शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

इसके गहरे आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिणाम होंगे

अवधेश कुमार
तो अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार न काम करना आरंभ कर दिया। इतने बड़े जानदेश के बाद यह केवल औपचारिकता थी। कोई भी राजनीतिक परिवर्तन या चुनाव परिणाम केवल सदन के अंकगणित तक सीमित नहीं रहता। उसका अवश्यंभावी राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिणाम होता है। खासकर जब ऐसी पार्टी सत्ता में आई हो जो कि सम्पूर्ण नागरिक सेवाओं, प्रशानिक दुर्बलताओं, व्यापारिक गतिविधियों, कर प्रणाली के साथ शिक्षा एवं स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे में आमूल परिवर्तन की घोषणा कर रही हो। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि हमें अहंकार नहीं करना है और दिल्ली को बेहतर दिल्ली बनाना है। उनके शब्द थे कि आज कांग्रेस की दुर्दशा इसलिए हुई, क्याेंकि वह अहंकार का शिकार हो गई थी और भाजपा भी अहंकार का शिकार थी, इसलिए उसकी ऐसी हालत हुई। तो इसमें भविष्य के लिए राजनीतिक और आर्थिक संदेश दोनों छिपे है। हालांकि उनके दूसरे नेताओं ने भारत की सम्पूर्ण राजनीति में क्रांति लाने की बात तक की, पर केजरीवाल पिछली बार की तुलना में ज्यादा संतुलित हैं। पिछली बार जीतने के बाद उनकी भाषा में जितना क्रोध और अहं था, विरोधी पार्टियों के लिए जो हिकारत भाव था, वह इस बार नहीं दिखा है। इस नाते इसको एक परिपक्व व्यवहार कहा जा सकता है। देखना होगा यह परिपक्व व्यवहार कब तक कायम रहता है।
भाजपा की ऐसी बुरी पराजय क्यांें हुई, आआपा की ऐसी ऐतिहासिक जीत किन कारणों से हुई और कांग्रेस का पूर्णतया सफाया हो जाने के पीछे कौन से कारक हाबी थे.....आदि पर हम कई प्रकार के मत व्यक्त कर सकते हैं। कुछ कारण हमारे सामने साफ हैं और उन पर चर्चा करना अप्रासंगिक नहीं है। लेकिन हम यहां यहीं तक अपनी बात सीमित रखेंगे कि दिल्ली के लोगों ने किरण बेदी और अजय माकन के चेहरे से केजरीवाल का चेहरा ज्यादा विश्वसनीय माना एवं उनके वायदों से ज्यादा आकर्षित हुए, अन्यथा ऐसा एकपक्षीय बहुमत नहीं आता। भाजपा एवं कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दोनों उम्मीदवार की पराजय सामान्य परिणाम नहीं है। तो इस असामान्य परिणाम के आगे क्या परिणाम होंगे जरा उन पर विचार करें। राजनीतिक दृष्टि से देखें तो कई वक्तव्य हमारे सामने आ गए है। एक है, कोलकाता की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जिन्होंने कहा कि यह अहंकार की पराजय है और उन्होंने आगे आआपा और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर भाजपा विरोधी मोर्चा की बात कही। दूसरा वक्तव्य बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है। उन्होंने भी कहा कि इसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ेगा एवं हवाबाजी की पराजय आरंभ हो गई है।
हम नीतीश के इस वक्तव्य से सहमत नहीं हो सकते कि यहां से भाजपा की पराजय की शुरुआत हो गई है और नरेन्द्र मोदी की सरकार केवल हवाबाजी कर रही है। न ही हम ममता के विश्लेषण से सहमत हो सकते हैं। लेकिन अब विरोधी पार्टियां, जो किसी तरह मोदी की एक पराजय देखना चाहती थी ताकि भाजपा का नैतिक बल कमजोर हो एवं उनको यह कहने का मौका मिले कि देखो मोदी की हवा निकल गई, झूठ का खेल सामने आ गया और अब हम उनको पराजित कर सकते हैं। यानी अपने समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं में यह विश्वास पैदा करना कि मोदी अपराजेय नहीं हैं, हम एकजुट होकर लड़े तो उनको हरा सकते हैं। इसका प्रचार जोर-शोर से होगा। दिल्ली में सारी भाजपा विरोधी पार्टियों ने, भले उनका जितना मत रहा हो, आआपा को विजय दिलाने के लिए काम करने का आह्वान किया था। इससे सामान्य निष्कर्ष यह निकलता है कि दिल्ली की तरह दूसरे राज्यों में भी शायद ऐसा प्रयोग हो सकता है। पर बिहार में नीतीश एवं लालू गठजोड़ के अलावा ऐसा कोई गठजोड़ बनता नहीं दिखता। आआपा को समर्थन देने वाली वामपंथी पार्टियों एवं ममता के बीच गठजोड़ कैसे संभव है? इसी तरह मायावती एवं मुलायम सिंह के बीच हाथ मिलाने की अभी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। बावजूद इसके विरोधी दलों का पक्ष थोड़ा मजबूत होगा और भाजपा बचाव की मुद्रा में रहेगी। उसका आक्रामक तेवर नीचे आयेगा। आआपा अन्य दलों के साथ उनके राज्यों में गठजोड़ करेगी और उसका असर होगा यह कहना अभी कठिन है। इसलिए इसके लिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी। साथ ही भाजपा विरोधी पार्टियों में कांग्रेस भी शामिल है, उसका स्थान इसमें कहीं होगा या नहीं यह भी साफ नहीं है। आआपा तो उसके साथ नहीं जा सकती है। तो दिल्ली चुनाव परिणाम से निकले संदेशों की चाहे अलग-अलग पार्टियां अपने तरीके से व्याख्या करें, वे तत्काल जितने उत्साहित हो जाएं, इसकी कोई ठोस निश्चित रुपाकार की कल्पना अभी नहीं की जा सकती।
लेकिन इसके व्यापक आर्थिक परिणामों से इन्कार नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए आआपा ने पिछली सरकार के दौरान ही खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश न करने का निर्णय लिया था। हालांकि संप्रग सरकार में भाजपा भी इसकी विरोधी थी, किंतु नरेन्द्र मोदी जिस अर्थनीति पर चल रहे हैं उसमें विदेशी निवेश का व्यापक महत्व है। पता नहीं वे क्या चाहते हैं, पर अगर इस तरह केजरीवाल ने अन्य कुछ क्षेत्रों में विदेशी निवेश को रोकने का कदम उठाया तो इसकी आर्थिक प्रतिध्वनि काफी गहरी होगी। दूसरा उदाहरण व्यापार पर लगने वाले वैट का है। अपने 70 सूत्री घोषणा पत्र में आआपा ने कहा है कि वह दिल्ली में वैट घटायेगी ताकि यहां के सामान ज्यादा बिकंे और आर्थिक गतिविधियां तेज हो। साफ है कि वे ऐसा करेंगे तो इसका प्रभाव दिल्ली के खजाने पर पड़ेगा एवं इससे दूसरे राज्य भी प्रभावित होंगे। अगर बिक्री अपेक्षानुरुप नहीं बढ़ी और खजाने में धन नहीं आया तो फिर कठिनाई पैदा हो सकती है। हालांकि जीएसटी पर सभी राज्य समझौते के करीब हैं.....पर केजरीवाल क्या करेंगे कहना कठिन है। ये दो उदाहरण तो नीतियों के हैं जो संभवतः केन्द्र सरकार एवं कई राज्य सरकारों की नीतियों से अलग जाते हैं।
नीतियों से परे आआपा ने 70 सूत्री घोषणा पत्र में जो वायदे किए हैं जिसमें लोगों के सिर से खर्च का बोझ घटाने एवं कोई कर या शुल्क न लगाना शमिल हैं और जो इसकी विजय का सर्वप्रमुख कारण है, उसके खर्च के आकलन से सिर चकरा सकता है। कुछ पर नजर दौड़ाइए-  बिजली बिल आधे किए जाएंगे, दिल्ली का अपना पॉवर स्टेशन बनेगा, प्रति माह हर घर के लिए 20 किलोलीटर (20,000 लीटर) तक मुफ्त पानी, पानी की दरों में सालाना 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी के प्रावधान का अंत, सभी घरों तक पानी का पाईप भी बिछाना, 2 लाख सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण, 500 नए स्कूलों का निर्माण, हर स्कूल में लड़कियों के लिए शौचालय, कंप्यूटर और उच्च गति के इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा हर स्कूल में, 17 हजार नए शिक्षकों की भर्ती, 20 नए डिग्री कॉलेज, 900 नए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और अस्पतालों में 30,000 अतिरिक्त बेड की सुविधा देना, हर 1000 लोगों के लिए पांच बेड के अंतरराष्ट्रीय मानदंड को भी सुनिश्चित करना, सभी के लिए सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली दवाएं, शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च में वृद्धि, दिल्ली की हर सड़क हर गली में सौ फीसदी रोशनी की व्यवस्था करेगी, डीटीसी बसों, बस स्टैंडों पर और भीड़-भाड़ वाले जगहों में सीसीटीवी कैमरे लगाना, 47 नई फास्ट ट्रैक कोर्ट, सारी झुग्गी बस्तियों का पांच वर्ष में पक्कीकरण, 15,000 होमगार्ड जवानों की मदद से महिला सुरक्षा दल या महिलाओं सुरक्षा बल का गठन,  महिला की सुरक्षा के लिए सार्वजनिक परिवहनों में 5000 मार्शलों की नियुक्ति, मुफ्त वाई फाई सुविधा, दिल्ली में व्यापार और खुदरा हब, पांच साल में आठ लाख नई नौकरियां,  ठेके के सभी पद नियमित किए जाने, स्वायत्त निकायों में 55,000 रिक्तियों को तत्काल आधार पर भरना, 4000 डॉक्टरों और 15,000 नर्सों और सहयोगी स्टाफ को स्थायी किया जाना........।
सूची और बड़ी है। कल्पना करिए कि केजरीवाल की सरकार अगर इनको साकार करने के लिए आगे बढ़ेगी तो इसका आर्थिक व वित्तीय प्रभाव क्या होगा? भारत सरकार का बजट 17 लाख करोड़ रुपया से थोड़ा ज्यादा है। इन घोषणाओं पर खर्च इससे कई गुणा ज्यादा हो जाता है। दिल्ली सरकार का बजट अभी तक 40 हजार करोड़ के आसपास रहा है। वायदा किया है तो वे इसे साकार करने की हर हाल में कोशिश करेंगे। देखना होगा केजरीवाल कैसे इनको साकार करते हैं। पर ऐसा होता है इसके व्यापक सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिणामों से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208


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