गुरुवार, 21 जनवरी 2016

पेशावर विश्वविद्यालय पर हमला

 

अवधेश कुमार

यह करीब एक वर्ष बाद पेशावर के किसी शिक्षण संस्थान पर सबसे बड़ा आतंकवादी हमला था। सुरक्षा बलों के दावों पर विश्वास करें तो सभी चार आतंकवादी मारे गए और बाचा खान विश्वविद्यालय को मुक्त करा लिया गया है। हालांकि कुछ आतंकवादियों के बच निकलने की भी खबर है। वैसे मृतक छात्रों की जितनी संख्या 20-25 बताई जा रही है वह उतनी नहीं है जितने का अनुमान था। अगर विश्वविद्यालय में करीब 3000 छात्र थे और आतंकवादियों ने घुसकर उनको गोली मारना आरंभ किया तो फिर उसमें हताहत होने वालों की संख्या ज्यादा होनी स्वाभाविक थी। बहरहाल, कारण कोई भी राहत की बात है कि यह कम से कम मृतकों और घायलों की संख्या के अनुसार पेशावर के सैनिक विद्यालय पर 16 दिसंबर 2014 को हुए हमले की पुनरावृत्ति साबित नहीं हो सका। उस समय आंकवादियों ने कुल 146 लोगों की जानें ले लीं थीं जिनमें 132 बच्चे थे। हालांकि आरंभिक खबरों में बताया गया था कि आतंकवादियों ने विश्वविद्यालय में 60-70 छात्रों के सिर में गोली मार दिया है। आतंकवादियों ने विश्वविद्यालय में बॉयज होस्टल पर कब्जा कर लिया था। हमले के भय से अनेक छात्रों ने जान बचाने के लिए स्वयं को बॉथरूम में बंद कर लिया। आतंकवाद से लड़ने के अनुभवी पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को अगर चार घंटे तक मोर्चा लेना पड़ा तो इसका अर्थ है कि यह हमला बहुत बड़ा रहा होगा।

पाक मीडिया के अनुसार 20 जनवरी को खैबर पख्तूनवा में पेशावर से 30 किमी दूर चरसद्दा में स्थित इस विश्वविद्यालय में सीमांत गांधी के नाम से मशहूर खां अब्दुल गफ्फार खां की बरसी के मौके पर मुशायरा होने वाला था। इसके कारण वहां काफी संख्या में छात्र मौजूद थे। 600 के करीब मेहमान भी थे जो मुशायरे में शामिल होने के लिए आए थे। जाहिर है, आतंकवादियों ने काफी सोच समझकर ज्यादा से ज्यादा हताहत करने के मंसूबे से ही हमला किया था। चूंकि पिछले काफी समय से पाकिस्तानी सेना व अन्य सुरक्षा बल आतंकवादियों के साथ संघर्ष कर रही है, इसलिए इनसे लड़ने का उसे काफी अनुभव हो गया है। इसी कारण उसने आतंकवादियों को एक जगह घेरने की रणनीति बनाई तथा उसमें सफलता मिली। पहले पाकिस्तान की स्पेशल कमांडो टीम को विश्वविद्यालय कैम्पस में उतारा गया। यह कमांडो टीम वीवीआईपी की सुरक्षा में तैनात रहती है तथा इसे आतंकवाद से जूझने का प्रशिक्षण है। फिर सेना को बुलाया गया। कुछ पैराट्रूपर्स को कैम्पस की छत पर उतारा गया जहां से उनने मोर्चा संभाला। सेना ने अपने 7 हेलिकॉप्टर्स आकाश में उड़ाए। सेना ने धीरे-धीरे ऑपरेशन को अपने हाथों में लिया। इस तरह कहा जा सकता है कि पूरे योजनाबद्व तरीके से सुरक्षा बलों ने इनका मुकाबला किया जिससे इस संकट से क्षति संभावनाओं से कम हुई एवं जल्दी आतंकवादियों को मार गिराया गया।

निश्चय ही पेशावर सैन्य विद्यालय पर हमले से वहां की सेना और आतंकवादियों ने सीख लिया है तथा भविष्य में ऐसे हमलों से कैसे निपटा जाए इसका बाजाब्ता अभ्यास किया है। पेशावर विद्यालय पर भी सुबह ही करीब 10.30 बजे पाक सुरक्षा बलों की ड्रेस में सात तालिबानी आतंकी स्कूल के पिछले दरवाजे से आ गए थे। विश्वविद्यालय में भी उनने ऐसे ही प्रवेश किया। सैन्य विद्यालय में ऑटोमेटिक हथियारों से लैस सभी आतंकी सीधे स्कूल के ऑडिटोरियम की ओर बढ़े। वहां मौजूद मासूमों पर उन्होंने अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। तब छात्र वहां फर्स्ट एड ट्रेनिंग के लिए इकट्ठा हुए थे। इसके बाद आतंकी एक-एक क्लासरूम में घुसकर फायरिंग करने लगे। कुछ ही मिनटों बाद स्कूल के अंदर लाशें बिछ गईं। बच्चों के सामने ही आतंकियों ने स्कूल की प्रिंसिपल ताहिरा काजी को जिंदा जलाया था। आतंकियों ने कुछ बच्चों को लाइन में खड़ा कर गोलियों से भूना, तो कुछ छिपे बच्चों पर तब तक गोलियां बरसाईं जब तक उनके चीथड़े न बिखर गए। इस कत्लेआम के लगभग 40 मिनट बाद पाक सेना ने मोर्चा संभाला था और लगभग छह घंटे चले ऑपरेशन के बाद आतंकवादियों को मार गिराया गया। इस बार सेना व सरक्षा बलों ने आतंकवादियों को उस तरह कोहराम मचाने का अवसर नहीं दिया।

 इस आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालीबान ने ली है। अगर वह ऐलान नहीं करता तब भी संदेह उसी की ओर जाती। ध्यान रखिए तहरीक-ए-तालीबान ने ही आर्मी स्कूल पर हमला किया था। तहरीक का पिछले दो साल से पाकिस्तानी सेना के साथ उत्तरी वजीरीस्तान एवं श्वात घाटी में सीधी लड़ाई चल रही है। लेकिन इनका अंत करना पाकिस्तान के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ है। हालांकि सुरक्षा बलों के औपरेशन से यह निष्कर्ष निकलता है कि उनमें आतंकवादी हमलों से लड़ने की पूरी क्षमता है। वे उनके तौर तरीकों से वाकिफ हैं। इसीलिए प्रश्न उठता है कि आखिर इतनी सक्षम सेना व अन्य सुरक्षा बल आतंकवाद पर काबू करने में सफल क्यों नहीं हो रहे हैं? पेशावर सैन्य विद्यालय पर हमले के बाद स्वयं प्रधानमंत्री नवज शरीफ और सेना प्रमुख राहील शरीफ ने वहां का दौरा किया था तथा उसके बाद से आतंकवादियेां के खिलाफ लड़ाई और कार्रवाई सघन हुई। उसके बाद एक दर्जन से ज्यादा आतंकवादियांें को फांसी पर चढ़ाया गया है। आतंकवादियांें के मामले की तेजी से न्यायालयों में सुनवाई की कोशिश की गई। कुछ न्यायालयों ने जल्दी में फैसले भी दिए और उन पर अमल हुआ। वास्तव में उस हमले ने पूरे पाकिस्तान को हिला दिया था। चूंकि मरने वालों में ज्यादातर बच्चे सेना के परिवार के थे, इसलिए भी कार्रवाई काफी सघन हुई। लेकिन वर्तमान हमले से साफ है कि तहरीक ने हार नहीं माना है।

वर्तमान हमले के समय नवाज शरीफ स्विटजरलैंड के दौरे पर थे और जनरल राहील शरीफ सउदी अरब में। नवाज शरीफ ने वहीं से बयान दिया कि बेकसूर छात्रों और नागरिकों को मारने वालों का कोई मजहब नहीं होता है। हम एक बार फिर मुल्क से दहशतगर्दी को खत्म करने का कमिटमेंट करते हैं। मुल्क के लिए मरने वालों की कुर्बानी को जाया नहीं जाने दिया जाएगा। यही संकल्प नवाज शरीफ ने 17 दिसंबर 2014 को भी लिया था। ऐसा नहीं है कि उसके बाद कार्रवाई नहीं हुई। तेजी से कार्रवाई हुई लेकिन पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक के शाासनकाल से जिस तरह देश का तालिबानीकरण हुआ और बाद की सरकारों ने उसे बढ़ावा दिया, पोषण दिया उससे बाहर निकलना उसके लिए अब कठिन हो गया है। वही तालीबानी सोच और उसके अनुसार खड़ा आतंकवाद उसके लिए ऐसा नासूर बना गया है जिसमें वह फंस चुका है। आतंकवादी हमला वहां आम हो गया है। अब दुनिया का ध्यान भी पाकिस्तान का आम आतंकवादी हमला नहीं खींचता। प्रतिक्रिया यह होती है कि ऐसा तो वहां होता ही रहता है। विश्वविद्यालय पर हमले के एक दिन पहले यानी 19 जनवरी को पेशावर में ही करखानो बाजार में एक सुरक्षा जांच पोस्ट के पास धमाका हुआ जिसमें 11 लोग मारे गए तथा 15 घायल हो गए थे।  इसके पूर्व 29 दिसंबर 2015 को पेशावर के ही निकट मरदान कस्बे में स्थित नेशनल डाटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी के कार्यालय के बाहर हुआ। यह आत्मघाती हमला था जिसमें 22 लोग मारे गए तथा 40 लोग घायल हुए। 18 सिंतबर 2015 को पेशावर स्थित एयरफोर्स कैंप पर को सुबह आतंकवादियों ने हमला कर दिया। इसमें 30 से ज्यादा लोग मारे गए। मरने वालों में 7 से 10 आत्मघाती आतंकवादी भी शामिल थे। इन हमलांे की ओर हमारा ध्यान नहीं गया। इन सारे हमलों की जिम्मेवारी तहरीक ने ही ली।

लेकिन इससे पता चलता है कि पेशावर और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत इनके निशाने पर लंबे समय से है। बाचा खान विश्वविद्यालय पर हमले का कारण भी समझ में आता है। कोई भी आधुनिक शिक्षा तंत्र जो इनकी जेहादी सोच और शरीया शासन के विपरीत शिक्षा देगा वह इनके रास्ते की बाधा है। बादशाह खान तो वैसे भी मजहब के आधार पर पाकिस्तान विभाजन के विरोधी थे और सेक्यूलर सोच के व्यक्ति थे। खैबर पख्तुनख्वा में हालांकि एनएनपी इस समय सत्ता में नहीं है, लेकिन उसका पूरा प्रभाव है। उसका संबंध उस परिवार से है। वह आतंवकाद या मजहबी राज की विरोधी प्र्र्र्रगतिशील विचार की पार्टी है। तो आतंकवादियों ने पहले सेना के विद्यालय पर हमला करके अपने खिलाफ कार्रवाई को चुनौती दी थी और विश्वविद्यालय पर हमला उनका एक विचारधारा पर हमला है। ऐसे विचारधारा पर हमला, जो आधुनिकता का समर्थक है, जो बदलाव का समर्थक है, जो तालीबानी सोच का जमकर विरोध करती है। शरीफ चाहे जितना संकल्प व्यक्त करंे, तालिबान ऐसे हमले आगे भी करेगा। आखिर पाकिस्तान उस विचारधारा के खिलाफ तो संघर्ष नहीं करता जिससे आतंकवाद पैदा होता है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स,दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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