रविवार, 29 दिसंबर 2024

संभल में मंदिरों का बंद होना

 अवधेश कुमार

संभल में 46 वर्षों से बंद मंदिर खुलने के बाद वहीं दूसरे मोहल्ले में भी बंद मंदिर मिलने तथा अनेक कुयें और एक अद्भुत लगभग 200 मीटर की बावरी सामने आने के बाद पूरे देश आश्चर्य में है। लोगों के अंदर स्वाभाविक गुस्सा है कि मोहल्लों में एक समुदाय की जनसंख्या बढ़ने के बाद ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि पूजा करना तक संभव नहीं रहा। सेक्यूलरवाद की रट लगाने वाले नेताओं, एक्टिविस्टों और बुद्धिजीवियों के पास इसका क्या उत्तर होगा? संयोग कहिए कि संभल में हिंसा के बाद प्रशासन वहां कई स्तरों पर काम कर रही है जिनमें बिजली चोरी पकड़ना, अवैध अतिक्रमण समाप्त करना तथा धर्मस्थलों के लाउडस्पीकरों की ध्वनि को निर्धारित सीमा में किए जाने के नियम का कठोरता से पालन कराना शामिल है। संभल के खग्गू सराय मोहल्ले में इसी अभियान में 46 वर्ष से बंद मंदिर मिला। दूसरा मंदिर वहां से लगभग साढ़े तीन किलोमीटर दूर सरायतरीन क्षेत्र के कायस्थान मोहल्ले में मिला। पहला 1978 के दंगे के बाद तो दूसरा 1992 के बाद बंद हो गया था। खग्गू सराय मंदिर को मकान से सटाकर और दीवार खड़ा कर काफी हद तक कब्जा लिया गया था। यह मंदिर सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क के घर से 200 मीटर और जिस शाही मस्जिद के सर्वे पर इतना बड़ा विवाद हुआ उससे 500 मीटर दूर है। मंदिर के दरवाजों पर पड़े ताले खुलवाए गए तो अंदर हनुमान जी की मूर्ति और शिवलिंग मिला। सभी हैरत में थे। स्वाभाविक ही इस सूचना के साथ पूरे शहर में हलचल मच गया। लोग वहां आने लगे और कई वरिष्ठ जनों ने बताना शुरू किया कि यहां क्या-क्या हो सकता है। किसी ने बताया कि सामने दिखते रैंप के नीचे अमृतकूप था। जब जेसीबी से खुदाई की गई तो वाकई उसके नीचे कुआं मिला। इसकी खुदाई में भी कुछ मूर्तियां मिली है जिनमें गणेश जी और पार्वती जी की खंडित मूर्तियां हैं । अभी जितनी जानकारी आ रही है उसके अनुसार मंदिर काफी पुराना है।  इसका सत्यापन कार्बन डेटिंग के बाद ही संभव है। दूसरे मंदिर में राधा कृष्ण और हनुमान जी की मूर्तियां हैं जिसकी देखरेख सैनी बिरादरी के लोग कर रहे थे। आप सोचिए, अगर भारत के उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के एक प्रमुख शहर में ऐसी स्थिति बनी तो उसके कारण क्या हो सकते हैं? प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार नहीं होती तो न पुलिस प्रशासन यहां कार्रवाई करने का साहस करता और न कब्जा करके धीरे-धीरे अस्तित्व मिटा देने की अवस्था में पहुंचे मंदिर का खुलना संभव होता। 

जितनी जानकारी आई है उसके अनुसार 29 मार्च , 1978 को संभल में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। उसके बाद मोहल्ले के सारे हिंदू पलायन कर गए। उन दंगों पर काम करने वाले, भुगतने वाले ,आंखों देखने वाले बता रहे हैं कि उस दौरान खग्गू सरय मोहल्ले में अनेक हिंदू घरों में आग लगा दी गई थी और लोग ऐसे बेसहारा हो गए कि उनके पास वहां से भगाने के अलावा कोई चारा नहीं रहा। जानकारी मिली है कि वहां डिग्री कॉलेज में सदस्यता न मिलने पर मंजर अली नाम के प्रभावी व्यक्ति ने हिंसा का षड्यंत्र किया था। दूकानें जबरदस्ती बंद कराई गई, मारपीट, पथराव लूटपाट हुआ , गोलियां चलीं। यह ज्यादातर जगह एकपक्षीय था जिसमें कफी हिंदुओं की मृत्यु की बात बताई गई है। यही कायस्थान में हुआ जब हिंसा के बाद हिंदुओं के करीब 100 परिवारों को वहां से पलायन करने को विवश होना पड़ा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 1978 के दंगे के बारे में विधानसभा में बताया कि 184 हिंदू उसमें मारे गए थे जिनमें काफी संख्या में लोगों को जिंदा जलाया गया था। तब दो माह तक शहर सहित जिले के अलग-अलग क्षेत्र में कर्फ्यू लगा रहा। पता चल रहा है कि उसमें कुल 171 पंजीकृत मुकदमे हुए जिनमें तीन पुलिस की ओर से लिखे गए थे। उनका परिणाम क्या हुआ अभी पता नहीं। संभल में सांप्रदायिक हिंसा का पुराना इतिहास है और अभी तक रिकॉर्ड के अनुसार 16 बार शहर में सांप्रदायिक दंगे हुए। अगर मिले वर्तमान मंदिर और विवादास्पद जामा मस्जिद की कहानी को ही ध्यान में रखें तो अनुमान लगाना कठिन नहीं होगा कि सारी हिंसा के पीछे कौन लोग हो सकते हैं तथा किन्हें इसका खामियाजा ज्यादा भुगतना पड़ा होगा। आज खग्गू सरय मोहल्ले में किसी हिंदू का मतदाता सूची में नाम तक नहीं है। 

आसपास के कुछ मुसलमानों का वक्तव्य है कि मंदिर बंद करने के लिए कोई दबाव नहीं डाला गया बल्कि लोग अपना मकान बेचकर चले गए और पूजा करने वाला ही कोई नहीं रहा। इनका कहना है कि जब हिंदू पारिवार वहां रहता ही नहीं तो पूजा नहीं होती। मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवियों का वक्तव्य है कि मंदिर बंद था तो उसे खोलना ही चाहिए लेकिन लोग वहां से क्यों चले गए? आज तक योगी सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया? यह किस तरह का क्रूर बयान है? इसकी जगह मामला किसी मस्जिद का होता तो क्या ये लोग ऐसे ही वक्तव्य देते? ध्यान रखने की बात है कि यहां से 200 - 300 मीटर दूर हिंदू आबादी है। उनमें से कोई वहां आने तक का भी साहस नहीं जुटा पाता था। मंदिर संभालने वाले परिवार का बयान है कि पुजारी रखकर नियमित पूजा अर्चना की कोशिश की गई लेकिन डर इतना था की कोई जाने का साहस नहीं जुटा सका। धीरे-धीरे मुस्लिम समुदाय ने मंदिर के स्थानों को कब्जाना शुरू कर दिया। वहां जल डालने के लिए स्थित पीपल का पेड़ भी काट दिया गया। हमारे यहां पीपल का पेड़ काटना कितना बड़ा पाप माना जाता है।

नक्शा देखकर पुलिस प्रशासन मंदिर के अतिक्रमित स्थान को बुलडोजर से ध्वस्त कर रहा है। बदले माहौल का असर देखी लोगों ने खुद भी अतिक्रमण हटाना शुरू कर दिया और कमरे पर आकर बोल रहे हैं कि उन्हें इससे कोई समस्या नहीं। लोग साहस करके मंदिर पर कब्जा करने वालों का नाम भी बता रहे हैं।  कितनी भयावह स्थिति रही होगी कि जानते हुए भी हिंदू समाज वहां मंदिर में पूजा करने का साहस इतने लंबे समय तक नहीं दिखा पाया। सरायतरीन कायस्थान मोहल्ले की घटना तो 32 वर्ष की है लेकिन खग्गू सराय के मामले में इतना लंबा समय गुजरने के बाद जिनकी उम्र आज 50 -  55 की होगी उन्हें पता भी नहीं होगा कि कोई मंदिर था। इस बीच तीन पीढियां हुई होंगी। धीरे -धीरे मंदिर ही विस्मृति के गणित में चला गया।  किंतु ऐसे धर्मस्थलों का संस्कार स्मृतियां कभी समाप्त नहीं होने देता। पुराने लोग अपने परिवारों में या अन्य जगह इसकी चर्चा करते हैं और जब विषय सामने आता है तब लोग उन बातों को बताने लगते हैं। एक- दो लोगों ने पूरे मंदिर का नक्शा तक बता दिया। यह भी बताया कि खुलने पर दीवारों पर छह दीपक रखने का स्थान मिलेगा और वाकई मिला।मंदिर में बंद होने के समय चढ़ाए गए सिक्के भी मिले। मंदिर के एक कक्ष में मूर्तियां है और एक कमरा खाली है। इसके दो दरवाजे हैं। किस तरह उसे चारों तरफ से ढंका गया होगा इसकी कल्पना की जा सकती है। पूरब में स्थित मुख्य प्रवेश द्वार को लगभग 30 वर्ष पहले 4 फीट दूरी पर दीवार खड़ा कर बंद कर दिया गया। निकासी द्वार उत्तर और दक्षिण की ओर है जिन पर ताला लगा हुआ था। पाटा गया कूप दक्षिण द्वार के सामने था। सरायतरीन वाला मंदिर 15 फीट ऊंचा और 25 मीटर में बना है। इस पर पधान बुद्धसैन 1982 लिखा जा रहा है। शायद 1982 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।

धार्मिक पुस्तकों में संभल को सनातनियों या हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ क्षेत्र के रूप में वर्णित किया गया है। आज वहां अनेक मंदिरों का अस्तित्व नहीं है। यहां तक की श्मशान घाट को भी कब्जाए जाने की जानकारी आई है। स्कंदपुराण, विष्णु पुराण से लेकर कई ग्रंथों के उदाहरण दिए जा रहे हैं जिनमें कलयुग में भगवान विष्णु के कल्की अवतार वहां होने का उल्लेख है। जिस हरि मंदिर की महत्ता के विवरण अंग्रेजों के सर्वे से लेकर आईने अकबरी और बाबरनामा में है उसका अस्तित्व नहीं है। इस्लामी आक्रमण के काल में बाबर से लेकर मोहम्मद बिन तुगलक आदि द्वारा  हिंदू स्थलों को ध्वस्त करने के विवरण उपलब्ध हैं। स्वतंत्रता के बाद भी वहां मंदिर कब्जाए गए और लगभग 21 कूपों को बंद करने या कब्जा करने की बात सामने आई है। यह स्थिति जारी है तो मानना पड़ेगा कि उस मानसिकता के लोग आज भी हैं। योगी आदित्यनाथ द्वारा पिछले दिनों संभल से बांग्लादेश तक हिंसा करने वालों के अंदर बाबर का डीएनए बताने वाले बयान पर हंगामा मचा है। उन्होंने किसी आम मुसलमान के बारे में बात नहीं की। जो आज भी धर्मस्थलों पर कब्जा करना मजहबी दायित्व मानते हैं और कब्जे किए जगह की छानबीन तक पर मरने-मारने को उतारू हैं उन्हें क्या माना जाए? दुर्भाग्य है कि सेक्यूलरवाद के नाम पर नेता, एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवी जानते हुए भी कटु सच के विपरीत इसकी बात करने वाले या पीड़ित पक्ष को ही दोषी ठहराते हैं। संभल हिंसा में मृतकों के लिए छाती पीटने वाले  हिंसा करने वालों के विरुद्ध कोई बोलने को तैयार नहीं है।

इस कारण किसी समुदाय के लोगों का दुस्साहस कितना बढ़ता है इसका प्रमाण संभल में ही मिल रहे बिजली के अवैध कनेक्शन, मंदिरों के बंद होने और अतिक्रमणों से मिलता है। खग्गू सराय मोहल्ले में पांच मस्जिदों और इसके आसपास के लगभग ढाई सौ घरों में बरसों से कटिया लगाकर बिजली का उपयोग किया जा रहा था। संभव नहीं कि इसकी जानकारी प्रशासन या बिजली विभाग को नहीं हो। बावजूद  वातावरण ऐसा था कि कोई इनको पकड़ने, रोकने और प्रत्यक्ष कानूनी कार्रवाई का साहस नहीं कर पाया।  मस्जिद मजहबी स्थान है और पांच मस्जिदों में कटिया लगाकर बिजली लिए जा रहे थे तथा करीब ढाई सौ अन्य घरों में बिजली आपूर्ति हो रही थी। एक मस्जिद में चोरी की बिजली से 59 पंखे ,फ्रिज, वाशिंग मशीन, एसी, कूलर , और 25 अन्य बिजली के प्वाइंटों के उपयोग का मामला दर्ज हुआ है। कोई इसके विरुद्ध बोलने का साहस तक नहीं दिख रहा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 1978 के दंगों के न्याय को लेकर जैसा कड़ा बयान दिया है तथा सरकार की जैसी प्रतिबद्धता दिखी है उससे उम्मीद पैदा हुई है मुकदमों के बंद फाइलें खुलेंगी, नए सिरे से न्याय होगा और केवल संभल नहीं पूरे उत्तर प्रदेश में ऐसे उपासना या अन्य स्थलों का भी उद्धार होगा क्योंकि यह अकेली घटना नहीं है। जगह-जगह ऐसे मंदिरों के समाचार आने लगे हैं। 

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092 ,मोबाइल- 9811027208

मंगलवार, 24 दिसंबर 2024

सर गंगा राम अस्पताल ने रॉयल केयर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के साथ मिलकर पार्किंसंस और आवश्यक कंपन उपचार में MRgFUS तकनीकी का उपयोग कर एक नई क्रांति की शुरुआत की

संवाददाता
नई दिल्ली। सर गंगा राम अस्पताल, जो दिल्ली में एक प्रमुख तृतीयक देखभाल सुपर स्पेशलिटी अस्पताल है, ने रॉयल केयर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (RCSSH), कोयंबटूर के साथ मिलकर एक ऐतिहासिक सहयोग की घोषणा की है। इस सहयोग का उद्देश्य कार्यात्मक न्यूरो विकारों, जैसे कि आवश्यक कंपन और पार्किंसंस रोग से पीड़ित मरीजों के लिए राज्य-आधारित मैग्नेटिक रेजोनेंस गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाउंड (MRgFUS) थैलामोटोमी उपचार का परिचय कराना है।
यह एक अग्रणी संयुक्त पहल है, जो उत्तरी भारत में पहली बार उपलब्ध हो रही है। सर गंगा राम अस्पताल आवश्यक बुनियादी ढांचा, जिसमें अत्याधुनिक 3 टेस्ला MRI स्कैनिंग प्रणाली और विशेषज्ञ चिकित्सा कर्मी शामिल हैं, प्रदान करेगा। जबकि रॉयल केयर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल अपनी विशाल अनुभव और ExAblate Neuro डिवाइस प्रदान करेगा, जिसका उपयोग 150 से अधिक सफल प्रक्रियाओं में किया जा चुका है।
MRgFUS प्रक्रिया, जिसे भारत के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) और अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन (USFDA) द्वारा मंजूरी प्राप्त है, एक गैर-आक्रामक उपचार विकल्प है जो मस्तिष्क के उप-मिलीमीटर क्षेत्रों को सटीक रूप से लक्षित करने की अनुमति देता है, ताकि आवश्यक कंपन और पार्किंसंस रोग के लक्षणों को कम किया जा सके। यह उन्नत उपचार उन मरीजों के लिए दीर्घकालिक राहत प्रदान करने के लिए सिद्ध हुआ है, जिन्होंने पारंपरिक उपचारों के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह प्रक्रिया उच्च योग्य न्यूरोसर्जनों और न्यूरोलॉजिस्टों की टीम द्वारा दी जाएगी, जिन्होंने फोकस्ड अल्ट्रासाउंड तकनीक में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
स्वास्थ्य सेवा उत्कृष्टता में एक कदम आगे
सिर गंगा राम अस्पताल पिछले 70 वर्षों से अपने मरीजों को सहानुभूति और उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में अग्रणी रहा है। अस्पताल उन्नत प्रौद्योगिकी और नवोन्मेषी उपचारों में निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो इस सहयोग के माध्यम से रॉयल केयर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के साथ दिखाई देता है। भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में अग्रणी पहल करने की मजबूत परंपरा के साथ यह सहयोग सर गंगा राम अस्पताल की विरासत को बढ़ाता है, जो विश्वस्तरीय देखभाल और उन्नत चिकित्सा समाधान प्रदान करने में अग्रणी है।
MRgFUS प्रक्रिया पहले ही RCSSH में सफलतापूर्वक लागू की जा चुकी है, जो दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका में 150 से अधिक MRgFUS थैलामोटोमी प्रक्रियाओं को पूरा करने वाला पहला अस्पताल है। इस क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता और नेतृत्व सर गंगा राम अस्पताल के मरीजों को उच्चतम स्तर की देखभाल प्रदान करने के लिए सहायक होगा।
विश्व-स्तरीय चिकित्सा विशेषज्ञता
दोनों अस्पताल सबसे अच्छे रोगी देखभाल के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध चिकित्सा विशेषज्ञों की टीम द्वारा प्रदान की जाती है। इन विशेषज्ञों को चिकित्सा क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हैं और वे यह सुनिश्चित करने के लिए समर्पित हैं कि मरीजों को उपलब्ध सबसे उन्नत और प्रभावी उपचार प्राप्त हो।
सर गंगा राम अस्पताल और रॉयल केयर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के बीच यह सहयोग, आवश्यक कंपन और पार्किंसंस रोग से पीड़ित मरीजों के लिए जीवन को बदलने वाले लाभ प्रदान करने का वादा करता है, जो दीर्घकालिक राहत और बेहतर जीवन गुणवत्ता की ओर एक रास्ता प्रदान करेगा।
डॉ. अजय स्वरोप, चेयरमैन, सर गंगा राम अस्पताल ने कहा, “मुझे गर्व और संतोष है कि हम इस उन्नत प्रौद्योगिकी को सिर गंगा राम अस्पताल में लाने में सक्षम हुए हैं। यह गंभीर गति विकारों से पीड़ित मरीजों को लाभ पहुंचाएगा और हमारे मरीजों के लिए नवीनतम तकनीकी समाधानों को प्राप्त करने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण होगा।
सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली के बारे में
सर गंगा राम अस्पताल भारत के सबसे विश्वसनीय और प्रसिद्ध तृतीयक देखभाल अस्पतालों में से एक है, जो स्वास्थ्य सेवा की एक व्यापक श्रृंखला प्रदान करता है। 70 वर्षों से अधिक के अपने इतिहास में, अस्पताल ने नवोन्मेषी उपचारों और उन्नत प्रौद्योगिकियों को पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके विशेषज्ञ डॉक्टरों, सर्जनों और स्वास्थ्य पेशेवरों की टीम उच्चतम मानकों के देखभाल को सहानुभूति और ईमानदारी के साथ प्रदान करने के लिए समर्पित है।
रॉयल केयर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, कोयंबटूर के बारे में
रॉयल केयर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, कोयंबटूर एक 550-बेड वाला अस्पताल है, जो अपनी अत्याधुनिक सुविधाओं और उन्नत चिकित्सा प्रौद्योगिकियों के लिए प्रसिद्ध है। यह क्रांतिकारी चिकित्सा प्रक्रियाओं को पेश करने में अग्रणी रहा है, जिसमें दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका में 150 से अधिक MRgFUS थैलामोटोमी प्रक्रियाओं को पूरा करने वाला पहला अस्पताल होना शामिल है।

"तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे"


आज दिसम्बर की चौबीस तारीख है, आज से 100 साल पहले आज ही के दिन, 24 दिसम्बर 1924 को सुरों के बेताज बादशाह, आवाज़ के बेहतरीन जादूगर, मोहम्मद रफ़ी साहब की पैदाइश अमृतसर के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुई थी....

..... रफ़ी साहब के परिवार का गीत संगीत से कोई ताल्लुक़ नही था... लेकिन बचपन में उनके घर के सामने एक फ़कीर आकर बहुत मधुर आवाज़ में नात पाक वगैरह पढ़ा करता था, जिसे सुनना रफ़ी साहब को बहुत पसंद था, और फ़क़ीर के उस गीत की नक़ल वो बचपन में ही बहुत अच्छी किया करते थे ... उनको नन्ही उम्र में इतना बेहतरीन गाते देखकर उनके बड़े भाई ने उनको संगीत सीखने के लिए प्रोत्साहित किया.... और इस तरह फ़िल्म इंडस्ट्री को एक बेहतरीन नगीना मिल गया....!!

रफ़ी साहब की आवाज़ में क्या जादू था.. ये मैंने तब जाना जब इंटर पास करने के बाद सुकून से छुट्टियां बिताते हुए मैंने एफ़एम सुनने का मामूल बना लिया था... तब मैंने जाना कि आख़िर दुनिया रफ़ी साहब की दीवानी क्यों है, उनकी आवाज़ हमेशा ऐसी रही जैसे कोई 20-22 साल का गबरु नौजवान बोलता हो, उनके सुरों की गहराई और आलाप की ऊंचाइयां किसी भी दर्दमंद इंसान का कलेजा हलक में ले आने को काफी है।
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