मंगलवार, 28 मई 2019

शनिवार, 25 मई 2019

जातीय- सांप्रदायिक अनैतिक गठबंधनकों का नकार

 अवधेश कुमार

चुनाव परिणाम में विपक्ष की पराजय केवल उनके लिए हैरतभरा है जिन्हें जमीनी वास्तविकता का अहसास नहीं था। चुनाव की घोषणा के समय से ही साफ था कि विपक्ष नेतृत्व और उसकी विश्वसनीयता, अंकगणित, चुनाव के दौरान निर्मित माहौल, जनता की भावनाओं से जुड़े मुद्दे तथा समग्र जनसमर्थन आधार में काफी पीछे है। अपनी अदूरदर्शिता तथा जमीनी पकड़ न होने के कारण वे इस मुगालते में रहे कि जिस तरह मोदी सरकार को वे विफल करार दे रहे हैं वैसे ही जनता भी मानती है।  यही वो मनोविज्ञान था जिसमें ज्यादातर दल और उनके नेता यह मान बैठे कि वो गठबंधन कर लें तो ज्यादा मत और सीटे पा लेंगे तथा नरेन्द्र मोदी को सत्ता से उखाड़ फेंकने में सफल होंगे। हालांकि इस बात पर सभी एकमत थे कि मोदी को हराना है किंतु ज्यादातर यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कांग्रेस आगे न बढ़े एवं उनकी सीटें इतनी आए जिससे सत्ता में उनकी दावेदारी प्रबल हो। इस संकुचित स्वार्थ की मानसिकता के रहते मोदी जैसे व्यक्तित्व एवं भाजपा सहित राजग के सशक्त गठबंधन से इनके जनाधार वाले क्षेत्रों में पराजित करने सदृश मुकाबला संभव ही नहीं था। जहां गठबंधन सशक्त माना गया मसलन उत्तर प्रदेश, उसका हस्र भी सामने है।

 द्रमुक तथा एक हद तक बीजद को छोड़कर सबकी दुर्दशा इनके लिए बिल्कुल अनपेक्षित है। कारण, ये इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि 23 मई के साथ केन्द्रीय सत्ता में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित है। इस नाते परिणाम पूरे विपक्ष के लिए सन्निपात जैसा है। अगर उत्तर प्रदेश में दो प्रमुख तथा एक अपने क्षेत्र में निश्चित जनाधार रखने वाले दल मिलकर भाजपा को नेस्तनाबूद करने में सफल नहीं हुए तो यह सामान्य घटना नहीं है। उल्टे भाजपा का प्रदर्शन 2014 के आसपास का है। बसपा-सपा के उम्मीदवार न उतारने के बावजूद अमेठी से राहुल गांधी की पराजय से बड़ा उदाहरण विपक्ष की दुर्बलता और अलोकप्रियता का कुछ नहीं हो सकता। जो कांग्रेस छः महीना पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को हराने में सफल हुई थी उसे जनता ने वहां ही नकार दिया। जो ममता बनर्जी और उनके बाद चन्द्रबाबू नायडू विपक्षी एकता के लिए सबसे ज्यादा चहलकदमी कर रहे थे उनका हस्र भी सामने है। आप का दिल्ली और पंजाब से सफाया भी बहुत कुछ कहता है। जाहिर है, इसके कारण गहरे और बहुआयामी होंगे।

विपक्षी एकता का सिद्धांत और उसके लिए अपना स्वार्थ त्यागकर एकजुट होने में जमीन आसमान का अंतर था। पहले विपक्षी एकता का सूत्रधार बनी ममता ने कांग्रेस से प. बंगाल में गठबंधन करना मुनासिब नहीं समझा तो चन्द्रबाबू नायडू ने आंध्रप्रदेश में। ध्यान रखिए, नायडू ने तेलांगना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। बसपा-सपा ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए केवल दो सीटें छोड़ीं। वैसे परिणाम बता रहे हैं कि अगर गठबंधन हो जाता तो भी राष्ट्रीय स्तर पर इनकी दशा ज्यादा नहीं बदलती। तथाकथित यूपीए केवल 66 लोकसभा सीट एवं 23 प्रतिशत मत के साथ चुनाव मैदान में उतरा। तथाकथित इसलिए कि कांग्रेस के साथ बिहार, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में जो गठबंधन हुआ उसका अखिल भारतीय स्वरुप नहीं था। इसके समानांतर मोदी के नेतृत्व में राजग का अखिल भारतीय स्वरुप था तथा यह 350 सीटें एवं 41 प्रतिशत मत के साथ उतरा। इतना बड़े अंतर को पाटना तभी संभव होता जब मोदी सरकार के विरुद्ध व्यापक जन असंतोष हो तथा इनके पक्ष में लहर। क्षेत्रीय दलों की सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश एवं तमिलनाडु में थी। किंतु इनमें उत्तर प्रदेश का गठबंधन केवल जातीय-सांप्रदायिक समीकरणों को ध्यान में रखकर बना था जो मोदी की जातीय सीमाओं से परे लोकप्रियता की धारा को रोक नहीं सकता था। तमिलनाडु गठबंधन राज्य तक सीमित था। बिहार का गठबंधन भी केवल जातीय समीकरणो को ध्यान में रखकर निर्मित हुआ था। यहां भाजपा, जद यू और लोजपा का गठबंधन नेतृत्व, मुद्दे, विचार एवं अंकगणित तीनों मामले में सशक्त था। दोनों गठबंधनों में करीब 21 प्रतिशत मतों का अंतर था जिसे पाटने के लिए पक्ष और विपक्ष में लहर चाहिए। ऐसी लहर आपस में लड़ने वाले दलों के मोदी के खिलाफ गठबंधन करने से नहीं हो सकता यह चुनाव परिणाम ने प्रमाणित कर दिया है।  

 ये सारे दल भूल गए कि मोदी राजनीति में दीर्घकालीन तूफान की तरह आया है जिसके साथ कुछ निश्चित जनाकर्षक विशेषतायें, विचारधारा तथा जनता को आलोड़ित करने वाले कदमों का समुच्चय है। राहुल गांधी ने राफेल में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर चौकीदार चोर का नारा लगाना आरंभ किया। राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की विजय का प्रमुख कारण अनुसूचित जाति-जनजाति कानून में उच्चतम न्यायालय में किए गए संशोधन को संसद द्वारा निरस्त करना था। कांग्रेस भूल गई कि मध्यप्रदेश में भाजपा को उससे केवल पांच सीटें कम मिलीं थी और मत थोड़ा ज्यादा। राजस्थान में भी मतों के मामले में भाजपा थोड़ा ही पीछे थी। लोकसभा क्षेत्रों के अनुसार भाजपा की बड़ी पराजय नहीं थी। विधानसभा चुनाव में लोगों को प्रधानमंत्री का निर्वाचन नहीं करना था। मोदी सरकार ने आर्थिक रुप से पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर गुस्सा शांत किया। कांग्रेस तीन राज्यों की सफलता के कारण इस गलतफहमी का भी शिकार हो गई कि राफेल सौदे में मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप तथा चौकीदार चोर है का नारा जनता को भा रहा है। राफेल पर भ्रष्टाचार का आरोप मुद्दा कभी था ही नहीं। लोग यह मानने को तैयार नहीं कि नरेन्द्र मोदी दलाली कर सकते हैं। मैं भी चौकीदार ने मोदी समर्थकों को ज्यादा रोमांचित किया और आत्मविश्वास दिया। कह सकते हैं कि चौकीदार चोर की गोली उल्टी लगी है।

बालाकोट सहित पाकिस्तान में हवाई बमबारी के कारण राष्ट्रवाद के जनमनोविज्ञान तथा आतंकवाद एवं सुरक्षा के मुद्दा हो जाने से निर्मित माहौल में भाजपा को अनुकूल पिच मिल गई। कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष सरकार को धन्यवाद देने की बजाय पहले इसका उपहास उड़ाता रहा। कांग्रेस ने वायुसेना के जवानों का धन्यवाद किया किंतु कांग्रेस के कुछ नेता कहते रहे कि वहां तो कुछ हुआ ही नहीं, बस एक पेड़ गिरा है। इससे लोगों में गुस्सा पैदा हुआ। उन्हें लगा कि मोदी ने आतंकवाद के विरुद्ध पहली बार इतना बड़ा कदम उठाया, जिससे दुनिया में भारत की धाक कायम हुई, और ये अपने ही देश के पराक्रम का मजाक उड़ा रहे हैं। जब एंटी सेटेलाइट मिसाइल परीक्षण हुआ तो भी विपक्ष ने कहना आरंभ किया कि यह तो वैज्ञानिकों ने किया और किया तो आपने दुनिया को बताया क्यों? इसरो एवं डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख सामने आ गए कि हमने तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आदि के सामने प्रेजेंटेशन दिया था लेकिन इन्होने आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जबकि मोदी ने निर्भीक होकर आगे बढ़ने को कह दिया। इसका असर मतदाताओं पर पड़ना ही था। इसके बाद मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्रसंघ में वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने में भारत को ऐतिहासिक सफलता मिली। यह विदेश नीति की ऐसी सफलता थी जिसकी वाहवाही होनी चाहिए थी लेकिन विपक्ष इसमें भी मीनमेख निकालता रहा। इन सबसे मोदी की एक प्रखर राष्ट्रवादी, रक्षा शक्ति बढ़ाने वाला, दुनिया की परवाह किए बिना साहसी निर्णय करने वाले तथा अपने प्रभाव से चीन को भी मसूद के खिलाफ जाने को मजबूर करने वाले मजबूत नेता की छवि बनी तो विपक्ष की एक गैर जिम्मेवार एवं मोदी विरोध के नाम पर देश विरोध करने वाले समूह की। एक बड़ी मूर्खता कांग्रेस की छः सर्जिकल स्ट्राइक का दावा करना था। 27-28 सितंबर 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण उपलब्ध हैं। तत्कालीन सैन्य प्रमुख से लेकर अधिकारी और जवान गवाह है, जबकि कांग्रेस के दावे के पक्ष में कोई सामने नहीं आया। यह पिच मोदी एवं भाजपा की थी। कांग्रेस ने इस पर खेलने की बचकानी कोशिश की और अपना ही मजाक बना लिया। राष्ट्वाद, सुरक्षा और कश्मीर में कठोर कदमों से जगी आशा के बीच कांग्रेस द्वारा अपने घोषणा पत्र में देशद्रोह कानून खत्म करने, अफस्फा से सुरक्षा बलों को प्राप्त तीन प्रमुख सुरक्षा कवच हटा लेने, कश्मीर में अफस्फा की समीक्षा करने, सुरक्षा बलों की संख्या में कटौती, अलगाववादियों सहित सभी से बातें करने, सुरक्षा बलों का हाथ बांधने के लिए अत्याचार निवारण कानून बनाने आदि के वायदे ने उसके खिलाफ वातावरण बनाया।

विपक्ष ने आरंभ से ही चाहे गठबंधन बनाया हो या अकेले, चुनाव को नरेन्द्र मोदी हटाओ के एकांगी नकारात्मक मुद्दे पर केन्द्रित करने की भूल की। इसकी प्रतिक्रिया में नरेन्द्र मोदी को बनाए रखो की भावना घनीभूत हुई। जब आप मोदी को मुख्य मुद्दा बनाएंगे तो आम मतदाता यह देखेगा कि उनके समानांतर देश का नेतृत्व करने वाले संभावित चेहरे कौन हैं? राहुल गांधी, मायावती, ममता बनर्जी, चन्द्रबाबू नायडू, एचडी देवेगौड़ा, शरद पवार ...। इनमें से कोई नरेन्द्र मोदी के कद के सामने तथा मजबूत सरकार की कसौटी पर टिक नहीं सकता था। लोग मोदी सरकार से थोड़ा असंतुष्ट थे. लेकिन   पांच साल में कुछ किया ही नहीं जेसे अनर्गल आरोप स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना के अंदर घर मिले, जिसके यहां शौचालय बन गया, जिसके घर में बिजली लग गई, जिसे उज्जवला योजना से रसोई गैस का सिलेंडर मिला, जिसके यहां सड़कें बन गईं, जिसे मुद्रा योजना के तहत कर्ज मिला, जिसे स्टार्ट अप के तहत उद्यमिता का अवसर मिला वो सब, जिनकी संख्या बड़ी है, विपक्ष के आरोप से सहमत नहीं हो सकते थे। इन सबमें जातीय या मोदी हराओ के नाम पर बने गठबंधन की सफलता का कोई कारण नहीं था। वास्तव में इस परिणाम ने साफ कर दिया हे कि वैचारिकता से विहीन, जातीय-सांप्रदायिक नकारात्मक गठजो़ड़ का समय लद रहा है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

मंगलवार, 21 मई 2019

सोमवार, 13 मई 2019

शुक्रवार, 10 मई 2019

आपदा प्रबंधन की मिसाल

 अवधेश कुमार

दुनिया भारत को आश्चर्यमिश्रित नजरों से देख रही है। वास्तव में इस बार चक्रदात के प्रकोप को भारत ने जिस तत्परता के साथ मुकाबला किया और जनधन की क्षति को न्यूनतम किया वह दुनिया के लिए मिशाल बन गई है। भीषण चक्रवाती तूफान फोणि के आने की जैसे ही भविष्यवाणी हुई, उड़ीसा में तो भय की लहर पैदा हुई ही, पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश के तटीय इलाकों में भी लोग अनहोनी के साये में जीने लगे और स्वाभाविक ही पूरा देश चिंतित हो गया। आखिर इन चक्रवातों का भारत में भारी तबाही मचाने का रिकॉर्ड तो है ही। 20 साल पहले आए ऐसे ही तूफान से उड़ीस तबाह हो गया था। लगभग 10 हजार लोग मारे गए। तूफान के बीच और जाने के बाद के दृश्य भयावह थे। कहीं लोगों के शव घरों के मलबे में दबे मिलते थे, कई लोगों की लाशें तो उनके घर से मीलों दूर मिलीं। बहुत शव मिले ही नहीं। अनेक घरों के नामोनिशान तक नहीं रहे। फोणि चक्रवात भी  अपने पूरे प्रकोपकारी ताकत क साथ ही आया। 240 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रहीं हवाएं और भारी बारिश क्या कर सकतीं थीं इसकी कल्पना करिए। सड़को और बस्तियों में उनका कहर दिखता भी है। पेड़ो से लेकर टावर तक, बिजली के खंभों से लेकर पानी की टंकी तक, सामान्य घरों से लेकर दूकान और वाहन तक जो रास्ते में आया उखाड़ फेंका। तूफान के बाद तबाही का मंजर राज्य की सड़कों पर साफ दिखाई देने लगा। हालांकि प. बंगाल और आंध्रप्रदेश तो बच गया। हां, हमारे पड़ोसी और निकटतम मित्र देश बांग्लादेश को अवश्य तबाही का सामना करना पड़ा है। किंतु इतने भीषण चक्रवात और उसके द्वारा मचाई गई तबाही के बावजूद भारत जन और धन के महवाविनाश से बच गया और यह पूरी दुनिया के लिए मिसाल है। वास्तव में आपदा प्रबंधन में आपदा आने के पूर्व विनाश को कम करने के लिए उठाए गए कदम, आपदा के बीच उसका सामना करना तथा आपदा चले जाने के बाद राहत, बचाव और पुनर्वास...तीन बातें आतीं हैं। पुनर्वास तो आगे की बात है लेकिन अन्य मामलों में भारत ने आपदा प्रबंधन की मिसाल पेश किया है और दुनिया इसकी वाहवाही कर रही है।

फोणि के आने की सूचना के साथ ही सारी दुनिया की नजर लग गई थी कि तबाही कितनी ज्यादा होती है। सब आश्चर्यमिश्रित नजरों से देख रहे हैं कि यह कैसा भारत है जिसने प्रकृति के ऐसे तांडव का भी बिल्कुल सफलतापूर्वक सामना कर लिया। भारत आपदा प्रबंधन के मामले में पिछड़ा देश माना जाता था। संयुक्त राष्ट्र भारत के प्रयासों की जमकर तारीफ कर रहा है। आपदा के खतरे में कमी लाने वाली डिजास्टर रिस्क रिडक्शन फॉर यूनाइटेड नेशंस महासचिव की विशेष प्रतिनिधि और जिनेवा स्थित यूएन ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (यूएनआईएसडीआर) की प्रमुख मामी मिजोटरी ने कहा कि भारत का कम से कम नुकसान के दृष्टिकोण ने तबाही में काफी कमी ला पाने में सफलता पाई। उन्होंने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की फोणि के बारे में सटीक चेतावनी की भी जमकर तारीफ की है। सच है कि मौसम विभाग की सटीक चेतावनी की वजह से ही उड़ीसा के तूफान में जनहानि कम हुई, क्योंकि हमने लोगों को पहले ही शिविरों और शेल्टर होमों में शिफ्ट कर दिया। जो गए वे अपने साथ बहुत सारा सामाने भी ले गए, इसलिए अगर उनका घर सुरक्षित हैतो उनको वापस आकर सामान्य जिन्दगी जीने में बड़ी समस्या नहीं है। हां, फसल तबाह हो गए, सामान्य दूकानदारों की दूकानें खत्म हो गईं, हजारों घर उड़ गए या पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए और उनको फिर से पुरानी अवयथा में लाने में समय लगेगा लेकिन जिस तरह पूर्व तैयारी के कारण युद्धस्तर पर काम हो रहा है तथा केन्द्र एवं राज्य के बीच अद्भुत समन्वय है उसे देखते हुए आश्वस्त हुआ जा सकता है।

वास्तव में केन्द्र और राज्य के बीच बेहतर तालमेल, समय पूर्व एक-एक पहलू का पूर्वानुमान करते हुए उसके अनुरुप योजना तथा क्रियान्वयन पर फोकस ने ऐसे भयंकर चक्रवात के विनाश को न के बराबर कर दिया। संयुक्त राष्ट्रसंघ की ईकाई यूएनआईएसडीआर जेनेवा में इस पर चर्चा करने वाला है ताकि दूसरे देशों को भी इसका लाभ मिल सके। आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारत को इसके पूर्व कभी विश्व स्तर पर प्रशंसा शायद ही मिली हो। यह बताता है कि हमारे पास क्षमतायें हैं और नहीं हैं उनको विकसित करने का माद्दा भी है, आवश्यकता केवल उसमें बदलाव के लिए काम करने का है। आखिर वही मौसम विभाग, जिसका उपहास उड़ाया जाता था इतना कैसे बदल गया? मौसम विभाग के नए क्षेत्रीय तूफान मॉडल (रीजनल हरिकेन मॉडल) जो भारत की चक्रवातों में जीरो कैजुएलिटी (हादसा शून्य) का हिस्सा है उसकी मदद से हजारों लोगों की जान बचाने में मदद मिली। इसने दिखाया है कि कैसे 1999 से अब सटीक ट्रैकिंग और पूर्वानुमान लगाने की दिशा में प्रगति हुई है। देश ने निर्णय किया कि ऐसे तूफानों से एक भी व्यक्ति के मौत न होने की अवस्था को पाना है। एक बार लक्ष्य बन गया तो उसके अनुरुप सारी व्यवस्थायें। मौसम विभाग का लगभग कायाकल्प हो चुका है। सूचना के साथ मौसम विभाग ने स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए लोगों को जागरूक करना आरंभ कर दिया था।  तूफान आने से पहले ही केन्द्र सरकार ने आरंभिक 14 हजार करोड़ की राशि निर्गत कर दी। ओडिशा में स्थानीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दल या एनडीआरएफ की टीमें सक्रिय हो गई थीं। एनडीआरएफ ने 65 टीमें उतारीं, जो किसी क्षेत्र में अभी तक की सबसे बड़ी तैनाती है। एक टीम में 45 लोग शामिल थे। तूफान के दिन से लेकर अब तक उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और बंगाल सड़कें दुरुस्त करने, कानून-व्यवस्था और भोजन की व्यवस्था के लिए अतिरिक्त टीमें लगाई गईं हैं। फोणि से निपटने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी थी। पुरी के गोपालपुर में सेना की तीन टुकड़ियां स्टैंडबाय पर थीं और पनागर में इंजिनियरिंग टास्क फोर्स थी। भारतीय वायुसेना ने दो सी -17, दो सी-130 और चार एएन-32 को स्टैंडबाय पर रखा था। नौसेना ने राहत कार्यों के लिए 6 जहाजों को तैनात किया। मेडिकल और डाइविंग टीम अलर्ट पर थीं।

देश में साधनहीनता का रोना रोने वाले नहीं समझेंगे और वे इनमें से भी मीनमेख निकालेंगे। पर देख लीजिए, न राज्य सरकार ने केन्द्र की कोई शिकायत की और न केन्द्र ने किसी तरह राज्य सरकार को लपेटने की कोशिश, जबकि चुनाव चल रहा है। एक ओर प्रधानमंत्री अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री अपने यहां और दोनों के बीच भी कॉन्फ्रेंस हो रहा है। यही व्यवहार अपेक्षित है। राजनीति अपनी जगह देश का काम अपनी जगह। राज्य एवं केन्द्र की मशीनरी के बीच तालमेल का अभाव भी ऐसी विपदा में चुनौतियां बनता था। इस बार ऐसा नं था, न है। उड़ीसा सरकार ने लोगों को सचेत करने में और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में पूरी मशीनरी झोंक दी थी और केन्द्र की टीमें वहां उनके अनुसार सहयोग में लगीं थीं। तूफान से पहले करीब 26 लाख टेक्स्ट मैसेज भेजे गए, टीवी पर विज्ञापन, तटीय इलाकों में लगे साइरन, बसें, पुलिस अधिकारी और सार्वजनिक घोषणा जैसे तमाम उपाय राज्य सरकार ने किए। क्या आप कल्पना कर सकते थे कि बिना किसी हो-हल्ला के 12 लाख से ज्यादा लोग बस्तिया खाली कर शेल्टरहोमों या शिविरों में चले जाएंगे? उड़ीसा तो भारत का एक पिछड़ा राज्य है। अगर वहां यह चमत्कार हो सकता है तो अन्य जगह क्यों नहीं हो सकता। 1999 के अनुभवों से सीख लेकर समुद्र तटीय इलाकों से कुछ किमी की दूरी पर शेल्टर होम बनाए गए थे। आईआईटी खड़गपुर के विशेषज्ञों द्वारा डिजाइन की गई ये इमारतें चक्रवाती तूफानों को झेलने में सक्षम हैं। 1999 में रेड क्रॉस के 23 साइक्लोन शेल्टर थे जिनमें 42 हजार लोगों को आश्रय मिला था। उससे प्रेरणा लेकर पर्याप्त शेल्टर होम बनाए गए और ध्यान रखा गया कि गांववालों को शेल्टर तक पहुंचने के लिए सवा दो किमी से ज्यादा न चलना पड़े। आज राज्य में 879 मल्टीपरपज साइक्लोन शेल्टर हैं। बहरहाल, केन्द्र की बिजली और संचार सेवा बहाली पर तीव्र गति से काम चल रहा है। बिजली सेवा तुरंत शुरू करने के लिए बिजली के पोल, डीजल जेनेरेटर और वर्कर मुहैया कराए जा रहे हैं। नौसेना प्रभावित इलाकों में खाद्य सामग्री, स्वास्थ्य सेवाएं, कपड़े, पुनर्वास सामग्री पहुंचाने और पेड़ों को हटाने पर लगी हुई है। ओडिशा में तैनात आईएनएनस चिल्का में टॉर्च और बैट्रियां भी भेजी जा रही हैं। नौसेना के प्रभारी अधिकारी इन सामग्रियों को वितरण का काम देख रहे हैं। सार्वजनिक रसोइयों की व्यवस्था की जा रही है। नौसेना का पूर्वी बेड़ा भी राहत और बचाव कार्यों में लगा है। यहां नौसेना के जहाज रणविजय, ऐरावत और कदमत राहत अभियानों के लिए तैनात किए गए हैं। इनके अलावा तीन हेलिकॉप्टरों के जरिए भी नजर रखी जा रही है। आप देख सकते हैं कि मुख्य सड़कों से पेंड़ और पोल कितनी तेजी से हटा दिए गए। आवागमन लगभग आरंभ। यह है आपदा प्रबंधन है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

सोमवार, 6 मई 2019

शनिवार, 4 मई 2019

संकट में शीर्ष न्यायपालिका

 

अवधेश कुमार

आम चुनाव के शोर के बीच हमारी शीर्ष न्यायपालिका उच्चतम न्यायालय के समक्ष आए गंभीर संकट पर देश का ध्यान उतना नहीं है जितना होना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर जबसे उच्चतम न्यायालय की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सभी न्यायाधीशों को पत्र लिखा तभी से हलचल मचा हुआ है। यह आरोप चल ही रहा था कि एक वकील उत्सव बैंस ने न्यायालय में एक याचिका दायर कर आरोप पर विचार कर रही पीठ के सामने अपनी राय रखने की मांग की। बैंस ने कहा है कि न्यायालय में पीठ फिक्सिंग का खेल चल रहा है तथा इसके पीछे बड़ी कॉरपोरेट शक्तियां हैं। अगर बैंस की बात मानी जाए तो महिला के माध्यम से इन शक्तियों ने मुख्य न्यायाधीश को फंसाने की साजिश रची है। आरोप लगने के बाद ही मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने कहा था कि न्यायपालिका गंभीर खतरे में है। गोगोई ने कहा कि कुछ महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई से पहले यह उन्हें निशाना बनाने का एक बड़ा षडयंत्र है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि वह कार्यकाल के बाकी बचे सात महीनों में अपने पद पर बैठेंगे और सुनवाई के लिए आने वाले प्रत्येक मामले का बिना किसी डर या पक्षपात के फैसला करेंगे। किंतु आरोप लगने के बाद स्थितियां काफी बदल जातीं हैं। तो फिर?

वास्तव में प्रश्न केवल किसी मुख्य न्यायाधीश पर आरोप तक सीमित नहीं है। ये शीर्ष न्यायालय के सम्पूर्ण चरित्र , उसकी साख और विश्वसनीयता पर उठे प्रश्न हैं, जो उपयुक्त उत्तर के साथ ऐसी स्थितियां निर्मित करने की मांग करते हैं ताकि इसकी कार्यप्रणाली ज्यादा पारदर्शी हों तथा इसकी विश्वसनीयता और साख पर कोई संदेह न रहे। अगर मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका को गंभीर खतरे में मान रहे हैंं तथा महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई के पूर्व उनके सहित अन्य न्यायाधीशों को दबाव में लाने की साजिश की ओर संकेत कर रहे हैं तो इससे गंभीर स्थिति शीर्ष न्यायपालिका के लिए कुछ हो ही नहीं सकती। बैंस के आरोप से इसकी एक हद तक पुष्टि भी होती है। अगर निहित स्वार्थी तत्व न्यायालय में अपने मामले की सुनवाई के लिए अनुकूल पीठ तक गठित करवाने का खेल रच रहे हैं तो साफ है कि हमारी न्यायपालिका गंभीर बीमारी से ग्रस्त है। महिला के आरोपों के बाद न्यायमूर्ति गोगोई ने स्वयं को भी उसकी विशेष सुनवाई में शामिल किया। इस पर वकीलों के संगठनों सहित अन्य अनेक संस्थाओं ने प्रश्न भी उठाए लेकिन गोगोई का कहना था कि उन्होंने न्यायालय में बैठने का असामान्य और असाधारण कदम उठाया है क्योंकि चीजें बहुत आगे बढ़ चुकी हैं।...न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता। वैसे पीठ ने जो फैसला किया उसमें मुख्य न्यायाधीश का नाम शामिल नहीं था। इस मामले की सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ गठित करने का फैसला हुआ। तत्काल महिला के आरोपों की आंतरिक जांच के लिए न्यायमूर्ति गोगोई के बाद दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता में एक समिति गठित किया गया है। न्यायमूर्ति बोबडे ने समिति में वरिष्ठता क्रम में उनके बाद आने वाले न्यायमूर्ति एन. वी. रमन तथा महिला होने के कारण न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी को शामिल किया। आरोप लगाने वाली महिला ने बयान दे दिया कि न्यायमूर्ति रमन्ना  न्यायमूर्ति गोगोई के नजदीकी मित्र हैं। इसके बाद न्यायमूर्ति रमन ने स्वयं ही इस समिति से अपने को अलग कर लिया। इसकी आवश्यकता नहीं थी लेकिन जांच की विश्वसनीयता के लिए उन्होंने ऐसा कदम उठाया। इसी तरह पीठ फिक्सिंग मामले की जांच के लिए सेवानिवृत न्यायमूर्ति ए. के. पटनायक समिति का गठन किया गया है। तो हमें इन दोनों समितियों की जांच की अंतिम रिपोर्ट की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय द्वारा पुलिस से लेकर जांच एजेंसियों के प्रमुखों को बुलाकर समितियों को पूरा सहयोग का निर्देश देने के बाद यह समझना मुश्किल नहीं है कि इसका दायरा कितना विस्तृत हो गया है। बिना पुलिस एवं जांच एजेंसियों के ऐसे मामलों की तह तक पहुंचा भी नहीं जा सकता। संभव है आने वाले समय में अनेक लोग इसकी चपेट में आएं। इन दोनों मामलों को साथ मिलाकर देखने से तस्वीर यही बनती है कि उच्चतम न्यायालय को भी भ्रष्ट और बेईमान तत्व परोक्ष रुप से अपनी गिरफ्त में लेने में सफल हो रहे हैं और ज्यादातर न्यायाधीशों तक को इसका पता भी नहीं है। आप हालात का अंदाजा इसी से लगाइए कि न्यायाधीशों की बैठक में तय हुआ कि संवेदनशील मामलों के फैसले आदि की टाइपिंग भी स्वयं की जाए क्योंकि पता नहीं कौन सहयोगी उसे बाहर लीक कर दे या उसे गलत तरीके से मीडिया को दे दे। पिछले दिनों एक बड़े उद्योगपति के मामले में फैसले को गलत टाइप करके मीडिया को दे दिया गया था। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार कोई छिपा तथ्य नहीं है किंतु उच्चतम न्यायालय को इससे मुक्त माना जाता था। यह मिथक भी टूटा है। बेईमान पूंजीशाहों से लेकर अनेक प्रकार के लौबिस्ट, बिचौलिए, निहित स्वार्थी तत्वों का जाल इसके ईर्द-गिर्द भी फैल चुका है। जाहिर है, इसकी सम्पूर्ण सफाई अनिवार्य है।  यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर मुख्य न्यायाधीश किन महत्वपूर्ण मुकदमों की बात कर रहे थे? राहुल गांधी द्वारा राफेल फैसले की पुनर्विचार याचिका स्वीकार करने के बाद दिए गए बयान पर आधारित मानहानि, नरेन्द्र मोदी की बायोपिक को जारी करने या न करने, जमीन अधिग्रहण और सूचना का अधिकार उनके ऑफिस पर लागू होने या नहीं जैसे मामलों पर मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ को सुनवाई करनी थी। तो इनमें किनका स्वार्थ हो सकता है?  

यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला का चरित्र भी संदिग्ध है। उस पर आरोप है कि उसने मुख्य न्यायाधीश से निकटता की बात करते हुए उच्चतम न्यायालय के समूह-डी में भर्ती कराने के नाम पर घूस लिए। जब नौकरी नहीं मिली तो उसने पैसे मांगे। पैसे वापस करने की जगह उसे धमकाया गया। इसकी प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है। पता नहीं जांच के साथ और क्या-क्या आरोप सामने आ जाएं। हो सकता है कई मामलों के फैसले के लिए धन का लेन-देन किया गया हो। हालांकि यह मांग सही नहीं है कि विशाखा गाइडलाइन के अनुसार कार्यक्षेत्र में महिलाओं के उत्पीड़न की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय की जो 11 सदस्यीय आंतरिक जांच समिति है उसे जांच सौंपा जाए। वस्तुतः मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक प्रमुख भी हैं इसलिए यह समिति उनकी जांच नहीं कर सकती। उच्चतम न्यायालय के वकीलों की असोसिएशन ने आरोप से निपटने के लिए मुख्य न्यायाधीश की ओर से अपनाई गई प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है। असोसिएशन ने कहा है कि इस आरोप से कानून के तहत दी गई प्रक्रिया के अनुसार निपटना चाहिए। विमीन इन क्रिमिनल लॉ नाम की एक अन्य असोसिएशन ने तो जांच पूरी होने तक मुख्य न्यायाधीश के कार्य न करने की मांग की है। पता नहीं इन मांगों और सवालों के पीछे क्या सोच काम कर रहीं हैं। न्यायमूर्ति गोगोई उन चार न्यायाधीशों में शामिल थे जिन्होंने पिछले साल यह आरोप लगाया था कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा स्थापित न्याय प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहे हैं। अगर यही सवाल उनके बारे में भी उठाया जा रहा है तो इसे एकबारगी गलत कहना कठिन है।

किंतु जैसा हमने पहले कहा पूरा मामला बहुत बड़ा है। अगर न्यायपालिका का शीर्ष स्तंभ ही भ्रष्टाचारियों, अपराधियों के विषैले सांपों के फनों से घिर रहा है तो देश का क्या होगा? हम उच्चतम न्यायालय की कार्यप्रणाली को लेकर अनेक प्रश्न उठा सकते हैं। आरोप के बाद मुख्य न्यायाधीश के रवैये या कई मामलों में उनकी टिप्पणियों की आलोचना कर सकते हैं, पर यह समय उसका नहीं है। यह संविधान का अभिभावक माने गए शीर्ष संस्था को संकटमुक्त करने तथा उसकी साख एवं विश्वसनीयता को संदेहों से बाहर निकालने का वृहत्तर मामला है। जिस तरह से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की बैठक में भय का माहौल व्याप्त था उससे स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। अगर स्वतंत्र न्यायपालिका को अस्थिर करने के लिए साजिश रची गई है तो इसका अंत ही होना चाहिए। इसलिए पूरे देश को संयम बरतने की आवश्यकता है। विशेष सुनवाई में न्यायपीठ ने मीडिया से अनुरोध किया था कि वह जिम्मेदारी और सूझबूझ के साथ काम करे,  सत्यता की पुष्टि किए बिना महिला की शिकायत को प्रकाशित न करे। उन्होंने कहा कि हम कोई न्यायिक आदेश पारित नहीं कर रहे हैं लेकिन यह मीडिया पर छोड़ रहे हैं कि वह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदारी से काम करे। बावजूद मीडिया के उसी धरे ने इस पर आ रही खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित किया जो पहले चार न्यायाधीशों की पत्रकार वार्ता के बाद न्यायपालिका में सुधार का झंडा उठाए हुए था या जो राफेल मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर प्रश्न उठा रहा था। यह दुर्भाग्यपूर्ण और आपत्तिजनक रवैया है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मो.ः9811027208

शुक्रवार, 3 मई 2019

सर्वोदय बाल विद्यालय बुलन्द मस्जिद स्कूल ने भी दिए शानदार नतीजे

-पिछले वर्ष के मुकाबले 7 प्रतिशत अधिक छात्र हुए उत्तीर्ण, स्कूल का रिजल्ट रहा 100 प्रतिशत
-रिज़वान ने 500 में से 438 अंक के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया, मोहम्मद ज़ैद ने 500 में से 414 अंक के साथ द्वितीय और मोहम्मद आसिफ ने 500 में से 407 अंक के साथ तृतीय स्थान प्राप्त किया।
-सभी विषयों में बच्चों ने अच्छे अंक प्राप्त कर अध्यापकों का नाम रोशन किया

संवाददाता

नई दिल्ली। राजकीय सर्वोदय बाल विद्यालय बुलन्द मस्जिद शास्त्री पार्क का इस बार सीबीएसई की 12वीं का परीक्षा परिणाम 100 प्रतिशत रहा जो पिछले वर्ष से 7 प्रतिशत अधिक है। जहां स्कूल का रिजल्ट पिछले वर्ष 93 प्रतिशत था वहीं यह अब 100 प्रतिशत हो गया है। जिसका श्रेय यहां के प्रधानाचार्य चांद बाबू व उनके स्टाफ (अध्यापकों) को जाता है जिन्होंने कम सुविधा में भी स्कूल के रिजल्ट में काफी सुधार किया है, जो दूसरे वर्ष भी जारी है। 
जहां 2017 में स्कूल का रिजल्ट 41 प्रतिशत, 2018 में 93 प्रतिशत और 2019 में यह बढ़ कर 100 प्रतिशत हो गया है। 
इस परीक्षा में रिज़वान ने 500 में से 438 अंक के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया, मोहम्मद ज़ैद ने 500 में से 414 अंक के साथ द्वितीय और मोहम्मद आसिफ ने 500 में से 407 अंक के साथ तृतीय स्थान प्राप्त किया।
रिज़वान ने इस परीक्षा में 87.6 प्रतिशत अंक के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया, द्वितीय स्थान मोहम्मद ज़ैद 82.8 प्रतिशत तथा तृतीय स्थान मोहम्मद आसिफ 81.4 प्रतिशत प्राप्त किया।
इस परीक्षा परिणाम पर स्कूल के प्रधानाचार्य चांद बाबू का कहना है कि हमारा स्कूल लगातार अपना शानदार प्रदर्शन कर रहा है जिसमें अध्यापकों की मेहनत रंग ला रही है जिसका परिणाम आपके सामने है। मैं अध्यापकों, छात्रों व उनके अभिभावकों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने कम सुविधा होने पर मुझ पर विश्वास किया और मेरा साथ नहीं छोड़ा। मैं आशा करता हूं कि आने वाले वर्ष में भी ऐसा रिजल्ट आएगा।


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