद्रोह वैसे भी कठिन हो गया है। उसके भाग को कई अलग-अलग प्रांतों में मिलाया जा चुका है तथा मूल चीनी हान जाति के लोग वहां भारी संख्या में बसे हैं। चीन ने वहां अपना सैनिक सुदृढ़िकरण भी कर दिया है। अब तो पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जाने और सिल्क रुट को फिर से आरंभ करने वाली उसकी रणनीति में तिब्बत का प्रमुख स्थान हो गया है। कहने का तात्पर्य यह कि तिब्बत पर राजनीतिक एवं सैनिक पकड़ इतनी सशक्त हो चुकी है कि छोटी संख्या वाले तिब्बतियों के लिए वहां विद्रोह करना काफी कठिन है। वैसे भी दलाई लामा ने साफ किया है कि वो तिब्बत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे, बल्कि चीन के अंदर एक ऐसे स्वायत्त राज्य के रुप में उसे चाहते हैं जो अहिंसक क्षेत्र के रुप में खड़ा हो।

बावजूद चीन सशंकित रहता है तो क्यों? आखिर दलाई लामा अरुणाचल जाएंगे या नमामी ब्रह्मपुत्र उत्सव में भाग लेंगे उससे उसका क्या बिगड़ जाएगा? दलाई लामा के अरुणाचल दौरे पर उसने भारत को जिस तरह संबंधों पर प्रतिकूल असर की चेतावनी दी है उसे क्या कहा जाए इसके लिए शब्द तलाशना होगा। आखिर एक बुढ़ा संन्यासी, जिसके पास न कोई फौज है, न कोई बड़ी संगठित शक्ति और न ही अपने मूल तिब्बत के लोगों से 1959 के बाद कोई प्रत्यक्ष संपर्क है वह चीन जैसे आर्थिक एवं सैनिक महाशक्ति का क्या बिगाड़ लेगा? दलाई लामा वैसे भी अहिंसा के पथ पर चलने वाल संत है तो फिर उनसे डर किस बात का? इन प्रश्नों का उत्तर तलाशाने से ऐसा लगता है कि चीन दलाई लामा को लेकर कुछ अतिवादी मानसिकता मंे आ जाता है। किंतु यह उसकी रणनीति भी है ताकि कोई देश दलाई लामा एवं उनके साथियों को विशेष महत्व न दे या उनका साथ न दे। वह जानता है कि तिब्बत पर उसका कब्जा अवैध एवं अनैतिक है। वह भारत के प्रति भी इसलिए सशंकित रहता है, क्योंकि इतिहास बताता है कि हमारा पड़ोसी चीन कभी था नहीं तिब्बत था। तिब्बत एक समय चीन के बीच हमारे लिए बफर राज्य की भूमिका निभाता था। तो भारत सरकार की जो भी नीति हो, भारतीयों के अंदर यह मंशा स्वाभाविक है कि तिब्बत फिर से आजाद हो एवं हमारे लिए अपनी स्वाभाविक भूमिका में आए। चीन जैसे देश के नेताओं को आम भारतीयों की इस मानसिकता का अंदाजा होगा। यह बात अलग है कि भारत की नीति में तिब्बत की आजादी शामिल नहीं है। लेकिन यह नीति स्थायी होगी ऐसा मानने का भी कोई कारण नहीं है। यदि चीन पाकिस्तान को हमारे विरुद्ध शह देता रहा, जिस तरह वह पाक अधिकृत कश्मीर से लेकर ग्वादर तक चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बनाकर अपनी आर्थिक एवं सैनिक उपस्थिति को सुदृढ़ कर रहा है, कश्मीर पर उसकी दोहरी नीति है उसमें भारत की नीति कभी भी बदल सकती है।

उसके आशंकित होने का एक कारण यह भी लगता है कि उसके भावी आर्थिक एवं सामरिक व्यवहार में तिब्बत का महत्व ज्यादा बढ़ गया है। चाहे वह ग्वादर बंदरगाह तक की गतिविधियां हों या फिर नेपाल के साथ व्यवहार सब कुछ तिब्बत से ही जुड़ा है। उसके तेल गैस का पाइपलाइन भी इसी क्षेत्र से गुजर रहा है। चेंगडू जैसे बड़े सैनिक अड्डे तक पहुंचने के लिए रेल रास्ता हो या सड़क मार्ग सबको तिब्बत से ही जाना है। इस तरह उसे भविष्य की चिंता भी है। यानी कहीं कोई बड़ा विद्रोह हो गया तो फिर इन सबकी सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। इसके लिए हर कदम पर सुरक्षा जाल बिछाना संभव नहीं है। तो वह पहले से अपनी आखंेे तरेड़ता है ताकि भविष्य सुरक्षित रहे। उसकी चिंता अगले दलाई लामा की भी है। पता नहीं वर्तमान दलाई लामा के गुजरने के बाद उनके पुनर्जन्म को तिब्बती कहां और किसे मान लें। उसने जबरन एक व्यक्ति को पंचेन लामा घोषित कर एक बड़े धर्मगुरु के पुनर्जन्म का रास्ता निकालने की कोशिश की वह भी पूरी तरह सफल नहीं हुई। अगर यह सब कारण नहीं हो तो दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा या फिर नमामी ब्रह्पुत्र उत्सव में भागीदारी से उसे कोई परेशानी नहीं होती।

वैसे ब्रह्मपुत्र के साथ भी चीन की समस्या जुड़ी हुई है। यार्लुंग त्सांगपो यानी ब्रह्मपुत्र पर तिब्बत की राजधानी ल्हासा के दक्षिण पूर्व मे ंउसने झांगमू बांध बनाया है तथा चार और बांध बनाए जा रहे हैं। हालांकि चीन ने भारत एवं बंगलादेश दोनों को यह वचन दिया है कि इन बांधों से उसके बहाव पर कोई असर नहीं होगा। किंतु पर्यावरणविदों की राय अलग है। त्सांगपो, जो तिब्बत के मुख्य क्षेत्रों में पश्चिम से पूरब की ओर बहती है भारत में ब्रह्मपुत्र एवं बंगलादेश में जमुना कहलाती है। ब्रह्मपुत्र पर उसके वचन पर भारत सरकार ने विश्वास किया है, लेकिन आम लोगों की सोच पर तो उसका वश नहीं। तिब्बती वैसे भी बांध को एक बड़ा मुद्दा बताते हैं। वे तिब्बत में पर्यावरण की क्षति के एक कारण में इसे भी लेते हैं। हो सकता है दलाई लामा इसे वहां उठाएं। इसलिए चीन इस पर कुछ न कुछ प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करेगा। भारत नमामी ब्रह्मपुत्र उत्सव का व्यापक पैमाने पर आयोजन कर रहा है वह भी चीन को नागवार गुजर रहा होगा। हालांकि इसमें दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को निमंत्रण दिया गया है और चीन भी उसमें शामिल है। चीन ने अपने आने की पुष्टि नहीं की है। शेष देश के प्रतिनिधि आएंगे। लगता नहीं कि दलाई लामा की उपस्थिति वाले किसी समारोह में चीनी प्रतिनिधि भाग लेंगे। तो हमें चीन की प्रतिक्रिया देखनी होगी। ध्यान रखिए, दलाई लामा का असम दौरा अब केवल नमामी ब्रह्मपुत्र उत्सव तक सीमित नहीं है। 1 अप्रैल से ही उनके कई कार्यक्रम निर्धारित हैं जिसमें वे गुवाहाटी में आम लोगों को संबोधित करेंगे, फिर 4 अप्रैल को डिब्रुगढ़ विश्वविद्यालय में उनका संबोधन है। यह इस बात का सबूत है कि दलाई लामा की अहिंसक एवं विश्व कल्याणकारी सोच और उनके व्यवहार को देखते हुए भारत में उनको पूरा सम्मान और महत्व मिलता है। यही बात चीन को खटकती होगी। किंतु चीन के खटकने से भारत का व्यवहार नहीं बदल सकता। 

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208 

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