गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

डोनाल्ड ट्रम्प का टैरिफ कार्ड व उसका असर

बसंत कुमार

आज के वैश्विक युग में जहां अपनी स्थानीय बाजार में विदेशी माल व अपने स्थानीय उत्पादों की कीमत के टकराव से परेशान दिखते हैं, आप स्वयं सोच सकते हैं कि जब हमारे देश में कोई विदेशी माल बहुत सस्ता मिल रहा है और उसी समान को स्थनीय कम्पनी विदेशी उत्पाद के मुकाबले अधिक कीमत पर बेचने को बाध्य है और घरेलू कम्पनी को विदेशी कम्पनी के उत्पाद से मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है तो सरकार टैरिफ नाम के एक आर्थिक हथियार का इस्तेमाल करती है जो एक आयत शुल्क होता है, यानि जब कोई विदेशी वस्तु आपके देश में आती है तो उस पर अतिरिक्त शुल्क लगाया जता है जिससे वह वस्तु बाजार में मंहगी हो जाती है और घरेलू उत्पादों को विदेशी उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिल जाता है। पिछले कुछ समय से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ कार्ड ने पूरे विश्व को हैरत में डाल दिया है अब हमें यह देखना है भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2 अप्रैल 2025 से कई देशों से आने वाले माल पर टैरिफ लगाने की घोषणा की। अपने इस फैसले से अमेरिका ने उन देशों को निशाना बनाया जो अमेरिकी उत्पादों पर उच्च दर का टैरिफ लगाते हैं और भारत, चीन ब्राजील, यूरोपीय यूनियम जैसे देश इस फैसले के दायरे में आ गए है। ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 26% टैरिफ लगाने कि घोषणा की है। ट्रंप के इस टैरिफ घोषणा का वैश्विक बाजार में भारी प्रभाव पड़ने की आशंका है। वास्तव में किसी देश द्वारा विदेश से आने वाले उत्पाद पर टैरिफ लगाते का मुख्य उद्देश्य घरेली उद्योगों को संरक्षण देना होता है। यह नीति उन देशों के लिए महत्वपूर्ण होती है जो अपने व्यापार घाटे को कम करना चाहते है। प्रायः यह देखा गया है कि कई देश अपने घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लि आयातित समानों पर ऊंचा टैक्स लगाते हैं और बदले में अपने सामान को कम टैरिफ पर निर्यात करना चाहते हैं। लेकिन जो जवाबी टैरिफ डोनाल्ड ट्रंप ने लगाया है उसका मुख्य उद्देश्य व्यापार में निष्पक्षता लाना माना जा रहा है। पर यह वैश्विक बाजार में तनाव बढ़ा जा सकता है। जहां तक भारत की प्रश्न है यहां अमेरिकी उत्पादों पर 52% लगाया जता है वहीं भारत के उत्पाद पर अमेरिका ने 26% टैक्स लगा दिया है। अमेरिका द्वारा ज़ारी सूची में यूनाइटेड किंगडम, ब्राजील, सिंगापुर, तुर्की आदि कुछ गिने चुने देश है जहां अमेरिका में जाने वाले उत्पाद और अमेरिका से आने वाले उत्पाद पर टैरिफ 10% है जबकि अन्य देशों के साथ यह टैरिफ दर बहुत ही असंतुलित है।

टैरिफ की बढ़ोत्तरी का पहला असर विदेशी उत्पादों की बिक्री पर पड़ता है, जैसे भारतीय सामान अब अमेरिका में पहले के मुकाबले ज्यादा मंहगे हो जाएंगे और उनकी मांग कम हो जाएगी। इससे अमेरिकी कम्पनियों को राहत मिलेगी और उनका व्यापर बढ़ेगा। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह है कि अगर अन्य देश पलटवार करते हुए अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगा दें तो अमेरिका की निर्यातक कम्पनियां भी घाटे में आ सकती हैं। यद्यपि भारत की मोदी सरकार ऐसा करने के बजाय द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTS) करने पर जोर दे रही है। अगर अमेरिकी के इस फैसले का समाधान नहीं निकाला गया तो भारत के कई उद्योग प्रभावित होंगे। इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स, रत्न आभूषण, आटो पार्ट्स, एल्युमिनियम जैसे क्षेत्रों में काम करने वाली कम्पनियों को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सोच समझ कर सीमित समय के लिए टैरिफ लगाया जाए तो तय घाटे में चल रही या बीमार चल रही घरेलू कम्पनियों को पुनर्जीवित कर पटरी पर लाने का अच्छा माध्यम बन सकते हैं। जैसा 1989-90 के दौर में भारत में घाटे में चल रही बीमार कम्पनियों को पटरी पर लाने के लिए बाइफर (बोर्ड फॉर इंडस्ट्रियल एंड फाइनेंशियल रिकंस्ट्रक्शन) की स्थापना करके कुछ बीमार कम्पनियों को या तो बंद कर दिया गया या फिर बेच दिया गया ऐसे में टैरिफ एक अच्छा विकल्प हो सकता था।

जहां अमेरिका ने अपने घरेलू कम्पनियों को राहत देने के लिए भारत सहित अन्य देशों पर टैरिफ लगाया है। वहीं भारत दशकों से इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स, खिलौने, मोबाइल आदि के क्षेत्रों में चीन की डंपिंग पॉलिसी से परेशान रहा है। देश में दीपावली होली आदि त्योहारों पर देशी कम्पनियों और देशी कारीगरों को दो चार माह का रोज़गार मिल जाता था और दीपावली होली एकादशी छठ आदि त्योहारों की कमाई से उनका कर्ज उतर जाता था पर विगत कुछ वर्षों से चीन से आने वाली लड़ियों, पटाकों ने भारत में बने सामानों की बिक्री ठप कर दी है, सस्ते के चाकर में लोग चाइना मेड प्रोडक्ट ही पसंद करते हैं। पर कुछ दिन पूर्व भारत सरकार ने भारतीय बाजार में चीन की डंपिंग से परेशान होक चीन से आने वाले उत्पादों पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाए हैं। सरकार ने यह कदम घरेलू कम्पनियों को सस्ते आयत के कुप्रभाव से बचने के लिए उठाया है।

भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय की इकाई डीजीटीआर की सिफारिश के बाद चीन के विरुद्ध एंटी डंपिंग ड्युटी लगाई गई है इससे भारतीय कंपनियों को चाइना माल की डंपिंग से राहत मिलेगी, उन्हें अपने उत्पादों के सही दाम मिल सकेंगे। इधर अमेरिका ने चीन के उत्पादों पर लाने 245% टैरिफ बढ़ाकर चीनी उत्पादों को अमेरिकी बाजार से लगभग बाहर कर दिया है इस फैसले पर चीन ने कहा है कि हम अमेरिका के साथ ट्रेड वार से नहीं डरते, क्या इस प्रकार प्रकार के गतिरोध विकासशील देशों और आर्थिक रूप से कमजोर देशों के उद्यमियों को समाप्त करने के लिए चलाया जा रहा है। ट्रंप के टैरिफ हमले के जवाब में चीन ने खनिज धातु के एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी है। गौरतलब है कि 92% खनिजों की प्रोसेसिंग यानी रिफाइनिंग में पर चीन की पकड़ है। अब यह लड़ाई सिर्फ टैक्स की नहीं बल्कि टेक्नोलॉजी सप्लाई चेन और ग्लोबल दबदबे की लड़ाई हो चली है, पर जिस प्रकार से चीनी माल के भारत में डंपिंग की वजह से भारत के लोकल प्रॉडक्ट की बाजार तबाह हो रही है भारत को ऐसे ही कदम उठाने की जरूरत है।

जब से अमेरिका ने चीन से आने वाले माल पर टैरिफ बढ़ाकर 245% कर दी है चीन से भारत आने वाले सामान में बाढ़ सी आ गई है। पिछले वित्त वर्ष में भारत और चीन के बीच व्यापार का अंतर 99.2 बिलियन डॉलर पहुंच गया था और चीन के साथ व्यापार घाटा 177% तक पहुंच गया था जो इस वित्तिय वर्ष में और अधिक हो जाने की आशंका है।

यह सही है कि डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ कार्ड से वहां विदेशी चीजे महंगी हो जाएंगी और देश के निर्यात पर असर पड़ेगा तथा कई आद्योगिक क्षेत्र प्रभावित होंगे। इससे इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स, रत्न आभूषण, ऑटो पार्ट्स, एल्युमिनियम जैसे क्षेत्रों में क्षेत्रों में कारोबार करने वली कम्पनियों को नुकसान झेलना पड़ सकता है पर यह समझने की जरूरत है कि टैरिफ लगाना हर समय नुकसान दायक नहीं होता यदि टैरिफ सोच समझ कर सीमित समय के लिए लगाए जाएं तो यह घरेलू उद्योगों को पुनर्जीवित करने का जरिया बन सकता है। खास तौर पर यदी कोई देश बेहद सस्ते दामों पर अपना सामान भेजकर आपके बाजार को बिगाड़ रहा है जैसे चीनी प्रोडक्ट्स के कारण भारत के अपने ही देशों के बने सामान की पूंछ नहीं हो रही है इसीलिए भारत को भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ कार्ड से सबक लेने की आवश्यकता है।

(लेखक एक पहल एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव और भारत सरकार के पूर्व उपसचिव है।)

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