शुक्रवार, 27 जून 2025

तीसरी बार निर्विरोध डे्सू मजदूर संघ के अध्यक्ष चुने गए किशन यादव

संवाददाता

नई दिल्ली। भारतीय मजदूर संघ से सम्बद्ध डेसू मजदूर संघ जिसका पंजीकरण संख्या 1336 है। इसके चुनाव 26 जून, 2025 को डे्सू मजदूर संघ के रविदास मंदिर, आरके पुरम, दिल्ली  के कार्यालय में हुए। इस चुनाव से पहले पुरानी कार्यकारिणी को भंग करके नई कार्यकारिणी का गठन किया गया और नए पदाधिकारी को जिम्मेदारी दी गई। इसमें किशन यादव को पुन: निर्विरोध तीसरी बार अध्यक्ष चुना गया। किशन यादव के अलावा विनोद कुमार वरिष्ठ कार्यकारी अध्यक्ष, अजीत कुमार उपाध्यक्ष, बीवाईपीएल के सरवन कुमार यादव उपाध्यक्ष, बीआरपीएल के हरीश कुमार वासने उपाध्यक्ष, डीटीएल सुभाष चंद्र महामंत्री, इम्तियाज अहमद सचिव, दीपचंद संगठन मंत्री, रामकुमार ऑफिस सचिव, दिलराज लीगल सचिव, सुभाष पाल कोषाध्यक्ष चुना गया।

इस चुनाव के बाद बैठक में कुछ प्रस्ताव पास किये गए जैसे 1. दिल्ली की पाँचो कंपनियों में काम करने वाले सभी डे्सू मजदूर संघ यूनियन की सदस्यता ग्रहण कर सकता है जिसमें एएमसी के कर्मचारी, आऊटसोर्स के कर्मचारी, एचआरएमएस के कर्मचारी, एसएलए के कर्मचारी, डाइवर कर्मचारी, सफाई कर्मचारी, जीपीए कर्मचारी। 2. पांचों बिजली कंपनियों में काम करने वाले ठेका कर्मचारियों को पक्का किया जाए, इसकी पूरी कोशिश की जाएगी। 3. करूण मूलक आधार पर आश्रितों के बच्चों को नौकरी पर रखा जाए। 4. जिस कर्मचारी को मिनियम वेज नहीं मिल रहा है उस कर्मचारी को मिनियम वेज दिलाना है आदि।

इस मौके पर बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड कंपनी के लिए भी जनरल बॉडी के पदाधिकारी रूप में अशोक कुमार अध्यक्ष, दिनेश कुमार उपाध्यक्ष, ऋषिपाल महामंत्री, सेन्तुल त्यागी संगठन मंत्री, अब्दुल रज़्ज़ाक़ नॉर्थ ईस्ट दिल्ली सचिव, नसरुद्दीन सेंट्रल दिल्ली सचिव, निरंजन धरोहर कोषाध्यक्ष, विनोद कुमार सह कोषाध्यक्ष चुना गया।

बीआरपीएल यमुना पावर लिमिटेड कंपनी के लिए जनरल बॉडी बृजेश उपाध्यक्ष, ओमपाल उपाध्यक्ष, प्रदीप कुमार महामंत्री, चंद्र केतु मिश्रा संगठन मंत्री, रमेश कुमार सचिव, इकबाल खान कोषध्यक्ष, बुद्धपाल ऑफिस सचिव बनाया गया और दीपेंद्र तिवारी के लिए पद छोड़ दिया गया है।

इस मौके पर किशन यादव ने सभी को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हमारा संगठन मजदूरों की आवाज को उठाता रहेगा और सभी चुने गए पदाधिकारियों से भी मैं यही आशा करता हूं कि वह अपना काम ईमानदारी से करेंगे।
















बुधवार, 25 जून 2025

प्रधानमंत्री द्वारा ट्रंप से दो टूक बात के बाद झूठा नैरेटिव ध्वस्त हुआ

अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जी 7 के लिए कनाडा, उसके पहले साइप्रस और फिर क्रोएशिया तक की यात्रा अनेक अनेक अर्थों में विदेश नीति, समर-नीति से लेकर रक्षा, आंतरिक सुरक्षा तथा नैरेटिव के संदर्भ में जबरदस्त उपलब्धियों एवं परिणामों वाली मानी जाएगी। भारत के अंदर और बाहर विरोधियों को भी इस तरह सफलता को प्रतिध्वनित करने वाली यात्रा की कल्पना नहीं रही होगी। शायद इन शब्दों में किसी को अतिवाद दिखे किंतु क्या आपने कल्पना की थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बातचीत में सीधे ऑपरेशन सिंदूर और भारत पाकिस्तान सैनिक टकराव रुकने संबंधी अमेरिकी दावे का ऐसा खंडन किया जाएगा? ऐसा नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप आगे भारत पाकिस्तान के संदर्भ में श्रेय लेने के लिए मध्यस्थता करने का दावा नहीं करेंगे। उन्होंने किया भी है। किंतु विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दोनों नेताओं के बीच टेलीफोन पर 35 मिनट की हुई बातचीत का जो ब्यौरा दिया उसका ट्रंप प्रशासन द्वारा खंडन न किया जाना ही बताता है कि वक्तव्य पूरी तरह सच है। दो नेताओं की बातचीत में सामने वाले को कहा जाए कि आपने जो दावा किया वैसी बातचीत हमारे आपके बीच कभी हुई नहीं तो उस पर क्या गुजरेगी? 

विदेश सचिव विक्रम मिश्री की इन पंक्तियों को देखिए–, “ प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को स्पष्ट रूप से कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के संबंध में कभी भी और किसी भी स्तर पर भारत-अमेरिका ट्रेड डील या अमेरिका की ओर से भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता जैसे विषयों पर बात नहीं हुई थी। सैन्य कार्रवाई रोकने की बात सीधे भारत और पाकिस्तान के बीच हुई। दोनों सेनाओं की बात मौजूदा चैनल्स के माध्यम से हुई थी। पाकिस्तान के ही आग्रह पर ये बातचीत हुई थी।” ट्रंप ने क्या उत्तर दिया यह सामने नहीं है। जरा सोचिए, अगर ट्रंप जी 7 बैठक बीच में छोड़ अमेरिका नहीं लौटे होते और आमने-सामने बातचीत होती तो कैसा दृश्य होता? कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तेवर का आभास ट्रंप को हो और उन्होंने वहां से तत्काल निकल जाने में नहीं उचित समझा। 

निश्चित रूप से देश में कांग्रेस सहित सारी पार्टियों और झूठे नैरेटिव से नकारात्मक इकोसिस्टम खड़ा करने वाले समूहों को धक्का पहुंचा होगा। भारत-पाकिस्तान के सैनिक टकराव रुकने के संबंध में ट्रंप के लगातार वक्तव्यों को आधार बनाकर संकुचित राजनीति के लिए जिस तरह का उपहास प्रधानमंत्री, भारतीय विदेश नीति व रक्षा नीति का उड़ाया जा रहा था उन सब पर तुषारापात हुआ है। सामान्य शिष्टाचार है कि ट्रंप अंकल का एक फोन आते ही मोदी ने युद्ध रोकने का आदेश दे दिया का नैरेटिव चलाने वाले कम से कम अफसोस प्रकट करें।  किसी ने नहीं सोचा कि जब भारत की वर्षों पुरानी नीति कश्मीर को द्विपक्षीय मामला मानने तथा तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप न करने देने की है तो सरकार इससे परे नहीं जा सकती। वैसे भी नरेंद्र मोदी सरकार ने तो पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादी हमलों का प्रतिकार किया और नीतिगत बयान यही है कि केवल पाक अधिकृत कश्मीर को सुलझाना ही बचा हुआ है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में ही पाकिस्तान से किसी स्तर की बातचीत या तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को सीधे-सीधे नकारा। विदेश सचिव के वक्तव्य से यह धारणा भी खंडित हुआ कि इस बीच मोदी और ट्रंप के बीच कोई बातचीत हुई। वे कह रहे हैं कि उसके बाद दोनों नेताओं की पहली बातचीत थी। पूरे घटनाक्रम की स्थिति में यह तथ्य काफी महत्वपूर्ण है। यानी  9 मई को केवल अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के साथ बातचीत हुई जिन्होंने पाकिस्तान द्वारा भारत पर बड़े हमले की जानकारी दी थी और जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत उससे बड़ा जवाब देगा और दिया गया।  यानी युद्धविराम की उसमें भी कोई बात नहीं। 

साफ है कि ऑपरेशन सिंदूर पर विरोधियों द्वारा बनाया नैरेटिव शर्मनाक तौर पर झूठा था।  ट्रंप को भी सीधे प्रधानमंत्री से यह सुनने के बाद कि भारत अब आतंकवाद को प्रॉक्सी वार नहीं, युद्ध के रूप में ही देखता है और “ऑपरेशन सिंदूर” अभी भी जारी है, हमारी नीति और तैयारी का स्पष्ट आभास हो गया होगा। यानी आप क्या सोचते और चाहते हैं वह नहीं हमारी सुरक्षा हमारे लिए महत्वपूर्ण है और यही नीति का मुख्य आधार है।

सामान्य तौर पर यह व्यवहार भी हैरत भरा है कि एक ओर ट्रंप पाकिस्तान के फिल्ड मार्शल जनरल असीम मुनीर को रात्रि भोज दे रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी से अमेरिका आने का आग्रह कर रहे हैं। यह अमेरिका की कैसी रणनीति है? मोदी सरकार ने ट्रंप प्रशासन के साथ सही रणनीति अपनाया और दूसरी प्रतिबद्धताओं की बात कह मोदी ने ट्रंप के निमंत्रण को ठुकरा दिया। यह भी ट्रंप और उनके प्रशासन के लिए सामान्य धक्का नहीं था। कनाडा से अमेरिका जाकर कुछ घंटे बातचीत करते हुए क्रोशिया जा सकते थे। इसका आभास भी ट्रंप और उनके प्रशासन को होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा कर भारत की नाराजगी प्रकट कर दिया है।  मोदी को ट्रंप का आज्ञाकारी और न जाने क्या-क्या शब्द देने वाले कभी यह भी नहीं सोचते कि वह किसी व्यक्ति का नहीं 140 करोड़ भारतीयों के नेता और इस नाते भारत को छोटा दिखा रहे हैं। विचार इस पर होना चाहिए कि ट्रंप के व्यवहार में बदलाव आया क्यों? सब कुछ जानते हुए डोनाल्ड ट्रंप और उनका प्रशासन पाकिस्तान के साथ सम्मानजनक और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार कैसे करने लगा?

तत्काल ऐसा लगता है कि अमेरिका ने ईरान के अयातुल्लाह खामेनेई की सत्ता समाप्त करने की रणनीति काफी पहले बना ली। पाकिस्तान किसी स्तर पर ईरान की ठोस मदद न कर सके इसकी तैयारी के तहत उसे पुचकारा गया । मुद्रा कोष से कर्ज दिलाने में मदद की, फिर भारत के साथ समानता का व्यवहार करते हुए उसे भी महान देश बताया और अब पहलगाम आतंकवादी हमले के मुख्य खलनायक तथा सरेआम मुसलमान को विशेष संस्कृति बताने वाले जनरल को इतना महत्व। इसके पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने अन्य जनरलों को ऐसा महत्व नहीं दिया।  पाकिस्तान ईरान की सीमा लगभग 900 किलोमीटर मिलती है। ईरान के रक्षा मंत्री का वह बयान उपलब्ध है कि आवश्यकता पड़ने पर पाकिस्तान अपना न्यूक्लियर हथियार मदद में देगा। इस्लाम के नाम पर ऐसी भयानक स्थिति पैदा न हो इसका ध्यान रखते हुए ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान से संपर्क बढ़ाया होगा। संभव है इसी से आत्मविश्वास बढ़ा और पाकिस्तान भारत के विरुद्ध भौंहें टेढ़ी किया हो। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री को इसका खंडन करना पड़ा।

इसे भारतीय विदेश नीति की विफलता करार देना भी अनुचित है। भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो हैसियत है वह  बनी हुई है। ऐसा नहीं होता तो जी7 के देश ही मांग नहीं करते कि सम्मेलन में भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति होनी ही चाहिए। प्रधानमंत्री ने वहां आतंकवाद पर खड़ी-खरी सुनते हुए कहा भी आतंकवाद पर हमारा रवैया नहीं बदला तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। एक ओर तो हम अपने अनुसार किसी पर प्रतिबंध  हैं और दूसरे आतंकवाद के मुख्य केंद्र को समर्थन करते हैं। अमेरिका , यूरोप पाकिस्तान की भूमिका के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं। किंतु  उनकी सोच है कि पाकिस्तान अलग-थलग होकर पूरी तरह चीन के पाले में चला जाएगा और एक उग्रवादी अराजकतावादी देश बन जाएगा।  ये नहीं चाहते कि पाकिस्तान को अलग-थलग कर उसे पूरी तरह चीन के पाले में जाने और उग्रवादी अराजकतावादी देश बनने की ओर धकेल दें।  एक समय पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय जेहादी आतंकवाद का मुख्य केंद्र था। आज वह उसी रूप में उनके लिए खतरा नहीं है जैसा भारत के लिए है। अमेरिका की उसके पड़ोसी अफगानिस्तान और ईरान से उपस्थिति भी खत्म है।

भारत को इसका ध्यान रखते हुए ही नीतियां बनानी है और बना भी रहा है। आतंकवादी हमले होंगे तो सब साथ होने का बयान देंगे, लेकिन पाकिस्तान पर हमले में साथ नहीं मिलेगा। तो सबक यही है कि विरोधी मोदी विरोध के नाम पर भारत को छोटा दिखाने के लिए इस तरह झूठ नैरेटिव से बचें।


गुरुवार, 19 जून 2025

यह युद्ध किधर जा रहा है

अवधेश कुमार

इजरायल ईरान युद्ध संपूर्ण विश्व को प्रभावित करने वाला है और भारत इसके परिणामों से किसी दृष्टि से अप्रभावित नहीं रह सकता। यह केवल तेल जैसे आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी इसके परिणाम दिखाई देंगे। 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद ईरान और इराक युद्ध से इस समय भीषण युद्ध खाड़ी के अंदर चल रहा है। ईरान इराक युद्ध के परिणाम देखा जाए तो कुछ नहीं आए किंतु इजरायल ईरान युद्ध के परिणाम केवल अरब या खाड़ी क्षेत्र में ही नहीं पूरे विश्व में बड़े वैचारिक, रणनीतिक , राजनीतिक बदलाव के कारण बन सकेंगे। इस समय युद्ध से परस्पर विरोधी रिपोर्ट हमारे सामने है। युद्ध के दौरान दोनों पक्ष और उनके समर्थक अलग-अलग तरीके से अपने पक्ष की सूचनायें प्रसारित करते हैं और यही हो रहा है। विश्व के एक बड़े वर्ग में सामान्य धारणा है कि इजरायल इतने लंबे समय तक अरब में अपनी सैनिक क्षमता, संकल्प और लड़ने की अंतिम सीमा तक की भावना के साथ टिका हुआ है तथा अनेक बार अरब देशों को झुकाया है, समझौते करने को भी विवश किया है तो ईरान की भी यही दशा होगी। दूसरी ओर पूरे मुस्लिम जगत का एक बहुत बड़ा वर्ग  मान रहा है कि अयातुल्लाह खामेनेई के नेतृत्व में इस्लामी क्रांति के पीछे जो दृश्य अदृश्य शक्तियां हैं वो ईरान को कभी पराजित नहीं होने देंगी। ईरान के हमले से तेल अबीब सहित कई जगह कुछ विध्वंस देखे गए। सर्वाधिक सुरक्षित हाइफा बंदरगाह के भी क्षति पहुंचाने के समाचार आए। यह भी सूचना हमारे बीच है कि इजरायल के मिसाइल को कई जगह ईरान ने रोकने में सफलता पाई तथा उसके मिसाइलों ने इजरायल की मिसाइल रक्षा प्रणाली तक को भी कई बार भेदा है। तो फिर इस युद्ध का सच क्या है और इसके परिणाम क्या हो सकते हैं?

भूगोल आबादी और संसाधन की दृष्टि से देखें तो ईरान का क्षेत्रफल इजरायल से 10 गुना ज्यादा तथा आबादी इससे भी ज्यादा है। दोनों के सुरक्षा बलों की संख्या में भी कोई तुलना नहीं है। कहां 90 लाख का देश और कहां 10 करोड़ की आबादी। उस आबादी में भी एक बड़े वर्ग के अंदर इस्लामी क्रांति के तहत जिहाद और मजहब के विजय की भावना भरी हुई। दूसरी ओर 1979 के बाद चाहे अयातुल्लाह खोमैनी हों या अयातुल्लाह खामेनेई या फिर वहां के निर्वाचित राष्ट्रपति, सबने धरती से इजरायल के नामोनिशान मिटाने की बार-बार घोषणा की और ईरान राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य भी बना दिया। इसके बावजूद आज तक कुछ नहीं कर सके। उल्टे जितने युद्ध अरब में हुए इजरायल सबमें व्यावहारिक रूप से विजेता बनकर उभरा और कैंप डेविड से लेकर अभी तक सारे समझौतों में इजरायल के सामने बहुत कुछ खोने की नौबत नहीं आई। दूसरे,  वर्तमान युद्ध में ईरान का सक्रिय साथ देने वाला एक भी देश इस समय नहीं है। जिस चीन, रुस, उत्तर कोरिया या कुछ इस्लामी देशों से उसे उम्मीद थी किसी ने भी इजरायल के विरुद्ध संघर्ष करने की तो छोड़िए, आक्रामक बयान तक नहीं दिया है। एकमात्र पाकिस्तान ने ही मुखर होकर ईरान का समर्थन किया । पाकिस्तान की हैसियत स्वयं इस्लामी जगत में ही इतनी बड़ी नहीं कि वह अपने साथ किसी देश को युद्ध के लिए खड़ा कर सके। ईरान के लिए यह हतप्रभ करने वाली स्थिति है कि संकट की इस घड़ी में कोई देश उसके साथ सक्रिय रूप से आगे नहीं आया। शांति की बात करने वाले कुछ देश जरूर हैं।

कुछ अन्य कारक भी ईरान के विरुद्ध और इजरायल के पक्ष में जाते हैं। इजरायल ने अभी तक ईरान के तीनों सेना  प्रमुखों, अनेक शीर्ष सैन्य अधिकारियों और सबसे एलिट माने जाने वाले इस्लामी क्रांति के बाद उत्पन्न ईरान रिवॉल्यूशनरी गार्ड के प्रमुख को एक ही हमले में समाप्त कर दिया। उसके साथ अनेक शीर्ष परमाणु नाभिकीय वैज्ञानिक भी मौत के घाट उतार दिए गए। उसके इंटेलिजेंस चीफ यानी खुफिया प्रमुख भी मारे जा चुके हैं । स्वयं अयातुल्लाह खामेनेई और उनके बेटे मोजताबा दोनों के बारे में इतनी जानकारी है कि वे कहीं छिपे हुए हैं।  ध्यान रखिए , ईरान ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इजरायल के किसी बड़े सैन्य अधिकारी व नाभिकीय वैज्ञानिक आदि को मारने में सफलता नहीं पाई है। ईरान के मिसाइल इजरायल पर अंधाधुंध हमले कर रहे हैं और उसे ज्यादातर नागरिक स्थल ही ध्वस्त हुए हैं।‌ इस्लामी क्रांति के बाद आयतुल्लाह खोमैनी और खामेनेई ने ईरान को इस्लाम का नेता बनाने के लिए फिलिस्तीन मुद्दे को सबसे आगे किया। उन्होंने जिस तरह के भाषण दिए उससे विश्व भर के मुसलमानों के एक बड़े वर्ग के अंदर फिलिस्तीन की जज्बाती मजहबी समर्थन का भाव भी पैदा हुआ। सीधे संघर्ष की जगह ईरान ने लेबनान में हिजबुल्ला, यमन में हुती विद्रोही पैदा किया तो सुन्नियों के समर्थन के लिए इस्लामिक ब्रदरहुड के भाग के रूप में फिलिस्तीन में हमास। इन्हीं के माध्यम से वह इजरायल को लगातार घाव देता रहा है।

इजरायल ने ईरान पर निर्णायक हमले के पूर्व जो कुछ किया वह हमारे सामने है। उसने हिज्बुल्ला को नेस्तनाबूत किया और उसके प्रमुख नसीरूल्लाह सहित सारे शीर्ष कमांडरों को समाप्त कर दिया। लेबनान को इस स्थिति में नहीं छोड़ा कि वह ईरान के साथ खड़ा हो सके। हमास को भी विनाश के कगार पर पहुंचा दिया और उसके प्रमुख इस्माइल हानियां तक को पिछले साल  खत्म कर दिया। हूती को अमेरिका के साथ कमजोर किया। हालांकि इस समय हुती लाल सागर में गतिविधियां दिखा रहे हैं लेकिन उन पर भी जबरदस्त मार पड़ रही है। इसके साथ इजरायल धीरे-धीरे ईरान के प्रमुख शीर्ष सैन्य रणनीतिकारों और नाभिकीय वैज्ञानिकों तक को मौत के घाट उतारता रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल की पश्चिम एशिया यात्रा के दौरान सीरिया के सत्ता पर काबिज पूर्व आतंकवादी अहमद अल शराब उर्फ अबू मोहम्मद अल जुलानी से हाथ मिलाया तो उसके पीछे भी रणनीति थी कि वह इब्राहिम अकॉर्ड यानी समझौता पर हस्ताक्षर करे जिसमें इसराइल को मान्यता देने की बात है। वे जिन देशों में गए वहां उन्होंने ईरान के विरुद्ध इजरायल के पक्ष में वातावरण बनाया। इसका परिणाम देखिए कि हमास के समर्थक कुछ पत्रकारों को अरब देशों के अंदर ही गिरफ्तार कर सजा दी गई या उन्हें मार डाला गया। इनमें सऊदी अरब भी शामिल है जो कट्टर सुन्नी देश है। आज स्थिति यह है कि मोहम्मद पैगंबर साहब के वंशजों के शासन के अधीन वाला देश जॉर्डन इजरायल के विमान को जाने की अनुमति दे रहा है लेकिन ईरानी मिसाइल को इंटरसेप्ट कर रहा है। दूसरी ओर अमेरिका पूरी तरह इजराइल के साथ खड़ा है और अगर ईरान का पलड़ा कहीं से मजबूत दिखा तो वह कभी भी हस्तक्षेप करेगा। डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की तो उसके पीछे भी निश्चित रूप से उन्हें इस युद्ध से दूर रहने के लिए तैयार करना रहा होगा। भारत की दृष्टि से देखें तो ईरान से हमारे संबंध अच्छे माने जाते हैं। पश्चिम एशिया से तेल आपूर्ति से लेकर अन्य रणनीतिक मामलों में ईरान के समुद्री मार्गों की हमें आवश्यकता है । दूसरी ओर ईरान से संबंधों की सीमाएं रही है। पिछले वर्ष अयातुल्लाह खामेनेई ने भारतीय मुसलमान की फिलिस्तीन से तुलना करते हुए पोस्ट लिखा था। कश्मीर मामले पर उसका बयान भारत विरुद्ध रहा है। पाकिस्तान में उसका लक्ष्य केवल सुन्नी मुसलमानों के शासन को मजबूत नहीं होने देना है अन्यथा उसकी नीति कहीं भी भारत के पक्ष में नहीं है। बलूचिस्तान के एक भाग पर उसका कब्जा है तथा वह भी पाकिस्तान की तरह ही बलूचियों का दमन कर रहा है। ईरान का पूरा इतिहास देखें तो कभी भी कठिन परिस्थिति में वह भारत के समर्थन में खड़ा नहीं हुआ।

इसलिए जो लोग भी ईरान को लेकर छाती पीट रहे हैं उन्हें भारत के साथ संबंधों में इजरायल और ईरान के व्यवहार की निष्पक्षता और ईमानदारी से तुलना करनी चाहिए। कोई नहीं कहता कि आयतुल्लाह खामेनेई का ईरान अचानक घुटने टेक देगा। उसके पास मिसाइल, ड्रोन, लड़ाकू विमानों से लेकर बड़े शस्त्रागार हैं । किंतु वह इजरायल या उसके साथ देने वाले अमेरिका के मुख्य सामरिक स्थलों को ध्वस्त कर उन्हें हमला न करने की स्थिति में लाने की क्षमता नहीं दिखा पाया है। तो इस युद्ध के परिणाम ईरान के पक्ष में नहीं जा सकते। इसमें अगर अयातुल्लाह खामेनेई का पतन होता है तो यह 1979 के इस्लाम के नाम तथाकथित क्रांति द्वारा सत्ता कब्जाने तथा उसके बाद पैदा हुए संपूर्ण अरब में कट्टरपंथ के दौर के बाद का एक नया चरण आरंभ होगा। इसका प्रभाव विश्व एवं भारत पर निश्चित रूप से पड़ेगा।


गुरुवार, 12 जून 2025

प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान के साथ आतंक विरोधी वैश्विक युद्ध की भी आधारभूमि तैयार की

  • ऑपरेशन सिंदूर के साथ नेतृत्व भारत के हाथों हो सकेगा

अवधेश कुमार 

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की सातों टीमें विदेश यात्रा समाप्त कर लौट चुकी है। हमारे देश में ऐसे कदमों की हमेशा भूतकाल की घटनाओं से तुलना की जाती है। इसके बारे में भी सामान्य प्रतिक्रिया थी कि पहले भी विदेश में प्रतिनिधिमंडल भेजे गए हैं। भारत छोड़िए, क्या आधुनिक विश्व के इतिहास में किसी देश ने एक साथ इतना बड़ा प्रतिनिधिमंडल 33 देश की यात्राओं पर इतने कम समय में अपने देश का पक्ष रखने के लिए भेजा था? वास्तव में केवल भारत नहीं संपूर्ण विश्व की दृष्टि से यह अभूतपूर्व कदम था। चूंकि कि हर मुद्दे व नीतियों की संकुचित राजनीतिक वैचारिक दृष्टि से मूल्यांकन करने का घातक चरित्र भारत में विकसित है इसलिए गहराई से सोचने का माद्दा धीरे-धीरे क्षीण हो रहा है। इस कदम की भी देश के अंदर जितनी व्यापक आलोचना हुई वह सामने है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने तो इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 11 वर्षों की कूटनीति और विदेश नीति के मोर्चे पर विफलता का प्रतिबिंब बता दिया। किसी ने नहीं सोचा कि पाकिस्तान के दो समर्थक देशों को छोड़कर भारत के विरुद्ध दुनिया से एक स्वर नहीं आया।  तो फिर विदेश में इतने बड़े कूटनीति का अभियान की आवश्यकता क्या थी?

आप पहलगाम हमले के बाद भारत की संपूर्ण प्रतिक्रियाओं और ऑपरेशन सिंदूर तथा उनसे जुड़ी हुई रक्षा व राजनयिक गतिविधियों , विदेश की प्रतिक्रियाओं तथा इस समय संपूर्ण विश्व की स्थितियों को एक साथ मिलाकर देखें तो निष्कर्ष वही नहीं आएगा जैसा हमारे देश में तात्कालिक तौर पर निकाला गया है। मोदी सरकार विरोधी नेता विशेषकर कांग्रेस की पूरी बुद्धि इसमें लगी है कि ऑपरेशन सिंदूर में भारत की क्षति को सामने लाया जाए या लोगों के अंदर भाव पैदा किया जाए कि हमारा नुकसान बहुत ज्यादा हुआ। कोई भी युद्ध बगैर नुकसान के नहीं लड़ा जा सकता इतनी बात मोटी बुद्धि में भी आ जाएगी। मुख्य बात अपने संकल्प और प्राप्ति की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प साफ दिखता है -चाहे जितनी क्षति हो , कूटनीतिक ,रक्षा एवं आर्थिक मोर्चे पर संपूर्ण चुनौतियों का सामना करते हुए हर हाल में आतंकवाद से मुक्ति पाना है। ऐसा अभूतपूर्व प्रतिनिधिमंडल इसलिए नहीं भेजा गया कि केवल पाकिस्तान के विरुद्ध औपरेशन सिंदूर कि कार्रवाई के बारे में दुनिया को बताना है। भारत का मत बिल्कुल स्पष्ट है, आतंकवाद की हर घटना युद्ध मानी जाएगी और प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि कि  केवल आतंकवादियों की नहीं,  सत्ता और सेना की कार्रवाई मानकर ही कदम उठेगा इसमें जिसको साथ देना है दे, नहीं देना है नहीं दे। निश्चित रूप से दीर्घकालीन योजना बन चुकी है। सुनने में भले सामान्य लगे लेकिन यह बहुत बड़ा लक्ष्य है और इसके आयाम पाकिस्तान से निकलकर विश्वव्यापी हैं। विदेश गए प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान पर फोकस करते हुए उसकी आंतरिक कलह , आतंकवाद की वैश्विक स्थिति, जम्मू कश्मीर की संपूर्ण स्थिति, जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर के भाग को चीन को दिया जाना भी शामिल है, रखा है। विश्व को बताया है कि अनेक देशों के आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान में है और यह समाप्त नहीं हुआ है। भारत ने आतंकवाद पर अपना मत दंभी देशों के समक्ष रखा। स्वाभाविक ही प्रकारांतर से इसमें यह भी निहित है कि आतंकवाद विरोधी युद्ध पहले से  ज्यादा कठिन और अपरिहार्य हो चुका है।

अमेरिकी नेतृत्व में नाटो और पश्चिमी देशों द्वारा आरंभ आतंकवाद विरोधी वैश्विक शुद्ध शर्मनाक रूप से विफल हो चुका है। स्वयं अमेरिका अफगानिस्तान से लेकर इराक, लीबिया, सीरिया ….से भाग चुका है। सीरिया में अमेरिका ने अपने ही द्वारा घोषित आतंकवादी को सत्ता कब्जाने में मदद की और वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उससे हाथ मिलाने चले गए। परिणामत: आतंकवादी समूहों तथा उनको प्रश्रय देने वाले देशों का हौंसला बुलंद है , वे निर्भय हैं तथा पीड़ित देश डरे सहमे और किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। इसमें पाकिस्तान जैसे नाभिकीय संपन्न देश के विरुद्ध कार्रवाई तथा आर्थिक एवं कूटनीतिक घेरेबंदी विश्वव्यापी आतंकवाद विरोधी युद्ध का भारत के नेतृत्व में नये सिरे से आगे बढ़ाया जाना है। भारत ने 1996 से आतंकवाद की परिभाषा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव लपेश किया हुआ है। आतंकवाद के विरुद्ध बोलने वाले देश भी उसे पारित कर एक परिभाषा तय करने को तैयार नहीं। ये आतंकवाद को विश्व स्तर से समाप्त करने के लिए या हमारे लिए लड़ेंगे ऐसी कल्पना ही बेमानी है। इसलिए भारत का लक्ष्य अपने आर्थिक व रक्षा क्षमताओं का विस्तार करते हुए आतंकवाद के वैश्विक केंद्र पाकिस्तान को इस स्थिति में लाना है जिससे भविष्य में वह इसे प्रायोजित करने की अवस्था में ही न रहे। आप देखेंगे पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर पर केवल विपक्ष प्रश्न नहीं उठा रहा प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री सब आक्रामक और मुखर वक्तव्य देकर उसे हासिल करने का संकल्प दोहरा रहे। यह भी बहुआयामी नीति है। इसमें पाकिस्तान के भौगोलिक और राजनीतिक विखंडन की गति को तेज करने की रणनीति शामिल दिखती है। यानी इस समय पाकिस्तान जिस अवस्था में है इसके रहते हुए जम्मू कश्मीर की समस्या ही नहीं इस्लाम मजहब प्रेरित आतंकवाद का अंत संभव नहीं। तो जब प्रधानमंत्री ऑपरेशन सिंदूर को अखंड प्रतिज्ञा बताते हुए कहते हैं कि यह केवल स्थगित हुआ है, हमारी सेना के शीर्ष अधिकारी इसे जारी रखने की बात कहते हैं और रक्षा मंत्री इसे पूरी फिल्म का केवल ट्रेलर बताते हैं तो यह केवल लोगों की भावनाओं का दोहन नहीं है। गहराई से देखें तो ऑपरेशन सिंदूर का लक्ष्य अंग्रेजी में ‘नो मोर पाकिस्तान ‘ यानी पाकिस्तान का विखंडन या इसके भौगोलिक एवं वर्तमान राजनीतिक अस्तित्व को खत्म करना दिखेगा। 

हमें इसमें अतिवादी सोच की गंध आ सकती है। थोड़ी गहराई से देखिए तो पाकिस्तान इस्लाम की जिस अतिवादी अवधारणा पर पैदा हुआ उसमें अंतर्निहित दोष हैं और इस कारण वह कभी पूरी तरह शांत , स्थिर और एकजुट देश नहीं बन सका । बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में अहिंसक , हिंसक विखंडन अभियान चरम पर है । पीओके में भी पाकिस्तान के विरुद्ध असंतोष व्यापक है। हालांकि इन सबका मजहब इस्लाम है और इस नाते हम ऐसा नहीं मानते कि भारत के प्रति उनकी व्यापक सहानुभूति होगी। किंतु बलूचिस्तान और काफी हद तक सिंध में हिंसक अहिंसक दोनों अभियान चलाने वाले भारत से मदद मांगते हैं। आप देखिए पिछले ढाई सालों में भारत में वांछित आतंकवादी, जिसे पाकिस्तान सौंपने को तैयार नहीं था, लगातार उसकी भूमि पर मारे जा रहे हैं और उसे समझ नहीं आ रहा कि कौन शक्तियां ऐसा कर रही है। इसके कुछ तो मायने हैं। 

वर्तमान फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर मोहम्मद साहब द्वारा स्थापित रियासत ए तैयबा के बाद पाकिस्तान को दूसरा शुद्ध इस्लाम यानी कलमा पर आधारित देश बताते हुए हिंदुओं सहित अन्य पंथों के विरुद्ध नफरत और हिंसा को प्रोत्साहित करने की रणनीति का दोहरा असर होगा।  दूसरी ओर यह आचथण विद्रोह को भी आगे बढ़ाएगा। 1948 से अभी तक के अनुभव बताते हैं कि पाकिस्तान से किसी तरह के ईमानदार शांतिकारी कदमों को क्रियान्वित करने की उम्मीद आत्मघाती ही साबित होगा। इसलिए मोदी सरकार की मानसिकता प्रधानमंत्री के ही वक्तव्य से बिल्कुल स्पष्ट दिखाई पड़ती है। अगर विपक्ष या किसी को इसमें संदेह है तो समस्या उनकी है। भारत उस मानसिकता और व्यवहार से निकल कर आगे बढ़ चुका है, विपक्ष और मोदी सरकार विरोधी अभी तक उसी सीमित परिधि में सोचते तथा व्यवहार करते हैं। वे कल्पना ही नहीं कर सकते कि भारत विश्व स्तर पर नए सिरे से आतंकवाद विरोधी युद्ध के नेतृत्व के लिए अपनी क्षमताओं का ध्यान रखते हुए भी अग्रसर हो चुका है और यह रास्ता न केवल पाकिस्तान और चीन के साथ समस्याओं के स्थायी समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगा, भारत की एकता अखंडता को सुरक्षित करेगा तथा भारतीय सोच के अनुसार नई विश्व व्यवस्था निर्धारित होने की आधारभूमि बनेगी। भारत को बाह्य समस्याओं से मुक्त करते हुए जब बिना घोषणा किये विश्व का नेतृत्व करने तथा भारी संख्या में देशों को अपने साथ लाने के व्यापक कल्पनातीत लक्ष्य पर अग्रसर हों तो किसी देश के नेतृत्व द्वारा दिये प्रतिकूल वक्तव्य पर भी त्वरित उग्र प्रतिक्रिया नहीं देते। इतने बड़े लक्ष्य के लिए देश को भी काफी कुछ परित्याग के लिए तैयार रहना होगा। 

गुरुवार, 5 जून 2025

देश को छोटा दिखाने का अपकर्म न करें

अवधेश कुमार 

हमारे सामने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर देश के दो परस्पर विरोधी दृश्य हैं। विदेश गया सर्वदलीय सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने इस तरह भारत का पक्ष प्रस्तुत किया जैसे देश पाकिस्तान केंद्रित सीमा पार आतंकवाद, जम्मू कश्मीर तथा ऑपरेशन सिंदूर को लेकर पूरी तरह एकजुट है और कोई विपक्ष है ही नहीं। दूसरी ओर आप पहलगाम हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद देश के अंदर विपक्ष की भूमिका देखिए, किसी भी देशभक्त और सच्चाई का ज्ञान रखने वाले निष्पक्ष व्यक्ति का दिल दहल जाएगा या फिर उसको गुस्सा आएगा। ऐसा कोई दिन नहीं जब विपक्ष के बड़े नेता ऑपरेशन सिंदूर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने की कोशिश नहीं कर रहे। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पहले दिन से प्रश्न उठा रहे हैं कि हमारे कितने लड़ाकू विमान को नुकसान हुआ। लगभग यही स्वर कांग्रेस के अध्यक्ष एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का है। जयराम रमेश ने तो लगता है जैसे ऑपरेशन सिंदूर को ही अपने सोशल मीडिया का मुख्य विषय बना दिया है। सबसे अंतिम हमला सिंगापुर शांग्रीला सम्मेलन में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सीडीएस अनिल चौहान के भाषण और ब्लूमबर्ग को दिए साक्षात्कार पर है। सभी नेता एक साथ टूट पड़े हैं कि अब सरकार बताये कि कितने राफेल नष्ट हुए इस पर संसद का विशेष सत्र बुलायें तथा रिव्यू कमेटी यानी पुनरीक्षण समिति बनाया जाये।

इसमें यहां विस्तार से जाने की आवश्यकता नहीं है। सीडीएस का पूरा इंटरव्यू सबके सामने है। उसमें कहीं नहीं है कि पाकिस्तान ने हमारे कितने लड़ाकू विमान गिराये या हमें कोई बड़ी क्षति हुई। यह सामान्य बात है कि कोई भी युद्ध या लड़ाई एकपक्षीय क्षति वाली नहीं होती। यही सीडीएस ने कहा है। किसी को ज्यादा क्षति होगी किसी को कम। मूल बात यह है कि भारत ने पाकिस्तान के सैन्य दुस्साहस का ऐसा करारा प्रत्युत्तर दिया जिससे उसकी हुई व्यापक क्षति के बारे में दुनिया के विशेषज्ञ बता रहे हैं और उनसे संबंधित उपग्रह के चित्र आदि सामने ले जा चुके हैं।

 कई बार लगता है कि हम सरकार को घेर रहे हैं सेना और देश को नहीं। किंतु इसका दूसरा पहलू यही है कि सरकार निर्णय करती है क्रियान्वित सेना करती है। सेना सरकार के लिए नहीं देश के लिए सैन्य कार्रवाई करती है। ऑपरेशन सिंदूर में सरकार ने यह तय नहीं किया होगा कि सेना कैसे कार्रवाई करे कि हथियार , लड़ाकू विमान , मिसाइल, रडार आदि का प्रयोग करें या कितने जवान उनमें लगें। जिस तरह पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ, तीनों सेना के प्रमुखों से लेकर विदेश मंत्री, उनसे जुड़े मंत्रालय ,रक्षा मंत्री, मंत्रालयों के अधिकारी एवं अन्य अलग-अलग आवश्यक क्षेत्र के शीर्ष लोगों से मिल रहे थे उससे साफ था की रणनीति पर गहराई से विचार हो रहा है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चरित्र के अनुरूप एक-एक पहलू समझने की कोशिश की होंगी। उदाहरण के लिए उनके कौन-कौन से ऐसे प्रमुख आतंकवादी अड्डे हैं, जिन्हें ध्वस्त करने से न केवल प्रतिशोध पूरा होगा, बल्कि पाकिस्तान की सेना और सत्ता को प्रत्युत्तर मिलेगा तथा सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियां वर्षों तक संभव नहीं हो पाएगी। उन्हें कैसे ध्वस्त करेंगे , कैसे ध्वस्त करेंगे, कहां से करेंगे, उनका सीमा पर क्या असर होगा तथा पाकिस्तान किस तरह की प्रतिक्रिया दे सकता है और उसकी प्रतिक्रिया के प्रत्युत्तर में हमें किस तरह की तैयारी रखनी है ताकि उसमें भी हम उसे पस्त कर सकें। निश्चित रूप से सैन्य रणनीतिकारों ने अपनी पूरी स्थिति से अवगत कराते हुए उन्हें आश्वस्त किया होगा या फिर उनकी जो आवश्यकता होगी उसके बारे में बात की होगी। 

सरकार यानी राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका साहसपूर्वक निर्णय करने के साथ सेना को करवाई और रणनीति की संपूर्ण स्वतंत्रता देना तथा अपने व्यवहार एवं कदमों से आश्वस्त करना कि कार्रवाई में किसी तरह की आवश्यकता में कमी नहीं होगी। कहने का तात्पर्य कि पाकिस्तान की सैन्य प्रतिक्रियाओं का उत्तर हमारी सेना दे रही थी। यह भी सच है कि टकराव शुरू होने के बाद विदेश के प्रमुख नेताओं ने राजनीतिक नेतृत्व से ही संपर्क किया होगा। सरकार की ओर से अमेरिकी उपराष्ट्रपति , विदेश मंत्री , राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आदि ने कब-कब किसे कॉल किया इसका भी विवरण देश के सामने रखा जा चुका है। कहीं से ऐसा न एक संकेत है और न कोई कारण दिखता है जिससे डोनाल्ड ट्रंप युद्ध रोकने का दबाव बनाएं और भारत उसे स्वीकार कर ले। उनके भी वक्तव्य में क्या है? .. हमने दोनों देशों को समझाया …….. उन्हें कहा कि आपके साथ पूरा ट्रेड करेंगे….. दोनों देश के नेताओं ने बुद्धिमता का परिचय दिया….हमने दो न्यूक्लियर यानी नाभिकीय संपन्न देशों के बीच नाभिकीय टकराव रोका आदि आदी। इसी में एक जगह उन्होंने किसी तटस्थ स्थान पर मध्यस्थता में बातचीत कराने का भी वक्तव्य दे दिया। यह बात अलग है कि अपनी मध्य पूर्व यात्रा के दौरान उन्होंने बोल दिया कि हमने कोई मध्यस्थता नहीं की। सामान्य तौर पर भी जिन्होंने भारत के वक्तव्यों पर ध्यान दिया होगा उन्हें स्पष्ट है कि हमारे स्टैंड में किंचित भी अस्पष्टता नहीं थी। 10  मई को ही भारत ने साफ कर दिया कि किसी तरह की आतंकवादी घटना युद्ध मानी जाएगी। दूसरे, प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन, फिर आदमपुर और बीकानेर के भाषणों में एक-एक बिंदु रख दिया कि आतंकवाद और बातचीत, व्यापार और आतंकवाद नहीं चलेगा। यहां तक कि पानी और खून भी एक साथ नहीं बहेगा। यह भी कहा कि अब अगर आतंकवादी घटना हुई तो सेना को सीधा नुकसान उठाना पड़ेगा। हम इसे केवल आतंकवादियों की नहीं मानकर पाकिस्तान सरकार और सेना की कार्रवाई मानेंगे और उसी प्रकार प्रत्युत्तर देंगे। सबसे बढ़कर पाकिस्तान से बातचीत होगी तो केवल पाक अधिकृत कश्मीर पर। 

बावजूद आप लगातार प्रश्न उठा रहे हैं तो इसे भारत या सेना का कतई समर्थन नहीं कहा जाएगा। यह सेना व देश दोनों का विरोध है। विडंबना देखिए कि अमेरिका भी नहीं कह रहा है कि हमने दबाव डालकर युद्धविराम कराया या रुकवाया, मध्यस्थता शब्द भी कहीं से नहीं आ रहा। अमेरिका गए प्रतिनिधिमंडल को भी ट्रंप प्रशासन के लोगों ने ऐसा नहीं कहा, हमारा दुश्मन और पाकिस्तान का समर्थन करने वाला चीन तक नहीं कह रहा कि भारत ने दबाव में युद्ध रोका और भारत-पाक के बीच बातचीत होगी। अब देश को पूछना चाहिए कि राहुल गांधी, खड़गे, जयराम रमेश ,अखिलेश यादव आदि को यह जानकारी कहां से मिल गई? दूसरे, अगर हमारी सेना ने वीरतापूर्वक पाकिस्तान को पस्त किया तो फिर आप युद्ध में क्षति का प्रश्न किससे पूछ रहे हैं? जब आप किसी सैन्यबल वाले शत्रु देश को सबक सिखाने गए हैं तो माना गया होगा कि हमारी भी क्षति हो सकती है। भारी क्षति उठाकर भी सबक सिखाने की मानसिक तैयारी से ही कार्रवाई हुई होगी। युद्ध में क्षति हुई या विमान ही नष्ट हो गये तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। क्या आतंक विरोधी युद्ध में अमेरिका और नाटो को सैनिक क्षति नहीं हुई? क्या छोटे से गाजा के विरुद्ध कार्रवाई में इजराइल को कोई क्षति नहीं हुई? क्या यूक्रेन के साथ युद्ध में रुस को क्षति नहीं हुई ? ऐसी कौन सी सैन्य करवाई है जिसमें क्षति नहीं होगी? क्या कांग्रेस के शासनकाल में 1971 की विजय में भी भारत को सैन्य सामग्रियों के अलावा जवानों के संदर्भ में क्षति नहीं हुई? क्या1965 का युद्ध बिना क्षति के हुई? 1962 के भारत चीन युद्ध में तो ऐसी क्षति हुई जिसकी चर्चा तक में आज भी शर्म आती है।

आप अपनी संकुचित राजनीति के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को पराजित या छोटा दिखाने के हल्ला बोल अभियान में सीधे-सीधे देश और सेना को छोटा दिखा रहे हैं। आपको अगर पाकिस्तान जैसे शत्रु से सुरक्षित होना है तो हर स्तर पर अपनी क्षति उठाने, बलिदान देने के लिए भी तैयार रहना होगा। यह संभव नहीं कि आप कार्रवाई करेंगे और प्रत्युत्तर न मिले तथा कोई क्षति नहीं हो। मुख्य बात यह होती है कि हमारी क्षति और हमारे बलिदान का पूरा मूल्य हमें प्राप्त हुआ या नहीं। इस मायने में देखें तो जैसी कार्रवाई भारत ने की, जिस ढंग का प्रत्युत्तर दिया संपूर्ण विश्व में उसका लोहा माना गया और हमारे स्वदेशी तकनीक से निर्मित हथियारों की मांग पूरी दुनिया में बढ़ी है।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स,  दिल्ली- 110092 ,मोबाइल-9811027208

शुक्रवार, 30 मई 2025

ऑल पत्रकार एसोसिएशन यमुनापार के हिन्दी पत्रकारिता दिवस के प्रोग्राम में कई बड़ी हस्तियों ने की शिरकत

संवाददाता

नई दिल्ली l दिल्ली के गालिब इंस्टिट्यूट (एवान ए ग़ालिब) में हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर ऑल पत्रकार एसोसिएशन यमुनापार दिल्ली ने पत्रकार सम्मान समारोह का आयोजन किया l सम्मान समारोह मे देश की कई बड़ी हस्तियाँ शामिल हुई l प्रोग्राम मे दिल्ली और कई कई राज्यों से पत्रकारों ने शिरकत लड़ अपनी समस्याओ क़ो रखा और सरकार से कई मांगे रखी l प्रोग्राम मे मुख्यातिथि के तौर पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित जितेंद्र कुमार शंटी व वरिष्ठ अतिथि के रूप मे हरियाणा सरकार के सचिवालय में कार्यरत आईएएस अधिकारी रानी नागर, जर्नलिस्ट टुडे अखबार के संपादक जावेद रहमानी, वेबवार्ता न्यूज़ एजेंसी के संपादक सईद अहमद, सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत व सीमा हैदर के वकील डॉ एपी सिंह, दिल्ली नगर निगम की स्थाई समिति के सदस्य आमिल मलिक, मुबीटेक पे के सीईओ जितेंद्र शर्मा, पूर्व डिप्टी डायरेक्टर सफदरगंज हॉस्पिटल डॉ सय्यद अहमद खान शामिल हुएl अतिथि के तौर पर भाजपा नेता अनीस अंसारी, एमबी एंड डोफीन सिक्योरिटी के डायरेक्टर महावीर शर्मा, हाईकोर्ट से हीना परवीन, कड़कड्डूमा कोर्ट से रेनू शर्मा, भारतीय ग्रामीण पत्रकार संघ के अध्यक्ष अनिल कुमार, भारतीय सम्पूर्ण क्रांति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जोगेंद्र सिंह, एचएन सिंह एडवोकेट आदि शामिल हुएl
इस प्रोग्राम का आयोजन लोकतंत्र का पाया (मीडिया समूह) के संपादक शमशाद अली मसूदी, जन सेवा क्रांति फाउंडेशन के अध्यक्ष मोहतरमा हुस्ना हाशमी, डोफीन मीडिया के प्रोडयूसर जावेद आलम, एमकेएस 24 न्यूज़ के सम्पादक नौशाद अंसारी ने मिलकर किया l प्रोग्राम क़ो सफल बनाने में विचार आप तक के सम्पादक आरिफ खान, पत्रकार रूबी न्यूटन, पत्रकार रानी खान, मीडिया काउंसिल से मौलाना अब्दुल रशीद, शाहिद खान तहसीनी, पत्रकार अरुण कुमार का अहम योगदान रहा है l
प्रोग्राम के मुख्य अतिथि जितेंद्र कुमार शंटी ने कहा कि देश कि आजादी में पत्रकारों का अहम योगदान रहा हैl उन्होंने कि आज भी मीडिया सरकार और विपक्ष क़ो जगाने का काम कर रही, गोदी मीडिया क़ो छोड़कर, इस मौके पर ऑल पत्रकार एसोसिएशन यमुनापार दिल्ली कि तारीफ करते हुए कि इस संस्था द्वारा किया गया कार्यक्रम सरहानीय हैl मैं पत्रकारों कि मांग क़ो सरकार के सामने रखने का काम करूंगाl 
ऑल पत्रकार एसोसिएशन यमुनापार दिल्ली के संयोजक शमशाद अली मसूदी ने कहा कि राज्य और भारत सरकार के बजट मे मीडिया का कोई बजट नहीं होता है पत्रकारों के लिए कोई सुविधा नहीं मिलती l दिल्ली मे बसों मे सीट रिजर्व नहीं है इसी तरह अस्पातलो और रेलवे स्टेशनो मे पत्रकारों के लिए अलग खिड़की नहीं है इसी तरह पेशन, इंश्योरेंस, हैल्थ और शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। इन पर हम सब क़ो काम करना होगाl आमिल मलिक ने कहा कि दिल्ली सरकार और भारत सरकार क़ो चिट्ठी लिखकर पत्रकारों की आवाज क़ो बुलंद करने का काम करूंगाl
जावेद रहमानी ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता दिबस क़ो इस तरह से मनाना, इस बात का सन्देश है कि गोदी मीडिया कि समाज कि जरूरत नहीं है आज मुझे लगा कि पत्रकारों क़ो अपने हक़ की आवाज अपने आप बुलंद करनी होंगी l
इस मौके पर तफ्तीश न्यूज से मो. राहत उर्फ राजू, मुसर्रत टाइम्स से मोहम्मद रियाज़, सलीम इदरीशी, गुलजार, जान मोहम्मद, नफीस सलमानी, इरशाद सैफी, बागपत से विपुल जैन, विवेक जैन, इमरान अंसारी, मो रफ़ी, इल्मा,इरशाद अली, मकसूद राही, फारुख मंसूरी, संजीव कुमार, शाहबुद्दीन, अनवार नूर, एस आई मो आलम, गायक रितु गुप्ता, मतलूब अंसारी, विभव किशोर, मो इस्तयाक, गुलफाम सैफी, इरफ़ान सैफी, साजिद जमाल, इशरक सागर, निशा खान, मो शाहनवाज, गुलनार परवीन, आयशा खातून, हाफिज मामून, युवा रत्न शायर आमिर मेरठी, सलमान थानवी, पत्रकार रजा मिर्जा, नईम खान, मो यूनुस सैफी, शमशाद सैफी, प्रदीप कुमार, मो फैसल  आदि शामिल हुए।













गुरुवार, 29 मई 2025

मुर्शिदाबाद के पीछे की सोच

अवधेश कुमार

 उच्च न्यायालय की तरफ से गठित तथ्य-खोजी समिति की मुर्शिदाबाद हिंसा संबंधी रिपोर्ट किसी को भी डराने के लिए पर्याप्त है। जिन लोगों ने मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के विरुद्ध एकपक्षीय हिंसा पर काम किया है उनके लिए यह रिपोर्ट स्वाभाविक है। किंतु अभी तक कानूनी परिभाषा में इसे आरोप की परिधि में रखा गया था। इस रिपोर्ट के बाद सारे आरोपों की पूरी तरह पुष्टि हो गई है। ध्यान रखिए कि इस रिपोर्ट के पहले पश्चिम बंगाल पुलिस ने भी उच्च न्यायालय में 34 पृष्ठ की रिपोर्ट पेश की थी। दरअसल सरकार किस्सा पर कट्टरपंथी मुस्लिम तत्व ऑन की हिंदू विरोधी हिंसा और व्यवहारों को नजर अंदाज करने वाली पुलिस भी इस बार इनके हिंसा की शिकार हो गई थी। उसके बाद उसे लगा कि हम की पानी सर से ऊपर निकल गया है तो उसने भी अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया की भीड़ किस तरह और नियंत्रित होकर हिंसा कर रही थी। पुलिस रिपोर्ट की कुछ पंक्तियां देखिए-  लगभग 4.25 बजे अचानक भीड़ अनियंत्रित हो गई..पुलिसकर्मियों पर ईंट, पत्थर फेंकने लगी... पुलिस कर्मियों को मारने के इरादे से लाठी, हसुआ, लोहे की छड़ और घातक हथियारों आदि से हमला करना शुरू कर दिया। उपद्रवियों ने एसडीपीओ जंगीपुर की पिस्तौल छीन ली, जिसमें 10 राउंड गोली लोड था। भीड़ ने एसडीपीओ जंगीपुर के एक वाहन और एक हाईवे पेट्रोलिंग वाहन के साथ उमरपुर में सार्वजनिक संपत्तियों में आग लगा दी। आप कल्पना करिए स्थिति कैसी रही होगी! अगर पुलिस से पिस्तौल छीनी जा रही थी तो बंगाल की पुलिस किस अवस्था में रही होगी इसकी कल्पना करिए। सच है कि पुलिस ने रिपोर्ट में स्वयं के भयभीत होने की बात नहीं लिखी है किंतु कई जगह पुलिस जान बचाने के लिए भागती नजर आई। एक पुलिस अधिकारी का बयान है कि जिला प्रशासन ने बीएसएफ बुलाने का आग्रह किया और तब तक पुलिस को  छिपकर जान बचानी पड़ी। जिस बीएसएफ ने पुलिस की जान बचाई, जिसे पीड़ित अपनी रक्षक बता रही है उस पर ममता बनर्जी आरोप लगा रही थी। 

हालांकि रिपोर्ट में पुलिस को सबसे ज्यादा कठघरे में खड़ा किया गया है।

17 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के एक-एक सदस्य वाली तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। रिपोर्ट में कुछ बातें प्रमुख है। पहले, हिंसा केवल हिंदुओं के विरुद्ध थी और सुनियोजित थी। दूसरा,स्थानीय तृणमूल के मुस्लिम नेता और पार्षद ने हिंसा का नेतृत्व किया। तीसरा, लोगों ने पुलिस से मदद मांगी, पुलिस ने न हिंसा रोकने की कोशिश की और न पीड़ितों को सुरक्षा देने की ही।  यह रिपोर्ट ऐसी है जिसके बाद पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के होने का कोई कारण नहीं है। कल्पना करिए अगर आज से तीन दशक पूर्व ऐसी हिंसा होती जिसमें पूरे एक समुदाय के विरुद्ध हिंसा में कानून के शासन की धज्जियां उड़ जातीं तो वह सरकार निस्संदेह बर्खास्त होती। आज की स्थिति वैसी नहीं है। क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति शासन लागू होने और सरकार के बर्खास्त करने को संवैधानिक रूप से गलत ठहरा सकती है। राज्यपाल ने केन्द्र को भेजी रिपोर्ट में केंद्र सरकार सरकार से संवैधानिक विकल्पों’ पर विचार करनेका सुझाव तो दिया, हालात बिगड़ने पर अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) को विकल्प बताते हुए भी लिखा कि अभीजरूरत नहीं है।

 जरा सोचिए , इतनी भयानक हिंसा और पुरुषों को तो छोड़िए महिलाओं और बच्चों के दर्दनाक आपबीती के बावजूद ममता बनर्जी ने एक शब्द आरंभ में सहानुभूति का नहीं बोला। वह और उनकी सरकार के मंत्री, नेता सब इसको भाजपा का षड्यंत्र बताते हुए बीएसएफ पर ही आरोप लगा रहे थे कि बांग्लादेश से बुलाकर हिंसा करवा दिया है। कायदे से तो बीएसएफ की ओर से भी उच्च न्यायालय अपील दायर होनी चाहिए थी। आखिर किस आधार पर इतना संगीन आरोप मुख्यमंत्री ने लगा दिया जिन्होंने संविधान के तहत सफल शपथ लिया है?कम से कम उच्च न्यायालय की समिति की रिपोर्ट के बाद ममता से औपचारिक रूप से यह पूछा जाना चाहिए। इस रिपोर्ट के अनुसार 11 अप्रैल को नए वक्फ संशोधन कानून के विरुद्ध प्रदर्शन की आड़ में हिंदुओं कौन निशाना बनाया गया। बेतबोना गांव में 113 घर जला दिए गए। रिपोर्ट में कहा गया है, 'एक आदमी गांव में वापस आया और उसने देखा कि किन घरों पर हमला नहीं हुआ है और फिर बदमाशों ने आकर उन घरों में आग लगा दी।' यह कैसे संभव हुआ? यानी गांव जला दिए गए लेकिन पुलिस प्रशासन वहां अनुपस्थित रहा। सोचिए, पानी का कनेक्शन काटा गया ताकि आग बुझाए न जा सके। सबसे निकृष्ट काम महिलाओं का वस्त्र तक को जला देना था ताकि पहनने को कपड़े नहीं बचे। सबसे शर्मनाक भूमिका तो पुलिस की थी। रिपोर्ट में कहा गया है, 'पश्चिम बंगाल पुलिस ने कोई जवाब नहीं दिया। बेतबोना के ग्रामीण ने शुक्रवार को शाम चार बजे और शनिवार को शाम चार बजे फोन किया, लेकिन पुलिस ने फोन नहीं उठाया।’ पुलिस ने मालदा में शरण लिए हुए पीड़ितों को ढाका से बेतबोना गांव में लौटने को विवश कर दिया। साफ है कि ऐसा यूं ही नहीं हुआ होगा। सरकार की ओर से पुलिस प्रशासन पर दबाव रहा होगा कि पलायन कर गए लोगों को बुलाया जाए क्योंकि इससे केवल भारत ही नहीं बाहर भी सरकार की थूथू हो रही है। रिपोर्ट ने जिस तरह पुलिस प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया है उससे पश्चिम बंगाल पुलिस सिर उठाने लायक भी नहीं रही। कहा गया है कि प्रशासन की तरफ से हिंसाग्रस्त इलाकों में किसी भी व्यक्ति की मदद नहीं की गई और न ही इस हिंसा में संलिप्त आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई।‌ 

रिपोर्ट की यह पंक्ति देखिए -जिस तरह हिंसा को अंजाम दिया गया, उससे यह साफ जाहिर होता है कि यह सुनियोजित था, जिसे पूरे व्यवस्थित तरीके से अंजाम दिया गया। रिपोर्ट में पार्षद और पुलिस दोनों के बारे में जो कहा गया उसे देखिए-, 'हमले स्थानीय पार्षद की तरफ से निर्देशित किए गए थे,' स्थानीय पुलिस पूरी तरह से "निष्क्रिय और अनुपस्थित" थी। घटना देखिए,शुक्रवार को नमाज के बाद भीड़ निकलती है और करीब 2:30 से हिंदुओं के विरुद्ध वही दृश्य खड़ा किया खड़ा हो गया जो हमने पिछले दिनों बांग्लादेश में देखा। इसमें कहा गया है, 'बदमाशों ने घर के सभी कपड़ों को मिट्टी के तेल से जला दिया और घर की महिला के पास तन ढकने के लिए कपड़े नहीं थे।’ तो इसमें कोई संदेह नहीं कि इसके पीछे पूरे क्षेत्र को हिंदूविहीन करने का षड्यंत्र था, जो जो स्वतंत्रता के पहले से चल रहा है। पहलगाम हमले में धर्म पूछ कर हिंदुओं को मारने वाले आतंकवादियों को नेस्तनाबूद करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर जैसा युगांतकारी पराक्रम दिखाया। लेकिन बंगाल के हिंसक तत्वों, जिन्हें आतंकवादी कहने में भी समस्या नहीं होनी चाहिए, के विरुद्ध कैसा ऑपरेशन सिंदूर करना होगा? पाकिस्तान के फील्ड मार्शल और तब थल सेना अध्यक्ष जनरल आसिफ मुनीर ने यही तो कहा था कि हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते हैं। दोनों दो कौमें हैं और यही विचार पाकिस्तान बनाने की नींव है। उन्होंने लोगों से अपील किया कि इस बात को अपनी बच्चों को बताते रहना ताकि कोई भूल न पाए। मुर्शिदाबाद में भी क्या यही विचार हिंदुओं के विरुद्ध भयानक हिंसा के पीछे नहीं था ? क्या पश्चिम बंगाल में इसके पहले हिंदू पर्व त्योहारों पर हमले नहीं हुए? चुनाव में तृणमूल के विरुद्ध वोट देने वाले हिंदुओं की क्या दशा हुई ? उन्हें किस हालत में पलायन करना पड़ा यह भी देश के सामने है।  हम पाकिस्तान के आसिफ मुनीर के विरुद्ध अपनी भृकुटियां तान सकते हैं लेकिन पश्चिम बंगाल और मुर्शिदाबाद में बैठे ऐसे आसिफ मुनीरों की पहचान कैसे होगी और उनके साथ क्या किया जाएगा? हम पाकिस्तान में भारत विरोधी आतंकवादियों को सरकार और आईएसआई द्वारा संरक्षण देने की बात करते हैं। उच्च न्यायालय की समिति के अनुसार यहां गैर मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा करने वालों को भी पुलिस का साथ मिलता है। बंगाल विशेषकर मुर्शिदाबाद में भी पुलिस ने घटना से आंखें मूंद कर इन उग्रवादी समूहों को एक प्रकार से काम करने की स्वतंत्रता ही दी। पाकिस्तान सरकार भी वहां गैर मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा या उनके धर्म परिवर्तन तथा भारत में आतंकवादी हमले को नकारते हुए भारत पर ही आरोप लगाती है। ममता बनर्जी की भूमिका भी ठीक वैसे ही है। उन्होंने पूरी घटना को आरएसएस बीजेपी की साजिश बता दिया। तो इसके बारे में क्या शब्द और विचार प्रकट करेंगे? 

रिपोर्ट में शमसेरगंज के जाफराबाद इलाके में हरगोबिंद दास और उनके बेटे चंदन दास की हत्या का जिक्र करते हुए कहा गया है, 'उन्होंने घर का मुख्य दरवाजा तोड़ दिया और उसके बेटे और उसके पति को ले गए और उनकी पीठ पर कुल्हाड़ी से वार किया। एक आदमी तब तक वहां इंतजार कर रहा था जब तक वे मर नहीं गए।' दोनों पिता पुत्र का दोष यह था कि वे हिंदू देवी - देवताओं की मूर्तियां बनाते थे। तो यह कैसी सोच है कि मूर्तियां बनाने वाला इनका दुश्मन हो गया? मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद वहां गए राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बंगाल को दोहरा खतरा है खासतौर पर बांग्लादेश से सटे मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में ज्यादा है क्योंकि यहां हिंदू आबादी अल्पसंख्यक है। इसी तरह उन्होंने नौर्थ दिनाजपुर को भी हिंदुओं के लिए खतरनाक बताया। 

रविवार, 25 मई 2025

लुधियाना उपचुनाव में AAP की जीत से क्या राज्यसभा का द्वार खुलेगा केजरीवाल के लिए

लुधियाना। भारतीय निर्वाचन आयोग ने रविवार को घोषणा की है कि पंजाब में लुधियाना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र के लिए 19 जून को उपचुनाव होगा। इसके अलावा 4 अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी उपचुनाव होगा। इसमें गुजरात की दो, केरल और पश्चिम बंगाल में की एक-एक सीट भी शामिल हैं। इस सीट पर आम आदमी पार्टी की नजर ज्यादा है क्योंकि कयास हैं कि इस सीट पर अगर आप की जीत होगी तो पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के राज्यसभा जाने का रास्ता खुल सकता है।

लुधियाना पश्चिम सीट आम आदमी पार्टी के विधायक गुरप्रीत बस्सी गोगी के निधन के बाद खाली हुई थी। राजनीतिक दलों ने उपचुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा पहले ही कर दी है और प्रचार अभियान भी काफी समय से चल रहा है। आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा सदस्य और उद्योगपति संजीव अरोड़ा को अपना उम्मीदवार बनाया है। लुधियाना के मूल निवासी अरोड़ा सोशल वर्कर और बिजनेसमैन हैं।

आप की अकाली दल और कांग्रेस से कड़ी टक्कर 

कांग्रेस ने पंजाब के पूर्व मंत्री और दो बार विधायक रह चुके भारत भूषण आशु को मैदान में उतारा है, जो वर्तमान में पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। शिरोमणि अकाली दल ने वरिष्ठ अधिवक्ता परुपकर सिंह घुम्मन को अपना उम्मीदवार बनाया है और उन्होंने सीट वापस पार्टी की झोली में लाने का वादा किया है।

चुनाव आयोग की घोषणा से क्षेत्र में प्रतिनिधित्व बहाल करने के लिए औपचारिक चुनावी प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसने विस्तृत कार्यक्रम जारी किया है। अधिसूचना 26 मई को जारी की जाएगी। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 2 जून है, उसके बाद 3 जून को जांच होगी और 5 जून तक उम्मीदवारी वापस ली जा सकेगी। वहीं वोटों की गिनती 23 जून को होनी है और पूरी चुनाव प्रक्रिया 25 जून तक समाप्त हो जाएगी।\

इन सीटों पर भी होंगे चुनाव --- गुजरात में कादी और विसावदर सीटें, केरल में नीलांबुर और पश्चिम बंगाल में कालीगंज अन्य चार विधानसभा सीटें हैं जिन पर 19 जून को उपचुनाव होने हैं। बता दें कि पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए, चुनाव आयोग 1 अप्रैल की योग्यता तिथि के आधार पर 5 मई को प्रकाशित अद्यतन मतदाता सूचियों का उपयोग करेगा।

नामांकन की अंतिम तिथि से दस दिन पहले तक निरंतर अद्यतनीकरण जारी रहेगा। सभी मतदान केंद्रों पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और मतदाता-सत्यापनीय पेपर ऑडिट ट्रेल्स लगे होंगे।

शनिवार, 24 मई 2025

ऐसे विवाद क्यों

अवधेश कुमार

पहलगाम आतंकवादी हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर की अभूतपूर्व कार्रवाई ,उसके बाद 8 और 9 मई की रात्रि तक पाकिस्तान के साथ सीधे सैन्य टकराव और उसके बाद जिस तरह के वक्तव्य आये, प्रश्न उठाए गए हैं सामान्य तौर पर भी वे चिंतित करने वाले हैं। इसमें सबसे अंतिम विवाद विदेश मंत्री एस जयशंकर के ऑपरेशन संबंधित पाकिस्तान को जानकारी देने के स्वाभाविक वक्तव्य का राहुल गांधी और कांग्रेस के द्वारा विवादास्पद बनाया जाना है। राहुल गांधी ने एक निजी न्यूज चैनल का वीडियो शेयर करते हुए एक्स पर लिखा, ''हमारे हमले की शुरुआत में पाकिस्तान को सूचित करना एक अपराध था. विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि भारत सरकार ने ऐसा किया।..  ''इसे किसने अधिकृत किया? इसके परिणामस्वरूप हमारी वायुसेना ने कितने विमान खो दिए?'' राहुल गांधी का पोस्ट था इसलिए हजारों की संख्या में शेयर हो गया और अपने देश के चरित्र के अनुरूप हंगामा भी।  इस कांग्रेस मीडिया एवं कम्यूनिकेशन के प्रमुख वरिष्ठ नेता जयराम रमेश पहले ही इससे आगे बढ़ कर विदेश मंत्री के इस्तीफे की मांग कर चुके थे। एक्स पर उनका पोस्ट था, ''विदेश मंत्री- अपने अमेरिकी समकक्ष की ओर से किए जा रहे दावों का जवाब तक नहीं देते हैं, उन्होंने एक असाधारण रहस्योद्घाटन किया है। वह अपने पद पर कैसे बने रह सकते हैं, ये समझ से परे है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून, 2020 को चीन को सार्वजनिक रूप से क्लीन चिट दे दी और हमारी बातचीत की स्थिति खत्म कर दी।  जिस शख्स को उन्होंने विदेश मंत्री के तौर पर नियुक्त किया, उसने इस बयान से भारत को धोखा दिया है। 

कांग्रेस पार्टी के समर्थक और भाजपा विरोधियों के साथ अनेक आम लोगों को भी इन बड़े नेताओं के वक्तव्य के बाद लगा होगा कि क्या वाकई हमने ऑपरेशन सिंदूर के पहले ही पाकिस्तान को बता दिया? सामान्य दृष्टि से भी  इससे हास्यास्पद बात कुछ नहीं हो सकती कि जो सरकार आतंकवादी हमले के बाद सीमा पार स्थित महत्वपूर्ण आतंकवादी केन्द्रों को ध्वस्त करने की साहसिक कार्रवाई की गोपनीय तैयारी कर चुकी हो वह इसके पूर्व ही दुश्मन को बता देगा? लेकिन हमारा देश में  नेता, एक्टिविस्ट, मीडिया के कुछ साथी पत्रकार कुछ भी लिख और बोल सकते हैं। यह देश का दुर्भाग्य है और गहरी चिंता का विषय कि पूरे अभियान में , जिसने संपूर्ण दुनिया को विस्मित किया तथा पाकिस्तान को सकते में ला दिया उसे पर उत्सव मनाने की जगह अपने पय ही प्रश्न उठाकर देश का मनोबल कमजोर करने की भूमिका निभाई जा रही है। आखिर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा क्या था?  उन्होंने कहा था, “ऑपरेशन की शुरुआत में हमने पाकिस्तान को एक संदेश भेजा था कि हमारा निशाना आतंकवादी ढांचे पर है, न कि उनकी सेना पर। हमने उन्हें हस्तक्षेप न करने का विकल्प दिया था, लेकिन उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया। “ उनके अनुसार, 7 मई की रात 1 से 1:30 बजे के बीच, भारतीय सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने पाकिस्तान के डीजीएमओ मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला को फोन कर यह जानकारी दी थी। भारत ने केवल सावधानी से चुने गए आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया है, न कि सेना के ठिकानों को। इसमें कहां है कि पूर्व में ही सूचित कर दिया? राहुल गांधी के वक्तव्य के बाद विदेश मंत्रालय ने इसका खंडन भी कर दिया कि पाकिस्तान को ऑपरेशन शुरू होने के बाद सूचना दी गई थी, न कि उससे पहले। इस बयान को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। यह तथ्यों की तोड़-मरोड़ है।” 

बावजूद विवाद जारी है और रहने वाला है। सभी बड़े नेताओं को पता है कि सच क्या है। पहले की सरकारें ऐसा साहस नहीं कर सकी इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार जनता और दुनिया की नजर में ऐतिहासिक पराक्रमी न मान लिया जाए इसके भय से  अनेक ऐसे विवाद खड़े किए जा रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि आगे भी ऐसे ही होता रहेगा।  तभी तो जिस ऑपरेशन पर अब अमेरिका व यूरोप के सामरिक विशेषज्ञ भारत की रणनीतिक और कूटनीतिक सफलता ऐतिहासिक बताकर पाकिस्तान के झूठ को तथ्यों से उजागर कर चुके हैं वहां हमारे ही देश में दुश्मनों विशेषकर चीन, पाकिस्तान और अन्य के नैरेटिव को फैलाकर पूरी सफलता के स्वाद में मिट्टी तेल डालने का उपक्रम हो रहा है। भारत बहादुर देश है और जब हमने तैयारी से 1:05 बजे रात से 1:30 बजे तक यानी 25 मिनट के अंदर दो दर्जन से ज्यादा मिसाइलों के सटीक निशाने से महत्वपूर्ण आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त करना शुरू किया तो पाकिस्तान को बता दिया कि कार्रवाई आतंकवाद के विरुद्ध है, पाकिस्तान पर हमला नहीं। पाकिस्तान नहीं कह रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर की सूचना पहले मिल गई और हमने किसी मिसाइल को मार गिराया।  वह सकते में आ गया कि इतनी बड़ी कार्रवाई की भनक कैसे नहीं लगी? 

दूसरे , यह हवाई बमबारी नहीं थी कि हमारे किसी वायुयान या पायलट को पाकिस्तान नुकसान पहुंचता। अगर नेताओं को इतनी समझ नहीं है  तो उनके बारे में देश तय करें कि हमें कैसा व्यवहार करना है। अंतरराष्ट्रीय मानक है कि हम किसी देश की सीमा में घुसकर किसी अपराध या आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई करते हैं तो उसे सूचना देते हैं। इसका रिकॉर्ड भी रखा जाता है ताकि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने हमले का झूठ न फैला सके। 10 मई को सैन्य टकराव रुकने के बाद डोनाल्ड राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ट्वीट के बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला शुरू कर दिया यह जानते हुए कि नरेंद्र मोदी सरकार स्वयं अनेक बार कर चुकी है कि जम्मू कश्मीर के मामले में मध्यस्थता नहीं होगी। 10 मई की चार पत्रकार वार्ताओं मे सेना की दो महिला प्रवक्ताओं कर्नल सोफिया कुरेशी और‌ विंग कमांडर व्योमिका सिंह तथा विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने साफ कर दिया। यह भी स्पष्ट किया गया कि आतंकवादी कार्रवाई को युद्ध की तरह लिया जाएगा। उसके बाद दो दिन सेना के तीनों अंगों के डीजीएमओ की पत्रकार वार्ताओं,अगले दिन प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन और उसके बाद आदमपुर वायु सेना अड्डा भाषण में साफ कर दिया कि पाकिस्तान आतंकवाद रोकने और सैन्य दुस्साहह से बचने की गारंटी पर खरा नहीं उतरा तो ऑपरेशन सिंदूर चारी है। प्रधानमंत्री नेकहा कि यज्ञ अखंड प्रतिज्ञा है। यानी अगर आतंकवादी कार्रवाई हुई तो केवल आतंकवादियों के विरुद्ध नहीं, पाकिस्तान सरकार का काम मानकर उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। इससे स्पष्ट घोषणा और कुछ हो नहीं सकती। 

देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ नहीं हो सकता कि आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में विश्व के लिए नए मानक जैसे प्रतिमान को देश की उपलब्धि मानने की जगह संकुचित राजनीतिक स्वार्थ तथा रुग्ण वैचारिकता के आलोक में छोटा करने का आत्मघाती व्यवहार किया जा रहा है। जब पाकिस्तान को आईएफ यानी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कर्ज दे दिया तो जयराम रमेश ने पोस्ट कर दिया कि भारत ने मतदान में विरोध नहीं किया। वे आर्थिक विषयों के पत्रकार रहे हैं और केंद्रीय मंत्री। उन्हें पता है कि विरोध में वोट करने का कोई प्रावधान नहीं और बहिर्गमन करन विरोध होता है जो भारत ने किया। इसी तरह बार-बार अमेरिकी दबाव में युद्ध विराम की बात हो रही है। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और उनको कुछ बोलने से हम रोक नहीं सकते।  विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि अमेरिका से कब-कब बात हुई लेकिन भारत पर कोई दबाव हो इसे न अमेरिका बोला न कहीं से कोई संकेत। बावजूद ऐसा साबित करने की कोशिश हुई कि ट्रंप और अमेरिका के डर से युद्ध विराम कर दिया। प्रधानमंत्री के संबोधन के बावजूद पाकिस्तान और चीन के नैरेटिव को प्रमुखता दी जा रही है। अब ट्रंप ने भी कह दिया कि उसने कोई मध्यस्थता नहीं की। तब भी ये मानने को तैयार नहीं। भारत में कभी सीजफायर या युद्ध विराम शब्द का प्रयोग नहीं किया। हमने सैन्य कार्रवाई और गोलाबारी रुकने पर सहमति की बात की। यह समाचार उड़ा कि युद्दविराम केवल 18 मई तक है। अब पाकिस्तान के डीजीएमियों की ओर से आ गया कि इसकी कोई समय सीमा नहीं है। प्रश्न है कि क्या इसके बावजूद हमारे नेता, एक्टिविस्ट, बुद्धिजीवी, पत्रकारों का एक समूह अपने देश को छोटा करने से बाज आएंगे? कांग्रेस कहती है कि वह सेना के साथ है। क्या सेना के साथ होना देश पर अहसान करना है? ऐसा कौन कहेगा हम सेना के साथ नहीं है। सेना पहले भी थी तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई?  सेना  राजनीतिक नेतृत्व के आदेश का ही पालन कर सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने साहस दिखाया तो श्रेय उसको जाएगा। विरोधी चटपटा कर आत्महत्या कर लें तब भी इसमें श्रेय नहीं मिलने वाला। ये लोग देश के स्तर पर एकजुटता दिखाई तो श्रेय पूरे देश का होता। क्या यह बार-बार पूछना देश हित का कार्य है कि हमको क्या क्षति हुई बताया जाए? युद्ध में क्षति एकपक्षीय नहीं होती। दोनों पक्षों की होती है, किसी का कम किसी की ज्यादा। किंतु जब अभी भारत स्वयं को युद्ध या ऑपरेशन सिंदूर की अवस्था में मानता है तो जिम्मेवार भारतीय का राष्ट्रीय कर्तव्य ऐसे प्रश्नों से दूर रहना है। जो लोग अपना राष्ट्रीय कर्तव्य इसमें नहीं समझते उनके बारे में हम क्या शब्द प्रयोग करें या देश कैसा व्यवहार करें यह आप तय करिए। 


रविवार, 18 मई 2025

अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन दिल्ली प्रदेश का भव्य 13वां स्थापना दिवस समारोह सम्पन्न

संवाददाता

नई दिल्ली। रविवार, 18 मई 2025 को अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष श्री देशबन्धु गुप्ता जी की अध्यक्षता में संगठन का 13वां स्थापना दिवस समारोह शाह ऑडिटोरियम, दिल्ली में अत्यंत भव्य एवं गरिमामय ढंग से सम्पन्न हुआ जिसमें समाज के वरिष्ठजनों, महिलाओं, युवाओं व बच्चों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मौजा ही मौजा एंटरटेनमेंट ग्रुप द्वारा सायं 5:00 बजे से किया गया सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला ने दर्शकों का मन मोह लिया। कार्यक्रम के विशेष आकर्षण प्रस्तुतियों में चंद्रदेव क्यों हुए भगवान भोलेनाथ के मस्तक से अदृश्य, इस नाटिका ने पौराणिक भावनाओं को जीवंत कर दिया। माता अनुसूया द्वारा त्रिदेवों के समक्ष अपने पतिव्रत का प्रमाण, दर्शकों को भाव-विभोर कर गया। देशभक्ति की प्रस्तुति श्री राधाकृष्ण नृत्य ने सबका मन मोह लिया। भगवान शिव द्वारा बालकृष्ण के दर्शन इस भव्य नृत्य नाटिका ने मंच पर दिव्यता का आभास कराया। सायं 5 बजे से ही पूरा ऑडिटोरियम खचाखच भर गया।

कार्यक्रम के मुख्य उद्‌बोधनकर्ता अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुशील गुप्ता रहे जिन्होंने संगठन द्वारा किये गए कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन दिल्ली प्रदेश द्वारा सभी वर्गों के लिए अनेक योजनाएं संचालित की जा रही है।

इस अवसर पर संगठन के अध्यक्ष श्री देशबन्धु गुप्ता जी ने सबका अभिनंदन करते हुए संगठन द्वारा किये जा रहे प्रत्येक कार्य की जानकारी दी। अध्यक्ष जी ने कहा कि सन् 2025 में 1000 बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होने का लक्ष्य रखा है जिसमें योग शिक्षा, कंप्यूटर कोर्स, मेहंदी कोर्स, ब्यूटी पार्लर कोर्स कराया जाऐगा ताकि वे अपनी जीविका कमा सके और अपने परिवार का पालन पोषण कर सके।

वीपी ग्रुप के चेयरमैन एवं संगठन के प्रेरणास्रोत श्री सत्यप्रकाश गुप्ता की भी विशेष उपस्थिति रही। कार्यक्रम का उद्घाटन वीपी क्रिएशंस प्रा.लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री विपिन गुप्ता द्वारा किया गया, जबकि स्वागताध्यक्ष के रूप में बॉडीकेयर इंटरनेशनल लि. के चेयरमैन श्री सतीश गुप्ता उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि वर्ल्डफा ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री प्रमोद गुप्ता, दीप प्रज्जवलन एसएस बिल्डटेक वेंचर के चेयरमैन श्री संजीव सिंगला ने गोल्डन स्पॉन्सर व अन्य अतिथियों के साथ मिलकर किया।

अतिविशिष्ट अतिथियों दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर श्री मनीष अग्रवाल, Sub Divisional Magistrates Delhi श्रीमती इति अग्रवाल, महाराजा अग्रसेन हॉस्पिटल पंजाबी बाग की अध्यक्षा श्रीमती मीना सुभाष गुप्ता, MAPSKO ग्रुप के चेयरमैन श्री कृष्ण सिंगला एवं क्राउन स्टील्स डेजिग्नैटिड के पार्टनर श्री सुशील सिंगला ने भी अपनी विशिष्ट उपस्थिति के साथ कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।

कार्यक्रम के सिल्वर स्पॉन्सर श्री जगदीश प्रसाद अग्रवाल चेयरमैन बंगाली स्वीट्स, श्री रविन्द्र मोहन गर्ग डायरेक्टर पार्कर बिल्डर, श्री रामकिशोर अग्रवाल मैनेजिंग पार्टनर आर. के. सीड फार्म्स, श्री सुशील कुमार ऐरन डायरेक्टर लक्ष्मी बर्तन भण्डार, डॉ. रामगोपाल गोयल चेयरमैन बृजगोपाल कंस्ट्रक्शन कंपनी, श्री ललित अग्रवाल सीइओ गोयल एंटरप्राइजेज, श्री सोहित जैन युवा समाजसेवी, श्री अनिल गुप्ता डायरेक्टर युवा रियलटेक एवं श्री बिहारी दास मंगला मैनेजिंग डायरेक्टर मयूर प्लास्टिक इंडस्ट्रीज ने महाराजा अग्रसेन के चित्र पर पुष्प अर्पित किये।

संगठन के मुख्य सलाहकार पवन सिंघल ने मंच संचालन करते हुए उपस्थित सभी गोल्डन स्पॉन्सर, सिल्वर स्पॉन्सर एवं अतिविशिष्ट अतिथियों का श्री देशबन्धु गुप्ता व कोरकमेटी द्वारा मंच पर स्मृति चिन्ह प्रदान कर पटका एवं मोतियों की माला पहनाकर सम्मानित किया गया।

दिल्ली प्रदेश की कोर कमेटी टीम में चेयरमैन श्री महावीर गोयल, अध्यक्ष श्री देशबन्धु गुप्ता, महामंत्री श्री सुभाषचंद गुप्ता, कोषाध्यक्ष श्री अशोक सातरोडिया, मुख्य सलाहकार श्री पवन सिंघल, सलाहकार सीए उमाशंकर गोयल, उपाध्यक्ष श्री अनिल टेकड़ीवाल, उपाध्यक्ष श्री विनय सिंघल, उपाध्यक्ष श्री अशोक बंसल, उपाध्यक्ष श्री ताराचंद तायल, महिला चेयरपर्सन श्रीमती मंजू सिंघल, युवा चेयरमैन श्री रविन्द्र गर्ग एवं महिला कार्यकारी महामंत्री श्रीमती आभा गुप्ता ने संगठन के समारोह में उल्लेखनीय योगदान दिया है साथ ही दिल्ली प्रदेश मेन टीम, महिला टीम, संरक्षक टीम व सभी वार्ड अध्यक्षों की उपस्थिति से कार्यक्रम अत्यंत सफल रहा।

कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहा लक्की ड्रा, जिसमें श्री विपिन गुप्ता जी मैनेजिंग डायरेक्टर वीपी क्रिएशंस की ओर से 2100 रूपये के 10 लक्की विजेताओं को प्रदान किये गए। यह क्षण कार्यक्रम में उत्साह का संचार करने वाला रहा। साथ ही, कार्यक्रम में पहुंचने वाली पहली 100 महिलाओं को श्री प्रमोद गुप्ता जी मैनेजिंग डायरेक्टर वर्ल्डफा ग्रुप की ओर से स्टील के 6 गिलास का सेट उपहारस्वरूप प्रदान किया गया।

विवाह योग्य युवक-युवतियों के लिए विशेष सुविधा के अंतर्गत 4000 बायोडाटा वाली विवाह प्रस्ताव पुस्तक ने अभिभावकों को अत्यंत लाभान्वित किया।

कार्यक्रम से पूर्व जलपान व कार्यक्रम के अंत में सभी के लिए स्वादिष्ट भोजन की उत्तम व्यवस्था की गई थी, जिसका सभी ने आनंद लिया।

संपूर्ण आयोजन सामाजिक एकता, पारस्परिक सहयोग और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बनकर उभरा। आयोजन में पधारे सभी आगंतुकों ने संगठन के कार्यों की सराहना की और भविष्य में ऐसे आयोजनों की निरंतरता की कामना की।

अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन दिल्ली प्रदेश के महामंत्री श्री सुभाष गुप्ता ने इस सफल आयोजन के लिए सभी कार्यकर्ताओं, कलाकारों और सहयोगियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

शुक्रवार, 16 मई 2025

भारत पाक युद्ध के दौरान मीडिया का गैर-जिम्मेदाराना आचरण

बसंत कुमार

कुछ दिन पूर्व पाकिस्तान द्वारा समर्थित भारत में आतंकी हमले के कारण दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण माहौल रहा और कई दिनों चले अघोषित युद्ध के बाद सीजफायर की घोषणा हुई। इस बीच सोशल मीडिया पर एक्टिव लोगों और कुछ स्वयंभू चैनलों और पत्रकारों ने बिना सिर पैर की खबरें फैलाकर देश के वातावरण को इतना तनावपूर्ण बना दिया कि देश के सभी लोग डरे व सहमे हुए थे। दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच सोशल मीडिया पर गलत और भ्रामक सूचनाओं की बाढ़-सी आ गई थी। कुछ चैनलों और सोशल मीडिया वालों ने तो भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान पर कब्जा कर लेने की बात कह दी थी। वहीं कुछ ने आधा पाकिस्तान को तबाह होने की बात कर दी थी। कभी-कभी इनके द्वारा इतनी भ्रामक और झूठी खबरें फैला दी गई की कि देश के आम जन मानस के मन में इतना डर और खौफ फैल गया कि लोग देश में असुरक्षित महसूस करने लगे थे और इस बीच कुछ अनाड़ी लोग मीडिया चैनलों पर विशेषज्ञ के रूप में आकर बेतुकी राय देने लगते हैं जैसे भारतीय फौज अनाड़ियों से भरी है।

विदेश और रक्षा मामलों के जानकारों ने दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव की स्थिति में सोशल मीडिया और कुछ चैनलों पर इस तरह की सामग्री की बाढ़ आने पर चिंता जताते हुए कहा कि नागरिकों को सोशल मीडिया का उपयोग करते समय बहुत ही सावधानी बरतने चाहिए और साथ ही इस सामग्री को लोगों के बीच शेयर करने में भी संयम बरतना चाहिए क्योंकि इस तरह कि जानकारियां भ्रामक होती हैं और सत्य से परे होते हैं। सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं आज घर-घर चल रहे चैनलों की भूमिका भी इस विषय में बहुत विवादित रही है। कुछ चैनल तो सरकार या सत्ता में बैठे राजनीतिक दलों को खुश करने के लिए ऐसा प्रसारित कर देते हैं कि मानों एक पक्ष ने दूसरे पक्ष कि धरती पर कब्जा कर लिया हो। दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव पर कुछ चैनल समाचार देते रहे कि भारतीय सेना कराची तक पहुंची या फिर पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर कर दिया है। आज कि वैश्विक राजनीति में किन्हीं दो देशों के बीच चल रहे युद्ध या तनाव सिर्फ दो देशों के बीच तनाव नहीं होते बल्कि उसका असर पूरे महाद्वीप या पूरे विश्व पर पड़ता है।

कुछ स्वयंभू रक्षा विशेषज्ञ भारत पाकिस्तान युद्ध और फिर सीज़फायर पर अपना ज्ञान बांट रहे हैं जबकि वाट्सअप यूनिवर्सिटी से प्राप्त किया हुआ उनका आधा-अधूरा ज्ञान इन गंभीर विषयों पर विचार व्यक्त करने के लिए काफी नहीं होता। इस विषय में सरकार के उच्च अधिकारियों, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री या फिर प्रधानमंत्री को ही पता होता है कि इस प्रकार की युद्ध की स्थिति के लंबा खींचने पर देश को कितना नुकसान हो सकता है। इसलिए जो लोग भारत पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर के लिए बगैर सोचे-समझे प्रधानमंत्री को कोस रहे हैं उन्हें मामले की गंभीरता को समझना चाहिए और सोशल मीडिया और चैनलों पर इस मामले में अपना विशेष राय देने से बचना चाहिए। उनकी अधकचरे जानकारी वाली कमेंट सैनिकों का मनोबल गिराती हैं।

इस विषय में कुछ लोग जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद नहीं करते, एका एक उन्हें देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी की याद आने लगी हैं जिन्हें सभी लोग आयरन लेडी कहते थे पर ये लोग शायद यह भूल गए है कि बांग्लादेश युद्ध के दौरान जब उन्हें नेता विपक्ष अटल बिहारी वाजपाई ने दुर्गा कहा था यानि 1971 में पूरा विश्व दो महाशक्तियों संयुक राष्ट्र अमेरिका और सोवियत यूनियनों (यूएसएसआर) में बंटा हुआ था और यदि अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा था तो सोवियत यूनियन भारत के साथ खड़ा था। इसी कारण श्रीमति इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति निक्की और उनके सातवें बेड़े की परवाह किए बिना अपनी राह में आगे बढ़ गई। इसके अतिरिक्त उनके सहयोगी के रूप में रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम और भारतीय सेना चट्टान की तरह साथ खड़ी थी और आज की तरह सोशल मीडिया और चैनल सरकार और सेना का मनोबल नहीं गिरा रहे थे जैसा आज के समय चल रहा है।

अपनी रक्षा संबंधी तैयारियां का राजनीतिक लाभ लेने की चेष्टा करना भी आत्मघाती होता है। हमने यह कभी नहीं सुना कि अमेरिका, फ्रांस, चीन, रूस जैसे देश अपनी ख़तरनाक मिसाइल या औजार किस शहर में बनाते हैं न के इन चीजों का प्रचार ही करते हैं क्या कोई बता सकता है इन विकसित देशों के औजार बनाने के कारखानों की लोकेशन क्या है। अटल जी की सरकार के समय परमाणु परीक्षण (बुड्ढा स्माइल) का पता दुनिया को तब पता लगा जब इसका परीक्षण सफल हो गया पर आज के भारत युग में यह नहीं हो पा रहा है, भारत की ब्रह्मोस मिसाइल का निर्माण उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में स्थित कारखाने में हो रहा है। इस बात का प्रचार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ऐसे जोर-शोर से किया जा रहा है जैसी भारतीय सेना के लिए यह मिसाइल उत्तर प्रदेश बना रही है। इससे दुश्मन देशों को इस बात पता नहीं लग जाएगा कि इस मिसाइल का निर्माण कहां हो रहा है और यह सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं है ऐसी भी जानकारी आ रहीं है कि ब्रह्मोस मिसाइल की जानकारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को भेजने के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है। अतः यही अपेक्षा की जानी चाहिए कि सुरक्षा संबंधी तैयारियों का राजनीतिक लाभ न लिया जाए।

भारत की यह परम्परा रही है कि जब भी देश दुश्मन के साथ युद्ध की स्थिति में रहा हो सरकार और विपक्ष ने एक साथ मिलाकर सेना और जनता का हौसला बढ़ाने का काम किया है। सबको याद है कि 1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपाई ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा था और युद्ध के समाप्ति के पश्चात यूएनओ में भारत का पक्ष रखने के लिए नेता विपक्ष अटल बिहारी वाजपाई जी को भेजा गया था। आज पांच दशक बाद भी पूरे विपक्ष ने सरकार के साथ खड़े रहकर भारत की एकता और अखंडता दिखाई पर मीडिया के लोगों ने भारत-पाक युद्ध के बारे में झूठी व भ्रामक खबरें फैलाकर देश की जनता के मन में झूठा भ्रम फैलाने का काम किया। अब समय आ गया है कि इन इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया पर शिकंजा कसा जाए।

(लेखक एक पहल एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव और भारत सरकार के पूर्व उपसचिव है।)

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