शनिवार, 22 जून 2024

देश में बढ़ती वीआईपी कल्चर और उसका दुष्प्रभाव

बसंत कुमार

देश की राजधानी दिल्ली में लगभग डेढ़ दशक पूर्व समाज सेवी अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक आंदोलन चलाया जा रहा था और और इस आंदोलन की आड़ में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, जनरल वीके सिंह, गोपाल राय, संजय सिंह और न जाने कितने नेता आये और मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, उप राज्यपाल, प्रदेश में मंत्री बनने में सफलता प्राप्त की। उस समय इन सभी नेताओं ने सार्वजनिक जीवन में उच्च नैतिक आदर्शों को अपनाने और वीआईपी कल्चर से दूर रहने की बात की थी। अरविंद केजरीवाल ने खुले मंच से ऐलान किया था कि जब मै जीवन में मंत्री या मुख्यमंत्री बनूंगा तो न सरकारी बंगला लूंगा, न सुरक्षा लूंगा और न ही सरकारी गाड़ी इस्तेमाल करूंगा। ये अलग बात है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने किए गए वायदों को झुठलाते हुए करोड़ों रुपए खर्च करके आलिशान बंगला तैयार कराया और इतनी बड़ी सुरक्षा ली कि जब दिल्ली की सड़कों पर उनका काफिला चलता है तो कि यह अन्ना हज़ारे के आंदोलन से निकला एक व्यक्ति नहीं बल्कि किसी स्टेट का महाराजा निकल रहा है और जहां तक शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार रोकने की बात है तो शराब घोटाले, मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में स्वयं केजरीवाल, उनके उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और एक मंत्री सतेन्द्र कुमार जैन जेल में है और एक सांसद जमानत पर जेल के बाहर है। अब प्रश्न यह उठता है कि जिस वीआईपी कल्चर को हटाने के वादे पर अरविंद केजरीवाल को लोगों ने तीन तीन बार मुख्यमंत्री चुना, क्या भारतीय समाज से यह हट सकता है, क्योंकि देश में लाखों वीआईपी लोगों को सुरक्षा उपलब्ध कराने के नाम पर लाखों पुलिस कर्मी लगा दिए जाते है और लोगों की सुरक्षा राम जी के भरोसे चलती है।

इस वीआईपी कल्चर ने न सिर्फ भारत को बल्कि पूरे विश्व के देशों को प्रभावित किया है। विगत 10-15 वर्षों में जिस प्रकार से इस समस्या ने भारत की अर्थव्यवस्था एवं ला एंड ऑर्डर को प्रभावित किया है वह चिंतनीय है। विश्व के सबसे विकसित राज्य अमेरिका में वीआईपी की संख्या 252 है, फ्रांस में कुल 109 वीआईपी है, जापान में कुल 125 वीआईपी है, रूस में 312, जर्मनी में 142 और आस्ट्रेलिया में 205 वीआईपी है परंतु भारत जहां देश की 80 करोड़ जनता 5 किलो मुफ्त राशन पर गुजारा करती है वहां पर इन वीआईपी लोगों की संख्या 5,79,092 है और सरकार को इनकी सुरक्षा, मुफ्त हवाई यात्रा, चिकित्सा आदि पर करोड़ों रुपये खर्च करना पड़ता है। हमारे देश में कुछ वीआईपी उम्र के ऐसे पड़ाव पर है जिनके पास यमराज के अलावा और कोई नहीं आने वाला पर उनकी सुरक्षा के लिए वाई प्लस और जेड प्लस सुरक्षा के नाम पर दर्जनों पुलिस कर्मी सुरक्षा का घेरा बनाये रखते है।

जिन गुंडों और भूमाफियाओं के आतंक से पूरा समाज डरा और सहमा रहता है और ये लोग जहां खड़े हो जाते हैं तो भयवश लोग उनके पैर छूने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लाइन लगा देते है और इन गुंडों भूमाफियाओं की सुरक्षा में तैनात वर्दी धारी पुलिस कर्मी इनका बैग पकड़े खडा रहता है, इन स्वयंभू वीआईपी लोगों की सुरक्षा इतनी आवश्यक होती हैं कि थाने में स्टाफ है या नहीं इसकी परवाह नहीं करते, यदि कहीं थाने में इमर्जेंसी में पुलिस फोर्स की आवश्यकता पड़ जाए तो थानाध्यक्ष स्टाफ न होने की अपनी लचरि बता देता है, क्योंकि अधिकांश फोर्स तो इन फर्जी वीआईपी की सुरक्षा और सेवा में लगी होती है। कैसी त्रासदी है कि जो पुलिस फोर्स आम जनता की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी वह उन नागरिकों की सुरक्षा में मौजूद रहने के बजाय क्षेत्र में दौरे पर आये सांसदों और मंत्रियों की सेवा सुरक्षा में खड़ी रहती है। आखिर यह वीआईपी कल्चर भारत जैसे लोकतंत्रिक देश में पूरे सिस्टम का सत्यानाश कर देगी।

सांसदों, मंत्रियों, उच्च अधिकारियों की बात तो छोड़ दीजिये, उन छुटभैये नेताओं जो जीवन में कभी भी सांसद, विधायक या पार्षद नहीं बने उन्हें सिर्फ जनता के ऊपर रोब जमाने के लिए पुलिस सुरक्षा उपलब्ध कराना और वीआईपी स्टेट्स देना कितना हाष्यास्पद लगता है, मैंने अपनी आंखों से ऐसे नेताओं को मिली पुलिस सुरक्षा देखी है जिनके ऊपर 10-15 क्रिमिनल केस पेंडिंग है अर्थात जिन लोगों को पुलिस कस्टडी में होना चाहिए था उनको पुलिस द्वारा सुरक्षा प्रदान करवाई जा रही है। कहा जाता है कि ये लोग जुगाड़ करके एलआईयू से फर्जी रिपोर्ट प्राप्त कर लेते है कि इन्हें खतरा है और इस आधार पर इन्हें पुलिस सुरक्षा मिल जाती है और सरकार को इस पर करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते है। यह एक जांच का विषय है कि सुरक्षा प्रदान करने के लिए मुख्य आधार एलआईयू रिपोर्ट निष्पक्ष रूप से बिना किसी प्रलोभन के दी जाती है, क्योंकि प्राय: यह देखा गया है कि कुछ ऐसे लोगों को वीआईपी सुरक्षा प्रदान कर दी जाती है जिनको इसकी जरूरत नहीं होती।

 

इस देश में आजादी के बाद रामधारी सिंह दिनकर, सुमित्रा नंदन पंत, बिस्मिला खान, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया जैसे अनेक साहित्यकार और पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार जैसे अनेक कलाकार दिए पर इनमें से किसी को भी वीआईपी मानकर कभी वाई या जेड की सुरक्षा नहीं दी गई पर आज शाहरुख खान, सलमान खान या अक्षय कुमार को इतनी सिक्योरिटी क्यों?

आखिर इन लोगों को वीआईपी बनाकर कर सुरक्षा कवच देने का औचित्य क्या है और इन तमाम लोगों को वीआईपी दर्जा देने के लिए करदाताओं के ऊपर करोड़ों का बोझ पड़ता है जो सरासर गलत है। अब समय आ गए है कि सरकार इन वीआईपी सुरक्षा और उनको दिए जाने वाली व अन्य सुविधाओ की समीक्षा करे और देश में वीआईपी लोगों की लाखों की संख्या सीमित करे। यह सही है कि देश ने आतंकवादियों के हाथो एक प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री खोया है फिर भी वीआईपी सुरक्षा के नाम पर छुट भैये नेताओ की सुरक्षा के नाम पर करोड़ो रुपए बहाना व्यर्थ है।

भारत विश्व में इकलौता देश है जहां थानों में पुलिसकर्मियों का काम होमगार्ड करते है क्योंकि रेगुलर पुलिस कर्मी अधिकांश समय वीआईपी सुरक्षा में व्यस्त रहते और कुछ पुलिसकर्मी थानों में ड्यूटी करने के बजाय अपने उच्च अधिकारियों के बंगलों पर ड्यूटी लगवाकर साहब के बच्चों को स्कूल छोड़ने, कुत्तों को घुमाने का काम पसंद करते है और सरकारी चिकिस्यालों में मरीजों को फरमैसिस्ट और वार्ड बॉय देखते है क्योंकि डॉक्टर्स तो इलाके के वीआईपी और नेताओं की देखरेख में व्यस्त रहते हैं आखिर देश में ये वीआईपी कल्चर कब समाप्त होगी।

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