शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

गति पकड़ चुकी है अर्थव्यवस्था

अवधेश कुमार

जिस तरह का राजनीतिक विमर्श में देश में चल रहा है उसे स्वीकार कर लिया जाए तो आम जनता के मानस पटल पर यही अंकित होगा कि भारत हर मामले में अंधकार की गर्त में जा रहा है। वास्तव में देश की असली तस्वीर राजनीतिक वाद-प्रतिवाद से परे है। अगर दुनिया के प्रमुख संस्थानों के आकलनों को आधार बनाएं तो भारत का आर्थिक आधार इतना मजबूत हो रहा है कि वह कुछ दशकों में महाशक्ति की कतार मेें आ सकता है। हालांकि हम वर्तमान अंतर्राष्टीय आर्थिक और वित्तीय ढांचे को अंतिम रुप में विश्व के लिए कल्याणकारी नहीं मानते। भारत ने उसी ढांचे के साथ समायोजन करने की दिशा में जुलाई 1991 से कदम बढ़ाया और यह प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इसलिए हमें मूल्यांकन इसी ढांचे के अंतर्गत करना होगा। जो राजनीतिक दल यह माहौल बना रहे हैं कि भारत तो विकास में पिछड़ गया, हर ओर हाहाकार है, अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गया.....वे शत-प्रतिशत निराधार है। ध्यान रखिए, वो सब इस ढांचे से बाहर की बात नहीं कर रहे हैं। आज कोई भी राजनीतिक दल बाजार आधारित वैश्विक अर्थव्यस्था से अलग सोच रखती ही नहीं। हम यह तो कह सकते हैं कि जहां हमें होना चाहिए वहां हम नहीं हैं, किंतु सच यह है कि अर्थव्यवस्था के किसी मानक पर इस समय भारत की स्थिति निराशाजनक नही है। 

 इस समय वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) का जो आर्थिक आंकड़ा है वह हर किसी की अपेक्षा से ज्यादा बेहतर है। सरकार भी शायद यह उम्मीद नहीं कर रही थी कि देश का सकल घरेलू उत्पाद 8.2 प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है। रॉयटर्स के अर्थशास्त्रियों ने इस तिमाही 7.6 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान व्यक्त किया था। यह पिछले 2 साल में सबसे ऊंची विकास दर है। इससे पहले 2015-16 की जनवरी-मार्च तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में सर्वाधिक तेज वृद्धि हुई थी। उस दौरान विकास दर 9.3 प्रतिशत रही थी। पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही मंे तो विकास दर 5.59 प्रतिशत तक गिर गई थी। यह भी ध्यान रखिए कि विकास दर लगातार चौथी तिमाही में बढ़ी है। पिछली तिमाही यानी जनवरी से मार्च में विकास 7.7 प्रतिशत रही थी। अक्टूबर से दिसंबर 2017   में 7 प्रतिशत, जुलाईसे सितंबर 2017 में   6.3 प्रतिशत थी। इससे तुलना करिए कि और फिर निष्कर्ष निकालिए हम आगे बढ़ रहे हैं या पीछे खिसक रहे हैं।

इस विकास दर का महत्व यह है कि दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था का भारत का जो पद हासिल था वह बिल्कुल सुरक्षित हो गया है। भारत के बाद चीन का स्थान है। चीन ने दूसरी तिमाही में 6.7 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है। चीन और भारत मेें अंतर यह है कि वहां जनवरी से दिसंबर का वित्तीय कैलेंडर लागू है, जबकि भारत में अप्रैल से मार्च का वित्तीय कैलेंडर चलता है। अभी भी चीन की अर्थव्यवस्था का आकार हमसे बहुत ज्यादा है जहां तक पहुंचने में हमें काफी पसीना बहाना होगा। यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि अर्थशास्त्रियांे के सुझाव पर मोदी सरकार ने 2015 में सकल घरेलू उत्पाद की गणना के लिए आधार वर्ष 2004-05 से बदलकर 2011-12 कर दिया था। तो आलोचक कहेंगे कि उस आधार वर्ष से विकास दर इतना हुआ नहीं। किंतु दुनिया इस बदलाव को स्वीकार कर चुकी है। हर देश में ऐसा होता है जब अर्थव्यवस्था के मापन का आधार वर्ष कुछ अंतराल पर बदला जाता है। हमारी अर्थव्यस्था का आकार 2011-12 की स्थिर कीमतों के आधार पर 2018-19 की पहली तिमाही में करीब 33.74 लाख करोड़ रुपये है। यह पिछले साल की पहली तिमाही में 31.18 लाख करोड़ रुपये थी। यही 8.2 प्रतिशत की विकास दर दर्ज होने का कारण है। वर्तमान वित्त वर्ष की पहली तिमाही में ग्रॉस वेल्यू एडेड (जीवीए) यानी सकल मूल्य सवंर्धित विकास दर 8 प्रतिशत रही है। सकल घरेलू उत्पाद के माध्यम से उपभोक्ताओं और मांग के दृष्टिकोण से किसी देश की आर्थिक गतिविधियों की तस्वीर बनती है जबकि इसके उलट जीवीए के जरिए निर्माताओं या आपूर्ति के लिहाज से आर्थिक गतिविधियों की तस्वीर।

 अब यह समझें कि इस विकास दर के पीछे किन-किन क्षेत्रों का योगदान है। यह जानना इसलिए जरुरी है कि विकास दर अर्थव्यस्था की समस्त गतिविधियों को समेटे होता है। वर्तमान वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 7 प्रतिशत से ज्यादा की विकास दर देने वालों में विनिर्माण, निर्माण, बिजली, गैस, जल आपूर्ति, रक्षा, अन्य उपयोगी सेवाएं आदि क्षेत्र शामिल हैं। विनिर्माण में सबसे ज्यादा 13.5 प्रतिशत की विकास दर रही। निर्माण में 8.7 प्रतिशत की विकास रही। ये दोनों आंकड़े पिछले सारे अनुमानों से बहुत ज्यादा हैं। विनिर्माण की विकास दर पिछले साल 1.8 प्रतिशत रही। हां, खनन क्षेत्र में 0.1 प्रतिशत की ही बढ़ोत्तरी हुई। किंतु भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा लोगों का पालन करने वाली कृषि में 5.3 प्रतिशत विकास दर्ज की गई। यह बहुत बड़ी बात है। पिछले साल इस अवधि में कृषि विकास दर 03 प्रतिशत तक सिमटी थी। वित्तीय क्षेत्र 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा। विनिर्माण क्षेत्र का मतलब अर्थशास्त्री वेहतर समझते हैं। इसक मतलब अर्थव्यवस्था के वर्तमान ढांचे के कई महत्वपूर्ण अंगों का आगे बढ़ने की दिशा में गतिशील होना है। बुनियादी उद्योगों का का विकास दर 6. 6 प्रतिशत रहा है। इसमें कोयला, सीमेंट, रिफायनरी उत्पाद और उर्वरकों का योगदान है। पिछले साल जुलाई में बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर 2.9 प्रतिशत थी।

अर्थव्यवस्था के इतने महत्वपूर्ण क्षेत्र यदि गतिशील हैंं तो इसका अर्थ यह है कि देश में व्यापक पैमाने पर रोजगार सृजन भी हुआ है। विनिर्माण और निर्माण दोनों मिलाकर संगठित क्षेत्र में सबसे ज्यादा रोजगार देते हैं। बिना व्यक्तियों के काम किए तो इसकी वृद्धि हुई नहीं होगी। इसके साथ देश की कर आय भी जुड़ी है। कृषि का तो रोजगार से सीधा लेना-देना है। बुनियादी क्षेत्र तभी गतिशील होता है जब उसकी मांग बढ़ती है। और मांग का मतलब है अन्य क्षेत्रों का तेज विकास। कहने का अर्थ यह अर्थव्यवस्था की तस्वीर हाहाकार और छाती पीट से बिल्कुल अलग है।

ऐसा नहीं है कि दुनिया हमें स्वीकार नहीं रही। दो उदाहरण देखिए। पिछले 11 जुलाई को विश्व बैंक ने यह रिपोर्ट दिया कि भारत फ्रांस को पीछे छोड़कर दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। फ्रांस की अर्थव्यवस्था 2017 में 2.58 खरब डॉलर (177 लाख करोड़ रुपए) थी। भारत की अर्थव्यवस्था इससे ज्यादा 2.59 खरब डॉलर (178 लाख करोड़ रुपए) रही। यह पिछले साल की बात है जब नोटबंदी और जीएसटी के आरंभिक चोट से देश धीरे-धीरे उबर रहा था। वर्ल्ड बैंक ग्लोबल इकोनॉमिक्स प्रॉस्पेक्टस रिपोर्ट यानी विश्व बैंक वैश्विक आर्थिक संभावनाएं रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी और फिर जीएसटी के बाद आई मंदी से भारत की अर्थव्यवस्था उबर रही है। जाहिर है, इस वर्ष के अंत तक हमारी अर्थव्यवस्था का आकार और बढ़ेगा। हालांकि भारत की आबादी 134 करोड़ और फ्रांस की 6.7 करोड़ है। विश्व बैंक ने कहा है कि आबादी के कारण भारत के मुकाबले फ्रांस में प्रति व्यक्ति आमदनी 20 गुना ज्यादा है। विश्व बैंक ने यह भी कहा है कि भारत 2032 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। रिपोर्ट तैयार करने वाले विश्व बैंक के निदेशक अहयान कोसे के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है और इसमें टिकाऊ विकास देने की क्षमता है। अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी और निवेश बढ़ने से भारत का सकल घरेलू उत्पाद मजबूत हुआ है। एक अन्य रिपोर्ट वर्ल्ड पावर्टी क्लॉक औफ ब्रुकिंग्स की आई है। इसमें विश्व भर की गरीबी का आकलन है। इसमें कहा गया है कि अब भारत दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब जनसंख्या वाला देश नहीं है। भारत में जहां 7 करोड़ आबादी बेहद गरीब में है, वहीं नाईजीरिया में 8.7 करोड़ लोग बेहद गरीब हैं। नाईजीरिया में जहां हर एक मिनट में छह लोग गरीबी में धकेले जा रहे हैं, वहीं भारत में हर मिनट में 44 लोग गरीबी से बाहर आ रहे हैं। ऐसी और भी कई रिपोर्टें हम यहां उद्वृत कर सकते हैं।

तो यह है मान्य वैश्विक रिपोर्टो में भारत की अर्थव्यवस्था एवं इसकी क्षमता की वर्तमान एवं भविष्य का आकलन जो बताता है कि हम सतत सोपानों को लांघते हुए आगे बढ़ रहे हैं। निस्संदेह, कई क्षेत्रों पर फोकस करके काम करने की आवश्यकता है। यूपीए के अंतिम पांच सालांे में जर्जर हो चुकी बैंकिंग व्यवस्था को संभालना है, जीएसटी व्यवस्था को और स्थायित्व देना है। रुपया जैसे दुनिया के अनेक महत्वपूर्ण करेंसियों के मुकाबले मजबूत है उसी तरह अमेरिकी डॉलर के साथ भी उसे मजबूती से सामना करने योग्य बनाना है। किंतु सारे तथ्यों का तटस्थ अवलोकन यही निष्कर्ष देता है कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत आधार बनाती हुई आगे दौड़ने की पटरी पर आकर गति पकड़ चुकी है। कामना करिए कि रास्ते में कोई बड़ा अवराध न आए, कोई दुर्घटना न हो।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्पलेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

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