मंगलवार, 14 मई 2024

अनोखी सोच

 बच्चों के लिए चंदा मांगने गए *अनाथ आश्रम कमेटी* के सदस्यों को उस समय मायूसी हाथ लगी जब वे शहर के प्रतिष्ठित एवं अमीर सेठ करमचंद जी की कपड़ों की फैक्ट्री में चंदा मांगने पहुंचे और सेठ जी ने मात्र 51 रुपए चंदे में दिए जबकि उनकी फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों ने उनसे कहीं ज्यादा (किसी ने ₹100, किसी ने ₹151) दान में दिए। 

अनाथाश्रम कमेटी के संरक्षक मोहित वर्मा जी.. अपनी कमेटी के ही दो सदस्यों के साथ सेठ करमचंद जी के पास बहुत उम्मीद से गए थे। उन्होंने सुना था कि सेठ जी भले इंसान हैं, बहुत दयालु हैं, गरीबों की मदद करते हैं लेकिन ऐसी मदद करेंगे? वह भी सिर्फ ₹51 की? इसकी उन्हें कतई उम्मीद ना थी। ₹51 रुपए में तो कोई एक समय का भरपेट खाना भी नहीं खा सकता। 'नाम बड़े-दर्शन छोटे' की उक्ति को आज सेठ करमचंद जी ने चरितार्थ कर दिया था। पूरी फैक्ट्री से उनको बा-मुश्किल ₹5000 का ही चंदा मिल पाया था। वे तीनों मायूस होकर फैक्ट्री से निकलने ही वाले थे, तभी एक गार्ड भागकर आया और आवाज देकर उनको जाने से रोकते हुए बोला- 

"सर, सेठ करमचंद जी आप सबको बुला रहे हैं। वे अपने केबिन में हैं।" 

सब अचंभे से एक दूसरे को देखने लगे। 

"अब क्या कहना चाहते हैं सेठ जी? चंदा तो उन्होंने दे ही दिया है।" एक सदस्य ने शंका जाहिर की।

"एक बार मिल लेते हैं सेठ जी से। मिलने में कुछ नहीं जा रहा।" मोहित बोले।

केबिन में सेठ करमचंद जी ने कमेटी के सदस्यों का फूलमाला से स्वागत किया और ससम्मान उनकी खातिरदारी करते हुए बोले-

"शहर में आप और आपकी कमेटी बहुत नेक काम कर रही है। इसकी मुझे जानकारी है। अनाथ, गरीब बच्चों के बारे में आज के इस दौर में कौन सोचता है? मैं आपसे, आपकी सोच से, अनाथ बच्चों के लिए आपके समर्पण व आपके इस नेक काम से बहुत प्रभावित हूँ। मेरी तरफ से आपकी कमेटी को अनाथ बच्चों की मदद, भरण पोषण के लिए एक छोटी सी सप्रेम भेंट।" यह कहकर उन्होंने ₹500000 का चेक मोहित जी की ओर बढ़ा दिया।

5 लाख का चेक देखकर... आश्चर्य से कमेटी के लोगों की आंखें फटी रह गई। वे सोचने लगे कि सेठ जी का इस तरह का भी दोहरा चरित्र हो सकता है? इसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी। कहाँ 51 रुपए और अब कहाँ 5 लाख रुपए? उनके मन में ढेरों सवाल चलने लगे।

मोहित जी ने हिम्मत करके आखिरकार सेठ जी से पूछ ही लिया- 

"सेठ जी, मैं बड़ी असमंजस में हूँ। मैं आपको समझ नहीं पा रहा हूँ। आपने अपनी फैक्ट्री में काम कर रहे मजदूरों के सामने चंदे/दान के तौर पर मात्र ₹51 दिए और अब आप यहाँ हमें बुलाकर ₹500000 चंदा दे रहे हैं। आप चाहते तो ₹500000 वहीं उन सबके सामने दे सकते थे लेकिन आपने ऐसा नहीं किया। क्यों?" 

"बड़ी सीधी सी बात है मोहित जी। वे सभी मेरी कंपनी के कर्मचारी हैं और कहीं ना कहीं मेरे इस परिवार के सदस्य भी। मैं किसी को नीचा या छोटा दिखाना नहीं चाहता था। अगर मैं वही उनके सामने ₹500000 दे देता तो वे सब दिल खोलकर आपकी मदद ना करते। वे सभी खुद को मेरे सामने छोटा महसूस करते। वे शायद आपकी मदद भी न करते। वे सोचते कि सेठजी ने तो 5 लाख रुपये दे ही दिए हैं.. अब हम रुपये क्यों दें? उनके द्वारा 100 या 200 रुपये देने से क्या हो जायेगा?" 

सेठ जी आगे बोले-

"मुझे खुशी है कि मेरे हर कर्मचारी ने मेरे से ज्यादा दान किया। मेरी इस हरकत से कहीं ना कहीं आपके चंदे में भी बढ़ोतरी हो गई और दूसरी तरफ कहीं ना कहीं मेरे कर्मचारियों में दान देने की प्रवृत्ति पैदा तो हुई। मुझे उम्मीद है कि अब निकट भविष्य में वे सब जरूरतमंद की मदद करने में पीछे नहीं हटेंगे। मदद करना एक अच्छी आदत है। जो भी एक बार अनजाने में ही सही... किसी की मदद कर देता है तो सच में...उसको बड़ा सकून मिलता है। उस व्यक्ति को अपना यह मानव जीवन सार्थक होता महसूस होता है। एक बार जिसमें मदद करने की प्रवृत्ति पैदा हो जाए तो वह मरते दम तक लोगों की मदद जरूर करता है। हमें नेक काम के लिए खुद मदद करने के साथ-साथ दूसरों को भी मदद करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। मैंनें बस वही किया और ज्यादा कुछ नहीं।" 

सेठ जी के इस तरह के व्यवहार व दयालु सोच ने कमेटी के सदस्यों को बेहद प्रभावित किया। उन्होंने अनाथ बच्चों की मदद के लिए..  हृदय की गहराई से सेठ जी का धन्यवाद अदा किया। अब वे सेठजी के केबिन से.... सेठ जी के लिए नकारात्मक सोच त्याग कर... एक सकारात्मक सोच लिए बाहर निकल रहे थे।

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