शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

उम्मीद बनाए रखने और आश्वस्त करने वाला भाषण

 

अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लाल किले की प्राचीर से 70 वें स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए भाषण में सबसे ज्यादा चर्चा बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर तथा गिलगित बलतिस्तान पर उनके उद्गार का रहा। यह निश्चय ही भारत की विदेश नीति में एक बड़ा परिवर्तन है। लेकिन इसे कुछ समय के लिए परे हटा दें तो उनके भाषण में ऐसा बहुत कुछ था जिसकी चर्चा स्वतंत्रता दिवस संबोधन के संदर्भ में होनी चाहिए। अगर उनके पूरे भाषण का कोई एक निष्कर्ष निकालना हो तो कहा जाएगा कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरणा के सूत्र देते हुए देश को कई स्तरों पर आश्वस्त करने की कोशिश की। मसलन,  उनकी सरकार देश को उंचाइयों पर ले जाने के लिए वो सब कर रही है जो उसे करना चाहिए।

प्रधानमंत्री के दावों पर भारत में एक राय नहीं हो सकती। लेकिन स्वतंत्रता दिवस संबोधन में प्रधानमंत्री के लिए यह शायद इसलिए आवश्यक था, क्योंकि आलोचक उनकी सरकार के संदर्भ में एक ही बात कहते हैं कि धरातल पर तो कुछ दिखाई नहीं देता। जाहिर है, लाल किला इसके लिए बेहतर मंच था कि देश को समझाया कि उनकी कार्यपद्धति क्या है और उदाहरणों से बता दिया जाए कि उसके परिणाम किस तरह आ रहे हैं। मोदी के तीनों भाषणों को अगर देखा जाए तो यह स्वीकार करना होगा उन्होंने इसे केवल सरकार का कार्यवृत्त न बनाकर स्वतंत्रता संघर्ष के संकल्पों, स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों आदि की याद दिलाकर हमारे अंदर प्रेरणा पैदा करने की कोशिश की है कि हम उनके सपनों को पूरा करने के लिए कुछ करें। उनका पहला भाषण सरकार गठित होने के तीन महीने बाद ही था इसलिए उनके पास सरकार की उपलब्धियां गिनाने को कुछ नहीं था। इसलिए वो भाषण प्रेरणादायी और स्वतंत्रता दिवस के पीछे निहित भाव को पैदा करने वाला था। दूसरे भाषण में उनकी सरकार को एक वर्ष तीन महीने हो चुके थे और उसमें उन्होंने अनेक कार्यक्रम की घोषणाएं की तथा पूर्व में की गई कुछ घोषणाओं की दिशा में की गई प्रगति की बात की। लेकिन स्वतंत्रता के मूल्यों और संकल्पों की याद अवश्य दिलाई।

इस बार के भाषण में हालांकि सरकार के कदमों के तत्व ज्यादा थे, लेकिन इसमें भी उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के महत्व को रेखांकित किया। जैसे उन्होंने कहा कि आजादी का ये पर्व एक नए संकल्प नए उमंग के साथ राष्ट्र को नई उंचाइयों पर ले जाने का संकल्प पर्व है। उन्होंने याद दिलाया कि स्वराज ऐसे नहीं मिला। आजादी के संकल्प अडिग थे, हर हिन्दुस्तानी आजादी के आंदोलन का सिपाही था, हर एक का जज्बा था देश आजाद हो। हो सकता है हर किसी को बलिदान का सौभाग्य न मिला हो, जेल जाने का सौभाग्य न मिला हो, लेकिन हर हिन्दुस्तानी संकल्बद्ध था, महात्मा जी का नेतृत्व था, संशस्त्र क्रांतिकारियों की प्रेरणा थी। तब जाकर स्वराज्य प्राप्त हुआ। यहीं से उन्होंने जोड़ा कि अब स्वराज्य का सुराज में बदलना 125 करोड़ देशवासियों का संकल्प है। प्रधानमंत्री की इस बात से असहमति का कोई कारण नहीं है कि अगर स्वराज्य बलिदान के बिना नहीं मिला तो सुराज भी त्याग, पुरुषार्थ, पराक्रम, समर्पण और अनुशासन के बिना संभव नहीं। यानी उन्होंने देश के एक-एक व्यक्ति को यह समझाने की कोशिश की क हरेक को अपनी अपनी विशेष जिम्मेवारियों की ओर प्रतिबद्धता से आगे बढ़ना होगा तभी जाकर देश को सुराज प्राप्त होगा।

किंतु कुछ भी करने के लिए समाज में एकता चाहिए। दलितों के साथ दुर्व्यवहार का मुद्दा सुर्खियों में हैं और यह स्वाभाविक था कि प्रधानमंत्री इस पर बोलें।  प्रधानमंत्री ने महापुरुषों के कथनों को उद्धृत करते हुए यह बताया कि समाज उंच-नीच, पृश्य-अस्पृश्य में बंटता है तो समाज टिक नहीं सकता। ये बुराइयां पुरानी है तो उपचार भी ज्यादा कठोरता तथा संवेदनशीलता से करना होगा। और यह केवल सरकार से नहीं हो सकता। सरकार कानून के अनुसार कार्रवाई कर सकती है लेकिन देश के सभी लोगों की जिम्मेवारी है कि वो सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लडें और लड़ेंगे तभी जब स्वयं सामाजिक बुराइयों से उपर उठे। प्रधानमंत्री की यह अपील भी है और चेतावनी भी। वास्तव में उनका यह कहना सही है कि सशक्त हिन्दुत्सान सशक्त समाज के बिना नहीं बन सकता। इसी तरह सिर्फ आर्थिक पग्र्रति से भी सशक्त समाज नहीं हो सकता। सशक्त समाज के लिए सामाजिक न्याय जरुरी है। चाहे दलित हो या आदिवासी सभी यह समझें कि सवा सौ करोड़ देशवासी हमारा परिवर है। यह ठीक है कि प्रधानमंत्री के कहने भर से ये बुराइयां दूर नहीं हो सकतीं, लेकिन स्वतंत्रता दिवस पर ये बातें रखनी बहुत जरुरीं थीं।

मोदी लोगों में उम्मीद पैदा करते हैं। उन्होंने यह नहीं कहा कि अगर आप नहीं करेंगे तो ऐसा नहीं होगा या इतनी समस्याएं है, चुनौतियां हैं जिनसे पार पाना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि देश के सामने समस्याएं अनेक हैं, लेकिन समस्याएं है तो सामर्थ्य भी हैं और जब हम सामर्थ्य की शक्ति को लेकर चलते हैं तो समस्याओं से समाधान के रास्ते भी मिल जाते हैं। भारत के पास अगर लाखों समस्याएं हैं तो 125 करोड़ मस्तिष्क भी समाधान का सामर्थ्य रखती हैं। इसके साथ उन्होने यह बताने का प्रयास किया कि उनकी सरकार इस दिशा में सक्रिय है। उन्होंने कहा कि मैं आज कार्यों का लेखा जोखा की जगह कार्यसंस्कृति की ओर ध्यान आकर्षित कर रहा हूं।  हालांकि इसी कार्यसंस्कृति के बहाने उन्होंने उदाहरण में अपनी सरकार के अनेक कार्यो को गिना दिया। हम उसमें यहां विस्तार से नहीं जा सकते और उसकी आवश्यकता भी नहीं। उन्होंने अपनी सरकार का जो दर्शन रखा उसे अवश्य समझना चाहिए। जैसे उन्होंने कहा कि जब सुराज की बात करता हूं तो सुराज का सीधा मतलब हमारे देश के सामान्य मानव के मन में सुराज लाना। यानी सरकार सामान्य मानव के प्रति संवेदनशील, जिम्मेवार और समर्पित हौ। उत्तरदायित्व और जवाबदेही इसकी जड़ में होनी चाहिए। वहीं से उसे रस मिलता है तथा शासन को संवदेनशील भी होना चाहिए। इन सबके साथ पारदर्शिता का भी उन्होंने सुराज का महत्वपूर्ण अंग बताया। इसके अलावा दक्षता तथा सुशासन को भी जरुरी बताया। और इन सबके अंत में उन्होंने कहा कि सब कुछ का लाभ समाज के अंतिम आदमी तक पहुंचता है या नहीं यह होगी सुराज की कसौटी। किंतु इन सबके लिए संकल्प चाहिए। यदि संकल्प नहीं हो तो कुछ नहीं हो सकता।

प्रधानमंत्री की सुराज की इस व्याख्या से सैद्धांतिक तौर पर कोई असहमत नहीं हो सकता। हां, यह जमीन पर कितना उतर रहा है या इसके हर पहलू को साबित करने के लिए उन्होंने जो उदाहरण दिए उनसे सहमति-असहमति हो सकती हैं। इस भाषण को सुनने के बाद यह मानना होगा कि प्रधानमंत्री के पास शासन का या सुराज का दर्शन है। जब किसी के पास दर्शन होगा, खाका होगा तभी तो वह उसे क्रियान्वित करने की कोशिश करेगा। तभी तो देश के नेता के नाते वह दिशा दे सकेगा। यदि किसी के पास दर्शन ही नहीं है, सुराज की समझ ही नहीं है उसकी कोई कल्पना नहीं है तो वह क्या करेगा? हम मोदी के विरोधी हों या समर्थक इस मायने में देश के नागरिक के नाते हमें संतोष होना चाहिए कि उनके पास सुराज की समझ है। इससे भी एक आश्वस्ति का भाव पैदा होता है। स्वतंत्रता दिवस के दिन स्वराज्य को सुराज के साथ जोड़कर तथा उसकी उदाहरण सहित विस्तृत व्याख्या करके मोदी ने अपनी ओर से वाकई देशवासियों को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि आपने जिसके हाथों बागडोर दी है उसे पता है कि आजादी का संकल्प क्या था और उसे किस तरह पूरा करना है।

हालांकि अपने भाषण में करीब 95 मिनट का ऐतिहासिक समय उन्होंने लिया और पिछले साल का 86 मिनट का अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा। इसको थोड़ा कम किया जा सकता था। बहुत सारी बातें और उदाहरण ऐसे थे जो देशवासी कई बार सुन चुके हैं। मसलन, जनधन योजना की बात न जाने प्रधानमंत्री ने कितनी बार कही है। ऐसे उदाहरणें को एकाध पंक्ति में खत्म किया जा सकता था। आधार कार्ड से योजनाओं के लाभ की बात भी उनके मुंह से कई बार सुनी जा चुकी है। ऐसी और भी बातें थीं। लगता है वो देश में यह बनी हुई धारणा खत्म करना चाहते थे कि सरकार जितनी बात करती है उतना काम नहीं, इसलिए उन्होंने लोगों को समझा देने के लहजे में सारी बातें रखीं। जो भी हो यह मानना होगा कि अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन से उन्होंने देश के भविष्य को लेकर आशा, उम्मीद और आश्वस्ति पैदा करने की कोशिश की और इसमें निश्चय ही उन्हें एक हद तक सफलता भी मिली होगी।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः09811027208,01122483408

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/