शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

आतंकवाद का प्रायोजक आतंकवाद के खात्मे पर प्रवचन दे तो कैसा लगेगा, यही नवाज के भाषण के साथ हुआ

 

अवधेश कुमार

यह उम्मीद तो थी कि देश के अंदर अपनी आंतरिक परेशानियों से ग्रस्त नवाज शरीफ संयुक्त राष्ट्र मंे कश्मीर मामले को उठाएंगे लेकिन अपने भाषण को ही वे भारत विरोध पर केन्द्रित कर देंगे इसकी संभावना किसी ने भी व्यक्त नहीं की थी। अपने 19 मिनट से थोड़ा ज्यादा के भाषण में उन्होंने दो तिहाई समय भारत को आरोपित करने में लगाया। संयुक्त राष्ट्र संघ के पुराने रिकॉर्ड खंगालने होंगे कि शीतयुद्ध काल में पाकिस्तान के किस नेता ने इतना ज्यादा समय भारत को आरोपित करने में लगाया। क्या-क्या नहीं कहा नवाज ने। अपने देश के आतंकवाद को विदेश द्वारा समर्थित, प्रयोजित और वित्तपोषित कहा। साफ है कि इशारा भारत की ओर था। उनकी नजर में भारत आतंकवाद का प्रायोजक, हथियारों का विस्तारक, दक्षिण एशिया में हथियार होड़ के लिए उत्तरदायी, कश्मीर में निर्दोष नागरिकों का हत्यारा, आजादी की वाजिब मांग को सेना की गोलियों से जवाब देने वाला, बातचीत से भागने के लिए अस्वीकार्य शर्तें लगाने वाला.....आदि आदि है। यानी उनके यहां जो समस्याएं हैं या दक्षिण एशिया में जो समस्याएं हैं उन सबके लिए कोई दोषी है तो वह भारत है। सवाल है कि नवाज शरीफ के इस भाषण को दुनिया के कितने देशों ने गंभीरता से लिया होगा?

हम आगे बढ़ें इसके पहले यह ध्यान दिलाना आवश्यक है कि नवाज से पांच भाषण पहले अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति सरवर दानिश का भाषण हुआ था। उन्होंने आतंकवाद के मामले पर पाकिस्तान को नंगा कर दिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में रची गई साजिशों से उसकी सरजमीं पर आतंकवादी संगठन बेरहमी से निर्दोष नागरिकों पर हमले कर रहे हैं। हमने बार-बार पाकिस्तान से आतंकवादियों को मिलने वाले सुरक्षित पनाहगाह को ध्वस्त करने के लिए कहा लेकिन कोई अंतर नहीं आया। दानिश ने साफ कहा कि पाकिस्तान मंे तालिबान, हक्कानी नेटवर्क को प्रशिक्षण के साथ हथियार और धन तक मुहैया कराया जा रहा है। पाकिस्तान का आतंकवाद पर रवैया दोहरा है। जरा सोचिए, दुनिया के जो नेता या राजनयिक वहां बैठे थे या बाहर टेलीविजन पर सुन रहे थे वे किसकी बातों पर विश्वास करेंगे? पाकिस्तान पर या अफगानिस्तान पर? खैर, भारत ने भी अपनी प्रतिक्रिया दे दी है। भारत ने कहा है कि उसकी पाकिस्तान के साथ एक ही शर्त है कि आतंकवाद खत्म हो।

आतंकवाद पर नवाज के प्रवचन को कौन देश सुनेगा। अमेरिका में मैनहट्टन का जो धमाका हुआ उसका आरोपी अहमद खान रहामी ने क्वेटा में प्रशिक्षण लिया था। सैन बर्नाडिनो हमले में शामिल तशफीन मलिक पाकिस्तान मूल की निकली। पेरिस हमले का एक आरेापी लश्कर ए तैयबा का था। बेल्जियम हमले में शामिल छः पाकिस्तानी मूल के आतंकवादी पकड़े गए। जहां आतंकवादी हमला उसका कोई न कोई सूत्र पाकिस्तान से जुड़ता है। उड़ी आतंकवादी हमले पर दुनिया भर से जो प्रतिक्रियाएं आईं हैं पता नहीं पाकिस्तान के रणनीतिकारों ने उनका भी ठीक से अध्ययन किया या नहीं। आप आतंकवाद के खिलाफ 21 सितंबर को भाषण दे रहे हैं और एक बार भी 17 सितंबर को हुए उड़ी हमले का जिक्र नहीं किया जिसमें 19 सैनिक शहीद हो चुके हैं। क्या इसका असर नहीं होगा? फिर जिस बुरहान वानी को दुनिया हिज्बुल मुजाहिद्दीन का आतंकवादी मान चुकी है उसे आप अपने भाषण में आजादी के जंग का नेता तथा शहीद बता रहे हैं। इसे कहते हैं अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना। सच कहें तो इसके द्वारा पाकिस्तान ने अंग्रेजी में जिस सेल्फ गोल कहते हैं वही किया।

 जो सूचना है भाषण के ठीक पहले नवाज शरीफ ने अपने सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ से बातचीत की थी। कम से कम भारत के प्रधानमंत्री या किसी नेता को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भाषण देने के पहले ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। जाहिर है, नवाज जो कह रहे थे उसमें पाकिस्तानी सेना की सोच शामिल थी। ऐसा नहीं है कि इसे संयुक्त राष्ट्र के महासचिव सहित दूसरे राजनयिक या दुनिया के प्रमुख देशों ने नोट नहीं किया होगा। आतंकवाद पर पाकिस्तान का सच पूरी दुनिया को पता है। लेकिन जरा सोचिए, जो विश्व का सबसे बड़ा नाभिकीय प्रसारक है वह नाभिकीय निरस्त्रीकरण पर प्रवचन कर रहा था। नवाज ने भारत के साथ द्विपक्षीय नाभिकीय परीक्षण प्रतिबंध संधि का प्रस्ताव रखा। वे लगातार नाभिकीय अस्त्र बढ़ा रहे हैं। आज इजरायल एवं उ. कोरिया से ज्यादा नाभिकीय अस्त्र उनके पास है। क्या इसकी जानकारी संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के प्रमुख देशों को नहीं है? उ. कोरिया के बाद पाकिस्तान दूसरा देश है जो नाभिकीय अस्त्र की धमकी देता है। हाल ही में भारत की ओर इशारा करते हुए पाक के रक्षा मंत्री ने कहा कि हम टैक्टिकल नाभिकीय अस्त्र के प्रयोग से नहीं हिचकेंगे। नाभिकीय अस्त्र को लेकर एक दिन पहले ही अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने मुलाकात मंे नवाज को झाड़ लगाई थी। उन्होंने कहा था कि आप नाभिकीय अस्त्र विस्तार पर विराम लगाएं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तो खैर उनसे मुलाकात ही रद्द कर दी।

अब आइए कश्मीर पर। पिछले दो सालों में कश्मीर में हस्तक्षेप का पाकिस्तान की आधा दर्जन औपचारिक अपील संयुक्त राष्ट्रसंघ ठुकरा चुका है। संयुक्त राष्ट्र ने अंततः 2010 मेें कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय विवादों की सूची से बाहर कर दिया। क्या वह इसे दोबारा वापस लाएगा? वे जिस आत्मनिर्णय संबंधी प्रस्ताव को लागू करने की अपील कर रहे थे उसमें पाकिस्तान स्वयं कठघरे में खड़ा होता है। उसमें पहले पाकिस्तान को ही अधिकृत क्षेत्र खाली करना था, उसे सेना हटानी थी जो आज तक उसने नहीं किया। जम्मू कश्मीर में हमारे 14 हजार से ज्यादा निर्दोष नागरिक आतंकवादियों के हमलों मेें मारे गए हैं यह तथ्य दुनिया के सामने रखा जा चुका है। वे कह रहे थे कि कश्मीरियों की हत्याओं की स्वतंत्र जांच कराएं। वे भूल गए कि फिर उसके तार पाकिस्तान तक भी पहुंचेंगे। हालांकि संयुक्त राष्ट्र इसमें किसी तरह हाथ डालने ही वाला नहीं है। बड़े देश पहले ही इसे द्विपक्षीय मुद्दा मान चुके हैं। इसलिए नवाज की इस कवायद का व्यर्थ जाना पहले से ही निश्चित था। ऐसा नहीं है कि नवाज इसे नहीं जानते। किंतु पाकिस्तान की जो अंदरुनी स्थिति है। पनामा लीक में े परिवार के सदस्यों के नाम आने के बाद उनके खिलाफ जो वातावरण है उसमें अपनी रक्षा के लिए उनके पास यही एक चारा था जिससे वे परंपरागत भारत विरोधी मानसिकता वालों के सामने हीरो बन सकते थे तथा सेना की नजर में सुर्खरु कहला सकते थे।

किंतु इसमें वे गलतियां करते चले गए। नवाज का भाषण ऐसा था मानो वहां जो बैठे हैं वो अशिक्षित हैं या अखबार नहीं पढ़ते, उनके बारे में जानते नहीं। उनकी बॉडी लैंग्वेज भी देखने लायक थी। चेहरे पर थकान का भाव, एकदम लयहीन भाषण, आवाज मंे दम नहीं.....। ऐसा तभी होता है जब आपको पता होता है कि जो कुछ आप बोल रहे हैं उसमें सच का अभाव है तथा जिसकी आप अपील कर रहे हैं उसे स्वीकारना तो छोड़िए, कोई सुनने वाला नहीं है।

अवधेश कुमार, ई.ः30,गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्पलेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

शनिवार, 17 सितंबर 2016

कश्मीर का यह संकट ही समाधान दे सकता है बशर्ते

 

अवधेश कुमार

समस्याएं, संकट या चुनौतियां हमें परेशान जरुर करती हैं, लेकिन कई बार उन्हीं से ऐसे समाधान भी निकल जाते हैं जिनकी हम कल्पना नहीं करते। हां, यह तभी संभव है जब हम संकट को समाधान की दृष्टि से देखें और लाख विरोधों, आलोचनाओं के बावजूद उस पथ पर डटे हुए आगे बढ़ते रहें। कश्मीर के वर्तमान संकट को लेकर केन्द्र एवं राज्य सरकार की परेशानियां समझ में आतीं हैं। लेकिन इसके साथ कुछ ऐसी बातें भी हो रहीं हैं जो इसके पहले कभी नहीं हुईं और उनसे ही आशा की किरण झलक रहीं हैं। इसमें तो दो राय नहीं कि 8 जुलाई को आतंकवादी बुरहान वानी और उसके दो साथियों के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद जो हिंसा एवं उपद्रव आरंभ हुआ वह अवांछित था। 2010 मे ंचार लोगों के गलत तरीके से मारे जाने का मामला था और उसको आधार बनाकर ंिहंसा कराने वालों को अपने पक्ष में कुछ तर्क भी मिल सकता था। इस बार आतंकवादी के मारे जाने का मामला है। चाहे अलगाववादी जो तर्क दें, पूरे देश में और दुनिया के स्तर पर भी लोगों को यही लग रहा है कि ये सब आतंकवादियों के समर्थक हैं। इसलिए उनके प्रति पाकिस्तान के घड़ियाली आंसू के अलावा किसी की सहानुभूति नहीं हो सकती। यहां तक कि हुर्रियत से बातचीत का सुझाव देने वाले भी सार्वजनिक तौर पर नहीं कह सकते कि आतंकवादी का मारा जाना गलत था और इसलिए आपका गुस्सा जायज है।

हुर्रियत या अलगाववादी समस्या के मूल में हैं। कश्मीर में आतंकवाद और हिंसा के पिछले ढाई दशकों के इतिहास में अलगाववादी इस बार जितने नंगे हुए हैं उतना पहले कभी नहीं हुए। मीडिया की कृपा से उनकी पूरी कलई खुली है। उन पर आम जनता के कर का भारी रकम खर्च लंबे समय से किया जा रहा है, पर देश के सामने उसका एक-एक पक्ष इस तरह कभी आया नहीं था। जिस ढंग से इस विषय को रखा गया उससे देश का माहौल यह बना है कि अरे, ये हमारे पैसे पर ऐश करते हैं और हमारे देश को ही गाली देते हैं! बंद करो इनको धन देना, रोक दो इनकी सुविधाएं....। यह माहौल भारत में इसके पहले कभी नहीं बना था। ये भी अच्छा हुआ कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के कुछ सदस्य सुर्खरु बनने के चक्कर में इनके दरवाजे खटखटाने पहुंच गए और इनने उनसे बातचीत नहीं की। बहुमत जनता ने उन छः सांसदों के इस व्यवहार को ठीक नहीं माना, लेकिन हुर्रियत के नेताओं के इस व्यवहार ने उनके खिलाफ आक्रोश को और घनीभूत किया है। कभी यह कल्पना नहीं की जा सकती थी कि पीडीपी और मेहबूबा मुफ्ती खुलकर हुर्रियत की आलोचना करेंगी। आप देख लीजिए, मेहबूबा कह रहीं हैं मेहमान को दरवाजे से वापस करके इनने उनका नहीं अपना अपमान किया है। मेहबूबा ने तो यहां तक कह दिया कि ये गरीब के बच्चों के हाथों में पत्थर पकड़ाते हैं और वे मरते हैं। अगर पत्थरबाजी में इनके बच्चे मरे या घायल हुए हों तो मैं राजनीति छोड़ दूुगी। मेहबूबा का यह रुख असाधारण है। उनका और उनकी पार्टी की सोच अलगाववादियों के प्रति नरमी और सहानुभूति का रहा है।

हुर्रियत के इसी व्यवहार ने नरेन्द्र मोदी सरकार के इस निर्णय को बल प्रदान किया कि उनसे बात नहीं करनी है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह को जम्मू में यह कहने का अवसर मिल गया कि ये कश्मीरियत, जम्हूरियत और इन्सानियत तीनों में विश्वास नहीं करते। राजधानी दिल्ली में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की बैठक के बाद सरकार ने साफ किया कि जो बात करने के इच्छुक हैं उनसे बात की जाएगी लेकिन देश के संप्रभुता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। हालांकि मेहबूबा मुफ्ती ने भी पीडीपी के अध्यक्ष के रुप में हुर्रियत नेताओं को पत्र लिखकर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से बात करने को आमंत्रित कर दिया था, लेकिन उनको भी पता था कि वे नहीं आने वाले। जाहिर है, अब उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होगी तो मेहबूबा भी उनके साथ खड़ी नहीं हो सकतीं। पहली बार इतनी गहराई से एनआईए हुर्रियत नेताओं सहित कइयों के लेनदेन की जांच कर रही है जिनमें सैयद अली शाह गिलानी का बेटा भी है। हवाला से धन आने का भी खुलासा हो जाए तो इनका पक्ष और कमजोर होगा।

अन्य दलों और समूहों ने जो बातें रखीं उनकी सूची देखें तो उसमें पुरानी बातें ही हैं अफस्फां हटे, पैलेट गनों का प्रयोग बंद हो, राजनीतिक समाधान हो, ज्यादा स्वायत्तता मिले.... आदि आदि। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के पूर्व राजनाथ सिंह दो बार श्रीनगर जाकर राजनीतिक दलों और नागरिक समूहों से मिल चुके थे। जम्मू कश्मीर का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से भी आकर अपनी बात रख चुका था। तो सरकार के सामने यह साफ था कि वहां के दल क्या चाहते हैं और समस्या क्या है? आज का सच यह है कि किसी दल या समूह ने वर्तमान संकट या कश्मीर समस्या के समाधान का कोई ठोस सूत्र नहीं दिया। यानी सब अंधेरे में तीर चला रहे हैं। वर्तमान हिंसा दक्षिण कश्मीर के मूलतः चार जिलों तक सीमित है। उसे विस्तारित करने की कोशिशें हो रहीं हैं और उनके भय से गांवों में भी लोग इनकी सभाओं में आ रहे हैं। किंतु यह स्थिति किसी समय बदल सकती है।

लंबे समय बाद पाकिस्तान ने कश्मीर पर पुरानी उग्रता दिखाकर भारत भर में गुस्सा पैदा किया है और यह धारणा पुष्ट हुई है कि जो कुछ हो रहा है उसके पीछे पाकिस्तान है। 2010 और 2008 की हिंसा के समय पाकिस्तान का ऐसा रुख नहीं था। पाकिस्तान ने अपने व्यवहार से कश्मीर पर दिखावे के लिए भी बातचीत की संभावना पर तत्काल विराम दे दिया है। इसे अच्छा ही मानना चाहिए। कश्मीर का संकट इसलिए अनसुलझा रहता था कि हम कभी पाकिस्तान से बातचीत की भावुकता में फंसते थे तो कभी हुर्रियत का मत समझने की कोशिशों में। माकपा के सीतराम येचुरी और उनके जैसे कुछ नेता भले हुर्रियत और पाकिस्तान से बातचीत की वकालत करे, इस राय का भारत मंे आज खरीदार नहीं है। वैसे भी जो नेता देशद्रोही नारा लगाने वालों के खिलाफ खड़े हो सकते हैं, उनको हीरो बना सकते हैं उनसे हम कश्मीर मामले पर माकूल कठोर कदम के समर्थन की उम्मीद नहीं कर सकते। आज सरकार के पास उनको जवाब देने का आधार है कि ये हुर्रियत जब आपसे बात को तैयार नहीं हुए, पाकिस्तान जब कश्मीर में आग लगाने पर तुला है तो उसका सामना करें कि बात करें।

सरकार ने आजादी के बाद पहली बार गिलगित बलतिस्तान सहित पाक अधिकृत कश्मीर पर खुलकर हक जताया है। पाकिस्तान से पूछकर कि आप इसे कब खाली कर रहे हैं कश्मीर समस्या के स्वरुप को बदलने की रणनीति अपनाई है। बलूचिस्तान के बारे मंे प्रधानमंत्री के एक वक्तव्य नें बलूच राष्ट्रवाद की ज्वाला को फिर से प्रज्वलित कर दिया है। भारत जहां तक आगे बढ़ गया है उसमें पीछे हटने की संभावना फिलहाल नहीं है। इसमें केन्द्र सरकार को अपने नजरिए से पहल करने या कदम उठाने में बहुत ज्यादा समस्या नहीं है। वैसे भी 2014 के आम चुनाव में कश्मीर भी एक प्रमुख मुद्दा था और नरेन्द्र मोदी को जनादेश इसके अपने दृष्टिकोण से समाधान के लिए मिला था। लोकतंत्र में आप सर्वदलीय बातचीत करें, प्रतिनिधिमंडल ले जाएं, सबसे विचार करें, यहां तक कोई समस्या नहीं है, लेकिन अपेक्षा यही होगी कि आप अपना दृष्टिकोण साफ रखें और बिना किसी हिचक के कदम उठाएं। यह संकट वाकई समाधान का आधार बन सकता है। वर्तमान संकट या पूरी कश्मीर समस्या सैन्य-राजनीतिक समस्या है और इसका समाधान इसी रास्ते हो सकता है। सरकार हिंसा रोकने के लिए कठोर कदम उठाए, हुर्रियत की सारी सुविधाएं वापस ले, े धन के स्रोतों की जांच कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और साथ में कश्मीर के आम आदमी के विकास और रोजगार के लिए जो आर्थिक राजनीतिक निर्णय करने हो वह भी करे। दूसरी ओर बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर पर तीव्र कूटनीति से पाकिस्तान को उलझने को मजबूर करे। किंतु इन सबके लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है। परिस्थितियां आपके पक्ष में हैं, कुछ विरोधी खड़े हो सकते हैं, मानवाधिकार के नाम पर छातियां पीट सकते हैं, कुछेक नेता संसद में हंगामा करने की कोशिश कर सकते हैं...इनसे अप्रभावित हुए सरकार को काम करना होगा। फिर देखिए जो कुछ वर्षों में नहीं हुआ वह चमत्कार हमंें देखने को मिल सकता है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरः01122483408, 09811027208

 

 

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का हस्र

 

अवधेश कुमार

हमारे माननीय सांसद एकजुट होकर प्रतिनिधिमंडल के रुप में जम्मू कश्मीर जाएं और वहां सभी पक्षों से बातचीत कर शांति स्थापना का रास्ता तलाशें इससे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। सामान्यतः ऐसे प्रयासों का स्वागत ही किया जाना चाहिए। जबसे कश्मीर में ंिहंसा एवं उपद्रव आरंभ हुआ, अलग-अलग पार्टियों की मांग थी कि एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल वहां जाना चाहिए। किंतु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने अपने दो दिवसीय दौरे में ऐसी क्या नई जानकारी हासिल की जो उन्हें या देश को पहले से पता नहीं था? आतंकवादियों के मारे जाने पर जो लोग हिंसा एवं उपद्रव कर रहे हैं उनके साथ यह वायदा तो नहीं किया जा सकता था कि आगे से कोई आतंकवादी नहीं मारा जाएगा। न ही यह कहा जा सकता था कि आतंकवादी का मारा जाना गलत था और हम इसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं। जिन लोगों ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की वो तो प्रत्यक्ष तौर पर हिंसा में शामिल हैं नहीं। न उन सबकी यह क्षमता है कि वो वचन देकर पत्थरबाजों को शांत हो जाने को तैयार कर सकें। तो फिर सर्वदलीय सम्मेलन ने वहां हासिल क्या किया?

जम्मू कश्मीर पर नजर रखने वालों को इसका अहसास था कि इस कवायद से कुछ हासिल होने की संभावना नहीं थी। आखिर इसके पहले कश्मीर के इतिहास में तीन सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल वहां जा चुका है और सबका हस्र विफलता में हुआ। 1990 में उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गया था जिसमंे राजीव गांधी भी शामिल थे। क्या हुआ उससे? जार्ज फर्नांडिस को कश्मीर मामले का मंत्री बनाया गया। किंतु उसके बाद आतंकवाद तेजी से बढ़ा और हालात खराब हुए। 2008 में केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमडल गया। तब श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड को अस्थायी उपयोग के लिए वीरान पड़ी जमीन देने का विरोध उग्र हिंसक हो गया था। तीसरा प्रतिनिधमंडल सितंबर 2010 में गया था जब इसी तरह कश्मीर घाटी में पत्थबाजी हो रही थी। यह चौथा प्रतिनिधिमंडल था। ध्यान रखिए जिस तरह हुर्रियत ने इस प्रतिनिधिमंडल के बहिष्कार का फैसला किया। उसी तरह उसने 2010 और 2008 का भी बहिष्कार किया था। जिस तरह इस बार छह सांसद सीताराम येचुरी, डी. राजा, शरद यादव, असदुद्दीन ओवैसी, जयप्रकाश नारायण और फैयाज अहमद मीर प्रतिनिधिमंडल से निकलकर अलग से हुर्रियत नेताओं से मिलने चले गए थे उसी तरह 2010 मंें भी हुआ था। प्रतिनिधिमंडल के सदस्य स्वयं उनसे मिलने गए थे और हुर्रियत नेताओं ने मीडिया को साथ देखकर अपनी अलगाववादी आग को पूरी तरह प्रज्वलित किया और मिलने गए नेता खाली हाथ लौट आए।

यह कहने में कोई समस्या नहीं है कि हमारे देश के कुछ नेतागण पिछले अनुभव से सबक सीखने को तैयार नहीं है। आप देखिए, हुर्रियत नेताओं ने इनसे बातचीत करने से ही इन्कार कर दिया। सैयद अली शाह गिलानी के घर का दरवाजा भी पूरी तरह नहीं खुला। शब्बीर शाह पहले बातचीत को तैयार थे, लेकिन अंत में मुकर गए। मीरवायज ने बैरंग लौटा दिया तो यासिन मलिक ने कहा कि दिल्ली आएंगे तो मुलाकात करेंगे। मान लीजिए ये मिल भी लेते तो क्या निकलता? जो लोग अपने को भारतीय नहीं कहते, कुछ स्वयं को पाकिस्तानी मानते हैं तो कुछ विवादित इलाके का नागरिक, जो भारत का झंडा जलाते हैं, भारत मुर्दाबाद के नारे लगवाते हैं, उनसे आप बातचीत करके क्या हासिल कर लेंगे? 8 जुलाई को बुरहान वानी के मारे जाने के बाद इनने ही लोगों को भड़काया। यह बात अलग है कि अब इस हिंसा का नेतृत्व इनके हाथों नहीं है। इनको रोक देना भी इनके वश का नहीं है। जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती ने ठीक ही कहा था कि बहुमत जनता शांति से रहना चाहती है, ये कुछ लोग हैं जो बच्चों को भड़काकर आग लगवा रहे हैं। उन्होंने इनकी कुल संख्या पांच प्रतिशत बताई। हम प्रतिशत में नहीं जाएंगे लेकिन मेहबूबा ने खीझ में ही सही हिंसा के लिए इनको जिम्मेवार तो ठहराया। यह बात अलग है कि कुछ दिनों में उनका विचार भी बदला और उन्होंने बतौर पीडीपी अध्यक्ष उनको सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से बात करने का निमंत्रण दे दिया।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाकिस्तान के इशारे पर खेलने वाले जिन हुर्रियत नेताओं का बहिष्कार कर कश्मीर में शांति स्थापना की कोशिश होनी चाहिए, जिनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए उनको इस तरीके से हमारे माननीय सांसद महत्व दे देते हैं। उनको अगर महत्व नहीं दिया जाए तो उनके साथ आने वाली जनता की संख्या भी घटती जाएगी। ध्यान रखिए प्रतिनिधिमंडल मंे हुर्रियत नेताओं से मिलने जाने वालों में भाजपा के साथ कांग्रेस के नेता भी नहीं थे। कांग्रेस को भी उनका अनुभव तो है ही। दिल्ली में सर्वदलीय बैठक के बाद गृह मंत्री ने कहा था कि संविधान के दायरे में जो भी वार्ता के लिए आएगा हम उससे मिलने को तैयार हैं। हुर्रियत पहले ही इस दल से नहीं मिलने की घोषणा कर चुका है। इसलिए किसी को वार्ता का विशेष न्यौता नहीं दिया जाएगा और जो भी बातचीत को आएगा उसका स्वागत होगा। तो सरकार की नीति कश्मीर जाने के पूर्व से ही स्पष्ट थी। संविधान के दायरे में हुर्रियत के नेता आ नहीं सकते थे।

कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि पूरा देश कश्मीर से मोहब्बत करता है। हम यहां बड़ी उम्मीदों के साथ आए हैं। कश्मीर समस्या के समाधान और कश्मीर में अमन बहाली के लिए सभी को सहयोग करना चाहिए। प्रतिनिधिमंडल ने सबसे पहले मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मुलाकात की। महबूबा ने वार्ता में सभी पक्षों को शामिल करने और बिना शर्त बात किए जाने का मशविरा दिया। नेशनल कांफ्रेंस के कार्यवाहक प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने समस्या के राजनीतिक समाधान पर जोर दिया। लेकिन सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पर उनकी राय देखिए। प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के बाद उमर ने कहा कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का आगमन अच्छी बात है लेकिन कश्मीर में इस तरह के प्रयास अपनी विश्वसनीयता व प्रासंगिकता गंवा चुके हैं। मैं इस दौरे को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हूं। उमर ने कहा कि आज मेरी ही पार्टी के कई नेता इस मुलाकात के लिए राजी नहीं थे। वर्ष 20082010 में जब केंद्रीय दल यहां आए तो उससे मिलने के लिए बहुत से संगठन आए। लेकिन आज मुख्यधारा के चंद सियासी दलों के अलावा सिविल सोसाइटी का कोई बड़ा संगठन मिलने को तैयार नहीं है। तो मुख्यधारा की एक मुख्य पार्टी का यह विचार है प्रतिनिधिमंडल को लेकर। जो मेहबूबा ने कहा उसमें भी नया कुछ नहीं है। दूसरे संगठनों ने भी जो कुछ कहा वह सब पहले से जानी हुई बात है।

घाटी के नुटनुसा में कश्मीरी पंडित कर्मचारियों के क्वार्टरों में हुई लूटपाट और हमले की घटना के विरोध में ऑल पार्टीज माइग्रेंट कोआर्डीनेशन कमेटी के बैनर तले कश्मीरी पंडितों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन कर रहे पंडितों का कहना था कि वादी में कश्मीरी पंडित कर्मचारियों के लिए काम करने लायक माहौल नहीं है। 1990 जैसे हालात बने हुए हैं। लिहाजा कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को जम्मू शिफ्ट किया जाए। जाहिर है, प्रतिनिधिमंडल के कानों तक इनकी आवाज अवश्य पहुंची होगी। एक ओर प्रतिनिधिमंडल वार्ता के लिए बैठा था और दूसरी ओर शोपियंा में उपद्रवियों ने निर्माणाधीन मिनी सचिवालय मंे आग लगा दिया। हालांकि जितना समय घाटी में दिया गया उससे काफी कम जम्मू में दिया गया और इसका असंतोष भी वहां दिखा। पंडितों के सिर्फ 8 मिनट का समय मिला, इसलिए उनने बहिष्कार कर दिया। गृहमंत्री ने इसके बाद लेह जाने की भी घोषणा की है। तीनों क्षेत्रों के लोगों से बातचीत का व्यवहार सही नीति है, पर घाटी की तरह अन्य दोनों को भी पर्याप्त समय मिलना चाहिए। हुर्रियत के व्यवहार पर गृहमंत्री की तीखी प्रतिक्रिया को समझना होगा। उन्होंने कहा कि हुर्रियत नेताओं से प्रतिनिधिमंडल के कुछ सदस्य बातचीत करने गए थे, लेकिन उन्होंने बातचीत नहीं की। इसका मतलब साफ है कि उनका इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत में यकीन नहीं है। जो शांति चाहते हैं, हम उन सभी से बात करने को तैयार हैं। बातचीत के लिए हमारा दरवाजा ही नहीं खुला, हमारे रोशनदान भी खुले हैं। राज्य की मुख्यमंत्री ने बातचीत में शामिल होने के लिए पत्र भी लिखा था। सरकार की नीति के अनुसार तो गृहमंत्री महबूबा मुफ्ती की पहल का समर्थन गृहमंत्री को नहीं करना चाहिए। तो फिर उन्होेेंने इसका जिक्र क्यों किया? ऐसा लगता है वो हुर्रियत को कठघरे मंें खड़ा करना चाहते थे। इसलिए दोनों बातों का जिक्र करते हुए उनकी आलोचना की। इसके बाद यह माना जा सकता है कि सरकार का रुख हुर्रियत के प्रति और कड़ा होगा। लेकिन कुल मिलाकर अगर हम यह प्रश्न करें कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमडल से मिला क्या तो उत्तर में अभी शून्य दिखााई देगा।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्पलेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

 

 

 

 

 

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात की पहली रैली, मोदी ने लोगों का विश्वास जीतने का किया प्रयास

 

अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी की गुजरात की यह पहली रैली थी। जाहिर है, उसकी ओर देश भर का ध्यान जाना आवश्यक था। वैसे भी इस बीच पाटीदार आरक्षण आंदोलन तथा दलितों की पिटाई के विरोध में हंगामा के कारण गुजरात देश की सुर्खियों में रहा है। तो लोग यह जानना चाहते थे कि आखिर मोदी इस पर क्या बोलते हैं। हालांकि सरकारी कार्यक्रम होने के कारण यहां ज्यादा राजनीतिक बातचीत की गुंजाइश नहीं थी, फिर भी जिस जल परियोजना का मोदी ने लोकार्पण किया उसमें पूर्व सरकारों की आलोचना तथा अपनी उपलब्धियों को बताने की स्वाभाविक ही गुंजाइश थी। दरअसल, नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध के उपर से समुद्र में बह जाने वाले जल के उपयोग को ध्यान में रखकर सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण सिंचाई योजना (सौनी योजना) बनी थी जो मोदी के खुद के दिमाग की उपज  थी। सौराष्ट्र क्षेत्र का जल संकट समाप्त करने के उद्देश्य वाली इसी महत्वाकांक्षी परियोजना के पहले चरण का मोदी ने लोकार्पण किया। इस योजना के अंदर सौराष्ट्र के 11 जिलों के 115 छोटे बडे बांधों के जलाशयों को सरदार सरोवर बांध के अतिरिक्त जल से भरा जाना है। मोदी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में वर्ष 2012 में करीब 1200 करोड़ वाली इस योजना का शिलान्यास किया था। इसके पहले चरण के तहत 10 जलाशयों को भरा जाना है। 5,000 गांवों को इससे पेजयल उपलब्ध होगा और करीब 10 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई हो सकेगी। चार चरणों वाली यह योजना वर्ष 2019 तक पूरी तरह कार्यान्वित हो जाने की संभावना है। पानी की कमी वाले सौराष्ट्र के लिए इस योजना के महत्व को बताने की आवश्यकता भी नहीं है। इससे सैराष्ट््र जल संकट से उबर पाएगा।

जाहिर है, यह मोदी की निजी उपलब्धि है। हम जानते हैं कि सौराष्ट्र का क्षेत्र पटेलों का गढ़ है। पाटीदार आंदोलन के कारण आम धारणा यह बनी है कि पटेलों का बड़ा वर्ग भाजपा से नाराज चल रहा है। ऐसे क्षेत्र में योजना के पहले चरण का लोकार्पण तथा प्रधानमंत्री बनने के बाद जनता को संबोधन करने का पहला मौका। इसका राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करना स्वाभाविक है। वैसे भी कांग्रेस ने कार्यक्रम की आलोचना करके इसे राजनीतिक मोड़ दे दिया था। कांग्रेस ने कहा था कि इस समय सौनी योजना का उद्घाटन भाजपा से नाराज मतदाताओं को लुभाने का प्रयास है जो सफल नहीं होगा। तो प्रधानमंत्री ने अपने तरीके से इसका जवाब दिया। उन्होंने कहा कि टुकड़े फेंकने से चुनाव तो जीते जा सकते हैं पर देश नहीं चलाया जा सकता। मोदी ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए उनकी सरकार टुकड़े फेंकने में विश्वास नहीं करती। उन्होंने कहा कि हमने इस परियोजना के लिए 15 साल तक कठिन परिश्रम किया है ताकि विकास और बदलाव लाया जा सके। यह योजना किसानों के लिए सोना पकाने वाली साबित होगी। देश अगर सौनी योजना की गंभीरता को समझे तो यह गौरवपूर्ण घटना होगी।

दरअसल, मोदी सौराष्ट्र और पूरे गुजरात के लोगों को यह समझाना चाहते थे कि उन्होंने उनके कल्याण के लिए किस तरह काम किया और आज उसका परिणाम सामने है जबकि कांग्रेस ने ऐसा करने की कभी सोचा भी नहीं। मसलन, उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद गुजरात की समस्याओं को गहराई से समझने और उसे दूर करने के लिए काम करना आरंभ किया। इसके लिए पूरे धैर्य के साथ लोगों को भी समझाने की पूरी कोशिश की। उदाहरण के लिए उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद तीन साल किसानों को यह समझाने में बीत गए कि उनके लिए पानी सबसे महत्वपूर्ण है। लोगों को यह समझ में आया और धीरे-धीरे उनका सहयोग मिलने लगा। इसी का परिणाम है कि आज गुजरात में उन जगहों पर आसानी से पानी उपलब्ध है जहां पहले इसकी कल्पना तक नहीं थी। वैसे प्रधानमंत्री का यह कहना सही था कि सौराष्ट्र में पेयजल और सिंचाई का संकट था तो कच्छ में धूल के सिवा कुछ नजर नहीं आता था। आज कच्छ से 17 हजार टन केसर आम का निर्यात हो रहा है। सीमा की रक्षा करने वाले जवानों को पीने का पानी ऊंटों पर लाना पड़ता था, आज पाइपलाइन से उन्हें सीमा तक नहाने का पानी मिल रहा है। मोदी ने कहा कि ऊंचाई पर होने के कारण सौराष्ट्र कच्छ में पानी पहुंचाना कठिन था, लेकिन सरकार के संकल्प से आज मां नर्मदा गांव- गांव और घर-घर पहुंच गई हैं।

वैसे ऐसी योजना की कल्पना करना आसान नहीं था। जरा इस योजना को समझिए। बरसात के दिनों में नर्मदा जिले के केवडिया में बने सरदार सरोवर नर्मदा बांध के ओवरफ्लो के कारण काफी मात्रा में पानी समुद्र में बह जाता है। इस योजना के तहत समुद्र में बह जाने वाले इसी पानी के करीब एक तिहाई हिस्से को पाइपलाइन के जाल के जरिये वहां से चार से पांच सौ किमी दूर स्थित सौराष्ट्र के बांधों तक पहुंचाया जाना है। करीब तीन मीटर व्यास वाली पाइपलाइन के जरिये विभिन्न महत्वपूर्ण बांधों को आपस में जोड़ा जाएगा। इसका पहला लिंक 180 किमी, दूसरा 253, तीसरा 245 और चौथा 250 किमी लंबा होगा। इन बड़ी पाइपलाइन से छोटे व्यास वाले पाइप का जाल जुडे़गा, जो नर्मदा के अतरिक्त जल को वहां से अन्य छोटे जलाशयों तक पहुंचाएगा। देखना होगा कि मोदी द्वारा सौराष्ट्र को जल पहुंचाने की इस अपने किस्म की अकेली योजना का लोगों पर सकारात्मक असर होता है या नहीं। आखिर अगले वर्ष चुनाव है और तब तक हो सकता है इसका अगला एक चरण पूरा हो जाए। 

मोदी ने अपनी ओर से यही बताने का प्रयास किया कि वो जो कुछ हैं वह गुजरात के कारण तो है हीं, जो कर रहे हैं वह भी गुजरात से सीखकर ही। उन्होंने कहा कि गुजरात में जो सीखा उससे आज देश चलाने में मदद मिल रही है। यानी यह गुजरात ही है जिसने हमें अनेक समस्याओं से जूझने और उसे दूर करने का अनुभव दिया जो देश चलाने में काम आ रहा है। आज अगर दुनिया में भारत के विकास की चर्चा है और रेटिंग एजेंसियां भारत की बेहतर रेटिंग कर रही है तो इसी कारण कि हमने गुजरात के अनुभव से देश को बदलने के कदम उठाए हैं। जिस तरह गुजरात ने जल संरक्षण और एलईडी के जरिये लोगों का जीवन बदला उसे पूरे देश में अपनाकर हम सभी लोगों का जीवन बदलना चाहते हैं। मोदी लगातार देश में जल संरक्षण पर लोगों को जागृत करने की कोशिश करते हैं। एलईडी वल्ब के प्रयोग का विस्तार देशव्यापी किया गया है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का सूत्र भी हम गुजरात में देख सकते हैं। हालांकि मोदी के भाषण में अनेक बात वहीं थीं जो हम उनसे कई बार सुन चुके हैं। जैसे गरीबों को रसोई गैस देने वाली उज्जवला योजना, ओलिम्पिक में लड़कियों के अच्छे प्रदर्शन की चर्चा कर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना का जिक्र, नीम लेपित यूरिया के उत्पादन से इसकी कालाबाजारी रोकना....आदि। इन सबमें बिना नाम लिए भी कांग्रेस की आलोचना के तत्व निहित थे। कांग्रेस ने तो उज्जवला जैसी योजना नहीं चलाई। यूरिया की कालाबाजारी उनके काल में होती थी, क्योंकि उनको इसकी समझ नहीं आई। तो इस तरह जल योजना के लोकार्पण के माध्यम से मोदी ने अपनी राजनीति भी की तथा लोगों का दिल जीतने का प्रयास किया। उन्होेंने कहा कि गुजरात के लोगों ने हमारी बड़ी मदद की। इसका अर्थ हम यह भी लगा सकते हैं कि आपने पहले हमारी मदद गुजरात चलाने में की और अब देश चलाने में कीजिए। इसे हम अस्वाभाविक भी नहीं कह सकते। मोदी की जगह कोई नेता होता तो यही करता। लेकिन प्रश्न है कि क्या एक ओर पटेलों के एक वर्ग का गुस्सा, दलितों का उग्र उभार को जलाशयों का यह पानी और मोदी का भाषण शांत कर सकेगा?

अवधेश कुमार, ई.ः30,गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/