शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

किसी भी पार्टी का प्रचार नहीं करेंगे: साबिर

संवाददाता

नई दिल्ली। नई पीढ़ी-नई सोच संस्था के केंद्रीय कार्यालय में एक बैठक का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता संस्था के संस्थापक व अध्यक्ष श्री साबिर हुसैन ने की। इस बैठक में सभी पदाधिकारी व सदस्य शामिल हुए। चुनाव के मद्देनजर इस बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में सभी ने अपनी-अपनी बात रखते हुए चुनाव में लोगों से ज्यादा से ज्यादा वोट डालने के लिए प्रोरित करने को कहा क्योंकि पिछले चुनाव में लोगों की भागीदारी तो बढ़ी थी परंतु यह बहुत कम थी।

पिछले चुनावों को देखते हुए इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि हम लोग उनको उनके वोट की कीमत से  अवगत कराएंगे व ज्यादा से ज्यादा वोट डलवाने के लिए घर-घर जाकर प्रचार करेंगे।
इस बैठक में अब्दुल खालिक (सरपरस्त) ने कहा कि लोग कहते हैं कि हम वोट क्यों करें क्योंकि हमें सभी काम तो  रिश्वत देकर हीे कराना हैं। इसलिए हम सभी मिलकर उन्हें उनके वोट की कीमत क्या है और वोट न देने के क्या नुकसान हैं उससे अवगत करवाएंगे।
संस्था के उपाध्यक्ष मो. रियाज़ ने कहा कि जब हम मतदाताओं के घर जाएंगे तो चुनाव आयोग द्वारा पहली बार मतदाताओं को दिए के अधिकार कोई पसंद नहीं अर्थात नोटा के बारे में भी बताएंगे। हो सकता है कि इस कारण लोग मतदान करने जाएंगे।
संस्था के अध्यक्ष श्री साबिर हुसैन ने बैठक के आखिर में अपनी बात रखते हुए कहा कि हम किसी पार्टी विशेष का प्रचार नहीं करेंगे बल्कि लोगों को उनके वोटों की कीमत से उन्हें अवगत कराएंगे। जो लोग अभी तक मतदान करने नहीं जाते थे उन्हें उनके मतदान न करने के नुकसान से अवगत कराएंगे व उन्हें सही प्रात्याशी को चुनने के लिए कहेंगे। चुनाव आयोग द्वारा पहली बार मतदाताओं को दिए के अधिकार कोई पसंद नहीं अर्थात नोटा के प्रयोग के बारे में भी बताएंगे।
साबिर हुसैन ने आगे बताया कि हमारा प्रचार पूरी दिल्ली में होगा (जहां पर भी संस्था के सदस्य मौजूद हैं)। सदस्य अपने क्षेत्र में मतदाताओं को मतदान करने के लिए प्रोरित करेंगे। हर सदस्य रोजाना अपने कीमती समय में से एक घंटा मतदाताओं को मतदान के फायदे- नुकसान से अवगत कराएंगे। उन्होंने कहा कि यदि कोई सदस्य या पदाधिकारी किसी पार्टी विशेष का प्रचार करता है तो संस्था के नाम का प्रयोग नहीं करेगा। यदि कोई ऐसा करता पाया जाता है तो उसके खिलाफ कार्यंवाही की जाएगी। इस बैठक में अब्दुल खालिक (सरपरस्त), मो. रियाज, अब्दुल रज्जाक, डॉ. आर. अंसारी, इलमातुल्ला, अब्दुल कादीर, अंजार, नईम, विनोद, आजाद, अब्दुल रज्जाक, इरफान आलम, मो. सुल्तान, यामीन, मो. मुन्ना अंसारी, मो. सेहराज आदि पदाधिकारी व अन्य सदस्य मौजूद थे।

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

आम आदमी पार्टी कैसी राजनीतिक संस्कृति बना रही है

अवधेश कुमार

राजनीति में कौन भ्रष्ट है कौन सदाचारी इसका प्रमाण पत्र देना इतना आसान नहीं है जितना हम समझते हैं। किंतु आम आदमी पार्टी के नेता अपनी स्थापना के पहले से आरोपों का पुलिंदा लेकर जिस तरह से दहाड़ें मारते थे उनसे उनकी छवि आम जन मानस में अन्यों से अलग ईमानदार, नैतिक, जन सरोकारों को समर्पित ...व्यक्तित्वों की स्थापित हो रही थी। जो लोग किसी दल से जुड़े नहीं या उसके कट्टर समर्थक नहीं, उनको यह उम्मीद बंधी कि इनका राजनीति में आना अलग राजनीतिक संस्कृतिक की संभावना पैदा करेगा। जन लोकपाल के नाम पर अन्ना हजारे के सारे प्रचारित अनशन अभियानों के पीछे और आगे के चेहरे ये ही थे और बाद में तो खुद इनने ही अनशन किया। अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया ने स्वयं दिल्ली के बढ़े हुए बिजली बिल तथा अन्य अनियमितताओं के खिलाफ दो सप्ताह का अनशन किया। यह राजनीति में लंबे समय बाद दिखा। जनता की मांगों को लेकर इस ढंग से संघर्ष में अपने को झोंकने की खत्म होती दलीय राजनीतिक संस्कृति में यह किसी के लिए भी नई सुबह की उम्मीदांे वालीं थीं। गांधी जी के नमक सत्याग्रह के दिन से अपने संघर्ष की घोषणा करके इनने यह संदेश भी दिया कि वे केवल चुनावी युद्ध के लिए नहीं, राजनीति को बदलने के लिए आए हैं। क्या आज हम यह कह सकते हैं कि आम आदमी पार्टी या आप वाकई राजनीति में बेहतर बदलाव या नई राजनीतिक संस्कृति की वाहक बनी हुई है?

अभी आप के 9 नेताओं के खिलाफ एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आया। उसमें कुछ बातें बिल्कुल साफ दिख रहीं थीं। हालांकि आज समाज और राजनीति में जो जीवन शैली है, उसमें अनेक ऐसे विचलन जो पहले अस्वीकार्य थे, स्वीकार्य हो गए हैं। यह समाज का ऐसा दौर है जिसमें किसी की गलत कमाई या राजनीति में गलत तरीके से धन पाने या चुनाव में अघोषित तरीके से खर्च करने की बात उठाने पर कह दिया जाता कि इसके बगैर कोई उपाय नहीं है और सब ऐसा करते हैं। यह स्थिति का सरलीकरण है, जो पूरा सच नहीं है। पर मान लीजिए सच हो भी तो आप के लोग तो बाकी सारे दलों को भ्रष्ट, चोर साबित करते हुए नई नैतिक, ईमानदार, शतप्रतिशत पारदर्शी आचरण का डंका पीटते आए थे। अगर उनके नेताओं को चुनाव खर्च के लिए या पेशे में अपारदर्शी धन लेने के लिए तैयार होते दिखाया गया या वैसा संदेह भी हुआ तो उसका आचरण क्या होना चाहिए था? इन्होंने उनको केवल पाक साफ करार नहीं दिया, स्टिंग करने वाली कंपनी तथा उसे चलाने वाले चैनलों पर मुकदमा करने की धमकी दे दी। अब सबको उनके खिलाफ षडयंत्र में शामिल होने तथा मानहानि करने के मुकदमे का सामना करना पड़ेगा। प्रशांत भूषण वकील हैं और वे मामलों को हमेशा कानूनी नजरिए से देखते हुए न्यायालय को अपनी लड़ाई का साधन बनाए हुए हैं। उनके लिए ऐसा मुकदमा सामान्य बात है। वैसे स्टिंग का टेप चुनाव आयोग के पास भी चला गया है और उसका फैसला भी आएगा।  

लेकिन जरा याद करिए- यही आप के नेता जब भाजपा अध्यक्ष नितीन गडकरी के खिलाफ आरोपों का पुलिंदा लेकर आए थे और इनकी पत्रकार वार्ता को चैनलों ने लाइव किया। गडकरी को इस कारण दोबारा अध्यक्ष पद प्राप्त नहीं हुआ जो कि निर्धारित था। किंतु भाजपा ने किसी पर मानहानि की धमकी न दी। भाजपा के पास भी एक से एक नामी वकील हैं। उनने किसी चैनल को धमकाया नहीं। कांग्रेस ने भी राॅबर्ट बाड्रा के खिलाफ लगाए गए आरोपों का खंडन किया, इनकी आलोचना की, लेकिन कभी चैनलों एवं समाचार पत्रों को मुकदमे की धमकी न दी, ऐसा ही सलमान खुर्शीद के मामले में हुआ। रिलायंस के मुकेश अंबानी के खिलाफ इनने मामला लाया, उनके तो चैनलों में शेयर भी हैं, फिर भी सबने इसे चलाया, लेकिन धमकी किसी को नहीं आई। ये कहते हैं कि वे तो मोटी चमड़ी वाले हैं, भ्रष्ट हैं इसलिए ऐसा नहीं करते, हम उनसे अलग संवेदनशील हैं, इसलिए हमें ऐसा करना पड़ रहा है। किंतु यह बात गले नहीं उतरती। गडकरी के खिलाफ जांच में कुछ नहीं आया। वे चाहें तो मुकदमा कर सकते थे,उनने नहीं किया। 

जंतर-मंतर पर अयोजित कार्यक्रम में जिस तरह आम आदमी पार्टी के नेताओं ने विरोधियों के लिए कुत्ते कमीने से लेकर पुरस्कारों को जूते की नोंक पर रखने जैसी भाषा का प्रयोग किया उसके बाद कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। वस्तुतः आज हम चाहें या न चाहें यह स्वीकार करना होगा कि आप ने अपने विरोध या आलोचना के प्रति अस्वीकार्य असहिष्णुता प्रदर्शित किया है। यह दुःखद है। अगर आप राजनीति ही नहीं सार्वजनिक जीवन में हैं तो आपको आलोचना, निंदा, आरोप या स्टिंग झेलने की आदत डालनी होगी। आप के एक नेता इसे पत्रकारिता के न्यूनतम मापदंडों के विपरीत बताने लगे। उनने किसी मीडिया हाउस से नहीं पूछा कि मूल 18 घंटे की टेप देखी गई या नहीं। ऐसे भी चैनल हैं जिनने मूल टेप देखा है और उनका दावा है कि गलत कुछ भी नहीं दिखाया गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दूसरों पर आरोप लगाते हुए राजनीति में उतरने वाले अरविन्द केजरीवाल और उनके साथी इस तरह व्यवहार कर रहे हैं। आप यदि यह कहें कि हमें अपने साथियों पर विश्वास है तो यह आपका अधिकार है और उसकी आलोचना केवल नैतिकता और सदाचार की स्वयं इनकी कसौटी पर आलोचना होगी और हो भी रही है। लेकिन यह व्यवहार ऐसा है मानो हमें यह धमकी दी जा रही है कि आगे आपने ऐसे स्टिंग या आरोप दिखाएं तो आप मुकदमा झेलने के लिए तैयार रहिए। आज कम से कम इस मायने में कांग्रेस और भाजपा को तो इससे बेहतर आचरण वाला कहा जा सकता है। आपको यदि आम आदमी पार्टी के सदस्यों की परीक्षा लेनी है तो जरा उनकी आलोचना कर दीजिए। आप पर तीखे हमले आरंभ हो जाएंगे, आप पर बिना सिर पैर के आरोप लगेंगे, आपके खानदान तक ये पहुंच जाएंगे, आपको किसी पार्टी का दलाल या खरीदा गया व्यक्ति, अखबार, चैनल या संस्था का आदमी घोषित कर दिया जाएगा। उनके विरोध में यदि आप कोई पत्रकार वार्ता करते हैं और आप बड़े दलों के नेता नहीं हैं, तो उनके समर्थक वहां पहुंचकर हंगामा करेंगे। यह उनका आम व्यवहार हो गया है।
अब जरा दूसरे कुछ आचरणों पर नजर दौड़ा लीजिए। आप की ओर से एक पर्चा जारी किया गया है जिसमें मुसलमानों से विशेष तौर पर आप को वोट देने की अपील है। यह वैसे ही है जैसे अन्य गैर भाजपाई दल करते हैं। इसमें बाटला हाउस मुठभेड़ पर संदेह प्रकट किया गया है। गुजरात के इशरत जहां मुठभेड़ का भी जिक्र करते हुए मोदी एवं भाजपा पर हमला है। इस पर उन्हें चुनाव आयोग का नोटिस मिल चुका है। अगर आम आदमी पार्टी भी मजहब और समुदाय के नाम पर वोट मांगती है तो फिर आपमें और अन्य दलों की संस्कृति में अंतर क्या है? इसके पूर्व अरविंद केजरीवाल ने बरेली में दंगा भड़काने के आरोपी मौलाना तौकीर रजा से मुलाकात कर दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार में मदद और समर्थन मांगा था। तौकीर रजा की अपनी एक राजनीतिक पार्टी इत्तेहाद मिल्लत कौंसिल (आईएमसी) है, जिसने 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक स्थान पर विजय पाई थी। मार्च 2010 में बरेली में हुए दंगों को भड़काने के आरोप में तौकीर रजा खान की गिरफ्तारी हुई थी। तौकीर के रिहा होने के तुरत बाद दंगे फिर भड़के थे। तस्लीमा और जॉर्ज बुश के खिलाफ फतवा जारी करने वालों में भी तौकीर रजा का नाम शामिल था। इसकी तीखी आलोचना हुई।
मुसलमान हों या हिन्दू किसी से मत मांगने या उनके धार्मिक नेताओं से मिलने और मदद लेने में समस्या नहीं है। किंतु यदि आधार उस मजहब या समुदाय का मत पाना तो यह आपत्तिजनक है और यह कांग्रेस, सपा, राजद, जद यू आदि के समान चरित्र है। इसमें एक और बात है। आम आदमी पार्टी को आम आदमी के माध्यम से राजनीति को बदलना था और खास को भी आम बनाना था। यह तो खास के माध्यम से आम तक पहुंचने की अन्य राजनीतिक दलों की विकृत व्यवहार के समतुल्य है। इससे साफ हो जाता है कि आप के नेताओं ने भले नई राजनीतिक संस्कृति एवं आम जनता वाले दल व सत्ता का लक्ष्य घोषित किया, उनकी सोच और व्यवहार उन्हें भी आम दलों की कतार में शामिल कर रहा है।
अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर काॅम्प्लेक्स, दिल्ली-110092, दूरभाष-1122483408, 09811027208  


सोमवार, 25 नवंबर 2013

संस्था किसी भी पार्टी का प्रचार नहीं करेगी: साबिर

साबिर हुसैन, अध्यक्ष
संवाददाता

नई दिल्ली। नई पीढ़ी-नई सोच संस्था के केंद्रीय कार्यालय में एक बैठक का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता संस्था के संस्थापक व अध्यक्ष श्री साबिर हुसैन ने की। इस बैठक में सभी पदाधिकारी व सदस्य शामिल हुए। चुनाव के मद्देनजर इस बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में सभी ने अपनी-अपनी बात रखते हुए चुनाव में लोगों से ज्यादा से ज्यादा वोट डालने के लिए प्रोरित करने को कहा क्योंकि पिछले चुनाव में लोगों की भागीदारी तो बढ़ी थी परंतु यह बहुत कम थी।

 पिछले चुनावों को देखते हुए इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि हम लोग उनको उनके वोट की कीमत से  अवगत कराएंगे व ज्यादा से ज्यादा वोट डलवाने के लिए घर-घर जाकर प्रचार करेंगे।

इस बैठक में अब्दुल खालिक (सरपरस्त) ने कहा कि लोग कहते हैं कि हम वोट क्यों करें क्योंकि हमें सभी काम तो  रिश्वत देकर हीे कराना हैं। इसलिए हम सभी मिलकर उन्हें उनके वोट की कीमत क्या है और वोट न देने के क्या नुकसान हैं उससे अवगत करवाएंगे।

 संस्था के उपाध्यक्ष मो. रियाज़ ने कहा कि जब हम मतदाताओं के घर जाएंगे तो चुनाव आयोग द्वारा पहली बार मतदाताओं को दिए के अधिकार कोई पसंद नहीं अर्थात नोटा के बारे में भी बताएंगे। हो सकता है कि इस कारण लोग मतदान करने जाएंगे।

 संस्था के अध्यक्ष श्री साबिर हुसैन ने बैठक के आखिर में अपनी बात रखते हुए कहा कि हम किसी पार्टी विशेष का प्रचार नहीं करेंगे बल्कि लोगों को उनके वोटों की कीमत से उन्हें अवगत कराएंगे। जो लोग अभी तक मतदान करने नहीं जाते थे उन्हें उनके मतदान न करने के नुकसान से अवगत कराएंगे व उन्हें सही प्रात्याशी को चुनने के लिए कहेंगे। चुनाव आयोग द्वारा पहली बार मतदाताओं को दिए के अधिकार कोई पसंद नहीं अर्थात नोटा के प्रयोग के बारे में भी बताएंगे।

 साबिर हुसैन ने आगे बताया कि हमारा प्रचार पूरी दिल्ली में होगा (जहां पर भी संस्था के सदस्य मौजूद हैं)। सदस्य अपने क्षेत्र में मतदाताओं को मतदान करने के लिए प्रोरित करेंगे। हर सदस्य रोजाना अपने कीमती समय में से एक घंटा मतदाताओं को मतदान के फायदे- नुकसान से अवगत कराएंगे। उन्होंने कहा कि यदि कोई सदस्य या पदाधिकारी किसी पार्टी विशेष का प्रचार करता है तो संस्था के नाम का प्रयोग नहीं करेगा। यदि कोई ऐसा करता पाया जाता है तो उसके खिलाफ कार्यंवाही की जाएगी। इस बैठक में अब्दुल खालिक (सरपरस्त), मो. रियाज, अब्दुल रज्जाक, डॉ. आर. अंसारी, इलमातुल्ला, अब्दुल कादीर, अंजार, नईम, विनोद, आजाद, अब्दुल रज्जाक, इरफान आलम, मो. सुल्तान, यामीन, मो. मुन्ना अंसारी, मो. सेहराज आदि पदाधिकारी व अन्य सदस्य मौजूद थे।


शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

अन्ना बनाम अरविन्द परिदृश्य अनुचित

अवधेश कुमार
आम आदमी पार्टी के खिलाफ हुए स्टिंग ऑपरेशन पर अभी कोई टिप्पणी जल्दबाजी होगी, लेकिन जिस तरह चंदे का मामला अन्ना हजारे द्वारा उठाया गया वह काफी महत्वपूर्ण है। यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि पूरा परिदृश्य अरविंद केजरीवाल बनाम अन्ना हजारे का बना हुआ है और विरोधी इसे हवा दे रहे हैं। यह पहली बार नहीं है कि जब आप पार्टी के संयोजक के नाते अरविन्द और उनके साथियों के खिलाफ नारेबाजी या अन्ना को आधार बनाकर उन्हें लांछित करने की कोशिश हुई है। एक युवक ने पत्रकार वार्ता में अरविन्द पर काली स्याही भी फेंकी। पता नहीं उस युवक का उद्देश्य क्या था, लेकिन ऐसी अशोाभनीय घटनाएं केवल और केवल निंदा किए जाने के ही लायक हैं। अन्ना कह रहे हैं कि वे उस युवक को नहीं जानते और युवक अन्ना का नाम ले रहा है। इसे भी स्वीकार करने में समस्या नहीं है कि अन्ना ऐसा नहीं करवा सकते। हालांकि अरविन्द के इस आरोप से भी सहमत नहीं हुआ जा सकता कि स्वयं को भाजपा का कार्यकर्ता बताने वाले उस युवक को भाजपा के नेताओं ने ऐसा करने के लिए भेजा होगा, पर इसके पीछे कुछ न कुछ तो था। आखिर कुछ ही दिनों पहले अन्ना हजारे ने अरविन्द केजरीवाल को कुछ प्रश्न उठाते हुए पत्र लिखा, जिसका जवाब देने के लिए पत्रकार वार्ता आयोजित की गई थी। महाराष्ट्र के अहमदनगर के उस युवक को सब कुछ पता था तो जाहिर है, वह निकट से सारी गतिविधियों पर नजर रख रहा था।
साफ है कि अगर अन्ना हजारे का पत्र न आया होता तो यह घटना न घटती और न ऐन चुनाव के बीच इस तरह अन्ना बनाम केजरीवाल का परिदृश्य बनता। किसी को भले यह सामान्य घटना लग रही हो, पर यह अत्यंत ही गंभीर प्रसंग है। हम आप पार्टी के विचारों से सहमत हों या असहमत, लेकिन कुछ महीने पहले गठित एक पार्टी, जो एक अभियान के क्रम से उत्पन्न हुई, जोे राजनीति में नए मापदंड स्थापित करने का वायदा करते हुए पहली बार चुनाव में उतरी है, उसके सामने इस तरह का पत्र आने का क्या अर्थ हो सकता है? अन्ना हजारे के निजी चरित्र पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है, पर इसी समय आंदोलन के चंदे की बात उठाना, हिंसाब मांगना, अपने नाम के इस्तेमाल करने का आरोप लगाना... आदि बातें उनके दिमाग में कैसे आई होगी?  रालेगण सिद्धि में अन्ना ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए जो कुछ कहा उस पर ध्यान दीजिए- ‘ मुझे दो बातों पर ऐतराज है। सिम कार्ड से मेरा कोई ताल्लुक नहीं फिर भी मुझे आरोपी बनाया गया। दूसरी बात, अरविंद 29 दिसंबर को लोकपाल लाने की बात करते हैं वे लोकपाल को दिल्ली में कैसे लागू कर सकते हैं। ...मुझे संदेह है कि मेरे नाम का दुरुपयोग हो रहा है। मेरे नाम का इस्तेमाल करना ठीक नहीं। ....मैंने अरविंद पर भरोसा किया। अरविंद ने अपना दफ्तर चलाने के लिए 20 लोगों को रखा था। इन्हें 30-35 हजार रुपये महीना दिया जाता था। यह जनता के पैसे का दुरुपयोग है। हालांकि मैंने उनसे इस बारे में कुछ नहीं कहा। लेकिन जनता के पैसे से ज्यादा खर्च करना ठीक नहीं है।’
अरविन्द केजरीवाल और उनके साथी कह रहे हैं कि जो सिम बनवाया गया था, वह अन्ना के अलग होते ही रोक दिया गया। उनका यह भी कहना है कि आंदोलन के लिए जो चंदा आया था वह पहले ही खर्च हो गया। उसमें से कुछ बचा ही नहीं है और अन्ना कभी भी हिंसाब ले सकते हैं। तो फिर समस्या क्या है कि इस तरह पत्र लिखे जा रहे हैं और उनको सार्वजनिक भी किया जा रहा है? अन्ना कह रहे हैं कि अरविंद अगर मुझसे बात करना चाहते हैं तो मैं तैयार हूं। अरविंद से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है। मुझे अरविंद के चरित्र पर भी कोई संदेह नहीं है। केजरीवाल कह रहे हैं कि अन्ना के करीबी उन्हें उनसे नहीं मिलते देते। इससे इतना तो पता चलता है कि दोनों एक दूसरे पर संदेह नहीं कर रहे, लेकिन इनके बीच संवाद नहीं है और ऐसे में दूरियां बढ़ना स्वाभाविक है। अन्ना कह रहे हैं कि उनके नाम का इस्तेमाल न हो। उस अभियान को अन्ना आंदोलन का नाम मिला और ये सारे उसके स्तंभ थे। व्यक्ति के रुप में अन्ना हजारे का नाम लेना एक बात है और अन्ना आंदोलन कहना अलग। अन्ना को भी यह समझना चाहिए। हालांकि अन्ना का नाम लेने से आप को बहुत ज्यादा जन समर्थन मिल जाएगा ऐसा है नहीं, पर उनके निकट पहुंचे लोग उनके मन में यह गलतफहमी पैदा करते रहते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में इससे कांग्रेस और भाजपा को मुंहमांगा मुद्दा मिल गया है। इसका असर चुनाव पर पड़ना निश्चित है। आम आदमी पार्टी की चुनाव में जमीनी हकीकत उतनी अच्छी नहीं है जितनी कुछ सर्वेक्षणों में दिखाईं गईं, पर जो भी है उस पर ऐसे विवादों का असर तो पड़ना ही है। विरोधियों के लिए यह सवाल उठाना लाजिमी है कि अन्ना को लेकर आगे बढ़ने वाले लोगों ने अगर उन्हें ही धोखा दिया तो वे हमको आपको कैसे धोखा नहीं देंगे।
वास्तव में यह सामान्य त्रासदी का विषय नहीं है कि जिस अन्ना अनशन अभियान को हाल के दिनों में सबसे ज्यादा प्रचार मिला, जिससे  जनता के एक वर्ग में ही सही यह उम्मीद पैदा हुई कि अब कुछ बेहतर बदलाव हो सकता है, भ्रष्टाचार से निजात का रास्ता इससे निकलने की अपेक्षाएं भी उत्पन्न हुंई, आज उसे टीम के दोनों हीरो ही एक दूसरे के आमने-सामने दिख रहे हैं। हम यदि तटस्थ होकर विचार करेंगे तो यह भले दुखद हो, पर अस्वाभाविक स्थिति नहीं है। वस्तुतः अन्ना के अनशन अभियान को लेकर स्वयं अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया... आदि हमेशा गलतफहमी में रहे। मीडिया के अभूतपूर्व समर्थन से जो माहौल बना उन सबने इसे अपना स्थायी और व्यापक जन समर्थन मान लिया। यह सच नहीं था। उसमें गैर कांग्रेसी दलांे व संगठनों की व्यापक भागीदारी थी। सच यह भी है कि अन्ना हजारे तब तक एक क्षेत्र विशेष के सामाजिक कार्यकर्ता और संघर्षशील व्यक्तित्व के रुप मंे सीमित थे। अरविन्द एवं उनके साथियों के प्रबंध कौशल ने ही उन्हें राष्ट्रीय व्यक्तित्व में परिणत किया। यह भारत देश है। यहां ऐसे साथ को तोड़ने की कोशिशें होतीं रहतीं हैं। पहले स्वामी रामदेव से अरविन्द, उनके साथी एवं अन्ना हजारे को अलग करने की कोशिशें सफल हुईं और उसके बाद फिर इनको....।
हालांकि जिन लोगों ने अन्ना अभियान से लेकर आप के गठन तक के घटनाक्रम पर ध्यान रखा है वे बता सकते हैं कि जब 29 जुलाई,2012 को अरविन्द एवं मनीष को अनशन तोड़ने के लिए मनाया गया और उसमें राजनीतिक दल बनाने पर सहमति बनी तो अन्ना ने जंतर मंतर पर भाषण देते हुए कहा कि वे भी इससे सहमत हैं। यह बात अलग है कि बाद में उन्होंने राजनीतिक दल बनाने से असहमति प्रकट कर दी। क्यों? इसका कारण अन्ना ने आज तक स्पष्ट नहीं किया है। दोनों ओर गलतफहमियां तो थी हीं। अन्ना हजारे मानने लगे थे कि उनका व्यक्तित्व जयप्रकाश नारायण और गांधी जी की तरह विराट हो चुका है तो अरविन्द और उनके साथी यह सोचते थे कि सब कुछ तो किया हमने और उनका चेहरा आगे रखा। यानी यदि हम न करते तो अन्ना को कौन राष्ट्रीय क्षितीज पर लाता। यह भी सच है कि अरविन्द एवं मनीष दोनों ने स्वयं दो बार लंबा अनशन करके दिखाया कि ऐसा केवल अन्ना नहीं कर सकते, उनमंे भी इसकी क्षमता और अंतर्संकल्प है। सच कहें तो ऐसा करके उनने अन्ना से अलग अपना वजूद स्थापित करने की कोशिश की। दोनों प्रकार की सोच गलत थी। लेकिन तब तक ऐसे लोग इनके बीच में आ चुके थे जो पहले नहीं थे। आज दोनों को समझना चाहिए कि उनके इरादे में दोष नहीं था, वे देश की भलाई चाहते थे और हैं, पर जितना समर्थन उनको था वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध था, न उसमें जन लोकपाल का समर्थन था और न इनके व्यक्तित्व को। अन्ना भी जहां जा रहे हैंं वहां पहले की तरह भीड़ नहीं जुटती और आम आदमी पार्टी को भी एक-एक व्यक्ति को जोड़ने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। साफ है कि अगर अरविन्द एवं उनके साथी तुरत पार्टी गठन के सुझाव को स्वीकार करने की जगह पहले अभियान को देशव्यापी करते हुए संगठन बनाते और दलीय राजनीति में बाद में आते तो उनकी स्थिति बेहतर होती।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

नई पीढ़ी-नई सोच संस्था ने लगाया बचत खाता कैंप

संवाददाता

नई दिल्ली। नई पीढ़ी-नई सोच (पं.) संस्था हमेशा से जनता की भलाई के लिए समर्पित रहती है। इसी कड़ी में आज एक कार्य और किया गया। इस बार संस्था की ओर से बचत खाता कैंप लगाया गया। यह कैंप संस्था के केंद्रीय कार्यालय के निकट आयोजित किया गया। इस कैंप में लगभग 100 लोगों के खाते खोले गए। यह कैंप सीलमपुर पोस्ट आफिस के साथ मिलकर लगाया गया था। इस कैंप में सीलमपुर पोस्ट आॅफिस के पोस्टमास्टर श्री राजपाल जी अपने साथ अपनी टीम लाए थे।
कैंप 11 बजे के करीब शुरू हुआ जिस कारण ज्यादा लोगों के खाते नहीं खुल पाए। इस पर पोस्टमास्टर श्री राजपाल जी व आए अन्य अधिकारियों ने रविवार को दोबारा कैंप लगाने की बात कही। उन्होंने कहा कि हमें नहीं मालूम था कि यहां इतने खाते खुल जाएंगे।
संस्था के सरपरस्त अब्दुल खालिक ने कहा कि जब से यह संस्था बनी है तब से लोगों की सेवा में लगी हुई है। इसके सभी सदस्य युवा हैं और अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण रूप से निभाते हैं और इनकी कोशिश रहती है कि इनके पास आया हुआ व्यक्ति निराश होकर न जाए।
संस्था के संस्थापक व अध्यक्ष श्री साबिर हुसैन ने कहा कि संस्था लगातार अपनी तरफ से कोशिश करती रहती है कि लोगों की जितनी मदद की जा सकती है करें क्योंकि एक समय था जब हम दूसरों लोगों के पास जाते थे तो वह लोग कहते थे कि अभी समय नहीं कल आना आदि परन्तु संस्था के सदस्य अपने कीमती समय में से लोगों की सेवा के लिए समय निकालकर लोगों की परेशानी दूर करने की पूर्ण कोशिश करते हैं।
संस्था के उपाध्यक्ष मो. रियाज ने कहा कि लोगों को खाता खुलवाने में कभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि दिल्ली में लोग बचत करते तो हैं परंतु उनके पास बचत खाता नहीं होता जिससे वह अपनी बचत को लंबे समय तक घर में बचाकर नहीं रख पाते हैं। इसलिए सीलमपुर पोस्ट आॅफिस के पोस्टमास्टर श्री राजपाल जी से यहां पर बचत खाता कैंप लगाने के लिए बात की गई तो उन्होने हां कर दी। भरी। हम श्री राजपाल जी के आभारी हैं।
यहां खाता 50 रुपये में खुला जिससे लोगों को यह खाता खुलवाने में कोई परेशानी नहीं आई। बैंक बगैरा के कई नियम होते हैं परन्तु पोस्ट आॅफिस के में सिर्फ दो प्रूफ पर ही खाता खुल गया।
इस मौके पर अब्दुल खालिक, जुबैर आज़म, साबिर हुसैन, डॉ. आर. अंसारी, मो. रियाज, शमीम हैदर, अब्दुल रज्जाक, यामीन, सदरे आलम, आजाद, सज्जाद, मो. सेहराज, मो. नाजिम, इरशाद अहमद, रईस अहमद, मो. मुन्ना अंसारी, आमीर अहमद, कुरबान, अनीस, इलमत, फुरकान, गुलजार अख्तर आदि शामिल थे जिन्होंने फार्म आदि भरे व लोगों की परेशानी कम करने की कोशिश की।

सोमवार, 18 नवंबर 2013

नई पीढ़ी-नई सोच संस्था द्वारा बचत खाता कैंप का आयोजन 21 को

 संवाददाता

नई दिल्ली। नई पीढ़ी-नईं सोच (पं.) संस्था हमेशा से जनता की भलाई के लिए समर्पित रहती है। इसी कड़ी में एक कार्य और किया जाएगा। इस बार संस्था की ओर से डाक घर द्वारा बचत खाता कैंप का आयोजन 21 नवंबर 2013 को सुबह 10 बजे से किया जाएगा। यह कैंप संस्था के केंद्रीय कार्यालय के निकट आयोजित किया जाएगा।
संस्था के संस्थापक व अध्यक्ष श्री साबिर हुसैन ने कहा कि संस्था लगातार अपनी तरफ से कोशिश करती रहती है कि लोगों की जितनी मदद की जा सकती है करें क्योंकि एक समय था जब हम दूसरों लोगों के पास जाते थे तो वह लोग कहते थे कि अभी समय नहीं कल आना आदि परन्तु संस्था के सदस्य अपने कीमती समय में से लोगों की सेवा के लिए समय निकालकर लोगों की परेशानी दूर करने की पूर्ण कोशिश करते हैं।
संस्था के उपाध्यक्ष मो. रियाज ने कहा कि लोगों को खाता खुलवाने में कभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि दिल्ली में लोग बचत करते तो हैं परंतु उनके पास बचत खाता नहीं होता जिससे वह अपनी बचत को लंबे समय तक रख सकें। इसलिए संस्था की एक बैठक हुई जिसमें सभी ने यह निर्णय लिया कि हम डाक घर में जाकर बात करें कि वह हमारे यहां बचत खाता कैंप आयोजित करें क्योंकि डाकघर में सिर्फ 50 रुपये में खाता खुल जाता है। 50 रुपये में कोई भी खाता खुलवा सकते हैं।

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

न्यू जाफराबाद में बीएसपी का भाईचारा सम्मेलन का आयोजन

संवाददाता शाहरूख खान
उत्तरी पूर्वी दिल्ली। विधनसभा बाबरपुर के अन्तर्गत न्यू जाफराबाद के समुदाय भवन में बसपा के तत्वाधन में भाईचारा सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अघ्यक्षता ऑल इण्डिया जमीयतुल उलेमा-ए-हिन्द  के महासचिव दिल्ली प्रदेश व जमीयतुल कुरैशी दिल्ली प्रदेश महासचिव, हाजी मौ. यामीन ने कहा कि क्षेत्र में हिन्दू, मुस्लिम, भाईचारा सही बना हुआ है। 

उन्होंने जनता से अपील कि की भाईचारा और ज्यादा बनाए इसमें हमारे देश की मजबूती है। हर इन्सान को चाहिए कि वह जिस सरजमीन पर पैदा हुआ उसकी हिफाजत करें एकता ही अंख्डता है। मुजफ्फर नगर हुए दगों में उत्तर प्रदेश, एवं केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठेहीराते हुए कहा की यूपी सरकार के शासन में जो दंगा हुआ उसमें सरकार की लापरवाही हुई। केन्द्र सरकार चाहती तो 7 सितम्बर को आर्मी लगा कर दगें पर काबू किया जा सकता था। मगर आर्मी 9 सितम्बर को लगाई इससे जाहिर होता है। कि सरकार ने जानबूझकर दंगा नहीं रोकना चाहा।

उन्होने कहा कि बसपा ही ऐसी पार्टी है जो मुस्लिमों, दलितो, गरीबों पर जुल्म नहीं होने देती है। उन्होंने जनता से अपील की कि बसपा पार्टी को भारी मतों से विजयी बना कर विधनसभा में भेजे। मौ. हाजी यामीन एवं आबिद पहलवान अपने सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ बसपा में शामिल हुए। कार्यक्रम में हजारों लोगों की संख्या में लोगों कि उपस्थिति देखकर बसपा के लोग गदगद हुए।
हाजी मौ. यामीन समाजसेवा से जुड़े हुए समाजसेवक हैं और जिस लगन और मेहनत से समाजसेवा करते हैं। उसी लगन और मेहनत से बसपा पार्टी के लिए भी काम करेंगे, ऐसी हमें उम्मीद है। भाईचारा सम्मेलन में बसपा के ऑल इण्डिया तेली समाज के अघ्यक्ष शेर खान मलिक ने कहा कि भाजपा, काग्रेस एक सिक्के के दो पहलू है जैसे कहावत है चोर-चोर मौसरे भाई उन्होने दिल्ली को बर्बाद कर रख है।

उन्होने जनता से अपील की कि बसपा को विजयी बनाकर दिल्ली की हालत सुधरने का मौका दें। अत्याचार गुण्डागर्दी से मुक्ति बसपा ही दिला सकती है। इस मौके पर बसपा के उत्तरी पूर्वी लोकसभा प्रभारी चौ. सतीश (इंजीनियर), लोकसभा कोडिनेटर बसपा, हाजी समी सलमानी लोकसभा संयोजक, अब्दुल रहमान, आमिर राजा, रूप चन्द गौतम जिला अघ्यक्ष, मामा नूर हसन, मौ. जाकिर, सुलेमान प्रधान, हाजी आफताब , उपाध्यक्ष हाजी महरदिन, हाजी जुल्फेकार , चौ. बेद, हारून पहलवान, अनवर भाई, बब्बू भाई, रपफीक, मुल्लाजी अली, मकसूद, अमजद, गब्बर पहलवान, पप्ले पूर्व प्रत्याशी नगर निगम, सिकन्दर बख्श इलाही, सफी इलाही, हाजी मुन्ना अंसारी, हाजी याकूब, डा. उमर, सलीम पहलवान, हाजी नवाब, हाजी इफ्तेखार मलिक के अलावा हजारों लोग मौजूद थे।

 

बुधवार, 13 नवंबर 2013

बड़े अफसर जेल भेजे जाएं

श्याम कुमार  

जिस प्रकार कोई भी रेल-दुर्घटना होने पर रेल मन्त्री व रेल अधिकारियों के यह पिटेपिटाए बयान आया करते हैं कि ‘दोषियों को नहीं बख्शा जाएगा’, उसी प्रकार नगरों में अतिक्रमणों के बारे में प्रशासनिक अधिकारियों के ये वाक्य प्रायः सुनने को मिलते हैं- ‘अतिक्रमणों व अतिक्रमणों के लिए जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कठोर कदम उठाया जाएगा’। लेकिन अधिकारी इस प्रश्न का उत्तर कभी नहीं देते कि उन्होंने अतिक्रमणकारियों एवं अतिक्रमण के लिए जिम्मेदार अपने विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध अब तक कब-कब और क्या-क्या दण्डात्मक कार्रवाइयां की हैं? आजादी के बाद अब तक ऐसा ही हो रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय अनेक वर्षों से अतिक्रमणों को पूरी तरह हटाने का बार-बार आदेश व निर्देश जारी कर रहे हैं और कह रहे हैं कि सड़कें, पटरियां (फुटपाथ) एवं गलियां राहगीरों के लिए हैं, न कि दुकानदारी के लिए। लेकिन सम्बन्धित विभाग केवल दिखावे की खानापूरी कर न्यायालय को अतिक्रमण हटाने की भ्रामक एवं मिथ्या सूचना दे देते हैं। अब तो जैसे विभागों व अफसरों को न्यायालय की अवमानना का डर ही नहीं रह गया है। स्थिति यह हो गई है कि जब न्यायालय द्वारा अवमानना में कुछ बड़े अफसरों को जेल नहीं भेजा जाएगा, तब तक अतिक्रमण नहीं हटाए जाएंगे।

अतिक्रमण हटाने के बारे में कभी-कभी अधिकारी बड़े रोचक बयान दे देते हैं। एक अधिकारी ने कहा- ‘अतिक्रमणों को सबकी सहमति से हटाया जाएगा। इस कथन पर यह शेर फिट बैठता है- ‘इस सादगी पे कौन न हो जाएगा फिदा, लड़ते हैं मगर हाथ में तलवार भी नहीं।’ कल यह बयान भी आ सकता है कि चोरों, लुटेरों, अपहर्ताओं, हत्यारों आदि के विरुद्ध उनकी सहमति से कार्रवाई की जाएगी। कुछ समय पूर्व लखनऊ में एक अधिकारी ने बयान दिया था- ‘जमीन के नीचे बनी दुकानों का नागरिकों को बहिष्कार करना चाहिए, क्योंकि वहां उनके जानमाल का खतरा बना रहता है।’ बहुत खूब ! आप अवैध निर्माण हटाने की जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं और अपनी जिम्मेदारी जनता के गले मढ़ रहे हैं।

अतिक्रमणों ने न केवल लखनऊ को, बल्कि प्रदेश के समस्त नगरों को बुरी तरह अपने शिकंजे में जकड़ लिया है। पटरियों पर तो उनका पूरी तरह कब्जा हो ही चुका है, सड़कंें भी बुरी तरह उनकी गिरफ्त में हैं। सड़कों पर रंेग-रेंगकर यातायात चलता है तथा सर्वत्र जब-तब जाम लगा रहता है। अतिक्रमणों के कारण मार्ग-दुर्घटनाओं की भरमार हो रही है। अतिक्रमणकारियों ने शहरों को नरक बना डाला है और नागरिकों का जीना दूभर हो गया है। अतः अतिक्रमणों के विरुद्ध जब तक कठोरतम कार्रवाई नहीं की जाएगी, उनकी समाप्ति नहीं होगी। अतिक्रमणांे के सबसे बड़े कारण पुलिस विभाग, नगर निगम तथा अन्य स्थानीय निकाय हैं। सर्वविदित है कि अतिक्रमणकारी इन्हें नियमित ‘सुविधा शुल्क’ बांधकर चैन की बंशी बजाते हैं और ये लोग ‘मूंदउ आंख कतउ कोउ नाहीं’ की कहावत चरितार्थ करते हैं।

यदि वास्तव मंे अतिक्रमणों का सफाया करना है तो ये उपाय करने होंगे:- 1. प्रत्येक थानेदार एवं स्थानीय निकाय के अभियन्ताओं को इस बात के लिए प्रत्यक्ष रूप से पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया जाय कि वे अपने क्षेत्र में कहीं भी लेशमात्र अतिक्रमण न होने दें। इसके लिए वे अपने क्षेत्र में नित्य भ्रमण किया करें। यदि उनके क्षेत्र में कोई भी अतिक्रमण होता है और वह अतिक्रमण तत्काल नहीं हटाया जाता तो थानेदार व अभियन्ताओं के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। 2. जैसे ही कहीं पर अतिक्रमण हो, उसे उसी समय हटाकर अतिक्रमणकारी के विरुद्ध कारगर दण्डात्मक कार्रवाई की जाय। 3. प्रायः नेतागण भी अपनी नेतागिरी व कमाई के चक्कर में अतिक्रमणों को बढ़ावा देते हैं। अतः अतिक्रमणों के विरुद्ध कार्रवाई में ऐसे नेताओं की बिलकुल न सुनी जाय।

(श्याम कुमार)

सम्पादक, समाचारवार्ता

ईडी-33 वीरसावरकर नगर

(डायमन्डडेरी), उदयगंज, लखनऊ।

मोबाइल-9415002458

ई-मेल : kshyam.journalist@gmail.com

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

उत्तर प्रदेश का प्रत्येक नगर व कस्बा में अतिक्रमण-त्रासदी

श्याम कुमार

उत्तर प्रदेश का प्रत्येक नगर व कस्बा अतिक्रमणों एवं अवैध कब्जों से जिस प्रकार बुरी तरह ग्रस्त है, उसके परिणामस्वरूप सर्वत्र सड़क-दुर्घटनाओं की भरमार हो गई है। प्रदेश में नित्य सैकड़ों जानें जा रही हैं। आश्चर्य नहीं कि अतिक्रमणों एवं अवैध कब्जों के कारण प्रदेश को किसी दिन उत्तराखण्ड-जैसी त्रासदी का सामना करना पड़े।

मैं विगत लगभग 50 वर्षों से इस समस्या की ओर प्रदेश के शासन व प्रशासन का ध्यान बार-बार आकृष्ट कर रहा हूं। न्यायालय भी काफी समय से अतिक्रमणों के उन्मूलन का निरन्तर आदेश दे रहे हैं। लेकिन प्रशासन ने भैंस के आगे बीन बजाने वाली कहावत चरितार्थ करने की ठान रखी है। वह केवल दिखावे की कार्रवाई करता है, जिसके परिणामस्वरूप बीमारी लाइलाज होती जा रही है। अदालती चाबुक पड़ने पर किसी दिन कहीं पर अतिक्रमण हटाया भी जाता है तो भ्रष्टाचार में डूबे प्रशासन की कृपा से वहां अगले दिन पुनः पहले-जैसी स्थिति हो जाती है।

भ्रष्टाचार का वरदहस्त पाकर अतिक्रमणों व अवैध कब्जों ने अब कैंसर का रूप धारण कर लिया है। भ्रष्टाचारियों को तो अब अदालतों का भी भय नहीं रह गया है। हाल में एक अधिकारी ने, जो कभी जिला-प्रशासन में रह चुके थे, मुझे लखनऊ के एक थाने के बारे में बताया कि अतिक्रमणों, ठेलों, अवैध कब्जों आदि से उस थाने की नित्य कम से कम एक लाख रुपए की आमदनी है। उन्होंने कहा कि इसी के इर्द-गिर्द आय वाले कुछ और भी थाने हैं।

एक बड़ी समस्या यह है कि नगर निगम व विकास प्राधिकरण अतिक्रमण व अवैध कब्जे हटाने की जिम्मेदारी पुलिस पर डालते हैं और पुलिस इन दोनों विभागों पर। मेरा स्वयं का अनुभव है कि पुलिस महानिदेशक से दरोगा स्तर तक बस यही उत्तर मिलता है। जबकि स्पष्ट अदालती आदेश है कि जहां कहीं भी अतिक्रमण या अवैध कब्जा हटाया जाय, वहां उसके दुबारा न होने की जिम्मेदारी पुलिस की है, विशेश रूप से उस क्षेत्र के थाने की। लेकिन दुबारा अतिक्रमण होने पर अब तक किसी भी पुलिस अधिकारी को नहीं दण्डित किया गया है। नगर निगम व विकास प्राधिकरण की आम शिकायत रहती है कि उनके अभियान में समय पर पुलिस बल नहीं उपलब्ध कराया जाता है।

कुछ समय से यह नई बात देखने में आ रही है कि जब कहीं अतिक्रमण या अवैध कब्जा हटाया जाता है तो अतिक्रमण व अवैध कब्जा करने वाले यह चिल्लाने लगते हैं कि उन्हें हटाने की पहले सूचना क्यों नहीं दी गई? यह विचित्र तर्क है। यदि इस तर्क को मान लिया जाय तो कल चोर-डाकू भी यह आवाज बुलन्द कर सकते हैं कि उन्हें पकड़ने से पहले नोटिस क्यों नहीं दी गई? इसी प्रकार ‘पटरी दुकानदार संघ’ बनाया गया है। पटरियां (फुटपाथ) राहगीरों के चलने के लिए होती हैं, न कि दुकानदारी के लिए। यदि वेश्यावृत्ति के लिए कोई यूनियन बना ली जाय तो क्या वेश्यावृत्ति वैैध हो जाएगी ?

शासन को चाहिए कि प्रदेश के सभी समाचारपत्रों में एक बार बड़े-बड़े अक्षरों में यह विज्ञापन प्रकाशित करा दे कि सभी अतिक्रमणकारी व अवैध कब्जाधारी अपने अतिक्रमण एवं अवैध कब्जे तुरन्त हटा लें तथा इस विज्ञापन में दी गई सूचना को ही स्थाई रूप से नोटिस मान लें। इसकेे बाद कभी भी कहीं भी अतिक्रमण व अवैध कब्जे पूरी तरह हटा दिए जाएंगे तथा उनका सामान भी जब्त कर लिया जाएगा। तय है कि अतिक्रमणों एवं अवैध कब्जों के विरुद्ध वोटों का लालच छोड़कर जब तक कठोरतम कदम नहीं उठाया जाएगा, तब तक इस कैंसर का इलाज नहीं हो सकेगा। साथ ही, यदि कोई व्यक्ति पुनः अतिक्रमण या अवैध कब्जा करे तो उसके विरुद्ध भी अत्यंत कड़ी दण्डात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

(श्याम कुमार)

सम्पादक, समाचारवार्ता

ईडी-33 वीरसावरकर नगर

(डायमन्डडेरी), उदयगंज, लखनऊ।

मोबाइल-9415002458

ई-मेल : kshyam.journalist@gmail.com

सोमवार, 11 नवंबर 2013

थूकना जन्मसिद्ध अधिकार!

श्याम कुमार

हमारे देश का राष्ट्रीय चरित्र क्या है, पूछा जाय तो भ्रष्टाचार से भी अधिक अंक थूकने को प्राप्त होंगे। थूकने की यह क्रिया ऐसी है, जो यत्र-तत्र-सर्वत्र कहीं भी देखी जा सकती है। जैसे, जीवन के लिए सांस लेना आवश्यक है, वैसे ही कहीं भी थूक देना हमारे यहां स्वाभाविक प्रवृत्ति में शुमार हो गया है। थूकने की स्टाइलें भी अजीब-अजीब हुआ करती हैं। कुछ लोग चाय की दुकान पर बैठे-बैठे दूर तक पिचकारी मार देते हैं। कुछ लोगों के होंठ हिलते नहीं दिखाई देते, लेकिन उनके मुंह से जाने कैसे थूक का गोला बाहर निकलकर दूर जा गिरता है। पैदल चलने वाले तो सड़क पर इच्छानुसार कहीं भी थूकते हुए चलते ही हैं, दुपहिया या चारपहिया वाहनों पर चल रहे लोग भी आराम से इधर-उधर पीक मार दिया करते हैं। उन्हें इसकी चिन्ता नहीं होती कि उनकी पीक पीछे आ रहे किसी व्यक्ति को रंग सकती है। गौर करें, पैदल या वाहन पर सड़क के किनारे जा रहे लोग भी अपनी बांईं ओर मौजूद नाली में नहीं थूकते, बल्कि दाहिनी ओर सड़क के बीच में पिचकारी छोड़ते हैं।

पान और गुटखे का ताण्डव सड़कों पर ही नहीं, किसी भी भवन या कार्यालय में हर तरफ देखा जा सकता है। कुछ समय पूर्व की घटना है, आई.ए.एस. अधिकारी दीपक कुमार जब उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिशद में आयुक्त पद पर तैनात हुए तो एक दिन अचानक उन्होंने कार्यालय का निरीक्षण कर लिया। वह देखकर हैरान रह गए कि कर्मचारियों ने न केवल बरामदों में, बल्कि सीढ़ियों पर, कमरों की फर्श पर, यहां तक कि कमरों में रखी अलमारियों के पीछे भी जमकर थूक रखा था। पीक की रंगीनी चारों ओर व्याप्त थी। दीपक कुमार ने पान-गुटखा खाने एवं धूम्रपान करने पर दो सौ रुपए जुर्माने का आदेश निकाला था, किन्तु उनका स्थानान्तरण होते ही वह आदेश फुर्र हो गया। इस व्यापक रंगीनी की छटा किसी भी कार्यालय में देखी जा सकती है। लोग सीढ़ियों पर चढ़ते-उतरते, गलियारों में चलते-चलते अथवा कमरों में कुरसियों पर बैठे-बैठे, हर दशा में निसंकोच भाव से इधर-उधर पीक-अभियान चलाते रहते हैं।

आवासीय भवनों की सीढ़ियों व गलियारों में भी पीक की यह ‘होली’ देखी जा सकती है। एक बहुमंजिले आवासीय भवन में निवास करने वाले सज्जन थूकने वालों से जब बहुत परेशान हो गए तो उन्होंने सीढ़ी पर तख्तियां लगाईं, जिन पर लिखा था- ‘कृपया थूककर गन्दा न करें’। फिर भी लोगों ने थूकना बन्द नहीं किया। तब उन्होंने तख्तियों पर थूकने की मनाही कड़े शब्दों में लिखी। इस पर भी थूकने वाले नहीं माने तो उन्होंने इन शब्दों में चेतावनी लिखकर तख्तियां लगाईं-‘जो कोई थूककर इस सीढ़ी को गन्दा करेगा, उसके घर में नाश हो जाएगा’। इसके बावजूद कुछ ‘हुनर’ दिखाने वाले अपनी आदत से बाज नहीं आए।

विश्वविद्यालय के किसी भी छात्रावास में जाने पर वहां की सीढ़ियों व गलियारों को देखकर यह निर्णय कर पाना कठिन होता है कि वहां पर पीक की पिचकारियां चलाई गई हैं अथवा लाल रंग से पेन्ट किया गया है। ऐसा लगता है, जैसे वहां रहने वाले विद्यार्थी पढ़ने में नहीं, पीक मारने में योग्यता हासिल कर रहे हैं! सच तो यह है कि कभी भी और कहीं भी थूक देना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार बन गया है।

(श्याम कुमार)

सम्पादक, समाचारवार्ता

ईडी-33 वीरसावरकर नगर

(डायमन्डडेरी), उदयगंज, लखनऊ।

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रविवार, 10 नवंबर 2013

‘सच’ ‘झूठ’ बन गया है, ‘झूठ’ ‘सच’

श्याम कुमार

सुप्रसिद्ध लेखिका तवलीन सिंह का एक आलेख प्रकाषित हुआ है, जिसका सार यह है कि तथ्य के अनुसार गोधरा में हिन्दू तीर्थयात्रियों से भरी हुई रेल बोगी फूंक दिए जाने की प्रतिक्रिया में गुजरात का जो दंगा हुआ, उसमें मुसलमानों के साथ अच्छीखासी संख्या में हिन्दू भी मारे गए थे। किन्तु विगत एक दशक से चारों ओर गुजरात के दंगे को लेकर लगातार हल्ला मचाया जा रहा है और यह प्रदर्शित किया जा रहा है कि जैसे उसमें केवल मुसलमान मारे गए। मोदी को ‘हत्यारा’, ‘मौत का सौदागर’ ‘खून का प्यासा’ आदि तमाम तरह की गालियां दी जा रही हैं। किन्तु इसके विपरीत 1984 में सिक्खों का जो नरसंहार हुआ, उसमें गुजरात की अपेक्षा तिगुनी संख्या में सिक्खों को नृशंसतापूर्वक मार डाला गया, किन्तु उसकी कोई चर्चा भी नहीं करता। राजीव गांधी का यह वाक्य-‘जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है’ इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि उन्होंने सिक्खों के नरसंहार को सही ठहराया।

तवलीन सिंह के आलेख पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई है तथा लोगों का कहना है कि यह विडम्बना है कि मोदी ने गुजरात के दंगों की निन्दा की, फिर भी उन्हें अपराधी कहा जाता है। किन्तु 1984 में हजारों सिक्खों की जिस निर्ममतापूर्वक हत्या की गई, उसकी कोई चर्चा भी नहीं करता है। कश्मीर से हजारों हिन्दू भगा दिए गए, जो अभी भी शरणार्थीवाला जीवन जी रहे हैं। किन्तु इतने वर्शों बाद भी उनकी चर्चा तो दूर, कोई उनके पास हाल पूछने तक नहीं जाता है। मुसलिम नेता अकसर अलानिया यह कहते हैं कि वे पहले मुसलमान हैं, फिर भारतीय हैं तो उनकी कोई आलोचना नहीं करता। किन्तु जब मोदी ने यह कहा कि वह हिन्दू हैं और राश्ट्रवादी हैं तो इस कथन की निन्दा की जा रही है।

लोगों का मत है कि हमारे समाज में फर्जी सेकुलरवाद जिस भीशण रूप में हावी है, उसके परिणामस्वरूप ‘सच’ ‘झूठ’ बना हुआ है और ‘झूठ’ ‘सच’ के स्थान पर छाया हुआ है। जैसे किसी मुहल्ले में एक गुण्डे के आगे बड़ी संख्या में सारे शरीफों को मौन व नतमस्तक रहना पड़ता है, बिलकुल वही स्थिति है। आदर्ष स्थिति यह है कि शासन को ‘सबके साथ न्याय, अन्याय किसी के साथ नहीं’ सिद्धान्त का अनुसरण करना चाहिए। धर्म या मजहब व्यक्ति की बिलकुल निजी बात है और उससे शासन की नीतियों को कोई मतलब नहीं होना चाहिए। आवष्यकता इस बात की है कि समाज के सभी वर्गों में किसी भी प्रकार का भेदभाव न किया जाय और देशभक्त भारतीय के रूप में पूरे समाज को एकजुट करने का हर तरह से प्रयास किया जाय। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जिस प्रकार खोटा सिक्का असली सिक्के को बाजार से बाहर कर देता है, उसी प्रकार फर्जी सेकुलरवाद ने असली सेकुलरवाद का दमन कर डाला है। झूठ सच पर हावी हो गया है। फर्जी सेकुलरवादी देश के वातावरण में ऐसा जहर घोल रहे हैं और विभाजन की दीवारें खड़ी कर रहे हैं, जिससे हमारे देश और समाज को भीशण क्षति पहुंच रही है। विघटनकारी तत्व हर जगह सिर उठा रहे हैं और हावी हो रहे हैं। पता नहीं हमारे देश का क्या भविष्य होने वाला है!

(श्याम कुमार)

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