शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

राजनीतिक रणनीति हैं आप की सरकार बनाने की शर्तें

अवधेश कुमार

भारत की राजनीति में यह दृश्य पहली बार दिखा है जब समर्थन देने वाली पार्टी कोई शर्त्त नहीं रख रही है और जिसे समर्थन दिया जा रहा है उसका कहना है कि मैं समर्थन लेने की शर्त रख रहा हूं। जबसे भारत में विखंडित राजनीति का दौर आरंभ हुआ, सामान्यतः गठबंधन की सरकारें समर्थन देने वालों की शर्त्तों से दबीं होतीं थीं और उनके लिए काम करना कठिन होता था। आम आदमी पार्टी कह रही है कि कांग्रेस ने उनको बिना शर्त्त समर्थन देने का पत्र दिया तो उसने कहा कि वह स्वीकार कर रही है, लेकिन हमारी जो शर्त्तें हैं यदि उन्हें ये मंजूर हैं तो हम सरकार बनाएंगे। फिर कांग्रेस ने पत्र से बता दिया कि उनकी शर्तें सरकार को स्वीकार है। यह अब तक अनुभव से बिल्कुल उल्टी स्थिति है। समर्थन देने वाले आगे और जिसे समर्थ दिया जा रहा है वह पीछे। दिल्ली में लटकी हुई विधानसभा के परिणाम के बाद किसी पार्टी की सरकार अपने-आप तो बन नहीं सकती। या तो मिलीजुली सरकार बन सकती है या बाहर के समर्थन पर या फिर नहीं बन सकती है। सबसे बड़ी पार्टी होेने के बावजूद भाजपा ने बहुमत न होने की बात कहकर अस्वीकार कर दिया तो उप राज्यपाल नजीब जंग के पास दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण आप को ही बुलाने का विकल्प था। चूंकि कांग्रेस ने राज्यपाल के यहां आप को समर्थन का पत्र दे दिया, इसलिए उनको विधानसभा में बहुमत भी प्राप्त है। सामान्य स्थिति में सरकार आराम से बन सकती थी। यह आप की राजनीति है, जो परंपरागत तरीके से बिल्कुल अलग है।
कुछ बड़ी पार्टियों को इसका आंशिक अनुभव हो सकता है, क्योंकि सरकार बनाते समय वे भी अपने सथियों और समर्थकों के बीच यह बात रखते थे कि हम फलां फलां काम सरकार के एजेंडा में रखेंगे। पूरा अनुभव तो किसी को नहीं होगा। अगर आप की 18 शर्तों को देखें तो उसे किसी भी पार्टी के लिए स्वीकार करना आसान नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को पत्र भेजने के बारे में राज्यपाल के आवास से बाहर आते समय आप के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने जो बातें कहीं वे दोनों पार्टियों को उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त थीं। मसलन, भाजपा को केवल चार विधायक चाहिए, जिसे वह आसानी से खरीद सकती थी, क्योंकि न जाने कितने विधायकों एवं सांसदों को उनके द्वारा खरीदे जाने का रिकॉर्ड है। भाजपा की तीखी प्रतिक्रियाओं से जाहिर हो जाता है कि उन्हें यह नागवार गुजरा है। यह स्वाभाविक भी है। किसी पार्टी पर आरोप लगेगा तो उसकी प्रतिक्रिया ऐसी ही होगी। अरविन्द केजरीवाल ने अपनी राजनीति और रणनीति के तहत ऐसा बोला है। आम आदमी पार्टी सभी दलों को भ्रष्ट, पाखंडी बताते हुए ही राजनीति में उतरी है। वैसे आप को जो मत मिला है उसका कारण इतना तो है ही कि कांग्रेस से असंतुष्ट व नाराज बड़े तबके का भाजपा पर भी विश्वास नहीं है। अगर आप को इस समर्थन को बनाए रखते हुए उसका विस्तार करना है तो उसे दोनों पार्टियों को आक्रामक तरीके से कठघरे में खड़ा करना ही होगा।
यही वे कर रहे हैं। अगर आप आप पार्टी द्वारा दोनों पार्टियों के अध्यक्षों को भेजे गए प्रश्नों के सभी 18 विन्दुओं को देखें तो उसका स्वर भी यही है। यानी शीला दीक्षित के मंत्रिमंडल के सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच होगी तब भी आपका समर्थन जारी रहेगा। इसी तरह 7 वर्ष से दिल्ली की स्थायी नगर ईकाई पर भाजपा का कब्जा है। उनके पार्षदों के खिलाफ जांच होगी तब भी क्या उनको स्वीकार होगा। वे पूछ  रहे हैं कि कोई मंत्री, विधायक, अधिकारी सुरक्षा नहीं लेगा... आदि आदि। यह सब जनता को यह बताने के लिए हम क्या चाहते हैं, हम कैसी शासन व्यवस्था लाना चाहते हैं और कांग्रेस व भाजपा कैसी व्यवस्था की समर्थक है। देखा जाए तो आम आदमी पार्टी ने राज्यपाल से मिलने के बाद पत्र लिखने और प्रश्न पूछने के बहाने अपना अगला चुनाव प्रचार आरंभ कर दिया है। इन 18 प्रश्नों मंे दिल्ली की लगभग वो सारी समस्याएं हैं, जिनसे लोग परेशान हैं। बिजली, पानी, झुग्गी झोंपड़ी, शिक्षा, स्वास्थ्य.... आदि सारी बातें हैं और सबमंे राज्य सरकार के नाते कांग्रेस तथा नगर निमम एवं नगरपालिकाओं मेें होने के कारण भाजपा को कठघरे में खड़ा किया गया है। इसमें सभी वर्गों के लिए वे बातें हैं जो उनको सीधे प्रभावित करती है। मसलन, व्यापारी के लिए वैट का मामला है। यह आम आदमी पार्टी की सरकार का एजेंडा है। अरविन्द ने कहा भी कि सोनिया गांधी और राजनाथ सिंह का जो जवाब आएगा उसे हम जनता के बीच लेकर जाएंगे। जाहिर है, जनता के बीच जाने का अर्थ वे चुनाव प्रचार आरंभ कर चुके होंगे। वे रामलीला मैदान में विधानसभा बुलाकर जन लोकपाल यानी लोकायुक्त पारित करना चाहते हैं और सभी पार्टियों से उसमें सहमति चाहते हैं।
यह बात ठीक है कि समर्थन देने का कांग्रेस का अतीत अत्यंत स्याह है। कांग्रेस ने 1979 में चौधरी चरण सिंह को समर्थन देकर उनके संसद में जाने तक का अवसर नहीं दिया और समर्थन वापस ले लिया। चन्द्रशेखर, एचडी देेवेगौड़ा, इन्दरकुमार गुजराल तक को भी उसने नहीं बख्सा। इसलिए कांग्रेस के समर्थन पत्र को स्थायी समर्थन की वचनबद्धता नहीं माना जा सकता। कांग्रेस नेता कह भी रहे हैं कि हमने समर्थन दिया है कि आपने जो लोगों से झूठे वायदे किए उन्हें पूरा करिए। यानी उनकी भी आप को जनता के सामने नंगा करने की रणनीति है बिना शर्त समर्थन का पत्र देना। आप इसे उठा सकती थी और फिर अपने रुख को दोहरा सकती थी। इस प्रकार पत्र देकर आप ने उन दलों को स्वाभाविक ही यह कहने का अवसर दे दिया है कि ये जिम्मेवारी से भाग रहे हैं। ये अपने वायदे के अनुरुप जिम्मेवारी नहीं निभा सकते, इसलिए वे बहाना बना रहे हैं। कांग्रेस ने अपने जवाब मंे एक प्रकार से आप को घेरने की रणानीति ही अपनाई है। उसने जवाब में कहा है कि इनमें से 16 मांगों पर समर्थन की आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि ये प्रशासनिक मामले हैं, दो मामले लोकायुक्त और पूर्ण राज्य का तो यदि लोकायुक्त कानून में वे संशोधन करना चाहते हैं तो हम सहयोग देंगे यदि केन्द्र के लोकपाल कानून के अनुरुप हो तथा राज्य की मांग के लिए पहल का भी समर्थन करेंगे। कांग्रेस की ओर से दिल्ली के प्रभारी शकील अहमद ने कहा कि उनको अनुभव की कमी है, इसलिए ऐसा पत्र लिख दिया। यह आसानी से समझने वाली बात है कि सरकार जैसे ही प्रशासनिक कदम उठाएगी जो उनके विरुद्ध जाएगा वे समर्थन वापस ले सकते हैं। वैसे विचार करने वाली बात है कि आम आदमी पार्टी का जो घोषणा पत्र है उसे लागू करने का वचन दूसरी पार्टियां कैसे दे सकतीं हैं। यह बात भी सही है कि इन 18 शर्तों में ऐसी अनेक बाते हैं जो भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में भी हैं। आप ने इसका जिक्र नहीं किया। अगर आप की ओर से यह कहा जाता कि हम सबसे सहयोग लेकर कुछ मुद्दों पर काम करना चाहते हैं और एक आम एजेंडा बनाने की अपील करतीं तो उसका सकारात्मक संदेश जाता।
कोई भी देख सकता है कि यह और कुछ नहीं, बल्कि अन्य पार्टियोे से स्वयं को बिल्कुल अलग शासक की मानसिकता से परे केवल आम आदमी को समर्पित, ईमानदारी, शुचिता और पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्ध पार्टी साबित करना है। हालांकि अभी तक आप के प्रमुख नेताओं की प्रतिबद्धता को संदेह में लाने का कोई कारण नहीं दिखा है। लेकिन यह रवैया विशुद्ध राजनीतिक रणनीति ही है। आप के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने चुनाव परिणाम के ठीक बाद साफ कर दिया था कि वे न किसी से समर्थन लेंगे न देंगे। वे राज्यपाल को यही बता सकते थे। 18 शर्तों की सूची देना और 10 दिनों का समय लेना रणनीति के अनुसार तो ठीक है, आपको दूसरे दलों को पटखनी देनी है तो यह भाव भंगिमा उचित है, लेकिन यह पारदर्शी और निष्कपट राजनीतिक व्यवहार नहीं है। यह जैसे को तैसा तो है, किंतु इसमें पवित्रता अनुपस्थित है। यह रवैया आने वाले समय में आप को भी अन्य दलों की उस कतार में खड़ी करेगी जहां जन समर्थन के लिए एक दूसरों को निचा दिखाने और स्वयं को महान साबित करने की छलपूर्ण कोशिशें ही प्रबलतम होतीं हैं। इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। वह सीधा कह सकती थी कि जिन दलों के आचरण के खिलाफ हम बदलाव के लिए राजनीति में आए हैं और जिनके लिए जन समर्थन मिला है उनको साकार करना तभी संभव है जब हम पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएं।
अवधेश कुमार, ई: 30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाष : 01122483408, 09811027208


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