शनिवार, 22 नवंबर 2025

देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती पैदा करता पाकिस्तान का परोक्ष युद्ध

कर्नल शिवदान सिंह

जब कोई देश अपने दुश्मन देश सेआमने-सामने के युद्ध में नहीं जीत पता है तो वह फिर परोक्ष युद्ध का सहारा लेता है जैसे कि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध कर रहा है क्योंकि भारत से1947 से लेकर अब तक वह चार युद्ध हार चुका है इसलिए अब उसने परोक्ष युद्ध का सहारा लेने का निर्णय लिया है। यह युद्ध सीमाओं पर नहीं लड़ा जाता है बल्कि देश के आंतरिक हिस्सों में आंतरिक सुरक्षा पर हमले के रूप में लड़ा जाता है। देश की सामाजिक, आर्थिक और कानून व्यवस्था आंतरिक सुरक्षा के मुख्य हिस्से होते हैं। इसलिए पाकिस्तान 80 के दशक से ही हमारे देश के विभिन्न राज्यों जैसे पहले पंजाब मेंऔर बाद में कश्मीर राज्य में धार्मिक कट्टरपंथी सोच का प्रचार करके वहां परआतंकवाद को बढ़ावा दिया किया है। इन राज्यों में सांप्रदायिक तनाव के द्वारा वह पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा करके कानून व्यवस्था को बर्बाद करना चाह रहा था। इसी क्रम में अभी दिल्ली में ऐतिहासिक लाल किले पर धमाके के पीछे यही मुख्य कारण था। इस धमाके के पीछे के रहस्य की परते खुलने पर पता लग रहा है कि आतंकियों का इरादा दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर और इसी प्रकार के देश के 37 प्रसिद्ध स्थान पर विस्फोट करकेसांप्रदायिक तनाव पैदा करके दंगे करवाना था। जिससे विश्व को दिखाया जा सके की भारत में कितनी अशांति है और इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को गिराया जा सके। परंतु हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी चौकसी एवं कर्तव्य निष्ठा से इनके इरादों को नाकाम कर दिया।

80 के दशक में रूसी सेना के द्वारा अफगानिस्तान में कब्जे के बाद अमेरिका ने इसे दक्षिण एशिया में अपने लिए चुनौती माना। इसके बाद अमेरिका ने रूसी सेना को वहां से हटाने के लिए पाकिस्तान को अपना मोहरा बनाते हुए उसकेमदरसो में पढ़ने वाले जवानों को तालिबान बनाकर अफगानिस्तान मेंछापा मार युद्ध के लिए भेजना शुरू कर दिया। इसके लिए अमेरिका की सी आइ ए ने पाकिस्तान की आइ ईस आइ को इस प्रकार केऑपरेशन के लिए प्रशिक्षित किया। अमेरिका के इस ऑपरेशन मेंअफगानिस्तान के लोग भी शामिल थे। जिन्हें अफगानिस्तान में रूसी सेना केहर ठिकाने की पूरी जानकारी थी। इस प्रकार के छापामार युद्ध के आगे रुसी सेना ज्यादा देर टिक नहीं पाई और वह वापस चली गई। इसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तान की पीठ थपथपाई और उसे इसी प्रकार चीन के विरुद्ध भी इस्तेमाल किया। इसके लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को बहुत सी आर्थिक सहायता दी। इस प्रकार आतंकवादको कमाई का जरिया बनाते हुए पाकिस्तान ने इसको राष्ट्रीय नीति के रूप में अपना लिया। इस कारण तरह - तरह के आतंकी संगठन जैसे लश्कर ए तोयबा जैसे मोहम्मद इत्यादि वहां पर बन गए। जिन्हें वहां पर खुलेआम अपनी गतिविधि चलाने की पुरी छूट मिल गई। इसलिए पाकिस्तान के जिन नौजवानों को देश की आर्थिक प्रगति में सहयोग करना चाहिए था वह आतंकी बन गए। इस करण पाकिस्तान ना तो औद्योगिक क्षेत्र मेंकोई प्रगति की और ना ही पाकिस्तान में विदेशी निवेश आया इस कारण आज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का यह हाल है।

किसी भी देश में देश विरोधी आतंकी गतिविधि चलाने के लिए पहले वहां पर ऐसे कारण तैयार किए जाते हैं जिनके द्वारा वहां की जनता को दिगभ्रमित किया जा सकेऔर इसके द्वारा वहां के कुछ तत्वों को देश विरोधी गतिविधियों में लगाया जा सके। इसके लिए उसने सर्वप्रथम पाकिस्तान से सीमा लगने वाले पंजाब को अपना निशाना बनाया। पंजाब में सिखों में असंतोष फैलाने के लिए उसने उन्हें अलग खालिस्तान बनाने के लिए प्रेरित करने के लिएअपने रेडियो तथा टेलीविजन द्वारा इसका दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। उसने पंजाब के सिखों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि भारत में उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है। इसलिए उन्हें अपना अलग देश खालिस्तान बनाना चाहिए। इस सोच को आगे बढ़ाने के लिए उसने पहले कुछ सफेद पोश लोगों को इसके प्रचार के लिए तैयार किया जिनमे संत जरनेलसिंह भिंडर वाले का नाम प्रमुख है  जिन्होंने वहां के कुछ नौजवानों को पंजाब में खालिस्तान के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने के लिए अपने आतंकवादियों के द्वारा हिंसा करवानी शुरू की। इसमें इनका मुख्य निशाना हिंदू आबादी होती थी। इन आतंकियों को ट्रेनिंग देने के लिए उसने पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्र में इनके ट्रेनिंग कैंप स्थापित किये। आखिर मेंपंजाब की राष्ट्रवादी जनता के सहयोग से पाकिस्तान के इस नापाक इरादे को भारत ने कुचल दिया तथा पंजाब दोबारा देश का प्रगतिशील प्रदेश बन गया। इसके बाद पाकिस्तान की आइ एस आइ ने यही हरकत 90 के दशक में कश्मीर में शुरू की और वहां परदुष्प्रचार करना शुरू किया कि भारत में मुसलमानों का भविष्य सुरक्षित नहीं है इसलिए कश्मीर को आजादी चाहिए। इसके लिए उसने वहां के नौजवानों को आतंकवादी बनाने के लिए उनकी सोच को कट्टरवादी बनाने के लिए मुस्लिम कट्टरपन को बढ़ावा वहां के कुछ मौलवियों से दिलवाना शुरू किया तथा वहां के कुछ नौजवानों को पाक अधिकृत कश्मीर में ले जाकर उन्हें आतंकवाद की ट्रेनिंग देकर अपने देश के आतंकियों के साथ कश्मीर में भेजकर उनसे हिंदुओं पर आतंकवादी हमले करवाए। 

इसके फलस्वरूप वहां के तीन लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से विस्थापन पलायन करना पड़ा। इस सबके लिएआतंकवाद को बढ़ावा देने वाले ओवर ग्राउंड काम करने वाले स्थानीय एजेंट को को वहां पर लागू धारा 370 से मदद मिल रही थी। इसके कारण कश्मीर की जनता अपने आप को काफी प्रताड़ित महसूस कर रही थी। इसको देखते हुए भारत सरकार ने कश्मीर में अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करते हुए वहां पर लागू धारा 370 को हटाकर वहां पर भारत का संविधान लागू किया जिससे आतंकवाद को समर्थन देने वालेतत्वों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जा सके। इस प्रकार कश्मीर में पंजाब की तरह आतंकवाद को खत्म किया गया। आज जम्मू कश्मीर राज्य विकास के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।देश विरोधीआतंकवाद को देश के अंदर चलाने के लिए तीन तत्व मुख्य भूमिका निभाते हैं। पहले धार्मिक कट्टरपन कोबढ़ावा देने वाले तत्व तथा आतंकवाद के साथ सहानुभूति रखने वाले ,दूसरे उनके लिए धन एकत्रित करने वाले तथा इन आतंकी तत्वों के रहन-सहन का इंतजाम करने वाले तथा कट्टरपन की सोच को बढ़ाने वाले जिन्हें ओवर ग्राउंड वर्कर या सफेद पोश भी कहा जाता है। इस प्रकार इन तीनों तत्वों के सहयोग से आतंकी तैयार होते हैं जो देश में हिंसा फैलाने के लिए बेगुनाह लोगों पर हमले तथा सार्वजनिक स्थानों जैसे लाल किला इत्यादि पर हमला करके देश में आप शिक्षा असुरक्षा कथा सांप्रदायिक तनाव की भावना पैदा करते हैं। इससे देश की देश की आंतरिक सुरक्षा नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। परंतु अक्सर वोट बैंक की राजनीति के कारण राज्य सरकारे देशद्रोही तत्वों और उनके द्वारा फैलाई जा रहे हैं दुष्प्रचार की अनदेखी करती हैं जिसके कारणदेश में अस्थिरता फैलती है जैसा की उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगों के रूप में देखने में आया था।

उपरोक्त को देखते हुए देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति देश के हर नागरिक को भी उतना ही जागरूक रहना चाहिए जितना की सुरक्षा एजेंसी रहती है। फरीदाबाद की यूनिवर्सिटी में पिछले काफी दिनों से उसके अध्यक्ष की मंजूरी और उसके डॉक्टर उमर जैसे देश विरोधी तत्व अपनी गतिविधियां चला रहे थे। परंतु लाल किले के धमाके तक किसी भी सुरक्षा एजेंसी कोइस यूनिवर्सिटी के अंदरचल रही इन देश विरोधी गतिविधियों के बारे में कोई सूचना नहीं मिली। इसको देखते हुए सामरिक दृष्टि से इन जमीन की सतह के ऊपर सफेद पोश देशद्रोहियों और इन गतिविधियों के लिए धन देने वालों केविरुद्ध भी आतंकियों जैसी कार्रवाई करते हुए उन्हें कानून के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए। जहां से इन्हें कड़ी सजा दिलवानी चाहिए। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर जिसमें एनआईए, आईबी और राज्यों की एटीएस के प्रतिनिधियों के साथ एक कमेटी स्थापित की जानी चाहिए जिससे पूरे देश में इस प्रकार की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर शीघ्रता से कार्रवाई की जा सके। इसके साथ ही कट्टरपंथी दुष्प्रचार को रोकने के लिए संप्रदाय विशेष के उदारवादी लोगों तथा उनके समाजसेवी और शिक्षा विदों का सहयोग लिया जाना चाहिए जो अपने समाज की सोच को धार्मिक कट्टरपन और देश विरोधी सोच से बदलकर इसे राष्ट्रवादी बना सकें। इसके बाद जिस प्रकार सरकार ने छत्तीसगढ़ में समर्पण किये नक्सली और माओवादियों का पुनर्वास किया हैऔर उन्हें देश की सकारात्मक गतिविधियों में लगाया है उसी प्रकार मुस्लिम समाज के उन युवाओं का पुनर्वास किया जाना चाहिए जो कट्टरपन से दिग्ग्रहित होकर देश विरोधी गतिविधियों मेंलग गए हैं।

जिस प्रकार भारतीय सेना का हर सैनिक सीमाओं की सुरक्षा में तैनात रहता है। उसी प्रकार देश के हर नागरिक को देश की आंतरिक सुरक्षा में तैनात रहना चाहिएम।और जहां भी किसी देश विरोधी गतिविधि की शंका हो उसकी सूचना फौरन सुरक्षा एजेंसी को दी जानी चाहिए जिससे वह समय पर कार्रवाई करके इन तत्वों को समाप्त कर सकें।

 

मंगलवार, 18 नवंबर 2025

मानवता के रक्षक श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की शहीदी एवं आध्यात्मिक दर्शन

आचार्य राघवेंद्र पी. तिवारी

सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी (1621-1675) भारतीय इतिहास के उथल-पुथल वाले कालखंड में अवतरित हुए। औरंगज़ेब के दमनकारी शासनकाल में धार्मिक असहिष्णुता और जबरन धर्मांतरण ने भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को खतरे में डाल दिया था। जहाँ मुग़ल साम्राज्य में हिंदुओं का धर्मांतरण व्यापक पैमाने पर हो रहा था, वहीं कश्मीर का मुग़ल गवर्नर अपने बादशाह का कृपापात्र बनने हेतु, धर्मांतरण की नीति को बड़े उत्साह से लागू कर रहा था। परिणामस्वरूप कश्मीरी पंडितों पर भीषण अत्याचार हुए। उनके मंदिर तोड़े गए। उन्हें इस्लाम स्वीकारने पर विवश किया गया। कश्मीरी पंडितों ने आनंदपुर साहिब में गुरु साहिब से भेंटकर अपने धर्म एवं आस्था की रक्षा हेतु प्रार्थना की।

असाधारण साहस, करुणा और अंतःकरण की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक समर्थक गुरु साहिब ने कश्मीरी पंडितों के धार्मिक स्वतन्त्रता की रक्षा करने का निर्णय लिया। उन्होंने पंडितों को आश्वासन दिया कि वे दिल्ली जाकर मुगल सम्राट से चर्चा करेंगे। साथ ही पंडितों से कहा कि वे अपने गवर्नर को सूचित करें कि यदि गुरु जी अपना धर्म परिवर्तित कर इस्लाम अपना लेते हैं, तो हम भी इस्लाम धर्म अपना लेंगे, लेकिन यदि वे इसका विरोध करते हैं, तो हमें धार्मिक रूप से स्वतंत्र रखा जाए।

गुरु साहिब के बढ़ते प्रभाव और जनसमर्थन को देखकर मुगल शासन घबरा उठा। दिल्ली यात्रा के दौरान मुगल शासक ने गुरु साहिब एवं उनके अनुयायियों को गिरफ्तार कर लिया। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति को तोड़ने हेतु उन्हें और उनके अनुयायियों को रास्ते भर यातनाएँ दी एवं अपमानित किया। परन्तु गुरु साहिब ने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। काजी द्वारा झूठे मुकदमें के दौरान उन्हें धर्म परिवर्तन का प्रस्ताव दिया गया, जिसे गुरूजी ने दृढतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। उनके आँखों के समक्ष उनके तीन अनुयायियों, भाई मती दास जी, भाई सती दास जी और भाई दयाला जी को निर्ममतापूर्वक मार दिया गया, फिर भी गुरू साहिब शांतचित्त होकर नाम-स्मरण में लीन रहे।

24 नवंबर, 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक में स्वयं उपस्थित होकर गुरु साहिब ने धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार की रक्षा हेतु अपनी शहीदी दी। दृढ़ संकल्प एवं अटूट साहस के माध्यम से उन्होंने भारत की संप्रभुता की रक्षा की और धर्म के शाश्वत आदर्शों को कायम रखा। उनकी इस शहीदी ने भावी पीढ़ियों को भय और व्यक्तिगत सुरक्षा के बजाय विवेक, साहस और नैतिक कर्तव्य को बनाए रखने हेतु प्रेरित कर रही हैं। गुरु साहिब का जीवन इस आदर्श का प्रमाण है कि सच्ची वीरता अस्त्र-शस्त्र, सत्ता या क्रूरता में नहीं, अपितु आत्मविश्वास, बलिदान, नैतिक साहस, न्याय हेतु निडरता से खड़े होने में भी निहित है। इस सर्वोच्च बलिदान हेतु उन्हें ‘हिंद दी चादर’ अर्थात भारत की ढाल की उपाधि से विभूषित किया गया। युद्धकला में निपुण होने के बावजूद, गुरु साहिब का स्वभाव अत्यंत गंभीर, विचारशील, एवं आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख था। उनका साहस एवं वीरता केवल सांसारिक रक्षा के लिए नहीं बल्कि वैराग्य, ध्यान और धर्म के प्रति निष्ठाजनित नैतिक साहस के उच्चतम आदर्श के रूप में भी थी।

गुरु साहिब की शहादत मनुष्य के स्वतंत्र रूप से जीने के सार्वभौमिक अधिकार हेतु दिया गया सर्वोच्च बलिदान है। यह सिखाता है कि दूसरों के स्वतंत्रता की रक्षा करना आध्यात्मिक कर्तव्य का सर्वोच्च रूप है। अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध प्रतिरोध इस बात का भी प्रमाण था कि धर्म-पालन का विषय साम्राज्यों के अधिकार से परे है। गुरु साहिब ने बलिदान के माध्यम से उद्घोष किया था कि स्वतंत्रता, समानता और मानवीय गरिमा, मन की पवित्रता में अंतर्निहित हैं। उन्होंने जाति, पंथ, लोभ अथवा धन के आधार पर सभी प्रकार के भेदभाव को अस्वीकार किया और संदेश दिया कि ईश्वरीय प्रकाश सभी में विद्यमान है। उनकी शहादत मानवाधिकारों के वैश्विक इतिहास में मील का पत्थर बनकर भावी पीढ़ी को न्याय और स्वतंत्रता के समर्थन हेतु प्रेरित करती रहेगी।

गुरु साहिब आस्था के नैतिक मूल्यों को पुनर्परिभाषित करने हेतु सिख इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्होंने सिख धर्म को न्याय, मानवीय गरिमा एवं अंतःकरण की स्वतंत्रता हेतु प्रतिबद्धता के रूप में स्थापित किया। उनके बलिदान ने सामूहिक रूप से सिख धर्म के दायरे को  क्षेत्रीय धार्मिक समुदाय से सार्वभौमिक नैतिक धर्म के रूप में स्थापित किया। उन्होंने गुरु अर्जन देव जी की शहादत को सिख धर्म के सार्वभौमिक अंतरात्मा के जीवंत उदाहरण तथा रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे धार्मिक आस्था की रक्षा को नैतिक साहस एवं मानवाधिकारों के प्रतिमान के रूप में पहचान मिली।

गुरु साहिब के आध्यात्मिक योगदान उनके भजनों में परिलक्षित होते हैं। उदाहरणार्थ, वे कहते हैं, “किसी से डरो मत, किसी को भयभीत मत करो; इस प्रकार तुम ज्ञान प्राप्त करोगे” (गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 1427), जहाँ वे आध्यात्मिक अनुशासन और नैतिक साहस के समन्वय को स्पष्ट करते हैं, संत-सिपाही (संत-सैनिक) आदर्श की रूपरेखा स्थापित करते हैं, और सभी के कल्याण (सरबत दा भला) के लिए कार्य करते हैं। उनकी विरासत व्यापक मानवतावादी चिंतन को आलोकित करती है। उनका जीवन यह प्रमाणित करता है कि सच्चा धर्म सभी सांप्रदायिक सीमाओं से परे है। उनके जीवन का संदेश सरल किन्तु शाश्वत है: “दूसरों की स्वतंत्रता की रक्षा उसी प्रकार करो जैसे तुम अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करते हो; इसी में ईश्वर का सच्चा मार्ग निहित है।”  साथ ही उनके सबद सांसारिक आसक्तियों की अनित्यता पर ज़ोर देते हैं और मानव को अहंकार, लोभ तथा क्षणिक सुखों से ऊपर उठने का आह्वान करते है। इन भजनों से सीख मिलती है कि हर परिस्थिती में समभाव बनाए रखना ही सच्ची आध्यात्मिकता है। गुरु जी की आध्यात्मिक दृष्टि विवेकपूर्ण एवं व्यावहारिक है, जो गहन सिमरन (ध्यान) एवं समर्पण (सेवा) के संयोजन पर आधारित है, जिससे स्पष्ट होता है कि ईश्वर भक्ति का सार मानवता के प्रति करुणा एवं सेवा में ही निहित है।

गुरु साहिब ने सिख धर्म को आध्यात्मिकता से आलोकित किया जो ध्यान, नैतिक सामर्थ्य तथा सार्वभौमिक करुणा पर आधारित है। उनके अनुसार  सच्ची आध्यात्मिकता किसी कर्मकांड, संन्यास में नहीं, बल्कि निडरता, विनम्रता और सांसारिक चुनौतियों के मध्य ईश्वर के स्मरण में निहित है। उन्होंने सिख धर्म को एक सार्वभौमिक दर्शन के रूप में स्थापित किया, जो आंतरिक जागृति, नैतिकता एवं मानवता की सेवा पर केंद्रित है। उन्होंने सीख दी कि आध्यात्मिक बोध और नैतिक साहस सत्य के दो अविभाज्य आयाम हैं।

गुरु साहिब का जीवन और बलिदान न केवल सिख इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है, अपितु समूची मानवता के लिए शाश्वत सीख भी हैं। उनकी सीख सद्भाव और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की है। ये ऐसे जीवन मूल्य है जो अशांत एवं संघर्षग्रस्त विश्व में अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि सच्चा सुख भौतिक संपत्ति अथवा क्षणिक सुखों में नहीं, बल्कि सत्य, नि:स्वार्थता और मानव सेवा में निहित है। उनका जीवन प्रेरणा देता है कि कैसे सभी प्राणियों के प्रति गहरी करुणा रखते हुए भी धर्म पर दृढ़ रहा जा सकता है। यह संदेश संस्कृतियों की सीमाओं से परे मानव समाज को हमेशा प्रेरित करता रहेगा। गुरु साहिब का जीवन हमें विपत्ति में वीरता, शक्ति में करुणा और सेवा में निस्वार्थता की सीख देता है। उनकी विरासत लोगों को स्वतंत्रता, समानता, न्याय और सर्वजन हिताय, बहुजन सुखाय के आदर्शों के लिए जीने हेतु प्रेरणा देती है। उनका साहस और बलिदान मानव समाज का अमर प्रेरणा स्त्रोत रहेगा।  हमेशा स्मरण कराएगा कि वास्तविक शक्ति सत्य और धर्म की रक्षा में निहित है। यह न्याय और करुणा का सार्वभौमिक संदेश है, जो कालातीत है।

(लेखक कुलपतिपंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालयबठिंडा हैं और यह इनके व्यक्तिगत विचार हैं।)

मंगलवार, 11 नवंबर 2025

ई-रिक्शा चालक जुम्मन की दर्दनाक मौत! परिवार ने की सरकार से मदद की गुहार


नई दिल्ली। सोमवार के दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार विस्फोट ने कई जिंदगियों को तबाह कर दिया है। इन्हीं में से एक कहानी बुलंद मस्जिदशास्त्री पार्क निवासी 35 वर्ष के मोहम्मद जुम्मन कीजो ई-रिक्शा चलाते थे और सोमवार शाम से गायब थे। इनके परिवार ने उन्हें हर जगह तलाशा और अंत में उनकी पहचान क्षत-विक्षत शव के रूप में हुई। 
शास्त्री पार्क इलाके में रहने वाला जुम्मन लाल किले के आसपास ई-रिक्शा चलाता था। हादसे वाले दिन वह भी ब्लास्ट हुई कार के पास मौजूद थे, जिस कारण उनका शव टुकड़ों में सड़क पर फैल गया। जुम्मन के परिजन रो-रोकर LNJP के बाहर उसे खोज रहे थे, लेकिन काफी समय तक उसे कुछ पता नहीं चला। इस बीच नीले कलर की जैकेट से उसकी पहचान हुई। शव की हालत देख परिजनों के होश उड़ गए। शव कई टुकड़ों में था।
मोहम्मद चांद और नजमा खातून को अपने भाई मोहम्मद जुम्मन की बेचैनी से तलाश करते हुए रहे पर उनको किसी भी तरह से उनकी खबर नहीं मिल रही थी। 12 घंटे से ज्यादा बीत चुके था। उनकी चिंता जायज़ है: जुम्मन की आखिरी लोकेशन वही जगह है जहां लाल किले के पास कार ब्लास्ट हुआ।
ई-रिक्शा चालक जुम्मन के भाई मोहम्मद चांद ने बताया कि जब विस्फोट स्थल पर उसके रिक्शे का जीपीएस बंद हो गया, तो परिवार चिंता में पड़ गया।
उन्होंने रात भर अस्पतालों में खोजबीन की और पुलिस द्वारा उनकी मौत की पुष्टि होने से पहले गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई। परिवार को उनका शव इतनी बुरी तरह क्षत-विक्षत अवस्था में मिला कि उनकी पहचान करना मुश्किल था।
जुम्मन की पत्नी शारीरिक रूप से अक्षम हैं, वे अपने परिवार और तीन बच्चों का पालन-पोषण अपनी मेहनत की दिहाड़ी से कर रहे थे। परिवार वालों का कहना है कि सरकार उनकी पत्नी व परिवार की मदद करे क्योंकि वे परिवार की आय का एकमात्र स्रोत थे, जो अब इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं।

 

सोमवार, 10 नवंबर 2025

बैटरी रिक्शा चालक जुम्मन धमाके में लापता, तलाश में परिजन बेहाल

नई दिल्ली:

जुम्मन की फोटो
लाल किला के पास सोमवार शाम हुए धमाके के बाद से इलाके में अफरा-तफरी का माहौल है। इस हादसे में 20 लोगों के घायल होने और 12 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है, वहीं कई लोग अब भी लापता हैं। इन्हीं में एक हैं बुलंद मस्जिद, शास्त्री पार्क निवासी 35 वर्ष के मोहम्मद जुम्मन, जो ई-रिक्शा चलाते थे और सोमवार शाम से गायब है। जुम्मन की आखिरी लोकेशन लाल किला के पास मिली थी। परिवार नम आंखों से उनकी तलाश कर रहा है।

जुम्मन के चाचा इदरीश ने बताया कि भतीजा रोज की तरह सवारियों को छोड़ने चांदनी चौक गया था। रात से हम उसे ढूंढ रहे हैं, पर कोई सुराग नहीं मिला। ई-रिक्शा में जीपीएस लगा था, जिसकी आख़िरी लोकेशन लाल किला के एक नंबर गेट के पास दिखी थी। लेकिन जब वहां पहुंचे तो गाड़ी की लोकेशन ऑन दिख रही थी, बाद में लोकेशन बंद हो गई।

ई-रिक्शा चालक जुम्मन धमाके में लापता: उन्होंने बताया कि जब परिजन लोकेशन पर पहुंचे तो पुलिस ने अंदर जाने की इजाजत नहीं दी और अस्पताल जाकर देखने की सलाह दी। हम एलएनजेपी अस्पताल पहुंचे, लेकिन अंदर जाने नहीं दिया गया। किसी ने कहा कि मोर्चरी में जाकर देख लो। हमने देखा, पर कोई कंफर्मेशन नहीं मिला। इदरीश ने बताया कि पुलिस बस यही कह रही है कि अस्पताल और मुर्दाघर में जाकर देखो। हमने चांदनी चौक थाने में शिकायत दर्ज कराई है। अब उम्मीद है कि जल्द कुछ खबर मिले।

जुम्मन की तलाश में परिजन बेहाल: इदरीश ने बताया कि जुम्मन को इलाके के अन्य रिक्शा चालकों ने सोमवार शाम करीब 6 बजे के आसपास आख़िरी बार देखा था। जुम्मन की पत्नी और परिजन का रो-रोकर बुरा हाल है। परिजन लगातार पुलिस से मदद की गुहार लगा रहे थे, हर गुजरते घंटे के साथ यह उम्मीद थी कि जुम्मन सुरक्षित मिल जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

बता दें कि दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के पास सोमवार शाम हुए विस्फोट ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया। शाम 6 बजकर 52 मिनट पर लालकिले के पास एक कार में धमाका हुआ, जिसमें अबतक 12 लोगों की मौत हो गई और 20 लोग घायल हो गए। यह धमाका, लालकिला मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर एक के बाहर आई-20 कार में हुआ। इस धमाके ने न केवल आसपास के बाजार क्षेत्र में अफरा-तफरी मचा दी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए हैं।

मंगलवार, 4 नवंबर 2025

सेवा, एकता और इंसानियत ही सच्चा धर्म है: सरदार बलविंदर सिंह


संवाददाता

नई दिल्ली। गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में आज चांदनी चौक गुरुद्वारे से भव्य नगर कीर्तन का आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं की भारी संख्या देखने को मिली। इस पावन अवसर पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भाग लेकर गुरु नानक देव जी के उपदेशों को नमन किया और समाज में एकता, भाईचारा और सेवा का संदेश दिया।

कार्यक्रम में पार्टी के दिल्ली प्रदेश संयोजक डी.सी. कपिल, प्रदेश उपाध्यक्ष सरदार बलविंदर सिंह, प्रदेश महासचिव राजेश घाघट, चांदनी चौक विधान सभा अध्यक्ष सुखबीर सिंह ने विशेष रूप से भाग लिया।

इस अवसर पर चांदनी चौक मार्केट एसोसिएशन की ओर से उपरोक्त नेताओं को सामाजिक कार्यों और जनसेवा में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इस आयोजन की मुख्य भूमिका चांदनी चौक विधान सभा अध्यक्ष सुखबीर सिंह और मुण्डका विधानसभा अध्यक्ष गुरप्रीत सिंह ने निभाई, जिन्होंने नगर कीर्तन के सफल संचालन में अहम योगदान दिया।

इस मौके पर दिल्ली प्रदेश उपाध्यक्ष सरदार बलविंदर सिंह ने कहा गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि मानवता, समानता और सेवा का प्रतीक है। गुरु साहिब ने सिखाया कि असली धर्म वही है जो इंसान को इंसान से जोड़े।

आज आवश्यकता है कि हम उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतारें और समाज में प्रेम, भाईचारा तथा एकता को मजबूत करें। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) दिल्ली में हर धर्म और हर वर्ग को साथ लेकर शांति और सद्भावना के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है।

दिल्ली प्रदेश संयोजक डी.सी. कपिल ने इस मौके पर कहा कि गुरु नानक देव जी ने सत्य, समानता और करुणा का मार्ग दिखाया। उन्होंने सिखाया कि सेवा और सच्चाई ही मानवता का सबसे बड़ा धर्म है।

आज के समय में जब समाज को बांटने की कोशिशें हो रही हैं, गुरु साहिब का संदेश हमें एकजुट रहने की प्रेरणा देता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) ऐसे आयोजनों के माध्यम से एकता और भाईचारे का संदेश देती रहेगी।

वहीं प्रदेश महासचिव राजेश घाघट ने कहा कि गुरु नानक देव जी ने ‘सरबत दा भला’ का जो संदेश दिया, वह समाज को जोड़ने का सबसे बड़ा सूत्र है। हमें जात-पात और धर्म के भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता की सेवा करनी चाहिए। हमारी पार्टी हमेशा ऐसे सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर भाईचारे और एकता को बढ़ावा देती रहेगी।

चांदनी चौक विधान सभा अध्यक्ष सुखबीर सिंह ने कहा कि गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह पर्व हमें सिखाता है कि समानता, सेवा और करुणा ही सच्चे धर्म के आधार हैं। आज चांदनी चौक की गलियों में नगर कीर्तन का आयोजन देखकर मन अत्यंत प्रसन्न हुआ। मैं चांदनी चौक मार्केट एसोसिएशन और सभी श्रद्धालुओं का आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने इस आयोजन को सफल बनाया और गुरु साहिब के उपदेशों को आत्मसात किया।

गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

बिहार की चुनावी तस्वीर स्पष्ट हो रही है

अवधेश कुमार

बिहार चुनाव अभियानों के प्रचंड शोर से के बीच से निकलने वाले संकेतों को आप समझ सकते हैं । दोनों प्रमुख गठबंधनों तथा तीसरी शक्ति के रूप में खड़ा होने की कोशिश कर रही जन सुराज व उम्मीदवारों तक ने अपने मुद्दे भी घोषित कर दिए। मतदाताओं के सामने मुख्य प्रश्न यही है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और प्रदेश की नीतीश कुमार सरकार को कायम रखनी है या बदलने के लिए विपक्षी गठबंधन को सत्ता में लाना है ? प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र और भाजपा ने राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने कार्यों , वक्तव्यों तथा व्यवहारों से स्थायी एवं तात्कालिक मुद्दे लगातार बनाए रखें है। छोटे से छोटे चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा एक प्रबल कारक की भूमिका निभाते हैं । इसमें चुनावी आकलन की मुख्य वस्तुनिष्ठ कसौटियां क्या हो सकतीं हैं? एकमात्र कसौटी यही होगी कि आखिर सामने दिखने वाले तीनों प्रमुख धाराओं के चुनाव में उद्देश्य क्या हैं? जब हम उद्देश्यों पर विचार करेंगे तो यह भी प्रश्न उभरेगा कि क्या उनकी संपूर्ण भूमिका उन उद्देश्यों के अनुरूप हैं? इन्हीं के अगले चरण में आपको चुनावी संभावनाओं  के भावी दृश्य भी धीरे-धीरे स्पष्ट हो जाएंगे।

पहले दोनों मुख्य गठबंधनों यानी सत्तारुढ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन या राजग तथा दूसरी ओर जिसे महागठबंधन कहते हैं उनकी चर्चा। हालांकि विपक्ष को महागठबंधन तब कहा गया था जब नीतीश कुमार जदयू के साथ इस ओर आ गए थे। जब नीतीश कुमार इससे निकल चुके हैं तो यह महागठबंधन नहीं है। दोनों ओर सामान्य गठबंधन है। विपक्षी गठबंधन के सामने सीधा लक्ष्य महाराष्ट्र, हरियाणा तथा दिल्ली में भाजपा के विजय अभियान को रोक कर लोकसभा चुनाव में दिए गए धक्के को फिर सतह पर लाना है। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर हमला करते हुए यही कहा कि  वोट चोरी नहीं होती तो भाजपा की सीटें घट जातीं और उनकी सरकार नहीं बनती। यह स्पष्ट है कि 2014 से हिंदुत्व, हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्रवाद के साथ सामाजिक न्याय एवं विकास आदि के आधार पर भाजपा का स्थिर ठोस वोट आधार कायम हो चुका है। भाजपा चाहे चुनाव जीते या हारे इसकी शुरुआत उस निश्चित वोट प्रतिशत से ही होती है। इस नाते विपक्ष का पहला लक्ष्य हर हाल में उम्मीदवारों, राजनीतिक मुद्दों और चुनाव अभियानों में सशक्त एकजुटता प्रदर्शित करनी चाहिए थी। इससे मतदाताओं के बीच संदेश जाता कि वाकई ये विचार और मुद्दों के आधार पर भाजपा का विरोध करते हैं केवल सत्ता पाने के लिए इनका साथ नहीं है। राहुल गांधी, वम दल, स्वयं तेजस्वी यादव आदि सेक्युलरिज्म आदि के आधार पर भाजपा से विचारधारा का टकराव घोषित करते हैं। क्या इनका आचरण इसके अनुरूप रहा?

23 अक्टूबर की संयुक्त प्रेस वार्ता के पहले विपक्षी गठबंधन के शीर्ष नेताओं की एक भी बैठक नहीं हुई।

इसके उलट जब लालू प्रसाद यादव , राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव दिल्ली में अपने मुकदमों के लिए न्यायालय में उपस्थित होने आए थे तो माना गया था कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं साथ उनकी बैठक होगी।  केवल यह समाचार आया कि लालू यादव ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से फोन पर बातचीत की। यानी तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की बैठक नहीं हो सकी। सभी पार्टियों ने स्वयं ही उम्मीदवारों की घोषणा की है। इसका  संदेश यही है कि चूंकि इनको मालूम है कि आपस में लड़ने पर हम चुनाव नहीं जीत पाएंगे इसलिए इन्होंने एक दूसरे की सीट से कुछ उम्मीदवार हटाए और या उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। बावजूद 11 स्थानों पर गठबंधन के उम्मीदवार एक दूसरे के विरुद्ध लड़ रहे हैं और अनेक स्थानों पर बिना पार्टी चुनाव चिन्ह के निर्दलीय खड़े हैं । क्या चुनाव पर इसका असर नहीं होगा? गठबंधन में पार्टियों द्वारा अधिक से अधिक सीटों की चाहत अस्वाभाविक नहीं है। किंतु कांग्रेस का रवैया गठबंधन धर्म के विपरीत रहा। कांग्रेस का तर्क था कि पिछले चुनाव में 70 सीटों पर केवल 19 पर ही जीत इसलिए मिली क्योंकि ये स्थान हमारे अनुकूल नहीं थे। दरअसल, कांग्रेस मान रही है कि राहुल गांधी सेकुलरिज्म के सबसे बड़े चेहरे हैं, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा, संघ और हिंदुत्व विचार पर लगातार आक्रमण किया और चुनाव आयोग तक को भाजपा समर्थक घोषित करने के लिए अभियान चलाया इस कारण उनकी लोकप्रियता विपक्ष  के सभी नेताओं से ज्यादा है। इसीलिए गठबंधन या सीटों के बंटवारे में आत्मविश्वास और समानता से हमें व्यवहार करना है। कांग्रेस राजद को ब्लैंक चेक देने के मूड में नहीं रही और इसी कारण तेजस्वी यादव गठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने में काफी विलम्ब हुआ। ऐसा लगा कि कुछ विरोधियों तथा विश्लेषकों द्वारा लगातार  इस पहलू को उठाने के बाद चुनावी क्षति का भय पैदा हुआ और फिर ये तेजस्वी यादव को नेता घोषित करने को बाध्य हो गए।

 स्वयं कांग्रेस के अंदर टिकटों को लेकर पटना सदाकत आश्रम कार्यालय में मारपीट, गाली-  गलौज तथा प्रदेश अध्यक्ष, विधानसभा में विपक्ष के नेता एवं प्रभारी के हवाई अड्डे पर उतरने के बाद कार्यकर्ताओं के गुस्से वाले दृश्य ने बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया। झारखंड मुक्ति मोर्चा पहले गठबंधन का भाग हुई लेकिन नाराज होकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने घोषणा कर दिया कि उनकी पार्टी बिहार में चुनाव नहीं लड़ेगी और झारखंड उपचुनाव में भी अकेले उतरेगी। इससे तो राष्ट्रीय स्तर पर आईएनडीआईए का अवशेष भी प्रश्नों के घेरे में आ गया।

दूसरी ओर भाजपा जद-यू के समान वर्चस्व वाले राजग के नेताओं ने बार-बार स्पष्ट किया कि वे नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ रहे हैं। सीटों के बंटवारे पर भी स्पष्ट वक्तव्य जारी किया। यहां भी सीटों पर मतभेद थे तथा रालोमो प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा और हम के जीतन राम मांझी ने इसे सार्वजनिक प्रकट भी किया।  गहराई से देखेंगे तो समस्या चिराग पासवान की लोजपा को 29 सीटें देने के कारण पैदा हुई। उनके खाते कुछ सीटें ऐसी जिनमें कुछ क्षेत्रों से रालोमो और हम के साथ भाजपा प्रदेश नेतृत्व भी अपना उम्मीदवार लडाना चाहता था। इसीलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजगीर और सोनबरसा में अपने उम्मीदवार को चुनाव चिन्ह देकर नामांकन करवा दिया। ऐसा होने के बावजूद नीतीश कुमार ने हर पार्टी के लिए अपना चुनाव प्रचार जारी रखा, सभी ने एक स्वर से एकजुट होने  के बयान जारी किए। आज की स्थिति में राजग के सभी घटक एकजूट चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टियों के अंदर उम्मीदवारों को लेकर असंतोष हैं ।स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं में हम और लोजपा नेतृत्व द्वारा अपने परिवार रिश्तेदारों तथा कुछ गलत लोगों के टिकट देने का भी विरोध है। इनका थोड़ा असर चुनाव परिणाम पर पड़ता है।

मुद्दों की दृष्टि से राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर भाजपा के लिए वोट चोरी करने का आरोप लगाते हुए वोट अधिकार यात्रा निकाली और इसे बिहार सहित आगामी सभी चुनाव के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बनाने की रणनीति अपनाई। वास्तव में जानबूझकर किसी मतदाता का नाम हटा नहीं इसलिए यह मुद्दा बन ही नहीं सका। तेजस्वी यादव और उनके रणनीतिकारों को इसका आभास हुआ तो उन्होंने राहुल की यात्रा के बाद बिहार अधिकार यात्रा शुरू कर दी। आप देखेंगे कि चुनाव में राजद या अन्य घटक यह मुद्दा नहीं उठा रहे थे। इतना शोर वाले मुद्दा ही निराधार हो तो मतदाताओं के मनोविज्ञान पर इसका असर नकारात्मक ही होता है। दूसर ओर भाजपा और जदयू लगातार लालू राबड़ी काल के कुशासन व‌ जंगल राज को शीर्ष पर ला रही है तथा अपने काल में बिहार में आधारभूत संरचनाओं से लेकर स्वास्थ्य आदि के विकास की तस्वीर प्रस्तुत करते हुए मतदाताओं के सामने दोनों के बीच तुलना का विकल्प दे रहे हैं। जब विपक्ष एकजुट नहीं होगा तो सरकार के विरुद्ध प्रभावी तरीके से मुद्दे भी नहीं बनाये जा सकते। यही बिहार चुनाव में दिख रहा है।

 प्रशांत किशोर ने पिछले दो वर्ष में बिहार से जुड़े मुद्दे उठाए। किंतु मुद्दे उठाने और राजनीतिक नेतृत्व का चेहरा बनने में मौलिक अंतर है। बिहार में तीसरी शक्ति को मत तीन स्थितियों में ही मिल सकता है। एक , जब मतदाताओं के अंदर सरकार के विरुद्ध इतना व्यापक असंतोष हो कि वे उसे उखाड़ फेंकना चाहें। दो , यह मान लें कि वर्तमान विपक्ष भाजपा जदयू कि मुकाबला करने में बिल्कुल सक्षम नहीं है। और तीन , सामने तीसरा विकल्प इन दोनों से बेहतर चेहरों मुद्दों और रणनीति के साथ सामने है। ये तीनों स्थितियों बिहार में नहीं हैं। इसके बाद आप निष्कर्ष निकालिए कि आखिर चुनाव की अंतिम तस्वीर क्या होगी?

12 वार्डों में मतदान, किस पार्टी के पास थी कौन-सी सीट, चुनाव आयोग ने 7 लाख मतदाताओं के लिए बनाए 580 मतदान केंद्र


संवाददाता

नई दिल्ली। दिल्ली नगर निगम (MCD) के 12 वार्डों में खाली पड़ी सीटों को भरने के लिए चुनावी बिगुल बज चुका है. स्टेट इलेक्शन कमिशन ने मंगलवार (28 अक्टूबर) को उपचुनाव की घोषणा करते हुए मतदान की तारीख 30 नवंबर तय की है. सुबह 7:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक मतदान होगा और इसके साथ ही इन वार्डों में आचार संहिता भी लागू कर दी गई है. 

स्टेट इलेक्शन कमिशन (दिल्ली) के अनुसार, एमसीडी के 250 वार्डों में से 12 वार्डों में उपचुनाव 30 नवंबर को होंगे. चुनाव का नोटिफिकेशन 3 नवंबर से जारी होगा और इसी दिन नामांकन प्रक्रिया भी शुरू होगी. नामांकन भरने की अंतिम तारीख 10 नवंबर और नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख 15 नवंबर तय की गई है. 

चुनाव आयोग ने 7 डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर (DEO), 11 रिटर्निंग ऑफिसर (RO), 11 इलेक्शन ऑब्जर्वर और एक्रेडिटेड ऑब्जर्वर की नियुक्ति कर दी है. 12 वार्डों में से 6 सामान्य वर्ग, 5 महिला और 1 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं.

प्रत्याशी अधिकतम 8 लाख तक कर सकेंगे खर्च - चुनाव आयोग के अनुसार सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों को नामांकन के समय 5,000 रुपये और अनुसूचित जाति वर्ग के प्रत्याशियों को 2,500 रुपये सिक्योरिटी मनी के रूप में जमा करनी होगी. प्रत्येक प्रत्याशी को प्रचार-प्रसार पर अधिकतम 8 लाख रुपये तक खर्च करने की अनुमति होगी.

करीब सात लाख मतदाता डालेंगे वोट - उपचुनाव में कुल 6,98,751 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. इनमें से 3,74,988 पुरुष, 3,23,710 महिलाएं, 53 थर्ड जेंडर वोटर, 60 दिव्यांग मतदाता, 14,529 वरिष्ठ नागरिक (80 वर्ष से ऊपर) और 4,458 युवा (18 वर्ष) शामिल हैं. 

मतदान के लिए कुल 580 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं. सबसे अधिक पोलिंग स्टेशन (55) मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के पूर्व वार्ड शालीमार बाग-बी में बनाए जाएंगे.

महिला-पुरुष मतदाताओं में मामूली अंतर - आयोग के आंकड़ों के अनुसार तीन वार्डों में महिला और पुरुष मतदाताओं की संख्या में बहुत कम अंतर है. दिलचस्प बात यह है कि 80 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाता (2.07%) की संख्या 18 वर्ष के युवाओं (0.63%) से अधिक है, जो चुनाव में वरिष्ठ नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है.

वार्ड वाइज वोटर्स की संख्या

• मुंडका (सामान्य) – 54,525

• शालीमार बाग-बी (महिला) – 66,391

• अशोक विहार (महिला) – 56,697

• चांदनी चौक (सामान्य) – 44,166

• चांदनी महल (सामान्य) – 46,237

• द्वारका-बी (महिला) – 66,184

• दिचाऊं कलां (महिला) – 72,396

• नारायणा (सामान्य) – 59,340

• संगम विहार-ए (सामान्य) – 59,365

• दक्षिणपुरी (अनुसूचित जाति) – 61,636

• ग्रेटर कैलाश (महिला) – 49,624

• विनोद नगर (सामान्य) – 62,190

क्यों खाली हुईं ये सीटें - इन 12 में से 11 सीटें पार्षदों के विधायक बनने के बाद रिक्त हुईं, जबकि द्वारका-बी सीट पिछले वर्ष मई में सांसद कमलजीत सहरावत के लोकसभा सदस्य बनने से खाली हुई थी. इन्हीं में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की विधायक निर्वाचित होने से खाली हुई शालीमार बाग की सीट भी शामिल है.

किस पार्टी के पास थीं कौन-सी सीटें - इन 12 वार्डों में से तीन सीटें — चांदनी महल, चांदनी चौक और दक्षिणपुरी पहले आम आदमी पार्टी (आप) के पास थीं. जबकि नौ सीटें — शालीमार बाग, द्वारका बी, ग्रेटर कैलाश, दिचाऊं कलां, नारायणा, संगम विहार, विनोद नगर, अशोक विहार और मुंडका भाजपा के कब्जे में थीं.

एमसीडी की वर्तमान स्थिति और राजनीतिक समीकरण - वर्ष 2022 में तीनों एमसीडी का एकीकरण किया गया था, जिसमें 250 सीटों पर चुनाव हुए थे. तब आप को 134, भाजपा को 104, कांग्रेस को 8 और 3 निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली थी. इसके बाद, 2024–25 में कई आप पार्षद भाजपा में शामिल हो गए और 16 पार्षदों ने नया दल इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी (IVP) बना लिया. इस बदले राजनीतिक समीकरण में अप्रैल 2025 में हुए महापौर चुनाव में भाजपा ने बहुमत के आधार पर जीत हासिल की थी.

वर्तमान में एमसीडी की कुल 250 सीटों में से 12 रिक्त हैं. बाकी सीटों पर पार्टीवार स्थिति इस प्रकार है:

● बीजेपी – 116 सीटें

● आप – 98 सीटें

● कांग्रेस – 8 सीटें

● इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी – 15 सीटें

तीनों दलों की निगाहें इन 12 सीटों पर - भाजपा, आप और कांग्रेस — तीनों ही दल इन उपचुनावों को बेहद अहम मान रहे हैं. भाजपा इसे निगम में अपना वर्चस्व मजबूत करने के अवसर के तौर पर देख रही है, तो वहीं आम आदमी पार्टी अपनी खोई हुई सीटें वापस पाने के प्रयास में जुटी है. जबकि कांग्रेस भी इस चुनावों में वापसी की उम्मीद कर रही है. दिलचस्प बात यह है कि सभी दलों का दावा है कि वे सभी 12 सीटों पर जीत दर्ज करेंगे.

वोटिंग और नतीजों की तारीखें

◆ नामांकन शुरू: 3 नवंबर

◆ नामांकन की अंतिम तारीख: 10 नवंबर

◆ नामांकन वापसी की अंतिम तारीख: 15 नवंबर

◆ मतदान: 30 नवंबर (सुबह 7:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक)

◆ नतीजों की घोषणा: 3 दिसंबर

कांग्रेस ने की उम्मीदवार चयन की तैयारी - दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने आज राजीव भवन में एक अहम बैठक बुलाई. इसमें एमसीडी के 12 वार्डों में होने वाले उपचुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन पर चर्चा हुई. इस दौरान देवेंद्र यादव ने कहा कि पिछले 9 महीनों में बीजेपी की रेखा गुप्ता सरकार हर क्षेत्र में नाकाम साबित हुई है. लोग अब बदलाव की बाट जोह रहे हैं. दिल्ली में बीजेपी के खिलाफ गुस्सा साफ दिख रहा है और कांग्रेस को इन उपचुनावों में बड़ी जीत का मौका मिल सकता है.

भाजपा पर हमला, आप से तुलना - देवेंद्र यादव ने तंज कसा कि रेखा गुप्ता की सरकार पिछली भ्रष्ट आम आदमी पार्टी की सरकार से भी बदतर निकली. विधानसभा चुनाव में किए वादे- बिजली-पानी की दिक्कतें दूर करना, सफाई और प्रदूषण पर काबू, सड़कें ठीक करना, घरों को गिराने का मसला सुलझाना और हर महिला को 2500 रुपये मासिक मानदेय देना- सब अधर में लटक गए.

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

दिल्ली की 12 सीटों पर एमसीडी उपचुनाव की हुई घोषणा, मतदान 30 नवंबर व मतगणना 3 दिसंबर को

संवाददता

नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में चुनाव आयोग ने दिल्ली में नगर निगम के 12 पार्षदों के खाली पदों को भरने के लिए उपचुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। अधिसूचना जारी होने और नामांकन प्रक्रिया 3 नवंबर से शुरू होगी। 30 नवंबर को मतदान होगा। वहीं 3 दिसंबर को वोटों की गिनती की जाएगी। चुनाव आयोग ने तैयारियों को तेज कर दिया है।

दिल्ली चुनाव आयोग के मुताबिक, नामांकन प्रक्रिया तीन नवंबर से शुरू होगी और दाखिल करने की अंतिम तिथि 10 नवंबर होगी। इसके अलावा नामांकन पत्रों की जांच 12 नवंबर को होगी। नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 15 नवंबर होगी। 30 नवंबर को सुबह 7.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक मतदान होगा।

कहां-कहां होगा उपचुनाव?
मुंडका, शालीमार बाग-बी, अशोक विहार, चांदनी चौक, चांदनी महल, द्वारका-बी, दिचाऊं कलां, नारायणा, संगम विहार-ए, दक्षिण पुरी, ग्रेटर कैलाश और विनोद नगर वार्ड में एमसीडी के उपचुनाव होंगे। उल्लेखनीय है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पहले पार्षद के रूप में शालीमार बाग-बी वार्ड का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वहीं, द्वारका-बी वार्ड भाजपा पार्षद कमलजीत सहरावत के पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से निर्वाचित होने के बाद खाली हुआ था। इसके अलावा बाकी वार्ड बीजेपी और आप के मौजूदा पार्षदों द्वारा फरवरी में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने और विधायक बनने के बाद खाली हुए थे।




सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

दूसरे चरण में 12 राज्यों का होगा SIR, तीन बार आपके घर आएगा BLO, आज रात फ्रीज होगी वोटर लिस्ट


संवाददाता

नई दिल्ली। बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान ही चुनाव आयोग ने कहा था कि एसआईआर पूरे देश में होगा। सोमवार को चुनाव आयोग की अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि दूसरे चरण के तहत 12 राज्यों की वोटर लिस्ट का एसआईआर किया जाएगा। सीईसी ने यह भी कहा कि बिहार में वोटर लिस्ट का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन सफलतापूर्वक पूरा हो गया है।

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि एसआईआर का फेज वन खत्म हो गया। बिहार के साढ़े सात करोड़ वोटरों ने बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लिया. 90 हजार बीएलओ और राजनीतिक दलों ने मिलकर मतदाता सूची को शुद्ध बनाने का काम किया। बिहार की मतदाता सूची बिल्कुल साफ हो गई है।

21 साल पहले हुआ था वोटर लिस्ट का शुद्धिकरण - मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि वोटर लिस्ट की शुद्धिकरण का काम 21 साल पहले 2002-04 में हुआ था। उन्होंने कहा कि इतने सालों में वोटर लिस्ट में कई बदलाव जरूरी है। लोगों का पलायन होता है। इससे एक से ज्यादा जगह वोटर लिस्ट में नाम रहता है। निधन के बाद भी कई लोगों को नाम लिस्ट में रह जाता है।

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि फाइनल मतदाता सूची प्रकाशित करने के बाद अगर किसी को कोई शिकायत रहती है तो वह पहले डीएम को अपील कर सकता है और उसके बाद CEO को भी दे सकते हैं, जिसके बाद व्यक्ति का नाम वोटर लिस्ट में जोड़ दिया जाएगा।

- मुख्य चुनाव आयुक्त ने क्या अहम बातें कहीं?
- फ्रीज हो जाएंगी 12 राज्यों की वोटर लिस्ट
- नहीं दिखाना होगा कोई कागज
- तीन बार घर आएंगे BLO
- लोग ऑनलाइन भी कर पाएंगे आवेदन


फ्रीज कर दी जाएगी वोटर लिस्ट-- मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त ने यह भी कहा कि जिन भी राज्यों में SIR होगा, वहां आज रात को उन राज्यों में मतदाता सूची को फ्रीज कर दिया जाएगा। इसके अलावा उन्‍होंने कहा कि आज तक जितने लोगों का नाम मतदाता सूची में है, उन्हें कोई कागज नहीं देना होगा। इसका अर्थ है कि पुराने SIR और अभी के मतदाता सूची में जिनका नाम है, उन्हें कोई कागज नहीं देना होगा।

जानें कब क्या-क्या होगा?

ट्रेनिंग/प्रिंटिंग – 28 अक्टूबर से 3 नवंबर 2025 तक

घर-घर गणना- 4 नवंबर से 4 दिसंबर 2025 तक

ड्राफ्ट मतदाता सूचियों की रिलीज डेट – 9 दिसंबर 2025 तक

दावे और आपत्तियों की अवधि – 9 दिसंबर 2025 से 8 जनवरी 2026 तक

सुनवाई और सत्यापन – 9 दिसंबर 2025 से 31 जनवरी 2026 तक

फाइन वोटर लिस्ट – 7 फ़रवरी 2026 तक


सीईसी ज्ञानेश कुमार ने कहा कि BLO यानी बूथ लेवल ऑफिसर तीन बार मतदाताओं के घर जाएंगे। ऑनलाइन भी फॉर्म भरने की सुविधा रहेगी। साथ ही कहा कहा कि मृत लोग, स्थाई तौर पर दूसरे जगह शिफ्ट हो चुके और दो जगह पर रजिस्टर्ड मतदाताओं की पहचान भी BLO करेगा।

रविवार, 26 अक्टूबर 2025

दिल्ली में कानून-व्यवस्था पूरी तरह फेल, अपराधियों के हौसले बुलंद, भाजपा सरकार सो रही है: सरदार बलविंदर सिंह

संवाददाता

नई दिल्ली। दिल्ली में अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। महिलाओं, बुजुर्गों और युवाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों ने राजधानी की कानून-व्यवस्था की पोल खोल दी है। चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार और नशे के व्यापार जैसे अपराधों में बढ़ोत्तरी ने दिल्ली की जनता को असुरक्षित महसूस करने पर मजबूर कर दिया है। यह कहना है राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचन्द्र पवार) के दिल्ली प्रदेश उपाध्यक्ष सरदार बलविंदर सिंह का।

सरदार बलविंदर सिंह ने कहा कि दिल्ली की कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे दिनदहाड़े वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और पुलिस व सरकार मूकदर्शक बनी बैठी है।

उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार सिर्फ धर्म और नफरत की राजनीति करने में व्यस्त है, जबकि आम नागरिक की सुरक्षा उनके एजेंडे में कहीं नहीं है। दिल्ली में बढ़ते अपराध यह साबित करते हैं कि बीजेपी ने राजधानी को अपराधियों के हवाले छोड़ दिया है।

बलविंदर सिंह ने आगे कहा कि अगर यही हालात रहे, तो आने वाले चुनावों में जनता भाजपा को जवाब देगी। दिल्ली को सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल देने के लिए अब बदलाव जरूरी है।

उन्होंने दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय से भी मांग की कि अपराधों पर सख्त कार्रवाई की जाए, पुलिस बल को राजनीतिक दबाव से मुक्त किया जाए और महिलाओं व बच्चों की सुरक्षा के लिए विशेष अभियान चलाया जाए।

शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

कायस्थ राजवंशो का ऐतिहासिक गौरव

विवेक रंजन श्रीवास्तव

भारतीय समाज में हमेशा कायस्थ समुदाय का एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान  रहा है। परंपरागत रूप से लेखन, प्रशासन और राजकीय कार्यों से जुड़े इस समुदाय ने न केवल प्रशासकों और मंत्रियों के रूप में बल्कि स्वतंत्र शासकों और राजवंशों के रूप में भी भारतीय इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राजा टोडरमल अकबर के प्रमुख दरबारी थे । कायस्थ राजवंशों के ऐतिहासिक योगदान, उनके शासन क्षेत्रों और वर्तमान परिदृश्य में उनकी स्थिति का विश्लेषण इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

कायस्थ समुदाय की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न मत हैं। पौराणिक परंपरा के अनुसार, कायस्थ चित्रगुप्त के वंशज माने जाते हैं। पद्म पुराण में उल्लेख है कि चित्रगुप्त जी के दो विवाह हुए और उनके कुल बारह पुत्र हुए, जिनसे कायस्थों की विभिन्न उपशाखाएं विकसित हुईं। इतिहासकारों के अनुसार, गुप्त काल से पूर्व ही बंगाल में कायस्थ पद की स्थापना हो चुकी थी। 

बंगाल में कायस्थ समुदाय का इतिहास विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। मुस्लिम विजय के पश्चात, बंगाली कायस्थों ने क्षेत्र के पुराने हिंदू शासक वंशों सेन, पाल, चंद्र और वर्मन राजवंशों का प्रतिनिधित्व किया। इस प्रकार वे बंगाल के सरोगेट शासक योद्धा बन गए। बंगाली कायस्थ कई कुलों में विभाजित थे, जिनमें कुलीन कायस्थ उच्च श्रेणी के  थे। पारंपरिक कथाओं के अनुसार,  बोस, घोष, मित्रा, गुहा और दत्ता पांच प्रमुख बंगाली कायस्थ उप जातियां थे। गौड़ कायस्थों में नंदी, पाल, इंद्र, कर, भद्र, धर, ऐच, सुर, दाम, बर्धन, शील, चाकी और आध्य जैसे प्रमुख कुल शामिल थे।

ऐतिहासिक अभिलेखों में उल्लेख है कि गौड़ कायस्थों में महाभारत काल के भागदत्त और कलिंग के रुद्रदत्त जैसे राजा हुए थे। 

मध्यकाल में बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों में कायस्थ परिवारों ने स्थानीय शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन परिवारों ने न केवल राजनीतिक सत्ता का प्रयोग किया बल्कि बंगाल की सांस्कृतिक और बौद्धिक परंपराओं को भी समृद्ध किया। बंगाली कायस्थों का योगदान केवल राजनीति तक सीमित नहीं था, बल्कि वे साहित्य, कला और शिक्षा के क्षेत्र में भी सदैव अग्रणी बने रहे।

दक्षिण भारत में, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश में, कायस्थ राजवंश ने तेरहवीं शताब्दी में शासन किया। यद्यपि वे नाममात्र रूप से काकतीय राजवंश के अधीन थे, किंतु व्यावहारिक रूप से वे स्वतंत्र शासक थे। कायस्थ राजवंश ने आंध्र में पनुगल से मार्जवाड़ी तक विशाल क्षेत्र पर शासन किया, जिसकी राजधानियां वल्लूर और गांडिकोटा थीं। इस राजवंश में चार शासक हुए, जो सभी महान योद्धा और प्रशासक के रूप में विख्यात थे। गांडिकोटा का किला आज भी उनकी स्थापत्य कला और सैन्य दक्षता का प्रमाण है। यह किला अपनी सुरक्षा व्यवस्था और रणनीतिक स्थिति के लिए प्रसिद्ध था और कायस्थ राजाओं की सैन्य कुशलता को प्रदर्शित करता है।

उत्तर भारत में चित्रगुप्तवंशी कायस्थों की विभिन्न शाखाएं थीं जिनमें अंभिष्ट, अस्थाना, बाल्मीक, भटनागर इत्यादि  थीं। ग्यारहवीं शताब्दी के बाद के शिलालेखों में विभिन्न क्षेत्रीय वंशों का उल्लेख मिलता है जो उत्तर भारतीय कायस्थों की शाखाओं से संबंधित थे। इन वंशों को उनकी सामान्य व्यावसायिक विशेषज्ञता के साथ पहचाना जाता था और जिनके सदस्य मध्यकालीन राज्यों के प्रशासन में विशेष रूप से प्रभावशाली हो गए थे। कुछ कायस्थों ने  सैन्य कमांडरों और क्षेत्रीय शासकों के रूप में भी पद संभाले। उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में कायस्थ मंत्रियों, सेनापतियों और सलाहकारों के रूप में राजदरबारों में महत्वपूर्ण स्थान थे।

कायस्थों ने केवल राजनीतिक शासन ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में भी अद्वितीय योगदान दिया। चित्रगुप्तवंशी कायस्थ और बंगाली कायस्थ पारंपरिक रूप से प्रारंभिक मध्ययुगीन राज्यों में हिंदू राजाओं के लिए प्रशंसा भाषण और स्तोत्र लिखने के लिए जिम्मेदार थे, जिन्हें प्रशस्ति के रूप में जाना जाता है। वे वित्तमंत्री, सेनाध्यक्ष और शासक के सलाहकार के रूप में नियुक्त किए जाते थे। उनकी लेखन कला, भाषा ज्ञान और प्रशासनिक कौशल ने उन्हें राजदरबारों में अपरिहार्य बना दिया था। कायस्थों ने राजकीय अभिलेखों का रखरखाव, राजस्व प्रबंधन और न्यायिक कार्यों में भी लगातार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ब्रिटिश शासन के दौरान, बंगाली कायस्थों और बंगाली ब्राह्मणों ने उच्च शिक्षा और सरकारी सेवाओं में महत्वपूर्ण प्रगति की। उनकी पारंपरिक लेखन और प्रशासनिक कुशलता ने उन्हें औपनिवेशिक प्रशासन में महत्वपूर्ण पद दिलाने में मदद की। इस दौरान कायस्थ समुदाय ने शिक्षा, साहित्य, कला और राजनीति में बहुत अग्रणी भूमिका निभाई। अंग्रेजी शिक्षा को अपनाने में कायस्थ समुदाय अग्रणी रहा और इसने उन्हें आधुनिक व्यवसायों और सेवाओं में प्रवेश का अवसर प्रदान किया। बंगाल में नवजागरण काल में भी कायस्थ समुदाय के कई विद्वानों, लेखकों और सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आधुनिक भारत में कायस्थ समुदाय एक उच्च शिक्षित और सामाजिक ,आर्थिक रूप से प्रगतिशील समुदाय के रूप में स्थापित है। शिक्षा, प्रशासन, व्यापार, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कानून और कला के क्षेत्र में कायस्थ समुदाय के सदस्यों ने उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। ऐतिहासिक रूप से लेखन और प्रशासन से जुड़े होने के कारण, समुदाय ने आधुनिक शिक्षा को शीघ्रता से अपनाया और विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की। आज भारतीय नौकरशाही, न्यायपालिका, शिक्षा जगत और व्यावसायिक क्षेत्रों में कायस्थ समुदाय का महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व है।

वर्तमान में कायस्थ समुदाय भारतीय राजनीति में सक्रिय भागीदारी रखता है। विभिन्न राज्यों में कायस्थ नेता महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर आसीन हैं। हालांकि, परंपरागत शाही परिवारों की तरह राजवंशीय शासन की प्रणाली अब विद्यमान नहीं है, फिर भी कुछ पुराने कायस्थ राजपरिवारों के वंशज अभी भी सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा बनाए हुए हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में कायस्थ समुदाय ने अपनी पारंपरिक प्रशासनिक कुशलता और शिक्षा के प्रति लगाव को बनाए रखते हुए राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया है।

कायस्थ समुदाय अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए सक्रिय रहा है। चित्रगुप्त पूजा, जो कायस्थों का प्रमुख त्योहार है, आज भी बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। विभिन्न कायस्थ सभाओं और संगठनों ने समुदाय के इतिहास, संस्कृति और योगदान को दस्तावेजित करने और प्रचारित करने के प्रयास किए हैं। समुदाय ने शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों और सामाजिक कल्याण संगठनों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कायस्थ पाठशाला, विभिन्न ट्रस्ट और फाउंडेशन समाज के विकास में सक्रिय हैं। ये संस्थाएं न केवल समुदाय के सदस्यों की सहायता करती हैं बल्कि व्यापक समाज के कल्याण में भी योगदान देती हैं।

आधुनिक भारत में कायस्थ समुदाय भी पारंपरिक पहचान और आधुनिक व्यावसायिकता के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा है। युवा पीढ़ी में वैश्विक दृष्टिकोण और व्यापक सामाजिक एकीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। साथ ही, समुदाय अपनी ऐतिहासिक विरासत को भुलाए बिना समकालीन भारतीय समाज में अपनी भूमिका को पुनर्परिभाषित कर रहा है। शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उद्यमिता के क्षेत्रों में कायस्थ युवा पीढ़ी नए आयाम स्थापित कर रही है।

कायस्थ समुदाय का इतिहास भारतीय इतिहास का एक समृद्ध अध्याय है। प्राचीन काल में महाभारत के योद्धाओं से लेकर मध्यकाल में बंगाल, आंध्र और उत्तर भारत के शासकों तक, कायस्थों ने राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। यद्यपि पारंपरिक राजवंशीय शासन अब इतिहास का हिस्सा बन गया है, किंतु कायस्थ समुदाय ने आधुनिक लोकतांत्रिक भारत में भी शिक्षा, व्यवसाय, प्रशासन और राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति बनाए रखी है।

चंद्रसेनीय कायस्थ प्रभु (CKP) (महाराष्ट्र और गुजरात) अर्थात पश्चिमी भारत में शासन और प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। यह उपजाति आज भी मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में प्रशासनिक और पेशेवर क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

कुछ स्रोतों में सातवाहन और परिहार कायस्थ राजवंशों का उल्लेख है, जो मध्य भारत में सत्ता में रहे थे। मंडला के गौंड राजाओं ने दीवानी कार्यों के लिए हमारे कायस्थ परिवार को उत्तरप्रदेश से मंडला बुलवाया था , वहां हमारा घर आज भी "महलात" कहलाता है। भोपाल रियासत में भी कायस्थ  बड़े बड़े ओहदों पर रहे हैं। एतमातदोला राजा छक्कू लाल नसरते जंग रियासत के वजीर थे। आखिरी राजा सर अवध नारायण जी रियासत भोपाल के वज़ीर थे उन्होंने  ही रियासत के भारत गणराज्य में शामिल होने के इकरार नामे पर दस्तखत किए थे । आज भी उनका परिवार भोपाल में उनकी कोठी में रहता है । भोपाल में गिन्नौरी की बगिया राजा छक्कू लाल  के समय की आज भी मौजूद है।

वर्तमान में, समुदाय की चुनौती यह है कि वह अपनी गौरवशाली विरासत को संरक्षित करते हुए भी समकालीन भारत के बहुलवादी और समावेशी समाज में सक्रिय योगदान दे। कायस्थ समुदाय की यात्रा प्राचीन शासकों से आधुनिक पेशेवरों तक, परिवर्तन और निरंतरता दोनों की कहानी है, जो भारतीय सभ्यता की गतिशीलता और लचीलेपन को दर्शाती है। इस समुदाय का इतिहास यह सिखाता है कि परंपरा और आधुनिकता के बीच सामंजस्य स्थापित करना संभव है और एक समुदाय अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखते हुए भी राष्ट्रीय मुख्यधारा का अभिन्न अंग बन सकता है।

कायस्थ राजवंशों का इतिहास व्यापक और जटिल है, किन्तु कायस्थ जहां भी रहे हैं सदैव प्रभावी बने रहे। (विनायक फीचर्स)

8 हजार फीट ऊंचे शिखर पर 108 फीट के हनुमान

संजीव शर्मा

हिमाचल प्रदेश में ‘क्वीन ऑफ हिल्स’ शिमला के सबसे लोकप्रिय स्थान मॉल रोड पहुंचते ही दूर पर्वत की चोटी पर विराजमान पवनपुत्र हनुमान जी की प्रतिमा बरबस ही सभी का ध्यान खींच लेती है। इस प्रतिमा और बादलों की आंख मिचौली से शिमला के बदलते मौसम का अंदाजा भी लगता रहता है क्योंकि कभी यह प्रतिमा बादलों में छिपकर अदृश्य हो जाती है तो कभी सूर्य की किरणें को आत्मसात कर दिव्यता से चमकने लगती है। 

यह प्रतिमा इस तरीके से स्थापित की गई है कि मॉल रोड से लेकर इसके आसपास के कई इलाकों से आप हनुमान जी के दर्शन कर सकते हैं और अब यह मॉल रोड के एक प्रमुख आकर्षणों में से एक है।

इस पहाड़ को जाखू हिल्स और हनुमान जी को ‘शिमला के रक्षक’ कहा जाता है। आख़िर, हनुमान चालीसा में ऐसे ही थोड़ी लिखा गया है..’तुम रक्षक काहू को डरना।’

जाखू वाले हनुमान जी केवल एक मंदिर या पर्यटन स्थल नहीं है बल्कि यहां की गाथा रामायण काल से जुड़ी है और यह अकाट्य आस्था का स्थान है। शिमला की ऊंची चोटियों के बीच, समुद्र तल से लगभग 8 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित यह जाखू मंदिर आस्था, प्रकृति और रोमांच का एक अद्भुत संगम है एवं शिमला के 'ताज' से कम नहीं  है।

मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि लंका विजय के दौरान युद्ध में मेघनाथ द्वारा शक्ति बाण चलाने से मूर्छित लक्ष्मण को बचाने के लिए जब हनुमान आकाश मार्ग से संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय की और जा रहे थे तो अचानक उनकी दृष्टि जाखू पर्वत पर तपस्या में लीन यक्ष ऋषि पर पड़ी। 

संजीवनी बूटी का परिचय जानने के लिए हनुमान जी यहां पर उतर गए।  बताया जाता है कि उनके वेग से जाखू पर्वत जो पहले काफी ऊँचा था, आधा पृथ्वी के गर्भ में समा गया। बूटी का परिचय प्राप्त करने के उपरान्त हनुमान  द्रोण पर्वत की और चले गए। जाखू पर्वत पर जिस स्थान पर हनुमान जी उतरे थे वहां पर आज भी उनके चरण चिन्हों को संगमरमर से निर्मित करके सुरक्षित रखा गया है। 

हनुमान ने ऋषि यक्ष को वापसी में इसी स्थान पर उनसे मिलते हुए लौटने का वचन दिया था। परन्तु यात्रा के दौरान हनुमान को मार्ग में कालनेमी राक्षस के कुचक्र सहित कई बाधाओं को पार करना पड़ा और समय अधिक लग गया। तब हनुमान समय पर संजीवनी बूटी लक्ष्मण तक पहुंचाने के लिए इस रास्ते की बजाए दूसरे छोटे मार्ग से अयोध्या होते हुए लंका चले गए। जाखू हिल्स पर अन्न जल त्यागकर हनुमान की प्रतीक्षा कर रहे ऋषि यक्ष की व्याकुलता बढ़ने लगी। उनकी व्याकुलता देख हनुमान जी ने ऋषि को दर्शन दिए और न आने का कारण बताया। उनके अंतर्ध्यान होने के तुरन्त बाद यहां बजरंग बली की एक स्वयंभू मूर्ति प्रकट हुई जो आज भी मन्दिर में पूजी जाती है। 

यक्ष ऋषि ने ही हनुमान जी के यहां ठहराव की स्मृति में इस मन्दिर का निर्माण किया। ऋषि 'यक्ष' के नाम पर ही पर्वत का नाम पहले 'यक्ष' था, जो समय के साथ बदलते हुए 'याक', फिर 'याखू' और अंत में 'जाखू' बन गया।

जाखू मंदिर का अब सबसे बड़ा आकर्षण यहाँ स्थापित हनुमान जी की 108 फीट ऊँची सिंदूरी प्रतिमा है । वर्ष 2010 में स्थापित यह मूर्ति इतनी विशाल है कि इसे शिमला के लगभग हर कोने से देखा जा सकता है। यह प्रतिमा शहर की पहचान बन चुकी है और इसे 'प्राइड ऑफ शिमला' भी कहा जाता है। अब यहां विशाल ध्वज भी स्थापित कर दिया गया है।

जाखू मंदिर तक पहुँचना भी अपने आप में एक रोमांचक अनुभव है। पर्यटक मॉल रोड के रिज मैदान से जाखू मंदिर तक पहुँचने के लिए पैदल या टैक्सी का उपयोग कर सकते हैं। पैदल रास्ता घने देवदार के जंगल से होकर गुज़रता है, जो ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए स्वर्ग जैसा है। वहीं संकरे पहाड़ी कच्चे-पक्के मार्ग पर टैक्सी की सवारी भी किसी रोमांच से कम नहीं है। वहीं, जो पर्यटक खड़ी चढ़ाई से बचना चाहते हैं उनके लिए जाखू रोपवे एक बेहतरीन विकल्प है। 

रिज मैदान से शुरू होकर यह रोपवे कुछ ही मिनटों में सीधे मंदिर परिसर तक पहुँचा देता है, साथ ही शिमला शहर के मनमोहक नज़ारे भी दिखाता है। जाखू पहाड़ी की चोटी से शिमला शहर, आसपास की चोटियों और घाटियों का मनोरम और विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का नज़ारा देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है। 

कुल मिलाकर जाखू मंदिर केवल पत्थर और मूर्तियों का ढांचा नहीं है, बल्कि यह वह सिद्ध स्थान है जहाँ देवत्व और प्रकृति का मिलन होता है इसलिए शिमला की यात्रा जाखू हनुमान के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है। (विनायक फीचर्स)

लेखक संजीव शर्मा

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

क्या आपका भी नामांकन रद्द हुआ है, जाने क्यों हो जाते हैं नामांकन रद्द

क्या आप चुनाव में नामांकन भरने जा रहे हैं तो ध्यान रखें इन बातों को नहीं तो नामांकन हो सकता है रद्द


नई दिल्ली। मौजूदा समय में बिहार में विधानसभा चुनाव की बिगुल बज रही है और उम्मीदवार अपने नामांकन भी कर चुके हैं और कुछ करने वाले हैं। मगर चुनाव आयोग ने कई उम्मीदवारों के नामांकन रद्द कर दिए गए हैं। चुनाव आयोग की जांच में इनके दस्तावेज में कई बड़ी गलतियां पाई गईं। बिहार में मोहनिया विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन की उम्मीदवार श्वेता सुमन, सुगौली विधानसभा सीट से राजद विधायक शशि भूषण सिंह, लोजपा आर की छपरा मढौरा सीट से प्रत्याशी सीमा सिंह समेत अन्य उम्मीदवारों का नामांकन रद्द हो चुका है।

आइए जानते हैं आखिर किन वजहों से उम्मीदवारों का नामांकन रद्द हो जाता है...

1. उम्मीदवार किसी कारण से अयोग्य घोषित किया गया है।
2. नामांकन पत्र या जरूरी दस्तावेज समय पर जमा नहीं किए गए।
3. नामांकन पत्र उम्मीदवार या प्रस्तावक की जगह किसी और ने जमा किया।
4. नामांकन पत्र पर उम्मीदवार या प्रस्तावक के हस्ताक्षर का मिलान नहीं हो पाना।
5. नामांकन के लिए प्रस्तावकों की संख्या पूरी नहीं है।
6. उम्मीदवार उस वर्ग से नहीं है जिसके लिए सीट आरक्षित है।
7. प्रस्तावक उस विधानसभा क्षेत्र का मतदाता नहीं है।
8. उम्मीदवार ने नामांकन के साथ निर्धारित प्रारूप में हलफनामा नहीं दिया।
9. हलफनामे में कॉलम खाली छोड़े गए और नोटिस के बाद भी नया हलफनामा नहीं दिया।
10. उम्मीदवार उस क्षेत्र का मतदाता नहीं है।
11. उम्मीदवार ने अपने नाम वाली मतदाता सूची की प्रमाणित प्रति या अंश नहीं लगाया

क्या नामांकन रद्द होने के बाद उम्‍मीदवारी बहाल की जा सकती है?
चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, एक बार नामांकन रद्द हो जाने पर, उम्मीदवार की उम्मीदवारी को तुरंत बहाल नहीं किया जा सकता है। लेकिन, ऐसे में उम्मीदवार के पास दो कानूनी विकल्प मौजूद होते हैं। पहला विकल्प है पुनर्विचार याचिका दायर करना। इस याचिका के माध्यम से उम्मीदवार चुनाव आयोग के सामने यह साबित करने की कोशिश कर सकता है कि उसका नामांकन रद्द करने की प्रक्रिया में कोई गलती हुई थी या यह अनुचित था। यदि चुनाव आयोग को लगता है कि यह गलती मामूली थी, तो वह अपने फैसले की समीक्षा कर सकता है।
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