शनिवार, 25 जनवरी 2025
शाहजहांपुर में देर रात एक दर्दनाक सड़क हादसे में चार युवाओं की मौके पर ही मौत, दो गंभीर रूप से घायल
आगरा में फिल्माई लाडो प्रोडक्शन बैनर तले शॉर्ट फिल्म "एक कहानी स्त्री की" सोनोटेक वीडियो पर स्क्रीनिंग चालू
असलम अल्वी
आगरा । शहरी अंचल शूट हुई शॉर्ट फिल्म हर भारतीय को करेगी जागरूक "एक कहानी स्त्री की" यूट्यूब "सोनोटेक वीडियो" पर रिलीजिंग स्क्रीनिंग शुरू होकर जिसे पूर्व ग्लोबल ताज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट सोशल अवेयरनेस शॉर्ट फिल्म अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है "एक कहानी स्त्री की" शॉर्ट फिल्म में आगरा शहरी कलाकारों ने बख़ूबी भूमिका निभाकर चार चांद लगा कर लोहा तो मनवाया ही है बुधवार रात सम्मान पत्र से फिल्म के डायरेक्टर द्वारा सम्मान दिया गया।
वहीं इस शॉर्ट फिल्म के निर्देशक एवं प्रोड्यूसर : पंकज शर्मा एवं आगरा के "ट्री मैन" त्रिमोहन मिश्रा ने बताया कि शॉर्ट फिल्म आजकल हो रहे मासूम बच्चियों, बालिकाओं और महिलाओं के अपहरण, अत्याचार एवं बलात्कार की जागुरुकता को लेकर फिल्माई गई है और यह प्रयास आगे भी निरंतर जारी रखेंगे, दर्शिता : सोनोटेक वीडियो, बैनर : लाडो प्रोडक्शन, लाइन प्रोड्यूसर : त्रिमोहन मिश्रा, फिल्म के लेखक एवं असिस्टेंट निर्देशक : निखिल दत्त, डी.ओ.पी.: मनीष कुशवाह, कृष्णा कुशवाहा, एडिट : रोहित शाह, आवाज़ : चरित्र अभिनेता दीपक शर्मा, कलाकार : अनुष्का शर्मा, अंशिका अग्रवाल, स्वेता सिंह, पंकज शर्मा, त्रिमोहन मिश्रा, बॉबी देव, अमित शर्मा, प्रोडक्शन : पुष्पा देवी, अनुज अग्रवाल, चांदनी अग्रवाल, दीपक देवसन, मेकअप आर्टिस्ट : कामिनी श्रीवास्तव आदि ने सराहनीय अभिनय कर दमदार भूमिका का निर्वहन किया है।
गुरुवार, 23 जनवरी 2025
भागवत के वक्तव्य पर विवाद जो कहा नहीं
अवधेश कुमार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत द्वारा इंदौर के एक कार्यक्रम में स्वतंत्रता दिवस और अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर दिए गए वक्तव्य से देश में राजनीति, गैर राजनीतिक एक्टिविज्म चारों ओर बवंडर मचा हुआ है। विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि संघ 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता दिवस मानता ही नहीं और भागवत ने 22 जनवरी , 2024 यानी पौष शुक्ल द्वादशी से स्वतंत्रता दिवस मानने और मनाने की अपील की है। कोई 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस न माने तो उसका विरोध स्वाभाविक होगा। उसके बाद राहुल गांधी का बयान सबसे ज्यादा चर्चा और बहस में है कि मोहन भागवत ने जो कहा वह संघ का विचार है और हम उसी के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने अपने केंद्रीय कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर यहां तक कह दिया कि यह मत मानिए कि हमारा संघर्ष संघ और भाजपा जैसे किसी राजनीतिक संगठन से है , हमें पूरे इंडियन स्टेट यानी भारतीय राज्य से संघर्ष करना है। संपूर्ण भारतीय राज्य के विरुद्ध संघर्ष भी लोकसभा में विपक्ष के नेता के द्वारा, जिसने संविधान के तहत शपथ लिया हो सामान्य तौर पर न स्वीकार हो सकता है न गले उतर सकता है।
राहुल गांधी के वक्तव्य पर आगे विचार करेंगे, पहले यह देखें कि डॉ भागवत और संघ , भाजपा सहित पूरे विचार परिवार के विरुद्ध चल रहे अभियान का सच क्या है? भागवत के इंदौर के भाषण के वीडियो उपलब्ध हैं और कोई भी सुन सकता है। वे बोल रहे हैं- ‘भारत स्वतंत्र हुआ 15 अगस्त को। राजनीतिक स्वतंत्रता आपको मिल गई। हमारा भाग्य निर्धारण करना हमारे हाथ में है। हमने एक संविधान भी बनाया, एक विशिष्ट दृष्टि, जो भारत के अपने स्व से निकलती है, उसमें से वह संविधान दिग्दर्शित हुआ, लेकिन उसके जो भाव हैं, उसके अनुसार चला नहीं और इसलिए,
हो गए हैं स्वप्न सब साकार कैसे मान लें, टल गया सर से व्यथा का भार कैसे मान लें।’साफ है जो भाषण सुनेगा और निष्पक्षता से विचार करेगा वह वर्तमान विरोधों विवादों से सहमत नहीं हो सकता। हमारे देश की बौद्धिक , एक्टिजिज्म और राजनीति की दुनिया ने लंबे समय से दुष्प्रचार कर रखा है कि संघ स्वतंत्रता दिवस को मानता ही नहीं , तिरंगा झंडा को स्वीकार नहीं करता और संविधान को खारिज करता है। इसलिए किसी भी वक्तव्य को उसके सच और संदर्भ से काटकर दो-चार शब्दों के आधार पर आलोचना और हमला स्वभाव बन गया है। जरा बताइए, इन पंक्तियों में कहां है कि हमें 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता मिली ही नहीं? दूसरे, इसमें भारतीय संविधान को खारिज करने का एक शब्द है क्या? वो कह रहे हैं कि भारतीय संविधान एक विशिष्ट दृष्टि स्व से निकला। क्या यह सच नहीं है कि हमने स्वयं संविधान की भावनाओं के अनुरूप न देश के लोगों के अंदर भारत के संस्कार को लेकर जागृति पैदा की न उसके अनुसार व्यवस्थाओं की रचना की?
महात्मा गांधी ने 15 अगस्त , 1947 को कोई वक्तव्य जारी नहीं किया। उन्होंने अपने साथियों से कहा कि क्या ऐसे ही स्वराज के लिए हमने संघर्ष किया था? उन्होंने स्पष्ट लिखा कि हमें अंग्रेजों से राजनीतिक स्वतंत्रता मिल गई किंतु सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लिए पहले से ज्यादा लंबे संघर्ष और परिश्रम की आवश्यकता है। हम आप गांधी जी को स्वतंत्रता दिवस विरोधी घोषित कर देंगे? उन्होंने न जाने कितनी बार बोला और लिखा कि हम अंग्रेजों से केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष नहीं कर रहे हैं। भारत ही एकमात्र देश है जो दुनिया को दिशा दे सकता है।भारत का ध्येय अन्य देशों से भिन्न है। धर्म वह क्षेत्र है जिसमें भारत दुनिया में सबसे बड़ा हो सकता है। यह सच है कि भारत को समझने वाले ज्यादातर मनीषियों ने ऐसे भारत की कल्पना की जो अपने धर्म , अध्यात्म, संस्कृति और सभ्यता के आधार पर ऐसा महान और आदर्श देश बनेगा जिससे विश्व सीखेगा कि सद्भाव, संयम , त्याग और साहचर्य के आधार पर कैसे कोई राष्ट्र महान बन सकता है। भारत इसी चरित्र को लेकर खड़ा होगा और संपूर्ण विश्व उसका अनुसरण करेगा। विश्व गुरु कहने के पीछे भाव भी यही है। किंतु जब आप हम क्या हैं और क्या होना है यही नहीं समझेंगे तो राष्ट्र का निश्चित लक्ष्य ओझल हो जाता है।
इस संदर्भ में मोहन भागवत की अगली पंक्ति भी देखनी चाहिए।’ ऐसी परीस्थिति समाज की, क्योंकि जो आवश्यक स्वतंत्रता में स्व का अधिष्ठान होता है, वह लिखित रूप में संविधान से पाया है, लेकिन हमने अपने मन को उसकी पक्की नींव पर आरूढ़ नहीं किया है। हमारा स्व क्या है? राम, कृष्ण , शिव, यह क्या केवल देवी - देवता हैं, या केवल विशिष्ट उनकी पूजा करने वालों के हैं? ऐसा नहीं है। राम उत्तर से दक्षिण भारत को जोड़ते हैं।’उन्होंने कहीं नहीं कहा कि पौष शुक्ल द्वादशी को स्वतंत्रता दिवस मनाना है। इसे प्रतिष्ठा द्वादशी के नाम से संपूर्ण देश से मनाने की अपील की। जिन्हें भारतीय पंचांग व तिथियों की गणना, कैलेंडर तथा एकादशी के महत्व का ज्ञान नहीं उनके लिए समझना कठिन होगा। हमारे यहां वैकुंठ एकादशी, बैकुंठ द्वादशी आदि यूं ही स्थापित नहीं हुए। यह भारत का स्व है। भागवत ने कहा कि हमें स्वतंत्रता थी लेकिन वह प्रतिष्ठित नहीं हुई थी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ वह प्रतिष्ठित हुई इसलिए उसे प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाया जाना चाहिए।
थोड़ा दुष्प्रचारों से अलग होकर सोचिए कि आखिर आक्रमणकारियों ने हमारे धर्म स्थलों हमले और उनको ध्वस्त क्यों किया? इसीलिए कि हमारा स्व मर जाए, उन स्थलों, प्रतिस्थापित प्रतिमाओं या निराकार स्वरूपों को लेकर हमारे अंदर का आस्था विश्वास नष्ट हो, उनके प्रति हम अपमानित महसूस करें? आक्रमण , ध्वंस, जबरन निर्माण और दासत्व के समानांतर प्रतिकार व मुक्ति के संघर्ष सतत् चलते रहे। उन सबके लिए संघर्ष करने वाले बलिदानियों को हम क्या मानते हैं? गुरु गोविंद सिंह , छत्रपति शिवाजी, लाचित बोड़फुकन आदि हमारे लिए स्वतंत्रता के महान सेनानी थे या नहीं? वस्तुत: स्वतंत्रता के लिए लंबा संघर्ष हुआ जिनका मूल लक्ष्य स्व की प्रतिस्थापना थी। इस संदर्भ में अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर मुक्ति का आंदोलन किसी के विरोध के लिए नहीं, स्व जागृत करने और पाने के लिए था। राजनीतिक नेतृत्व इस रूप में से लेता तो आंदोलन इतना लंबा चलता ही नहीं। ध्यान रखिए, भागवत उस कार्यक्रम में बोल रहे थे जहां श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपत राय को राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होंने कहा कि यह दिन अयोध्या में राम मंदिर के पुनर्निर्माण और भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना का प्रतीक बन गया है। जिनके लिए अयोध्या आंदोलन ही गलत हो वे इस भाव को नहीं समझ सकते।
तब भी मान लीजिए कि किसी का डॉ भागवत या संघ की सोच से मतभेद होगा। किंतु जो उन्होंने कहा बहस उस पर होगी या जो कहा नहीं उस पर? क्या इस तरह का झूठ फैलाना और लोगों के अंदर गुस्सा, उत्तेजना, हिंसा का भाव पैदा करना संविधान की प्रतिष्ठा है? क्या भारतीय स्वतंत्रता के पीछे ऐसे ही राजनीतिक चरित्र और संस्कार की भावना थी? राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं और उन्हें पद और गरिमा का भान होना चाहिए। वस्तुत: डॉक्टर भागवत का भाषण नहीं होता तब भी किसी बहाने उन्हें यह बोलना था। वे परंपरागत माओवादी , नक्सलवादी या आरंभिक कम्युनिस्टों की तरह की भाषा लगातार बोल रहे हैं। ये लोगों को भड़काकर विद्रोह ने के लिए यही बोलते थे कि धार्मिक कट्टरपंथियों, फासिस्ट शक्तियों का विस्तार हो रहा है, सत्ता पर इनका कब्जा है, पूंजीपति उद्योगपति सारे शोषण के आधार पर सत्ता का लाभ लेते हुए धन इकट्ठा कर रहे हैं तो राज्य व्यवस्था को उखाड़ फेंकना है। यही बात राहुल गांधी जी बोल रहे हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद धीरे-धीरे उनका इस रूप में रूपांतरण हुआ है और भारत व विश्व के अल्ट्रा वामपंथी अल्ट्रा सोशलिस्ट आदि उनके रणनीतिकार हैं और उनकी भाषा उसी अनुरूप है।
चूंकि लोकसभा चुनाव से मुस्लिम मतों का रुझान कांग्रेस की ओर दीखा है और इसे बनाए रखने पर पूरा फोकस है। लगता है जितना संघ का विरोध करेंगे, आक्रामक होंगे हमारे पक्ष में वोटो का ध्रुवीकरण होगा। वास्तव में डा भागवत ने तो एक संतुलित विचार दिया जबकि राहुल गांधी की बात हिंसा और उत्तेजना पैदा करने वाली है। कांग्रेस के परंपरागत नेताओं को भी विचार करना चाहिए कि क्या इस सोच से उनका जन समर्थन बढ़ेगा? क्या यह उन मूल्यों के के विरुद्ध आघात नहीं होगा जिनके लिए स्वतंत्रता संघर्ष हुआ? क्या यह अंततः भारतीय मानस के हित में होगा?
पता- अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल-981 1027208
रविवार, 19 जनवरी 2025
दिल्ली के पुराने लोहे के पुल पर ऑटो चालक की हत्या, CCTV फुटेज खंगाल रही पुलिस
गुरुवार, 16 जनवरी 2025
ऐसा अद्भुत आयोजन संकल्प से ही संभव
प्रयागराज त्रिवेणी संगम से आ रहे दृश्य अद्भुत हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर भारत ही एकमात्र देश है जहां इस तरह के अद्भुत आयोजन संभव हैं। केवल भारत नहीं, संपूर्ण विश्व समुदाय के लिए यह न भूतो वाली स्थिति है। न भविष्यति इसलिए नहीं कह सकते कि एक बार जब देश और नेतृत्व अपनी प्रकृति को पहचान कर आयोजन करता है तो वह एक मानक बन जाता है और आगे ऐसे आयोजनों को और श्रेष्ठ करने की प्रवृत्ति स्थापित होती है। यह मानना होगा कि 144 वर्ष बाद पौष पूर्णिमा पर बुधआदित्य योग जिसे, महायोग युक्त कह रहे हैं , उस महाकुंभ का श्री गणेश उसकी आध्यात्मिक दिव्यता के अनुरूप करने की संपूर्ण कोशिश केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने किया है। भारत में दुर्भाग्यवश ,राजनीतिक विभाजन इतना तीखा है कि ऐसे महान अवसरों, जिससे केवल भारत और विश्व नहीं संपूर्ण ब्रह्मांड के कल्याण का भाव पैदा होने की आचार्यों की दृष्टि है, उसमें भी नकारात्मक वातावरण बनाया जा रहा है। होना यह चाहिए था कि राजनीतिक मतभेद रहते हुए भी संपूर्ण भारत और विशेष कर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दल ऐसे शुभ और मंगलकारी आयोजन पर साथ खड़े होते, आने वालों का स्वागत करते और संघर्ष, तनाव, झूठ, पाखंड, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा से भरे विश्व में भारत से शांति की आध्यात्मिक सलिला का मूर्त अमूर्त संदेश विस्तारित होता। हमारे देश का संस्कार इतना सुगठित और महान है कि नेताओं के वक्तव्यों की अनदेखी करते हुए करोड़ों लोग अपने साधु-संतों, आचार्यों के द्वारा दिखाए रास्ते का अनुसरण करते हुए जाति, पंथ, क्षेत्र, भाषा, राजनीति सबका भेद भूलकर संगम में डुबकी लगाते, आवश्यक अपरिहार्य कर्मकांड करते आकर्षक दृश्य उत्पन्न कर रहे हैं, अन्यथा समाजवादी पार्टी और उनके नेता जिस तरह के वक्तव्य दे रहे हैं उनसे केवल वातावरण विषाक्त होता।
थोड़ी देर के लिए अपनी दलीय राजनीति की सीमाओं से बाहर निकलकर विचार करिए। क्या स्वतंत्र भारत में पूर्व की सरकारों ने ऐसे अनूठे उत्सव या आयोजन को उसके मूल संस्कारों और चरित्र के अनुरूप भव्यता प्रदान करने, संपूर्णता तक पहुंचाने एवं संपूर्ण विश्व को बगैर किसी शब्द का प्रयोग करें भारत के आध्यात्मिक अनुकरणीय शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए इस तरह केंद्रित उद्यम और व्यवस्थाएं किए थे? इसका ईमानदार उत्तर है, बिल्कुल नहीं। कहने का तात्पर्य यह नहीं कि पूर्व सरकारों ने कुंभ के लिए कुछ किया ही नहीं। लाखों करोड़ों व्यक्ति और संपूर्ण भारत के सारे संत -संन्यासी -साधू -महंत आचार्य दो महीने के लिए वहां उपस्थित हों तो सरकारों के लिए उसकी व्यवस्था और अपरिहार्य हो जाती है। सच यह है कि जिस तरह केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार ने कुंभ को उसकी मौलिकता के अनुरूप वर्तमान देश, काल, स्थिति के साथ तादात्म्य बिठाते हुए कार्य किया वैसा पहले कभी नहीं हुआ। वास्तव में हमारे शीर्ष नेतृत्व में देश और प्रदेश दोनों स्तरों पर एक साथ कभी ऐसे लोग नहीं रहे जिन्हें महाकुंभ या हमारे धार्मिक- सांस्कृतिक- आध्यात्मिक आयोजनों, मुहूर्तों, कर्मकांडों का महत्व, इसका आयोजन कैसे, किनके द्वारा , किन समयों पर होना चाहिए ना इसका पूरा ज्ञान रहा और न लेने के लिए कभी इस तरह पर्यत्न हुआ। प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संन्यासी हैं और उन्हें इसका ज्ञान है। उनके मंत्रिमंडल में भी ऐसे साथी हैं जो इन विषयों को काफी हद तक समझते हैं, जिनकी निष्ठा है। निष्ठा हो और संकल्प नहीं हो तो ज्ञान होते हुए भी साकार नहीं हो सकता। आप योगी आदित्यनाथ के समर्थक हों या विरोधी इन विषयों पर उनकी समझ, निष्ठा व संकल्पबद्धता को किसी दृष्टि से नकार नहीं सकते। जब इस तरह की टीम होती है तभी महाकुंभ, अयोध्या या काशी विश्वनाथ अपनी मौलिकता के साथ संपूर्ण रूप से प्रकट होता है। केंद्र का पूरा मार्गदर्शन और उसके अनुरूप सहायता हो तो समस्याएं नहीं आती।
2017 में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद प्रयागराज में ही 2019 में अर्धकुंभ आयोजित हुआ था और वहां से नया स्वरूप सामने आना आरंभ हुआ। पहली बार लोगों ने केंद्र व प्रदेश का संकल्प देखा तथा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पानी को अधिकतम संभव शुद्ध और स्वच्छ बनाने के लिए मिलकर दिन रात एक किया। 2019 में पहली बार राज्य सरकार ने 2406.65 करोड़ व्यय किया जिसकी पहले कल्पना नहीं थी। इस बार सरकार की ओर से 5496.48 करोड रुपए व्यय अभी तक हुआ और केंद्र ने भी इसमें 2100 करोड रुपए का अतिरिक्त सहयोग दिया है। कुंभ के आयोजन के साथ गंगा और यमुना दोनों में शून्य डिस्चार्ज सुनिश्चित करने की कोशिश हुई है। सभी 81 नालों का स्थाई निस्तारण सुनिश्चित करने की तैयारी की गई। यह तो नहीं कह सकते कि गंगा, यमुना और त्रिवेणी संगम का जल शत-प्रतिशत शुद्ध और स्वच्छ हो गया, किंतु अधिकतम कोशिश कर हरसंभव परिणाम तक ले जाने के परिश्रम से हम इन्कार नहीं कर सकते। कुंभ को हरित कुंभ बनाने की दृष्टि से पहली बार मोटा- मोटी 3 लाख के आसपास पौधों के रोपण का आंकड़ा है। पहले भी वृक्षारोपण होते थे किंतु संख्या अत्यंत कम होती थी। ऐसे आयोजनों में स्वच्छता के अभाव में लोगों में अनेक स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा होती हैं। केवल रिकॉर्ड संख्या में डेढ़ लाख शौचालय बनाए गए बल्कि 10 हजार से अधिक सफाई कर्मचारियों की तैनाती की गई। शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए लगभग 1230 किलोमीटर पाइपलाइन, 200 वाटर एटीएम तथा 85 नलकूप अधिष्ठान की व्यवस्था है। हालांकि हिंदुओं और सनातनियों के अंदर तीर्थयात्राओं में कष्ट सहने की मानसिकता और संस्कार है। हमारा चरित्र ऐसा है जहां जो कुछ व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं उसी में अपना कर्मकांडीय दायित्व पूरी करते हैं। किंतु सरकार व्यवस्था करे तो सब कुछ आसान सहज और अनुकूल होता है। सबसे बड़ी बात कि अखाड़ों ,आश्रमों आदि की परंपराओं के अनुरूप व्यवस्था करना ताकि कर्मकांड संपूर्ण नियमों के साथ ही सुनिश्चित हो, मुख्य शाही स्नान ठीक मूहूर्त पर शास्त्रीय विधियो से संपन्न हों कम इसकी व्यवस्था तो पूर्व सरकारों इस तरह संभव ही नहीं थी। इसके साथ मीडिया को भारत और संपूर्ण विश्व में इसकी संपूर्ण भव्यता दिव्यता और आकषर्णकारी शक्ति को प्रसारित करने की दृष्टि से उपयोग करने की ऐसी व्यवस्था की तो संभावना भी नहीं थी। आप राजनीतिक रूप से आलोचना करिए किंतु सत्य है कि हमारे राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही ने कभी ऐसे अवसरों को इस तरह जन-जन तक मीडिया के माध्यम से पहुंचाने और लोगों के अंदर आने की भावना पैदा करने की दृष्टि से विचार ही नहीं किया। टीवी चैनलों पर विहंगम दृश्य देखकर आम लोगों की प्रतिक्रियाएं हैं कि एक बार अवश्य जाना जाकर वहां डुबकी लगानी चाहिए। इसे ही कहते हैं सही समय पर मीडिया के सही उपयोग से धार्मिक आध्यात्मिक भाव- सद्भाव पैदा करना। कभी भी ऐसे आयोजनों में मीडिया और पत्रकारों के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए इसके पूर्व कोशिश नहीं हुई। अयोध्या में पिछले वर्ष श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में हमने प्रदेश सरकार की पहली बार ऐसी व्यवस्था देखी और अब महाकुंभ में उसका विस्तार है।
धीरे-धीरे अब परंपरागत आर्थिक विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि भारत अगर विश्व की आर्थिक और आदर्श महाशक्ति बनेगा तो अध्यात्म-संस्कृत की क्षमता का उसमें सर्वाधिक योगदान होगा। मोटा - मोटी निष्कर्ष यह है कि लगभग 40 करोड लोग 45 दिनों में आते हैं तो दो से चार लाख तक का कारोबार हो सकता है। आयोजन के निर्माण में तैयार आधारभूत व्यवस्थाएं भविष्य में भी ऐसे स्थानों पर तीर्थ यात्रियों और आधुनिक संदर्भ में पर्यटकों को सतत् आकर्षित करने का ठोस आधार बना रहेगा। अर्थात आर्थिक व व्यावसायिक गतिविधियों का अस्थाई स्थिर चक्र कायम रहेगा। कितने लोगों को जीवन यापन यानि रोजगार ,आर्थिक समृद्धि, परिवारों में खुशहाली और संपन्नता प्राप्त होगी इसकी कल्पना करिए। दुर्भाग्य से गुलामी के काल में अपनी ही महान आध्यात्मिक शक्ति, संस्कृति, कर्मकांड आदि को पिछड़ापन, अंधविश्वास कहकर हमें उससे दूर किया गया और संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था शिक्षित लोगों के अंदर इसके प्रति वितृष्णा पैदा करती रही। सच यह है कि ऐसे आयोजन जन कल्याण, राष्ट्र, अभ्युदय और संपूर्ण विश्व ब्रह्मांड के अंदर स्वाभाविक शांति की अमूर्त अंत:शक्ति पैदा करते हैं। साधु-संतों, अखाड़ों का स्नान, यज्ञ, अनुष्ठान आदि उनकी व्यक्तिगत कामना के लिए नहीं विश्व कल्याण पर केंद्रित होता है। एक साथ हजारों की संख्या में यज्ञ अनुष्ठान से बना माहौल , मंत्रों की ध्वनि संगीत , जयकारे सब सूक्ष्म रूप से पूरे वातावरण में कैसी दिव्यता उत्पन्न करेंगे इसकी कल्पना करिए।
पता: अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर , पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -98110 27208
क्या बाबरपुर विधानसभा क्षेत्र में इस बार आप के पूर्व मुस्लिम विधायक ही दे रहे हैं दिल्ली सरकार मंत्री गोपाल राय को टक्कर
मंगलवार, 14 जनवरी 2025
दिल्ली चुनाव: कांग्रेस की तीसरी लिस्ट आई, ओखला से अरीबा खान, गांधी नगर से कमल अरोड़ा
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने उम्मीदवारों की अपनी तीसरी सूची जारी कर दी है. पार्टी ने अरीबा खान को ओखला विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है. वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ को पटेल नगर से टिकट दिया है. पार्टी ने गोकलपुर से अपना प्रत्याशी बदल दिया है. अब तक कांग्रेस 63 उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है.
कांग्रेस की तीसरी सूची में 16 उम्मीदवारों के नाम हैं. पार्टी ने गोकलपुर-एससी सीट से प्रमोद कुमार जयंत की जगह अब ईश्वर बागड़ी को टिकट दिया है. वहीं घोंडा सीट से वरिष्ठ नेता भीष्म शर्मा पर भरोसा जताया गया है. इससे पहले कांग्रेस ने अपनी दूसरी लिस्ट में 26 नामों का ऐलान किया।
कांग्रेस ने जंगपुरा फरहाद सूरी को टिकट दिया है. ये आम आदमी पार्टी के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की सीट है. इसके अलावा सीमापुरी से राजेश लिलोठिया, उत्तम नगर से मुकेश शर्मा और बिजवासन से देवेंद्र सहरावत चुनाव लड़ेंगे।
इससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने 21 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया था. कांग्रेस ने नरेला से अरुणा कुमारी, बुराड़ी से मंगेश त्यागी, आदर्श नगर से शिवांक सिंघल, बादली से देवेंद्र यादव, सुल्तानपुर माजरा से जय किशन, नागलोई जाट से रोहित चौधरी, सलीमगढ़ से प्रवीन जैन को टिकट दिया है. वहीं, वजीरपुर से रागिनी नायक, सदर बाजार से अनिल भारद्वाज, चांदनी चौक से मुदित अग्रवाल, बल्लीमारान से हारून यूसुफ को टिकट दिया गया।
इनके अलावा तिलक नगर से पीएस बावा, द्वारका से आदर्श शास्त्री, नई दिल्ली से संदीप दीक्षित को टिकट दिया है. कस्तूरबा नगर से अभिषेक दत्त, छतरपुर से राजेंद्र तंवर, अंबेडकर नगर से जय प्रकाश, ग्रेटर कैलाश से गार्वित सिंघवी, पटपड़गंज से अनिल कुमार, सीलमपुर से अब्दुल रहमान और मुस्तफाबाद से अली मेहदी को टिकट दिया गया है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के 48 कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची
- नई दिल्ली सीट से संदीप दीक्षित
- बादली सीट से देवेंद्र यादव
- बल्लीमारान सीट से हारुन युसूफ
- पटपड़गंज सीट से चौ. अनिल कुमार
- मुस्तफाबाद सीट से अली मेहदी
- सदर सीट से अनिल भारद्वाज
- नांगलोई सीट से रोहित चौधरी
- कस्तुरबा नगर सीट से अभिषेक दत्त
- वजीरपुर सीट से रागिनी नायक
- सीलमपुर सीट से अब्दुल रहमान
- नरेला सीट से अरुणा कुमारी
- बुराड़ी सीट से मंगेश त्यागी
- आदर्श नगर सीट से शिवांश सिंघल
- सुल्तानपुर माजरा (एससी) सीट से जयकिशन
- शालीमार बाग सीट से प्रवीण जैन
- तिलकनगर सीट से पीएस बावा
- द्वारका सीट से आदर्श शास्त्री
- छतरपुर सीट से राजिंदर तंवर
- अंबेडकरनगर (एससी) सीट से जय प्रकाश
- ग्रेटर कैलाश सीट से गर्वित सिंघवी
- चांदनी चौक सीट से मुदित अग्रवाल
- रिठाला सीट से सुशांत मिश्रा
- मंगोलपुरी (अनुसूचित जाति) सीट से हनुमान चौहान
- शकूर बस्ती सीट से सतीश लूथरा
- त्रिनगर सीट से सतेंद्र शर्मा
- मतिया महल सीट से असिम अहमद खान
- मोती नगर सीट से राजेंद्र नामधारी
- मादीपुर (अनुसूचित जाति) सीट से जेपी पंवार
29 राजौरी गार्डन सीट से धर्मपाल चांडेल
30 उत्तम नगर सीट से मुकेश शर्मा
31 मतिआला सीट से रघुविंदर शोकीन
32 बिजवासन सीट से देवेंद्र सहरावत
33 दिल्ली कैंट सीट से प्रदीप कुमार उपमन्यु
34 राजेंद्र नगर सीट से विनीत यादव
35 जंगपुरा सीट से फरहद सूरी
36 मालवीय नगर सीट से जितेंद्र कुमार कोचर
37 महरोली सीट से पुष्पा सिंह
38 देओली (अनुसूचित जाति) सीट से राजेश चौहान
39 संगम विहार सीट से हर्ष चौधरी
40 त्रिलोकपुरी (अनुसूचित जाति) सीट से अमरदीप
41 कोंडली (अनुसूचित जाति) सीट से अक्षय कुमार
42 लक्ष्मी नगर सीट से सुमित शर्मा
43 कृष्ण नगर सीट से गुरचरण सिंह राजू
44 सीमापुरी (अनुसूचित जाति) सीट से राजेश लिलोठिया
45 बाबरपुर सीट से हाजी मोहम्मद इशराक खान
46 गोकलपुर (अनुसूचित जाति) सीट से प्रमोद कुमार जयंत
47 करावल नगर सीट से डॉ. पीके मिश्रा
48 कालकाजी सीट से अलका लांबा
गांधीनगर विधानसभा में आप को बड़ा झटका, कद्दावर नेता कमल अरोड़ा ने अपने समर्थकों के साथ थामा कांग्रेस का दामन
संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भी कांग्रेस लगातार अपना कुनबा बढ़ा रही है। इसी क्रम में कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव, पूर्व मंत्री नरेंद्र नाथ, सीलमपुर के पूर्व विधायक व बाबरपुर से कांग्रेस प्रत्याशी हाजी इशराक खान, नियाज अहमद मंसूरी ब्लॉक प्रेसिडेंट शास्त्री पार्क वार्ड, कृष्णा नगर माइनॉरिटी जिला अध्यक्ष अलीम भाई, यूथ कांग्रेस से विधानसभा अध्यक्ष मोहम्मद वसीम, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सचिव और दिल्ली प्रदेश प्रभारी काज़ी निजामुद्दीन ने आम आदमी पार्टी के गांधी नगर के पूर्व संगठन मंत्री कमल अरोड़ा उर्फ डब्बू व उनके साथी नौशाद मंसूरी व समर्थकों को पटका पहनाकर पार्टी ज्वाइन करवाई। आम आदमी पार्टी के गांधी नगर के पूर्व संगठन मंत्री कमल अरोड़ा उर्फ डब्बू ने अपने समर्थकों सहित आम आदमी पार्टी छोड़कर कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया।
कमल अरोड़ा ने गांधीनगर
विधानसभा पूर्व संगठन मंत्री के पद व पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे
दिया है। इधर आप छोड़ने के तुरंत बाद कमल अरोड़ा अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में
शामिल हो गए। उन्होंने कहा कि पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी उसे वो निभाएंगे।
उन्होंने आप संयोजक अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधा। उन पर हमेशा जनता के मुद्दों
से भागकर अपनी राजनीति का आरोप लगाया है।
वहीं दिल्ली कांग्रेस के
अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आम आदमी पार्टी के गांधी
नगर के पूर्व संगठन मंत्री कमल अरोड़ा उर्फ डब्बू का पार्टी में स्वागत करते हुए उन्हें
कांग्रेस का पटका भेंट पहनाकर पार्टी ज्वाइन करवाई। देवेंद्र यादव ने कहा कि
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कानून-व्यवस्था की स्थिति चरमरा गई है तो इसके लिए
भाजपा और ‘AAP’ दोनों
सरकारें समान रूप से जिम्मेदार हैं।
देवेंद्र यादव ने दावा किया कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो कानून-व्यवस्था की स्थिति प्रभावी रूप से नियंत्रण में थी। लोगों को चौबीसों घंटे जलापूर्ति होती थी। जलभराव को रोकने के लिए हर मानसून से पहले नालियों और सीवरों की सफाई की जाती थी। यादव ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया था कि लोगों को निर्बाध बिजली आपूर्ति हो और दिल्ली में बिजली देश में सबसे सस्ती दर पर मिले।
सोमवार, 13 जनवरी 2025
कांग्रेस प्रत्याशी हाजी इशराक़ खान के समर्थन में हिन्दू-मुस्लिम कार्यकर्ता हुए एक जुट, मतलूब अहमद ने दिया धमाकेदार भाषण
बुधवार, 8 जनवरी 2025
मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार और स्मारक की मांग
अवधेश कुमार
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के मृत्यु उपरांत अंतिम संस्कार और स्मारक पर हुई और हो रही राजनीति उचित नहीं। जो 10 वर्ष प्रधानमंत्री, 5 वर्ष वित्त मंत्री और इसके अलावा तीन दशक तक भारत के आर्थिक और वित्तीय नीति निर्माण से जुड़े रहे हों, उन्हें लेकर उनकी पार्टी और समर्थकों को संयमित वक्तव्य देना चाहिए। जब कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा करेगी तो उनके काल के निर्णयों ,घटित घटनाओं आदि उनकी भूमिका सहित पार्टी के वर्तमान और अतीत की वो भूमिकाएं सामने लाई जाएंगी जिनका उत्तर देना कठिन होगा। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जी ने उनकी मृत्यु के तुरंत बाद प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अंतिम संस्कार ऐसी जगह करने की मांग कर दी जहां स्मारक बनाया जा सके। उसके बाद पार्टी ने सरकार को आरोपित करना आरंभ कर दिया। गृह मंत्री अमित शाह जी की ओर से स्पष्ट किया गया कि उनका स्मारक बनाया जाएगा और अंतिम संस्कार राजधानी दिल्ली के निगमबोध घाट पर किया गया। प्रश्न उठाया जा रहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री का अंतिम संस्कार निगमबोध पर क्यों किया गया? देश में जब ऐसे विवाद उठते हैं तो ज्यादातर लोग तात्कालिक भावनाओं और वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं और राजनीति में जितना तीखा विभाजन है, पक्ष-विपक्ष में हमले - प्रतिहमले, आरोप-प्रत्यारोप आरंभ हो जाते हैं। ऐसे विषयों पर निष्पक्षता से सच्चाई और तथ्यों के साथ वर्तमान और संभाली परिदृश्यों को नहीं रखा जाए तो अनेक प्रकार की गलतफहमियां बनी रहतीं हैं।कांग्रेस द्वारा बड़ा मुद्दा बनाए जाने के बाद भाजपा ने अतीत के पन्ने पलटे हैं।
पूर्व प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार समुचित सम्मान के साथ होना चाहिए और व्यक्तित्व प्रेरिक है तो स्मारक भी बनना चाहिए। पहले इस मामले में कांग्रेस के अतीत पर बात करते हैं। कांग्रेस और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले संप्रग सरकार के दौरान चार पूर्व प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिंह राव, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर और इंदर कुमार गुजराल की मृत्यु हुई। क्या इनमें से किसी के दिल्ली में स्मारक बनाने पर चर्चा भी हुई? पीवी नरसिंह राव कांग्रेस के थे और डॉ मनमोहन सिंह को उन्होंने ही वित्त मंत्री बनाया जहां से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। उनका परिवार राजधानी में अंतिम संस्कार चाहता था। वे कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके थे और पार्टी मुख्यालय में उनका शव अंतिम दर्शन और श्रद्धांजलि के लिए रखा जाना चाहिए था। उनका शव आया लेकिन मुख्यालय का द्वार नहीं खुला और बाहर ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित बाकी नेताओं और मंत्रियों ने पुष्पांजलि अर्पित की। यह किसके आदेश या इशारे पर हुआ होगा क्या यह बताने की आवश्यकता है? कांग्रेस का तर्क है कि नरसिंह राव ने स्वयं प्रदेश में अंतिम संस्कार की इच्छा जताई थी। ऐसा था तो उनके परिवार से बात किसी ने क्यों नहीं की? आज भी उनके परिवार के लोग बताते हैं कि उनकी किसी ने नहीं सुनी। पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणव मुखर्जी की बेटी समिष्ठा मुखर्जी ने कहा है कि हमारे पिताजी ने उनके शव को कांग्रेस कार्यालय के अंदर लाने के लिए कहा किंतु ऐसा नहीं किया गया। शायद भारत के राजनीतिक इतिहास में मृत्यु के बाद इस तरह का व्यवहार किसी के साथ नहीं हुआ होगा।
यह भी सही है की सरदार वल्लभ भाई पटेल की मुंबई में मृत्यु के पश्चात प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को कहा था कि आपको किसी कैबिनेट मंत्री के अंतिम संस्कार में भाग नहीं लेना चाहिए। नौकरशाहों से लेकर अनेक लोगों को यह संदेश दिया गया था। हालांकि पंडित नेहरू स्वयं गए थे और उनकी बात न मानकर डॉ राजेंद्र प्रसाद सहित अनेक लोगों ने पहले गृह मंत्री के अंतिम संस्कार में भाग लिया। उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं हुआ लेकिन स्वतंत्रता संघर्ष से लेकर संविधान निर्माण और विभाजन की विभीषिका के पश्चात रियासतों का विलय कर देश की एकता-अखंडता सुरक्षित रखने की उनकी सर्वोपरि भूमिका का ध्यान रखते हुए स्मारक अवश्य बनना चाहिए था। डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष और पहले राष्ट्रपति थे। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर गांधी विचारों और भारतीय संस्कृति के अनुरूप त्यागमयी जीवन जीने वाले राजेंद्र बाबू का कोई स्मारक दिल्ली में नहीं बनाया। संविधान निर्माण के बाद संविधान सभा के भाषणों को पढ़िए तो राजेंद्र बाबू के योगदान को उस समय के नेताओं ने किन शब्दों में वर्णित किया है पता चल जाएगा। राजेंद्र बाबू को राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत होने के बाद पटना के सदाकत आश्रम में समय बिताना ना पड़ा और वही छोटी जगह में उन्होंने शरीर त्यागा। कोई वहां जाकर उनकी सादगी को देख सकता है।
इस पृष्ठभूमि में कांग्रेस की मांग को राजनीति के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता। राजधानी में महात्मा गांधी जी की समाधि राजघाट से आगे बढ़ते जाइए आपको अगले चौराहे सड़क तक राजीव गांधी, संजय गांधी ,इंदिरा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के स्मारक व समाधियां मिलेंगी। वहां जाने वालों की संख्या न के बराबर है तथा जंगल झाड़ इतने हैं कि कुछ ही क्षेत्र में कोई घूम सकता है। स्व. अटलबिहारी वाजपेयी के समाधि के लिए सड़क के आगे जगह बनानी पड़ी। यूपीए शासन में राजीव गांधी की समाधि पर बार-बार नई परियोजनाएं आईं और बिना किसी आदेश के गांधी जी की समाधि के जमीनों का उपयोग हुआ, काफी भाग उसमें समाहित हो चुका है। चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद जब दबाव बना तो गांधी जी की समाधि से ही काट कर जमीन दिया गया। नेहरू जी या अन्य की समाधि के कारण उस तरफ जगह नहीं मिली। सच यह है कि वर्तमान स्थिति के कायम रहते हुए भविष्य के प्रधानमंत्रियों के लिए उस क्षेत्र में जगह नहीं है। यह तभी हो सकता है जब इन्ही समाधियों के अंदर उनका अंतिम संस्कार हो और स्मारक बने। रास्ता प्रधानमंत्री संग्रहालय की तरह निकल सकता है। जवाहरलाल नेहरू स्मारक संग्रहालय आज प्रधानमंत्री संग्रहालय में बदल चुका है और उसकी बायलॉज ऐसे बने हैं कि अब किसी भी पार्टी के प्रधानमंत्री की मृत्यु के बाद उनकी स्मृतियां वहां रखी जाएगी। आने वाले समय में न जाने कितने प्रधानमंत्री होंगे इनका ध्यान रखते हुए संग्रहालय का यह परिवर्तन समयोचित और व्यावहारिक है। इसी तरह अंतिम संस्कार और स्मारकों की भी व्यवस्था हो सकती है। क्या कांग्रेस अपने प्रथम परिवार के लोगों के स्थान से दूसरे को जगह देने के लिए तैयार होगी?
क्या देश में केवल प्रधानमंत्री को लेकर ही स्मारक या सम्मानजनक अंतिम संस्कार की बात होनी चाहिए? देश में बगैर पद लिए हुए भी अनेक लोगों का अमूल्य योगदान होता है। 1942 की क्रांति के हीरो लोकनायक जयप्रकाश नारायण और डॉ राम मनोहर लोहिया कोई स्मारक दिल्ली में नहीं बनाया गया। जयप्रकाश जी ने 1950 के बाद पूरा जीवन गांधी जी के ग्राम स्वराज को समर्पित कर दिया था। विकट परिस्थितियों में उन्हें 1974 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व संभालना पड़ा जिसके बाद आपातकाल लगा। विविध क्षेत्र में ऐसे अनेक लोगों का योगदान इस देश को यहां तक पहुंचाने या जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने में है। इसलिए हमारे सोचने का तरीका बदलना चाहिए। बगैर जनता के बीच काम कर लोकप्रियता प्राप्त किए हुए भी कोई प्रधानमंत्री बन सकता है। इंदर कुमार गुजराल और डॉ मनमोहन सिंह इसके उदाहरण हैं। निश्चित रूप से देश को इस दृष्टि से विचार करना चाहिए। तो तात्कालिक भावुकता या क्षणिक उत्तेजना में निष्कर्ष नहीं निकलना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने डॉ मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार संपूर्ण राजकीय सम्मान के साथ किया, सात दिनों का राजकीय शोक घोषित हुआ। कई पूर्व प्रधानमंत्रियों के लिए कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकारों ने नहीं किया।
सबसे महत्वपूर्ण पहलू भारतीय संस्कार अध्यात्म और संस्कृति दृष्टि है। यहां शरीर को नश्वर माना गया है और मृत्यु के पश्चात इसका कोई मूल्य नहीं। आत्मा मूल है, अजर-अमर है, पुनर्जन्म लेती है या मोक्ष मिलता है। भारतीय दृष्टि से सोचें तो जीवन अनंत यात्राओं का नाम है। शरीर के जीवन में हमारा नाम यहां दिया गया। अगले जन्म में कोई और रुप और नाम। इसी का ध्यान रखते हुए हमारे पूर्वजों ने मृत्यु के बाद मृतक से संबंधित सामग्रियां तक दान करने और तस्वीर तक न रखने की परंपरा बनी। समाधियां केवल उनकी होती थी जो दिव्यता प्राप्त कर समाधि लेते थे। कब्र के रुप में समाधियों की प्रवृत्ति इस्लाम, ईसाई या यहूदी आदि में रही है। किसी का स्मारक बने इसका जीवन सत्य से कोई लेना-देना नहीं।
पता, ई-30 गणेश नगर,पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -98110 27208
रविवार, 5 जनवरी 2025
मुंबई पुलिस ने स्वीकारा फेक दादासाहेब फाल्के पुरस्कार
शुक्रवार, 3 जनवरी 2025
भागवत के वक्तव्य का इतना विरोध क्यों
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत द्वारा वर्तमान मंदिर- मस्जिद उभरते विवादों पर दिए वक्तव्य को लेकर अनेक धर्माचार्यों और हिंदू संगठनों के नेताओं की विरोधी प्रतिक्रियायें लगातार आ रहीं हैं। इस संदर्भ में सबसे कड़ा बयान जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी का आया। उन्होंने कहा कि मैं भागवत के बयान से पूरी तरह असहमत हूं। मैं यह स्पष्ट कर दूं कि भागवत हमारे अनुशासक नहीं है, बल्कि हम हैं। बाद में उन्होंने एक टेलीविजन पर बात करते हुए ऐसा कुछ बोला जो उनके अंदर व्याप्त नाराजगी को साफ दर्शा रहा था । वैसे रामभद्राचार्य जी ने कहा कि संभल में अभी जो कुछ हो रहा है वह बहुत बुरा है। हालांकि सकारात्मक पहलू यह है कि चीज हिंदुओं के पक्ष में सामने आ रही हैं। हम न्यायालय में मतदान और जनता के समर्थन से इसे सुरक्षित करेंगे। वैसे अनेक संगठनों, बुद्धिजीवियों, नेताओं आदि ने डॉक्टर भागवत के बयान का समर्थन भी किया है। विडंबना यह है कि पहले जब सरसंघचालक ने ऐसे वक्तव्य दिए तब उसे झूठ, पाखंड और आंखों में धूल झोंकने वाला तक कहा गया। इसलिए विरोधियों की प्रतिक्रियाएं इन संदर्भों में न नैतिक है, न विश्वसनीय और न इनका कोई अर्थ है। हमें पूरे विषय को सही संदर्भों में देखना और निष्कर्ष निकालना होगा।
पिछले वर्षों में यह पहली बार नहीं है जब भागवत के वक्तव्य पर विरोधी तीखी प्रतिक्रियाएं हिंदू संगठनों, नेताओं और कुछ धर्माचार्यों की ओर से आया है। 2 जून, 2022 को नागपुर में जब उन्होंने कहा था कि अयोध्या, काशी और मथुरा की मान्यता रही है लेकिन हर मस्जिद में मंदिर क्यों तलाशें तब भी इसी तरह की प्रतिक्रियाएं थी और उसके पूर्व धर्म संसदों में दिए गए आक्रामक वक्तव्यों के संदर्भ में भी उनके विचारों का कुछ पक्षों ने विरोध किया था। ऐसा नहीं है कि संघ प्रमुख या संघ के शीर्ष नेतृत्व को इसका आभास पहले से नहीं होगा। बावजूद उन्होंने ऐसा वक्तव्य दिया और पहले भी देते रहे हैं तो निश्चित रूप से इसके पीछे गहरी सोच, अतीत और वर्तमान का विश्लेषण तथा भविष्य की दृष्टि होगी। हम संघ के विचारों या कुछ कार्यों से सहमत असहमत हो सकते हैं लेकिन निष्पक्ष होकर विश्लेषण और विचार करने वाले मानते हैं कि शीर्ष स्तर से दिया गया हर वक्तव्य और भाषण काफी सोच -समझकर ही सामने आता है। वैसे भी सरसंघचालक का वक्तव्य संगठन परिवार के लिए अंतिम शब्द माना जाता है। स्वाभाविक ही जब ऐसा बोल रहे थे तो देश में बने वातावरण और आम हिंदू समाज की उस पर हो रही प्रतिक्रियाएं सब उनके सामने थे और हैं। तो फिर ऐसा उन्होंने क्यों कहा होगा?
पहले उनके भाषण की उन पंक्तियों को देखें। 19 दिसंबर को पुणे के सहजीवन व्याख्यानमाला में ‘ इंडिया द विश्व गुरु’ विषय पर उनका भाषण था और उन्होंने मराठी में बोला। बोलते हुए डॉक्टर भागवत ने कहा ’ हम लंबे समय से सद्भावना से रह रहे हैं। अगर देश में सौहार्द्र चाहिए तो इसकी मिसाल हमारे देश में होनी चाहिए, हमारे देश में आस्था का सम्मान होना चाहिए । हिंदुओं का मानना है कि राम मंदिर बनना चाहिए, क्योंकि यह आस्था का स्थान है। लेकिन ऐसा करने से आप हिंदुओं के नेता बन जाएंगे ऐसा नहीं है या किसी हिंसक अतीत के फलस्वरुप अत्यधिक नफरत, द्वेष ,शत्रुता, संशय से हर दिन एक नया मामला उठाना यह कैसे काम कर सकता है।’ स्वाभाविक है कि संभल से लेकर बदायूं ,दिल्ली का जामा मस्जिद, कानपुर ,वाराणसी आदि में नए मंदिरों का मिलना, पहले से चल रहे वाराणसी के ज्ञानवापी और मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि न्यायिक विवादों के बीच बने हुए वातावरण में सहसा इन पंक्तियों को पचा पाना आसान नहीं हो सकता। विचार करने वाली बात यह है कि क्या संघ जैसा संगठन, जिसने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए अपनी पूरी शक्ति लगाई तथा मथुरा और काशी को लेकर भी उसके मत उन दिनों से स्पष्ट रहे हैं जब दूसरे संगठनों का प्रभाव नहीं था, या वे थे नहीं तो वह ऐसा कैसे बोल सकते हैं? वह भी उन स्थितियों में जब संभल से लेकर बदायूं वाराणसी दिल्ली भोजशाला आदि सभी जगह ऐतिहासिक रूप से घटनाएं और वर्तमान स्थिति हिंदुओं के पक्ष में जातीं है। मुस्लिम काल में इन मंदिरों को ध्वस्त किया गया और उनमें निहित प्रतिमाओं को अपमानित करने के लिए अनेक उपक्रम हुए स्वतंत्रता के बाद भी अपने ही मूल शहर से हिंदुओं को दूसरी जगह पलायन करना पड़ा उनके मंदिरों में पूजा पाठ करना, लोगों का जाना कठिन हुआ, बंद हुए और कई जगहों पर बेदर्दी से स्थलों को कब्जा करने के उपक्रम भी हुए। स्थानीय स्तरों पर इनमें से ज्यादातर स्थानों को प्राप्त करने की भावनायें या उन मुद्दों को उठाने और कहीं-कहीं संघर्ष करने का भी लंबा अतीत है। इसमें अगर व्यक्तिगत रूप से किसी हिंदू समूह या पूरे समाज को लगता है कि हमें वह स्थल वापस मिलने चाहिएं और जहां प्रतिमाओं का अपमान हुआ उनका निराकरण भी हो और इसके लिए वे सामने आते हैं, न्यायालय में जाते हैं तो यह स्वाभाविक है। भागवत जिस विषय पर बोल रहे थे वह भारत के विश्व गुरु बनने पर था और उनका पूरा भाषण 1 घंटे से ज्यादा का है। इसमें वह प्राचीन भारत से लेकर मुस्लिम काल, अंग्रेजों की गुलामी आदि के प्रभाव, वर्तमान में भारत किस तरह विश्व दृष्टि से कम कर रहा है आदि सभी बातें शामिल हैं जिनकी लोग अपेक्षा रखते हैं। फिर भविष्य की दृष्टि है और उसी में लगभग अंत में केवल एक कुछ पंक्तियां हैं। किसी देश को पूरा संसार अपना आदर्श तभी मानेगा और उसका अनुसरण भी करेगा जब वह देश अपने अंदर विवादों को सही तरीके से सुलझाने, सभी पंथो, मजहबों के बीच के तनावों को तरीके से समाप्त करने और सहजीवन के साथ रहते हुए आदर्श देश की मिसाल रखेगा। यानी उठाए जा रहे मुद्दों के अन्य पहलुओं पर गहराई से नहीं विचार होगा तो समस्यायें सुलझने के बजाय उलझेंगी और फिर इनका समाधान भी संभव नहीं होगा। कोई भी विवेकशील व्यक्ति कह नहीं सकता कि जो अतीत में अन्याय , अत्याचार, ध्वंस और कब्जे हुए वो वैसे ही रहे और लोगों की भावनाएं दमित हों। इनसे भविष्य में हिंसा व तनाव बढ़ाने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। समस्या यह है कि संपूर्ण देश में ऐसे हजारों स्थान है। कल्पना करिए धीरे-धीरे पूरे देश में ऐसे विषय उठ जाएं और स्थिति संभल जैसी पैदा हों तो क्या होगा? क्या देश की इन विवादों के अंतिम समाधान की अभी तक तैयारी है? क्या हिंदू समाज इनके विरुद्ध होने वाली अनेक तरह की विपरीत प्रतिक्रियाओं का सफलतापूर्वक सामना करने की अवस्था में पहुंच गया है? क्या जो लोग इन विषयों को न्यायालय में ले जा रहे हैं उनकी ऐसी क्षमता है कि वो इनका सामना भी कर सकें? क्या उन सब की विश्वसनीयता भी है? क्या धर्माचार्य और अन्य हिंदू संगठनों ने उन स्थितियों के लिए अपनी तैयारी कर रखी है? अभी तक ज्यादातर धर्माचार्ययों ने संगठित होकर किसी ऐसे विषय के समाधान की न पहल की न वे लोगों के बीच गए। संभल में ही समस्या पैदा होने पर कितने समाधान या संघर्ष के लिए आगे आए इन पर अवश्य दृष्टि रखिए। सारे प्रश्नों का उत्तर भारत के व्यापक राष्ट्रीय वैश्विक लक्ष्यों का ध्यान रखते हुए शांतिपूर्वक तलाश से जाने की आवश्यकता है। सच यह है कि लगभग 1000 वर्षों की हिंदू मुस्लिम विवादों के समाधान पर देश के राजनीतिक, धार्मिक और बौद्धिक नेतृत्व ने कभी लंबा विचार ही नहीं किया और जब विचार नहीं होगा तो फिर रास्ता निकालेगा कौन? इसके विपरीत राजनीतिक दलों ने वोट के लिए अपने बयानों और नीतियों से अतीत या वर्तमान के अन्यायों का ही समर्थन किया और जो इन विषयों को उठा रहे हैं उन्हें आज भी उन्हें ही निंदा आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ता है। इस सच को स्वीकार करना होगा कि ऐसी नीतियों और आचरणों से सनातनी समाज के अंदर व्यापक असंतोष और क्षोभ पैदा हुआ जिसकी परिणति इन छिटपुट विवादों के रूप में सामने आ रहीं हैं। दूसरी ओर जब इन विवादों से समस्याएं बढ़तीं हैं या प्रतिक्रियाएं विकराल रूप में सामने आतीं हैं तो न कोई संगठन दिखता है और न ही हमारे धर्माचार्य। संभल में सर्वे के सामान्य न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध जितनी सुनियोजित तरीके से हिंसा हुई और उसकी आलोचना की जगह जिस दिशा में पूरे मुद्दे को व्याप्त इकोसिस्टम ले गया उनका सामना कौन करेगा? विरोधी इन सारे विवादों के लिए किस संगठन को जिम्मेदार ठहराते हैं? संघ और भाजपा। संघ की प्रकृति कभी ऐसी नहीं दिखी कि वह आरोपों का खंडन करने या विवादों पर स्पष्टीकरण देने आए। जिस संगठन को दीर्घकालिक दृष्टि से काम करना है वह त्वरित और तात्कालिकता का समर्थन नहीं कर सकता। जिस तरह संभल से कानपुर और अन्य शहरों में स्वतंत्रता के बाद भी सक्रिय मंदिरों पर कब्जे हुए, बंद किए गए, पवित्र कुएं तक पाटे गए और ऐसे स्थान काफी संख्या में सामने आ रहे हैं,उनकी आवाज उठाने और प्रशासन की मदद से उनके समाधान की,कोशिशें हो रहीं हैं, सतर्अतापूर्वक होनी चाहिए। संघ प्रमुख ने उन पर बात नहीं की है। संघ का रुख यही रहा है कि हम हिंदू समाज के संगठन है लेकिन सभी हिंदू हमारे साथ है ऐसा नहीं है। गहराई से देखें तो डॉक्टर भागवत का वक्तव्य भविष्य दृष्टि से सभी के लिए सुझाव और सलाह की तरह है और इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए। संघ या कोई संगठन धर्माचार्यों का अनुशासक या उनका मार्गदर्शक न हो सकता है और न उनके अंदर ऐसा भाव होगा। लेकिन सभी को समस्याओं के स्थायी समाधान,भारत के वर्तमान और भविष्य की दूरगामी दृष्टि से विचार कर आगे बढ़ना चाहिए।
अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -9811027288
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