बुधवार, 31 जनवरी 2024

साम्यवाद: अराजकता और अशांति का पूरक

सिद्धार्थ पाराशर

साम्यवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसे सरल शब्दों में समझे तो यह एक ऐसे समाज की परिकल्पना करती है जो वर्गविहीन हो, जिसमें निजी आधिपत्य न हो, न कोई जाति व्यवस्था हो समाज में केवल एक जाति मानवता हो, समाज मे उत्पादन सामूहिक तरीक़े से हो, व्यक्ति पर किसी भी प्रकार की कोई पाबंदी न हो, राज्य की तरफ से कोई अंकुश न हो तथा समाज राज्यविहीन। पहली नजर में तो यह विचारधारा देखने में सभी को आकर्षित करती है। अब यहाँ यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि इतनी  लोक लुभावन विचारधारा होने के बावजूद भी आज इसका अस्तित्व शून्य क्यों है? क्योंकि वास्तव में साम्यवादी सरकारों और इस विचारधारा के समर्थकों ने समाज में जितनी हिंसा और अशांति फैलाई है उतनी हिंसा शायद ही किसी अन्य तानाशाही सरकार ने की होगी। विश्व में जहाँ भी साम्यवादी सरकारें बनी उन्होंने सबसे अधिक जिस चीज पर अंकुश लगाया वो है "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता", सभी सरकारों के कार्यकाल में सबसे अधिक नरसंहार हुए और चीजों को छुपाया गया।

अक्टूबर क्रांति जिसमें असंख्य लोगों ने अपनी जान गँवायी और जारशाही का पतन हुआ फिर लेनिन ने रूस में साम्यवादी सरकार की नींव रखी। सत्ता हासिल करने के बाद लेनिन ने अपनी सत्ता को बचाने के लिए एक बड़ी सेना का गठन किया और फिर जिसने भी उसके विरुद्ध आवाज उठाई उसका दमन किया। इसमे सबसे अधिक दमन उसी सर्वहारा समाज का हुआ जिसको लेनिन ने सबसे अधिक सपने दिखाए थे, सत्ता को बचाने के इस खेल में लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई। 9 अगस्त 1918 को लेनिन ने सामूहिक रूप से अपने 100 विरोधियों को फाँसी दी। इसके कुछ महीने बाद ही उसने एक गुप्त सेना"चेका" बनाई, उसके सैनिकों ने एक बार में 800 किसानों की हत्या कर दी थी। इनका एक ही कार्य था लेनिन के खिलाफ उठी आवाज को खत्म करना। एक आकड़े के अनुसार 1918-1922 के बीच लेनिन के सैनिकों द्वारा 2 लाख लोगों की हत्या कर दी गयी थी ये वही लोग थे जिन्होंने सेना को अनाज नहीं दिया था।

1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद स्टालिन ने सत्ता संभाली। स्टालिन अर्थात वह इंसान जिसका हृदय इस्पात (स्टील) का बना हो, वो अपने नाम की भाँति ही कठोर था। स्टालिन ने सत्ता हासिल करने के लिए अपनी ही पार्टी के लोगों का दमन किया। सत्ता हासिल करने के बाद अपने खिलाफ उठी हर आवाज को समाप्त करना उसकी फितरत थी। उसने मजदूर संघ, सरकार के सभी विभागों, कला और साहित्य को अपने अधीन किया ताकि कोई उसके विपरीत चीजों को प्रदर्शित न कर सके। 1932-1939 के बीच उसके गलत फैसलो के कारण अकाल पड़ा और 7 लाख से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।  सोवियत संघ मे कारखानों के विकास के लिए स्टालिन एक बड़ा टारगेट देता था जिसे पूरा ना करने पर देश का दुश्मन कह कर जेल में डाल देता था। आवाज उठाने पर पार्टी के सेंट्रल कमेटी के 139 में से 93 लोगों को मरवा दिया, सेना के 103 जनरल और एडमिरल में से 81 को मरवा दिया। शासनकाल में साम्यवाद का विरोध करने पर तीस लाख लोगों को ज़बरदस्ती साइबेरिया के गुलाग इलाक़े में रहने के लिए भेज दिया गया था एवं क़रीब साढ़े सात लाख लोगों को मरवा दिया गया था। उसके गलत नीतियों के कारण 50 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई।

माओ त्सेतुंग साम्यवाद के एक महत्वपूर्ण विचारक जिसने मार्क्सवादी तथा लेनिनवादी दोनों विचारों को सैनिक नेतृत्व से जोड़कर एक नए विचार माओवाद का प्रतिपादन किया। माओ की नीतियों के कारण कई बार चीन की जनता को अपनी जान गँवानी पड़ी जिसमे सबसे महत्वपूर्ण नीति थी 1958-1962 के दौरान की ग्रेट लीप फॉरवर्ड और साँस्कृतिक क्रांति नामक राजनैतिक और सामाजिक नीति जिसके कारण देश में भयंकर अकाल पड़ा और इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में लाखों चीनी लोगों की मौत हुई । फोर पेस्ट कैम्पेन इसी का एक भाग था जिसमें 4 जीवों(मच्छर, मक्खी, चूहा और गौरैया) को मारना था जिसका दाव उल्टा पड़ा और पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ा जिसके कारण पेस्टिसाइड्स की मात्रा में भारी वृद्धि हुई और फसलों का नुकसान हुआ परिणामस्वरूप 1 करोड़ 50 लाख से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी।

ऐसे ही यदि चीन के एक और घटना की चर्चा करें जिसमे साम्यवादी सरकार ने जनता की स्वतंत्रता की धज्जियाँ उड़ा दी थी, 4 जून 1989 के चीन के राजधानी बीजिंग के थियानमेन चौक पर छात्रों के शांतिपूर्ण आंदोलन का दमन। प्रदर्शन को दबाने के लिए चीन की सरकार ने पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (PLA) को उतार दिया था। सेना ने गोली बारूद के द्वारा इस प्रदर्शन को समाप्त किया, इस प्रकरण में 10 हज़ार से अधिक लोगों की जान गयी। आज भी सरकार ने इस प्रकरण से संबंधित किसी भी लेख, डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने लोकतंत्र की प्रतिमा को थियानमेन चौक पर स्थापित की थी, जिसे सरकार ने हमेशा के लिए हटा दिया। प्रेस की स्वतंत्रता की बात करें तो चीन में प्रेस सरकार के अधीन है और हाल ही में Reporters Without Borders नाम की एक संस्था ने बताया है कि चीन में प्रेस की स्वतंत्रता का परिदृश्य काफी चिंतनीय है और उसने चीन को नीचे से चौथे स्थान पर जगह दी।

सलोथ सार जिसे पॉल पॉट के नाम से जानते है ने 1975 के मध्य में कंबोडिया में एक साम्यवादी सरकार का गठन किया तथा 1976-79 के मध्य कंपूचिया का प्रधानमंत्री रहते हुए कंबोडिया को शुद्ध करने का प्रयास किया जिसके कारण 17 से 25 लाख लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा । उसने सामूहिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए जबरन लोगों को शहरो से गाँवों की ओर धकेला और बेगार की परियोजनाओं में कार्य करने के लिए बाध्य किया।  इस दास श्रम, कुपोषण, मूलभूत सुविधाओं की कमी, खराब चिकित्सा व्यवस्था और भारी मात्रा में मृत्यु दंड के कारण कंबोडिया की लगभग 21% आबादी को अपनी जान गँवानी पड़ी थी।

इन सभी बातों का जिक्र मैंने इसलिए किया क्योंकि हर बात पर संविधान की दुहाई देने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग को पहले ये जानना होगा कि वो जो बार-बार संविधान खतरे में है, आजादी अभी अधूरी है, तानाशाही, लोकतंत्र खतरे में है जैसी तमाम बातें किस हक से बोलते है जबकि वे जिसे अपना आदर्श मानते हैं उन्होंने लोकतन्त्र और जनता के फैसलों का दमन सबसे अधिक किया है। मतलब पाखंड की भी सीमा होती है। खैर चीजों को नकारना, अस्वीकरना साम्यवाद की पुरानी आदत रही है। सभी बातों से यह अवश्य ही कहा जा सकता है कि साम्यवाद अशांति और अराजकता की जननी है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में परास्नातक में अध्ययनरत हैं।)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/