शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

अबू धाबी से दुबई तक की प्रतिध्वनि

 

अवधेश कुमार

इस बात की संभावना पहले से थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा कई मायनों में सफल होगी और इसे दूरगामी परिणामों वाला माना जाएगा। हम चाहे मोदी से जितनी वितृष्णा रखंे दुबई में मरहबा नमो यानी मोदी का स्वागत नाम से आयोजित कार्यक्रम के साथ यात्रा के अंत ने वाकई इसे ऐसा बना दिया जिसे भारतवंशी ही नहीं वहां के निवासी भी वर्षों याद करेंगे। वैसे तो मोदी ने अपनी विदेश यात्राओं के साथ भारतवंशियों को संबोधित करने का कार्यक्रम अविच्छिन्न रुप से जोड़ दिया है। जहां भी भारतवंशियों की तादाद है वहां ऐसे कार्यक्रम वे करते हैं और उसका प्रबंधन और प्रस्तुति इतनी प्रभावी होती है कि बड़ी संख्या कुछ समय के लिए भाव विभोर या यों कहें चमत्कृत हो जाती है। दुबई के क्रिकेट स्टेडियम का संबोधन उसी श्रेणी का था। जातियों, संप्रदायों से परे लोगों की तालियां और प्रतिक्रियाएं उनके भाषण के प्रभावों का अपने-आप बयान कर रहीं थीं। पूरी दुनिया के भारतीयों को पिछले वर्ष अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर के राजनीतिक रॉक की याद आ गई होगी। हमारे देश में दुर्भाग्यवश विदेश नीति पर पंरपरागत रुप से कायम एकता टूट रही है, अन्यथा प्रधानमंत्री के रुप में मोदी की इस दो दिवसीय यात्रा पर प्रश्न उठाने या आलोचना का कोई कारण नहीं होना चाहिए। सरकार और विपक्ष की राजनीतिक जुगलबंदी में पड़े बिना यात्रा के दौरान बने माहौल उसकी वर्तमान एवं भावी परिणतियों पर विचार करें तो सही निष्कर्ष तक पहुंच पाएंगे।

वास्तव में संयुक्त अरब अमीरात में प्रधानमंत्री मोदी का भव्य स्वागत, संपन्न समझौतों, साझा वक्तव्य, दुबई मंें उतनी बड़ी संख्या के बीच उद्बोधन और उसके विषय वस्तु ने कम से कम चार बातांे की फिर से पुष्टि की है। पहला, कुछ लोगों की यह सोच गलत साबित हुई है कि इस्लामी देशों में मोदी को सफलता नहीं मिलेगी। बंगलादेश से आरंभ कर, मध्य एशिया के चार और अब संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा ने इस दुष्प्रचार का जवाब दे दिया है। हवई अड्डे पर शहजादे जायेद अल नह्यान ने प्रोटोकॉल तोड़कर मोदी की अगवानी की। शहजादे के साथ उनके पांच भाई भी मौजूद थे। इससे पहले शहजादे नह्यान ने पिछले मई में मोरक्को के शाह की हवाई अड्डे पर अगवानी की थी। शाहजादे नह्यान सशस्त्र बलों के सर्वाेच्च उपकमांडर भी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने शेख जायेद मुख्य मस्जिद जाकर उस देश को सम्मान दिया। यह मस्जिद सऊदी अरब के मक्का और मदीना के बाद दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद है। दूसरे, घरेलू स्तर पर चाहे जितने मतभेद हों, मोदी दुनिया को यह संदेश देने में काफी हद तक सफल हो रहे हैं कि उनके नेतृत्व में एक स्थिर और स्थायी सरकार है जो निर्णय करती है। आखिर संयुक्त अरब ने अगर करीब साढ़े 4 लाख रुपए के निवेश का वायदा किया है और वहां के अन्य निवेशक भी भारत में काम करने पर विचार करने को तैयार हुए तो इस संदेश के कारण ही। तीन, अपनी बात यानी भारत की सोच को स्पष्टता से रखने में वे हिचकते नहीं और उसके अनुसार कुछ परिणाम भी लाते हैं। संयुक्त अरब अमीरात में आतंकवाद पर उतना मुखर वक्तव्य एवं खुलकर बातचीत सामान्य घटना नहीं है। आप देख लीजिए संयुक्त वक्तव्य में आतंकवाद पर वो सारी बातेे कहीं गईं हैं जो भारत की दृष्टि से अनुकूल थे। और चौथे, सबसे बढ़कर जहां भी भारतवंशी है उनको देश के साथ जोड़ने एवं भारत के लिए काम करने को प्रेरित करने तथा उनके संबोधन के द््वारा स्वयं उस देश को या उसके माध्यम से दूसरे देशों को भी उचित संदेश की वे कोशिश करते हैं। 

यानी ये उद्बोधन केवल भारतीयों को संदेश देने तक सीमित नहीं रहते। कहा जा रहा है कि यह दुबई का आज तक का सबसे बड़ा कार्यक्रम था। इसकी पुष्टि जरा कठिन है, लेकिन वहां का पूरा प्रबंधन और उपस्थित संख्या को तो ऐतिहासिक मानना ही होगा। संयुक्त अरब अमीरात का परंपरागत रुप से पाकिस्तान के साथ संबंध से हम वाकिफ हैं। यही नहीं भारत में आतंकवादी घटनाओं में दुबई एवं अबूधाबी जैसे स्थलों की भूमिका भी स्पष्ट है। कई हमलों के तार वहां से जुड़े और कुछ आतंकवादी जेलों में हैं। वहां मोदी का यह कहना कि आज देशों को तय करना है कि आप आतंकवाद के साथ हैं या मानवता के या फिर यह कि बैड तालिबान और गूड तालिबान, बैड टेररिज्म और गूड टेररिज्म अब नहीं चलेगा, आपको दो में से एक चुनना होगा, सामान्य बात नहीं है। मोदी इसलिए कह पाए क्योंक वे संयुक्त अरब को आतंकवाद के खतरे समझाने में सफल रहे। तभी तो संयुक्त वक्तव्य में कहा गया कि जो आतंकवाद के दोषी हैं उनको सजा मिलनी चाहिए। यह पंक्ति सीधे पाकिस्तान की ओर ही तो इंगित है। यही नहीं बैड तालिबान और गूड तालिबान तो अमेरिका की नीति को भी कठघरे में खड़ा करने वाला है, क्योंकि उसने ही तालिबानों से देश से बाहर बातचीत आरंभ की है। तो मोदी की यात्रा के दौरान संयुक्त अरब की परंपरागत नीति में बड़ा बदलाव है। इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद की परिभाषा निश्चित करने, आतंकवाद समर्थक एवं विरोधी देशों की पहचान संबंधी प्रस्ताव को पारित करने के भारत के प्रयासों में संयुक्त अरब का साथ पाना भी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जरा सोचिए यदि दुबई की सभा नहीं होती ये सारे संदेश वहां से उसी प्रभावी तरीके से बाहर निकल पाते? कतई नहीं।

किंतु मोदी ने एक ओर यदि देशों पर आतंकवाद को लेकर दोहरी नीति पर चोट किया तो दूसरी ओर दुबई की भूमि से हिंसा छोड़ने का आह्वान भी। उनने कहा कि बम बंदूक से फैसला चाहने वाले न अपना कल्याण करते हैं न देश का, वे इतिहास को ही दागदार करते हैं और चाहे जितनी हिंसा कर लें फैसला तो अंततः बातचीत से ही होती है इसलिए हिंसा छोड़कर बातचीत का रास्ता पकड़ें। यानी इसके द्वारा इस बात का संकेत दिया गया कि भारत अंतिम विकल्प के रुप मंे ही हिसा को अपनाता है और किसी को भ्रमित किया गया है तो वह अपना असंतोष व्यक्त कर सकता है। यह इस नाते भी महत्वपूर्ण है कि खाड़ी देशों में अनेक युवाओं को भ्रमित करके आतंकवाद के रास्ते पर धकेल दिया जाता है।

संयुक्त अरब अमीरात के रणनीतिक महत्व को समझिए। उसके पास हमें देने के लिए तेल और गैस के भंडार हैं जो हमारी उर्जा सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। वह हमारा तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और उसमें वृद्वि की पूरी संभावना है। दोनों देशों के बीच 60 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार है और साल 2014-15 में भारत का कच्चे तेल का छठा सबसे बड़ा निर्यातक रहा। ये सारी बाते हैं, पर वह खाड़ी में ऐसा देश है जो इजरायल से तनाव के पक्ष में नहीं, कट्टरपंथ से शासन दूर रहता है और देश में ऐसा वातावरण बनाए रखने की कोशिश भी। तभी तो ऐसे कट्टरपंथ और चरमपंथ के माहौल में उसने हिन्दुओं की उपासना के लिए मंदिर की जमीन देने का साहस किया है। वह आईएसआईएस का खुलकर विरोध करता है, उसकी सीमा के अंदर आईएस की धमक पहुंच चुकी है और हम पर भी खतरा मंडरा रहा है। इस नाते संयुक्त अरब से संबंधों का रणनीतिक महत्व बढ़ जाता है। इसलिए मोदी ने खाड़ी देशों की यात्रा की शुरुआत संयुक्त अरब से करके सही कूटनीतिक प्रयाण किया है। उसके साथ लंबी साझेदारी चल सकती है।

भारत में इस बात को लेकर चिल्ल पों हो रही है कि मोदी ने वहां 34 वर्ष तक न आने की बात करके विपक्ष को निशाने पर लिया है। इसे संयुक्त अरब अमीरात के सामने सार्वजनिक रुप से अपनी गलती स्वीकार कर संबंधों को ठोस भावनात्मक आधार देने की कूटनीति के रुप में भी तो देखा जा सकता है। वैसे मोदी ने यह सच बोला है कि 34 वर्ष से संयुक्त अरब कोई प्रधानमंत्री नहीं गया। आषिर 27 वर्ष से श्रीलंका, 28 वर्ष से सिचिल्स, 17 वर्ष से नेपाल.....किसी प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय यात्रा हुई ही नहीं। ंतो हमारी कूटनीति किस दिशा में जा रही थी? अपने पड़ोसी और निकट पड़ोसी तथा जिनसे विचार की निकटता हो सकती है, आर्थिक साझेदारी हो सकती है उनकी चिंता अगर हमारे पास नहीं तो यह कौन सी कूटनीति थी? इन देशों के साथ संबंधों से जो कुछ हम हासिल कर सकते हैं उसकी पता नहीं क्यों कल्पना नहीं की गई! मोदी ने वहां यह संदेश दिया कि हम सभी आस पड़ोस के देशों के साथ मिलकर, उनकी साझेदारी से विकास करना चाहते हैं, किसी के संकट में हम सेवा भाव से तत्क्षण अपने संसाधनों के साथ पहुंचते हैैंं। नेपाल के भूकंप, मालदीव का पेयजल संकट से लेकर जाफना में तमिलों के आंसू पोंछने, अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण आदि की चर्चा इसी को पुष्ट करने के लिए थी। वस्तुतः दुबई से इस संदेश की आवश्यकता थी।

वैसे भी खाड़ी देशों का तो हमारे प्रवासी भारतीयों की दृष्टि से भी महत्व है। खड़ी देशों में संपन्न भारतीय भी हैं, पर बहुमत ऐसे लोगों का है जो वहां छोटे काम करते हैं, मजदूर हैं, सामान्य कर्मचारी हैं जिनकी न पहुंच है, न आवाज का महत्व, जबकि विदेशी मुद्रा भेजने में उनकी भूमिका अव्वल है। मोदी का वहां उनके बीच जाना न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ाने वाला साबित होगा, बल्कि वहां के देशों, कंपनियों आदि को भी यह संदेश गया है कि उनकी पीठ पर सरकार का हाथ है। जिस तरह उनने दूतावासों को सलाह शिविर लगाने से लेकर कल्याण कार्यक्रम, उसके लिए राशि, कानूनी सहायता के ढांचे का विस्तार कर उसे सरकारी पहल द्वारा पूरा करने, उनके बच्चों के लिए वहां शिक्षालय आदि की बात की उन सबसे उनका कितना आत्मविश्वास बढ़ा होगा इसकी कल्पना करिए। इसकी आवश्यकता लंबे समय से थी। इस परिप्रेक्ष्य में यह मानने में आपत्ति नहीं है कि दुबई का उद्बोधन अत्यावश्यक कार्यक्रम था जिसकी सकारात्मक प्रतिध्वनि मनोवैज्ञानिक एवं नीतियों के स्तर पर कायम रहेगी। योजनाओं में हिन्दू मुसलमान का तो कोई भेदभाव नहीं है। अगर मोदी की घोषित योजनाओं के अनुरुप काम हुए तो केवल संयुक्त अरब अमीरात के करीब 26 लाख भारतीय ही नहीं, खाड़ी के लाखों भारतीय भी देश के लिए अमूल्य निधि साबित होंगे और उनको भ्रमित करना आसान नहीं होगा।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/