अवधेश कुमार
निस्संदेह एक ओर सीमा पर दोनों ओर से भले बिना हथियार के आमने सामने और दुसरी ओर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का अहमदाबाद से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक भव्य स्वागत, गार्ड आफ ऑनर, लंबी शिखर वार्ता तथा फिर प्रधानंमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ शिखर वार्ता कुछ क्षण के लिए असंगत दिखती है। बातचीत एवं शिखर वार्ताओं में सीमा पर शांति एवं विवादों के निपटाने की घोषणा के बावजूद चीनी सैनिक लद्दाख के चुमार से वापस जाने लगे थे, फिर आ गए और डेमचोक में बने हुए हैं। लेकिन इस एक घटना के ईर्द-गिर्द हम शि चिनपिंग की पहली भारत यात्रा एवं उसके परिणामाओं का मूल्यांकन करेंगे तो फिर वास्तविक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सकते। हालांकि जब भी चीन कोई प्रमुख नेता आते हैं उसकी ओर से या तो घुसपैठ होती है या फिर चीन की ओर से अरुणाचल प्रदेश को लेकर ऐसा बयान आ जाता है जिससे हमारे देश में उबाल और क्षोभ पैदा होता है। बावजूद इसके तिब्बती शरणार्थियों या एकाध अनाम छोेटे संगठनों के अलावा किसी बड़े समूह ने शि चिनपिंग का सार्वजनिक विरोध नहीं किया, बल्कि गुजरात से लेकर दिल्ली तक उनका स्वागत हुआ तो यह मान लेना चाहिए कि हम भारतीय धीरे-धीरे यह समझने लगे हैं कि जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझेगा ऐसी न होने वाली घटनायें होतीं रहेंगी और हमें इसके साथ ही आगे बढ़ना है।
संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में नरेन्द्र मोदी और शि ने जो कुछ कहा उससे स्पष्ट है कि इस मामले पर खरी-खरी बातें हुईं हैं। वैसे भी नरेन्द्र मोदी की कूटनीति सांस्कृतिक, ऐतिहासिक विरासत के आधार पर भावनात्मक और संवदेनात्मक लगाव का माहौल पैदा करते हुए ठोस और स्पष्ट बातचीत एवं परिणामों की ओर जाने पर केन्द्रित रहा है। शि के आने के पूर्व या जापान यात्रा के बाद जो माहौल था उसमें सामान्यतः यह कल्पना करना कठिन था कि वाकई यात्रा को इतना उत्सवमय बनाने की कोशिश होगी। लेकिन अहमदाबाद में तो होटल हयात से लेकर, साबरमती आश्रम फिर साबरमती घाट के इन्द्रधनुषी प्रकाश की तरंगों के बीच गीत-संगीत और बातचीत .......सब एक सांस्कृतिक महोत्सव का अहसास करा रहे थे। यह भी मोदी की लक्षित कूटनीति का ही अंग था। यानी हमने चीन को यह अहसास कराने की कोशिश की कि हम गंाधी के वंशज हैं, बुद्ध के वंशज हैं जो अहिंसा, सत्य और सद्भावना की राह पर चलते हैं, हमारी नीति किसी देश के प्रति दुर्भावाना की हो ही नहीं सकती......, लेकिन दूसरी ओर दिल्ली में उस भावना के साथ यह भी कि अगर हमारे साथ अन्याय हो रहा है तो फिर गांधी ने करो या मरो का नारा भी दिया। मोदी ने चीन शि को साफ किया कि आपको भी हमारी जरुरत है, निवेश के लिए, विश्व मंच पर साथ के लिए, शांतिपूर्ण जीवन के साथ विकास के लिए.......। पता नहीं शि और उनके नेतृत्व वाली सत्तारुढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं तथा उनकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को यह बात कितनी समझ में आती है।
ध्यान रखिए कि पिछले वर्ष चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग 21 मई को चार दिवसीय यात्रा पर भारत पहुंचे थे और पहली बार उनकी यात्रा के पूर्व उत्साहजनक माहौल बना था। वे एकदम खुलकर बात कर रहे थे जो कि चीन के पूर्व नेतृत्व के रवैये से अलग था। संयुक्त पत्रकार वार्ता मंे भी उन्होंने पूरे विस्तार से अपनी बातें रखीं जिससे चीनी नेता प्रायः बचते थे। वे अंत में पत्रकारों को भी धन्यवाद देना नहीं भूले और कहा कि आप भी भारत के साथ संबंध बनाने के हमारे इरादे और प्रयासों को सैल्यूट करेंगे। उनके शब्दों में भारत के लोगों को यह विश्वास दिलाने का भाव था कि वे खुले मन से भारत के साथ युद्ध के इतिहास की स्मृतियों को भुलाकर साथ भावी इतिहास बनाना चाहते हैं। आने के पूर्व भी उन्होंने कहा था कि भारत यात्रा के दौरान वहां के लोगों को पता चल जाएगा कि हम उसके साथ कितना निकट का संबंध चाहते हैं। अक्टूबर 2013 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा के दौरान सीमा रक्षा सहयोग समझौता हुआ जिसमें विस्तार से ये बातें शामिल हैं कि अगर कभी सीमा पर तनाव उभरे या घुसपैठ हुईं तो कैसे उससे निपटेंगे। बावजूद इसके घुसपैठ रुका नहीं। इस वर्ष ही करीब 344 घुसपैठ हुई है। पर उनमें सभी गंभीर नहीं होते और 1976 के बाद कभी गोलियां भी नहीं चलीं हैं। यही चीन और पाकिस्तान में अंतर है। चीन से आतंकवादी भी हमारे यहां नहीं आते।
गार्ड ऑफ ऑनर लेने के बाद जिनपिंग ने कहा, बतौर राष्ट्रपति यह मेरी पहली भारत यात्रा है। मैं तीन लक्ष्यों पर फोकस करूंगा। पहला लक्ष्य है हमारी दोस्ती को आगे ले जाना। हम एक-दूसरे की सभ्यता और संस्कृति का सम्मान करते हैं और इसे गहरा करना महत्वपूर्ण है। विकास का हमारा लक्ष्य एकसमान है। भारत और चीन मिलकर दुनिया के लिए नए मौके पैदा कर सकते हैं। हमें अपनी रणनीतिक साझेदारी को नई ऊंचाईयों पर ले जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत और चीन की हजारों वर्षाे की साझा सांस्कृतिक विरासत है। शि की पत्नी पेंग लीयुआन ने विद्यालय में जाकर, पेंटिंग बनाकर तथा अन्य तरीकों से नरम कूटनीति की भूमिका निभाई ताकि जन से जन का सांस्कृतिक संपर्क का रास्ता बने। इसीलिए 2015 को चीन में विजिट इंडिया तो 2016 को विजीट चाइना वर्ष के तौर पर मनाया जाएगा। ये बातें सुनने में मोहित करतीं हैं। पिछले वर्ष लि ने भी यही बातें कहीं थी।
ली की यात्रा के दौरान हमने 8 समझौते किए और शि की यात्रा में 12 समझौतों हुए हैं। तो जो 12 समझौते हुए उसमें कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए नाथु ला दर्रा को खोलने का अर्थ है कि आप तिब्बत से होकर किसी भी समय वहां जा सकते थे। अब तक हमें उत्तराखंड के दुर्गम इलाकों से गुजरना पड़ता था। यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण समझौता है। लंबे समय से इसकी मांग थी। दोनों देशों के बीच रेलवे, बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग और सीमा शुल्क समेत 12 क्षेत्रों में समझौते हुए हैं। चीन महाराष्ट्र और गुजरात में इंडस्ट्रियल पार्क बनाएगा। इसके अलावा शंघाई की तर्ज पर मुंबई का विकास और स्वास्थ्य व सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग के भी समझौते हुए हैं। चीन ने आने वाले पांच साल में भारत में 20 अरब डॉलर के निवेश का भरोसा दिलाया है। भारत और चीन ने असैन्य नाभिकीय सहयोग पर भी वार्ता शुरू करने का फैसला किया है। चीन के साथ असैन्य नाभिकीय सहयोग पर बातचीत ही अपने आपमें महत्वपूर्ण है। जो चीन वाजपेयी सरकार द्वारा नाभिकीय विस्फोट के बाद कितना आग बबूला था, जिसने भारत अमेरिका नाभिकीय सहयोग समझौता न हो इसकी पूरी कोशिश की आज उसने हकीकत को स्वीकार किया तो यह हमारी कूटनीतिक विजय है। हालांकि नाभिकीय रिएक्टर में चीन के लिए जगह कम बची है, फिर भी नाभिकीय दुनिया में ऐसे और क्षेत्र है, जिन पर बातचीत और सहयोग हो सकता है। उन्होंने भारत, चीन, म्यांमार और बांग्लादेश के बीच आर्थिक कॉरिडोर बनाने की भी बात की है। रणनीतिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण बात अफगानिस्तान की शांति और स्थिरता को शामिल करना है। भारत के साथ इस प्रकार की बातचीत का अर्थ है कि पाकिस्तान की चाहत के विपरीत चीन ने वहां भारत की भूमिका को स्वीकार किया है।
चिनफिंग के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि जहां हमने संबंधों को बढ़ाने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा की है, वहीं मित्रता की दृष्टि से कुछ कठिन विषयों पर भी बात की है। सीमा पर हाल में चीन की ओर से बढ़ी घुसपैठ की घटनाओं पर चिंता करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, मैंने सीमा पर हुई घटनाओं को लेकर चिंता जताई है। भारत और चीन के बीच रिश्ते की पूर्ण संभावना को हकीकत बनाने के लिए सीमा पर शांति और आपसी भरोसा हो। वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए, यह काम कई सालों से रुका हुआ है और शुरू होना चाहिए। मोदी ने कहा कि चीन की वीजा नीति और दोनों देशों में बहने वाली नदी (ब्रह्मपुत्र) को लेकर उसकी नीति को लेकर भी मैंने चिता जताई है। मोदी के बाद चीनी राष्ट्रपति ने जो कहा उसकी कुछ पंक्तियांे पर ध्यान दीजिए। मोदी और उनकी यह पंक्ति समान थी कि विकास के लिए शांति जरूरी है। चीन जल्द से जल्द सीमा विवाद सुलझाने का इरादा रखता है। चिन फिंग ने कहा कि दोनों देश एक-दूसरे की चितांओं का ध्यान रखेंगे और सीमा की घटनाओं का रिश्तों पर असर नहीं पड़ने देंगे।
मोदी की बात का जवाब देते हुए चिनफिंग ने कहा कि यह समस्या इतिहास से चली आ रही है और दोनों देशों को जल्द से जल्द सुलझाने की जरूरत है। जो विवाद थे, अब वे इतिहास के पन्नों में हैं। इसे जल्द से जल्द सुलझाने के लिए चीन तत्पर है। इस विवाद का असर दोनों देश की दोस्ती पर असर नहीं पड़नाचाहिए। मोदी ने कहा कि हमने चीन में भारतीय कंपनियों के निवेश पर लगी पाबंदियों में ढील देने का आग्रह किया है। उन्होंने इस पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया है। करीब 29 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हमारे लिए चुभती हुई सूई है। वैसे शि ने कहा कि औषधि, कृषि उत्पाद आदि कई क्षेत्रों में हम भारत के निर्यात को निर्बाध करने के कदम उठाएंगे। अगर पिछले वर्ष लि कियांग की यात्रा के बाद हुई पत्रकार वार्ता को ध्यान रखेंगे तो लगभग ऐसे ही मनमोहन सिंह ने भी थोड़ी अलग शब्दावली में अपनी बात रखी और कियांग ने सकारात्मक उत्तर दिया। शि और लि दोनों की बातें समान थीं। लेकिन हम जानते हैं कि सीमा विवाद पर संयुक्त कार्यबल की 16 दौर की बातचीत के बाद भी मामला जस का तस है। इसके कारण भी साफ हैं। हम यहां उन पर नहीं जाएंगे। पर इससे इतना साफ हो जाता है कि चीन की एक सुस्पष्ट नीति है और वह उस पर आगे चल रहा है। वह भारत से तनाव नहीं चाहता, अन्य अनेक मुद्दों पर लचीला रुख अपनाता है अपनाएगा पर सीमा को लेकर वह अपने रुख पर कायम रहेगा। हमें इसी को ध्यान रखते हुए उसके साथ संबंधों का निर्धारण करना है।
अवधेश कुमार, ई.: 30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः 01122483408, 09811027208
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