बुधवार, 6 नवंबर 2013

सुभाष-जैसी लोकप्रियता किसी को नहीं मिली

श्याम कुमार

भाजपा के एक पुराने नेता ने एक टीवी चैनल पर कहा कि देश में जवाहर लाल नेहरू अब तक सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं तथा उनके बाद अब नरेन्द्र मोदी को वैसी लोकप्रियता प्राप्त हो रही है। उनके इस कथन पर बवाल मच गया और तीखी प्रतिक्रिया हुई। लोगों का कहना है कि नेताजी सुभाश चन्द्र बोस से अधिक लोकप्रियता देश में आज तक किसी को नहीं मिली। जवाहर लाल नेहरू की लोकप्रियता तो पूरी तरह सरकार द्वारा प्रायोजित थी। उन्होंने अपने नाम का स्वयं तरह-तरह के उपायों से भरपूर प्रचार किया था। अपने जीते जी जम्मू-कश्मीर में बनिहाल सुरंग का नाम ‘जवाहर सुरंग’ रखवाया। अपने जन्मदिन को ‘बाल दिवस’ नाम देकर आयोजित कराने लगे। ‘बाल दिवस’ मनाने के लिए पूरी सरकारी ताकत झोंक दी जाती थी तथा जबरदस्ती बच्चों की भीड़ जमा की जाती थी। अभी भी कांग्रेसी सरकारों में ऐसा हो रहा है।

जवाहर लाल नेहरू ने देश की वास्तविक विभूतियों का नाम दबाने के लिए तरह-तरह के उपाय किए। सबको अपने से छोटा जताने का प्रयास किया, जबकि वे सब जवाहर लाल नेहरू से कहीं अधिक महान व त्यागी थे। देश में कुटुम्बवाद की नींव नेहरू ने डाली, जिसे उनके बाद इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी आदि सदैव पुख्ता करते रहे। कांग्रेसजनों में नेहरू खानदान की अन्धभक्ति एवं चमचागिरी की प्रवृत्ति को बढ़ावा व संरक्षण दिया गया। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आजादी के बाद देशभर में चुन-चुनकर अधिकांश भवनों, सड़कों, योजनाओं आदि के नाम केवल नेहरू कुटुम्ब के लोगों के नाम पर रखे गए। यहां तक कि आजादी के बाद अब तक पांच रुपए वाले जितने भी डाक टिकट जारी हुए, प्रायः सभी मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी आदि के नाम पर निकले। अभी भी केन्द्र सरकार ये डाक टिकट केवल इन्हीं लोगों के नाम पर उपलब्ध कराती है।

इसके विपरीत लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाश चन्द्र बोस, सरदार पटेल आदि महाविभूतियों तथा देश की आजादी के लिए कुरबान होने वाले शहीदों को सरकारी स्तर पर कभी कोई महत्व नहीं दिया गया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की उपेक्षा करने के तो जवाहर लाल नेहरू ने अनेक प्रकार के शड्यन्त्र किए। जनता के बेहद दबाव पर नेताजी की मृत्यु की जांच करने के लिए जो आयोग बनाए गए, उन्होंने फर्जी लीपापोती की। नेहरू ने वे सभी गुप्त कागजात आयोगों को नहीं उपलब्ध कराए, जिनसे नेताजी के विरुद्ध शड्यन्त्र का भेद खुल सकता था। अंत में अटल-सरकार ने जो ‘मुखर्जी आयोग’ गठित किया, वह काफी अंश में सच्चाई तक पहंुच गया, किन्तु केन्द्र में पुनः कांग्रेसी शासन आ जाने के कारण उस सरकार ने इतना अधिक असहयोग किया कि उससे उस आयोग को लाचार होकर रह जाना पड़ा। केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने उस रिपोर्ट को नामंजूर कर दिया। देश में दीर्घकालीन कांग्रेसी शासन में नेताजी को एक प्रकार से जीते जी ही मार डाला गया।

देश भर में अब तक जितनी विशाल सभाएं नेताजी की हुई हैं, वैसी विशाल सभाएं बहुत कम लोगों की हुई हैं। नेहरू की सभाएं तो नेताजी सुभाश की सभाओं के आगे कहीं नहीं ठहरती थीं। यह नेताजी का त्यागी, जनजन में पूजित व बेहद लोकप्रिय करिष्माई व्यक्तित्व था, जिसके बल पर गांधी जी के विरोध के बावजूद नेताजी सुभाश चन्द्र बोस दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष बनने में सफल रहे। नेताजी की सभाओं में उपस्थित जनसमूह उनकी अपील पर आजाद हिन्द फौज के लिए सब कुछ दान कर देता था। आज भी कोई सरकारी संरक्षण न होने के बावजूद नेताजी सुभाश चन्द्र बोस की तसवीरें सभी ग्रामीण मेलों में अवष्य बिका करती हैं। लोकमान्य तिलक और सरदार पटेल के बारे में भी यही बात लागू होती है। नरेन्द्र मोदी की देशभर में जो भारी लहर चल रही है, उसे देखकर स्पश्ट प्रतीत हो रहा है कि वह तेजी से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बाद देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हो रहे हैं।

(श्याम कुमार)

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