गुरुवार, 21 मार्च 2024

इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में हेरा-फेरी की आशंका

बसंत कुमार

पिछले दिनों माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से देश की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों को गुप्त चंदा देने और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा इन बॉन्डों के सहारे जो पैसा मिला है उसकी सही जानकारी न देने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। दरअसल इस समय इलेक्टोरल बॉन्ड ऐसा शब्द बन गया है जिसकी चर्चा हर ओर हो रही हैं क्योकि देश के अधिकांश दलों को इन बॉण्डों के माध्यम से मिलने वाले चंदे को सार्वजनिक कराने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर टिप्पणी करने और आवश्यक निर्देश देना पड़ा। इस पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए डेटा शेयर किया जिसे चुनाव आयोग ने 14 मार्च को सार्वजनिक किया पर इस डेटा में कई कमिया थी और यह डेटा अधूरा था। इस डेटा में पारदर्शिता न होने के कारण तरह-तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे हैं। इस सेट में आधी अधूरी जानकारी देने से बवाल मच गया था क्योंकि इसमें हर बॉण्ड का यूनिक कोड नहीं दिया गया था, जिससे बॉण्ड खरीदने वाले और उसे कैश कराने वाली पार्टी का मिलान कराया जा सके।

इसके अलावा इसमें 12 अप्रैल 2019 से पहले खरीदे गए बाँड्स की जानकारी नहीं दी गई थी जबकि इस अवधि में खरीदे गए बॉण्डों की कीमत 4000 करोड़ रुपए से अधिक थी और इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने और इसके माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा देने का धंधा वर्ष 2017 से ही शुरू हो गया था जबकि जिस यूनिक कोड को पहले दिये गये सेट में छिपाया गया था उस यूनिक कोड से यह पता चल जाता कि डोनर और चंदा लेने वाली पार्टी के बीच संबंध क्या है और किस तरह से इन कम्पनियों को राजनीतिक दलों द्वारा फेवर किया गया है।

चुनाव आयोग द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड का दूसरा डेटा 17 मार्च को शेयर किया गया और इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही पीठ के प्रमुख मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचुड़ ने ये डेटा एक साथ न शेयर करने पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को भी फटकार लगाई, पर चुनाव आयोग की वेबसाइट पर यह डेटा पूरी तरह अपलोड होने पर यह सार्वजनिक हो गया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये किस कंपनी ने किस राजनीतिक दल को कितना पैसा दिया और यह भी सही है कि इन इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये सत्ताधारी पार्टियों को अधिक पैसा मिला और केंद्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा के अलावा बंगाल में सत्ता में रह रही टीएमसी और ओडिशा में सत्ता में रह रही बीजेडी जैसी पार्टियों ने भी खूब पैसा बटोरा। इन सबसे में अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि तमिलनाडु में शासन कर रही डीएमके को सबसे अधिक चंदा फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेस के मालिक सैटियागो मार्टिन जिसे लॉटरी किंग के नाम से जाना जाता है की कंपनी ने कुल 1300 करोड़ से ज्यादा के मूल्य के बाँड्स खरीदे और डीएमके को सबसे अधिक 656.5 करोड़ के बॉण्ड खरीदकर दिये। इससे स्वयं समझा जा सकता हैं कि पेरियार के सामाजिक न्याय का दंभ भरने वाली पार्टी जब सटोरियों से इतना अधिक डोनेशन ले रही है तो वह पेरियार के आदर्शों को कैसे पूरा करेगी, फ्यूचर गेमिंग के अलावा डीएमके को कई बड़ी कंपनियों ने डोनेशन दिए। मेधा इंजीनियरिंग 105 करोड़, इंडिया सीमेंट्स 14 करोड़ और सन् टीवी ने 10 करोड़ दिये।

नई जानकारी के अनुसार लाटरी किंग की फ्यूचर गेमिंग से ममता बनर्जी की टीएमसी को कम से कम 540 करोड़ के चुनाव बॉण्ड मिले। फ्यूचर गेमिंग ने डीएमके, भाजपा, कांग्रेस को भी इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से डोनेट किये, इसने टीएमसी और डीएमके अलावा वाईएसआर कांग्रेस को 160 करोड़, भाजपा को 100 करोड़ और कांग्रेस को 50 करोड़ दिये, दूसरा इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे बड़ा खरीददार हैदराबाद की मेधा इंजीनियरिंग है जिसने भाजपा, बीआरएस और डीएमके सहित कई दलों को 966 करोड़ दिये, इसके अलावा वेदांता ग्रुप ने भाजपा, कांग्रेस, बीजेडी को चंदा दिया जबकि भारती एयरटेल ने बीजेपी, अकाली दल, आरजेडी और कांग्रेस को चंदा दिया इनके अलावा न जाने कितनी कंपनिया है जिन्होंने पक्ष-विपक्ष की सभी पार्टियों को चंदा दिया।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को दिये गए ऐतिहासिक फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को ही असंवैधानिक करार कर दिया और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को इस स्कीम के तहत बेचे गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने के आदेश दिये थे, पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने उस आदेश जिसमें यह जानकारी, 6 मार्च 2024 तक देने की बात कही गई थी उसे 30 जून 2024 तक बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी और इस अपील पर ही कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को फटकार लगाई थी और बैंक को ये डेटा मार्च महीने में शेयर करने के लिए कहा, जबकि बैंक की मंसा यह थी कि मामले को लोकसभा चुनाव तक लटकाया जाए जिससे लोगों को चुनाव के पहले इस गोरखधंधे में किस पार्टी को कितना पैसा मिला पता चल सके। सुप्रीम कोर्ट के इस कड़े रुख में की परिणति चुनावी फंडिंग के मामले में एक सकरात्मक पहल के रूप में हुई।

आश्चर्यजनक यह है कि कुछ कंपनियों जैसे फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेस ने अपने यहां ईडी की कार्यवाही शुरू होने के बाद खरीदे और अब यह देखना है कि बॉण्ड खरीदने के पश्चात इनके ऊपर ईडी कार्यवाही में कितनी ढील दी गई और यह आशंका यदि सच साबित होती है तो ईडी की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न उठने लगेंगे, वैसे भी कुछ वर्षों में ईडी और सीबीआई के सरकारों द्वारा दुरुपपयोग के आरोप लगने लगे हैं पर लोग इसे विपक्ष का चुनावी हथकंडा मानते थे। यदि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद-फरोख्त के बाद राजनीतिक दलों द्वारा इन कंपनियों को फेवर देने की बात सच साबित हुई तो यह देश के मतदाताओं के साथ सरासर ठगी होगी।

जब चुनाव आयोग और न्यायालय यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के आय के स्रोत और उनके अपराधिक रिकॉर्ड के बारे में मतदाता को जानने का हक है और चुनाव जितने के बाद भी वह अपने बारे में जानकारी छुपाने का दोषी पाया जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाती है, ठीक इसी प्रकार राजनीतिक दलों को भी अपनी आय का स्रोत छुपाये जाने पर उसकी मान्यता रद्द कर दी जानी चाहिए क्योंकि देश में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना के लिए हमारे महापुरुषों ने बड़ा त्याग किया है और देश के नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार दिया है पर इस लोकतंत्र को धनाड्यों, बाहुबलियों, भूमाफियों द्वारा हाई-जैक करने नहीं दिया जाना चाहिए।

(लेखक भारत सरकार के पूर्व उप सचिव हैं।) M-9718335683

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