शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीतिक निशाना उचित नहीं

 

अवधेश कुमार

यह मानने में किसी को हर्ज नहीं होगा कि सर्जिकल स्ट्राइक अगले आम चुनाव का एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा। वास्तव में कांग्रेस तथा भाजपा के बीच सर्जिकल स्ट्राइक के ठीक 21 महीने बाद आए वीडियो पर जो वाकयुद्ध चल रहा है उसका अंत संभव नहीं है। सेना के पराक्रम पर राजनीति अपने आपमें बुरी नहीं है। उद्देश्य यदि स्वयं सेना के अंदर उत्साह पैदा करना तथा देशवासियों का मनोबल बनाए रखना हो तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। क्या वर्तमान राजनीति इस श्रेणी में आएगी? कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरेजवाला ने आरोप लगाया है कि भाजपा सेना के पराक्रम का राजनीतिक दुरुपयोग कर रही है। श्रेय सेना को देने की बजाय मोदी को दिया जा रहा है। उनके अनुसार सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी करने की आवश्यकता नहीं थी। भाजपा का प्रति हमला यह है कि कांग्रेस हमेशा सेना का मनोबल तोड़ने का काम करती है और उसके पराक्रम पर प्रश्न उठाती है।

सच यह है कि संसदीय लोकतंत्र में सैन्य सफलताओं का श्रेय सत्तासीन पार्टियां प्रत्यक्ष-परोक्ष दुनिया भर में उठाती हैं। आखिर सैन्य विफलताओं का ठीकरा भी तो उसी के सिर फूटता है। जरा सोचिए, 28-29 सितंबर 2016 की आधी रात से सुबह 6.15 बजे तक चले उस अभियान में हमारे कुछ सैनिक सीमा पार शहीद हो गए होते तो क्या होता? विपक्ष और हम पत्रकारों ने किस तरह सरकार को कठघरे में खड़ा किया होता इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। इस कार्रवाई के अगले दिन सेना के तत्कालीन डीजीएमओ यानी सैन्य ऑपरेशनों के महानिदेशक रणबीर सिंह और विदेश मंत्रालय के तत्कालीन प्रवक्ता विकास स्वरूप ने पत्रकार वार्ता में इसकी जानकारी दी थी। कायदे से चारों ओर उसका स्वागत होना चाहिए था। उस समय के कुछ नेताओं के बयान याद करिए। कांग्रेस ने पार्टी के स्तर पर नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन संजय निरुपम ने इसे फर्जीकल स्ट्राइक कहा था। ये अकेले ऐसा कहने वाले नहीं थे। आप उस समय समाचार चैनलों पर चलने वाले बहसों तथा समाचार पत्रों में आई खबरों को याद करिए तो कांग्रेस सहित विरोधी पार्टियों के अनेक नेता यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि सीमा पार करके स्ट्राइक किया गया है। सुबूत मांगने वाले भी थे। गाहे-बगाहे ऐसे बयान अभी तक आ रहे थे। निरुपम ने तो वीडियो आने के बाद भी कहा कि पूरी मोदी सरकार ही फर्जी है। तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा था कि पाकिस्तान बस में भरकर विदेशी पत्रकारों को उस जगह पर ले गया और दिखा दिया कि कुछ हुआ ही नहीं है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर इसके सबूत मांगे। ध्यान रखिए, सर्जिकल स्ट्राइक की जानकारी देश को सेना की ओर से दिया गया था। इसलिए आप अविश्वास कर रहे थे तो अपनी सेना पर। केजरीवाल ने पाकिस्तान के खंडन पर तो विश्वास किया, अपनी सेना के बयान पर नहीं। पी. चिदम्बरम ने भी बाद में अपने स्तंभ में फर्जिकल स्ट्राइक शब्द ही प्रयोग किया। ये सारे बयान राजनीति के मद्दे नजर दिए जा रहे थे। सबको लग रहा था कि भाजपा को इसका राजनीतिक लाभ मिल जाएगा।  

हालांकि डीजीएमओ की पत्रकार वार्ता के बाद देश भर में रोमांच महसूस किया जा रहा था। किंतु ऐसे बयानों से संदेह भी पैदा हो रहा था। पाकिस्तान ने इससे इन्कार कर दिया था। इसलिए वीडियो जारी करना आवश्यक था। आठ मिनट के वीडियो में देखा जा सकता है कि किस तरह लक्ष्यो को भेदा जा रहा है। कम से कम अब कोई संदेह नहीं रहेगा। दुनिया में भी यह संदेश चला गया कि भारत के पास ऐसा स्ट्राइक करने की क्षमता है जिन पर कुछ प्रमुख देशों को ही विशेषज्ञता प्राप्त थी। वास्तव में वीडियो जारी होने के बाद इस पर खड़े संदेह के बादल छंट गए हैं। पूरा मनोविज्ञान फिर रोमांच का निर्मित हो चुका है। सामान्यतः सर्जिकल स्ट्राइक जहां भी हुए उनके वीडियो काफी समय बाद जारी किए गए। तुरत जारी करना इसलिए भी संभव नहीं था, क्योंकि रात के अंधेरे में ड्रोन और अनमैन्ड एरियल वीइकल (यूएवी) से शूट किए गए तथा ऑपरेशन को मॉनिटर करने वाले सेना के थर्मल इमेजिंग कैमरा में कैप्चर वीडियो को एक साथ मिलाने और आवश्यक अंश छांटने में समय लगता है। वीडियो में इस बात का ध्यान रखा गया है कि हमारे जवानों के पाक अधिकृत कश्मीर में प्रवेश करने और वापस आने के रास्ते न दिखें। इनसे भविष्य में सुरक्षा को खतरा पहुंच सकता था। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि इससे जवानों की जान को जोखिम में डाल दिया गया है।

जैसा हम जानते हैं 18 सितंबर 2016 की सुबह बारामुला के उड़ी सैन्य शिविर पर आतंकवादियों ने अचानक हमला कर दिया और वहां ज्वलनशील पदार्थों में लगी आग में 17 जवान शहीद हो गए तथा 3 घायल सैनिक अस्पताल में वीरगति को प्राप्त हुए। हमले के बाद पूरे देश में आक्रोश का माहौल था और बदले की मांग हो रही थी। सर्जिकल स्ट्राइक ठीक इसके दस दिन बाद हो गया। इसका मतलब हुआ कि हमले के तुरत बाद ही सरकार से हरि झंडी मिल गई थी एवं तैयारी की जा रही थी। वीडियो के साथ बहुत सारे तथ्य भी सामने आ गए हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के प्रभारी तत्कालीन नॉर्दर्न कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डी.एस.हुड्डा ने वीडियो जारी होने के बाद कई बातें कहीं हैं। उन्होंने कहा है कि फैसला प्रधानमंत्री के स्तर पर लिया गया था जिसे सेना ने स्वीकार किया था। हुडा के अनुसार ऑपरेशन को उधमपुर स्थित नॉर्दन कमांड के मुख्यालय के कंट्रोल रूम से मॉनिटर किया जा रहा था। सीमा पार जाने वाली टीम की एक मुख्य चुनौती यह भी थी कि आतंकवदियों के लौचिंग पैड पाकिस्तानी सैन्य पोस्ट के करीब थे। यानी हमारे स्पेशल फोर्सेंज के जवानों को कार्रवाई इस तरह करनी थी कि दूसरी तरफ से जवाबी कार्रवाई का मौका न मिले। उपग्रहों के माध्यम से सेना को आतंकवादियों के लॉन्च पैड्स की जगहें बिल्कुल सुनिश्चित कर दीं गईं। यह भी साफ हो गया है कि दस दिनों में नरेंद्र मोदी, तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और डीजीएमओ रणबीर सिंह ने लगातार बैठकें और ऑपरेशन की मॉनिटरिंग की थी।

बेशक, इसके पहले भी सेना ने सीमा पार कर कार्रवाई की है। जो तिथियां कार्रवाइयों की बताई जा रहीं हैं वे वाजपेयी सरकार से लेकर मनमोहन सरकार के कार्यकाल की हैं। किंतु इतने विस्तृत क्षेत्र में सर्जिकल स्ट्राइक पहली बार हुआ है। सात अलग-अलग स्थानों पर स्थित आतंकवादियों और सेना की उपस्थिति में लौचिंग पैडों को ध्वस्त करना किसी सामान्य कार्रवाई में संभव नहीं था। इसका मतलब है कि अलग-अलग टोलियों में जवानों को जाना पड़ा होगा। कहा जा सकता है कि उसके बाद भी न सीमा पर युद्ध विराम का उल्लंघन कम हुआ न ही आतंकवादी हमले। पर इसके दूसरे पहलू भी हैं। पाकिस्तान भारत पर ज्यादा युद्धविराम उल्लंघन का आरोप लगाता है। हमारे उच्चायक्त को बार-बार बुलाकर वहां का विदेश मंत्रालय शिकायत करता रहता है। दूसरे, पिछले दो सालों में रिकॉर्ड संख्या में आतंकवादी मारे गए हैं। यह तब हुआ है जब जम्मू कश्मीर में सैन्य कार्रवाई की विरोधी पीडीपी के साथ भाजपा की सरकार थी। आतंकवादी हमले के दस दिनों के अंदर इतनी बड़ी कार्रवाई इसे विशिष्ट बनाता है। बहरहाल, अब जब वीडियो आ गया है, कार्रवाई के तत्कालीन प्रभारी ने भी वक्तव्यों से उसकी पुष्टि कर दी है इस पर नकारात्मक टिप्पणियां बंद होनी चाहिए। कांग्रेस और दूसरे विरोधी दल न भूलें कि ऐसे मामले पर मोदी सरकार को घेरने की उनकी रणनीति के उल्टे राजनीतिक परिणाम भी हो सकते हैं। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भी कांग्रेस ने वाजपेयी सरकार पर लगातार हमला किया था। उसके बाद हुए चुनाव में राजग विजयी हुआ और कांग्रेस उस समय तक सबसे कम सीटों पर सिमट गई। आप नकारात्मक टिप्पणिंयां नहीं करेंगे तो भाजपा को आपको सेना विरोधी कहने का अवसर भी नहीं मिलेगा। वैसे भी सरकार पर राजनीतिक हमला करने के लिए रक्षा और विदेश नीति को निशाने पर लाना उचित नहीं है। इससे कई बार सरकार के विरोध की जगह देश का विरोध हो जाता है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

 

 

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