शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

इतिहास की भूलों का अंत और नए इतिहास का निर्माण

 
अवधेश कुमार

तो अब अनुच्छेद 370 इतिहास बन गया और उसके साथ 35 ए अपने-आप मर गया। जब राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह अपन हाथों में विधेयकों और संकल्पों की प्रतियां लेकर बोलने को खड़े हुए थे शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि वाकई वो इतिहास बदलने का दस्तावेज लेकर आए हैं। जैसे ही शाह ने कहा कि महोदय, मैं संकल्प प्रस्तुत करता हूं कि यह सदन अनुच्छेद 370(3) के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी की जाने वाली निम्नलिखित अधिसूचनाओं की सिफारिश करता है हंगामा आरंभ हो गया। एक ओर वाह-वाह तो दूसरी ओर विरोध। उन्होंने हंगामे के बीच ही पढ़ा कि संविधान के अनुच्छेद 370(3) के अंतर्गत भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 खंड 1 के साथ पठित अनुच्छेद 370 के खंड 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति संसद की सिफारिश पर यह घोषणा करते हैं कि यह दिनांक जिस दिन भारत के राष्ट्रपति द्वारा इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए जाएंगे और इसे सरकारी गैजेट में प्रकाशित किया जाएगा उस दिन से अनुच्छेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे, सिवाय खंड 1 के। हालांकि लोकसभा में हंगामा नीं हुआ। जिनको भी धारा 370 के अतीत और प्रावधानों तथा उसके परिणामों का पता है उनके लिए यह असाधारण तथा इतिहास को पूरी तरह बदल देने वाला कदम है। जम्मू कश्मीर को तीन भागों में बांटकर लद्दाख को अलग तथा जम्मू कश्मीर को केन्द्रशासित बनाने का फैसला भी अभूतपूर्व है।

यह आम धारणा थी कि धारा 370 को जम्मू-कश्मीर से हटाने का फैसला करने के लिए संसद का बहुमत पर्याप्त नहीं होगा। चूंकि इसे जम्मू कश्मीर की संविधान सभा ने भी पारित किया था इसलिए उसका कोई रास्ता निकालना होगा। संविधानविदों ने साफ कर दिया था कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 के उपबंध (3) के तहत अनुच्छेद 370 को खत्म करने का अधिकार है। शाह ने सदन में धारा 370 के खंड 3 का उल्लेख करते हुए कहा कि राष्ट्रपति महोदय ने एक नोटिफिकेशन निकाला है, कॉन्स्टिट्यूशन ऑर्डर निकाला है, जिसके अंदर उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का मतलब जम्मू-कश्मीर की विधानसभा है। चूंकि संविधान सभा तो अब है नहीं। इसलिए, संविधान सभा के अधिकार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में निहित होते हैं। चूंकि वहां राज्यपाल शासन है, इसलिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा के सारे अधिकार संसद के दोनों सदन के अंदर निहित है। राष्ट्रपति के इस आदेश को साधारण बहुमत से पारित किया जा सकता है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। इसके पहले कांग्रेस पार्टी 1952 में और 1962 में धारा 370 में इसी तरीके से संशोधन कर चुकी है। इस तरह इसको  असंवैधानिक कहना गलत है।

वस्तुतः इस अनुच्छेद ने जम्मू-कश्मीर को अजीब तरह से विशेष अधिकारों वाला बना दिया था। उसका अलग संविधान था। जम्मू कश्मीर ने 17 नवंबर 1956 को अपना संविधान लागू किया था। इसका झंडा भी अलग था। कश्मीर में धारा 356 का भी इस्तेमाल नहीं हो सकता था। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी। भारत का अलग और कश्मीर का अलग। 35 ए के कारण जम्मू कश्मीर को अपनी नागरिकता देने का अलग से अधिकार था। भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों-रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती थी। इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी की जरुरत पड़ती थी।। शहरी भूमि कानून (1976) भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था। जम्मू-कश्मीर के घोषित नागरिकों के अलावा कोई जमीन नहीं खरीद सकते थे। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता था। जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू होता था। कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी। यदि कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती थी, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी। धारा 370 के चलते कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी। जम्मू-कश्मीर में पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं था। जम्मू-कश्मीर में काम करने वाले चपरासी को आज भी ढाई हजार रूपये ही बतौर वेतन मिल रहे थे।  कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों को आरक्षण नहीं मिलता था। जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं था। वोट का अधिकार सिर्फ वहां के स्थायी नागरिकों को ही था। दूसरे राज्य के लोग यहां वोट नहीं दे सकते और न चुनाव में उम्मीदवार बन सकते थे। सूचना का अधिकार (आरटीआई), शिक्षा का अधिकार (आरटीई) लागू नहीं होता था। यहां सीएजी भी लागू नहीं था। बताने की आवश्यकता हीं कि अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में ये सारी स्थितियां पूरी तरह खत्म हो गईं हैं। अब जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू होगा। अलग झंडा नहीं होगा। यानी राष्ट्रध्वज तिरंगा रहेगा। दोहरी नागरिकता नहीं होगी। यहां पर राष्ट्रपति शासन लागू होगा। जम्मू कश्मीर पुलिस अब राज्यपाल को रिपोर्ट करेगी। अब देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीद पाएगा।  नरेंद्र मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद भारत का कोई भी नागरिक वहां के मतदाता और प्रत्याशी बन सकते हैं। कश्मीर विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश होगा। विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह 5 साल होगा।

लोगों के अंदर हमेशा 370 को लेकर गलतफहमी पैदा की गई। कहा गया कि जम्मू कश्मीर का भारत में विलय विशेष था और इस कारण उसे विशेष अधिकार दिया गया। उनके साथ कुछ विशेष वायदा किया गया। आप 26 अक्टूबर 1947 का विलय पत्र देख लीजिए। वह हूबहू वही है जो दूसरे रियासतोें के विलय के लिए बना था। तो किसके और कब वायादा किया गया? गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया था जो बाद में धारा 370 बनी। लेकिन यह कश्मीर में भारत के विलय के दो वर्ष बाद की बात थी। यह शेख अब्दुल्ला को अनावश्यक विशेष महत्व देने का परिणाम था। डॉ. अंबेदकर ने इसे देश की एकता और अखंडता के खिलाफ बताकर स्वयं को अलग कर लिया। नेहरु जी के कहने पर शेख अब्दुल्ला अंबेदकर के पास गए। अंबेदकर ने उन्हें डांटा कि तुम चाहते हो कि शेष भारत के लोगों को कोई अधिकार जम्मू कश्मीर में न मिले और तुम्हें शेष भारत में सारे अधिकार मिल जाए। नेहरु जी की जिद के कारण सरदार पटेल ने सदस्यों का समझाबुझाकर इसे अस्थायी एवं संक्रमणकालीv प्रावधान के रुप में रखवा दिया। यह नेहरु जी कृपा थी कि 1951 में राज्य को अपना अलग संविधान सभा गठित करने की अनुमति दी गई। नवंबर 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया। जो प्रावधान अस्थायी है उसे कब तक लागू रखा जाना चाहिए? अनंतकाल तक रखना तो संविधान निर्माताओं की भावनाओं का ही अपमान होता। यह जम्मू कश्मीर के भारत के साथ सम्पूर्ण रुप से एकाकार होने की मार्ग की बाधा बन गया था। साथ ही वहां के नेताओं को इस मायने में निरंकुश बना दिया था कि वे चाहे जितना भ्रष्टाचार करें उनकी गर्दन तक हाथ पहुंचाना मुश्किल था। वह पहले तीन और बाद मे दो परिवारों की जागीर जैसा हो गया था। इस तरह इतिहास के भयंकर भूल का परिमार्जन हुआ है और नए इतिहास निर्माण की शुऊआत हुई है।

कुप्रबंधन के कारण जम्मू कश्मीर जिस हालत में पहंच गया है उसमें उसकी वर्तमान राजनीतिक एवं प्रशासनिक स्थिति बनाए रखना भी उचित नहीं होता। लद्दाख के लोग वर्षों से केद्रशासित प्रदेश बनाने की मांग कर रहे थे। जम्मू के लोग भी कश्मीर से अलग होना चाहते थे। यह आम शिकायत थी और इसमें सच्चाई भी थी कि घाटी के नेताओं ने जम्मू और लद्दाख के साथ लगातार अन्याय किया। आप सरकार नौकरियों से लेकर विकास की राशि खर्च होने का अनुपात देख लीजिए आपको सच पता चल जाएगा। वैसे भी जम्मू कश्मीर की समस्या का समाधान करना है तो केन्द्र की भूमिका वैधानिक रुप से प्रभावी होनी चाहिए। इसलिए पुनर्गठन के तहत राज्य को दो भागों में बांटकर केन्द्रशासित प्रदेश में बदलने का निर्णय कश्मीर के भविष्य की दृष्टि, राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद  तथा लोकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए बिल्कल उचित है। अब जम्मू कश्मीर विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश होगा जबकि लद्दाख चंडीगढ़ की तरह बिना विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश रहेगा। जम्मू और कश्मीर में दिल्ली और पुडुचेरी की तरह विधानसभा होगी। लद्दाख में चंडीगढ़ की तरह मुख्य आयुक्त होगा। जब स्थिति अनुकूल हो जाएगा तो फिर जम्मू कश्मीर को राज्य बना दिया जाए।

 इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा की जा चुकी है। लेकिन उच्चतम न्यायालय संसद के विरुद्ध जाकर इसे पुनर्बहाल करने का आदेश देगा यह मानने का कोई कारण नहीं है। भाजपा पर लंबे समय से आरोप लगता था कि वह अपने घोषणा पत्र में वायदा तो करती है, पर 370 हटाने के लिए कभी पहल तक नहीं करती। 35 ए को भी नहीं हटाती। तो एक बार में ही दोनों खत्म और जम्मू कश्मीर पर पंजा जमाये बैठे राजनीतिक नेताओं के वर्चस्व का भी अंत। इस मायने में जम्मू कश्मीर का वास्तविक विलय अब हुआ है। तो इससे इतिहास बदला और नया इतिहास निर्माण हुआ। इतिहास निर्माण की हर प्रक्रिया चुनौती भरी होती है। भारत के मस्तकपर 370 जैसे घाव का औपरेशन हो गया है। साहस और संतुलन के साथ आगे के कदम उठाने होंगे।

अवधेश कुमार, ईः30,गणेश नगर,पांडव नगर कौम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाष-01122483408, 9811027208

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