शुक्रवार, 29 मार्च 2019

भारत बना अंतरिक्ष सामरिक महाशक्ति

 अवधेश कुमार

27 मार्च इतिहास के महत्वपूण अध्याय में दर्ज हो गया हे। भारत ने जैसे ही 300 कि. मी. पृथ्वी की कक्षा में लाइव लियो उपग्रह को निशाना बनाकर ध्व्सत किया अंतरिक्ष सामरिक क्षेत्र की चौथी महाशक्ति बन गया। अभी तक यह क्षमता अमेरिका, रुस और चीन को हासिल थी। जब 11 जनवरी 2007 को चीन ने धरती से छोड़े गए मध्यम दूरी के बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र द्वारा अंतरिक्ष में 537 मिल यानी 865 किलोमीटर पर स्थित अपने मौसम संबंधी पुराने उपग्रह को नष्ट किया तो दुनिया में हंगामा मचा था। 12 वर्षों बाद भारत ने वही क्षमता हासिल की है। हालांकि राजनीति ने भारत की इस महान वैज्ञानिक उपलब्धि को थोड़ा फीका किया हे लेकिन इससे जो कुछ हो गया उसका महत्व खत्म नहीं हो जाता। दुनिया के प्रमुख देश भौचक्क हैं कि आखिर भारत ने ऐसा कैसे कर लिया। जिस तरह 1998 में नाभिकीय परीक्षण हो जाने के पहले दुनिया को भनक तक नहीं लगी ठीक वैसे ही इस मामले में हुआ है।

यह कोई सामान्य उपलबिध नहीं हे। लाइव उपग्रह तीव्र गति से अपने कक्ष में चक्कर लगाते रहते हैं। पृथ्वी की अपनी गति है। उसमें निशाना लगाना आसान नहीं होता। यह वैसे ही है जैसे रायफल से निकली हुई गोली को दूसरी गोली से निशाना बनाना। सिर्फ तीन मिनट में सफलतापूर्वक ऑपरेशन पूरा किया गया। भारत ने ऐसा करके दुनिया में अंतरिक्ष सामरिक क्षमता की अपनी धाक जमा लिया है। उपग्रह रोधी मिसाइल या ए सैट यानी एंटी सेटेलाइट मिसाइल विकसित करना सामान्य होता तो फ्रांस रुस जर्मनी जापान जैसे देश ऐसा कर चुके होते थे। इसके लिए भारत को कहीं से भी तकनीकी सहयोग नहीं मिलना था। लेकिन हमारे वैज्ञानिकों ने सम्पूर्ण स्वदेशी तकनीक और अुसंधान पर आधारित अग्नि मिसाइल और अडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम को मिलाकर ए सैट मिसाइल प्रणाली तैयार कर दिया। आम मिसाइल में वारहेड अपने लक्ष्य से टकराते हैं और विस्फोट में नष्ट कर देते हैं। भारत ने एंटी सेटेलाइट मिसाइल यानी उपग्रह रोधी मिसाइल में बिना विस्फोटक यानी बारुद के उपग्रह को नष्ट करने का काम किया है। इसमें काइनेटिक उर्जा का उपयोग हुआ जिसमें केवल भौतिक प्रतिक्रिया से उपग्रह नष्ट होते हैं। तो हमारे पास उपग्रह रोधी मिसाइल आ गया है। वैसे आजतक किसी भी युद्ध में इस तरह के हथियारों का उपयोग नहीं किया गया है। लेकिन अब यह जरुरी हो गया है। इस श्रेणी के मिसाइल का उपयोग केवल उपग्रह नष्ट करने तक ही सीमित नहीं है। इससे आकाश से लेकर धरती पर किसी भी गतिमान अस्त्र का पीछा कर उसे नष्ट करने की क्षमता हमारे पास आ गई है। उपग्रह काफी छोटे होते हैं। जब उनको नष्ट किया जा सकता है तो उस तरह की छोटा कोई भी लक्ष्य वेधा जा सकता है।

वस्तुतः 2012 में जब हमने अग्नि 5 मिसाइल का परीक्षण किया उसके बाद ही ऐसा करने की क्षमता आ गई थी। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के पूर्व अध्यक्ष वी. के. सारस्वत तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व अध्यक्ष माधवन नायर ने कहा है कि तत्कालीन सरकार के साहस न दिखाने के कारण भारत को इतना समय लगा। बकौल सारस्वत उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सहालकार एवं राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सामने पूरा प्रेंजेंटेशन दिया था। बहुत ध्यान से सुना देखा गया लेकिन हरि झंडी नहीं मिली। सरकार बदलने के बाद यही प्रेजेंटेशन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने प्रस्तुत किया गया तो उन्होंने आगे बढ़ने की अनुमति दे दी और परिणाम सामने है। भारत ने मिशन शक्ति कोड नाम से इस पर काम आरंभ किया। छः महीने से 300 वैज्ञानिक इस मिशन में लगे थे। देश की सुरक्षा और सामरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए बहुत साहस की आवश्यकता है। भारत अंतरिक्ष में हथियार होड़ का पक्षधर कभी नहीं रहा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने संबोधन में कहा कि मैं विश्व समुदाय को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमने जो यह नई क्षमता हासिल की है, वह किसी के विरुद्ध नहीं है। भारत अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ के विरुद्ध रहा है। हम अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण विकास के लिए उपयोग करने की नीति पर कायम हैं। हम कभी भी युद्ध को बढ़ावा नहीं दंेगे। हमारा कदम बिल्कुल सुरक्षात्मक है। वास्तव में यह संक्षिप्त अंतरिक्ष सामरिक डॉक्ट्रिन यानी सिद्धांत हो गया। भारत के जिम्मेवार रिकॉर्ड को देखते हुए पाकिस्तान के अलावा कोई शंका उठा भी नहीं सकता है। चीन ने जब ऐसा किया तो जापन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। अमेरिका ने कहा था कि चीन का कदम शांति की उसकी घोषित नीति के अनुमूल नहीं है। तो यह भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि एवं प्रमुख देशों के साथ विश्वसनीय संबंधों की परिणति है कि तीखी प्रतिक्रिया हमारे खिलाफ नहीं आ रही है।

यह सुरक्षात्मक, क्षेत्रीय-अंतरराष्ट्रीय सामरिक शक्ति संतुलन तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से भी बहुआयामी उद्देश्यों वाला कदम है। भारत अंतरिक्ष की एक प्रमुख शक्ति है। अलग-अलग उपयोगों के लिए हमारे उपग्रह अंतरिक्ष में सक्रिय हैं। जीवन के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उपग्रहों की भूमिका है और हमारे उपग्रह रक्षा, आपदा प्रबंधन, टेलीविजन, मोबाइल, रेडियो, मनोरंजन, कृषि, मौसम की जानकारी, नेविगेशन, शिक्षा, मेडिकल आदि हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। इतने विस्तार के बाद इनकी सुरक्षा व्यवस्था आवश्यक है। जब 12 वर्ष पहले चीन ने यह साबित कर दिया कि वह अंतरिक्ष में किसी भी मिसाइल को मार गिरा सकता है तो फिर हम आंखें मूंदकर नहीं रह सकते। हमें अपने उपग्रहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य था। जासूसी के लिए भी उपग्रहों का इस्तेमाल होता है। अब कोई हमारे क्षेत्र में ऐसा साहस नहीं कर पाएगा। भारत अनेक देशों का उपग्रह प्रक्षेपित करता है। उनके लिए संदेश है कि समय आने पर भारत उनके उपग्रहों की रक्षा भी कर सकता है। एशिया में चीन को अकेले इस मामले मे महाशक्ति रहने देना शक्ति संतुलन के सिद्धांत के विपरीत है। भारत सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए प्रयासरत है तो उसे हर दृष्टि से अपनी क्षमता दर्शाने की आवश्यकता है। वर्तमान विश्व व्यवस्था में आर्थिक विकास के साथ सामरिक क्षमता ही महाशक्ति बनकर वैश्विक भूमिका निभाने की अर्हंता हो चकी है। अब भारत जल, नभ, थल के साथ अंतरिक्ष की सामरिक क्षमता भी हासिल कर चुका है। नाभिकीय ताकत तो हम हैं हीं।

कहने का तात्पर्य यह कि भारत ने इस उपलब्धि से अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल किया है। इससे राष्ट्र का अपनी क्षमता के प्रति आत्मविश्वास बढ़ता है तथा गौरवबोध होता है। तो यह क्षण भारत के प्रति आत्मगौरव का बोध कराने वाला है जिसे राजनीति मलीन कर रही है। राजनीति को परे रखकर देश की महान उपलब्धि में सहभागी होने की बजाय हम आपस में आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हैं। विपक्षी दलों की समस्या है कि प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा क्यांें की? दुर्भाग्यपूर्ण आपत्ति है। प्रधानमंत्री को छोड़कर ऐसे मामलों पर देश और दुनिया को संबोधित कौन कर सकता था? इसमें अपनी उपलब्धियों को बताने के साथ भारत की अंतरिक्ष सामरिक नीति के बारे में दुनिया के आश्वस्त भी करना था। यह भूमिका राजनीतिक नेतृत्व ही निभा सकता था। किंतु भारत की राजनीति जिस अवस्था में पहुंच गई है उसमें इससे परे कुछ सकारात्मक उम्मीद कर भी नहीं सकते। चीन ने जब यह कारनामा किया तो तो वहां से कभी एक शब्द विरोध मे ंनहीं आया। आ भी नहीं सकता था। अमेरिका ने 26 मई 1958 से 13 अक्टूबर 1959 के बीच 12 परीक्षण किए, लेकिन ये सभी असफल रहे थे। वहां किसी ने प्रश्न नहीं उठाया कि ऐसा क्यों हो रहा है। रुस जब सोवियत संघ था तो उसने अंतरिक्ष की सामरिक महाशक्ति बनने का अभियान चलाया। वह भी आरंभ में सफल नहीं हुआ। 1967 से 1982 तक उसने ऐसे अनेक सफल परीक्षणें किए। इस बीच अमेरिका ने भी सफलतायें हासिल कीं। खासकर रोनाल्ड रेगन के के काल में तो लगातार परीक्षण हुए। अमेरिका द्वारा अंतिम बार 13 सितंबर 1985 को उपग्रह विरोधी परीक्षण किया गया था। तत्कालीन दोनों महाशक्तियों की भूमिका से ऐसा लगने लगा मानो अंतरिक्ष युद्ध आरंभ हो जाएगा। आज अंतरिक्ष में उस तह शस्त्र की होड़ नहीं है तो उसका कारण इन देशों का संतृप्त अवस्था में पहुंच जाता है। अंतरिक्ष का इतना विकास हो चुका है कि दुनिया के अतीत और वर्तमान चरित्र को देखते हुए हम यह मानकर नहीं चल सकते कि कभी वहां जोर आजमाइश नहीं होगी। इसलिए हमें हर स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092,दूरभाषः0112483408, 9811027208

 

 

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