शुक्रवार, 30 मई 2025

ऑल पत्रकार एसोसिएशन यमुनापार के हिन्दी पत्रकारिता दिवस के प्रोग्राम में कई बड़ी हस्तियों ने की शिरकत

संवाददाता

नई दिल्ली l दिल्ली के गालिब इंस्टिट्यूट (एवान ए ग़ालिब) में हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर ऑल पत्रकार एसोसिएशन यमुनापार दिल्ली ने पत्रकार सम्मान समारोह का आयोजन किया l सम्मान समारोह मे देश की कई बड़ी हस्तियाँ शामिल हुई l प्रोग्राम मे दिल्ली और कई कई राज्यों से पत्रकारों ने शिरकत लड़ अपनी समस्याओ क़ो रखा और सरकार से कई मांगे रखी l प्रोग्राम मे मुख्यातिथि के तौर पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित जितेंद्र कुमार शंटी व वरिष्ठ अतिथि के रूप मे हरियाणा सरकार के सचिवालय में कार्यरत आईएएस अधिकारी रानी नागर, जर्नलिस्ट टुडे अखबार के संपादक जावेद रहमानी, वेबवार्ता न्यूज़ एजेंसी के संपादक सईद अहमद, सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत व सीमा हैदर के वकील डॉ एपी सिंह, दिल्ली नगर निगम की स्थाई समिति के सदस्य आमिल मलिक, मुबीटेक पे के सीईओ जितेंद्र शर्मा, पूर्व डिप्टी डायरेक्टर सफदरगंज हॉस्पिटल डॉ सय्यद अहमद खान शामिल हुएl अतिथि के तौर पर भाजपा नेता अनीस अंसारी, एमबी एंड डोफीन सिक्योरिटी के डायरेक्टर महावीर शर्मा, हाईकोर्ट से हीना परवीन, कड़कड्डूमा कोर्ट से रेनू शर्मा, भारतीय ग्रामीण पत्रकार संघ के अध्यक्ष अनिल कुमार, भारतीय सम्पूर्ण क्रांति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जोगेंद्र सिंह, एचएन सिंह एडवोकेट आदि शामिल हुएl
इस प्रोग्राम का आयोजन लोकतंत्र का पाया (मीडिया समूह) के संपादक शमशाद अली मसूदी, जन सेवा क्रांति फाउंडेशन के अध्यक्ष मोहतरमा हुस्ना हाशमी, डोफीन मीडिया के प्रोडयूसर जावेद आलम, एमकेएस 24 न्यूज़ के सम्पादक नौशाद अंसारी ने मिलकर किया l प्रोग्राम क़ो सफल बनाने में विचार आप तक के सम्पादक आरिफ खान, पत्रकार रूबी न्यूटन, पत्रकार रानी खान, मीडिया काउंसिल से मौलाना अब्दुल रशीद, शाहिद खान तहसीनी, पत्रकार अरुण कुमार का अहम योगदान रहा है l
प्रोग्राम के मुख्य अतिथि जितेंद्र कुमार शंटी ने कहा कि देश कि आजादी में पत्रकारों का अहम योगदान रहा हैl उन्होंने कि आज भी मीडिया सरकार और विपक्ष क़ो जगाने का काम कर रही, गोदी मीडिया क़ो छोड़कर, इस मौके पर ऑल पत्रकार एसोसिएशन यमुनापार दिल्ली कि तारीफ करते हुए कि इस संस्था द्वारा किया गया कार्यक्रम सरहानीय हैl मैं पत्रकारों कि मांग क़ो सरकार के सामने रखने का काम करूंगाl 
ऑल पत्रकार एसोसिएशन यमुनापार दिल्ली के संयोजक शमशाद अली मसूदी ने कहा कि राज्य और भारत सरकार के बजट मे मीडिया का कोई बजट नहीं होता है पत्रकारों के लिए कोई सुविधा नहीं मिलती l दिल्ली मे बसों मे सीट रिजर्व नहीं है इसी तरह अस्पातलो और रेलवे स्टेशनो मे पत्रकारों के लिए अलग खिड़की नहीं है इसी तरह पेशन, इंश्योरेंस, हैल्थ और शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। इन पर हम सब क़ो काम करना होगाl आमिल मलिक ने कहा कि दिल्ली सरकार और भारत सरकार क़ो चिट्ठी लिखकर पत्रकारों की आवाज क़ो बुलंद करने का काम करूंगाl
जावेद रहमानी ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता दिबस क़ो इस तरह से मनाना, इस बात का सन्देश है कि गोदी मीडिया कि समाज कि जरूरत नहीं है आज मुझे लगा कि पत्रकारों क़ो अपने हक़ की आवाज अपने आप बुलंद करनी होंगी l
इस मौके पर तफ्तीश न्यूज से मो. राहत उर्फ राजू, मुसर्रत टाइम्स से मोहम्मद रियाज़, सलीम इदरीशी, गुलजार, जान मोहम्मद, नफीस सलमानी, इरशाद सैफी, बागपत से विपुल जैन, विवेक जैन, इमरान अंसारी, मो रफ़ी, इल्मा,इरशाद अली, मकसूद राही, फारुख मंसूरी, संजीव कुमार, शाहबुद्दीन, अनवार नूर, एस आई मो आलम, गायक रितु गुप्ता, मतलूब अंसारी, विभव किशोर, मो इस्तयाक, गुलफाम सैफी, इरफ़ान सैफी, साजिद जमाल, इशरक सागर, निशा खान, मो शाहनवाज, गुलनार परवीन, आयशा खातून, हाफिज मामून, युवा रत्न शायर आमिर मेरठी, सलमान थानवी, पत्रकार रजा मिर्जा, नईम खान, मो यूनुस सैफी, शमशाद सैफी, प्रदीप कुमार, मो फैसल  आदि शामिल हुए।













गुरुवार, 29 मई 2025

मुर्शिदाबाद के पीछे की सोच

अवधेश कुमार

 उच्च न्यायालय की तरफ से गठित तथ्य-खोजी समिति की मुर्शिदाबाद हिंसा संबंधी रिपोर्ट किसी को भी डराने के लिए पर्याप्त है। जिन लोगों ने मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के विरुद्ध एकपक्षीय हिंसा पर काम किया है उनके लिए यह रिपोर्ट स्वाभाविक है। किंतु अभी तक कानूनी परिभाषा में इसे आरोप की परिधि में रखा गया था। इस रिपोर्ट के बाद सारे आरोपों की पूरी तरह पुष्टि हो गई है। ध्यान रखिए कि इस रिपोर्ट के पहले पश्चिम बंगाल पुलिस ने भी उच्च न्यायालय में 34 पृष्ठ की रिपोर्ट पेश की थी। दरअसल सरकार किस्सा पर कट्टरपंथी मुस्लिम तत्व ऑन की हिंदू विरोधी हिंसा और व्यवहारों को नजर अंदाज करने वाली पुलिस भी इस बार इनके हिंसा की शिकार हो गई थी। उसके बाद उसे लगा कि हम की पानी सर से ऊपर निकल गया है तो उसने भी अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया की भीड़ किस तरह और नियंत्रित होकर हिंसा कर रही थी। पुलिस रिपोर्ट की कुछ पंक्तियां देखिए-  लगभग 4.25 बजे अचानक भीड़ अनियंत्रित हो गई..पुलिसकर्मियों पर ईंट, पत्थर फेंकने लगी... पुलिस कर्मियों को मारने के इरादे से लाठी, हसुआ, लोहे की छड़ और घातक हथियारों आदि से हमला करना शुरू कर दिया। उपद्रवियों ने एसडीपीओ जंगीपुर की पिस्तौल छीन ली, जिसमें 10 राउंड गोली लोड था। भीड़ ने एसडीपीओ जंगीपुर के एक वाहन और एक हाईवे पेट्रोलिंग वाहन के साथ उमरपुर में सार्वजनिक संपत्तियों में आग लगा दी। आप कल्पना करिए स्थिति कैसी रही होगी! अगर पुलिस से पिस्तौल छीनी जा रही थी तो बंगाल की पुलिस किस अवस्था में रही होगी इसकी कल्पना करिए। सच है कि पुलिस ने रिपोर्ट में स्वयं के भयभीत होने की बात नहीं लिखी है किंतु कई जगह पुलिस जान बचाने के लिए भागती नजर आई। एक पुलिस अधिकारी का बयान है कि जिला प्रशासन ने बीएसएफ बुलाने का आग्रह किया और तब तक पुलिस को  छिपकर जान बचानी पड़ी। जिस बीएसएफ ने पुलिस की जान बचाई, जिसे पीड़ित अपनी रक्षक बता रही है उस पर ममता बनर्जी आरोप लगा रही थी। 

हालांकि रिपोर्ट में पुलिस को सबसे ज्यादा कठघरे में खड़ा किया गया है।

17 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के एक-एक सदस्य वाली तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। रिपोर्ट में कुछ बातें प्रमुख है। पहले, हिंसा केवल हिंदुओं के विरुद्ध थी और सुनियोजित थी। दूसरा,स्थानीय तृणमूल के मुस्लिम नेता और पार्षद ने हिंसा का नेतृत्व किया। तीसरा, लोगों ने पुलिस से मदद मांगी, पुलिस ने न हिंसा रोकने की कोशिश की और न पीड़ितों को सुरक्षा देने की ही।  यह रिपोर्ट ऐसी है जिसके बाद पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के होने का कोई कारण नहीं है। कल्पना करिए अगर आज से तीन दशक पूर्व ऐसी हिंसा होती जिसमें पूरे एक समुदाय के विरुद्ध हिंसा में कानून के शासन की धज्जियां उड़ जातीं तो वह सरकार निस्संदेह बर्खास्त होती। आज की स्थिति वैसी नहीं है। क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति शासन लागू होने और सरकार के बर्खास्त करने को संवैधानिक रूप से गलत ठहरा सकती है। राज्यपाल ने केन्द्र को भेजी रिपोर्ट में केंद्र सरकार सरकार से संवैधानिक विकल्पों’ पर विचार करनेका सुझाव तो दिया, हालात बिगड़ने पर अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) को विकल्प बताते हुए भी लिखा कि अभीजरूरत नहीं है।

 जरा सोचिए , इतनी भयानक हिंसा और पुरुषों को तो छोड़िए महिलाओं और बच्चों के दर्दनाक आपबीती के बावजूद ममता बनर्जी ने एक शब्द आरंभ में सहानुभूति का नहीं बोला। वह और उनकी सरकार के मंत्री, नेता सब इसको भाजपा का षड्यंत्र बताते हुए बीएसएफ पर ही आरोप लगा रहे थे कि बांग्लादेश से बुलाकर हिंसा करवा दिया है। कायदे से तो बीएसएफ की ओर से भी उच्च न्यायालय अपील दायर होनी चाहिए थी। आखिर किस आधार पर इतना संगीन आरोप मुख्यमंत्री ने लगा दिया जिन्होंने संविधान के तहत सफल शपथ लिया है?कम से कम उच्च न्यायालय की समिति की रिपोर्ट के बाद ममता से औपचारिक रूप से यह पूछा जाना चाहिए। इस रिपोर्ट के अनुसार 11 अप्रैल को नए वक्फ संशोधन कानून के विरुद्ध प्रदर्शन की आड़ में हिंदुओं कौन निशाना बनाया गया। बेतबोना गांव में 113 घर जला दिए गए। रिपोर्ट में कहा गया है, 'एक आदमी गांव में वापस आया और उसने देखा कि किन घरों पर हमला नहीं हुआ है और फिर बदमाशों ने आकर उन घरों में आग लगा दी।' यह कैसे संभव हुआ? यानी गांव जला दिए गए लेकिन पुलिस प्रशासन वहां अनुपस्थित रहा। सोचिए, पानी का कनेक्शन काटा गया ताकि आग बुझाए न जा सके। सबसे निकृष्ट काम महिलाओं का वस्त्र तक को जला देना था ताकि पहनने को कपड़े नहीं बचे। सबसे शर्मनाक भूमिका तो पुलिस की थी। रिपोर्ट में कहा गया है, 'पश्चिम बंगाल पुलिस ने कोई जवाब नहीं दिया। बेतबोना के ग्रामीण ने शुक्रवार को शाम चार बजे और शनिवार को शाम चार बजे फोन किया, लेकिन पुलिस ने फोन नहीं उठाया।’ पुलिस ने मालदा में शरण लिए हुए पीड़ितों को ढाका से बेतबोना गांव में लौटने को विवश कर दिया। साफ है कि ऐसा यूं ही नहीं हुआ होगा। सरकार की ओर से पुलिस प्रशासन पर दबाव रहा होगा कि पलायन कर गए लोगों को बुलाया जाए क्योंकि इससे केवल भारत ही नहीं बाहर भी सरकार की थूथू हो रही है। रिपोर्ट ने जिस तरह पुलिस प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया है उससे पश्चिम बंगाल पुलिस सिर उठाने लायक भी नहीं रही। कहा गया है कि प्रशासन की तरफ से हिंसाग्रस्त इलाकों में किसी भी व्यक्ति की मदद नहीं की गई और न ही इस हिंसा में संलिप्त आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई।‌ 

रिपोर्ट की यह पंक्ति देखिए -जिस तरह हिंसा को अंजाम दिया गया, उससे यह साफ जाहिर होता है कि यह सुनियोजित था, जिसे पूरे व्यवस्थित तरीके से अंजाम दिया गया। रिपोर्ट में पार्षद और पुलिस दोनों के बारे में जो कहा गया उसे देखिए-, 'हमले स्थानीय पार्षद की तरफ से निर्देशित किए गए थे,' स्थानीय पुलिस पूरी तरह से "निष्क्रिय और अनुपस्थित" थी। घटना देखिए,शुक्रवार को नमाज के बाद भीड़ निकलती है और करीब 2:30 से हिंदुओं के विरुद्ध वही दृश्य खड़ा किया खड़ा हो गया जो हमने पिछले दिनों बांग्लादेश में देखा। इसमें कहा गया है, 'बदमाशों ने घर के सभी कपड़ों को मिट्टी के तेल से जला दिया और घर की महिला के पास तन ढकने के लिए कपड़े नहीं थे।’ तो इसमें कोई संदेह नहीं कि इसके पीछे पूरे क्षेत्र को हिंदूविहीन करने का षड्यंत्र था, जो जो स्वतंत्रता के पहले से चल रहा है। पहलगाम हमले में धर्म पूछ कर हिंदुओं को मारने वाले आतंकवादियों को नेस्तनाबूद करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर जैसा युगांतकारी पराक्रम दिखाया। लेकिन बंगाल के हिंसक तत्वों, जिन्हें आतंकवादी कहने में भी समस्या नहीं होनी चाहिए, के विरुद्ध कैसा ऑपरेशन सिंदूर करना होगा? पाकिस्तान के फील्ड मार्शल और तब थल सेना अध्यक्ष जनरल आसिफ मुनीर ने यही तो कहा था कि हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते हैं। दोनों दो कौमें हैं और यही विचार पाकिस्तान बनाने की नींव है। उन्होंने लोगों से अपील किया कि इस बात को अपनी बच्चों को बताते रहना ताकि कोई भूल न पाए। मुर्शिदाबाद में भी क्या यही विचार हिंदुओं के विरुद्ध भयानक हिंसा के पीछे नहीं था ? क्या पश्चिम बंगाल में इसके पहले हिंदू पर्व त्योहारों पर हमले नहीं हुए? चुनाव में तृणमूल के विरुद्ध वोट देने वाले हिंदुओं की क्या दशा हुई ? उन्हें किस हालत में पलायन करना पड़ा यह भी देश के सामने है।  हम पाकिस्तान के आसिफ मुनीर के विरुद्ध अपनी भृकुटियां तान सकते हैं लेकिन पश्चिम बंगाल और मुर्शिदाबाद में बैठे ऐसे आसिफ मुनीरों की पहचान कैसे होगी और उनके साथ क्या किया जाएगा? हम पाकिस्तान में भारत विरोधी आतंकवादियों को सरकार और आईएसआई द्वारा संरक्षण देने की बात करते हैं। उच्च न्यायालय की समिति के अनुसार यहां गैर मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा करने वालों को भी पुलिस का साथ मिलता है। बंगाल विशेषकर मुर्शिदाबाद में भी पुलिस ने घटना से आंखें मूंद कर इन उग्रवादी समूहों को एक प्रकार से काम करने की स्वतंत्रता ही दी। पाकिस्तान सरकार भी वहां गैर मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा या उनके धर्म परिवर्तन तथा भारत में आतंकवादी हमले को नकारते हुए भारत पर ही आरोप लगाती है। ममता बनर्जी की भूमिका भी ठीक वैसे ही है। उन्होंने पूरी घटना को आरएसएस बीजेपी की साजिश बता दिया। तो इसके बारे में क्या शब्द और विचार प्रकट करेंगे? 

रिपोर्ट में शमसेरगंज के जाफराबाद इलाके में हरगोबिंद दास और उनके बेटे चंदन दास की हत्या का जिक्र करते हुए कहा गया है, 'उन्होंने घर का मुख्य दरवाजा तोड़ दिया और उसके बेटे और उसके पति को ले गए और उनकी पीठ पर कुल्हाड़ी से वार किया। एक आदमी तब तक वहां इंतजार कर रहा था जब तक वे मर नहीं गए।' दोनों पिता पुत्र का दोष यह था कि वे हिंदू देवी - देवताओं की मूर्तियां बनाते थे। तो यह कैसी सोच है कि मूर्तियां बनाने वाला इनका दुश्मन हो गया? मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद वहां गए राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बंगाल को दोहरा खतरा है खासतौर पर बांग्लादेश से सटे मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में ज्यादा है क्योंकि यहां हिंदू आबादी अल्पसंख्यक है। इसी तरह उन्होंने नौर्थ दिनाजपुर को भी हिंदुओं के लिए खतरनाक बताया। 

रविवार, 25 मई 2025

लुधियाना उपचुनाव में AAP की जीत से क्या राज्यसभा का द्वार खुलेगा केजरीवाल के लिए

लुधियाना। भारतीय निर्वाचन आयोग ने रविवार को घोषणा की है कि पंजाब में लुधियाना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र के लिए 19 जून को उपचुनाव होगा। इसके अलावा 4 अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी उपचुनाव होगा। इसमें गुजरात की दो, केरल और पश्चिम बंगाल में की एक-एक सीट भी शामिल हैं। इस सीट पर आम आदमी पार्टी की नजर ज्यादा है क्योंकि कयास हैं कि इस सीट पर अगर आप की जीत होगी तो पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के राज्यसभा जाने का रास्ता खुल सकता है।

लुधियाना पश्चिम सीट आम आदमी पार्टी के विधायक गुरप्रीत बस्सी गोगी के निधन के बाद खाली हुई थी। राजनीतिक दलों ने उपचुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा पहले ही कर दी है और प्रचार अभियान भी काफी समय से चल रहा है। आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा सदस्य और उद्योगपति संजीव अरोड़ा को अपना उम्मीदवार बनाया है। लुधियाना के मूल निवासी अरोड़ा सोशल वर्कर और बिजनेसमैन हैं।

आप की अकाली दल और कांग्रेस से कड़ी टक्कर 

कांग्रेस ने पंजाब के पूर्व मंत्री और दो बार विधायक रह चुके भारत भूषण आशु को मैदान में उतारा है, जो वर्तमान में पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। शिरोमणि अकाली दल ने वरिष्ठ अधिवक्ता परुपकर सिंह घुम्मन को अपना उम्मीदवार बनाया है और उन्होंने सीट वापस पार्टी की झोली में लाने का वादा किया है।

चुनाव आयोग की घोषणा से क्षेत्र में प्रतिनिधित्व बहाल करने के लिए औपचारिक चुनावी प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसने विस्तृत कार्यक्रम जारी किया है। अधिसूचना 26 मई को जारी की जाएगी। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 2 जून है, उसके बाद 3 जून को जांच होगी और 5 जून तक उम्मीदवारी वापस ली जा सकेगी। वहीं वोटों की गिनती 23 जून को होनी है और पूरी चुनाव प्रक्रिया 25 जून तक समाप्त हो जाएगी।\

इन सीटों पर भी होंगे चुनाव --- गुजरात में कादी और विसावदर सीटें, केरल में नीलांबुर और पश्चिम बंगाल में कालीगंज अन्य चार विधानसभा सीटें हैं जिन पर 19 जून को उपचुनाव होने हैं। बता दें कि पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए, चुनाव आयोग 1 अप्रैल की योग्यता तिथि के आधार पर 5 मई को प्रकाशित अद्यतन मतदाता सूचियों का उपयोग करेगा।

नामांकन की अंतिम तिथि से दस दिन पहले तक निरंतर अद्यतनीकरण जारी रहेगा। सभी मतदान केंद्रों पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और मतदाता-सत्यापनीय पेपर ऑडिट ट्रेल्स लगे होंगे।

शनिवार, 24 मई 2025

ऐसे विवाद क्यों

अवधेश कुमार

पहलगाम आतंकवादी हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर की अभूतपूर्व कार्रवाई ,उसके बाद 8 और 9 मई की रात्रि तक पाकिस्तान के साथ सीधे सैन्य टकराव और उसके बाद जिस तरह के वक्तव्य आये, प्रश्न उठाए गए हैं सामान्य तौर पर भी वे चिंतित करने वाले हैं। इसमें सबसे अंतिम विवाद विदेश मंत्री एस जयशंकर के ऑपरेशन संबंधित पाकिस्तान को जानकारी देने के स्वाभाविक वक्तव्य का राहुल गांधी और कांग्रेस के द्वारा विवादास्पद बनाया जाना है। राहुल गांधी ने एक निजी न्यूज चैनल का वीडियो शेयर करते हुए एक्स पर लिखा, ''हमारे हमले की शुरुआत में पाकिस्तान को सूचित करना एक अपराध था. विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि भारत सरकार ने ऐसा किया।..  ''इसे किसने अधिकृत किया? इसके परिणामस्वरूप हमारी वायुसेना ने कितने विमान खो दिए?'' राहुल गांधी का पोस्ट था इसलिए हजारों की संख्या में शेयर हो गया और अपने देश के चरित्र के अनुरूप हंगामा भी।  इस कांग्रेस मीडिया एवं कम्यूनिकेशन के प्रमुख वरिष्ठ नेता जयराम रमेश पहले ही इससे आगे बढ़ कर विदेश मंत्री के इस्तीफे की मांग कर चुके थे। एक्स पर उनका पोस्ट था, ''विदेश मंत्री- अपने अमेरिकी समकक्ष की ओर से किए जा रहे दावों का जवाब तक नहीं देते हैं, उन्होंने एक असाधारण रहस्योद्घाटन किया है। वह अपने पद पर कैसे बने रह सकते हैं, ये समझ से परे है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून, 2020 को चीन को सार्वजनिक रूप से क्लीन चिट दे दी और हमारी बातचीत की स्थिति खत्म कर दी।  जिस शख्स को उन्होंने विदेश मंत्री के तौर पर नियुक्त किया, उसने इस बयान से भारत को धोखा दिया है। 

कांग्रेस पार्टी के समर्थक और भाजपा विरोधियों के साथ अनेक आम लोगों को भी इन बड़े नेताओं के वक्तव्य के बाद लगा होगा कि क्या वाकई हमने ऑपरेशन सिंदूर के पहले ही पाकिस्तान को बता दिया? सामान्य दृष्टि से भी  इससे हास्यास्पद बात कुछ नहीं हो सकती कि जो सरकार आतंकवादी हमले के बाद सीमा पार स्थित महत्वपूर्ण आतंकवादी केन्द्रों को ध्वस्त करने की साहसिक कार्रवाई की गोपनीय तैयारी कर चुकी हो वह इसके पूर्व ही दुश्मन को बता देगा? लेकिन हमारा देश में  नेता, एक्टिविस्ट, मीडिया के कुछ साथी पत्रकार कुछ भी लिख और बोल सकते हैं। यह देश का दुर्भाग्य है और गहरी चिंता का विषय कि पूरे अभियान में , जिसने संपूर्ण दुनिया को विस्मित किया तथा पाकिस्तान को सकते में ला दिया उसे पर उत्सव मनाने की जगह अपने पय ही प्रश्न उठाकर देश का मनोबल कमजोर करने की भूमिका निभाई जा रही है। आखिर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा क्या था?  उन्होंने कहा था, “ऑपरेशन की शुरुआत में हमने पाकिस्तान को एक संदेश भेजा था कि हमारा निशाना आतंकवादी ढांचे पर है, न कि उनकी सेना पर। हमने उन्हें हस्तक्षेप न करने का विकल्प दिया था, लेकिन उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया। “ उनके अनुसार, 7 मई की रात 1 से 1:30 बजे के बीच, भारतीय सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने पाकिस्तान के डीजीएमओ मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला को फोन कर यह जानकारी दी थी। भारत ने केवल सावधानी से चुने गए आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया है, न कि सेना के ठिकानों को। इसमें कहां है कि पूर्व में ही सूचित कर दिया? राहुल गांधी के वक्तव्य के बाद विदेश मंत्रालय ने इसका खंडन भी कर दिया कि पाकिस्तान को ऑपरेशन शुरू होने के बाद सूचना दी गई थी, न कि उससे पहले। इस बयान को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। यह तथ्यों की तोड़-मरोड़ है।” 

बावजूद विवाद जारी है और रहने वाला है। सभी बड़े नेताओं को पता है कि सच क्या है। पहले की सरकारें ऐसा साहस नहीं कर सकी इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार जनता और दुनिया की नजर में ऐतिहासिक पराक्रमी न मान लिया जाए इसके भय से  अनेक ऐसे विवाद खड़े किए जा रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि आगे भी ऐसे ही होता रहेगा।  तभी तो जिस ऑपरेशन पर अब अमेरिका व यूरोप के सामरिक विशेषज्ञ भारत की रणनीतिक और कूटनीतिक सफलता ऐतिहासिक बताकर पाकिस्तान के झूठ को तथ्यों से उजागर कर चुके हैं वहां हमारे ही देश में दुश्मनों विशेषकर चीन, पाकिस्तान और अन्य के नैरेटिव को फैलाकर पूरी सफलता के स्वाद में मिट्टी तेल डालने का उपक्रम हो रहा है। भारत बहादुर देश है और जब हमने तैयारी से 1:05 बजे रात से 1:30 बजे तक यानी 25 मिनट के अंदर दो दर्जन से ज्यादा मिसाइलों के सटीक निशाने से महत्वपूर्ण आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त करना शुरू किया तो पाकिस्तान को बता दिया कि कार्रवाई आतंकवाद के विरुद्ध है, पाकिस्तान पर हमला नहीं। पाकिस्तान नहीं कह रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर की सूचना पहले मिल गई और हमने किसी मिसाइल को मार गिराया।  वह सकते में आ गया कि इतनी बड़ी कार्रवाई की भनक कैसे नहीं लगी? 

दूसरे , यह हवाई बमबारी नहीं थी कि हमारे किसी वायुयान या पायलट को पाकिस्तान नुकसान पहुंचता। अगर नेताओं को इतनी समझ नहीं है  तो उनके बारे में देश तय करें कि हमें कैसा व्यवहार करना है। अंतरराष्ट्रीय मानक है कि हम किसी देश की सीमा में घुसकर किसी अपराध या आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई करते हैं तो उसे सूचना देते हैं। इसका रिकॉर्ड भी रखा जाता है ताकि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने हमले का झूठ न फैला सके। 10 मई को सैन्य टकराव रुकने के बाद डोनाल्ड राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ट्वीट के बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला शुरू कर दिया यह जानते हुए कि नरेंद्र मोदी सरकार स्वयं अनेक बार कर चुकी है कि जम्मू कश्मीर के मामले में मध्यस्थता नहीं होगी। 10 मई की चार पत्रकार वार्ताओं मे सेना की दो महिला प्रवक्ताओं कर्नल सोफिया कुरेशी और‌ विंग कमांडर व्योमिका सिंह तथा विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने साफ कर दिया। यह भी स्पष्ट किया गया कि आतंकवादी कार्रवाई को युद्ध की तरह लिया जाएगा। उसके बाद दो दिन सेना के तीनों अंगों के डीजीएमओ की पत्रकार वार्ताओं,अगले दिन प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन और उसके बाद आदमपुर वायु सेना अड्डा भाषण में साफ कर दिया कि पाकिस्तान आतंकवाद रोकने और सैन्य दुस्साहह से बचने की गारंटी पर खरा नहीं उतरा तो ऑपरेशन सिंदूर चारी है। प्रधानमंत्री नेकहा कि यज्ञ अखंड प्रतिज्ञा है। यानी अगर आतंकवादी कार्रवाई हुई तो केवल आतंकवादियों के विरुद्ध नहीं, पाकिस्तान सरकार का काम मानकर उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। इससे स्पष्ट घोषणा और कुछ हो नहीं सकती। 

देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ नहीं हो सकता कि आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में विश्व के लिए नए मानक जैसे प्रतिमान को देश की उपलब्धि मानने की जगह संकुचित राजनीतिक स्वार्थ तथा रुग्ण वैचारिकता के आलोक में छोटा करने का आत्मघाती व्यवहार किया जा रहा है। जब पाकिस्तान को आईएफ यानी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कर्ज दे दिया तो जयराम रमेश ने पोस्ट कर दिया कि भारत ने मतदान में विरोध नहीं किया। वे आर्थिक विषयों के पत्रकार रहे हैं और केंद्रीय मंत्री। उन्हें पता है कि विरोध में वोट करने का कोई प्रावधान नहीं और बहिर्गमन करन विरोध होता है जो भारत ने किया। इसी तरह बार-बार अमेरिकी दबाव में युद्ध विराम की बात हो रही है। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और उनको कुछ बोलने से हम रोक नहीं सकते।  विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि अमेरिका से कब-कब बात हुई लेकिन भारत पर कोई दबाव हो इसे न अमेरिका बोला न कहीं से कोई संकेत। बावजूद ऐसा साबित करने की कोशिश हुई कि ट्रंप और अमेरिका के डर से युद्ध विराम कर दिया। प्रधानमंत्री के संबोधन के बावजूद पाकिस्तान और चीन के नैरेटिव को प्रमुखता दी जा रही है। अब ट्रंप ने भी कह दिया कि उसने कोई मध्यस्थता नहीं की। तब भी ये मानने को तैयार नहीं। भारत में कभी सीजफायर या युद्ध विराम शब्द का प्रयोग नहीं किया। हमने सैन्य कार्रवाई और गोलाबारी रुकने पर सहमति की बात की। यह समाचार उड़ा कि युद्दविराम केवल 18 मई तक है। अब पाकिस्तान के डीजीएमियों की ओर से आ गया कि इसकी कोई समय सीमा नहीं है। प्रश्न है कि क्या इसके बावजूद हमारे नेता, एक्टिविस्ट, बुद्धिजीवी, पत्रकारों का एक समूह अपने देश को छोटा करने से बाज आएंगे? कांग्रेस कहती है कि वह सेना के साथ है। क्या सेना के साथ होना देश पर अहसान करना है? ऐसा कौन कहेगा हम सेना के साथ नहीं है। सेना पहले भी थी तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई?  सेना  राजनीतिक नेतृत्व के आदेश का ही पालन कर सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने साहस दिखाया तो श्रेय उसको जाएगा। विरोधी चटपटा कर आत्महत्या कर लें तब भी इसमें श्रेय नहीं मिलने वाला। ये लोग देश के स्तर पर एकजुटता दिखाई तो श्रेय पूरे देश का होता। क्या यह बार-बार पूछना देश हित का कार्य है कि हमको क्या क्षति हुई बताया जाए? युद्ध में क्षति एकपक्षीय नहीं होती। दोनों पक्षों की होती है, किसी का कम किसी की ज्यादा। किंतु जब अभी भारत स्वयं को युद्ध या ऑपरेशन सिंदूर की अवस्था में मानता है तो जिम्मेवार भारतीय का राष्ट्रीय कर्तव्य ऐसे प्रश्नों से दूर रहना है। जो लोग अपना राष्ट्रीय कर्तव्य इसमें नहीं समझते उनके बारे में हम क्या शब्द प्रयोग करें या देश कैसा व्यवहार करें यह आप तय करिए। 


रविवार, 18 मई 2025

अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन दिल्ली प्रदेश का भव्य 13वां स्थापना दिवस समारोह सम्पन्न

संवाददाता

नई दिल्ली। रविवार, 18 मई 2025 को अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष श्री देशबन्धु गुप्ता जी की अध्यक्षता में संगठन का 13वां स्थापना दिवस समारोह शाह ऑडिटोरियम, दिल्ली में अत्यंत भव्य एवं गरिमामय ढंग से सम्पन्न हुआ जिसमें समाज के वरिष्ठजनों, महिलाओं, युवाओं व बच्चों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मौजा ही मौजा एंटरटेनमेंट ग्रुप द्वारा सायं 5:00 बजे से किया गया सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला ने दर्शकों का मन मोह लिया। कार्यक्रम के विशेष आकर्षण प्रस्तुतियों में चंद्रदेव क्यों हुए भगवान भोलेनाथ के मस्तक से अदृश्य, इस नाटिका ने पौराणिक भावनाओं को जीवंत कर दिया। माता अनुसूया द्वारा त्रिदेवों के समक्ष अपने पतिव्रत का प्रमाण, दर्शकों को भाव-विभोर कर गया। देशभक्ति की प्रस्तुति श्री राधाकृष्ण नृत्य ने सबका मन मोह लिया। भगवान शिव द्वारा बालकृष्ण के दर्शन इस भव्य नृत्य नाटिका ने मंच पर दिव्यता का आभास कराया। सायं 5 बजे से ही पूरा ऑडिटोरियम खचाखच भर गया।

कार्यक्रम के मुख्य उद्‌बोधनकर्ता अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुशील गुप्ता रहे जिन्होंने संगठन द्वारा किये गए कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन दिल्ली प्रदेश द्वारा सभी वर्गों के लिए अनेक योजनाएं संचालित की जा रही है।

इस अवसर पर संगठन के अध्यक्ष श्री देशबन्धु गुप्ता जी ने सबका अभिनंदन करते हुए संगठन द्वारा किये जा रहे प्रत्येक कार्य की जानकारी दी। अध्यक्ष जी ने कहा कि सन् 2025 में 1000 बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होने का लक्ष्य रखा है जिसमें योग शिक्षा, कंप्यूटर कोर्स, मेहंदी कोर्स, ब्यूटी पार्लर कोर्स कराया जाऐगा ताकि वे अपनी जीविका कमा सके और अपने परिवार का पालन पोषण कर सके।

वीपी ग्रुप के चेयरमैन एवं संगठन के प्रेरणास्रोत श्री सत्यप्रकाश गुप्ता की भी विशेष उपस्थिति रही। कार्यक्रम का उद्घाटन वीपी क्रिएशंस प्रा.लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री विपिन गुप्ता द्वारा किया गया, जबकि स्वागताध्यक्ष के रूप में बॉडीकेयर इंटरनेशनल लि. के चेयरमैन श्री सतीश गुप्ता उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि वर्ल्डफा ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री प्रमोद गुप्ता, दीप प्रज्जवलन एसएस बिल्डटेक वेंचर के चेयरमैन श्री संजीव सिंगला ने गोल्डन स्पॉन्सर व अन्य अतिथियों के साथ मिलकर किया।

अतिविशिष्ट अतिथियों दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर श्री मनीष अग्रवाल, Sub Divisional Magistrates Delhi श्रीमती इति अग्रवाल, महाराजा अग्रसेन हॉस्पिटल पंजाबी बाग की अध्यक्षा श्रीमती मीना सुभाष गुप्ता, MAPSKO ग्रुप के चेयरमैन श्री कृष्ण सिंगला एवं क्राउन स्टील्स डेजिग्नैटिड के पार्टनर श्री सुशील सिंगला ने भी अपनी विशिष्ट उपस्थिति के साथ कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।

कार्यक्रम के सिल्वर स्पॉन्सर श्री जगदीश प्रसाद अग्रवाल चेयरमैन बंगाली स्वीट्स, श्री रविन्द्र मोहन गर्ग डायरेक्टर पार्कर बिल्डर, श्री रामकिशोर अग्रवाल मैनेजिंग पार्टनर आर. के. सीड फार्म्स, श्री सुशील कुमार ऐरन डायरेक्टर लक्ष्मी बर्तन भण्डार, डॉ. रामगोपाल गोयल चेयरमैन बृजगोपाल कंस्ट्रक्शन कंपनी, श्री ललित अग्रवाल सीइओ गोयल एंटरप्राइजेज, श्री सोहित जैन युवा समाजसेवी, श्री अनिल गुप्ता डायरेक्टर युवा रियलटेक एवं श्री बिहारी दास मंगला मैनेजिंग डायरेक्टर मयूर प्लास्टिक इंडस्ट्रीज ने महाराजा अग्रसेन के चित्र पर पुष्प अर्पित किये।

संगठन के मुख्य सलाहकार पवन सिंघल ने मंच संचालन करते हुए उपस्थित सभी गोल्डन स्पॉन्सर, सिल्वर स्पॉन्सर एवं अतिविशिष्ट अतिथियों का श्री देशबन्धु गुप्ता व कोरकमेटी द्वारा मंच पर स्मृति चिन्ह प्रदान कर पटका एवं मोतियों की माला पहनाकर सम्मानित किया गया।

दिल्ली प्रदेश की कोर कमेटी टीम में चेयरमैन श्री महावीर गोयल, अध्यक्ष श्री देशबन्धु गुप्ता, महामंत्री श्री सुभाषचंद गुप्ता, कोषाध्यक्ष श्री अशोक सातरोडिया, मुख्य सलाहकार श्री पवन सिंघल, सलाहकार सीए उमाशंकर गोयल, उपाध्यक्ष श्री अनिल टेकड़ीवाल, उपाध्यक्ष श्री विनय सिंघल, उपाध्यक्ष श्री अशोक बंसल, उपाध्यक्ष श्री ताराचंद तायल, महिला चेयरपर्सन श्रीमती मंजू सिंघल, युवा चेयरमैन श्री रविन्द्र गर्ग एवं महिला कार्यकारी महामंत्री श्रीमती आभा गुप्ता ने संगठन के समारोह में उल्लेखनीय योगदान दिया है साथ ही दिल्ली प्रदेश मेन टीम, महिला टीम, संरक्षक टीम व सभी वार्ड अध्यक्षों की उपस्थिति से कार्यक्रम अत्यंत सफल रहा।

कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहा लक्की ड्रा, जिसमें श्री विपिन गुप्ता जी मैनेजिंग डायरेक्टर वीपी क्रिएशंस की ओर से 2100 रूपये के 10 लक्की विजेताओं को प्रदान किये गए। यह क्षण कार्यक्रम में उत्साह का संचार करने वाला रहा। साथ ही, कार्यक्रम में पहुंचने वाली पहली 100 महिलाओं को श्री प्रमोद गुप्ता जी मैनेजिंग डायरेक्टर वर्ल्डफा ग्रुप की ओर से स्टील के 6 गिलास का सेट उपहारस्वरूप प्रदान किया गया।

विवाह योग्य युवक-युवतियों के लिए विशेष सुविधा के अंतर्गत 4000 बायोडाटा वाली विवाह प्रस्ताव पुस्तक ने अभिभावकों को अत्यंत लाभान्वित किया।

कार्यक्रम से पूर्व जलपान व कार्यक्रम के अंत में सभी के लिए स्वादिष्ट भोजन की उत्तम व्यवस्था की गई थी, जिसका सभी ने आनंद लिया।

संपूर्ण आयोजन सामाजिक एकता, पारस्परिक सहयोग और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बनकर उभरा। आयोजन में पधारे सभी आगंतुकों ने संगठन के कार्यों की सराहना की और भविष्य में ऐसे आयोजनों की निरंतरता की कामना की।

अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन दिल्ली प्रदेश के महामंत्री श्री सुभाष गुप्ता ने इस सफल आयोजन के लिए सभी कार्यकर्ताओं, कलाकारों और सहयोगियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

शुक्रवार, 16 मई 2025

भारत पाक युद्ध के दौरान मीडिया का गैर-जिम्मेदाराना आचरण

बसंत कुमार

कुछ दिन पूर्व पाकिस्तान द्वारा समर्थित भारत में आतंकी हमले के कारण दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण माहौल रहा और कई दिनों चले अघोषित युद्ध के बाद सीजफायर की घोषणा हुई। इस बीच सोशल मीडिया पर एक्टिव लोगों और कुछ स्वयंभू चैनलों और पत्रकारों ने बिना सिर पैर की खबरें फैलाकर देश के वातावरण को इतना तनावपूर्ण बना दिया कि देश के सभी लोग डरे व सहमे हुए थे। दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच सोशल मीडिया पर गलत और भ्रामक सूचनाओं की बाढ़-सी आ गई थी। कुछ चैनलों और सोशल मीडिया वालों ने तो भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान पर कब्जा कर लेने की बात कह दी थी। वहीं कुछ ने आधा पाकिस्तान को तबाह होने की बात कर दी थी। कभी-कभी इनके द्वारा इतनी भ्रामक और झूठी खबरें फैला दी गई की कि देश के आम जन मानस के मन में इतना डर और खौफ फैल गया कि लोग देश में असुरक्षित महसूस करने लगे थे और इस बीच कुछ अनाड़ी लोग मीडिया चैनलों पर विशेषज्ञ के रूप में आकर बेतुकी राय देने लगते हैं जैसे भारतीय फौज अनाड़ियों से भरी है।

विदेश और रक्षा मामलों के जानकारों ने दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव की स्थिति में सोशल मीडिया और कुछ चैनलों पर इस तरह की सामग्री की बाढ़ आने पर चिंता जताते हुए कहा कि नागरिकों को सोशल मीडिया का उपयोग करते समय बहुत ही सावधानी बरतने चाहिए और साथ ही इस सामग्री को लोगों के बीच शेयर करने में भी संयम बरतना चाहिए क्योंकि इस तरह कि जानकारियां भ्रामक होती हैं और सत्य से परे होते हैं। सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं आज घर-घर चल रहे चैनलों की भूमिका भी इस विषय में बहुत विवादित रही है। कुछ चैनल तो सरकार या सत्ता में बैठे राजनीतिक दलों को खुश करने के लिए ऐसा प्रसारित कर देते हैं कि मानों एक पक्ष ने दूसरे पक्ष कि धरती पर कब्जा कर लिया हो। दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव पर कुछ चैनल समाचार देते रहे कि भारतीय सेना कराची तक पहुंची या फिर पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर कर दिया है। आज कि वैश्विक राजनीति में किन्हीं दो देशों के बीच चल रहे युद्ध या तनाव सिर्फ दो देशों के बीच तनाव नहीं होते बल्कि उसका असर पूरे महाद्वीप या पूरे विश्व पर पड़ता है।

कुछ स्वयंभू रक्षा विशेषज्ञ भारत पाकिस्तान युद्ध और फिर सीज़फायर पर अपना ज्ञान बांट रहे हैं जबकि वाट्सअप यूनिवर्सिटी से प्राप्त किया हुआ उनका आधा-अधूरा ज्ञान इन गंभीर विषयों पर विचार व्यक्त करने के लिए काफी नहीं होता। इस विषय में सरकार के उच्च अधिकारियों, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री या फिर प्रधानमंत्री को ही पता होता है कि इस प्रकार की युद्ध की स्थिति के लंबा खींचने पर देश को कितना नुकसान हो सकता है। इसलिए जो लोग भारत पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर के लिए बगैर सोचे-समझे प्रधानमंत्री को कोस रहे हैं उन्हें मामले की गंभीरता को समझना चाहिए और सोशल मीडिया और चैनलों पर इस मामले में अपना विशेष राय देने से बचना चाहिए। उनकी अधकचरे जानकारी वाली कमेंट सैनिकों का मनोबल गिराती हैं।

इस विषय में कुछ लोग जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद नहीं करते, एका एक उन्हें देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी की याद आने लगी हैं जिन्हें सभी लोग आयरन लेडी कहते थे पर ये लोग शायद यह भूल गए है कि बांग्लादेश युद्ध के दौरान जब उन्हें नेता विपक्ष अटल बिहारी वाजपाई ने दुर्गा कहा था यानि 1971 में पूरा विश्व दो महाशक्तियों संयुक राष्ट्र अमेरिका और सोवियत यूनियनों (यूएसएसआर) में बंटा हुआ था और यदि अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा था तो सोवियत यूनियन भारत के साथ खड़ा था। इसी कारण श्रीमति इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति निक्की और उनके सातवें बेड़े की परवाह किए बिना अपनी राह में आगे बढ़ गई। इसके अतिरिक्त उनके सहयोगी के रूप में रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम और भारतीय सेना चट्टान की तरह साथ खड़ी थी और आज की तरह सोशल मीडिया और चैनल सरकार और सेना का मनोबल नहीं गिरा रहे थे जैसा आज के समय चल रहा है।

अपनी रक्षा संबंधी तैयारियां का राजनीतिक लाभ लेने की चेष्टा करना भी आत्मघाती होता है। हमने यह कभी नहीं सुना कि अमेरिका, फ्रांस, चीन, रूस जैसे देश अपनी ख़तरनाक मिसाइल या औजार किस शहर में बनाते हैं न के इन चीजों का प्रचार ही करते हैं क्या कोई बता सकता है इन विकसित देशों के औजार बनाने के कारखानों की लोकेशन क्या है। अटल जी की सरकार के समय परमाणु परीक्षण (बुड्ढा स्माइल) का पता दुनिया को तब पता लगा जब इसका परीक्षण सफल हो गया पर आज के भारत युग में यह नहीं हो पा रहा है, भारत की ब्रह्मोस मिसाइल का निर्माण उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में स्थित कारखाने में हो रहा है। इस बात का प्रचार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ऐसे जोर-शोर से किया जा रहा है जैसी भारतीय सेना के लिए यह मिसाइल उत्तर प्रदेश बना रही है। इससे दुश्मन देशों को इस बात पता नहीं लग जाएगा कि इस मिसाइल का निर्माण कहां हो रहा है और यह सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं है ऐसी भी जानकारी आ रहीं है कि ब्रह्मोस मिसाइल की जानकारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को भेजने के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है। अतः यही अपेक्षा की जानी चाहिए कि सुरक्षा संबंधी तैयारियों का राजनीतिक लाभ न लिया जाए।

भारत की यह परम्परा रही है कि जब भी देश दुश्मन के साथ युद्ध की स्थिति में रहा हो सरकार और विपक्ष ने एक साथ मिलाकर सेना और जनता का हौसला बढ़ाने का काम किया है। सबको याद है कि 1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपाई ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा था और युद्ध के समाप्ति के पश्चात यूएनओ में भारत का पक्ष रखने के लिए नेता विपक्ष अटल बिहारी वाजपाई जी को भेजा गया था। आज पांच दशक बाद भी पूरे विपक्ष ने सरकार के साथ खड़े रहकर भारत की एकता और अखंडता दिखाई पर मीडिया के लोगों ने भारत-पाक युद्ध के बारे में झूठी व भ्रामक खबरें फैलाकर देश की जनता के मन में झूठा भ्रम फैलाने का काम किया। अब समय आ गया है कि इन इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया पर शिकंजा कसा जाए।

(लेखक एक पहल एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव और भारत सरकार के पूर्व उपसचिव है।)

भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई का दुनिया के सामने प्रतिमान पेश किया

 प्रधानमंत्री का संदेश आतंकवाद के विरुद्ध मानक 

अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो टूक , प्रखर और समयानुकूल स्वाभाविक प्रखर आक्रामक तेवर और घोषणाओं के साथ भाव भंगिमाओं को देखने के बाद भारत के अंदर और पूरे विश्व में जिन्हें भी सीमा पार आतंकवाद, जम्मू कश्मीर और भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर कोई भ्रम रहा होगा वह दूर हो जाना चाहिए। अगर दूर नहीं होता है तो देशों की अपनी कुटिल नीति हो सकती है और भारत के अंदर मानसिक ग्रंथि। वास्तव में 10 मई को टकराव रुकने की सेना की दोनों महिला अधिकारियों तथा विदेश सचिव के वक्तव्य के बाद कम से कम भारत के अंदर आश्वस्ति होनी चाहिए थी। उसके बाद लगातार दो दिनों तक सेना के तीनों अंगों के तीन शीर्ष अधिकारियों ने जिस तरह बिंदुवार सुस्पष्ट और मुखर भाषा में सैन्य रणनीति और स्टैंड को सामने रखा उनसे साफ हो गया था कि ऑपरेशन सिंदूर के तात्कालिक लक्ष्य और उद्देश्य पूरे हो गए हैं किंतु पाकिस्तान के विरुद्ध केवल सैन्य कार्रवाई छोड़कर संपूर्ण रणनीति जारी है। प्रधानमंत्री अगर घोषणा कर रहे हैं कि टेरर के साथ टॉक, ट्रेड यानी आतंकवाद के साथ बातचीत और व्यापार नहीं चल सकता है, पानी और खून एक साथ नहीं बह सकता है और उसके बाद अगर देश के अंदर कोई सोचता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप या वहां के विदेश मंत्री के पोस्ट के आधार पर भारत की नीति चल रही है तो वैसे लोगों के लिए क्या शब्द प्रयोग किया जाए यह पाठक तय कर लें।

प्रधानमंत्री ने कहीं भी अपने संबोधन में सीजफायर यानी युद्धविराम शब्द का प्रयोग नहीं किया और इसके पूर्व सेना के प्रवक्ताओं ने भी नहीं किया। विदेश सचिव के वक्तव्य तब में भी यह शब्द नहीं था। प्रधानमंत्री के वक्तव्य से साफ है कि आतंकवाद और सैन्य दुस्साहस रोकने की पाकिस्तान द्वारा दी गई गारंटी के आधार पर ही ऑपरेशन सिंदूर और सेना का प्रतिप्रहार रुका तथा इस कसौटी पर उसके आचरण को देखकर ही भविष्य तय होगा। वास्तव में प्रधानमंत्री के वक्तव्य में मूल पांच बातें स्पष्ट थी। पहला, पहलगाम हमले के बाद सीमा पार आतंकवाद और पाकिस्तान के संदर्भ में हमारा स्टैंड और पूरी सैन्य रणनीति कायम है। दूसरा,  पाकिस्तान के हमले के लगातार विफल होने और उनके सैन्य अड्डों के तवाह होने के बाद शांति की पहल उन्होंने की और भारत अपनी शर्तों पर इसे स्वीकार किया । यह देश के अंदर बनाए गए झूठे नैरेटिव का उत्तर था जो सेना के प्रवक्ताओं द्वारा पत्रकार वार्ताओं में पहले भी दिया जा चुका था। आत्महीनता की मानस वाले समूह इसे स्वीकारने की जगह अपनी ही  नीति को कटघरे में खड़ा करने लगे ।अगर आतंकवाद हुआ तो कार्रवाई केवल आतंकवादियों और उनके अड्डों के विरुद्ध ही नहीं होगी इसे पाकिस्तानी सत्ता की भूमिका मानकर होगी। कोई भी समझ सकता है कि यह सीधी सीधी चेतावनी है । तीसरा, अमेरिका सहित दूसरे देशों के लिए संदेश था कि यह संभव नहीं की आतंकवादी देश न्यूक्लियर ब्लैकमेल के आधार पर शांति की बात करें और हम स्वीकार कर लें। यानी मार पड़ने से डरा पाकिस्तान किसी देश के पास यह कहते हुए जाता है कि हम न्यूक्लियर अस्त्र का प्रयोग करेंगे और उसके आधार पर  कार्रवाई रोकने या समझौता करने को कहा जाएगा तो स्वीकार नहीं होगा। ध्यान रखिए, भारत ने जिन वायु सेना अड्डों पर पाकिस्तान में कार्रवाई की उनमें माना जाता है कि उसके तीन न्यूक्लियर इंस्टॉलेशन के पास थे और वह घबरा गया कि अगर भारत यहां पहुंच सकता है तो आगे हमारे लिए इसका भी उपयोग करना संभव नहीं होगा। चौथा, अगर पाकिस्तान से कोई बातचीत होगी तो केवल पाक अधिकृत कश्मीर पर और आतंकवाद पर। यह भारत के अंदर विरोधियों और विशेषकर ट्रंप प्रशासन को उत्तर था जो जम्मू कश्मीर समस्या को सुलझाने और तटस्थ स्थान पर बातचीत करने का दंभ भर रहे थे। मोदी सरकार का यह स्टैंड पहले से क्लियर था। और पांचवां, हमारे स्वदेशी निर्मित विषयों और सैनिक उपकरणों ने जैसी सफलता प्राप्त की है उसके बाद कोई देश यह न सोचे कि युद्ध के दौरान हमको उनकी अपरिहार्यता रहेगी। 

गहराई से देखें अमेरिका सहित  पश्चिमी देशों को संदेश के साथ ही यह भारत की रक्षा सामग्रियों के अंतरराष्ट्रीय बाजार की एक बड़ी ब्रांडिंग थी। यानी हम भी प्रतिस्पर्धा में उतर गये हैं। आप भले किन्ही कारण से प्रधानमंत्री मोदी का सार्वजनिक विरोध करिए लेकिन किसी घटना को वे केवल तत्कालिकता में न देखकर उसके साथ दूरगामी और भविष्य के भारत के वैश्विक उद्देश्यों के आधार पर समग्र विचार कर सामने रखते हैं। देखा जाए तो भारत ने स्वयं को ऑपरेशन सिंदूर तथा उसके बाद प्रधानमंत्री के वक्तव्य से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नेतृत्वकारी भूमिका वाले देश के रूप में प्रस्तुत किया है। अमेरिका की परेशानी यह भी हो गई कि अगर भारत इस तरह साहसिक सैन्य कार्रवाई करता रहा तो दुनिया के नेता का उसका स्थान खतरे में होगा और बड़ी संख्या में देश उसके साथ खड़े हो जाएंगे। तभी डोनाल्ड ट्रंप की भाषा भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए समान थी। उन्होंने दोनों को महान देश बताया तथा दोनों के साथ सतत् व्यापार करने की भावना व्यक्त की। अचानक चीन के साथ व्यापार टकराव दूर करने के पीछे भी यही रणनीति हो सकती है।

प्रधानमंत्री को सारी बातें ध्यान में रही होगी और उसी अनुसार 22 अप्रैल के पहलगाम हमले के बाद पूरी तात्कालिक और दूरगामी सैन्य रणनीति , कूटनीति , अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीति और राजनीति निश्चित हुई है। प्रधानमंत्री ने अमेरिका और यूरोप को भी यह कहते हुए आईना दिखा दिया कि आपके यहां भी 11 सितंबर, 2001 के और ब्रिटेन में ट्यूब के हमले के पीछे भी यही बहावलपुर के जैश ए मोहम्मद और मुरीदके के लश्कर ए तैयबा केंद्र की भूमिका थी। यह सच है कि तब वैश्विक आतंकवाद के केंद्र में ये स्थल थे। ओसामा बिन लादेन खुऋएआम इन स्थानों में तकरीरें - बैठकें करता था,  इनसे सीधे रिश्ते थे और अलकायदा एवं उसके द्वारा स्थापित इंटरनेशनल इस्लामिक फ्रंट के साथ सारे संगठन संबंद्ध हो गए थे। अगर प्रधानमंत्री कहते हैं कि उन्होंने हमारी माताओं - बहनों की मांगों के सिंदूर उजड़े तो हमने उनके अड्डों को ही उजाड़ दिया। साथ यह भी कि ऑपरेशन सिंदूर एक अखंड प्रतिज्ञा है। नहीं लगता कि इस समय विश्व का कोई भी नेता इतने खतरनाक पड़ोसी , जिसके पास न्यूक्लियर अस्त्रागार हो और मजहबी उन्माद के आधार पर देश के बड़े वर्ग को मरने- मारने पर उतारू करने की विचारधारा, इस प्रकार के विचार और तेवर सामने रख सकता है । अब न केवल आतंकवादियों बल्कि उनको प्रायोजित करने वाले पाकिस्तान की सेना और संपूर्ण सत्ता को इस चेतावनी को  गंभीरता से लेना होगा कि उन्हें आतंकवाद का इंफ्रास्ट्रक्चर ध्वस्त करना ही होगा। नहीं करेंगे तो फिर ऑपरेशन सिंदूर की विस्तारित प्रचंड हमले के लिए तैयार रहें और वह निर्णायक होगा। 

वास्तव में ऑपरेशन सिंदूर सीमा पार ही नहीं वैश्विक आतंकवाद से संघर्ष के लिए भी विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर एक विशिष्ट मानक बना है। यह बताता है कि नेतृत्व के पास इसके पीछे की संपूर्ण सोच और योजनाओं की पूरी समझ हो, प्रतिकार के लिए दीर्घकालिक सोच और रणनीति तथा उसे क्रियान्वित करने की संकल्पबद्धता और दृढ़ता हो तो पाकिस्तान जैसे दुष्ट देश को भी सबक सिखाया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि आतंकवाद से पीड़ित विश्व शांति की बजाय इस रणनीति को अपनायें तथा भयभीत छोटे देश भारत के साथ आएं। कुल मिलाकर यहां से भारत की  दक्षिण एशिया सहित संपूर्ण विश्व के आतंकवाद तथा कश्मीर जैसे मुद्दों के संदर्भ में विजय और समाधान के आत्मविश्वास से भरी निर्भीक, दूरगामी और तथा कमजोर देशों के लिए नेतृत्वकारी भूमिका सामने आई है। इस तरह ऑपरेशन सिंदूर के साथ भारत एक ऐसे नए दौर में प्रवेश का संदेश दे चुका है जहां उसकी स्वयं की सुरक्षा, आत्मनिर्भरता तथा वैश्विक शांति की उसकी अपनी दृष्टि सर्वोपरि है और किसी देश का इसके परे सुझाव या साथ उसे स्वीकार नहीं। क्या देश में विरोधी भी इस युगांतरकारी सच को स्वीकार करेंगे?


मंगलवार, 13 मई 2025

सर्वोदय बाल विद्यालय बुलन्द मस्जिद स्कूल का 12वीं का 95.12% और 10वीं का 95.45% रहा रिजल्ट


  • 12वीं में मो. बिलाल (83.6%) प्रथम, फैजान (78.4%) द्वितीय, कृष्णा (73.8%) तृतीय स्थान पर रहे
  • 10वीं में मोहम्मद मोहित (73.4%) प्रथम, फरहान (65.8%) द्वितीय, मो. कसन अली (61.2%) तृतीय स्थान पर रहे
  • सभी विषयों में बच्चों ने अच्छे अंक प्राप्त कर स्कूल, अध्यापकों व मां-बाप का नाम रोशन किया

नई दिल्ली। सीबीएसई द्वारा घोषित 10वीं और 12वीं के वार्षिक परीक्षा परिणाम में सर्वोदय बाल विद्यालय, बुलन्द मस्जिद स्कूल के विद्यार्थियों ने शानदार प्रदर्शन किया है। इस बार स्कूल का 12वीं कक्षा का परीक्षा परिणाम 95.12% और 10वीं कक्षा का परीक्षा परिणाम 95.45%  परीक्षा परिणाम प्रतिशत रहा। 

इस वर्ष 12वीं में मो. बिलाल (83.6%) प्रथम, फैजान (78.4%) द्वितीय, कृष्णा (73.8%) तृतीय स्थान पर रहे वहीं मोहम्मद मोहित (73.4%) प्रथम, फरहान (65.8%) द्वितीय, मो. कसन अली (61.2%) तृतीय स्थान पर रहे।

इस परीक्षा परिणाम का श्रेय यहां के प्रधानाचार्य बलराज सिंह, उनके स्टाफ (अध्यापकों) व स्कूल की एसएमसी को जाता है जिन्होंने कम सुविधा में भी स्कूल के रिजल्ट में काफी सुधार किया है, जो लगातार जारी है।

इस पर स्कूल के प्रधानाचार्य बलराज सिंह ने सफल विद्यार्थियों, उनके अभिभावकों और शिक्षकों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह सफलता विद्यार्थियों की कड़ी मेहनत, लगन और शिक्षकों के मार्गदर्शन का परिणाम है। उन्होंने कहा कि विद्यालय निरंतर छात्रों को उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है और भविष्य में भी इसी तरह प्रयास करता रहेगा। प्रधानाचार्य ने सभी सफल विद्यार्थियों को उनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दीं और कहा कि यह सफलता अन्य छात्रों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी।

गुरुवार, 8 मई 2025

भारत का अद्भुत पराक्रम

अवधेश कुमार 

सीमा पार आतंकवाद के विरुद्ध भारत के अद्भुत पराक्रम को पूरे विश्व ने देखा। पाकिस्तान को भी उम्मीद नहीं होगी कि भारत इतनी तैयारी के साथ आधी रात के बाद न केवल पाक अधिकृत कश्मीर बल्कि पाक की अन्य सीमाओं में  एक साथ अनेक जगहों पर सटीक मिसाइल हमले करेगा। उरी में सैनिकों पर आतंकवादी हमला में भारत ने 11वें दिन पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की। पुलवामा सीआरपीएफ शिविर पर हमले के 13वें दिन बालाकोट के आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक यानी हवाई बमबारी की गई। पहलगाम हमले के 15वें दिन भारत ने मिसाइल हमला करके अब तक के सबसे बड़े और साहसी करवाई को अंजाम दिया  है।  जैसा कर्नल सोफिया और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने बताया कि रात 1:05 से 1:30 पर ऑपरेशन सिंदूर के नाम से भारत में 9 ठिकानों पर हमला किया जिनमें पांच पाक अधिकृत कश्मीर और चार पाकिस्तान के अंदर हैं। इस बार भारत ने इसके साथ 18 आधिकारिक तस्वीर भी जारी कर दी जिसे किसी के पास प्रश्न उठाने का कोई कारण नहीं रह गया। वैसे भी जब जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर बयान जारी कर रो रहा है कि उसके 10 लोग मारे गए और वह क्यों नहीं मर गया तो फिर संदेह का कारण नहीं है। 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक को तो छोड़िए  22 फरवरी 2019 के बालाकोट हवाई बमबारी पर भी हमारे देश के नेताओं ने कटाक्ष किया , उसका उपहास उड़ाया। इस बार सबके मुंह बंद है क्योंकि पाकिस्तान ने स्वयं स्वीकार किया है। पाकिस्तान के इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस के डॉयरेक्टर लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने सबसे पहले कहा कि भारत ने 24 मिसाइलें दागी हैं। 

 वास्तव में जब प्रधानमंत्री ने मधुबनी की सभा से कहा कि इस बार की कार्रवाई दुश्मन की कल्पना से परे होगा तथा उनको मिट्टी में मिलाने का वक्त आ गया है तो साफ था कि पूर्व की दो कार्रवाइयों से ज्यादा बड़ी, विस्तृत और आतंकवाद की दृष्टि से प्रभावी एवं निर्णायक कार्रवाई हो सकती है। जैसा कर्नल सोफिया और  विंग कमांडर व्योमिका ने बताया भारत ने अपनी रक्षा आत्मरक्षा के तहत कार्रवाई की है और इस बात का ध्यान रखा गया कि आम नागरिकों और सैनिक ठिकानों को हमारी मिसाइलें स्पर्श न करें। उन स्थानों को देखिए जहां-जहां मिसाइल हमले हुए तब पता चल जाएगा कि कितनी बड़ी कार्रवाई थी। बताया गया कि जिन नौ ठिकानों पर हमले किए गए, उसके पीछे भारतीय सेना का मकसद क्या था। दोनों महिला जवानों ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए वीभत्स आतंकी हमले के शिकार नागरिकों और उनके परिवारों को न्याय देने के लिए किया गया। जिन नौ ठिकानों की पहचान कर बर्बाद किया गया उनमें में आतंकियों को प्रशिक्षित किया जाता था। ये आतंकियों के लॉन्च पैड थे। एक, नियंत्रण रेखा से 30 किलोमीटर दूर‌ मुजफ्फराबाद का सवाईनाला कैंप लश्कर का ट्रेनिंग सेंटर था। सोनमर्ग, गुलमर्ग और पहलगाम में आतंकी हमला करने वाले आतंकवादियों ने यहीं प्रशिक्षण लिया था। दो, सैयदना बिलाल कैंप (पीओजेके) जैश-ए-मोहम्मद का ठिकाना है जहां हथियारों और विस्फोटकों को रखा जाता था,  जंगल में जिंदा रहने का प्रशिक्षण मिलता था। तीन, कोटली गुलपुर भी संगठन- लश्कर-ए-तैय्यबा का अड्डा था। यहां के आतंकी जम्मू-कश्मीर के राजौरी-पुंछ में सक्रिय थे। चौथा निशाना नियंत्रण रेखा से 9 किलोमीटर दूर भींबर का बरनाला कैंप था जहां हथियारों की हैंडलिंग, बारुदी सुरंग आईईडी और जंगल  में बचे रहने का प्रशिक्षण मिल जाता था।पांचवां मिसाइल हमला नियंत्रण रेखा से 13 किमी दूरअब्बास कैंप कोटली पर किया गया जहां लश्कर के आतंकवादी आत्मघाती तैयार किए जाते थे और एक बार में यहां 15 को प्रशिक्षण देने की क्षमता थी। पाक अधिकृत कश्मीर के इन ठिकानों को नष्ट करने के बाद मिसाइल पाकिस्तानी सीमा के भीतर चल रहे आतंकी ठिकानों पर गरजे। एक,  सबसे पहले अंतरराष्ट्रीय सीमा से 6 किमी दूर और जम्मू-कश्मीर के सांबा-कठुआ के सामने सरजल कैंप सियालकोट पर हमला किया। दूसरे नंबर पर अंतरराष्ट्रीय सीमा से 12-18 किमी दूर सियालकोट का महमूना जोया कैंप  था जो हिजबुल का बड़ा अड्डा था। यहां से कठुआ में आतंकवादी गतिविधियां चलतीं थीं। पठानकोट वायु सेवा अड्डे हमला का का पूरा षड्यंत्र उसे अंजाम देने की योजना यही बनी थी।तीसरे नंबर पर अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 18-25 किमी दूर हाफिज सईद के मुरीदके में मरकज-तैयबा था जहां 2008 के मुंबई आतंकी हमले के आतंकवादी प्रशिक्षित हुए। कसाब और डेविड हेर्डली को यही प्रशिक्षित किया गया था । और सबसे अंत में अंतरराष्ट्रीय सीमासे करीब 100 किलोमीटर दूर बहावलपुर में मरकज सुभानअल्लाह पर हमला किया। यह  जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय है जो आतंकवादियों का व्यापक सुरक्षित केंद्र है जहां भर्ती से लेकर वैचारिक हथियारों के प्रशिक्षण और  उन्हें सीमा पार करने सहित सारी व्यवस्थाएं थी। मसूद अजहर के परिवार के 10 लोग भी मिसाइल के प्यार हो गए। भारत को बर्बाद करने की कसमें खाने वाले मसूद आज  फूट-फूट कर रोए तो कल्पना कर सकते हैं कि हमला उसके सारे सपनों को एकबारगी ध्वस्त करने वाला साबित हुआ है। इसमें  मसूद अजहर की बड़ी बहन और उसके पति, भांजे और उसकी पत्नी और अन्य भतीजों और परिवार के पांच बच्चों के साथ  उसके करीबी सहयोगी और उसकी मां और दो अन्य करीबी सहयोगियों की भी मौत हुई है। इसमें आतंकवादी कमांडर इकबाल करी के साथ हमले में 10 अन्य आतंकी भी मारे गए हैं। बिलाल आतंकी शिविर के प्रमुख याकूब मुगल की भी मौत हुई है। बहावलपुर के बाहरी इलाके में कराची-तोरखाम राजमार्ग पर 15 एकड़ में फैले मरकज सुभान अल्लाह मसूद अजहर का किला था जो 2019 में पुलवामा आतंकवादी हमले सहित अनेक हमले का केंद्र रहा है। मसूद अजहर का घर मरकज सुभान अल्लाह में ही है। 

इस तरह देखें तो भारतीय सेना ने केवल पहलगाम हमले के दोषियों को ही सजा नहीं दी बल्कि पिछले लंबे समय से आतंकवादी हमला करने के मुख्य केंद्रों और भविष्य के षड्यंत्र रचने वालों केन्द्रों को भी तबाह कर दिया। वास्तव में एक-एक हमले पर कार्रवाई से भारत पर आतंकवादी हमले का खतरा टल ही नहीं सकता क्योंकि आप जितने मारेंगे उतने आतंकवादी यै केंद्र पैदा कर लेंगे। तो पहला रास्ता यही था कि उन सारे चिन्हित केन्द्रों को नष्ट कर दिया जाए। उनके लिए भविष्य में भी गतिविधियां आसान नहीं होगी क्योंकि अब वहां भारत सहित विश्व भर की दृष्टि होगी। क्या आप सोच सकते हैं कि मुरीदके जैसा अड्डा लश्कर या तैय्यबा या हाफिज जल्दी निर्माण कर सकता है? क्या मसूद अजहर की अब हैसियत मार्केट सुभान के पुनर्निर्माण की है? हिजबुल मुजाहिदीन को हम आप भूल गए थे किंतु सुरक्षा एजेंसियां नहीं भूली और उनको भी नहीं छोड़ा गया। निश्चय ही प्रधानमंत्री जब तीन-तीन बार तीनों सेना के प्रमुखों और दो बार चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ से मिलते हैं तथा गृह मंत्री अमित शाह लगातार बैठकें  कर रहे हैं तो उसकी परिणति इतनी ही बड़ी होनी थी जिनमें लंबे समय के लिए भारत सीमा पार के बड़े आतंकवादी खतरों से मुक्त हो जाए। पहले सीमा में घुसकर धरती पर सामान्य सर्जिकल स्ट्राइक,  फिर हवाई बमबारी और अब मिसाइल दाग कर भारत ने पाकिस्तान और दुनिया को बता दिया है कि सीमा पार आतंकवाद के विरुद्ध वह हर तरह के अस्त्रों का उनकी पूरे प्रभाविता से उपयोग करने का मन बना चुका है। आतंकवाद के विरुद्ध सबसे पहले इजरायल और अमेरिका ने मिसाइल दागने की शुरुआत की और बाद में कुछ यूरोपीय देशों ने भी ऐसा किया । अब भारत भी उस श्रेणी में शामिल हो गया है । इनमें गुणात्मक अंतर यह है कि अमेरिका या यूरोप को किसी पड़ोसी देश का सामना नहीं करना था जहां से उसे न्यूक्लियर हथियार वाले से जवाबी कार्रवाई का खतरा हो। पाकिस्तान के विरुद्ध भारत की कार्रवाई की स्थिति इसके विपरीत है और इस नाते यह बहुत बड़े साहस का किम है । भारत को हजार घाव देने की कसमें खाने वाले पाकिस्तान को कभी इस तरह का सबक मिला नहीं और बालाकोट से उसने सीखने की कोशिश नहीं की। जरा सोचिए , जनरल आसिफ मुनीर की इस समय क्या दशा होगी? शहनवाज शरीफ सरकार की अथॉरिटी आज की स्थिति में क्या है यह पाकिस्तानियों को भी नहीं समझ आ र आ रहा है। मुनीर इस्लाम और कलमा के नाम पर पाकिस्तान को जम्मू कश्मीर  के गले की नस बताते हैं और उसके लिए आतंकवाद का इस्तेमाल करते हैं‌ तो आगे उनको इससे बड़ी कार्रवाई कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। जब भारत का राजनीतिक नेतृत्व सीमा पार आतंकवाद को जड़मूल से नष्ट करने का संकल्प ले चुका हो तो सेंड बालवीर उसके अनुरूप उत्साह के साथ तैयारी करते हैं । आगे पाकिस्तान ने नहीं माना तो उसके गर्दन की नस दबने का भी समय आ जाएगा।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -9811027208


शुक्रवार, 2 मई 2025

खालिदा शाह डॉ. फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ मोर्चा खोलेंगी

आर सी गंजू 

जम्मू कश्मीर में राजनीतिक स्थिति के शोरगुल में, आवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस की अध्यक्ष और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की सबसे बड़ी संतान बेगम खालिदा शाह ने आखिरकार अपने भाई, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। स्थानीय पॉडकास्ट एशियन मेल के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, उन्होंने खुले तौर पर कहा, "मैं अपने भाई फारूक अब्दुल्ला से बात नहीं करती।" कश्मीर के राजनीतिक इतिहास की चश्मदीद गवाह के रूप में, बेगम खालिदा ने 1947 से लेकर वर्तमान स्थिति तक के कश्मीर के इतिहास का व्यवस्थित रूप से वर्णन किया। 

90 साल की उम्र में, उन्हें कश्मीर का इतिहास अपनी उंगलियों पर याद है और वे गोपनीय तरीके से बात करती हैं। शेख की मौत के बाद, खालिदा एक राजनेता बन गईं जब उनके छोटे भाई फारूक अब्दुल्ला को नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री नामित किया गया, और खालिदा के पति और शेख के सबसे लंबे समय तक राजनीतिक सहयोगी जी एम शाह को दरकिनार कर दिया गया। गुलाम मोहम्मद द्वारा फारूक की सरकार को गिराने से छह सप्ताह पहले, खालिदा ने मई 1983 में नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक प्रतिनिधि सत्र का नेतृत्व किया, जिसने फारूक को पार्टी की मूल सदस्यता से निष्कासित कर दिया और खालिदा को इसका नया अध्यक्ष चुना। इस प्रकार एनसी कानूनी और राजनीतिक आधार पर विभाजित हो गया और एनसी (खालिदा) अस्तित्व में आई। 

एक साक्षात्कार में, उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि गुप्कर घोषणा (पीएजीडी) के लिए पीपुल्स अलायंस का गठन करते समय पहले दिन से ही उनके बेटे मुजफ्फर शाह सीनियर अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एएनसी) के उपाध्यक्ष लेकिन विधानसभा चुनाव के समय उनके बेटे की उम्मीदवारी पर विचार नहीं किया गया, जबकि पैंथर पार्टी और सीपीएम उम्मीदवार यूसुफ तरगामी को पीएजीडी के तहत समायोजित किया गया। इसके परिणामस्वरूप मुजफ्फर शाह ने अपने उम्मीदवारों को एएनसी के बैनर तले खड़ा कर दिया, जब उनकी पार्टी के पास प्रचार के लिए कम समय बचा था। पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य और जेकेयूटी को कम करने के बाद के राजनीतिक हालात की तुलना करते हुए उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य को वर्तमान स्थिति में लाने के लिए कश्मीर की जनता और नेतृत्व जिम्मेदार है। उनका मानना है कि अगर सभी कश्मीरी अपनी पार्टी और वैचारिक सीमाओं को पार करके एक साथ आ जाएं तो वे कश्मीर को बचा सकते हैं। वह 1983 में अपने पिता की मृत्यु के बाद राजनीति में उतरीं, जब उनके भाई डॉ फारूक अब्दुल्ला के साथ राजनीतिक मतभेदों के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस में विभाजन हो रहा था शेख परिवार की सबसे बड़ी संतान खालिदा शाह अपने पिता स्वर्गीय शेख अब्दुल्ला की आंखों का तारा थीं।

1948 में जब उनकी शादी जी.एम. शाह से हुई थी, तब उनकी उम्र बमुश्किल 13 साल थी, लेकिन वे कश्मीर की राजनीति से लगातार जुड़ी रहीं। 1953 में जब उनके पिता और पति दोनों कई सालों के लिए जेल में बंद थे, तब वे अपने पिता के पार्टी कार्यकर्ताओं और उनके परिवार के सदस्यों की देखभाल के लिए जेलों में जाती थीं। वे नेशनल कॉन्फ्रेंस के पीछे चट्टान की तरह खड़ी रहीं और जनता और कार्यकर्ताओं का सम्मान अर्जित किया। उस समय उनके भाई डॉ. फारूक अब्दुल्ला लंदन में थे। ` उन्होंने कहा कि उनके पिता ने कभी उन पर राजनीति में शामिल होने के लिए दबाव नहीं डाला। लेकिन जब उनके पिता और पति जेल में थे, तब वे मेरी मां के साथ राजनीति में पूरी तरह से शामिल थीं।

दरअसल, 1983 में उन पर अलग-अलग तरफ से जबरदस्त दबाव था कि अगर वे राजनीति में नहीं आईं तो नेशनल कॉन्फ्रेंस अपनी छवि खो देगी। वे असली नेशनल कॉन्फ्रेंस की विरासत को बचाने के लिए राजनीति में आईं। क्योंकि उस समय नेशनल कॉन्फ्रेंस को खत्म करने की योजना बनाई जा रही थी। ऐसा महसूस किया गया कि उनके (खालिदा) नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस असली नेशनल कॉन्फ्रेंस की विचारधारा को बचा सकती है। इस तरह सरकार बनी। उनके मुताबिक वे जनता का ख्याल रखती थीं, जबकि उनके पति जीएम शाह मुख्यमंत्री के तौर पर प्रशासन चलाते थे। आज 90 साल की खालिदा शाह भारी मन से कहती हैं कि देश के संवेदनशील राज्य पर थोपे गए शासकों ने कश्मीरी समुदाय के साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया है। लेकिन शासक यह भूल गए हैं कि कश्मीरी समुदाय पर कठोर हाथों से शासन संभव नहीं है, क्योंकि समुदाय को हर हाल में अपना सिर ऊंचा रखने की चिंता ज्यादा है। 

उन्होंने बताया कि कश्मीरी मूल रूप से शांतिप्रिय लोग हैं। देश और बाहर कुछ निहित स्वार्थी तत्व कभी नहीं चाहते थे कि कश्मीर फले-फूले। कश्मीर दिन-ब-दिन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध होता जा रहा था। यह कुछ दुष्ट ताकतों की बर्दाश्त से बाहर हो गया और उन्होंने उपद्रव को बढ़ावा दिया। कश्मीर आज वाकई बहुत बुरे हालात में है। दुष्ट ताकतें राज्य को बांटना चाहती हैं, परिवार, समाज और समुदायों को बांटना चाहती हैं। यह एक बहुत ही सोची-समझी साजिश है। वे एक बार सफल हुए, लेकिन बार-बार सफल नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि कश्मीरियों पर भरोसा किया जाना चाहिए क्योंकि वे भारतीय क्षेत्र में शामिल हो गए हैं। उन्हें यह कहते हुए दुख होता है कि कश्मीरियों पर कभी भरोसा नहीं किया गया। अगर कश्मीरियों पर भरोसा किया जाए तो चीजें अपने आप बदल जाएंगी। उन्होंने कहा कि कश्मीर में समस्याओं के पीछे अविश्वास ही मुख्य कारण है।

गुरुवार, 1 मई 2025

पहलगाम के आगे

अवधेश कुमार 

पहलगाम हमले के बाद संपूर्ण देश का सामूहिक मानस ्वैसी कार्रवाई , प्रतिरोध और प्रतिशोध का है जिससे भारत को दोबारा ऐसी भयानक घटना का सामना न करना पड़े। यह स्वाभाविक है। एक समय जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं आम थी और तब भी लोगों के अंदर क्रोध पैदा होता था लेकिन आम मानस यह था कि इसे रोकना अभी संभव नहीं। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के बाद माहौल बदला,  आतंकवादी घटनाओं में व्यापक कमी आई है, कश्मीर घाटी भी धीरे-धीरे आर्थिक- सामाजिक -सांस्कृतिक -शैक्षणिक गतिविधियों में देश के सामान्य राज्य की तरह काफी हद तक पटरी पर लौटा है। ऐसे माहौल में हिंदू होने के कारण 26 हिंदुओं तथा एक गैर मुस्लिम का उनका विरोध करने के कारण हत्या के बाद उबाल स्वाभाविक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने भी आंतरिक और सीमा पार आतंकवाद के समूल नाश का सक्रिय संकल्प दिखाया है। मोदी सरकार ने 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक तथा 2018 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट हवाई बमबारी जैसी भारत की दृष्टि से अकल्पनीय माने जाने वाली कार्रवाई करके देश का विश्वास प्राप्त किया है। प्रधानमंत्री ने 24 अप्रैल को  बिहार के मधुबनी की आमसभा में केवल आतंकवादी के साथ उने सरपरस्तों के विरुद्ध ऐसी कार्रवाई की घोषणा की जिसकी कल्पना नहीं की गई होगी। बिहार की भूमि पर उन्होंने कुछ मिनट अंग्रेजी में भाषण दिया जो विश्व के लिए संदेश था कि आतंकवाद के विरुद्ध भारत कमर कस चुका है और कार्रवाई करेगा। इस भाषण से दुनिया को स्पष्ट संदेश दिया गया और इसका असर भी है । 

कोई देश सार्वजनिक संकल्प दिखाते हुए समानांतर कदम उठाता है और उसकी पृष्ठभूमि आतंकवाद के विरुद्ध शून्य सहिष्चुता की हो चुकी है तो विश्व समुदाय को भी सोच और व्यवहार को उसके अनुरूप बदलना पड़ता है। पाकिस्तान के साथ एक देश नहीं खड़ा है। वे मुस्लिम देश , जो सामान्यतः जम्मू कश्मीर पर इस्लामिक सम्मेलन संगठन या ओआईसी में उसका साथ देते थे, हिम्मत नहीं दिखा रहे। अमेरिकी विदेश विभाग की ब्रीफिंग में एक पाकिस्तानी पत्रकार के प्रश्न की विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हिकारत के भाव से उपेक्षा की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि वे इस पर भारत के साथ हैं। सच है कि काश पटेल के नेतृत्व में अमेरिका की एफबीआई तथा तुलसी गवार्ड के निर्देशन में नेशनल इंटेलिजेंस आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में भारत के साथ खड़ा है। यूरोपीय देशो ने स्पष्ट रूप से भारत का समर्थन किया है। पाकिस्तान ने यद्यपि इस्लामाबाद में 26 देश के राजनयिकों को बुलाकर अपनी दृष्टि से ब्रीफिंग की किंतु कोई उससे प्रभावित है ऐसा लगता नहीं। प्रश्न है कि भारत क्या कर सकता है, क्या करेगा और कैसी संभावनाएं हैं? 

घटना के दूसरे दिन गृह मंत्री अमित शाह के जम्मू कश्मीर से लौटने के बाद मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति ने तत्काल प्रभाव से पाकिस्तानियों को दिये हर तरह का वीजा रद्द करने, उन्हें देश छोड़ने, पाकिस्तानी उच्चायोग से रक्षा और सैनिक विभाग के अपने समकक्षों को इस्लामाबाद से बुलाने तथा संख्या कम करने का अदम उठाया। इसके साथ सिंधु जल संधि स्थगित करने का अभूतपूर्व कदम उठाया। पाकिस्तान ने इसकी प्रतिक्रिया में सीनेट में प्रस्ताव पारित किया तथा आतंकवादी घटना से स्वयं को अलग करते हुए भारत पर ही बदनाम करने का आरोप लगाया। पाकिस्तान का वक्तव्य है कि सिंधु जल समझौते को रद्द करना युद्ध जैसा कदम है। उसने 1972 के शिमला समझौता को समाप्त करने की धमकी दी। पाकिस्तान की दुर्दशा देखिए कि रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने स्काई न्यूज़ को दिए साक्षात्कार में आतंकी संगठनों के वित्त पोषण , प्रशिक्षण और समर्थन के इतिहास संबंधी प्रश्न पर स्वीकार किया कि हम अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों के लिए ऐसा करते रहे हैं और हमें इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। हम अगर सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान युद्ध या 9/11 में साथ नहीं होते तो पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड साफ रहता। यह भी वास्तविक सच को इस मायने में झूठलाना है क्योंकि स्थिति का लाभ उठाते हुए जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पाकिस्तान ने अपनी ओर से प्रायोजित किया और उसका पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जो एक हद तक अभी भी कायम  है। विश्व के प्रमुख देशों की सूचना में ये सारी बातें हैं। इसलिए भारत ने जब 2018 में हवाई बमबाड़ी की तो एक भी देश ने उसका विरोध नहीं किया। उस समय भी डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के और व्लादिमीर पुतिन रूस के राष्ट्रपति थे। 

देश में पाकिस्तान के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई या युद्ध का माहौल बना हुआ है। सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हवाई बमबारी किया जा चुका है तथा इसके प्रभाव भी पड़े। स्वाभाविक ही इससे बड़ी कार्रवाई की स्थिति सामने है। तो आगे क्या? जम्मू कश्मीर के लिए आंतरिक और बाह्य दोनों स्तरों पर कार्रवाई की आवश्यकता थी जो हो रही है। भारत ने आंतरिक रूप से पहलगाम हमले के एक आतंकवादी सहित सहयोग करने वाले संलिप्तत नौ लोगों का घर ध्वस्त कर दिया गया। यह आतंकवादियों को सीधा संदेश है कि भारत बदल चुका है। जम्मू कश्मीर के संदर्भ में न केवल भारत बदला है बल्कि जम्मू कश्मीर तथा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य भी बदल है। यह पहली बार है जब आतंकवादी घटना के विरुद्ध कम या ज्यादा संख्या में संपूर्ण जम्मू कश्मीर से लोग सड़कों पर आए हैं, कैंडल मार्च और छोटे-मोटे धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। यह सब गृह मंत्री अमित शाह के कश्मीर दौरे के बाद ही आरंभ हुआ। अमित शाह के साथ बैठक में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी उपस्थित थे। उसके बाद नेशनल कांफ्रेंस ने पहली बार जिले - जिले में विरोध प्रदर्शन किया और महबूबा मुफ्ती जैसी आतंकवाद की समर्थक और पाकिस्तान के प्रति नरम रुख वालीको भी सड़क पर उतरना पड़ा। कश्मीर में जहां आतंकवादी हमले के बाद सुरक्षा कार्रवाई के विरुद्ध नारे लगाते थे, पत्थरबाजी होती थी और आतंकवादियों के निकल भागने का रास्ता तैयार किया जाता था उसके विपरीत ये दृश्य बदलाव के संदेश हैं।

थोड़ी गहराई से विचार करें तो निष्कर्ष आएगा कि सीमा पार सैन्य कार्रवाई को छोड़कर जितने कदम उठाए जा सकते थे लगभग भारत ने उठा लिया है। इसका अर्थ है कि भारत समग्रता में दीर्घकालिक समाधान की दृष्टि से बहुपक्षीय कार्रवाई की ओर अग्रसर है। सिंधु जल संधि पर भारत ने 25 अप्रैल को स्पष्ट किया कि वह एक-एक बूंद पानी रोकेगा और उसके लिए तात्कालीक , मध्यवर्ती और दीर्घकालिक उपाय के संकेत दिए गए। यह काफी हद तक संभव है। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी का पहला दौरा हुआ जहां उन्होंने दो प्रमुख सैन्य मुख्यालयों विक्टर फोर्स और चिनार कोड में वरिष्ठ कमांडरों से बातचीत की तथा  नियंत्रण रेखा पर सीमा पार से हुई गोलीबारी को भी समझा। पहले सेना अध्यक्ष और उसके बाद के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिले। सैन्य कार्रवाई या युद्ध के पहले तैयारी करनी होती है। सेना को लक्ष्य दिया जाता है और उसके अनुरूप रणनीति बनाते हुए संघर्ष करती है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में जैसा बाद में जनरल मानेक शा ने बताया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें मई-जून में सैन्य कार्रवाई के लिए कहा। मानेक शा ने तैयारी के लिए लगभग 6 महीने का समय लिया और दिसंबर में भारत ने सैन्य हस्तक्षेप किया।

यह समझना होगा कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिफ मुनीर ने 17 अप्रैल के अपने भाषण में न केवल पाकिस्तान सेना, वहां के सुरक्षा बल और आतंकवादी बल्कि आम मुसलमान को भी जेहाद के लिए पूरी तरह उकसाया है। ये सच मायने नहीं रखने कि आसिफ मुनीर सेना में अपने विरुद्ध असंतोष, इमरान खान की पार्टी को नियंत्रित करने, अफगानिस्तान के साथ तनाव का सफलतापूर्वक सामना करने एवं देश के अंदर सेना पर भ्रष्टाचार , काहिली, विफलता और अय्याशी के लग रहे आरोपों का खंडन करने में विफल साबित हुए हैं। आतंकवाद के हथियार से संघर्ष करने के लिए राजनीतिक - आर्थिक स्थिरता तथा शक्तिशाली होना आवश्यक नहीं। पाकिस्तान की विचारधारा से जुड़े मुसलमानों के एक समूह के अंदर भी जम्मू कश्मीर को इस्लामी जेहाद का भाग बनाने की भावना पैदा है तो उससे केवल परंपरागत सैन्य कार्रवाई से पूरी तरह नहीं निपटा जा सकता। पाकिस्तान ने न्यूक्लियर हथियार का हवाला दिया है। मोदी सरकार की पहले की दो कार्रवाइयों से पाकिस्तान की न्यूक्लियर धमकी की हवा निकाल चुकी है। तो निश्चित मानिए पाकिस्तान के विरुद्ध बहुपक्षीय निर्णायक कार्रवाई शुरू हो गई है। लेकिन अपने देश के अंदर प्रभावी इकोसिस्टम अभी से सरकार ही नहीं संपूर्ण सुरक्षा व्यवस्था के विरुद्ध नैरेटिव खड़ा करने में लगा है उसका भी प्रभावी रूप से सामना करना होगा


थाना सीलमपुर की टीम ने मात्र 6 घंटों में ₹8,000/- की लूट का मामला सुलझाया

  1. एक कुख्यात लुटेरा, सीलमपुर थाने का बीसी गिरफ्तार
  2. मात्र 6 घंटों में ₹8,000/- की लूट का मामला सुलझाया 
  3. लूटी गई राशि और वारदात में उपयोग किया गया ब्लेड बरामद
  4. आरोपी शाहनवाज़ पहले भी लूट, झपटमारी और शस्त्र अधिनियम से जुड़े 24 मामलों में शामिल पाया गया है

असलम अल्वी

उत्तर पूर्वी दिल्ली। दिनांक 01.05.2025 को सीलमपुर थाना क्षेत्र में बीकानेर स्वीट्स के पास चाकू की नोंक पर लूट की सूचना प्राप्त हुई। घटनास्थल पर पहुंचने पर शिकायतकर्ता कुलदीप दीक्षित (38 वर्ष) पुत्र श्री राजेन्द्र दीक्षित, निवासी CPJ-203, न्यू सीलमपुर ने पुलिस टीम को बताया कि जब वह अपनी दुकान G-49, सीलमपुर से लौट रहे थे और सार्वजनिक शौचालय, बीकानेर स्वीट्स के पास पहुंचे, तो दो अज्ञात व्यक्ति पीछे से आए और उन्हें ब्लेड से घायल कर ₹8,000/- लूट लिए।

इस संबंध में सीलमपुर थाने में भारतीय न्याय संहिता की धारा 309(6)/3(5) के अंतर्गत मामला दर्ज कर जांच आरंभ की गई।

जांच के दौरान, इंस्पेक्टर पंकज कुमार (SHO/PS सीलमपुर) के नेतृत्व में PSI हर्ष, हेड कांस्टेबल नवनीश, हेड कांस्टेबल विकास और कांस्टेबल मनीष की एक विशेष टीम गठित की गई, जो श्री विक्रमजीत सिंह विर्क, ACP/सीलमपुर की देखरेख  में कार्य कर रही थी।

श्री हरेश्वर वी. स्वामी, IPS, DCP उत्तर-पूर्व जिला, के मार्गदर्शन में, टीम ने घटनास्थल के आस-पास के CCTV कैमरों की गहन जांच की और गुप्त सूत्रों से महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई। एकत्रित सूचनाओं के आधार पर टीम ने महज 6 घंटे में लूट की घटना में शामिल एक संदिग्ध आरोपी को पकड़ने में सफलता प्राप्त की।

गिरफ्तार आरोपी की पहचान शाहनवाज़ @ राजा पुत्र स्व. मुन्ना निवासी E-14/ G-399, न्यू सीलमपुर, उम्र – 40 वर्ष  के रूप में हुई। पूछताछ के दौरान आरोपी ने अपराध करना स्वीकार किया और अपने एक साथी के बारे में जानकारी दी। आरोपी के पास से लूट की गई राशि के  ₹3100/- और वारदात में उपयोग किया गया एक सर्जिकल ब्लेड बरामद हुआ। आरोपी सीलमपुर थाने का घोषित बीसी (Bad Character) है और पहले भी चोरी, लूट और शस्त्र अधिनियम से जुड़े कुल 24 मामलों में शामिल रहा है। 

उसके साथी की गिरफ्तारी और लूटी गई बाकि धनराशि की बरामदगी के लिए प्रयास जारी हैं। मामले में आगे की जांच जारी है।



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