शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

सीबीआई कार्रवाई पर ऐसा बावेला क्यों

 

अवधेश कुमार

सामान्यतः यह कल्पना नहीं की जा सकती कि किसी सरकारी अधिकारी के कार्यालय पर सीबीआई द्वारा छापा मारना या उससे पूछताछ करना राजनीति में पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव का बड़ा मुद्दा बन जाएगा। अगर आम आदमी पार्टी की प्रतिक्रियाओं तथा उनके समर्थन में उठने वाली अन्य दलों की आवाजों को कुछ समय के लिए परे रख दें तो यह एक सामान्य घटना लगेगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार सहित अन्य 6 लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। सीबीआई उसकी जांच में 14 जगह छापा मारती है जिनमें राजेन्द्र कुमार का कार्यालय भी शामिल है। वह सभी जगहों से कुछ कागजातें, फाइलें, रुपए कम्प्युटर आदि जब्त करती है तथा आरोपियों से पूछताछ करती है। सीबीआई कहती है कि चूंकि राजेन्द्र कुमार पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहे हैं, इसलिए उनको वह ले जा रही है। पूछताछ के बाद रात में उनको छोड़ दिया जाता है। फिर उन्हें दोबारा बुलाया जाता है और उनसे पूछताछ होती है। यह सीबीआई या किसी जांच एजेंसी की कार्रवाई की सामान्य प्रक्रिया है। किंतु आम आदमी पार्टी तथा दिल्ली सरकार ने इसे ऐसा मुद्दा बना दिया है मानो एक अधिकारी की नहीं पूरी सरकार की छानबीन हो रही है। इसे केन्द्र सरकार बनाम दिल्ली सरकार के बीच टकराव का ऐसा मुद्दा बना दिया गया है जिससे देश में संदेश यह जा रहा है कि वाकई केन्द्र की ओर से दिल्ली सरकार के खिलाफ कुछ किया जा रहा है। तो सच क्या हो सकता है?

यह कहना मुश्किल है कि राजेन्द्र कुमार भ्रष्ट हैं या नहीं। जो कुुछ जानकारी हम लोगों के पास आई है उसके अनुसार उनके खिलाफ भारतीय दंड विधान तथा भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। उनके अलावा इंटेलिजेंट कम्युनिकेशन सिस्टम इंडिया लिमिटेड (आईसीएसआईएल) के पूर्व प्रबंध निदेशकों ए के दुग्गल और जीके नंदा, आईसीएसआईएल के प्रबंध निदेशक आरएस कौशिक, एनडीवर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों संदीप कुमार और दिनेश के गुप्ता और उक्त फर्म का नाम आरोपी के रूप में दर्ज है। आरोप है कि राजेन्द्र कुमार ने विभिन्न पदों पर रहते हुए इनको ठेके और काम दिलवाने में अपने पद का दुरुपयोग किया तथा अवैध लाभ कमाए। ट्रांसपरेंशी इंटरनेशल के भारत स्थित कार्यकारी निदेशक आशुतोष मिश्रा ने पूरे हंगामे के बीच जो बयान दिया वह आम आदमी पार्टी के शोर में खो गया है। इनका कहना है कि एक व्हिसलब्लोअर ने राजेन्द्र कुमार के खिलाफ दस्तावेजों के साथ मुख्यमंत्री से मुलाकात कर मई में ही शिकायत किया था। मुख्यमंत्री ने इसे अस्वीकार कर दिया। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल का कहना है कि संस्था ने स्वयं 27 जुलाई 2015 को दस्तावेजी साक्ष्य के साथ मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को पत्र लिखा। उसके अनुसार उसमें राजेन्द्र कुमार के तथाकथित काले कारनामों का जिक्र था। इसका कोई जवाब संस्था को नहीं मिला। दिल्ली संवाद आयोग के पूर्व सदस्य सचिव आशीष जोशी ने पहले भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को मामला दिया, फिर सीबीआई को। 13 जुलाई 2015 को सीबीआई को पूरा दस्तावेज दिया गया। जाहिर है, सीबीआई ने पूरे पांच महीने इसमें लिए तो उसने कुछ जांच वगैरह किया होगा। जानकारी के अनुसार राजेंद्र कुमार पर लंबे समय से सीबीआई नजर रखे हुए थी। कुमार के करीब तीन हजार फोन कॉल रिकॉर्ड किए गए। 15 आईएएस अधिकारियों के अलावा दिल्ली सरकार के 35 अधिकारियों से पूछताछ की। इनसे मिले सबूत के बाद दिल्ली सचिवालय में कुमार के दफ्तर पर छापा मारा। सीबीआई से ये पूछा गया कि राजेंद्र कुमार ने जो गड़बड़ियां की थीं, वे दूसरे विभागों में रहते हुए की। अब बतौर प्रिंसिपल सेक्रेटरी उनके दफ्तर में छापे क्यों मारे गए? इस पर सीबीआई का कहना है कि 3000 फोन रिकॉर्डिंग और 50 अफसरों से मिले सबूतों के बाद हमें पुख्ता जानकारी मिली थी कि कार्रवाई से बचने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण फाइलें इसी कार्यालय में रखी हैं। राजेन्द्र कुमार शिक्षा निदेशक, सूचना तकनीक विभाग में सचिव, स्वास्थ्य सचिव, वैट आयुक्त आदि पदों पर रहे और उनके खिलाफ इन सभी पदों पर भ्रष्ट आचरण की शिकायत है। सीएनजी फिटनेस मामला भी है। आरोप है कि सीएनजी किट लगाने का ठेका इनने बिना टेंडर के ही दे दिया था।

हां, ये सब आरोप हैं और आरोप पर हम आप अंतिम निष्कर्ष नहीं दे सकते। आम आदमी पार्टी और स्वयं केजरीवाल अगर उनको ईमानदार और सदाचारी होने का प्रमाण पत्र दे रहे हैं तो यह बहुत बड़ा जोखिम है। इसके पहले अपने एक मंत्री के बारे में वे ऐसे ही दावे कर रहे थे। पुलिस की छापेमारी और गिरफ्तारी को भी राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रहे थे। बाद में मुख्यमंत्री ने स्वयं कहा कि संबंधित मंत्री ने उनको अंधेरे में रखा। सवाल है कि आप किसी को इस स्तर पर जाकर भ्रष्ट न होने का प्रमाण पत्र कैसे दे सकते हैं? कल उस पर आरोप प्रमाणित हो गया तो? आज आप इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई कह रहे हैं। कैसे हो सकता है यह राजनीतिक बदले की कार्रवाई इसे भी समझना जरा मुश्किल है। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तथा उनके साथियों के इस आरोप से भी सहमत होने का ठोस कारण नजर नहीं आता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इशारे पर ऐसा किया गया है। आखिर प्रधानमंत्री की एक अधिकारी की जांच में निजी अभिरुचि क्यों हो सकती है? जाहिर है, दिल्ली सरकार एवं आम आदमी पार्टी की ओर से सब कुछ उत्तेजना में किया गया है।

उत्तेजना मेें जिस तरह की भाषा दिल्ली सरकार एवं आम आदमी पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए जिस तरह का शब्द प्रयोग किया जा रहा है वह भी आपत्तिजनक है। मुख्यमंत्री होते हुए केजरीवाल ने ट्विट करके प्रधानमंत्री के लिए कायर एवं मनोरोगी जैसे शब्द प्रयोग किए वह अस्वीकार्य राजीतिक व्यवहार है। इस तरह के शब्दों के लिए राजनीति में कोई स्थान नहीं हो सकता। राजनीति में विरोध करने के लिए भी शब्दों की मर्यादाओं का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। अरविन्द केजरीवाल भ्रष्टाचार के विरुद्ध हीरो बनकर यहां तक पहंुचे हैं। उनकी पार्टी की वेबसाइट पर लिखा है कि सीबीआई को बगैर राजनीतिक आकाओं से अनुमति के छापा मारने और कार्रवाई करने का अधिकार होना चाहिए। यहां वे कह रहे हैं कि उनको इसकी सूचना क्यों नहीं दी गई? इसे हम इस तरह भी ले सकते हैं कि उनसे अनुमति क्यों नहीं ली गई? उच्चतम न्यायालय ने साफ कर दिया है कि सीबीआई को संयुक्त सचिव या सचिव स्तर के अधिकारियों से पूछताछ के लिए राजनीतिक आदेश प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। सीबीआई के लिए छापा के पहले किसी तरह की पूर्व सूचना देना अनिवार्य नहीं है। इसकी जांनकरी लीक होने की संभावना रहती है। छापा हमेशा अचानक ही पड़ता है। केजरीवाल का यह भी आरोप है कि उन्होंने दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन की जो जांच कराई है उसमें वित्त मंत्री अरुण जेटली फंस रहे हैं, इसलिए वो ऐसा कर रहे हैं। हालांकि अब उन्हीं के माध्यम से आया है कि वह फाइल सीबीआई नहीं ले गई। हां, उनका आरोप है कि पता नहीं उसकी फोटो कोपी ले गए कि नहीं?

सच तो यह है कि मुख्यमंत्री या किसी मंत्री के कार्यालय पर कोई छापा मारा ही नहीं गया। मारा जा भी नहीं सकता था। दिल्ली सरकार के खिलाफ या मुख्यमंत्री पर कोई कार्रवाई होने का प्रश्न कहां से पैदा होता है। अभी तक मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, उन पर किसी तरह की प्राथमिकी भी दर्ज नहीं है न तत्काल इसकी कोई संभावना है। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री सहित सरकार के मंत्रियों और पार्टी नेताओं का बार-बार यह कहना कि निशाना राजेन्द्र कुमार नहीं केजरीवाल हैं, उनके कार्यालय की छानबीन की गई बिल्कुल निराधार है। वास्तव में उत्तेजना और विरोध अनावश्यक है तथा अमान्य शब्दों का प्रयोग समझ से परे है। अगर एक अधिकारी को लेकर भ्रष्टाचार की शिकायत है और उसके लिए सीबीआई न्यायालय से सर्च वारंट हासिल कर लेती है तो फिर उसमें दिल्ली सरकार और आप को क्या समस्या है? अगर उस पर आरोप साबित नहीं होगा तो बरी हो जाएगा। कानून को अपना काम करने देना भ्रष्टाचार के विरुद्व कार्रवाई का हिस्सा है। इसके पूर्व अनेक राज्यों में अधिकारियों के यहां छापे पड़े, उनके घरों से ऐसे ही कागजात व सामग्रियां बरामदगी हुईं, उनसे पूछताछ हुई, पर किसी सरकार ने अपने अधिकारी के लिए इस तरह का संघर्ष नहीं किया जैसा दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार कर रही है। उसमें भी जिसे देखों सब सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ही नाम लेता है। क्यों? इसका क्या अर्थ है? हर विषय में प्रधानमंत्री को ही निशाना बनाना अपने आपमें राजनीतिक रणनीति है जिसका उद्देश्य कतई अच्छा नहीं हो सकता। कुल मिलाकर पूरी स्थिति चिंताजनक है। आखिर अगर प्रदेश की सरकारें, राजनीतिक दल इस तरह केन्द्रीय जांच एजेंसी की कार्रवाई का, जिसमें तत्काल कुछ गलत नहीं दिख रहा है, विरोध करेंगी तो फिर एजेंसियां कैसे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होकर काम कर सकेंगी? यह ऐसा प्रश्न है जिस पर हम सबको विचार करना होगा।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408,09811027208

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