मंगलवार, 30 जुलाई 2019

सोमवार, 29 जुलाई 2019

आवेदन के लिए खुला एफ्ले इंडिया का आईपीओ इश्यू

नई दिल्ली। मोबाइल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म कंपनी एफ्ले इंडिया का आईपीओ इश्यू सोमवार 29 जुलाई को आवेदन के लिए खुल गया है। यह इश्यू 31 जुलाई को बंद होगा, जिसके जरिये एफ्ले की योजना 459 करोड़ रुपये जुटाने की है। कंपनी अपने आईपीओ में 90 करोड़ रुपये के नये शेयरों के साथ ही 359 करोड़ रुपये के शेयरों को ऑफर-फॉर-सेल (ओएफएस) के जरिये बेचेगी। आईपीओ में 740-745 रुपये का प्राइस बैंड रखा गया है। बाजार नियामक सेबी ने सिंगापुर में स्थित वैश्विक तकनीकी कंपनी एफ्ले होल्डिंग्स की भारतीय इकाई एफ्ले इंडिया को आईपीओ के लिए अक्टूबर 2018 में ही हरी झंडी दिखा दी थी। मोबाइल मार्केटिंग कंपनी एफ्ले इंडिया ने सेबी के पास जुलाई में आवेदन किया था। बाजार नियामक से कंपनी को 19 अक्टूबर को 'ऑब्जर्वेशंस' मिली, जो किसी भी तरह का सार्वजनिक इश्यू लाने वाली हर कंपनी के लिए प्राप्त करना जरूरी है। आईपीओ का प्रबंधन आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज और नोमुरा फाइनेंशियल करेंगी।

आईपीओ के जरिये प्राप्त पूँजी का इस्तेमाल एफ्ले इंडिया कार्यकारी पूँजी जरूरतों और अन्य कारोबारी उद्देश्यों के लिए करेगी। एफ्ले मोबाइल उपयोगकर्ताओं के साथ व्यवसाय को बढ़ाने के लिए कंपनियों को एंड-टू-एंड सॉल्युशंस और ऑनलाइन तथा ऑफलाइन कंपनियों के लिए उद्यम ग्रेड डेटा विश्लेषण प्रदान करती है। 2009 में माइक्रोसॉफ्ट ने एफ्फेल होल्डिंग्स में थोड़ी हिस्सेदारी खरीदी थी।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

ट्रंप का बयान गैर जिम्मेवार, पर उत्तेजित होना सही रणनीति नही

 


अवधेश कुमार

अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान ऐसा है जिससे भारत में खलबली मचनी स्वाभाविक है। भारत की घोषित नीति है- जम्मू कश्मीर में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं हो सकती। यही नहीं पाकिस्तान के साथ सारे विवाद को हम द्विपक्षीय मामला मानते हैं जिसमें तीसरे पक्ष की कोई आवश्यकता नहीं। इसके विपरीत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से ट्रंप ने कहा कि दो महीने पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे कश्मीर पर मध्यस्थता करने का आग्रह किया था। यह भारत की घोषित नीति के विपरीत है। जम्मू कश्मीर हमारे लिए अखंड भारत का भूभाग है। इसमें विवाद है तो इतना कि पाकिस्तान ने इसका कुछ हिस्सा जबरन हथियाया हुआ है जिसे वापस लेना है। जब भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ तक की भूमिका को नकार दिया हुआ है तो किसी देश के हस्तक्षेप को कैसे स्वीकार कर सकता है। किंतु जब बयान आ गया है तो उसका विश्लेषण होगा। भारत में विपक्षी दलों ने एक स्वर से जिस तरह हंगामा किया उसमें गुस्सा और राजनीति दोनों है। गुस्सा वाजिब है लेकिन राजनीति नावाजिब। ट्रंप का बयान निंदनीय और अस्वीकार्य है पर यह एक ऐसा मामला है जिस पर पूरे देश को एक स्वर में बोलना चाहिए। प्रश्न है कि आखिर भारत इस पर क्या कर सकता है?

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद के दोनों सदन में बयान देकर खंडन कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं सदन को स्पष्ट तौर पर विश्वास दिलाना चाहता हूं कि प्रधनमंत्री मोदी ने कभी ऐसी कोई बात नहीं की। कश्मीर का मुद्दा द्विपक्षीय मुद्दा है और इससे जुड़ी सभी समस्याओं का समाधान भारत-पाकिस्तान मिलकर ही करेंगे। हम शिमला, लाहौर समझौते के आधार पर ही आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सीमापार से होनेवाले आतंकवाद को खत्म किए बिना पाकिस्तान के साथ शांति वार्ता संभव नहीं है। विदेश मंत्री का बयान बिल्कुल साफ है। ट्रंप का बयान आने के कुछ ही समय बाद देर रात विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कमार ने भी ट्वीट कर ट्रंप के बयानों का दो टूक शब्दों में खंडन किया। भारत के लिए इतना ही पर्याप्त होना चाहिए। आइए घटनाक्रम और ट्रंप के बयान को देखें। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए ह्वाइट हाउस में आयोजित लंच समारोह के पूर्व इमरान एवं ट्रंप की पत्रकार वार्ता थी। उसी में ट्रंप ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दो हफ्ते पहले मिला था और हमने इस मुद्दे (कश्मीर) पर बात की थी। उन्होंने ( मोदी) वाकई मुझसे कहा था कि क्या आप मध्यस्थता करेंगे? मैंने पूछा कहां? उन्होंने कहा कश्मीर के लिए क्योंकि यह समस्या सालों से लगातार चली आ रही है। मुझे लगता है कि वे (भारतीय) इसे हल होते हुए देखना चाहेंगे। मुझे लगता है कि आप भी इसका हल होते हुए देखना चाहेंगे। अगर मैं इसमें कोई मदद कर सकता हूं तो मैं एक मध्यस्थ बनना पसंद करूंगा। दरअसल, पाकिस्तानी पत्रकार सुनियोजित तरीके से प्रश्न पूछ रहे थे और इसी में कश्मीर प्रश्न था जिसके पूरा होने के पहले ही इमरान उत्तर देने लगे। इमरान खान ने कहा कि मैं राष्ट्रपति ट्रंप से कहना चाहता हूं कि अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है और वह उपमहाद्वीप में शांति में अहम योगदान दे सकता है। कश्मीर मुद्दे का समाधान दे सकता है। मेरा कहना है कि हमने भारत के साथ बातचीत को लेकर हर प्रयास किया है। जब ट्रंप ने मध्यस्थता करने की बात की तो इमरान खान ने कहा कि यदि आप (कश्मीर पर) मध्यस्थता कर सकते हैं तो एक अरब से अधिक लोगों की प्रार्थना आपके साथ है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का अनुरोध और ऐसी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। वैसे भी अमेरिकी यात्रा में इमरान खान की ट्रंप प्रशासन ने जिस तरह अनदेखी की उससे पाकिस्तान में ही उनकी तीखी आलोचना हो रही थी। पाकिस्तानी अमेरिका द्वारा अपने प्रधानमंत्री का अपमान मान रहे थे। अपमानजनक यात्रा में ट्रंप का यह वक्तव्य उनके काम आ गया है।

पाकिस्तान क्या मानता है इससे हमारे लिए कोई अंतर नहीं आना चाहिए। हो सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद पर चर्चा करते हुए ट्रंप से कहा हो कि आप पाकिस्तान पर दबाव डालिए ताकि वह हमारे कश्मीर में आतंकवाद फैलाना बंद करे। इसका उन्होंने अर्थ अपने अनुसार यह लगाया हो कि हमें मध्यस्थता के लिए कह रहे हैं। ट्रंप झूठ बोलने के लिए भी कुख्यात हैं। या फिर उनकी कुछ रणनीति हो। ट्रपं अफगानिस्तान से भागना चाहते हैं। वे यहां तक तैयार हैं कि अफगानिस्तान का शासन भले तालिबान के हाथों चला जाए लेकिन अमेरिका ज्यादा दिन वहां नहीं रह सकता। इसमंे उनको लगता है कि बगैर पाकिस्तान के सहयोग के यह नहीं हो सकता इसलिए पाकिस्तानियों को खुश करने के लिए उन्होंने बयान दे दिया है। जो भी हो उन्होंने जो कुछ कहा वह झूठ है। ओसाका में 27-28 जून को आयोजित समूह 20 के सम्मेलन में ट्रंप के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बैठक हुई थी। इसमें सारे अधिकारी शामिल थे। उस दौरान भारत.अमेरिका के बीच व्यापारिक विवाद, ईरान मामला, 5 जी की चुनौती और द्विपक्षीय सुरक्षा समझौतों को लेकर बातचीत हुई थी। इस बातचीत में कश्मीर का कोई जिक्र नहीं हुआ। उसके बाद ट्रंप और मोदी की मुलाकात जय यानी जापान, अमेरिका और भारत की त्रिपक्षीय बैठक में ही हुई थी जिसमें जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे भी मौजूद थे। तीनों नेताओं ने साथ मिलकर कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट्स के लिए संसाधन जुटाने को लेकर बात की थी।

डोनाल्ड ट्रंप की विश्व समस्याओं को लेकर अज्ञानता अनेक बार सामने आया है। साफ है जम्मू कश्मीर समस्या के बारे में उनको पूरी जानकारी नहीं है। हालांकि वाइट हाउस की तरफ से दोनों नेताओं की मुलाकात के संबंध में जारी वक्तव्य में कश्मीर या मध्यस्थता शब्द प्रयोग नहीं है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति ट्रंप पाकिस्तान के साथ उन मुद्दों पर सहयोग के लिए काम कर रहे हैं, जो दक्षिण एशिया क्षेत्र में सुरक्षा, स्थिरता और खुशहाली के लिए अहम हैं। ट्रंप से हुई बड़ी गलती के कारण संबंधों में होेने वाली संभावित क्षति को कम करने की यह कोशिश है। अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्टीकरण दे दिया है। उनकी पंक्तियां देखिए-हम दोनों देशों के बीच तनाव कम करने और बातचीत का माहौल बनाने की कोशिशों का समर्थन करते हैं। इसके लिए सबसे जरूरी बात है आतंकवाद का खात्मा और जैसा की राष्ट्रपति ने कहा- हम इसमें मदद के लिए तैयार हैं।विदेश मंत्रालय ने कहा कि कश्मीर मसला भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मुद्दा है। वे अपने राष्ट्रपति को खारिज नहीं कर सकते, इसलिए अमेरिकी विदेश विभाग की तरफ से यह भी कहा गया कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के लिए चर्चा का मुद्दा है, लेकिन ट्रम्प प्रशासन इसमें दोनों देशों की मदद के लिए तैयार है।

इन दोनों बयानों के बाद भारत को किसी तरह की तीखी प्रतिक्रिया की आवश्यकता नहीं है। अमेरिका के साथ वर्तमान एवं भविष्य के रणनीतिक संबंधों का ध्यान रखते हुए एक सीमा से आगे जाकर निंदा करना अपरिपक्वता का परिचायक हो जाएगा। वैसे डोनाल्ड ट्रंप की अपने देश में ही आलोचना शुरु हो गई है। अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य ब्रैड शेरमन ने ट्वीट कर कहा, “मैंने अभी भारतीय राजदूत हर्ष श्रृंगला से ट्रम्प के अनुभवहीन बयान के लिए माफी मांगी। जो भी थोड़ा बहुत दक्षिण एशिया की विदेश नीति के बारे में जानता है उसे पता है कि भारत कश्मीर मुद्दे पर तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं चाहता। सबको पता है कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसाकुछ कभी नहीं कहेंगे। ट्रंप का इस बारे में दिया बयान अपरिपक्व, भ्रामक और शर्मिंदगी देनेवाला है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की पूर्व राजनायिक एलिसा आयर्स ने कहा कि मुझे लगता है कि इमरान के साथ मुलाकात के लिए ट्रम्प बिना तैयारी के गए। उनके बिना सोचे-समझे दिए बयान यही दिखाते हैं। कश्मीर पर आज उन्होंने जो कहा उसे भारत सरकार ने कुछ ही घंटों में नकार दिया। कूटनीति में हर छोटी से छोटी चीज पर ध्यान देना होता है। फिर चाहे वो भाषा हो या इतिहास के तथ्य। हमें यह आज नहीं दिखा। पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा कि ट्रम्प ने इमरान की वैसे ही तारीफ की जैसे वे उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की करते हैं। किसी समझौते पर पहुंचने का यह उनका अपना तरीका है। लेकिन जैसे कोरिया के मामले में कोई समझौता नहीं हो सका, उन्हें अब पता चलेगा कि दक्षिण एशिया के ऐतिहासिक मुद्दे एक रियल एस्टेट डील से कितने पेचीदा है।

भारत जैसे एक परिपक्व देश को इससे आगे जाने की आवश्यकता नहीं है। हमारे विदेश मंत्री ने बयान दे दिया और सीधा संदेश अमेरिकी प्रशासन तक चला गया। पाकिस्तान भले इस बयान को लेकर कुछ समय तक ढोल पीटेगा किंतु इसका व्यवहार में कोई मायने नहीं है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

 

मंगलवार, 23 जुलाई 2019

शनिवार, 20 जुलाई 2019

ऐसे वीडियो से भयभीत होेने की आवश्यकता नहीं

 

अवधेश कुमार

आतंकवादी संगठन अलकायदा प्रमुख अयमान अल जवाहिरी अचानक सामने आया है। अपने 14 मिनट के वीडियो में वह कश्मीर में आतंकवाद को हवा देने की कोशिश कर रहा है। वह कहता है कि कश्मीर को हमें नहीं भूलना चाहिए। मुजाहिद्दीन सेना एवं सरकार पर लगातार हमला करते रहे जिससे भारत की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो, क्योंकि कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय जेहाद का अंग है। इस बात का विश्लेषण किया जा रहा है कि आखिर अल जवाहिरी एकाएक कश्मीर को लेकर सामने क्यों आया है? उसके वीडियो के साथ स्क्रीन पर आतकवादी जाकिर मूसा की तस्वीर अवश्य दिख रही है लेकिन उसने उसका एक बार भी नाम नहीं लिया। ध्यान रखने की बात है कि जाकिर मूसा को सुरक्षा बलों ने 23 मई को मौत के घाट उतार दिया था। जाकिर पहले हिज्बुल मुजाहिद्दीन का कमांडर था लेकिन उससे उसका मतभेद होता गया और उसने अंसार-गजवात-उल-हिंद की स्थापना की। इस संगठन को अल कायदा से जुड़ा माना गया और यह सच भी था। वस्तुतः जाकिर मूसा ने खुलकर यह ऐलान किया कि जम्मू कश्मीर में हमारी लड़ाई आजादी या पाकिस्तान में मिलने के लिए नहीं है। यह अंतर्राष्ट्रीय खिलाफत की लड़ाई है। हम इस्लामिक राज्य की स्थापना के लिए जेहाद कर रहे हैं। उसने हुर्रियत नेताओं को धमकी देते हुए कहा कि जो भी इससे परे बात करेगा उसे लाल चौक पर लटका देंगे। इसके पहले किसी आतंकवादी ने हुर्रियत नेताओं के बारे में ऐसी बात नहीं कही थी। सीमा पार स्थित आतंकवादी संगठनों ने इसका विरोध किया लेकिन जाकिर मूसा अपने मत पर अड़ा रहा। इससे पहला निष्कर्ष यह निकलता है कि अल कायदा ने इस क्षति के बाद जम्मू कश्मीर में फिर से अपने संगठन को खड़ा करने की पहल की है।

सामान्यतः यह निष्कर्ष गलत नहीं कहा जा सकता है। किंतु विचार करने वाली बात यह भी है कि आखिर जाकिर मूसा के मारे जाने के एक महीना 17 दिनों बाद अल कायदा के प्रमुख को इसकी याद क्यों आई? जाकिर मूसा के अंत के तुरत बाद अल कायदा कोई बयान जारी कर सकता था। इसका मतलब हुआ कि इनके बीच त्वरित सूचना तंत्र कमजोर हो चुका है जो संगठन के जर्जर होने का सबूत है। जाकिर मूसा के मारे जाने के काफी पहले 22 दिसंबर 2018 को सेना ने घोषणा की थी कि जाकिर मूसा गैंगा का सफाया किया जा चुका है। उस दिन कश्मीर घाटी में छः आतंकवादी मारे गए थे। ये सब जाकिर मूसा गिरोह के सदस्य थे एवं स्थानीय थे। इसके बाद जाकिर मूसा बचा हुआ था। यहां यह भी जानना जरुरी है कि जाकिर मूसा बुरहान वानी के बाद किंवदंती अवश्य बन गया था, प्रदर्शनों से लेकर आतंकवादियांे के जनाजे तक मंे उसने नारे लगते थे, पर वह कश्मीर में ज्यादा कुछ कर नहीं पाया। कुछ बड़े आतंकवादी उसके साथ आए अवश्य, पर पाकिस्तान तथा वहां सक्रिय आतंकवादी आकाओं के खिलाफ बोलने के कारण वह अलग-थलग था। यह बताना इसलिए जरुरी है, क्योंकि जवाहिरी के वीडियो देखकर कोई यह न माने कि अल कायदा की किसी तरह व्यापक उपस्थिति कश्मीर मंेे है। कुछ विश्लेषक यह मान रहे हैं कि पाकिस्तान इस समय इतने दबाव में है कि वह सीेधे कश्मीर में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, इसलिए उसने हिंसा की आग भड़काने के लिए जवाहिरी को सामने लाया है। जवाहिरी इस समय कहां है इसके बारे में भी अलग-अलग मत हैं। संभव है ओसामा बिन लादेन की तरह वह भी पाकिस्तान में ही कहीं हो। अफगानिस्तान से तालिबानों के शासन के अंत के बाद से वह कहीं दिखा नहीं है। अमेरिका ने 11 सितंबर 2001 के हमले के लिए 21 सर्वाधिक वांछित आतंकवादियों की सूची में ओसामा के बाद उसे दूसरे स्थान पर रखा था। जवाहिरी ने अपने वीडियो पाकिस्तान पर भी तीखा हमला किया है। जवाहिरी ने कहा है किपाकिस्तानी सेना और सरकार केवल मुजाहिद्दीनों का विशेष राजनीतिक इस्तेमाल करने में रुचि रखती है। बाद में उन्हें उनके हाल पर छोड़ देती है या फिर उन पर अत्याचार करती है। उसने पाकिस्तानी सेना और सरकार को अमेरिका का चापलूस कहा है। जवाहिरी ने कहा कि जब अफगानिस्तान से रूसियों को निकालने के बाद अरब मुजाहिदीन कश्मीर की तरफ बढ़ने वाले थे तो पाकिस्तान ने उन्हें रोक दिया।

ऐसा लगता नहीं है कि पाकिस्तान इस समय जवाहिरी को सामने लाने की भूमिका अदा करेगा। आतंकवाद को लेकर भारत की कूटनीति के कारण वह भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव में है। बालाकोट कार्रवाई के बाद भारत की रणनीति तो उसके सामने है ही, एफएटीएफ द्वारा आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए पर्याप्त कदम न उठाए जाने के कारण उस पर काली सूची में डाले जाने का खतरा मंडरा रहा है। इसी महीने इमरान खान अमेरिका जाने वाले हैं। इसलिए पाकिस्तान इस समय जवाहिरी को सामने लाने की मूर्खता नहीं करेगा। हां, पाकिस्तान में एक वर्ग ऐसा है जो इनका समर्थक है एवं वे हरसंभव मदद कर रहे हांेंगे। किंतु इमरान सरकार ऐसी मूर्खता नहीं कर सकता। वैसे जाकिर मूसा ने भी ठीक दो साल पहले पाकिस्तान के बारे में ऐसा ही बयान दिया था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव एवं अपनी आंतरिक स्थिति के कारण पाकिस्तान खुलकर पहले की तरह इनकी मदद करने की स्थिति में नहीं है। पिछले आठ जुलाई को पाकिस्तानी मीडिया में एक व्यक्ति के पकड़े जाने की खबर आई जो खैरात के नाम पर लोगों से धन इकट्ठा कर अल कायदा को भेजता था। पाकिस्तान के आतंकवाद रोधी विभाग (सीटीडी) ने आतंकवाद रोधी अधिनियम के तहत आतंकवाद को वित्तपोषण के आरोप में ह्यूमन कन्सर्न इंटरनेशनल नामक गैर-सरकारी संगठन के स्थानीय प्रमुख अली नवाज को गिरफ्तार किया। उसे आतंकवादी रोधी न्यायालय में पेश किया गया जिसने उसे सीटीडी की हिरासत में भेज दिया। हो सकता है इस तरह की और भी कार्रवाई हुई हो। पाकिस्तान के सामने इस समय दुनिया को ऐसी कार्रवाइयों का प्रमाण देने की मजबूरी है। पाकिस्तान हाफिज सईद तथा मसूद अजहर के खिलाफ कार्रवाई करने को मजबूर हुुआ है। जो खबर आ रही है उसके अनुसार ये सब अपना ढांचा अफगानिस्तान की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे

वैसे आईएसआईएस के उभरने के बाद अल कायदा पूरी दुनिया में कमजोर हो गया। अल बगदादी पहले अल कायदा का ही सदस्य था। उसने अलग संगठन बनाया और उसका आकर्षण इतना हुआ कि अल कायदा की रीढ़ टूट गई। अल कायदा से प्रभावित संगठन उत्तरी अफ्रिका में जरुर सक्रिय हैं, लेकिन एक संगठन के रुप में वह इस समय अत्यंत कमजोर हालत में है। चूंकि आईएस अपने मुख्य केन्द्रों इराक एवं सीरिया में पराजित हो चुका है तथा उसके बचे-खुचे आतंकवादी बिखरे हुए हैं, इसलिए संभव है जवाहिरी ने उनको अपनी ओर खींचने तथा कश्मीर को जेहाद के मुख्य केन्द्र में लाने की रणनीति अपनाई हो। हमें हर ऐसी धमकी को गंभीरता से अवश्य लेना चाहिए, क्योंकि एक ओर कुरान और दूसरी ओर हथियार रखकर जेहाद के उसके आह्वान से कुछ युवाओं के भ्र्रमित होने का खतरा है। तो इस पर नजर रखनी है। किंतु इससे ज्यादा हमें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं। अल कायदा के विचारों का समर्थन आधार तो होगा, लेकिन जवाहिरी के आह्वान पर युवा आतंकवादी बनकर लड़ने के लिए कूद पड़ेंगे इसकी संभावना न के बराबर है। वैसे भी गृह राज्यमंत्री ने संसद में जो बयान दिया उसके अनुसार स्थानीय आतंकवादियों की भर्ती में काफी कमी आई है। आईएस ने तीन वर्ष पहले ही खलीफा के साम्राज्य का एक नक्शा जारी किया था जिसमें जम्मू कश्मीर के साथ भारत के पश्चिमी भाग को शामिल किया गया था। उसने दक्षिण एशिया के लिए कमांडर की भी भर्ती की थी। बावजूद समय-समय पर प्रदर्शनांें में आईएस के झडा लहराने का उसका प्रभाव सुरक्षा बलों ने कश्मीर मंे होने नहीं दिया। इस समय ऑपरेशन ऑल आउट से कश्मीर में आतंकवादियों को मूलभूत आधार उपलब्ध करने वाले तत्वों को निष्प्रभावी करने की जिस तरह की कार्रवाई चल रही है उसमें अल कायदा का विस्तार कठिन है। जब तक पाकिस्तान खुलकर धन प्रदान न करें, आतंकवादियों के भर्ती, प्रशिक्षण और घुसपैठ कराने का सक्रिय ढांचा उपलब्ध न कराए किसी आतंकवादी संगठन के लिए कश्मीर में सशक्त संघर्ष संभव नहीं। पाकिस्तान चाहेगा जरुर कि कश्मीर ंमें आतंकवादियों की संख्या बढ़े, लेकिन इमरान सरकार के लिए पहले की तरह खुलकर ऐसा करना अभी संभव नहीं। वैसे भी कश्मीर का वातावरण बदल रहा है। सेना में भर्ती के लिए बारामुला में जितनी संख्या में नवजवान बाहर आए वह बदलते कश्मीर का एक छोटा प्रमाण जो है ही। गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी यात्रा के दैरान पंचों एवं सरपंचों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की तथा विकास कार्यों में उनकी सीधी भागीदारी का संकल्प बताया। अब केन्द्र से सीधे उनको विकास राशि जा रही है। सरकार उन लोगों तक पहुंच रही है जिन्हें सत्ता ने अभी तक हाशिए पर रखा था। तो एक साथ सुरक्षा ऑपरेशन,अलगाववादियों, भारत विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई तथा जनता तक सीधे पहुंचने की नीतियों के माहौल में नए सिरे से आतंकवादी संगठन प्रभावी नहीं हो सकते।

अवधेश कुमार, ईः30,गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

 

 

शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

लीप्स एंड बाउंड फाउंडेशन ने समाजसेवियों को दूसरे सोशल फाइटर अवार्ड से सम्मानित किया


 
संवाददाता 
नई दिल्ली। भारत की प्रसिद्ध संस्था लीप्स एंड बाउंड फाउंडेशन ने अपने 2 वर्ष पूरे होने पर 19 जुलाई 2019 को दिल्ली के राजेंद्र भवन आईटीओ पर समाजसेवियों को दूसरे सोशल फाइटर अवार्ड से सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में भारत एवं दिल्ली के कई समाजसेवी सम्मानित किए गए। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री प्रशांत रोहतगी (बब्बू खलीफा)(मुख्य संरक्षक दिल्ली रनिंग एसोसिएशन), प्रतीक पाठक (सचिव बाल आरोग्य), मोहित भीम पहलवान (संरक्षक कुश्ती जगत), मोहित नागपाल (मिस्टर यूनिवर्स), तृप्ति मिश्रा (उपाध्यक्ष), ज्योति पवार (महासचिव), निखिल कुमार (सचिव) ने इस कार्यक्रम को संबोधित किया।

मंगलवार, 16 जुलाई 2019

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

राहुल मानते ही नहीं कि पार्टी के संकट के कारण चुनाव हारे

 

इसमें कांग्रेस के उबरने की संभावना खत्म है

अवधेश कुमार

अगर संसद का सत्र नहीं होता तथा राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ने का अपना साढे तीन पन्नों का पत्र ट्वीटर के माध्यम से सार्वजनिक नहीं किया होता तथा उसके बाद कर्नाटक से लेकर गोवा तक पार्टी संकट में नहीं आती तो काग्रेस घुप अंधेरे कमरे के सन्नाटे में छिपी नजर आती। लोकसभा के अलावा पार्टी की कोई गतिविधि थी तो यही कि जो भी कार्यकर्ता या नेता राहुल गांधी तक पहुंच पाते वे उन्हें अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे। राहुल गांधी ने युवा कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं से मुलाकात में जब कहा कि मुझे दुख इस बात का है कि मेरे इस्तीफा देने के बावजूद किसी नेता को अपनी जिम्मेवारी का अहसास नहीं हुआ तो उसके बाद हार की जिम्मेवारी लेने और इस्तीफा देने का सिलसिला आरंभ हुआ। जिस पार्टी के नेतृत्व मंडली की यह दशा हो उसके इतनी बड़ी पराजय के आघात से उबरकर फिर मुख्य धारा में आने तक पहुंचने की कल्पना कोई नहीं कर सकता।

हर संकट में सुअवसर अंतर्निहित होता है। प्रश्न है कि क्या कांग्रेस में संकट को अवसर में बदल देेने की क्षमता बची हुई है? अगर संकट के बहुआयामी कारणों को समझ कर उसे दूर करने के लिए संकल्प के साथ सही योजना से लगातार प्रयास किया जाए तो संभव है कांग्रेस धीरे-धीरे संकटों से मुक्त हो। किंतु उसका तरीका यह नहीं हो सकता कि राहुल गांधी एक लंबा-चौड़ा पत्र लिखकर कहें कि मैं अध्यक्ष नहीं हूं और इस्तीफा इसलिए दे रहा हूं क्योंकि हमारी पार्टी के भविष्य के लिए जवाबदेही महत्वपूर्ण है।  2019 की हार के लिए बहुत से लोगों को जिम्मेदार ठहराने की जरूरत है। ऐसे में यह बिल्कुल भी न्यायोचित नहीं है कि मैं दूसरों को जिम्मेदार ठहराता रहूं, और पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अपनी जवाबदेही को नजरअंदाज करता रहूं। प्रथमदृष्ट्या सुनने में यह अच्छा लगता है कि आज भी कांग्रेस के सर्वमान्य नेता ने पराजय की जिम्मेवारी लेकर इस्तीफा दिया और उस पर अड़ा रहा। किंतु सच यही है कि 25 मई को जब कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई उसमें राहुल गांधी ने हार के लिए वहां उपस्थित नेताओं और मुख्यमंत्रियों को ज्मिमेवार ठहराया। प्रियंका बाड्रा ने कहा कि कांग्रेस की हत्या करने वाले इसी कमरे में मौजूद हैं। जो भी बड़े नेता अकेले या समूह में राहुल गांधी से मिलने आए उन सबके प्रति कठोर शब्दों में उन्होंने नाराजगी प्रकट की।

  इस समय कांग्रेस के सामने अध्यक्ष चुनने की चुनौती आ गई है। कांग्रेस एक परिवार पर नेतृत्व के लिए निर्भर रहने के कारण जिस अवस्था में आ गई है उसमें राहुल का इस्तीफा और उसके पीछे की सोच उसके संकट को बढ़ाने वाला है। ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में अध्यक्ष का चयन अत्यंत कठिन है। कई नामों पर चर्चा हो रही है। कांग्रेस का अध्यक्ष कौन होगा या होना चाहिए इसके जवाब के लिए हमें यह देखना होगा कि इस समय अध्यक्ष के रुप में कैसा व्यक्तित्व चाहिए? सबसे पहले तो वह ऐसा व्यक्ति हो जो समझ सके कि उसके सामने 2014 में अस्तित्व का जो संकट पैदा हुआ वह 2019 में ज्यादा गहरा हुआ है। दो, वह इतना दूरदर्शी हो कि संकट को सही परिप्रेक्ष्य में समझे। तीन, राजनीति की बदलती हुई धारा को देख पाए। चार, जनता या मतदाताओं का भारत को लेकर जो सामूहिक आकांक्षायें हैं, वो जिस प्रकार की राजनीति और नेता की कल्पना करता है उनको ठीक प्रकार से समझ सके। पांच, साथ ही उसके अंदर यह क्षमता हो कि उसके अनुरुप पार्टी के विचार एवं संगठन को बदल सके। यानी पार्टी का वैचारिक अधिष्ठान ऐसा बनाए जिससे लगे कि वो लोगों की सोच को अभिव्यक्त कर रहा है और संगठन को इस तरह ढाले जिससे वह वर्तमान राजनीति में प्रासंगिक हो सके। इसके लिए उसमें सोच के साथ भाषण देने यानी अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखने की क्षमता भी होनी चाहिए। राजनीति में वक्तृत्व कला का बहुत महत्व है। आपके सामने नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह जैसे वक्ता हैं जिनका मुकाबला करना है। संगठन को ढालने का मतलब है ऐसे योग्य एवं सक्षम लोगों की टीम बनाना जो प्राणपण से कांग्रेस का वैचारिक एवं सांगठनिक रुप से पुनर्निर्माण कर सकें। इतना हो सके तो धीरे-धीरे कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी भूमिका में आ सकती है। 

समस्या यह है कि पिछले साढ़े तीन दशक में नेहरु इंदिरा परिवार के प्रत्यक्ष या परोक्ष वर्चस्व के कारण कांग्रेस के पास सीमित व्यक्तियों में से ही चुनने का विकल्प रहा गया है। राज्यों से सक्षम और स्वाभिमानी नेता इन वर्षों में या तो पार्टी छोड़कर जा चुके हैं या फिर कुछ को हाशिये में डालकर राजनीति से बाहर हो जाने के लिए मजबूर कर दिया गया।  कांग्रेस की आकाशगंगा में आपको एक भी ऐसा चमकता सितारा नहीं दिखेगा जो उपरोक्त कसौटियों पर खरा उतरता है। अगर किसी को अध्यक्ष बना भी दिया जाए तो उसे काम करने की आजादी चाहिए। क्या आज की परिस्थिति में इतनी आजादी किसी अध्यक्ष और उसकी टीम को मिलने की संभावना है? क्या वह राहुल गांधी, प्रियंका बाड्रा या सोनिया गांधी को कोई निर्देश देने का साहस दिखा सकता है? क्या इनमें से कोई यदि बयान जारी करना चाहे, जो अध्यक्ष को मंजूर न हो तो उसे रोका जा सकता है? अगर नहीं तो वह अध्यक्ष करेगा क्या? राहुल गांधी के पत्र को देखिए तो वे कहते हैं कि मेरे सहयोगियों को मेरा सुझाव है कि अगले अध्यक्ष का चुनाव जल्द हो। मैंने इसकी इजाजत दे दी है और पूरा समर्थन करने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूं। जब आपने पद छोड़ दिया तो इजाजत किस बात की?

कांग्रेस का संकट नीति यानी विचारधारा, नेतृत्व, रणनीति और संगठन चारों का है। राहुल गांधी ने अपने पत्र में ही विचारधारा को सीमित कर दिया है। उनका कहना है कि कोई भी चुनाव स्वतंत्र प्रेस, स्वतंत्र न्यायपालिका और पारदर्शी चुनाव आयोग के बगैर निष्पक्ष नहीं हो सकता है। और यदि किसी एक पार्टी का वित्तीय संसाधानों पर पूरी तरह वर्चस्व हो तो भी चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकता है। हमने 2019 में किसी एक पार्टी के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ा। बल्कि हमने विपक्ष के खिलाफ काम कर रहे हर संस्थान और सरकार की पूरी मशीनरी के खिलाफ चुनाव लड़ा है। हमारे संस्थानों की निष्पक्षता अब बाकी नहीं है। देश के संस्थानों पर कब्जा करने का आरएसएस का सपना अब पूरा हो चुका है। इसे स्वीकार कर लिया जाए तो फिर कांग्रेस को जनता ने नकारा ही नहीं। इन संस्थओं के कारण वे हार गए। वायनाड में उन्होंने कहा था कि नरेन्द्र मोदी ने झूठ बोलकर तथा भ्रम फैलाकर जनता का वोट ले लिया है। इस तरह नए अध्यक्ष के लिए विचार, संघर्ष और संगठन का लक्ष्य भी राहुल गांधी ने सीमित कर दिया है। इसमें संकट अवसर में कैसे बदलेगा? उनसे पार्टी में कौन पूछ सकता है कि 2014 में हम क्यों 44 सीटों तक सिमट गए?

 सच कहें तो पार्टी मंे इतनी अंतःशक्ति बची ही नहीं थी कि वह भाजपा के विस्तारित होते जनाधार को चुनौती देेने की अवस्था में आ सके। कांग्रेस के सामने भाजपा के अकेले 31 प्रतिशत मत को नीचे लाना तथा अपने 19 प्रतिशत मत को 28-30 प्रतिशत तक ले आने की असाधारण चुनौती थी। वह भी उस स्थिति में जब मोदी सरकार समाज के निचले तबके के लिए आवास, शौचालय, बिजली, पानी, रसोई गैस का सिलेंडर, मुद्रा योजना से कर्ज तथा कौशल विकास को बड़े अभियान का रुप दे चुकी हो। आज दोनों पार्टियों के बीच 18 प्रतिशत मतों यानी कम से कम दोगुने का फासला है। क्या कांग्रेस यह कल्पना कर सकती थी कि अमेठी से राहुल गांधी पराजित हो जाएंगे? अगर केरल का वातावरण सबरीमाला आंदोलन के कारण वामपथियों के खिलाफ नहीं होता तथा तमिलनाडु में द्रमुक की कृपा नहीं होती तो कांग्रेस 2014 से भी नीचे आ जाती तथा राहुल लोकसभा से बाहर होते। 52 में से 23 सीटें इन्हीं दोनों राज्यों की हैं। कांग्रेस का आघात केवल 2019 तक सीमित नहीं है। आप थोड़ी गहराई से अंकणित का विश्लेषण करेंगे तो निष्कर्ष यही आएगा कि अंधेरे के सन्नाटे से निकल पाने की संभावना न के बराबर है। जिन राज्यों मंे सीधा मुकाबला है वहां या तो कांग्रेस को भाजपा से आधा से कम वोट मिले या 24-25 प्रतिशत तक का अंतर हैं। जहां गठबंधन में चुनाव लड़ा गया वहां भी 20 से 25 प्रतिशत तक का अतर है। ऐसी पराजय ईमानदार आत्ममंथन मांगती है जिसका रास्ता राहुल ने स्वयं बंद कर दिया है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

मंगलवार, 9 जुलाई 2019

शनिवार, 6 जुलाई 2019

भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने का विश्वास दिलाने वाला बजट

 

अवधेश कुमार

संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण से बजट की दिशा, चरित्र और नीतियों का  आभास मिल गया था। आर्थिक सर्वेक्षण नरेन्द्र मोदी सरकार के द्वितीय कार्यकाल का रोडमैप ही था। इसमें प्रधानमंत्री के अगले पांच वर्षों में भारत को 5000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य के साथ चुनाव पूर्व भाजपा के संकल्प पत्र में घोषित सामाजिक-आर्थिक विकास की वर्तमान स्थितियों एवं उसकी कार्ययोजनाआंें का भी संकेत था। वित्त मंत्री ने उन सबको समाहित करते हुए आम आदमी की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कदमों के साथ आर्थिक चुनौतियों का सामना करने वाला भारत की सामूहिक आकांक्षओं को पूरी तरह अभिव्यक्त करते हुए एक संतुलित बजट पेश किया है। अंतरिम बजट में भारत को समृद्धतम देश बनाने के लिए दस आयाम घोषित किया गया था। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी चर्चा करते हुए कहा भी यह एक निरंतरता का बजट है। 10 आयामों की चर्चा करते हुए सीतारमण ने फिजिकल-सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर तक और मेक इन इंडिया से लेकर ब्लू इकॉनमी तक की चर्चा की। वस्तुतः अंतरिम बजट को और सशक्त किया गया है। उन्होंने अपने बजट भाषण की शुरुआत 5000 अरब डॉलर का लक्ष्य पाने के साथ की। यह सच है कि जब नरेन्द्र मोदी सरकार सत्ता में आई थी तो भारत की अर्थव्यवस्था 1.85 खबर अमेरिकी डॉलर की थी। इस वर्ष वह 2.7 खरब डॉलर तक पहुुंची। कुछ ही समय में यह 3 खरब डॉलर की हो जाएगी। इसके आधार पर 5 खरब डॉलर तक लक्ष्य पाने की उममीद अव्यावहारिक नहीं है।

बजट इस बड़े लक्ष्य पर केन्द्रित अवश्य है लेकिन इसको पाने के लिए समाज के निचले तबके के कल्याण से लेकर उच्चतर तबके की जिम्मेदारियां तय की गईं हैं। इसे सबका बजट और संतुलित बजट कहा जा सकता है। इसमें अर्थव्यवस्था के समक्ष सारी चुनौतियों का हल करने की कोशिश है, आधारभूत संरचना पर फोकस है तो कारोबारी,उद्योग, किसान, गांव,गरीब,असंगठित क्षेत्र मंें काम करने वालों, खुदरा व्यापारियों आदि के कल्याण के लिए काफी कुछ किया गया है। शहरी आबादी, युवाओं, महिलाओं सबके लिए बजट में काफी कुछ है। बजट की थीम यह है कि अर्थव्यवस्था के सभी अंगों को एक साथ मिलाकर समग्रता में ध्यान दिया जाए तो उसका परिणाम हर क्षेत्र के बीच संतुलन बनाने के रुप में सामने आएगा। 5000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए 4 प्रतिशत से नीचे मुद्रास्फीति एवं आठ प्रतिशत की विकास दर चाहिए। पिछले वित्त वर्ष के अंतिम तिमाही में विकास दर 5.8 प्रतिशत पर आ गया था। इसका मुख्य कारण एनबीएफसी यानी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की खस्ताहाली, विनिर्माण एवं कृषि विकास का धीमापन माना गया था।  बजट मे वित्त मंत्री ने एनबीएफसी की समस्याओं के समाधान के लिए सारे संभव कदम उठाए गए हैं। चरमरा रहे बैंकों के लिए 70 हजार करोड़ के पुनर्पूंजीकरण का ऐलान अत्यंत महत्वपूर्ण है। मोदी सरकार के कार्यकाल में नए कानूनों के कारण 4 लाख करोड़ का कर्ज वसूला गया है। एनपीए में एक लाख करोड़ की कमी आ गई है। बैंकों के पास धन आने का मतलब हुआ उद्योग और करोबार को कर्ज के लिए धन की उपलब्धता। इस तरह विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन मिल सकता है। वित्त मंत्री ने कहा कि आजादी के पूर्व जो भावना स्वदेशी की थी वही भावना अब मेक इन इंडिया का है।

तो मेक इन इंडिया के लिए बजट में जितने प्रावधान हैं उनसे उम्मीद जगती है कि भारत विनिर्माण हब का ठोस केन्द्र हो सकता है। अगले पांच वर्ष में 100 लाख करोड़ रुपया आधारभूत संरचना तथा 25 लाख करोड़ रुपया कृषि एवं ग्रामीण आधारभूत संरचना के लिए खर्च की घोषणा बहुत बड़ी है। अंतर्राष्ट्रीय वित्त पर नजर रखने वाले जानते हैं कि बाजार में भारी धन निवेश के लिए पड़ा हुआ है। आपको बस उनको अपने यहां लाने के लिए कोशिश करनी है। यह ऐसी महात्वाकांक्षी योजना है जिसके साकार होेने के बाद वाकई जैसा प्रधानमंत्री ने कहा न्यू इंडिया की कल्पना साक्षात होगी। इसके लिए बजट जो कहता है उसे देखिए। इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंसिंग के लिए साधनों को लेकर कई सुधारों के प्रस्ताव किए गए हैं। क्रेडिट गारंटी एन्हैंसमेंट कॉर्पाेरेशन के लिए आरबीआई से नोटिफेशन आ चुका है। इसकी स्थापना 2019-20 में हो जाएगी। इन्फ्रास्ट्रक्चर डेट फंड्स और एनबीएफसी की ओर से जारी डेट सिक्यॉरिटीज में एफआईआई और एफआई निवेश को घरेलू निवेशकों को निश्चित अवधि के लिए ट्रांसफर करने की अनुमति दी जाएगी। वित्त मंत्री ने सड़क, जलमार्ग और वायुमार्ग को मजबूती प्रदान करने के सरकार के लक्ष्यों का जिक्र किया।

वास्तव मे 5000 खरब डॉलर पाना लक्ष्य है और उसका पूरा आधार बनाया गया है। पहली बार उपभोग पर फोकस की बजाय  विकास की वृद्धि को बचत, निवेश और निर्यात के अच्छे चक्र से बनाए रखने की बात है। निवेश, विशेषकर निजी निवेश विकास का मुख्य प्रेरक होता है, जो मांग, क्षमता, निर्माण, श्रम उत्पादकता में वृद्धि करता है। पिछले पांच वर्षों में इन्सॉल्वंसी ऐंड बैंकरप्ट्सी कोड जैसे बड़े सुधारों के कारण हमारी अर्थव्यवस्था छलांग लगाने को तैयार है। जैसा बजट में साफ किया गया है कि मुद्रास्फीति  लगातार नियंत्रण मंें है और रहेगी जो कि विकास को ताकत देगा। गहराई से देखा जाए तो बजट ने मांग, नौकरियों, निर्यात की विभिन्न आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए इन्हें अलग समस्याओं के रूप में नहीं, बल्कि एक साथ जोड़कर प्रावधान और नीतियां बनाई गईं हैं। मोदी सरकार ने पिछले 1000 दिनों में 130 से 135 कि.मी. लंबी सड़कें रोज बनाईं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत ग्रीन टेक्नॉलजी के इस्तेमाल से 30 हजार किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई जा चुकी हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तीसरे चरण में 1.25 लाख कि.मी. सड़कों को अगले पांच सालों में अपग्रेड किया जाएगा। इस पर 80,250 करोड़ रुपये की लागत आएगी।

कृषि की ओर आएं तो इसमें व्यापक निवेश की बात है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए पहले की नीतियों को आगे बढ़ाया गया है। इसमें कृषि से जुड़े उद्योगों पर भी फोकस है। कहा गया है कि अन्नदाता को ऊर्जादाता बनाने के लिए हमारे पास कार्यक्रम हैं। उदाहरण के लिए सौर उर्जा ईकाइयों से किसान उर्जा बचाकर उसकी बिक्री कर सकते हैं। बजट मंे सबसे बड़ी बात यह है कि आने वाले समय में किसानों के लिए बजट लाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। स्किम ऑफ फंड फॉर अपग्रेडेशन ऐंड रीजनरेशन ऑफ ट्रेडिशनल इंडस्ट्रीज (स्फूर्ति) योजना के तहत ज्यादा कॉमन फसिलिटी सेंटर्स स्थापित किए जाएंगे और ऐग्रो रूरल इंडस्ट्री सेक्टर में 75 हजार स्किल्ड आंट्रप्रन्योर्स तैयार किए जाएंगे। ह2022 तक सभी को आवास, बचे सभी परिवारों को शौचालय, इच्छुक सभी परिवारों को रसोई गैस कनेक्शन, सभी को बिजली, पेयजल उपलब्ध कराने की घोषणा गांवों के जीवन स्तर में कितना बदलाव जाएगा इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है।

बजट का एक सिद्धांत अमीरांे पर कर लगाओ और गरीबों का कल्याण करों है।  उदाहरण के लिए 2 से 5 करोड़ आय पर 3 प्रतिशत अधिभार लगेगा। 5 करोड़ रुपये सालाना से अधिक आय वाले लोगों पर 7 प्रतिशत अतिरिक्त अधिभार लगेगा। कारोबार में नकदी के प्रयोग को कम करने के लिए प्रावधान किया गया है कि एक खाते में 1 साल में 2 करोड़ से ज्यादा की निकासी होगी तो 2 प्रतिशत टीडीएस कट जाएगा। निस्संदेह, एक वर्ग को यह पसंद नहीं आएगा। किंतु देश को विकास के लिए धन चाहिए तो अमीरों को उसका भार वहन करना ही होगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि 400 करोड़ रुपये का कारोबार करने वाली कंपनियों को अब 25 प्रतिशत की दर से कॉरपोरेट कर देना होगा। इससे पहले 250 करोड़ रुपये तक का कारोबार करने वाली कंपनियों पर कम दर से कर लगाया गया था। इन दोनों को एक साथ मिलाकर देखना चाहिए। आम आय कर स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है। अंतरिम बजट को कायम रखते हुए 5 लाख रुपये सालाना से अधिक आय पर ही कर देना होगा। नौकरीपेशा लोगों के लिए मानक छूट (स्टैंडर्ड डिडक्शन) की सीमा 40 हजार रुपये से बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी गई। अब नौकरी-पेशा लोग दो घरों के लिए एचआरए का आवेदन कर सकते हैं। एचआरए पर कर छूट 1.80 लाख रुपये से बढ़कर 2.40 लाख कर दी है। मध्यम वर्ग के लिए 45 लाख का घर खरीदने पर कर्ज के ब्याज पर 3.5 लाख रुपये की छूट मिलेगी। पहले यह 2 लाख रुपये थी। इस ऐलान से 15 साल की अवधि के आवास कर्ज पर लाभार्थी को सात लाख रुपये तक का फायदा होगा। इस तरह निम्न मध्यम वर्ग एवं मध्यम वर्ग के लिए यह बजट बेहतर प्रावधान लेकर आया है। यह लोगों को घर खरीदने के लिए प्रेरित करेगा और आवास क्षेत्र को गति देगा। जैसा हम जानते हैं सबसे ज्यादा रोजगार आवास निर्माण क्षेत्र से ही मिलता है। इस तरह आवास एवं आधारभूत संरचना संबंधी निर्माण भारत को विकसित देशों की श्रेणी में ही लाएगा बल्कि रोजगार और करोबार का व्यापक अवसर प्रदान करेगा।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है यह भारत के सभी वर्गो और क्षेत्रों की विकास को परवान चढ़ाने के लिए सभी संभाव उपाय करते हुए आकांक्षओं को बढ़ाने और उसे पूरा करने का विश्वास दिलाने वाला बजट है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

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