शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

खेल में ऐसा उन्माद और जुनून

अवधेश कुमार
खेल खेल हैं। इसे खेल की तरह ही लिया जाए तो यह न केवल खिलाड़ी बल्कि उस देखने वालों के अंदर भी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित करेगा, परिश्रम और पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करेगा। लेकिन खेल हमारे दौर में न जाने क्या हो गया है। भारत पाकिस्तान क्रिकेट मैच के बाद के कुछ दृश्य जो हमारे सामने आये हैं डरावने हैं। इस प्रकार का उन्माद कि ऑस्ट्रेलिया तक के एक क्लब में दोनों देशों के लोग एकदम दो गैग की तरह एक दूसरे से मारपीट करते नजर आए। ऐसा लग रहा था जैसे ये खून के प्यासे हों। ये सब पढ़े लिखे और संपन्न परिवारों के लोग हैं। उनमें कुछ घायल भी हो गए। पता नहीं आगे क्या होगा? भारत के कई शहरों में लोग इस तरह पटाखे फोड़ते और नारे लागाते सड़कों पर उधम मचाते निकले कि कुछ जगह हिंसा हो गई। न जाने कितनी खबरें हमारे पास नहीं आई हांेगी, छोटी मोटीं घटनायें हुई भी होंगी और कुछ टाली भी गई होंगी। तो इसे क्या कहेंगे? इसे किसी तरह संतुलित समाज का व्यवहार तो नहीं कहा जा सकता है।
 आम तौर पर शांत दिखने वाले, अपने आप तक सीमित रहने वाले, कार्यालय से घर तक को ही दुनिया बना लेने वालों के व्यवहार में भी मैच के दौरान और उसके बाद अचानक अजीब बदलाव आते आपने देखा होगा। ऐसे व्यवहार कर रहे थे मानो एक मैच के विजय से सनातन दुश्मन को पददलित करने का सुख मिलने वाला है और उसमें हमारी भी हिस्सेदारी है। इस प्रकार का सामूहिक असंतुलन समाज में पैदा होना दरअसल उन्माद और जुनून ही है। इसे हम राष्ट्वाद नहीं कह सकते। प्रश्न है कि इस तरह का जुनून आखिर क्यों पैदा होता है और इसे उत्तेजित करने वाले कौन होते हैं? पाकिस्तान के कराची से एक लाइव तस्वीर टीवी पर दिखाई जा रही है जिसमें लोग गुस्से में अपना टीवी फोड़ते नजर आ रहे है। खबर में कहा जा रहा है कि ऐसा करने वालों के अनुसार न रहेगा टीवी न देखेंगे मैच। पता नहीं इस खबर में कितनी सच्चाई है। आखिर तात्कालिक गुस्से में टीवी फोड़ने वाले चैनलों को पहले से क्यों बुलाकर रखेंगे? या उसकी फिल्म क्यों बनाएंगे? इसलिए वह दृश्य स्वाभविक से ज्यादा कृत्रिम लगता है। ज्यादा संभावना तो इसी बात की है कि वहां इस दृश्य का निर्माण किया गया होगाा। लेकिन यह सच है कि पाकिस्तान में भी इस हार से गुस्से का गुब्बार फूटा और कई जगह लोग खिालड़ियों के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग करते देखे गए। हालांकि उनकी यही खिलाफत तब नहीं होती जब पाकिस्तान किसी दूसरे देश से हारता है।
यही बात हम पर भी लागू होती है। हमारी टीम जब दुनिया की किसी दूसरी टीम से जीतती है तो हमारे अंदर अपने दुश्मन को रौंदने जैसा उन्मादपूर्ण सुख का बोध नही होता। यह अजीब व्यवहार है। कितने लोग अपना भारी खर्च करके पटाखे खरीदते हैं जुलूस निकालते, निकलवाते हैं......पार्टियां करते हैं, पबों में क्लबों में डांस....फिर सड़कों पर हंगामा....... न जाने क्या क्या होता है? कभी हमने शांति से बैठकर यह सोचा है कि  इन सबसे हम माहौल कितने जुनून और उन्माद का बना रहे हैं और इसके परिणाम क्या आयेंगे? पाकिस्तान और भारत के बीच रिश्ते वैसे ही आतंकवाद, कश्मीर में हिंसा और सीमा पार से गोलीबारी की भेंट चढ़ता रहा है। पाकिस्तान अपनी जड़विहीन राष्ट्रीयता की कंुठा तथा स्वयं को भारत के बराबरी दिखलाने की विकृत नीतियों के कारण हमेशा तनाव पैदा करता रहा है। हर मानवतावादी युद्ध का विरोधी होगा,  लेकिन इन मामलों में भी यदि आतंकवादी मारे जाएं, या सीमा पर हमारे सुरक्षा बल पाकिस्तानी सुरक्षा बलों की साजिशों को अपनी वीरता से ध्वस्त कर दें, पाकिस्तान को झुका दे ंतो जश्न और जुनून समझ में आता है। उसमें यदि आपका राष्ट्रवाद तुष्ट होता है तो फिर भी एक हद तक उसे स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन क्रिकेट या हौकी या ऐसे किसी खेल में विजय से व्यावहारिक धरातल पर कोई अंतर नहीं आने वाला।
साफ है कि हमारे देश का बड़ा वर्ग सच और झूठ के युद्ध में अंतर नहीं कर पाता, सच्चे और झूठे विजय के बीच अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पता। एक सामान्य से 100 ओवर के मैच पर, जिससे वास्तविक जीवन या धरातल पर किसी मामले में कोई अंतर नहीं आ सकता, राष्ट्रभक्ति के नाम पर ऐसा उन्माद डरावना है। यह शत प्रतिशत विवेकहीनता है। राष्ट्रवाद या राष्ट्रभक्ति इतनी संकुचित अवधारणा नहीं हो सकती। गांधी जी ने तो कहा कि हमारा राष्ट्रवाद यदि दूसरे के राष्ट्वाद से टकराव का कारण बन जाये, या हमारा राष्ट्रवाद किसी तरह दूसरे का विरोधी हो जाए उसे डराने लगे तो यह राष्ट्रवाद नहीं हो सकता। गांधी जी अकेले ऐसे कहने वाले नहीं थे। आप स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविन्द, सुभाषचन्द्र बोस.....जिनका अंग्रेजों के समय राष्ट्रीयता का भाव पैदा करने मे महान योगदान था, सबने यही बात कही है। उनके शब्द और वाक्य अलग हैं, पर भाव यही है।  पाकिस्तान एक असंतुलित देश है। उसका व्यवहार असंतुलित हो सकता है। भारत के लोगों का आचरण तो परिपक्व होना चाहिए। हमंें तो अपने मनीषियों की सोच के अनुसार व्यवहार करना चाहिए।
टीम की जीत पर खुश होने में कोई समस्या नहीं। आप खुशी मना लीजिए, लेकिन उसकी सीमा होगी। खुशियां अंधराष्ट्रवादी जुनून में बदल जाएं तो इसका चरित्र दूसरा हो जाता है और फिर ऐसी खुशियां न जाने कितनों के लिए मातम में बादल जातीं हैं। अगर ऐसा नहीं हो रहा और इसकी जगह उन्माद और जुनून पैदा होता है तो इसके पीछे अगर कुछ शक्तियां, कुछ माध्यम हैं तो उनकी भी पहचान करने की आवश्यकता है। प्रश्न यह भी है कि क्या हम राष्ट्रीयता के असली मायनों से विमुख हो चुके है या हो रहे है? या हमारे अपने अंदर का सामूहिक अवसाद, कुंठायें, विफलताओं से पैदा हुआ क्षोभ... आदि ऐेसे समय दूसरे रुप मंें प्रस्फुटित हो जातीं हैं? हम माने या न मानें यह सकारात्मक राष्ट्रीय चेतना के धूमिल पड़ने का प्रमाण है। आखिर हम यह क्यों नहीं सोचते कि खेल भावना जैसा शब्द और विचार काफी विचार करने के बाद प्रयोग मंे लाया गया। इसका अर्थ क्या है? चाहे हम जीतें या हारें, एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के रुप में इसे लें ताकि सबके अंदर सकारात्मक चेतना का विकास हो। खेल प्रतिस्पर्धाओं की कल्पना ही देशांे को निकट लाने, उनके बीच भाईचारा, सहकार विकसित करने के लिए की गई थी। अगर ये प्रतिस्पर्धायें इसके विपरीत भाव पैदा कर रहीं हैं तो फिर ऐसे आयोजन पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाएगा। ऐसा होता है तो हमें रुककर ऐसे आयोजनों पर ही पुनर्विचार करना पड़ेगा।
 अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

इसके गहरे आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिणाम होंगे

अवधेश कुमार
तो अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार न काम करना आरंभ कर दिया। इतने बड़े जानदेश के बाद यह केवल औपचारिकता थी। कोई भी राजनीतिक परिवर्तन या चुनाव परिणाम केवल सदन के अंकगणित तक सीमित नहीं रहता। उसका अवश्यंभावी राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिणाम होता है। खासकर जब ऐसी पार्टी सत्ता में आई हो जो कि सम्पूर्ण नागरिक सेवाओं, प्रशानिक दुर्बलताओं, व्यापारिक गतिविधियों, कर प्रणाली के साथ शिक्षा एवं स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे में आमूल परिवर्तन की घोषणा कर रही हो। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि हमें अहंकार नहीं करना है और दिल्ली को बेहतर दिल्ली बनाना है। उनके शब्द थे कि आज कांग्रेस की दुर्दशा इसलिए हुई, क्याेंकि वह अहंकार का शिकार हो गई थी और भाजपा भी अहंकार का शिकार थी, इसलिए उसकी ऐसी हालत हुई। तो इसमें भविष्य के लिए राजनीतिक और आर्थिक संदेश दोनों छिपे है। हालांकि उनके दूसरे नेताओं ने भारत की सम्पूर्ण राजनीति में क्रांति लाने की बात तक की, पर केजरीवाल पिछली बार की तुलना में ज्यादा संतुलित हैं। पिछली बार जीतने के बाद उनकी भाषा में जितना क्रोध और अहं था, विरोधी पार्टियों के लिए जो हिकारत भाव था, वह इस बार नहीं दिखा है। इस नाते इसको एक परिपक्व व्यवहार कहा जा सकता है। देखना होगा यह परिपक्व व्यवहार कब तक कायम रहता है।
भाजपा की ऐसी बुरी पराजय क्यांें हुई, आआपा की ऐसी ऐतिहासिक जीत किन कारणों से हुई और कांग्रेस का पूर्णतया सफाया हो जाने के पीछे कौन से कारक हाबी थे.....आदि पर हम कई प्रकार के मत व्यक्त कर सकते हैं। कुछ कारण हमारे सामने साफ हैं और उन पर चर्चा करना अप्रासंगिक नहीं है। लेकिन हम यहां यहीं तक अपनी बात सीमित रखेंगे कि दिल्ली के लोगों ने किरण बेदी और अजय माकन के चेहरे से केजरीवाल का चेहरा ज्यादा विश्वसनीय माना एवं उनके वायदों से ज्यादा आकर्षित हुए, अन्यथा ऐसा एकपक्षीय बहुमत नहीं आता। भाजपा एवं कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दोनों उम्मीदवार की पराजय सामान्य परिणाम नहीं है। तो इस असामान्य परिणाम के आगे क्या परिणाम होंगे जरा उन पर विचार करें। राजनीतिक दृष्टि से देखें तो कई वक्तव्य हमारे सामने आ गए है। एक है, कोलकाता की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जिन्होंने कहा कि यह अहंकार की पराजय है और उन्होंने आगे आआपा और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर भाजपा विरोधी मोर्चा की बात कही। दूसरा वक्तव्य बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है। उन्होंने भी कहा कि इसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ेगा एवं हवाबाजी की पराजय आरंभ हो गई है।
हम नीतीश के इस वक्तव्य से सहमत नहीं हो सकते कि यहां से भाजपा की पराजय की शुरुआत हो गई है और नरेन्द्र मोदी की सरकार केवल हवाबाजी कर रही है। न ही हम ममता के विश्लेषण से सहमत हो सकते हैं। लेकिन अब विरोधी पार्टियां, जो किसी तरह मोदी की एक पराजय देखना चाहती थी ताकि भाजपा का नैतिक बल कमजोर हो एवं उनको यह कहने का मौका मिले कि देखो मोदी की हवा निकल गई, झूठ का खेल सामने आ गया और अब हम उनको पराजित कर सकते हैं। यानी अपने समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं में यह विश्वास पैदा करना कि मोदी अपराजेय नहीं हैं, हम एकजुट होकर लड़े तो उनको हरा सकते हैं। इसका प्रचार जोर-शोर से होगा। दिल्ली में सारी भाजपा विरोधी पार्टियों ने, भले उनका जितना मत रहा हो, आआपा को विजय दिलाने के लिए काम करने का आह्वान किया था। इससे सामान्य निष्कर्ष यह निकलता है कि दिल्ली की तरह दूसरे राज्यों में भी शायद ऐसा प्रयोग हो सकता है। पर बिहार में नीतीश एवं लालू गठजोड़ के अलावा ऐसा कोई गठजोड़ बनता नहीं दिखता। आआपा को समर्थन देने वाली वामपंथी पार्टियों एवं ममता के बीच गठजोड़ कैसे संभव है? इसी तरह मायावती एवं मुलायम सिंह के बीच हाथ मिलाने की अभी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। बावजूद इसके विरोधी दलों का पक्ष थोड़ा मजबूत होगा और भाजपा बचाव की मुद्रा में रहेगी। उसका आक्रामक तेवर नीचे आयेगा। आआपा अन्य दलों के साथ उनके राज्यों में गठजोड़ करेगी और उसका असर होगा यह कहना अभी कठिन है। इसलिए इसके लिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी। साथ ही भाजपा विरोधी पार्टियों में कांग्रेस भी शामिल है, उसका स्थान इसमें कहीं होगा या नहीं यह भी साफ नहीं है। आआपा तो उसके साथ नहीं जा सकती है। तो दिल्ली चुनाव परिणाम से निकले संदेशों की चाहे अलग-अलग पार्टियां अपने तरीके से व्याख्या करें, वे तत्काल जितने उत्साहित हो जाएं, इसकी कोई ठोस निश्चित रुपाकार की कल्पना अभी नहीं की जा सकती।
लेकिन इसके व्यापक आर्थिक परिणामों से इन्कार नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए आआपा ने पिछली सरकार के दौरान ही खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश न करने का निर्णय लिया था। हालांकि संप्रग सरकार में भाजपा भी इसकी विरोधी थी, किंतु नरेन्द्र मोदी जिस अर्थनीति पर चल रहे हैं उसमें विदेशी निवेश का व्यापक महत्व है। पता नहीं वे क्या चाहते हैं, पर अगर इस तरह केजरीवाल ने अन्य कुछ क्षेत्रों में विदेशी निवेश को रोकने का कदम उठाया तो इसकी आर्थिक प्रतिध्वनि काफी गहरी होगी। दूसरा उदाहरण व्यापार पर लगने वाले वैट का है। अपने 70 सूत्री घोषणा पत्र में आआपा ने कहा है कि वह दिल्ली में वैट घटायेगी ताकि यहां के सामान ज्यादा बिकंे और आर्थिक गतिविधियां तेज हो। साफ है कि वे ऐसा करेंगे तो इसका प्रभाव दिल्ली के खजाने पर पड़ेगा एवं इससे दूसरे राज्य भी प्रभावित होंगे। अगर बिक्री अपेक्षानुरुप नहीं बढ़ी और खजाने में धन नहीं आया तो फिर कठिनाई पैदा हो सकती है। हालांकि जीएसटी पर सभी राज्य समझौते के करीब हैं.....पर केजरीवाल क्या करेंगे कहना कठिन है। ये दो उदाहरण तो नीतियों के हैं जो संभवतः केन्द्र सरकार एवं कई राज्य सरकारों की नीतियों से अलग जाते हैं।
नीतियों से परे आआपा ने 70 सूत्री घोषणा पत्र में जो वायदे किए हैं जिसमें लोगों के सिर से खर्च का बोझ घटाने एवं कोई कर या शुल्क न लगाना शमिल हैं और जो इसकी विजय का सर्वप्रमुख कारण है, उसके खर्च के आकलन से सिर चकरा सकता है। कुछ पर नजर दौड़ाइए-  बिजली बिल आधे किए जाएंगे, दिल्ली का अपना पॉवर स्टेशन बनेगा, प्रति माह हर घर के लिए 20 किलोलीटर (20,000 लीटर) तक मुफ्त पानी, पानी की दरों में सालाना 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी के प्रावधान का अंत, सभी घरों तक पानी का पाईप भी बिछाना, 2 लाख सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण, 500 नए स्कूलों का निर्माण, हर स्कूल में लड़कियों के लिए शौचालय, कंप्यूटर और उच्च गति के इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा हर स्कूल में, 17 हजार नए शिक्षकों की भर्ती, 20 नए डिग्री कॉलेज, 900 नए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और अस्पतालों में 30,000 अतिरिक्त बेड की सुविधा देना, हर 1000 लोगों के लिए पांच बेड के अंतरराष्ट्रीय मानदंड को भी सुनिश्चित करना, सभी के लिए सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली दवाएं, शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च में वृद्धि, दिल्ली की हर सड़क हर गली में सौ फीसदी रोशनी की व्यवस्था करेगी, डीटीसी बसों, बस स्टैंडों पर और भीड़-भाड़ वाले जगहों में सीसीटीवी कैमरे लगाना, 47 नई फास्ट ट्रैक कोर्ट, सारी झुग्गी बस्तियों का पांच वर्ष में पक्कीकरण, 15,000 होमगार्ड जवानों की मदद से महिला सुरक्षा दल या महिलाओं सुरक्षा बल का गठन,  महिला की सुरक्षा के लिए सार्वजनिक परिवहनों में 5000 मार्शलों की नियुक्ति, मुफ्त वाई फाई सुविधा, दिल्ली में व्यापार और खुदरा हब, पांच साल में आठ लाख नई नौकरियां,  ठेके के सभी पद नियमित किए जाने, स्वायत्त निकायों में 55,000 रिक्तियों को तत्काल आधार पर भरना, 4000 डॉक्टरों और 15,000 नर्सों और सहयोगी स्टाफ को स्थायी किया जाना........।
सूची और बड़ी है। कल्पना करिए कि केजरीवाल की सरकार अगर इनको साकार करने के लिए आगे बढ़ेगी तो इसका आर्थिक व वित्तीय प्रभाव क्या होगा? भारत सरकार का बजट 17 लाख करोड़ रुपया से थोड़ा ज्यादा है। इन घोषणाओं पर खर्च इससे कई गुणा ज्यादा हो जाता है। दिल्ली सरकार का बजट अभी तक 40 हजार करोड़ के आसपास रहा है। वायदा किया है तो वे इसे साकार करने की हर हाल में कोशिश करेंगे। देखना होगा केजरीवाल कैसे इनको साकार करते हैं। पर ऐसा होता है इसके व्यापक सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिणामों से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208


http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/