शनिवार, 9 जुलाई 2016

मंत्रिमंडल के फेरबदल को कैसे देखें

 

अवधेश कुमार

नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में जब आरंभ में कैबिनेट मंत्री के रुप में प्रकाश जावदेकर ने तथा अन्य 19 ने राज्य मंत्री के रुप में शपथ लिया तो किसी को उसमें आश्चर्य नही हुआ। जावदेकर की प्रोन्नति की संभावना पहले से व्यक्त की जा रही थी और जो 19 लोग मंत्री बनाए गए उनमें से ज्यादातर अध्यक्ष अमित शाह से मिलने आ चुके थे। इसलिए हमको आपको पहले से यह आभास हो गया था कि ये सब मंत्री बनने वाले हैं। जिन छः ने इस्तीफा दिया उनका नाम भी पहले से सामने था। लेकिन जब देर रात मंत्रियों के विभागों की घोषणा हुई तो उसमें कई आश्चर्य के तत्व आए और उससे लगा कि यह एकदम से सामान्य विस्तार नहीं था। इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा उनके साथी रणनीतिकारों ने गहरा विमर्श किया था। स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटाकर कपड़ा मंत्रालय दिया जाना इस कवायद का सबसे प्रमुख परिवर्तन माना जाएगा। इसकी संभावना हममें से किसी ने व्यक्त नहीं की थी। प्रकाश जावदेकर उसे कैसे संभालते हैं देखना होगा। चौधरी वीरेन्द्र सिंह से ग्रामीण विकास मंत्रालय लेकर इस्पात दिया जाना दूसरा बड़ा परिवर्तन था। तीसरे बड़े परिवर्तन के रुप में हम वेंकैया नायडू से संसदीय कार्य लेकर अनंत कुमार को दिया जाना कह सकते हें। हालांकि जितना बड़ा फेरबदल कहा जा रहा है उतना बड़ा है नहीं, क्योंकि यदि गणना की जाए तो मुख्य 12 बदलाव नजर आते हैं। इनमें भी सम्पूर्ण बदलाव आधे ही है। उदाहरण के लिए वेंकैया नायडू को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय जरुर दिया गया लेकिन उनका शहरी विकास मंत्रालय कायम है। अरुण जेटली पर वित्त एवं कंपनी के अलावा इसका अतिरिक्त भार था जिसे कम किया गया है। उसी तरह रविशंकर प्रसाद को विधि मंत्री अवश्य बनाया गया, लेकिन उनके आस आईटी एवं इलेक्ट्रोनिकी का विभाग बना रहेगा। मनोज सिंहा को संचार का स्वतंत्र प्रभार आया है लेकिन रेल राज्य मंत्री भी वे बने रहेंगे।

तो यह फेरबदल है लेकिन यह पूरे मंत्रिमंडल में फेरबदल नहीं है। जो राज्य मंत्री आए हैं उनको किसी न किसी विभाग में तो देना ही था। हां, 78 मंत्रियों का मंत्रिमंडल मोदी की न्यूनतम सरकार की धोषणा के अनुरुप नहीं है। यह बड़ा मंत्रिमंडल हुआ। इतने बड़े मंत्रिमंडल के बावजूद कई मंत्रियों के पास दो-दो विभाग रहना सामान्य नहीं लगता है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय क्या अतिरिक्त जिम्मेवारी से ही चलेगा? कानून मंत्रालय का काम ही इतना बड़ा है उसमें दूसरे मंत्रालयों के लिए समय कहां से निकाला जाएगा। तो लगता है प्रधानमंत्री ने इसीलिए राज्य मंत्री बनाए हैं ताकि वे कैबिनेट मंत्रियों के निर्देश में शेष काम संभाल सकें। तो देखना होगा सरकार आगे कैसे काम करती है। प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल विस्तार का मकसद बजट प्रस्तावों को तेजी से पूरा करना घोषित किया था। इस पर टिप्पणी करने के लिए थोड़ी प्रतीक्षा करनी चाहिए। नए मंत्रियों से अपेक्षा है कि वे अपने कैबिनेट मंत्रियों के काम को और गति देंगे। हालांकि इसके दूसरे पहलू भी हैं। आजाद भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब फेरबदल के पहले सभी मंत्रियों की बैठक बुलाकर उनसे  प्रगति का विवरण देने और उसका बाजाब्ता पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन देने को कहा गया। कई घंटे लंबी चली बैठक में हर मंत्री को अपनी उपलब्धियां रखने का पूरा अवसर मिला और जहां प्रधानमंत्री को आवश्यकता हुई उन्होंने प्रश्न पूछे। तो उसमें कइयों को अपने बदले जाने तथा हटाए जाने का आभास हो गया होगा। हालांकि कई ऐसे चेहरे अपने पद पर कायम रहे हैं जिनका प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरुप नहीं था। यहां किसी का नाम लेना उचित नहीं होगा। इसका कारण दो ही हो सकता है। या तो उनका स्थानापन्न करने के लिए उनसे बेहतर कोई चेहरा नजर नहीं आया या फिर अन्य कारणों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उनको बनाए रखना प्रधानमंत्री के लिए अपरिहार्य है।

किसी मंत्रिमंडल में परिवर्तन का उद्देश्य क्या होता है? इसका एकमात्र उद्देश्य तो मंत्रालयों के कार्य को श्रेष्ठतम ढंग से अंजाम देना ही होना चाहिए। दो वर्ष का कार्यकाल किसी मंत्री की क्षमता और उसकी कार्यकुशलता के मूल्यांकन के लिए पर्याप्त होना चाहिए। जाहिर है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस तरह से समय-समय पर मंत्रालयों के कार्यों की समीक्षा करते रहे हैं...मंत्रियों से पूछताछ-बातचीत करते रहे हैं...उनसे उनको यह समझ आ गया होगा कि किसमें कितनी योग्यता है। लेकिन चूंकि उनको सरकार के साथ संगठन का भी ध्यान रखना है, सामने उत्तर प्रदेश से लेकर सात राज्यों के अगले वर्ष होने वाले चुनावों पर भी उनकी नजर है...इसलिए मंत्रिमंडल में फेरबदल एक उद्देश्यीय नहीं हो सकता था। भारत की अपनी समस्या भी है। यहां क्षेत्रीय संतुलन के साथ जातीय समीकरण भी बिठाना पड़ता है ताकि विरोधी यह आरोप न लगाएं कि किसी क्षेत्र या जाति विशेष को नजरअंदाज किया गया है और उसकी राजनीतिक क्षति उठानी पड़े। ऐसा करने में कई बार योग्यता और क्षमता नजरअंदाज करनी पड़ती है। वस्तुतः इसकी जगह कोई सरकार होती तो उसको भी बहुउद्देश्यी नजरिए से ही परिवर्तन करना पड़ता।

प्रधानमंत्री के रुप में नरेन्द्र मोदी ने दो वर्ष तक कोई परिवर्तन न करके सरकार को स्थिरता देने का काम किया। अभी भी ज्यादातर प्रमुख मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री बदले नहीं गए हैं। यानी एक बार यदि मंत्री बनाया तो उनको पूरा समय दिया काम करने के लिए। उन्होंने नवंबर 2014 में केवल दो मंत्रियों को शामिल किया। सुरेश प्रभु को रेल मंत्री के रुप में एवं मनोहर पर्रीकर को रक्षा मंत्री के। उसके पूर्व रक्षा मंत्रालय का प्रभार अरुण जेटली के पास था जिनके पास तीन मंत्रालय और थे। उसके अलावा कोई परिवर्तन उनने नहीं किया। चूंकि उनके सामने बहुमत के लिए साथी दलों पर निर्भरता की समस्या नहीं है इसलिए वे पूर्व की कई सरकारों से परे दबावों से मुक्त हैं। साथी दलों के लोकसभा सांसदों की संख्या 50 के आसपास ही है, इसलिए उनके साथ सामंजस्य बिठाना भी कठिन नहीं है और उनके थोड़े बहुत असंतोष को झेलना भी। तभी तो केवल रिपब्लिकन पार्टी के रामदास अठावले तथा अपना दल की सुप्रिया पटेल ही 19 राज्य मंत्रियों में समाहित हो सकीं। शिवसेना का कोई मंत्री नहीं बना तो उसका कारण भी यही है। यह सुविधा पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह या उनके पूर्व अटलबिहारी वाजपेयी को प्राप्त नहीं था। बावजूद इसके मंत्रिमंडल का आकार इतना बड़ा रखना थोड़ा असामान्य लगता है।

वर्तमान परिवर्तन में देखें तो कुछ लोगों को संगठन के लिए खाली रखा गया है। कुछ को शामिल करना अपरिहार्य था। जैसे सर्वानंद सोनोवाल यदि असम के मुख्यमंत्री बन गए तो वहां का प्रतिनिधित्व अनिवार्य था। इसी तरह उत्तराखंड में चुनाव है और वहां का कोई मंत्री था ही नहीं। तो दलित चेहरे के रुप में अजय टम्टा को लाया गया। उत्तर प्रदेश से एक ब्राह्मण, एक दलित और एक पिछड़ी जाति को लाया गया। गुजरात से एक पटेल तो एक आदिवासी को स्थान दिया गया। हां, राजस्थान से चार मंत्रियों को शामिल करना थोड़ा आश्चर्य में अवश्य डालता है। एकाध चेहरे ऐसे थे जिनको बाहर रखने से असंतोष को हवा मिलती और उससे संगठन को क्षति उठानी पड़ती। अगर यह कसौटी बन गई है कि एक उम्र से ज्यादा के मंत्री नही बनाए जाएंगे तो फिर उसको भी लागू किया ही जाना था। मध्यप्रदेश में दो मंत्रियों को उनकी उम्र के कारण हटाया गया तो यह केवल वहीं तक सीमित नहीं रह सकता। तो ज्यादा उम्र के मंत्री नहीं बने। हां,75 पार कर गए दो मंत्रियों को बनाए अवश्य रखा गया। हालांकि राजनीति में उम्र को कभी भी अर्हंता नहंीं बनाया जाना चाहिए। व्यक्ति की योग्यता, काम करने की उसकी क्षमता को एकमांत्र कसौटी बनाया जाना चाहिए। कई कम उम्र के व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक क्षमता उतनी नहीं होती जितनी उनसे ज्यादा उम्र की होती है। इसके परे कुछ बातें साफ हैं। एक, कुछ वरिष्ठ मंत्रियों जैसे गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर, रेल मंत्री सुरेश प्रभु...... आदि का पद सरकार की समय सीमा तक संभवतः स्थिर रहेगी।

अवधेश कुमार, ई.‘30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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