शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज न घटाना अस्वाभाविक नहीं

 

अवधेश कुमार

भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत दरों में कोई बदलाव न करने से कई हलकों में निराशा व्यक्त की गई है। ज्यादातर अर्थवेत्ता यह अनुमान लगा रहे थे कि नोट वापसी के बाद बैंकों के पास आए भारी नकदी के बाद रिजर्व बैंक कम से कम रेपो दर में .25 प्रतिशत की कमी करेगा। यानी ब्याज दरों में कटौती का जो सिलसिला पूर्व गर्वनर के कार्यकाल में जारी हुआ और स्वयं उर्जित पटेल ने पिछली मौद्रिक समीक्षा में जारी रखा वह आगे भी कायम रहेगा। ध्यान रखिए कि पिछले अक्टूबर में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में .25 प्रतिशत की कमी की थी। गवर्नर बनने के बाद पटेल की यह दूसरी और नोटबंदी के बाद पहली मौद्रिक नीति समीक्षा थी। प्रश्न उठता है कि इस बार ऐसा क्यों नहीं किया? यह प्रश्न इसलिए क्योंकि पिछले तीन महीने में अर्थव्यवस्था में सुधार का ठोस संकेत नहीं मिलने और साथ ही नोटवापसी से कई उद्योगों में मांग में भारी कमी की आशंका को देखते हुए सभी मानकर चल रहे थे कि रेपो रेट में कमी होगी। नोट वापसी से आर्थिक गतिविधियों में जो सुस्ती दिख रही है उसको गति देने के लिए कई कदम उठाने की जरुरत है। माना जा रहा था कि अगर केन्द्रीय बैक ब्याज दर में कटौती करता है कि उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों को कम दर में कर्ज मिलेगा और इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। जाहिर है, रिजर्व बैंक इस तर्क से सहमत नहीं था।

स्वयं उर्जित पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि महंगाई की आशंका को देखते हुए ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि अक्टूबर में ब्याज दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती की गई थी। उसके बाद कटौती की जरूरत नहीं रह गई थी। ध्यान रखने की बात है कि जनवरी 2015 से रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 7 बार कटौती की है। केन्द्रीय बैक ने कई बातें को ध्यान में रखा है। इनमें सबसे पहला और महत्वपूर्ण पहलू है महंगाई। इसने जनवरी-मार्च 2017 तक 5 प्रतिशत महंगाई दर का लक्ष्य रखा है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई 0.10-.015 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। खराब होने वाले सामानों के दाम घटेंगे। ऐसा लगता है कि छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) को महंगाई थामने की ज्यादा जरूरत महसूस हो रही है। महंगाई की दर फिलहाल काफी हद तक काबू में है। लेकिन रिजर्व बैंंक का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि तथा 7वें वेतन आयोग के कारण लोगों के हाथ में आए पैसे की वजह से महंगाई की दर आने वाले महीनों में बढ़ सकती है।

क्रिसिल की ओर से हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार पेट्रोल के दाम 5 से 8 प्रतिशत तक तथा डीजल के 6 से 8 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं। यह ओपेक देशों की ओर से अगले महीने से होने वाली कच्चे तेल उत्पादन में कटौती के कदम की परिणति होगी। ऐसे में आने वाले महीनों में महंगाई बढ़ने की आशंका गहरी है। रेपो दर को यथास्थिति में रखने के पीछे एक बड़ा कारण यह हो सकता है।  केंद्रीय बैंक ने इस बात पर ध्यान दिया कि गेहूं, चना और चीनी जैसी खाद्य वस्तुओं के दाम तेजी से चढ़ रहे हैं। ऐसे में दर कम करने से महंगाई में और अधिक वृद्धि हो सकती थी। इससे दिसंबर से फरवरी के दौरान परिस्थितियां विपरीत हो सकती थीं कोई भी केंद्रीय बैंक ब्याज दर में कमी पर तभी विचार करता है, जब उसे ऐसा लगे कि इस फैसले से उपभोग में इजाफा होगा और लोग कर्ज लेकर खर्च करेंगे। इसके अलावा वह ऐसा तब करता है, जब उसे लगे कि इससे निवेश का माहौल तैयार होगा। अभी दोनों स्थितियां नहीं थीं। अमेरिका में अगले सप्ताह ब्याज दरों पर महत्वपूर्ण फैसला हो सकता है। राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद यह माना जा रहा है कि ज्यादातर नीतियां महंगाई को बढ़ावा देने वाली होंगी। ऐसे में ब्याज दरों के बढ़ने की उम्मीद काफी सशक्त है। अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने पर भारत जैसे देशों से पूंजी का जाना तय है। इससे रुपए में दवाब देखने को मिलेगा। डॉलर के मुकाबले रुपया बीते एक महीने में काफी कमजोर हुआ है। ब्याज दरों में कटौती रुपए की कमजोरी को बढ़ा सकती थी। इस परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि  रुपए को समर्थन देने के लिए भी रेपो दर में कटौती नहीं की गई। केंद्रीय बैंक ने कहा भी है कि कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई ने रफ्तार पकड़ी है, जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में यह धीमी रही है। अमेरिका, जापान और चीन जैसे देश विकास के लिए महंगाई को बढ़ाने वाली नीतियां अपना सकते हैं। इसके चलते उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों पर दबाव होगा, जो पहले से ही ब्रेग्जिट और अन्य राजनीतिक परिस्थितियों के चलते अस्थिरता के माहौल में हैं।

यहां यह भी विचारणीय है कि रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2016-17 में विकास का अनुमान भी 7.6 प्रतिशत से घटाकर 7.1 प्रतिशत कर दिया है। यह महत्वपूर्ण है। विकास अनुमान में कमी के लिए उसने नोटवापसी को एक महत्वपूर्ण कारण माना है। मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए कहा गया है कि नोटबंदी से कई तरह की औद्योगिक गतिविधियों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। खासतौर पर खुदरा कारोबार, होटल, रेस्तरां, पर्यटन व कई असंगठित क्षेत्र से जुड़े उद्योगों पर इसका खराब असर पड़ेगा। इन पर विपरित असर पड़ने से विकास दर की गति आगे तो नहीं ही बढ़ेगी। यानी पीछे लौटेगी। किंतु राहत की बात है कि रिजर्व बैंक ने उन अनुमानों को नकार दिया है जिसमें विकास दर के एकदम पीछे जाने की आशंका व्यक्त की जा रही थी। अगर विकास दर पीछे हट रहा है तो उसे थामने के लिए ब्याज दर में कटौती भी एक कारगर नीति मानी जाती है। साफ है कि रिजर्व बैंक ने अन्य दूसरे कारणों से जिनका जिक्र उपर किया है ऐसा नहीं किया है। यानी महंगाई और अन्य कारणों को तरजीह दी है। वैसे भी नोट वापसी के परिणामों को देखने के लिए भी कुछ वक्त चाहिए। जिन क्षेत्रों पर विपरीत असर की बात रिजर्व बैंक मान रहा है उनके बारे में भी वह आगे दूसरी बातें कहता है।  रिजर्व बैंक  अपनी समीक्षा में कहता है कि उसको भरोसा है कि आने वाले दिनों में नए करंसी नोटों का सर्कुलेशन तेज होगा और लोग गैर नकदी आधारित भुगतान की ओर बढ़ेंगे।

दूसरे लोगों के अनुमानों सेे यह कदम भले विपरीत हो, पर वित्त मंत्रालय ने ब्याज दरों के मौजूदा स्तर को बनाए रखने के फैसले को साहसिक बताया है। आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव शक्तिकांत दास ने कहा कि वैश्विक स्तर पर काफी अनिश्चितता है, महंगाई बढ़ने के आसार हैं और इस पर लगाम लगाना मुश्किल है। ऐसे में रिजर्व बैंक का कदम सही है। अगर यहां भी अनिश्चितता रहती तो विदेशी निवेशकों को यह अच्छा संकेत नहीं देता। वैसे यह सच है कि नोटवापसी के फैसले के बाद बैंकों में भारी मात्रा में नकदी जमा की गई है। यानी बैंकों के सामने नकदी का संकट नहीं होना चाहिए। बैंक अपनी जमाओं में से आसानी से कर्ज बांट सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि रेपो दर में कमी करने या न करने से नकदी की उपलब्धता पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। इसीलिए ब्याज दरों में कोई राहत नहीं दी है। जब बैंकों के पास तरलता (फंड) का कोई अभाव ही नहीं है और मांग की भी बेहद कमी है तो ऐसा करना व्यर्थ ही होता।  दूसरे, एक सच यह भी है कि रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों को घटाने के पहले जो उपाय किए हैं, उनका फायदा अभी तक बैंकों ने आम जनता को नहीं दिया है। रिजर्व बैंक अगर ब्याज दरों में कटौती करता है तो बैंकों के ऊपर कर्ज की दर घटाने का दवाब बढ़ता है। साथ ही कर्ज की दर घटने पर अपने मुनाफे को बचाने के लिए बैंक जमाओं पर दर को घटाते हैं। रिजर्व बैंक नहीं चाहता था कि जमाकर्ताओं की जमाओं पर ब्याज दर में अभी कमी आए।

वैसे रिजर्व बैंक ने रेपो दर में भले कटौती न की हो लेकिन बैंकों के लिए 100 प्रतिशत इन्क्रीमेंटल (बढ़ी हुई) सीआरआर यानी नकदी आरक्षी अनुपात की सीमा को हटा दिया है। अब बैंकों को अपने यहां होने वाले जमा के अनुपात में पूरी रकम नकद आरक्षी अनुपात के रूप में सुरक्षित नहीं रखनी पड़ेगी। रिजर्व बैंक का यह कदम बैंकों में नकदी को बढ़ाएगा। रिजर्व बैंक ने 26 नवंबर को बैंकों में बढ़ती तरलता को नियंत्रित करने के लिए 100 प्रतिशत इन्क्रीमेंटल सीआरआर की सीमा तय की थी। तो रिजर्व बैंक ने 100 प्रतिशत सीआरआर को वापस लेकर बैंकोें को बड़ी राहत दी है। गर्वनर ने कहा भी कि अब बैंक पर अब सीआरआर का कोई बोझ नहीं होगा। उम्मीद करनी चाहिए कि बैंकों पर इसके सकारात्मक प्रभाव होंगे।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

 

 

 

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