शुक्रवार, 28 जून 2024

नीट सहित अहम प्रतियोगिताओं में पेपर लीक मामले दुर्भाग्यपूर्ण

बसंत कुमार

अभी आम चुनावों से कुछ माह पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित पुलिस भर्ती परीक्षा के पेपर लीक का मामला थमा ही नहीं था कि पूरे देश में मेडिकल की पढ़ाई के लिए प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा नीट में भारी गड़बड़ी और पेपर लीक के मामले ने पूरे देश में मेडिकल में प्रवेश के इच्छुक छात्रों के मन में निराशा और अशांति फैला दी है। पेपर लीक की समस्या सिर्फ उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे पिछडा समझे जाने वाले राज्यो तक ही सीमित ही नहीं है। पेपर लीक की समस्या एक महामारी की तरह एक संगठित रूप से संचालित मशीनरी की तरह काम कर रही है, जिसमे छात्र माफिया, कोचिंग सेंटर, प्रिंसिपल और अधिकारी तक शामिल है। जम्मू से लेकर उत्तर प्रदेश, कर्नाटक से लेकर गुजरात और अरुणाचल प्रदेश तक पिछले 5 वर्षों में पेपर लीक के 41 मामलों की आधिकारिक मामलों में पुष्टि हुई है। महामारी की तरह फैली हुई इस बीमारी को रोकने में शिक्षा बोर्ड, कर्मचारी चयन आयोग और अन्य भर्ती एजेंसियां पूरी तरह से असफल हुई है।

पता चला है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अध्यादेश की जरिये इन मामलों को रोकने के लिए आजीवन कारावास् समेत एक करोड़ रुपए तक के फाइन का प्रावधान कर दिया है, अब देखना है कि इतनी सख्त सजा के प्रावधान के बावजूद परीक्षाओं के पेपर लीक के मामलों में कमी आयेगी या नहीं। अब यह समस्या एक सामाजिक समस्या बन गई है। चुनाव के समय हर राजनीतिक दल अपने अपने समर्थकों को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषण करता है जिससे उन्हें वोट मिल सके। पर कोई भी दल युवाओं को इस तरह का आश्वासन देने की हिम्मत नहीं करता कि हम देश में युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं में निष्पक्ष पारदर्शितापूर्ण परीक्षा दे पाएंगे। इस मामले में संघ लोक सेवा आयोग को छोड़कर सारे भर्ती बोर्ड या भर्ती एजेंसियां असफल रहे हैं। वर्ष 2022 में राजस्थान में धोखाधड़ी विरोधी कानून भी पारित किया गया और इसमे सजा के तौर पर आजीवन कारावास के प्रावधान को शामिल किया गया। भारतीय संसद द्वारा फरवरी 2024 में इसी तरह का कानून पारित करने के बावजूद आज भी इस अपराध में सैकड़ों लोग गिरफ्तार किए गए है।

युवाओं के लिए पेपर लीक की घटनाएं पीड़ादायक और विनाशकारी है, यह जिंदगी में रुकावट, तनावपूर्ण परिवार और तार-तार हो जाने वाले को जन्म देती है और राज्य की निष्पक्ष रूप में भर्ती परीक्षा आयोजित करने में असमर्थता प्रदर्षित करती हैं और ये राज्य की सेवा में आयी अक्षमता भी दर्शाती है। जब केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सांसद के रूप में शपथ लेने जा रहे थे तो पूरे विपक्ष में नीट-नीट के नारे लगाकर उन्हें हूट किया, जो उचित नहीं है। यह सच है कि सिविल सर्विस और आईआईटी के पश्चात् नीट देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा मानी जाती है और इसके पेपर लीक होना और कुछ सेलेक्टेड लोगों को ग्रेस मार्क देना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।

इस समस्या के प्रति सभी दलों को पार्टी लाइन से हटकर संजीदगी से रोकने की आवश्यकता है क्योंकि एक दूसरे पर दोषारोपण से इस समस्या से छुटकारा नहीं मिलने वाला। विपक्षी गठबंधन इंडिया की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि पिछले पांच वर्षों में राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस के कार्यकाल में सबसे अधिक पेपर लीक हुए और उसी कांग्रेस के सांसद शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को नीट-नीट करके हूट कर रहे थे, वहीं इंडिया गठबंधन के सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल के तीन वरिष्ठ नेता लालू यादव, तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी पर लैंड फॉर जाब स्कैम में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है। ऐसी घटनाओं से व शिक्षित युवा जिनके पास न पैसा है न जुगाड़ है, निराश और हताश होकर आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं।

एक समय लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण के लिए बहस चल रही थी और इस बिल के विरोध में बोलते हुए समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने कहा कि यदि प्रमोशन में भी आरक्षण दिया गया तो हमे कुशल और दक्ष सचिव और कैबिनेट सचिव स्तर के अधिकारी नहीं मिलेंगे और मेरे विचार में श्री मुलायम सिंह यादव के विचारों पर बहस या चर्चा की जा सकती है और आरक्षण का विरोध करने वाले यह भी तर्क देते है कि यदि 30% अंक प्राप्त करने वाले डॉक्टर बनेंगे तो मरीजों का इलाज कैसे होगा। पर कोई माई का लाल इस बात पर प्रश्न खड़ा नहीं करता कि पैसे और रसूक के बल पर निकम्मे लोग पेपरलीक कराकर डॉक्टर, पुलिस कर्मी और रेल कर्मी बन जायेंगे तो मेरिट का रोना रोने वालों का क्या होगा और तब हमारे पुलिस और प्रशासन की दक्षता पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा। यदि हमे पुलिस और प्रशासन को दक्ष बनाना है तो प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक और सोल्वर गैंग को जड़ से उखाड़ देना होगा, इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को अपने मतभेद भुलाकर इस समस्या का हल निकालना होगा। जहां आज हमने पूरे विश्व के समक्ष एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में सफलता पाई है पर वहीं हम सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए आयोजित परीक्षाओं में पूरी निष्पक्षता और पारदर्षिता स्थापित करने में पूरी तरह से असफल रहे है और यही हमारा दुर्भाग्य है।

देश में शिक्षित युवा सरकार द्वारा आउटसोर्सिंग के नाम पर संविदा के आधार पर भर्ती किए गए कर्मचारियों से काम चला रही प्रैक्टिस से हताश और निराश है और दूसरी ओर पेपर लीक और पेपर सोल्वर् गैंग के कारण वे बेहद निराशा जनक हाल में पहुँच गए हैं, आखिर विकास का ढोल पीटने वाली सरकार इन युवाओं के लिए कब सोचेगी।

गुरुवार, 27 जून 2024

पाक सेना कदम दर कदम अपना खोया वर्चस्व हासिल कर रही है

आर सी गंजू
आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के नाम पर पाक सेना ने एक नई आतंकवाद नीति तैयार की और नागरिक प्रतिष्ठान से अंतिम मुहर लगवाई।संघीय मंत्रिमंडल ने 25 जून, 2024 को ऑपरेशन अजम-ए-इस्तेहकम सहित राष्ट्रीय कार्य योजना की केंद्रीय शीर्ष समिति द्वारा लिए गए निर्णयों को मंजूरी दी। इसमें कहा गया कि ऑपरेशन अजम-ए-इस्तेहकम पाकिस्तान में स्थायी स्थिरता के लिए एक बहु-क्षेत्रीय, बहु-एजेंसी, संपूर्ण-प्रणाली राष्ट्रीय दृष्टिकोण है।
लेकिन, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई), जमीयत-ए-उलेमा इस्लाम फजल (जेयूआई-एफ), अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) और अन्य विपक्षी दलों ने सैन्य अभियान पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने मांग की कि संसद को इस तरह का कोई भी गंभीर निर्णय लेने से पहले विश्वास में लेना चाहिए था।
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने नेशनल असेंबली (एनए) में अज्म-ए-इस्तेहकाम ऑपरेशन की आलोचना करते हुए कहा कि 2010 से सैन्य अभियानों ने केवल अस्थिरता को जन्म दिया है। उन्होंने कहा, "हम 2010 से ऑपरेशन की आड़ में पीड़ित हैं। यह स्थिरता नहीं है, हम यह चीन के लिए कर रहे हैं।" उन्होंने आगे सरकार के गलत निर्णय को उजागर किया कि 25,000 से 30,000 अफगान अपने देश लौट गए, लेकिन 40,000 से 50,000 पाकिस्तान वापस आ गए। 
पूर्व सेना प्रमुख जनरल बाजवा का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवादियों को प्रवेश करने से रोकने के लिए एक बाड़ लगाई गई थी और अब इसे हटा दिया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान की नई पहल, ऑपरेशन अज्म-ए-इस्तेहकाम का भी समर्थन किया है, जिसका उद्देश्य उग्रवाद का मुकाबला करना है अपने नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा इस तरह से करना जो कानून के शासन और मानवाधिकारों की सुरक्षा को बढ़ावा दे, और सुरक्षा के मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ हमारी साझेदारी में हमारे उच्च स्तरीय आतंकवाद विरोधी वार्ता शामिल है, जिसमें मजबूत आतंकवाद विरोधी क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को वित्तपोषित करना और यूएस-पाकिस्तान सैन्य-से-सैन्य जुड़ावों की एक श्रृंखला का समर्थन करना शामिल है"। इस, अमेरिकी समर्थन ने पाक सेना की छवि को और बढ़ा दिया है और आतंक के खिलाफ युद्ध के नाम पर वित्तीय सहायता प्राप्त करने में मदद की है।
विभिन्न सैन्य अभियानों के बावजूद, आतंकवाद का खतरा अधिक उग्रता के साथ लौट आया है। आतंकवाद विरोधी (सीटी) अभियानों की एक श्रृंखला के बाद अल-मिज़ान (2002), ज़लज़ला (2008) शेर दिल, राह-ए-हक और राह-ए-रास्त (2007-2009), राह-ए-निजात (2009), ज़र्ब-ए-अज़्ब (2014) और रद्दुल फ़साद (2017) 2001 में जनरल परवेज मुशर्रफ की सैन्य नेतृत्व वाली सरकार ने अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण के मद्देनजर पूर्व जनजातीय क्षेत्रों में तथाकथित ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम शुरू किया था। 2024 की पहली छमाही में हालात और भी खराब हो गए, खासकर केपी और बलूचिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों में तेजी से वृद्धि हुई। उग्रवाद का फिर से उभरना सीटी की रणनीति में गंभीर खामियों को उजागर करता है। 
आतंकवाद की ताजा लहर ने वास्तविक खतरे से निपटने के लिए एक सुसंगत नीति की अनुपस्थिति को उजागर किया है। सबसे खतरनाक उभरता परिदृश्य यह चिंता बढ़ रही है कि ऑपरेशन एक विशेष जातीय समूह को लक्षित करेगा। यह भी एक कारण रहा है कि केपी में सभी प्रमुख राजनीतिक दल, जिनमें सत्तारूढ़ पीटीआई और केंद्र में गठबंधन सरकार का समर्थन करने वाले लोग शामिल हैं, ऑपरेशन पर सवाल उठा रहे हैं। यह सभी हितधारकों के बीच आम सहमति के प्रधानमंत्री के दावे का खंडन करता है। ऐसा लगता है कि मौजूदा शासकों ने पिछली नीतिगत विफलताओं से कोई सबक नहीं सीखा है।

नीट सहित अहम प्रतियोगिताओं में पेपर लीक मामले दुर्भाग्यपूर्ण

 बसंत कुमार

अभी आम चुनावो से कुछ माह पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित पुलिस भर्ती परीक्षा के पेपर लीक का मामला थमा ही नहीं था कि पूरे देश में मेडिकल की पढ़ाई के लिए प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा नीट में भारी गड़बड़ी और पेपर लीक के मामले ने पूरे देश में मेडिकल में प्रवेश के इच्छुक छात्रों के मन में निराशा और अशांति फैला दी है। पेपर लीक की समस्या सिर्फ उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे पिछड़ा समझे जाने वाले राज्यों तक ही सीमित ही नहीं है। पेपर लीक की समस्या एक महामारी की तरह एक संगठित रूप से संचालित मशीनरी की तरह काम कर रही है, जिसमे छात्र माफिया, कोचिंग सेंटर, प्रिंसिपल और अधिकारी तक शामिल है। जम्मू से लेकर उत्तर प्रदेश, कर्नाटक से लेकर गुजरात और अरुणाचल प्रदेश तक पिछले 5 वर्षो में पेपर लीक के 41 मामलो की आधिकारिक मामलो में पुष्टि हुई है। महामारी की तरह फैली हुई इस बीमारी को रोकने में शिक्षा बोर्ड, कर्मचारी चयन आयोग और अन्य भर्ती एजेंसिया पूरी तरह से असफल हुई है।

पता चला है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अध्यादेश की जरिये इन मामलों को रोकने के लिए आजीवन कारावास समेत एक करोड़ रुपए तक के फाइन का प्रावधान कर दिया है, अब देखना है कि इतनी सख्त सजा के प्रावधान के बावजूद परीक्षाओं के पेपर लीक के मामलो में कमी आयेगी या नहीं। अब यह समस्या एक सामाजिक समस्या बन गई है, चुनाव के समय हर राजनीतिक दल अपने अपने समर्थको को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषण करता है जिससे उन्हें वोट मिल सके। पर कोई भी दल युवाओ को इस तरह का आश्वासन देने की हिम्मत नहीं करता कि हम देश में युवाओ को प्रतियोगी परीक्षाओं में निष्पक्ष पारदर्शिता पूर्ण परीक्षा दे पायेंगे। इस मामले में संघ लोक सेवा आयोग को छोड़कर सारे भर्ती बोर्ड या भर्ती एजेंसियां असफल रहे हैं। वर्ष 2022 में राजस्थान में धोखाधड़ी विरोधी कानून भी पारित किया गया और इसमे सजा के तौर पर आजीवन कारावास के प्रावधान को शामिल किया गया। भारतीय संसद द्वारा फरवरी 2024 में इसी तरह का कानून पारित करने के बावजूद आज भी इस अपराध में सैकड़ों लोग गिरफ्तार किए गए है।

युवाओं के लिए पेपर लीक की घटनाएं पीड़ादायक और विनाशकारी है, यह जिंदगी में रुकावट, तनाव पूर्ण परिवार और तार तार हो जाने वाले को जन्म देती है और राज्य की निष्पक्ष रूप में भर्ती परीक्षा आयोजित करने में असमर्थता प्रदर्षित करती हैं और ये राज्य की सेवा में आयी अक्षमता भी दर्शाती है। जब केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सांसद के रूप में शपथ लेने जा रहे थे तो पूरे विपक्ष में नीट नीट के नारे लगाकर उन्हें हूट किया, जो उचित नहीं है। यह सच है कि सिविल सर्विस और आईआईटी के पश्चात् नीट देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा मानी जाती है और इसके पेपर लीक होना और कुछ सेलेक्टेड लोगों को ग्रेस मार्क देना बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है।

इस समस्या के प्रति सभी दलों को पार्टी लाइन से हटकर संजीदगी से रोकने की आवश्यकता है क्योंकि एक दूसरे पर दोषारोपण से इस समस्या से छुटकारा नहीं मिलने वाला। विपक्षी गठबंधन इंडिया की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि पिछले पांच वर्षो में राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस के कार्य काल में सबसे अधिक पेपर लीक हुए और उसी कांग्रेस के सांसद शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को नीट नीट करके हूट कर रहे थे, वहीं इंडिया गठबंधन के सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल के तीन वरिष्ठ नेता लालू यादव, तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी पर लैंड फॉर जाब स्कैम्प् में चार्ज शीट दाखिल हो चुकी है। ऐसी घटनाओ से व शिक्षित युवा जिनके पास न पैसा है न जुगाड़ है, निराश और हताश होकर आत्म हत्त्या जैसे कदम उठाते है।

एक समय लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियो के लिए पदोन्नति में आरक्षण के लिए बहस चल रही थी और इस बिल के विरोध में बोलते हुए समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने कहा कि यदि प्रमोशन में भी आरक्षण दिया गया तो हमे कुशल और दक्ष सचिव और कैबिनेट सचिव स्तर के अधिकारी नहीं मिलेंगे और मेरे विचार में श्री मुलायम सिंह यादव के विचारों पर बहस या चर्चा की जा सकती है और आरक्षण का विरोध करने वाले यह भी तर्क देते है कि यदि 30% अंक प्राप्त करने वाले डॉक्टर बनेंगे तो मरीजो का इलाज कैसे होगा। पर कोई माई का लाल इस बात पर प्रश्न खड़ा नहीं करता कि पैसे और रसूक् के बल पर निकम्मे लोग पेपर लीक कराकर डॉक्टर, पुलिस कर्मी और रेल कर्मी बन जायेंगे तो मेरिट का रोना रोने वालो का क्या होगा और तब हमारे पुलिस और प्रशासन की दक्षता पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा। यदि हमें पुलिस और प्रशासन को दक्ष बनाना है तो प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक और सोल्वर गैंग को जड़ से उखाड़ देना होगा, इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को अपने मतभेद भुलाकर इस समस्या का हल निकालना होगा। जहां आज हमने पूरे विश्व के समक्ष एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में सफलता पाई है पर वहीं हम सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए आयोजित परीक्षाओं में पूरी निष्पक्षता और पारदर्षिता स्थापित करने में पूरी तरह से असफल रहे है और यही हमारा दुर्भाग्य है।

देश में शिक्षित युवा सरकार द्वारा आउट सोर्सिंग के नाम पर संविदा के आधार पर भर्ती किए गए कर्मचारियों से काम चला रही प्रैक्टिस से हताश और निराश है और दूसरी ओर पेपर लीक और पेपर सोल्वर् गैंग के कारण वे बेहद निराशा जनक हाल में पहुँच गए हैं, आखिर विकास का ढोल पीटने वाली सरकार इन युवाओ के लिए कब सोचेगी।

सोमवार, 24 जून 2024

मोहन भागवत के वक्तव्यों को कैसे देखें

 
अवधेश कुमार 

संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत के भाषण पर अभी तक जबरदस्त बहस चल रही है। वैसे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ अधिकारियों के भाषणों और वक्तव्यों पर मीडिया ,विश्लेषकों तथा समर्थकों के अलावा विरोधियों की भी गहरी नजर रहती है। किंतु संघ प्रमुख के दो भाषण वर्ष में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं और उनसे भविष्य की दिशा मिलती है-  विजयादशमी महोत्सव और दूसरा नागपुर में आयोजित तृतीय वर्ष कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर के समापन पर दिया गया भाषण। वर्तमान उद्बोधन भी कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन समारोह का ही है। निष्पक्षता से कोई उनके पूरे उद्बोधन को सुनेगा तो उसका वह अर्थ नहीं निकालेगा जो मुख्य मीडिया और सोशल मीडिया में छाया हुआ है। सबका निष्कर्ष एक ही है कि डॉक्टर भागवत ने भाजपा के बहुमत न पाने को लेकर ही अपनी टिप्पणी की है तथा उसको चेताया है। उसमें चाहे अहंकार की बात हो, मिलकर चलने की, सत्य बोलने की, आत्ममंथन… सब केवल नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए है। प्रश्न है कि क्या संघ और भाजपा के संबंध ऐसे हो गए हैं कि संघ प्रमुख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा को कुछ कहना हो तो  सार्वजनिक भाषण में बोलेंगे और वह भी कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन में जबकि प्रशिक्षण के बाद स्वयंसेवकों को सकारात्मक भाव से निकलकर देश के लिए काम करने की प्रेरणा देनी होती है? दूसरे अगर ये बातें केवल सरकार के लिए हैं तो विपक्ष के लिए क्यों नहीं?  हालांकि कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर का निर्णय महीनों पहले हुआ होगा और समापन भाषण का भी। उस समय किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह चुनाव  परिणाम आने और सरकार गठित होने का दिन होगा। बावजूद चुनाव हो ,सरकार और विपक्ष के बीच अनेक मुद्दों पर बाहर चल रही हो , सरकार गठित हुई हो और संघ प्रमुख उसकी पूरी तरह अनदेखी कर दें यह नहीं हो सकता। उद्बोधन के समय उनके ध्यान में पूरा राजनीतिक परिदृश्य पर रहा होगा। पर जिन लोगों ने निष्पक्षता से संघ को समझा है , अध्ययन किया है वो इन ज्यादातर टिप्पणियों से सहमत नहीं हो सकते। तो फिर क्या होंगे डॉक्टर मोहन भागवत के वक्तव्यों के निहितार्थ?

जिन पंक्तियों को बहस का आधार बनाया गया है उनमें पहला है , चुनाव । वे कहते हैं कि चुनाव संपन्न हुए हैं। उसके परिणाम भी आए और कल सरकार भी बन गई।  ….ये अपने देश के प्रजातांत्रिक तंत्र में प्रत्येक पांच वर्ष में होने वाली घटना है। उसके अपने नियम और डायनेमिक्स हैं। ..अपने देश के संचालन के लिए कुछ निर्धारण करने वाला वो प्रसंग है, इसलिए महत्वपूर्ण है। लेकिन इतना महत्वपूर्ण क्यों है? समाज ने अपना मत दे दिया, उसके अनुसार सब होगा। ध्यान रखिए इसी में वह कहते हैं कि क्यों, कैसे, इसमें संघ के हम लोग नहीं पड़ते। हम लोकमत परिष्कार का अपना कर्तव्य करते रहते हैं। प्रत्येक चुनाव में करते हैं। इस बार भी किया है। इन पंक्तियों को कोई उद्धृत नहीं करता जबकि संघ और उसके सारे संगठनों में काम करने वाले स्वयंसेवकों तथा समाज के लिए उनका पक्ष यही है। आगे वे कहते हैं -कल ही आदरणीय सत्य प्रकाश जी महाराज ने हमको कबीर जी का एक वचन बताया। . कबीर कहते हैं “निर्बंधा बंधा रहे बंधा निर्बंधा होई कर्म करे करता नहीं दास कहाय सोई”। जो सेवा करता है, जो वास्तविक सेवक है, जिसको वास्तविक सेवक कहा जा सकता है उसको कोई मर्यादा रहती है यानी वो मर्यादा से चलता है। .. जैसा कि तथागत ने कहा है—कुशलस्य उपसंपदा, यानी अपनी आजीविका पेट भरने का काम सबको लगा ही है, करना ही चाहिए.. लेकिन कौशलपूर्वक जीविका कमानी है और कार्य करते समय दूसरों को धक्का नहीं लगना चाहिए। ये मर्यादा भी उसमें निहित है। ..वो मर्यादा ही अपना धर्म है, संस्कृति है। जो पूज्य महंत गुरुवर्य महंत रामगिरी जी महाराज जी ने अभी बहुत मार्मिक कथाओं से थोड़े में बताई, उस मर्यादा का पालन करके जो चलता है, कर्म करता है, कर्मों में लिप्त नहीं होता, उसमें अहंकार नहीं आता। वही सेवक कहलाने का अधिकारी रहता है। साफ है कि इन संतों का वहां उद्बोधन हुआ और उसी को उद्धृत करते हुए डॉक्टर भागवत ने स्वयंसेवकों को नीति और व्यवहार समझने की कोशिश की जिसमें से अहंकार, धक्का देना आदि शब्दों को उठाकर बिना पूरे प्रसंग को लिए विश्लेषण करेंगे तो निष्कर्ष कुछ भी आ सकता है । 

मजे की बात देखिए कि मोहन भागवत कहते हैं कि इन

 चार पंक्तियों में संघ की वृत्ति ध्यान में आती है। इन बातों में उलझे रहेंगे तो काम रह जाएंगे। यानी संघ अपना काम करता है उसमें उलझता नहीं। और बहस इसी पर हो रही है कि संघ इसी वृत्ति में लिप्त है। तो संघ प्रमुख ने राजनीति को लोकतंत्र में आवश्यक बताते हुए भी यह कहा है कि उसमें कैसे व्यवहार हों लेकिन हमारी भूमिका उससे अलग है। चुनाव को  प्रजातंत्र की आवश्यक प्रक्रिया बताते हुए वे कहते हैं कि उसमें दो पक्ष रहते हैं, इसलिए स्पर्धा रहती है। स्पर्धा रहती है तो दूसरे को पीछे करने और स्वयं को आगे बढ़ने का काम होता ही है …. परंतु उसमें भी एक मर्यादा है। असत्य का उपयोग नहीं करना। चुने हुए लोग संसद में बैठकर देश को चलाएंगे, सहमति बनाकर चलाएंगे। तो भागवत का देश के लिए दिशा यही है कि चुनाव में आवेश हुआ , गुस्सा हुआ, सब कुछ हुआ लेकिन अब सत्ता और विरोधी की जगह सबको देश चलाना है इसलिए सहमति बनाकर आगे काम होना चाहिए। वे कहते हैं कि हमारे यहां तो परंपरा सहमति बनाकर चलने की है—“समानो मंत्र: समिति: समानी। समानम् मनः सह चित्तमेषाम”। यह सच है कि ऋग्वेदकारों को मानवी मन का ज्ञान था। सब जगह उन्होंने ‘सम’ कहा है (समानो मंत्रः समिति समानी समानम् मनः), लेकिन चित्त के बारे में सम नहीं कहा, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का चित्त, मानस अलग-अलग होता ही है। इसलिए 100 प्रतिशत मतों का मिलान होना संभव नहीं है। लेकिन जब चित्त अलग-अलग होने के बाद भी एक साथ चलने का निश्चय करते हैं तो सह चित्त बन जाता है।

 वे संसद में दो पक्षों को भी आवश्यक इसलिए मानते हैं क्योंकि उनके अनुसार किसी भी प्रश्न के दो पहलू रहते हैं और दोनों सामने आने के बाद ही पूर्णता होती है। चूंकि राजनीति में स्पर्धा होती है इसलिए ऐसी पूर्णता नहीं हो पाती । यही आज की राजनीति का सच है जिसके बारे में मोहन भागवत ने स्पष्ट कहा है कि स्पर्धा होने के कारण  असत्य का सहारा लिया जाता है ,तकनीकी का उपयोग करते हुए असत्य बाती पड़ोसी गई।  इस संदर्भ में मोहन भागवत का यह प्रश्न उचित है कि क्या ज्ञान -विज्ञान एवं विद्या का यही उपयोग है? कायदे से इस प्रश्न पर देश में बहस होनी चाहिए । मोहन भागवत की बातों को स्वीकार करें तो संघ की कल्पना है कि देश के राजनेताओं को स्पर्धा रखते हुए भी असत्य के आधार पर राजनीति और चुनाव नहीं करना चाहिए । सबको देश का ध्यान रखना चाहिए । उन्होंने कहा कि सज्जन विद्या का ये उपयोग नहीं करते। विद्या विवादाय ये खलस्य यानी दुर्जन का काम कहा गया है—“विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय। खलस्य साधोर् विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय”॥ विद्या का उपयोग प्रबोधन करने के लिए होता है, लेकिन आधुनिक विद्या (टेक्नोलॉजी) का उपयोग असत्य परोसने के लिए किया गया। उनकी चिंता है कि देश के शीर्ष राजनेता इस तरह का व्यवहार करेंगे तो देश का भला नहीं हो सकता है। इसी में विरोधी को प्रतिपक्ष कहने की बात करते हैं क्योंकि उनके अनुसार वह विषय का एक पहलू उजागर करते हैं जिनका विचार होना चाहिए। सच कहा जाए तो उनका देश की सभी पार्टियों के राजनेताओं से अपील है कि चुनाव खत्म हो गया जिसमें मर्यादा का पालन नहीं हुआ। किंतु देश के सामने चुनौतियां हैं और उनके लिए सबको सत्य और एक दूसरे को धक्का देने की प्रतिस्पर्धा से बाहर निकाल कर समान मन से काम करना चाहिए। सत्ता पक्ष प्रतिपक्ष के विचारों का सम्मान करें और प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष का। उन्होंने पिछले 10 वर्षों में भारत के विकास की भी चर्चा की है और कहा है कि  आधुनिक दुनिया जिन मानकों को मानती है, जिनके आधार पर आर्थिक  स्थिति का मापन किया जाता है उनके अनुसार भी हमारी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हो रही है। हमारी सामरिक स्थिति निश्चित रूप से पहले से अधिक अच्छी है। दुनियाभर में हमारे देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है। कला क्षेत्र में, क्रीडा क्षेत्र में, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में, संस्कृति के क्षेत्र में हम सब लोग विश्व के सामने आगे बढ़ रहे हैं। विश्व के प्रगत देशों ने भी हमको धीरे-धीरे मानना शुरू किया है। जो कहते हैं कि भागवत ने केवल मोदी और उनकी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है उन्हें भाषण का यह पक्ष भी ध्यान रखना चाहिए। एक समय शांत होता दिख रहा मणिपुर में फिर से अशांति आई तो इस पर चिंता प्रकट करना वहां शांति स्थापना की अपील है। उनका यही मत है कि सबको ऐसे विषयों को प्राथमिकता में लेकर मिलजुल कर शांति स्थापना के लिए काम करना चाहिए । राजनीतिक विचारधारा से परे हटकर पूरे भाषण को देखें तो इसमें भारत के वर्तमान और भविष्य की चिंता तथा उसके लिए समाज के नीचे से ऊपर तक के व्यक्तियों जिनमें नीति निर्माण करने और उसके लिए दबाव बनाने वाले शामिल हैं, के भी आदर्श और मर्यादित व्यवहार का सूत्र निहित है। यह केवल राजनीति नहीं समाज के हर सक्रिय पक्ष के लिए है। आप संघ के विरोधी हों या समर्थक उनके पूरे भाषण को सुना और शांत मन से मनन किया जाएगा तो हमें आपको कोई विरोधी या शत्रु सहसा नजर नहीं आएगा तथा सबके अंदर देश के लिए संकुचित स्वार्थ से परे हटकर मिलजुल कर काम करने की भावना सशक्त होगी।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -9811027208

शनिवार, 22 जून 2024

देश में बढ़ती वीआईपी कल्चर और उसका दुष्प्रभाव

बसंत कुमार

देश की राजधानी दिल्ली में लगभग डेढ़ दशक पूर्व समाज सेवी अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक आंदोलन चलाया जा रहा था और और इस आंदोलन की आड़ में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, जनरल वीके सिंह, गोपाल राय, संजय सिंह और न जाने कितने नेता आये और मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, उप राज्यपाल, प्रदेश में मंत्री बनने में सफलता प्राप्त की। उस समय इन सभी नेताओं ने सार्वजनिक जीवन में उच्च नैतिक आदर्शों को अपनाने और वीआईपी कल्चर से दूर रहने की बात की थी। अरविंद केजरीवाल ने खुले मंच से ऐलान किया था कि जब मै जीवन में मंत्री या मुख्यमंत्री बनूंगा तो न सरकारी बंगला लूंगा, न सुरक्षा लूंगा और न ही सरकारी गाड़ी इस्तेमाल करूंगा। ये अलग बात है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने किए गए वायदों को झुठलाते हुए करोड़ों रुपए खर्च करके आलिशान बंगला तैयार कराया और इतनी बड़ी सुरक्षा ली कि जब दिल्ली की सड़कों पर उनका काफिला चलता है तो कि यह अन्ना हज़ारे के आंदोलन से निकला एक व्यक्ति नहीं बल्कि किसी स्टेट का महाराजा निकल रहा है और जहां तक शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार रोकने की बात है तो शराब घोटाले, मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में स्वयं केजरीवाल, उनके उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और एक मंत्री सतेन्द्र कुमार जैन जेल में है और एक सांसद जमानत पर जेल के बाहर है। अब प्रश्न यह उठता है कि जिस वीआईपी कल्चर को हटाने के वादे पर अरविंद केजरीवाल को लोगों ने तीन तीन बार मुख्यमंत्री चुना, क्या भारतीय समाज से यह हट सकता है, क्योंकि देश में लाखों वीआईपी लोगों को सुरक्षा उपलब्ध कराने के नाम पर लाखों पुलिस कर्मी लगा दिए जाते है और लोगों की सुरक्षा राम जी के भरोसे चलती है।

इस वीआईपी कल्चर ने न सिर्फ भारत को बल्कि पूरे विश्व के देशों को प्रभावित किया है। विगत 10-15 वर्षों में जिस प्रकार से इस समस्या ने भारत की अर्थव्यवस्था एवं ला एंड ऑर्डर को प्रभावित किया है वह चिंतनीय है। विश्व के सबसे विकसित राज्य अमेरिका में वीआईपी की संख्या 252 है, फ्रांस में कुल 109 वीआईपी है, जापान में कुल 125 वीआईपी है, रूस में 312, जर्मनी में 142 और आस्ट्रेलिया में 205 वीआईपी है परंतु भारत जहां देश की 80 करोड़ जनता 5 किलो मुफ्त राशन पर गुजारा करती है वहां पर इन वीआईपी लोगों की संख्या 5,79,092 है और सरकार को इनकी सुरक्षा, मुफ्त हवाई यात्रा, चिकित्सा आदि पर करोड़ों रुपये खर्च करना पड़ता है। हमारे देश में कुछ वीआईपी उम्र के ऐसे पड़ाव पर है जिनके पास यमराज के अलावा और कोई नहीं आने वाला पर उनकी सुरक्षा के लिए वाई प्लस और जेड प्लस सुरक्षा के नाम पर दर्जनों पुलिस कर्मी सुरक्षा का घेरा बनाये रखते है।

जिन गुंडों और भूमाफियाओं के आतंक से पूरा समाज डरा और सहमा रहता है और ये लोग जहां खड़े हो जाते हैं तो भयवश लोग उनके पैर छूने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लाइन लगा देते है और इन गुंडों भूमाफियाओं की सुरक्षा में तैनात वर्दी धारी पुलिस कर्मी इनका बैग पकड़े खडा रहता है, इन स्वयंभू वीआईपी लोगों की सुरक्षा इतनी आवश्यक होती हैं कि थाने में स्टाफ है या नहीं इसकी परवाह नहीं करते, यदि कहीं थाने में इमर्जेंसी में पुलिस फोर्स की आवश्यकता पड़ जाए तो थानाध्यक्ष स्टाफ न होने की अपनी लचरि बता देता है, क्योंकि अधिकांश फोर्स तो इन फर्जी वीआईपी की सुरक्षा और सेवा में लगी होती है। कैसी त्रासदी है कि जो पुलिस फोर्स आम जनता की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी वह उन नागरिकों की सुरक्षा में मौजूद रहने के बजाय क्षेत्र में दौरे पर आये सांसदों और मंत्रियों की सेवा सुरक्षा में खड़ी रहती है। आखिर यह वीआईपी कल्चर भारत जैसे लोकतंत्रिक देश में पूरे सिस्टम का सत्यानाश कर देगी।

सांसदों, मंत्रियों, उच्च अधिकारियों की बात तो छोड़ दीजिये, उन छुटभैये नेताओं जो जीवन में कभी भी सांसद, विधायक या पार्षद नहीं बने उन्हें सिर्फ जनता के ऊपर रोब जमाने के लिए पुलिस सुरक्षा उपलब्ध कराना और वीआईपी स्टेट्स देना कितना हाष्यास्पद लगता है, मैंने अपनी आंखों से ऐसे नेताओं को मिली पुलिस सुरक्षा देखी है जिनके ऊपर 10-15 क्रिमिनल केस पेंडिंग है अर्थात जिन लोगों को पुलिस कस्टडी में होना चाहिए था उनको पुलिस द्वारा सुरक्षा प्रदान करवाई जा रही है। कहा जाता है कि ये लोग जुगाड़ करके एलआईयू से फर्जी रिपोर्ट प्राप्त कर लेते है कि इन्हें खतरा है और इस आधार पर इन्हें पुलिस सुरक्षा मिल जाती है और सरकार को इस पर करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते है। यह एक जांच का विषय है कि सुरक्षा प्रदान करने के लिए मुख्य आधार एलआईयू रिपोर्ट निष्पक्ष रूप से बिना किसी प्रलोभन के दी जाती है, क्योंकि प्राय: यह देखा गया है कि कुछ ऐसे लोगों को वीआईपी सुरक्षा प्रदान कर दी जाती है जिनको इसकी जरूरत नहीं होती।

 

इस देश में आजादी के बाद रामधारी सिंह दिनकर, सुमित्रा नंदन पंत, बिस्मिला खान, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया जैसे अनेक साहित्यकार और पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार जैसे अनेक कलाकार दिए पर इनमें से किसी को भी वीआईपी मानकर कभी वाई या जेड की सुरक्षा नहीं दी गई पर आज शाहरुख खान, सलमान खान या अक्षय कुमार को इतनी सिक्योरिटी क्यों?

आखिर इन लोगों को वीआईपी बनाकर कर सुरक्षा कवच देने का औचित्य क्या है और इन तमाम लोगों को वीआईपी दर्जा देने के लिए करदाताओं के ऊपर करोड़ों का बोझ पड़ता है जो सरासर गलत है। अब समय आ गए है कि सरकार इन वीआईपी सुरक्षा और उनको दिए जाने वाली व अन्य सुविधाओ की समीक्षा करे और देश में वीआईपी लोगों की लाखों की संख्या सीमित करे। यह सही है कि देश ने आतंकवादियों के हाथो एक प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री खोया है फिर भी वीआईपी सुरक्षा के नाम पर छुट भैये नेताओ की सुरक्षा के नाम पर करोड़ो रुपए बहाना व्यर्थ है।

भारत विश्व में इकलौता देश है जहां थानों में पुलिसकर्मियों का काम होमगार्ड करते है क्योंकि रेगुलर पुलिस कर्मी अधिकांश समय वीआईपी सुरक्षा में व्यस्त रहते और कुछ पुलिसकर्मी थानों में ड्यूटी करने के बजाय अपने उच्च अधिकारियों के बंगलों पर ड्यूटी लगवाकर साहब के बच्चों को स्कूल छोड़ने, कुत्तों को घुमाने का काम पसंद करते है और सरकारी चिकिस्यालों में मरीजों को फरमैसिस्ट और वार्ड बॉय देखते है क्योंकि डॉक्टर्स तो इलाके के वीआईपी और नेताओं की देखरेख में व्यस्त रहते हैं आखिर देश में ये वीआईपी कल्चर कब समाप्त होगी।

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