गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

सांसद निधि और अन्य फंड है राजनीति में बढ़ते अपराधों की जड़

बसंत कुमार

पिछले दिनों आम चुनाव के अवसर पर चुनाव लड़ने वाले आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों के विषय में एक आंकड़े जारी किये गए जिसमें एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने यह आया कि चाहे एनडीए हो या इंडिया गठबंधन हो दोनों ही ओर से आपराधिक पृष्ठभूमि और भूमाफिया और कालाबाजारी में लिप्त भावी सांसदों की संख्या 50% से थोड़ा ही कम है।

विगत कुछ वर्षों में संसद, विधानमंडलों और स्थानीय निकायों में प्रवेश पाने वाले करोड़पतियों और अरबपतियों की संख्या 90-95% तक पहुंच गई है। बस कुछ दूरदराज और आदिवासी क्षेत्रों में ही कभी-कभार ऐसे प्रत्याशी मिल जाते हैं जिनकी घोषित आय हजारों या लाखों में हो सकती है, समाज में वंचित व गरीब समाज की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विधायिका में उनके लिए कुछ सीटें आरक्षित कर दी गई पर अब तो इन सीटों पर भी उन अरबपतियों को टिकट दिये जाते हैं जिनका वंचित समाज के विकास से कोई सरोकार नहीं होता, राजनीति में आने का एक मात्र उद्देश्य अपनी संपत्ति को दुगुना और चौगुना करना होता है। अब तो कुछ दलों में टिकटों का फैसला देश की राजधानी दिल्ली में नहीं बल्कि देश की वाणीज्यिक राजधानी मुंबई में होता है और पार्टी प्रत्याशियों के टिकटों का फैसला संसदीय बोर्ड के और चुनाव समिति के सदस्य नहीं बल्कि मुंबई में बैठे दलाल करते हैं। यहां तक के आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में भी प्रत्याशियों को टिकट उस क्षेत्र में रहने वालों को नहीं दिया जाता जो वहां की समस्या से भलीभांति परिचित होते हैं, बल्कि उनको दिया जाता है जो मुंबई और दिल्ली में रहते हैं और उल्टे-सीधे धंधों से अरबों की संपत्ति इकट्ठा कर रखी है।

अब प्रश्न यह उठता है कि राजनीति में ऐसा क्या है कि अब सभी पैसे वाले, आपराधिक छवि वाले, नौकरशाह, डॉक्टर व अन्य पेशे वाले अपना जमा-जमाया धंधा छोड़कर चुनाव लड़ने को आतुर दिखते हैं। एक समय ऐसा था कि उच्च शिक्षा प्राप्त डॉक्टर व इंजीनियर अपना क्षेत्र छोड़कर सिविल सेवा परीक्षा की ओर आकर्षित होते थे इसके पीछे कारण सर्वेंट्स को मिलने वाली सुविधाएं व पॉवर होता था परंतु अब वही क्रेज लोगों के मन में राजनीति में जाने और चुनाव लड़ने में हो गया है, जानकारों की राय में यह क्रेज 90 के दशक में शुरू हुआ जबसे सांसदों और विधायकों को निधि के नाम पर करोड़ों रुपये दिये जाने लगे।

सांसद और विधायक निधि के इस पैसे को बिना किसी एकाउंटबिलिटी के मनमानी खर्च करने लगे, कहा तो यहां तक जाता हैं कि सांसद निधि से जब किसी शिक्षा संस्था या किसी अन्य संस्थान को पैसा दिया जाता है या निधि से छोटा-मोटा निर्माण कराया जाता है तो उसमें 30 से 35% कमीशन पहले ही ले ली जाती है अर्थात यह कहा जा सकता है कि राजनीति के क्षेत्र में उपजा भ्रष्टाचार सांसदों और विधायकों की निधि के फैसले के बाद से ही अधिक फैला है। इस निधि के कारण चुनाव इतने महंगे हो गए हैं।

एक दृष्टि 1980 के दशक के पूर्व के सांसदों और विधायकों की जीवनशैली पर डालें तो पता चलता है कि तब के सांसद अपने क्षेत्र का दौरा करने हेतु जिला प्रसाशन द्वारा उपलब्ध कराई गई गाड़ियां इस्तेमाल करते थे और जब संसद सत्र के दौरान अपने घर से संसद तक संसद द्वारा चलाई गई बस सेवा का उपयोग करते थे, पर जब से सांसद निधि शुरू हो गई है और विधायिका में भ्रष्टाचार का बोलबाला शुरू हो गया है तब से सांसद व विधायक एसयूवी गाड़ियों के काफिले से चलते हैं और इनके काफिले को देखकर ऐसा लगता हैं मानो ये जनता के सेवक नहीं बल्कि पुराने राजवाड़े और उनका काफिला निकल रहा है। जन सेवा के नाम पर राजनीति में आए लोग राजवाड़ों से अधिक आलीशान जीवन जी रहे हैं और सांसदी खत्म होने के पश्चात अच्छी खासी रकम पेंशन के रूप में मिलने से उनकी बेफिक्री और बढ़ा दी है। इसी कारण पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कई बार सांसद निधि समाप्त करने की बात की थी, उनका मानना था कि जनसेवा के नाम पर चुनकर आये जनप्रतिनिधि देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बन रहे हैं इसलिए सांसद निधि बंद कर दी जानी चाहिए।

इस समय लोकसभा चुनाव प्रगति पर है और सभी सांसद अपने क्षेत्र में पिछले पांच सालों में की गई उपलब्धियों को गिना रहे हैं और इनकी उपलब्धियों में परिवहन एवं सड़क यातायात मंत्री नितिन गडकरी और रेल मंत्री की उपलब्धियां गिनाई जाती हैं अर्थात जन प्रतिनिधियों द्वारा द्वारा अपने सांसद अपनी सांसद निधि को कहां खर्च किया उसका ठीक से ब्यौरा नहीं दे पाते। अभी कुछ दिन पहले एक रिपोर्ट आई थी कि अधिकांश सांसद ठीक तरीके से अपनी निधि खर्च नहीं कर पाते और यदि करते हैं तो वह भी अपने चाटुकारों को मनमाने तरीके से दस-दस हैंड पंप और सोलर लाइट दे देते हैं और क्षेत्र के जरूरतमन्दों को पानी के लिए हैंड पंप और सोलर लाइट नहीं मिल पाती। अब जब प्रधानमन्त्री ने अगले कुछ वर्षों में हर घर को पानी का कनेक्शन और हर घर को बिजली का कनेक्शन का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है और सिर्फ हैंड पंप और सोलर लाइट लगाने के उद्देश्य इन सांसद निधि के नाम पर अरबों रूपये खर्च किये जाएं। इसलिए अब समय आ गया कि सांसद निधि बन्द करके सांसदों और विधायकों को अपने विधायी कार्यों पर अपना ध्यान करने दिया जाए।

जबसे विधायिका के लोगों को क्षेत्र के विकास के नाम पर करोड़ों रुपये की निधि का विधान आया है तब से विधायिका में हिस्ट्रीशीटरो, अपराधियों और सत्ता के दलालों का प्रवेश बढ़ गया है या यूं कह लें इन लोगों ने विधायिका में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है और चुनावों के दौरान टिकट पाने से लेकर चुनाव जितने तक इन लोगों के धनबल और बाहुबल का बोलबाला दिखाई देता है और दुर्भाग्य पूर्ण यह है कि मतदाता भी इन्ही बाहुबली करोड़पतियों के पीछे भागना पसंद करते हैं। अब तो शरीफ, चरित्रवान व सभ्य लोग चुनाव में भाग लेने के बजाय इसे दूर से प्रणाम कर लेते हैं। यदि देश में स्वस्थ लोकतंत्र को स्थापित करना है कि हर राजनीतिक दल को जिताऊ प्रत्याशी के नाम पर आपराधिक और बाहुबली छवि वाले करोड़पतियो का प्रवेश बन्द करना पड़ेगा अन्यथा कुछ समय बाद हमारी संसद और विधानमंडल इन अपराधियों की शरणार्थी बन जाएगी।

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