शनिवार, 18 अप्रैल 2015

नरसिंह राव के स्मारक पर आपत्ति दुर्भाग्यपूर्ण

अवधेश कुमार
यह वाकई समझ से परे है कि अगर हमारे देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री की समाधि राजधानी दिल्ली के एकता स्थल में बन जाएगी तो इससे कौन सी आफत आ जाएगी। जिस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव की समाधि बनाने के मोदी सरकार के फैसले पर कुछ हलकों से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। नरसिंह राव ऐसे नाम नहीं रह गए हैं जिनसे किसी पार्टी को वोट का लाभ हो। उत्तर प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री आजम खां ने कह रहे हैं यह कदम राव को अयोध्या में बाबरी ढांचे को ढहाकर वहां चबूतरा बनवा देने के लिए पुरस्कृत करने जैसा होगा। आजम खां के संतुलित बोल से तो पूरा देश वाकिफ हो है। आश्चर्य तो यह है कि कांग्रेस की ओर से भी इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। भाजपा एवं नरेन्द्र मोदी सरकार की सोच के कुछ राजनीतिक पहलू हो सकते हैं, पर इससे एक प्रधानमंत्री के रुप में नरसिंह राव के भारत के लिए योगदान को नकारा नहीं जा सकता।
यह तो एक विडम्बना है कि कांग्रेस पार्टी नेहरु इंदिरा परिवार के अलावा किसी अपने प्रधानमंत्री को महत्व नहीं देती। यहां तक कि उन लालबहादूर शास्त्री को भी नहीं जिनने चीन की पराजय के अवसाद और हीनग्रंथि से देश को 1965 के युद्ध में बाहर निकाल दिया था। शास्त्री जी का जय जवान जय किसान नारे से देश मंें ऐसा रोमांच पैदा हुआ था कि किसानों ने उसी भारतीय खेतों के पैदावार से खाद्यान्न में स्वावलंबिता प्राप्त की तथा रक्षा के मामले में कमजोर माने जाने वाले देश में नवजवान सेना में भर्ती होने के कतारों में खड़े होने लगे। ऐसा प्रधानमंत्री भी कांग्रेस नेतृत्व के लिए प्रमुखता से स्मरण करने योग्य नहीं होता। गुलजारी लाल नंदा को तो कांग्रेस ने अपनी सूची से ही निकाल दिया है। किंतु इस सोच से देंश भी सहमत हो आवश्यक नहीं। सच कहा जाए तो अगर हम अपने देश के उन सभी व्यक्तित्वों को जिनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है मरणोपरांत भी सम्मान नहीं देंगे तो यह केवल उनके प्रति कृतघ्नता नहीं होगी, दूसरे को भी बेहतर करने की प्रेरणा नहीं मिलेगी और सामूहिक मानस कुंठित होगा। इसलिए ऐसे लोगों का सम्मान जरुरी होगा।
कांग्रेस ने जिस मनमोहन सिंह को 10 वर्ष प्रधानमंत्री बनाए रखा वो खोज तो नरसिंह राव के ही थे। यदि राव ने उन्हें बुलाकर 1991 में वित्त मंत्रालय नहीं सौंपा होता तो वे कांग्रेस नेतृत्व की मुख्य कतार में आते कहां से। वास्तव में यदि तटस्थता से विचार करेंगे नरसिंह राव की उपलब्धियां अन्य अनेक प्रधानमंत्रियों से ज्यादा दिखाई देगी। स्वयं मनमोहन सिंह अपने प्रधानमंत्रीत्व काल में उनकी प्रशंसा कर चुके हैं। एक बार नरसिंह राव स्मृति व्याख्यान में उन्होंने कहा कि वे तो राजनीति में होकर भी संन्यासी थे।
यह जानना आवश्यक है कि इसका आग्रह आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से आया है। इस अनुरोध के बाद शहरी विकास मंत्रालय ने इस संबंध में कैबिनेट नोट तैयार किया है। 2004 में उनके निधन के बाद कांग्रेस नेतृत्व वाली तत्कालीन संप्रग सरकार ने उनके लिए कोई भी स्मारक बनवाने से मना कर दिया था। उस समय भी ऐसा प्र्रस्ताव आया था। बाद में तो जाते जाते 2013 में संप्रग सरकार ने फैसला ही कर दिया कि किसी भी नेता के लिए अलग स्मारक नहीं होगा। इसके लिए जगह की कमी का हवाला दिया गया था। वैसे जगह की कमी को ध्यान में रखते हुए एक आम स्मारक स्थल बना है जिसे एकता स्थल कहते हैं।  22.56 एकड़ में फैला एकता स्थल विजय घाट और शांति वन के बीच स्थित है। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री आइके गुजराल, चंद्रशेखर, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, शंकर दयाल शर्मा, केआर नारायण और आर. वेंकटरमन के स्मारक हैं। इसमें नरसिंहराव ही नहीं कुछ दूसरे नेताओं का स्मारक आराम से बनाया जा सकता है। कई नेताओं की समाधि में इतने अधिक स्थान हैं कि उनके नियम में संशोधन कर वहां भी नेताओं के स्मारकों के लिए जगह बनाई जा सकती है। हमारे देश में महापुरुषों की लंबी माणिक्य माला है, जिनमें से अनेक को जन स्मृति में रखने के लिए स्मारक के रुप में जगह दिया जाना चाहिए।
नरसिंह राव के 1991 से 1996 तक के कार्यकाल को याद करें तो उनकी उपलब्धियां देश के पहले प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरु के प्रथम कार्यकाल जैसी लगेगी। देश आर्थिक संकट के दावानल में फंसा था, खजाने की हालत ऐसी थी कि केवल 15 दिनों के आयात भुगतान की विदेशी मुद्रा थी, भारत डिफौल्टर होने की अवस्था में था। चन्द्रशेखर सरकार ने सोना गिरवी रखकर तात्कालिक रास्ता निकाला था, लेकिन स्थायी समाधान खोजने की जिम्मेवारी नरसिंह राव के सिर ही आई थी। मंडल और मंदिर विवाद से देश में तनाव की स्थिति थी। कश्मीर, पंजाब और असम जैसे प्रदेश आतंकवाद की चपेट में झुलस रहे थे। सोवियत संघ सहित साम्यवादी व्यवस्थाओं के ध्वस्त होने के कारण विदेश नीति को भी नए सिरे से समायोजित करने की चुनौती थी। राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने नेतृत्व संभालने से इन्कार कर दिया था एवं कांग्रेस नेतृत्व के संकट से जूझ रहीं थी। इन सब स्थितियों में कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत भी नहीं था। उसके पास केवल 232 सांसद थे। कांग्रेस की संस्कृति मंे नेहरु इंदिरा परिवार के अलावा किसी को सम्पर्ण नेता मानने की सोच अनेक नेताओं मे नहीं थी जो कि नरसिंह राव के लिए एक बड़ी चुनौती थी।
नरसिंह राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री का प्रभार देकर आर्थिक सुधारों की ऐसी श्रृंखला चलाई जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था,जीवन, व्यापार और रोजगार के क्षेत्र का सम्पूर्ण वर्णक्रम बदल गया। हम उदारीकरण और भूमंडलीकरण का विरोध करते हैं और इसके नकारात्मक पहलू हैं भी, पर बाद की सारी सरकरों ने उसी नीति को आगे बढ़ाया है। भारत की पूरी अर्थव्यवस्था पटरी पर आई, दुनिया में इसके विकास की धाम जमनी आरंभ हुई, भुगतान संतुलन दूर हुआ....व्यापार बढ़ने लगा, पूंजी आने लगी...। कश्मीर नियंत्रण में आया। राव के कार्यकाल के बाद वहां जो चुनाव संपन्न हुआ उसकी पूरी आधारशीला उन्होंने ही रखी। पंजाब में चुनाव हुए, निर्वाचित सरकार आई, असम में आई। देश में शांति स्थापित हुई। विदेश के स्तर पर सोवियत संघ के बिखरने के बाद अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के साथ विदेश नीति को नरसिंह राव ने इतनी कुशलता से समाहित किया जिसकी नींव पर आज हमारे संबंध विकसित हुए हैं। रक्षा क्षेत्र में हमारे लिए संकट खड़ा हुआ, क्योंकि तब तक हम केवल सोवियत रुस पर ही निर्भर थे। यह कोई सामान्य स्थिति नहीं थी। एक ऐसे देश को, जिसे अमेरिका हमेशा संदेह की नजर से देखता था, पश्चिमी यूरोप सोवियत गुट का मानता था....उन सबके साथ समायोजित करते हए अलग थलग पड़ने की संभावना को खत्म करना आसान काम नहीं था। जरा सोचिए, एक साथ इतनी चुनौतियां और उनका इस तरह का सामना किस प्रधानमंत्री को करना पड़ा?
नरसिंह राव की एक विशेषता उनको अन्य नेताओं से अलग करती है वह है काम करते हुए भी दावा करने से दूर रहना। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने स्वीकार किया है कि जब वे 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने और प्रभार लेने गए तो उनके टेबुल पर एक पूर्जा रखा हुआ था, जिस पर लिखा था कि नाभिकीय परीक्षण की तैयारी चल रही है आपको पीछे नहीं हटना है। जब अटल जी दोबारा प्रधानमंत्री बने तो राष्ट्रपति भवन में शपथ के तुरत बाद राव उनको अकेले एक कोने में ले गए और कहा कि इस बार परीक्षण हो जाना चाहिए। राव ने कभी इसकी तैयारी का श्रेय नहीं लिया। यह राजनीति में होते हुए ऐसे गुण हैं जो विरले ही मिलते हैं। विद्यालायों में मध्याह्म भोजन योजना से लेकर भविष्य निधि के आधार पर निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के आश्रितों को उसकी मृत्यु पर पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था नरसिंह राव की ही देन है।
उनके कार्यकाल में बाबरी विध्वंस के साथ भ्रष्टाचार के अनेक मामले उजागर हुए। झारखंड मुक्ति मोर्चा कांड में उनको मुकदमे का भी सामना करना पड़ा। पर उन्हाेंने देश को संभाला, इसकी अर्थव्यस्था में बिल्कुल आमूल परिवर्तन किया जिसे क्रांतिकारी मानना होगा। इसी तरह विदेश नीति में भी आमूल परिवर्तन के साहसिक कदम उठाए। जहां तक बाबरी विध्वंस का प्रश्न है तो वह ऐसी दुर्घटना थी जिस पर सच कहा जाए तो राव का वश नहीं चला। अर्जुन सिंह जैसे उनके अनेक साथी कई प्रकार के आरोप लगाते रहे। पर राव के विशेष सलाहकार रहे तथा कैबिनेट सचिव से सेवानिवृत्त हुए नरेश चंद्रा ने कहा है कि यह बिल्कुल झूठ है कि तब राव ने खुद को पूजा के कमरे में बंद कर रखा था। उनके अनुसार क्या जब ढांचा विध्वंस किया जा रहा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री के कार्यालय के किसी अधिकारी ने उन्हें सुस्त पड़ते देखा था? उस पूरे प्रकरण के दौरान राव गृह मंत्री एस बी चह्वाण और तत्कालीन गृह सचिव माधव गोडबोले के संपर्क में थे। उस दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दा यह था कि क्या कल्याण सिंह के नेतृत्ववाली उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर दिया जाता। संविधान के अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करके ऐसा करने का मतलब था कि विपक्षी दल राव सरकार पर धावा बोल देते। हालांकि बाद में नरसिंह राव ने सरकार बरखास्त किया।
नरसिह राव को अपने साथियों से पार्टी के अंदर अनेक बाधाओं और समस्याओं का सामना करना पड़ा। वे हमेशा उनके खिलाफ दुष्प्रचार करते रहे। पार्टी तक में विभाजन किया। बावजूद इसके राव ने एक प्रधानमंत्री के रुप में अपनी भूमिका को श्रेष्ठतम ढंग से अंजाम दिया तथा विरोधियों के बारे में कभी सार्वजनिक तौर पर तीखे या असभ्य भाषा का प्रयोग नहीं किया। ऐसे व्यक्ति की स्मृति को अवश्य जिन्दा रखना चाहिए। यही नहीं अन्य ऐसे व्यक्तियों को जिनको वाकई भुला दिया गया है उनके स्मारक भी बनने चाहिएं।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208
 

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