शुक्रवार, 19 मई 2017

इन छापों के पीछे भ्रष्टाचार की गंध तो है

 

अवधेश कुमार

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव एवं उनके परिवार तथा पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम और उनके बेटे कार्ति चिदम्बरम के अनेक ठिकानों पर मारे गए क्रमशः आयकर विभाग एवं सीबीआई के छापों ने राजनीति में तूफान ला दिया है। एक ओर भाजपा इसे भ्रष्टाचार के विरुद्व उसकी शून्य सहिष्णुता का प्रमाण बता रही है तो विपक्ष इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई कह रहा है। तो सच क्या है? पहला सवाल तो यही उठता है कि क्या लालू यादव एवं पी. चिदम्बरम या उनके बेटे कार्ति चिदम्बरम इस समय भाजपा के लिए इतनी बड़ी चुनौती हैं कि उनको ठिकाना लगाने के लिए आयकर या सीबीआई का उपयोग करना पड़े? कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति इसका उत्तर हां में नहीं दे सकता है। लालू यादव चाहे जो भी दावा करें कि सरकार उनसे डरती है धरातल पर ऐसा कुछ नहीं है। लालू यादव इस समय सजायाफ्ता हैंं और उन पर पहले से चारा घोटाले में चार मुकदमे चल रहे हैं। चिदम्बरम कांग्रेस के लिए बड़े नेता हैं लेकिन उनका राजनीतिक वजूद ऐसा नहीं है जिससे भाजपा को डरने की जरुरत हो। वे कह रहे हैं कि सरकार उनकी आवाज बंद करना चाहती है। वो बोलते और लिखते रहेंगे। आप अवश्य बोलते और लिखते रहिए लेकिन जिन मामलांें में छापे मारे गए हैं उनके बारे में भी तो कुछ बताइए। वास्तव में जो छापे मरें हैं उनको राजनीति प्रेरित तभी कहा जाएगा जबकि उसके पीछे भ्रष्टाचार की गंध बिल्कुल नहीं हो। क्या दोनों परिवारों के मामले ऐसे ही हैं?

पहले लालू प्रसाद यादव पर आते हैं। लालू यादव के परिवार पर आरोप है कि उन्होंने मुखौटा कंपनियां बनाकर करोड़ों की संपत्तियां बनाई। यही नहीं रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने कई तरीकों से संपत्तियां हासिल की। सारे मामलों का विस्तार से यहां वर्णन नहीं किया जा सकता है। लेकिन उदाहरण के लिए दो मामले लेते हैं। लालू यादव की बड़ी बेटी तथा राज्यसभा सांसद मीसा और उनके पति शैलेश ने दिसंबर 2002 में मिशैल पैकर्स एंड प्रिंटर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई और इसका रजिस्ट्रेशन लालू के सरकारी बंगले 25, तुगलक रोड, नई दिल्ली पर कराया गया। बैलेंस शीट के मुताबिक कंपनी की व्यावसायिक गतिविधियां 2006 में लगभग बंद हो गईं। इसके बाद साल 2008-09 में इसी कंपनी ने बिजवासन के 26 पालम फार्म्स में एक फॉर्महाउस 1.41 करोड़ रुपये में खरीदा। इसके लिए धन का इंतजाम कंपनी के 1,20,000 शेयर्स को बेच कर किया गया। कोई काम न करने वाली कंपनी के शेयर वीके जैन और एसके जैन नाम के दो कारोबारियों को 90 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से बेचा गया। ध्यान रखिए जैन भाइयों को इसी साल मार्च में कालेधन के खिलाफ की गई कार्रवाई में गिरफ्तार किया गया। इसके बाद एक साल से कम समय में ही यानी 2009 में मीसा और शैलेश ने इन शेयरों को फिर खरीद लिया। 90 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से बेचे गए शेयरों को इस बार सिर्फ एक या दो रुपये प्रति शेयर के हिसाब से खरीदा गया। आप खुद निष्कर्ष निकालिए। क्या आपको यह पूरा मामला एकदम पाकसाफ और पारदर्शी लगता है? नहीं न। तो इसकी जांच होनी चाहिए या नहीं? जैन बंधु हवाला कारोबारी माने जाते हैं। तो सवाल यह भी उठता है कि जैन बंधुओं ने किन कारणों से लालू की बेटी और दामाद को लाभ पहंुंचाया? इसके अलावा मीसा और शैलेश द्वारा एक और मुखौटा कंपनी के जरिए प्रॉपर्टी खरीदने का मामला सामने आया है। केएचके होल्डिंग्स कंपनी के नाम सैनिक फॉर्म्स में 2.8 एकड़ का फार्महाउस खरीदा गया। यह कंपनी विवेक नागपाल नाम के व्यक्ति की है जिनका व्यवसाय ही संदिग्ध रहा है। बाद में विवेक ने 10,000 शेयर सिर्फ एक लाख रुपये में मीसा और शैलेश को ट्रांसफर कर दिए। नापगाल ने ही केएचके होल्डिंग्स के जरिए सैनिक फार्म्स की संपत्ति खरीदी थी। आज वह संपत्ति मिसा और शैलेश की है।

कुल  मिलाकर आयकर विभाग ने लालू, उनके परिवार तथा उनसे जुड़े कुल 22 ठिकानांें पर छापेमारी की। आयकर विभाग के सूत्रों ने मीडिया को बताया कि उन्हें लालू परिवार के पास 1000 करोड़ से ज्यादा की बेनामी संपत्ति का शक है। आखिर 100 अधिकारियों की टीम ने छापा मारा तो यह यूं ही नहीं हो सकता। आयकर विभाग को भी जवाब देना होगा। अभी तो यह छापा दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पड़े हैं। किंतु लालू यादव पर इसके अलावा भी आरोप हैं जो जांच की मांग करती हैं। दो आरोप तो यही है कि यूपीए 1 सरकार के अंदर कांति सिंह ने पटना का अपना तीन मंजिला मकान लालू परिवार को गिफ्ट कर दिया। क्यों? इसी तरह रघुनाथ झा ने गोपालगंज में संपत्ति परिवार को दिया। ये दोनों सरकार में मंत्री बनाए गए। तो क्या मंत्री बनाने के एवज में लालू ने इनसे संपत्ति लिखवाया? रेल मंत्री रहते हुए लालू पर झारखंड के रांची और ओडिशा के पुरी में रेलवे के दो होटल गलत तरीके से कारोबारी हर्ष कोचर को देने का आरोप है जिसके बदले पटना में 200 करोड़ रुपए कीमत की 2 एकड़ से ज्यादा जमीन बेनामी तरीके से डिलाइट मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड के नाम करवा ली। तब इस कंपनी का मालिकाना हक राजद सांसद प्रेम चंद्र गुप्ता के पास था। आज इस कंपनी में लालू के बेटे निदेशक हैं। पटना की इसी जमीन पर 7.5 लाख स्क्वेयर फीट में बिहार का सबसे बड़ा मॉल बनाया जा रहा है। लालू के मंत्री बेटे तेजप्रताप पर आरोप है कि इस अंडर कंस्ट्रक्शन मॉल की मिट्टी गलत तरीके से चिड़ियाघर को 90 लाख में बेच दिया। आरोप यह भी है बिहटा में शराब फैक्ट्री लगाने में मदद करने के बदले कारोबारी प्रकाश कत्याल ने एके इंफोसिस्टम्स नाम की कंपनी बनाकर उसके जरिए पटना में करोड़ों रुपए कीमत की जमीन खरीदी। बाद में कत्याल ने जमीन समेत कंपनी की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी लालू और उनके परिवार को दे दिया। मुंबई के कारोबारी अशोक बिंथिया ने भी कंपनी बनाकर दिल्ली में करोड़ों रुपए कीमत की जमीन और मकान समेत पूरी कंपनी लालू के छोटे बेटे और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नाम कर दी। तेजस्वी यादव की दिल्ली में 115 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति होने का आरोप है।  5 हीरा व्यापारियों ने बिना ब्याज के पांच करोड़ रुपये केबी एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड को कर्ज दिया और फिर एबी एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड ने अपनी कंपनी के सारे शेयर लालू के परिवार वालों के नाम कर दिए। कोई कहे कि इन सबकी जांच होनी ही नहीं चाहिए तो उसे कुछ नहीं कहा जा सकता है।

अब आईए चिदम्बरम पिता पुत्र पर। सीबीआई ने मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और गुड़गांव के अलावा चिदंबरम के चेन्नई स्थित नंगमबक्कम स्थित आवास और उनके होमटाउन कराइकुडी के घर पर छापा मारा। कुल 14 ठिकानों पर छापा बहुत बड़ी कार्रवाई है। सीबीआई का आरोप है कि चिदंबरम और कार्ति ने आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश दिलाने में पीटर-इंद्राणी मुखर्जी की अवैध तरीके से मदद की। सीबीआई ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में आईएनएक्स मीडिया को गलत तरीके से क्लियरेंस दिलाने के मामले में प्राथमिकी दर्ज किया है। इन पर आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और लोकसेवकों को प्रभावित करने का आरोप है। पीटर मुखर्जी और इंद्राणी उसके निदेशक थे। 2007 में इस कंपनी ने इसके लिए आवेदन दिया। इसे 2008 में 4.6 करोड़ के विदेशी निवेश की अनुमति मिली और इसके एवज में कार्ति की कंपनी को 10 लाख रुपए मिले। लेकिन कंपनी को विदेशी निवेश मिला, 305 करोड़ रुपया। उसके बाद कार्ति की कंपनी को 3.5 करोड़ दिया गया। कार्ति की कंपनी के नाम चेस मैनेजमेंट सर्विस और स्ट्रैटजिक कंसल्टिंग लि. कंपनी हैं।यह बात ठीक है कि विदेशी निवेश को मंजूरी देने वाले कागजात पर चिदम्बरम के हस्ताक्षर नहीं है। हो भी नहीं सकते। उस पर सचिवों के हस्ताक्षर होते हैं। इसके अलावा भी कार्ति चिदम्बरम पर आरोप है। आयकर विभाग द्वारा जांच के दौरान बरामद किए कागजों के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ कि कार्ति के पास 14 देशों में फैला हुआ कारोबार है जहां उन्होंने रियल स्टेट तथा दूसरे व्यवसायों में निवेश किया हुआ है। जांच एजेंसियां कार्ति की मुख्य कंपनी एडवांटेज स्ट्रेटेजिक कंसल्टिंग की जांच कर रही हैं जो कि एयरसेल-मैक्सिस डील में शामिल थी। बरामद कागजात के अनुसार कार्ति द्वारा ज्यादातर सौदे और ट्रांजेक्शन एडवांटेज स्ट्रेटेजिक की सिंगापुर स्थित कंपनी से किए गए हैं। कार्ति के इन देशांेे में व्यवसाय संबंधी आरोपों की बड़ी फाइल प्रवर्तन निदेशालय एवं आयकर विभाग में भी बन गई है।

कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह कि जो छापे मारे गए उन पर तत्काल संदेह करना उचित नहीं है। आरोप इतने गंभीर हैं तो उनकी जांच समूचा देश चाहेगा। देश की चाहत भी यही है कि अगर इन नेताओं और उनके परिवार ने अपने पद और प्रभाव का लाभ उठाकर देश को लूटा है तो उन्हें इसकी सजा मिलनी चाहिए। किंतु अब यह जांच एजंेंसियों की जिम्मेवारी है कि वे इसे साबित कर तार्किक परिणति तक ले जाएं। हमारे यहां न्यायालय में न्याय ही होता है। अगर ये छापे दुराग्रह से किए गए हैं तो ये स्वयं भी न्यायालय जा सकते हैं।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

शनिवार, 13 मई 2017

आदर्श राजनीति के सपनों की मृत्यु गाथा

 

अवधेश कुमार

दिल्ली सरकार के पूर्व जलमंत्री कपिल मिश्रा ने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पर अपने एक मंत्री सत्येन्द्र जैन से दो करोड़ रुपए लेने का जो आरोप लगाया है उससे तूफान मच गया है। लोगों के लिए सहसा यह विश्वास करना कठिन है कि जो अरविन्द केजरीवाल कल तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाते थे, दूसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते थे आज वे खुद अपने ही साथी के आरोप से कठघरे में खड़े हो गए हैं। हालांकि इस मामले पर केजरीवाल के दाहिने हाथ और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कह रहे हैं कि जिस तरह से उन्होंने बेबुनियाद आरोप लगाए, वो तो जवाब देने के लायक भी नहीं हैं। कपिल मिश्रा कुमार विश्वास के करीबी माने जाते थे लेकिन उन्होंने भी यह बयान दिया कि केजरीवाल कभी घूस लेंगे यह मैं सोच भी नहीं सकता। अरविन्द केजरीवाल के धूर विरोधी योगेन्द्र यादव ने भी कहा कि ऐसे आरोपों के लिए प्रमाण चाहिए। इस तरह देखा जाए तो अरविन्द केजरीवाल के साथ इस मामले पर काफी लोग हैं। यह भी कहा जा सकता है कि कपिल मिश्रा को चूंकि मंत्री पद से हटा दिया गया इसलिए खीझ में वे ऐसा आरोप लगा रहे हैं। किंतु खीझ मंे दूसरा आरोप भी तो लगा सकते थे। सत्येन्द्र जैन से ही धन लेने का आरोप क्यों लगाया? उन्होंने यह कहा कि जब मैंने केजरीवाल से पूछा कि आप पैसा क्यों ले रहे हैं तो उन्होंने कहा कि राजनीति में बहुत बात उसी समय नहीं बताई जाती बाद में बताई जाती है। कपिल मिश्रा केवल आरोप नहीं लगा रहे, बल्कि बाजाब्ता वे पहले उप राज्यपाल अनिल बैजल से मिले और उन्हें सब बातों से अवगत कराया, उन्होंने एंटी करप्शन ब्यूरो यानी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को जाकर तथ्य दिए, वे सीबीआई तक भी गए और अनशन पर बैठ गए।

इस सीमा तक जो व्यक्ति तैयार हो वह केवल हवा में बात करने वाला नहीं कहा जा सकता है। उसे पता है कि अगर उसने झूठी गवाही दी तो उसके खिलाफ मामला बन सकता है। अपने को सच साबित करने के लिए ही लगता है कपिल पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि पर अपनी पत्नी के साथ गए। निस्संदेह, मामला न्यायालय में जाने पर अनेक सवाल उठेंगे और कपिल को उन सबका उत्तर देना होगा। यह सवाल तो उठेगा ही कि केजरीवाल ने धन लेने के लिए वही समय क्यों चुना जब कपिल मिश्रा उनके पास हों या आने वाले हों? उनको धन लेना ही था तो वे कोई दूसरा समय इसके लिए चुन सकते थे। सवाल वाजिब है और इसका जवाब देना आसान नहीं है। किंतु कपिल का कहना है कि अरविन्द केजरीवाल को विश्वास था कि यह तो हमें भगवान की तरह मानता है, इसलिए संदेह नहीं करेगा। कुछ समय के लिए कपिल मिश्रा के आरोप को यही छोड़ दें। एक प्रश्न अपने आपसे करिए कि क्या हमको आपको यह विश्वास है कि अरविन्द केजरीवाल जिस ईमानदारी, सच्चाई, सदाचार और आदर्श की राजनीति का वायदा कर सत्ता मंे आए थे वाकई उनकी सरकार उस पर खरी उतर रही है? अगर आप निष्पक्षता से इसका उत्तर तलाशेंगे तो कम से कम आप हां तो नहीं कह सकते। ध्यान रखिए सत्येन्द्र जैन पर हवाला से लेकर भूमि सौदे एवं अपनी बेटी को गलत तरीके से नियुक्त करने का मामला चल रहा है और पहले एंटी करप्शन ब्यूरो था, अब सीबीआई उनसे जुड़े स्थलों पर छापा मार चुकी है। हम नहीं कहते कि किसी के घर छापा पड़ने या उस पर मुकदमा हो जाने मात्र से ही वह दोषी हो जाता है, लेकिन आप आम आदमी पार्टी के ही कुछ नेताओं और विधायकों से सत्येन्द्र जैन के बारे में अकेले में बात करिए वह स्वयं वो सारी बातें बोल देगा जिसका आरोप उन पर लग रहा है।

कपिल मिश्रा ने यह कहा है कि सत्येन्द्र जैन ने कहा कि उन्होने केजरीवाल के रिश्तेदार के जमीन का सौदा कराया है। अगर यह सच है तो इसका मतलब इतना तो है कि मंत्री बनने के बावजूद सत्येन्द्र जैन प्रोपर्टी दलाली का काम कर रहे थे। इसको भी कुछ समय के लिए यहीं रहने दीजिए। अरविन्द केजरीवाल सरकार के पांच मंत्रियों की दो साल में ही छुट्टी हो चुकी है। आखिर क्यों? केवल कपिल मिश्रा के बारे में कहा गया है कि वो जल विभाग को ठीक से संभाल नहीं पा रहे थे और विधायकों की इस बारे में शिकायतें थीं, लेकिन इसके अलावा जो मत्री हटाए गए उनमें से किसी को उनके प्रदर्शन के आधार पर नहीं हटाया गया। कोई फर्जी डिग्री मामले में फंसा और जेल गया,  कोई सेक्स सीडी कांड में फंसा, कोई घूस मांगने के आरोप में फंसा। तो ऐसा मंत्रिमंडल केजरीवाल ने बनाया था। ध्यान रखिए, मंत्री बनाते समय केजरीवाल को 67 में से उन्हीं लोगों को चुनना चाहिए था जिनकी विश्वसनीयता और योग्यता उनकी नजर में असंदिग्ध रही होगी। क्या केजरीवाल ने कोई दूसरी कसौटी बनाई थी? ऐसा तो होना नहीं चाहिए। भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करके सत्ता तक पहुंचने वाला व्यक्ति कम से कम ऐसे लोगों को मंत्री तो नहीं बनाएगा जिसकी ईमानदारी और सच्चाई पर उसको विश्वास नहीं होगा। जाहिर है, अरविन्द केजरीवाल से या तो भूलें हुईं या वो सत्ता में आने के साथ इस मामले में भी राजनीति में व्यावहारिकता अपनानी पड़ती है के सिद्धांत का वरण करने लगे। कपिल मिश्रा को कुछ भी कह दीजिए, लेकिन आज वह यह दावा करने की स्थिति में है कि केजरीवाल के मंत्रिमंडल में एकमात्र वहीं मंत्री रहे जिन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा या जिन पर कोई मामला किसी तरह का नहीं चल रहा है। शेष सारे पूर्व एवं वर्तमान मंत्रियों पर कोई न कोई आरोप है और उन पर मामले चल रहे हैं। बिना आग के कहीं धुंआ नहीं उठता है।

अरविन्द और उनके सहयोगी अनके मामलों के लिए केन्द्र सरकार एवं विरोधियों को दोषी ठहराते हैं कि उनके खिलाफ जानबूझकर ऐसा किया जा रहा है। लेकिन शुंगलू समिति की रिपोर्ट पर क्या कहंेंगे?  इस समिति ने साफ कहा है कि केजरीवाल सरकार द्वारा प्रशासनिक फैसलों में संविधान और प्रक्रिया संबंधी नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया गया। भ्रष्ट व्यवहार की बात शुंगलू समिति ने अपनी रिपोर्ट में उजागर की है। शुंगलू समिति ने सरकार के कुल 440 फैसलों से जुड़ी फाइलों को खंगालकर यह निष्कर्ष निकाला। पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग द्वारा गठित इस समिति में पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक वीके शुंगलू के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रदीप कुमार शामिल थे। इन तीनों व्यक्तियों से आप राजनीतिक पूर्वाग्रह की उम्मीद तो नहीं कर सकते। यहां इस रिपोर्ट का विस्तार से वर्णन नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसने केजरीवाल सरकार के काम करने में बरती गई अनियमितताओं का जैसा तथ्यवार विवरण सामने रखा है उससे दिल दहल जाता है। रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार द्वारा शासकीय अधिकारों के दुरुपयोग के मामलों में अधिकारियों के तबादले, तैनाती और अपने करीबियों की पदों पर नियुक्ति करने में कानूनों और प्रक्रियाआंे के पालन न करने का साफ जिक्र किया है। आम आदमी पार्टी के कार्यालय को लेकर केजरीवाल एवं उनके साथियों ने बहुत शोर मचाया कि उनसे उनका कार्यालय तक छीना जा रहा है। जरा शुंगलू रिपोर्ट को देखिए। इसमें कहा गया है कि केजरीवाल सरकार ने आम आदमी पार्टी को दफ्तर देने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई वही अवैध है। शुंगलू समिति के अनुसार दिल्ली सरकार ने इसके लिए पार्टियों को दफ्तर के लिए जमीन देने की बाकायदा नई नीति बनाई जिसमें ये भी कहा गया कि जमीन पाने योग्य पार्टियों को 5 साल तक कोई इमारत या बंगला दिया जा सकता है क्योंकि इतने समय में वह अपनी आवंटित ज़मीन पर दफ़्तर बना सकते हैं। इसके अनुसार यह साफ है कि राजनीतिक पार्टी को जमीन देने का फैसला इसलिए लिया गया ताकि आम आदमी पार्टी को सरकारी आवास मिल सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 जनवरी 2016 को आम आदमी पार्टी को यह घर मिल गया वह भी फुली फर्निस्ड जैसे किसी मंत्री को मिलता है। कैबिनेट फैसले में फर्निस्ट एकमोडेशन का जिक्र नहीं है तथा फाइल में किराए का भी कोई उल्लेख नहीं है। ऐसी तमाम बातें हैं जिनसे केजरीवाल का सदाचार, ईमानदार और आदर्श राजनीति की धज्जियां उड़ जाती हैं।

एक ऐसा व्यक्ति जिसने देश के एक बड़े वर्ग को नई राजनीति का सपना दिखाया, जिसने दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाकर एक मॉडल के रुप में पेश करने का वायदा उसकी सरकार का ऐसा हस्र भारतीय राजनीति के लिए कोई सामान्य त्रासदी नहीं है। हालांकि अरविन्द केजरीवाल पर अण्णा अनशन अभियान के समय से नजर रखने वालों के लिए इसमें आश्चर्य का कोई तत्व नहीं है। आज आप नजर उठाकर देख लीजिए अण्णा अभियान के समय जो चेहरे अरविन्द और मनीष के साथ दिखते थे उनमें से कितने साथ हैं तो आपको इनकी कार्यशैली और इनके चरित्र का बहुत हद तक प्रमाण मिल जाएगा। दरअसल, पार्टी पर पूरी तरह अपनी पकड़ बनाए रखने की एकाधिकारवादी नीति के तहत केजरीवाल ने उन्हीं लोगों को महत्व दिया और चुनाव में टिकट भी जो उनकी हां में हां मिला सके। उनमें कौन ईमानदार है, जिस राजनीति की वो बात कर रहे हैं उन पर कौन खरा उतर सकता है, किसके पास भविष्य की बेहतर सोच है तथा सत्ता की मादकता में भी कौन बचा रह सकता है इन सबका विचार करने कोई आवश्यकता ही महसूस नहीं की। आदर्श और ईमानदारी की बात करते हुए केजरीवाल ने वो सब किया जो एक व्यक्ति पर आधारित दूसरे क्षेत्रीय दल करते हैं। ऐसे सारे लोग पार्टी से बाहर हो गए या कर दिए गए जो कोई प्रश्न उठा सकते थे। तो इसका हस्र हम आज देख रहे हैं। वास्तव में कपिल मिश्रा प्रकरण नहीं होता तब भी एक आदर्श सपने की राजनीति की मृत्युगाथा हमें लिखनी ही पड़ती।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

शनिवार, 6 मई 2017

पाकिस्तान को उसकी भाषा में माकूल जवाब देना अपरिहार्य

 

अवधेश कुमार

पहले यह खबर आई थी कि दो भारतीय जवानों को शहीद कर उनके शव को क्षत-विक्षत करने का प्रतिशोध भारतीय जवानों ने ले लिया है। इसके अनुसार हमारी सेना ने कृष्णा घाटी सेक्टर की कृपाण पोस्ट के उस पार पाकिस्तानी सेना की पिंपल पोस्ट को पूरी तरह से तबाह कर डाला। इस कार्रवाई में 647 मुजाहिद यूनिट के 10 से ज्यादा जवानों के मारे की सूचना थी। ध्यान रखिए 1 मई को पाक सेना ने इसी पिंपल पोस्ट से गोलाबारी की थी और इसी दौरान पाक की बार्डर एक्शन टीम (बैट) ने भारतीय क्षेत्र में घुसकर शहीद जवानों के शवों के साथ बर्बरता की थी। हालांकि इस खबर की पुष्टि कहीं से नहीं हुई। भारत के कुछ समाचार पत्रों तथा वेबसाइटों के अलावा यह खबर कहीं नहीं थी। न सेना ने इसे स्वीकार किया और न सरकार ने ही। पाकिस्तान की मीडिया में भी इसकी कोई चर्चा नहीं है। इसलिए हम नहीं कह सकते कि यह खबर कितना सच है। लेकिन अगर यह सच भी हो तो क्या इसे पाकिस्तान को दिया गया माकूल जवाब मान लिया जाए? भारतीय जवानों के शवों के साथ बर्बरता के बाद पूरे देश में आक्रोश की लहर है तथा सरकार पर कुछ न कुछ करने का दबाव है। रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इसकी जो प्रतिक्रिया करनी पड़ेगी वे करेंगे। हमारे दो सैनिकों का जो बलिदान है, वह व्यर्थ नहीं जाएगा। वास्तव में जिस तरह से पाकिस्तान हर कुछ अंतराल पर ऐसी हरकतें कर रहा है उसके बारे में गंभीरता से विचार करने तथा उसका माकूल जवाब दिए जाने की आवश्यकता है।

आखिर जिस तरह की घटना को पाकिस्तान ने अंजाम दिया वैसा युद्ध काल में भी नहीं होता और यहां तो युद्ध विराम का काल है। पाकिस्तान की एफडीएल पोस्ट पिंपल से 647 मुजाहिद बटालियन ने नियंत्रण रेखा से सटी सीमा सुरक्षा बल या बीएसएफ की अग्रिम पोस्ट पर गोलीबारी कर तड़के संघर्षविराम का उल्लंघन किया था। बीएसएफ पोस्टों पर राकेट भी दागे गए। उस समय भारतीय सेना व सीमा सुरक्षा बल के जवान खुफिया जानकारी के आधार पर वहां बारूदी सुरंग खोज रहे थे। अचानक हुए हमले में बीएसएफ की 200 बटालियन के हेड कांस्टेबल प्रेम सागर व सेना की 22 सिख यूनिट के नायब सूबेदार परमजीत शहीद हो गए तथा बीएसएफ का कांस्टेबल राजेंद्र कुमार घायल हो गया। इसी दौरान पाकिस्तान की बार्डर एक्शन टीम (बैट) भारतीय सीमा में लगभग एक किलोमीटर तक दाखिल हो गई एवं दोनों भारतीय जवानों के शवों को क्षत-विक्षत करने के बाद उनके अंग भी काटकर अपने साथ ले गई। बैट टीम ने सबसे अधिक बर्बरता नायब सूबेदार परमजीत सिंह के पार्थिव शरीर के साथ किया। पाकिस्तान की बैट सेना और आतंकवादी दोनों का सम्मिलित टीम माना जाता है। ध्यान रखिए बैट की टीम ने हमारी सीमा में घुसकर ऐसा किया। यह सामान्य बात नहीं है।

किंतु ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान कैप्टन सौरभ कालिया से लेकर वर्तमान घटना तक पाकिस्तान की बर्बरता और पाशविकता का लंबा इतिहास है। 22 नवंबर 2016 को माछिल सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान के साथ मुठभेड़ में 3 जवान शहीद हुए थे। इनमें राइफलमैन प्रभु सिंह का सिर पाक सैनिकों ने काटा और उनके शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया। यह हरकत भी बॉर्डर ऐक्शन टीम की ही थी। पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने 28 अक्टूबर 2016 को भारतीय सेना के शहीद जवान मंदीप सिंह के शव को क्षत-विक्षत कर दिया। नियंत्रण रेखा के पास कुपवाड़ा के माछिल सेक्टर में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान मंदीप सिंह शहीद हो गए थे। मुठभेड़ के दौरान पाकिस्तानी सेना गोलीबारी करके आतंकवादियों को कवर देती रही, और इस दौरान एक आतंकवादी ने शव को क्षत-विक्षत कर दिया। इस बर्बरता के पीछे भी बॉर्डर ऐक्शन टीम का हाथ माना गया। बैट दस्ते ने ही 8 जनवरी 2013 को हमारे जवान हेमराज सिंह व सुधाकर सिंह की हत्या की थी। हेमराज का सिर काट ले गए थे और सुधाकर के शव के अंग भंग किए गए थे। पिछले साल जनवरी में यूट्यूब पर एक विडियो भी अपलोड किया गया था, जिसमें कुछ आतंकवादी शहीद हेमराज के कटे सिर के साथ जश्न मनाते हुए दिख रहे थे। इसके बाद जुलाई में सेना ने जम्मू-कश्मीर में हुई एक मुठभेड़ में जवान हेमराज का सिर कलम करने वाले आतंकवादियों में शामिल मोहम्मद अनवर को मार गिराया था। 30 जुलाई 2011 को पाकिस्तान की ओर से कुपवाड़ा के गुगालदार चोटी पर किए गए हमले में राजपूत और कुमाऊं रेजिमेंट के 6 जवान शहीद हुए थे। पाक सौनिक 20 कुमाऊं के हवलदार जयपाल सिंह अधिकारी और लांस नायक देवेंदर सिंह का सिर अपने साथ ले गया था। इसका बदला लेने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन जिंजर को अंजाम दिया। इस हमले में कुल 8 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे। जून 2008 में 2/8 गोरखा राइफल का एक जवान अपना रास्ता भूल गया था। इस जवान को पाकिस्तानी बॉर्डर ऐक्शन टीम ने केल सेक्टर में पकड़ लिया था। कुछ दिन बाद शहीद जवान का शरीर बिना सिर के मिला था। इसके बाद एक जवाबी हमले पाकिस्तान के कुल 8 जवान मारे गए। करगिल में घुसपैठ के दौरान 5 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया और उनके 5 साथियों को पाकिस्तानी फौजियों ने बंदी बना लिया था। जब 20 दिन बाद इन जवानों के शव सीमा पार से वापस आए तब पाकिस्तानी फौजियों की बर्बरता की कहानी सामने आई। इन जवानों के साथ क्रूरता की सारी हदें पार की गई थीं। उनके कानों में लोहे की सुलगती छड़ें तक घुसेड़ी गई थीं।

तो पाकिस्तान ऐसी घृणित हरकत करता रहता है। हालांकि हमने यह भी देखा कि हमारी सेना ने ज्यादा घटनाओं का बदला भी लिया है। किंतु इससे आगे क्या? क्या भारत की भूमिका जवाबी कार्रवाई तक सीमित रहेगी? क्रूरता और बर्बरता का यह दुस्साहसी सिलसिला अंतहीन चलता रहेगा? पाकिस्तान जो हरकतें करता है ऐसी हरकतों को सेना की दुनिया में गंदी नजर से देखा जाता है। मजे की बात कि हर बार वह इससे इन्कार भी करता है। इस बार भी उसने इन्कार किया है। भारत के आरोप को उसने झूठा करार दिया है। पाकिस्तान हर अपने कुकर्म को नकारने वाला देश है। जब भी उसकी ओर से आतंकवादी हरकत होती है, उसकी सेना युद्ध विराम का उल्लंघन करती है, या उसका आतंकवादी पकड़ा जाता है वह सीधे नकारता है। यह बात अलग है कि बाद में सब सच साबित होता है। इसलिए उसके नकारने से हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सवाल है कि ऐसा क्या किया जाए जिससे पाकिस्तान भविष्य में ऐसी हरकत करने का दुस्साहस न करे? ऐसा माना जाता है कि इस समय भारत का दबाव कई कारणों से पाकिस्तान पर बढ़़ा है और इसलिए वह ज्यादा आक्रामकता दिखा रहा है। यह भी संभव है कि वहां की नागरिक सरकार का सेना पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं रह गया हो। हाल के दिनों में जिस तरह उसने युद्ध विराम का उल्लंघन किया है उसका अर्थ क्या हो सकता है? क्या वह एक पूर्ण युद्ध भारत से चाहता है?

यह भी ध्यान रखने की बात है कि घटना के एक दिन पहले ही पाक सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने सीमा क्षेत्र का दौरा किया था। उन्होंने कश्मीरियों के संघर्ष से समर्थन तो जताया ही था यह भी कहा था कि भारत लगातार युद्ध विराम का उल्लंघन कर रहा है तथा आपको उसे मुंहतोड़ जवाब देना है। उसके बाद यह कार्रर्वाई हो गई। वैसे तो हमारे पास कार्रवाई के कई विकल्प हैं। जवाबी हमला करके उनको क्षति पहुंचा दी। ऐसा जारी रखा जा सकता है। नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान जहां कमजोर है वहा ंउसे ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जाए। तोपांे से गोलाबारी लगातार की जाए। आप देखेंगे कि इसका असर होगा। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में निश्चित लक्ष्य पर सीमित हवाई कार्रवाई का विकल्प भी हमारे सामने है। फिर से सर्जिकल स्ट्राइक किया जाए और उसका सबूत भी सामने रख दिया जाए। इस तरह कई विकल्प हमारे पास हैं। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह कि निश्चित रुप से अब वह समय आ गया है जब भारत पाकिस्तान की सेना को उस भाषा में जवाब दे जो भाषा वह समझता है। उससे जो क्षति हो उसे उठाने और सहने के लिए देश तैयार है। इसमें दुनिया क्या कहती है और करती है उससे हमें प्रभावित नहीं होना है। यह हमारे देश की रक्षा तथा एकता अखंडता को बचाने का प्रश्न है। लक्ष्य एक ही हो कि पाकिस्तान फिर आगे ऐसी हरकत कभी न कर सके।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः 110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

 

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