शुक्रवार, 3 मार्च 2017

उप्र को कदापि नहीं बंटने दिया जाए

श्याम कुमार

केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा निर्मलीकरण मंत्री उमा भारती के बारे में जनता में यह धारणा थी कि वह सबसे अधिक निश्क्रिय मंत्री हैं तथा उनकी निश्क्रियता के कारण ही गंगा का निर्मलीकरण-अभियान परवान नहीं चढ़ पाया है। लेकिन उमा भारती ने गत दिवस प्रदेश भाजपा के लखनऊ-मुख्यालय में आयोजित पत्रकारवार्ता में इस धारणा को समाप्त कर दिया। उन्होंने अपनी अत्यंत कुषल एवं सफल मंत्री की छाप छोड़ी। गंगा के निर्मलीकरण के बारे में उन्होंने बताया कि किस प्रकार उन्हें विभिन्न बाधाओं का सामना करना पड़ा तथा उत्तर प्रदेश सरकार का असहयोग भी झेला। किन्तु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका हौसला बढ़ाया तथा हर प्रकार से मदद की। नतीजा यह हुआ कि पिछली जुलाई, 2016 को सभी कठिनाइयां दूर हो गई हैं तथा अब गंगा-निर्मलीकरण का कार्य तेजी से चलेगा। उमा भारती की पत्रकारवार्ता इस दृष्टि से अत्यंत सार्थक थी कि उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विभाग की विभिन्न उपलब्धियों पर प्रकाष डाला। एक विशेष चर्चा बुंदेलखण्ड को लेकर हुई। बुंदेलखण्ड उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक पिछड़ा क्षेत्र है तथा आजादी के बाद विगत दशकों में उसके विकास के अनगिनत सपने दिखाए गए, लेकिन सारे सपने भ्रष्टाचार एवं अकर्मण्यता की भेंट चढ़ते गए। बुंदेलखण्ड आज भी भयंकर रूप से गरीबी एवं पिछड़ेपन का षिकार है।

नेताओं को जनकल्याण के बजाय अपने कल्याण की अधिक चिंता रहती है। यही बुंदेलखण्ड को लेकर भी हुआ। हमारे नेताओं ने बुंदेलखण्ड के विकास में सही योगदान करने के बजाय अलग बुंदेलखण्ड राज्य बनाने का नारा शुरू किया तथा जनता को यह बरगलाने लगे कि अलग राज्य बनने पर बुंदेलखण्ड स्वर्ग बन जाएगा। वहां राजा बुंदेला-जैसे अनेक नेता पनप गए, जो बुंदेलखण्ड राज्य के निर्माण को ही समस्या का हल बताने लगे। जनता को यह तथ्य पता नहीं है कि उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य बना देने से उस क्षेत्र को कोई लाभ नहीं हुआ है, बल्कि बहुत अधिक नुकसान हो गया है। फायदा केवल नेताओं का हुआ है। वहां विधायकों एवं मंत्रियों की लम्बी फौज खड़ी हो गई, जिसके भ्रष्टाचार के किस्से अकसर सामने आते रहते हैं। वहां जनता गरीब की गरीब बनी हुई है, केवल नेताओं के घर समृद्धि से भर गए हैं। स्वार्थी नेता यही हाल बुंदेलखण्ड का भी करना चाहते हैं। वहां भी विधायकों एवं मंत्रियों की फौज खड़ी हो जाएगी तथा जनता के टैक्स से वसूला गया एवं केंद्र सरकार से प्राप्त धन नेताओं की सुख-सुविधाओं की भेंट चढ़ जाएगा। वहां की जनता फकीर की फकीर बनी रहेगी। अनेक पत्रकार भी आस लगाए बैठे हैं कि वे बुंदेलखण्ड राज्य बनने पर आसानी से विधायक व मंत्री बन जाएंगे। इसीलिए वे बुंदेलखण्ड राज्य के गठन का समर्थन किया करते हैं।उमा भारती की पत्रकारवार्ता में बुंदेलखण्ड राज्य के गठन का प्रश्न उठा तो उन्होंने कहा कि वह तो अनेक वर्षाें से बुंदेलखण्ड राज्य के गठन की समर्थक हैं। किन्तु पहली बात यह कि राज्य पुनर्गठन आयोग ही इस मसले के विभिन्न पहलुओं पर समुचित विचार कर निर्णय करेगा। दूसरी बात यह कि बुंदेलखण्ड का अधिक हिस्सा मध्य प्रदेश में है, जो बुंदेलखण्ड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से की तरह ही बेहद पिछड़ा हुआ था तथा भयंकर गरीबी से ग्रस्त था। लेकिन मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने वहां बुंदेलखण्ड क्षेत्र का चमत्कारपूर्ण ढंग से इतना अधिक विकास कर दिया है कि वहां की जनता ने मध्य प्रदेश से अलग होने से इनकार कर दिया है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश की सरकारों ने यहां बुंदेलखण्ड का विकास किए जाने की ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया। केंद्र सरकार ने जो भारी धनराषि इस क्षेत्र के विकास-कार्याें के लिए भेजी, वह यहां या तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई अथवा उपयोग के बिना केंद्र सरकार को लौटा दी गई। उमा भारती ने बुंदेलखण्ड का विकास एवं कायाकल्प करने के लिए ऐसी अनेक योजनाओं पर प्रकाष डाला, जिन्हें उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनते ही कार्यान्वित किया जाएगा तथा मध्य प्रदेश वाले बुंदेलखण्ड के हिस्से की तरह यहां के बुंदेलखण्ड  क्षेत्र को भी पूर्णरूपेण विकसित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि नई सरकार बुंदेलखण्ड विकास बोर्ड का गठन करेगी। उमा भारती ने यह भी बताया कि बुंदेलखण्ड क्षेत्र में कम पानी से अधिक सिंचाई की नई तकनीक के उपयोग हेतु भारत सरकार ने इजराइल सरकार से एक समझौता किया है।  
बुंदेलखण्ड उत्तर प्रदेश का ऐसा प्यारा हिस्सा है, जिसका जितना अधिक विकास होगा, उससे सम्पूर्ण प्रदेश को लाभ होगा। उस क्षेत्र को विकसित करने की असीम संभावनाएं हैं। जिस प्रकार आजादी के बाद यदि पूरे उत्तर प्रदेश का समुचित विकास किया जाता तो हमारा पूरा प्रदेश पर्यटन की दृश्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बन सकता था, वही बात बुंदेलखण्ड पर भी लागू होती है। वह समूचा क्षेत्र अत्यंत ऐतिहासिक महत्व का है तथा उसे प्राकृतिक दृश्टि से भी बड़ा रमणीक रूप दिया जा सकता है। वहां जल की समस्या बताई जाती है, किन्तु वास्तविकता यह है कि वहां जल उपलब्ध है, जिसका सही संयोजन एवं उपयोग नहीं हो रहा है। केंद्र सरकार ने इजराइल से जो समझौता किया है, वह बुंदेलखण्ड का कायाकल्प करने में सहायक होगा। उत्तर प्रदेश को बड़ा राज्य कहकर विभाजन की मांग करने वाले भूल जाते हैं कि यह प्रदेश देश का सबसे अनूठा प्रदेश है। यहां इतने रंग विद्यमान हैं, जो पूरे प्रदेश के लिए गर्व का विशय हैं। बुंदेलखण्ड क्षेत्र एवं वहां की जनता के वास्तविक कल्याण का एकमात्र रास्ता उसे राज्य बनाया जाना नहीं, बल्कि उस क्षेत्र का अधिक से अधिक विकास किया जाना है। इसका प्रमाण मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान ने प्रस्तुत कर दिया है, जिन्होंने वहां बुंदेलखण्ड क्षेत्र का इतना अधिक विकास किया कि वहां की जनता मध्य प्रदेश से अलग होने के विरुद्ध हो गई है। ऐसा ही उत्तर प्रदेश में भी हो सकता है।

उन्हें ‘गुजरात’ दिखता है, ‘गोधरा’ नहीं

श्याम कुमार

26 एवं 27 फरवरी की तिथियां देश के दो महान क्रांतिकारियों के महाप्रयाण की तिथियां हैं। 26 फरवरी को महाविभूति वीर सावरकर का निधन हुआ था तो 27 फरवरी को महाविभूति चंद्रषेखर आजाद देश के लिए बलिदान हो गए थे। देश का दुर्भाग्य है कि जो नेहरू वंष सत्ता के सारे सुख भोगते हुए सिर्फ अपने नाम को आगे बढ़ाता रहा तथा देश की वास्तविक महाविभूतियों के नाम को दबाने का भरपूर कुचक्र रचा, उस वंष के लोगों की जन्म एवं मरण की तिथियों पर हमारे देश के राष्ट्रपति श्रद्धासुमन अर्पित करने जाते हैं। लेकिन देश के लिए जीवन निछावर कर देने वाली वास्तविक महाविभूतियों की जयंतियों व पुण्यतिथियों पर वह श्रद्धांजलि के दो शब्द बोलने का कर्तव्य-निर्वाह भी नहीं करते। 27 फरवरी की तिथि में एक और बड़ा बलिदान हुआ था। वर्ष 2002 की 27 फरवरी को गुजरात के गोधरा रेल स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की दो बोगियां फूंक दी गई थीं, जिनमें सवार सारे कारसेवक नृषंसतापूर्वक जिंदा जला डाले गए थे। वे कारसेवक अपने परिवारों के साथ, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे भी षामिल थे, अयोध्या में रामलला के दर्षन कर ट्रेन की दो आरक्षित बोगियों में सवार होकर गुजरात अपने घर लौट रहे थे। गोधरा के मुस्लिम आतंकियों को इस बात की जानकारी थी और उन्होंने उनकी हत्या करने का कुचक्र रच लिया था। ट्रेन जब गोधरा स्टेशन से प्रस्थान कर आगे मुसलिम आबादी वाले क्षेत्र में आउटर पर पहुंची तो उसे रोक लिया गया और दोनों बोगियों पर जबरदस्त पथराव कर फूंक दिया गया। इस प्रकार कारसेवकों को उनके बाल-बच्चों सहित निर्ममतापूर्वक जिंदा जला डाला गया। जब यह दिल दहला देने वाली खबर फैली तो उसकी प्रतिक्रिया में गुजरात में दंगे भड़क उठे थे।

गोधरा का कांड इतना जघन्य काण्ड था कि वैसी अमानवीय घटनाएं कम हुआ करती हैं। उस कुकृत्य की देशभर में निंदा होनी चाहिए थी तथा दोशियों को कठोरतम दण्ड दिया जाना चाहिए था। लेकिन वैसा बिलकुल नहीं किया गया तथा देश की फर्जी सेकुलर जमात ने उस पर पूरी तरह चुप्पी साध ली। ऐसा प्रदर्षित किया गया, जैसे वह घटना हुई ही नहीं तथा हुई भी तो बहुत मामूली घटना थी। यहां तक कहा गया कि कारसेवकों ने स्वयं आग लगा ली थी। इसके विपरीत गोधरा काण्ड की प्रतिक्रिया में जो दंगे भड़के, उन पर भयंकर शोर मचाया गया और वह शोर अभी भी जारी है।  

जवाहरलाल नेहरू ने देश में फर्जी सेकुलरवाद की जो नींव डाली, उसमें सिर्फ मुसलमानों की जान को कीमती समझा जाता है। हिन्दुओं की जान का कोई महत्व नहीं माना जाता है और न उनके हित की बात की जाती है। सारे नेता ‘हाय मुसलमान, हाय मुसलमान’ करते रहते हैं तथा घोर साम्प्रदायिक बातें करके भी अपने को सेकुलर घोशित करते हैं। इसके विपरीत यदि कोई हिन्दूहित का तनिक भी उल्लेख कर दे तो उसे साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जाता है तथा उसकी कटु निंदा की जाती है। गत दिवस एक टीवी चैनल पर एक मौलाना ने कहा कि वह पहले मुसलमान हैं, जिसके बाद भारतीय हैं। पहले भी टीवी-चैनलों पर एवं भाशणों में मौलाना व अन्य बहुत पढ़े-लिखे लोग ऐसा ही कहते रहे हैं, किन्तु उस पर कभी कोई आपत्ति नहीं की जाती है। लेकिन यदि कोई हिन्दू कह दे कि वह पहले हिन्दू है, फिर भारतीय है तो उसकी चारों ओर घोर निंदा की जाने लगेगी। मनमोहन/सोनिया की कांग्रेस सरकार ने शड्यंत्र कर साध्वी प्रज्ञा एवं असीमानंद को झूठे देशविरोधी कृत्य में फंसा दिया, जिसके बाद उन्हें बदनाम करने की फर्जी सेकुलरियों में होड़ लग गई। मुशायरों में शायरों ने उन दोनों का उल्लेख करते हुए हिन्दुओं पर व्यंग्यात्मक रचनाएं पढ़ीं। लेकिन जब यह कहा जाए कि जितने गद्दार पकड़े जाते हैं, वे प्रायः सभी मुसलमान होते हैं तो तुरंत यह ‘टर्र-टर्र’ शुरू हो जाएगी कि ऐसा कहना साम्प्रदायिकता है। वे यह भी कहने लगते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।   

पिछले दिनों पाकिस्तान के जासूस के रूप में कुछ हिन्दू पकड़े गए, जिसके बाद हिन्दुओं पर तरह-तरह के लांछन लगाए जाने लगे हैं। इससे इनकार नहीं कि स्वार्थ के लिए हिन्दू भी देशद्रोह करते रहे हैं। जयचंद ने गद्दारी न की होती तो देश मुसलिम हमलावरों की गुलामी से बच जाता। कट्टर मजहबपरस्त मौलाना एवं राजनीतिक नेता हिन्दुओं के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं, फिर भी अपने को सेकुलर कहते हैं। जो हिन्दू नामधारी फर्जी सेकुलरिए हैं, वे उन कट्टरपंथी मुसलमानों से अधिक हमारे देश एवं हिन्दू धर्म को गंभीर क्षति पहुंचा रहे हैं। वे तो घर के भीतर रहकर वार कर रहे हैं। पिछले दिनों मुसलिम विद्वान एवं राष्ट्रवादी तारेक फतह पर कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा घातक हमला किया गया। उनका सिर काटने वाले के लिए 50 लाख रुपये के इनाम की घोशणा की गई है। लेकिन इसकी किसी भी सेकुलरिए ने निंदा नहीं की और न तारेक फतेह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत की। बल्कि यह आरोप लगाया कि उनकी बातों से मुसलमानों की भावनाओं को चोट पहुंचती है। हकीकत यह है कि तारेक फतह जो बातें कहते हैं, वे मुसलमानों के वास्तविक हित की होती हैं। तसलीमा नसरीन ने बंगलादेश में मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों की सच्ची घटनाओं का अपनी पुस्तक में उल्लेख कर दिया तो कट्टरपंथी मुसलमानों ने आरोप लगा दिया कि उक्त उल्लेख से उनकी भावनाओं को चोट पहुंची है। केंद्र की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने फौरन उस पुस्तक एवं तसलीमा नसरीन पर प्रतिबंध थोप दिए। हिन्दुओं के विरुद्ध आपत्तिजनक बातों एवं हरकतों को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ कहकर बचाव किया जाता है, किन्तु मुसलिम कट्टरपंथियों या फर्जी सेकुलरियों की किसी हिन्दू-विरोधी बात का विरोध किया जाय तो वहां हिन्दुओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भूलकर निंदा-अभियान शुरू कर दिया जाता है। जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू किए गए फर्जी सेकुलरवाद का आधार ही मुसलिम-तुष्टीकरण एवं हिन्दू-विरोध है। यही कारण है कि ऐसे लोगों को गोधरा का नृशंस हत्याकाण्ड नहीं दिखाई देता, केवल गुजरात का दंगा दिखाई देता है।  

उप्र में अफसर ‘जुगाड़’ लगाने में जुटे

श्याम कुमार

उत्तर प्रदेश की नौकरशाही इस समय अपने को बिलकुल निस्पृह दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन हकीकत कुछ और है। नौकरशाही चिंता में डूबी हुई है। वह बहुत टोह लेने की कोशिश कर रही है कि विधानसभा के चुनाव में क्या होने वाला है? अपनी सूंघने की शक्ति का वह भरपूर इस्तेमाल कर रही है। अनेक नौकरशाहों की सूंघने की शक्ति कुत्ते से भी तेज होती है और इसी के बल पर वे अपनी निष्ठाएं बदलकर हर राज में चांदी काटते रहते हैं। लेकिन यह पहला चुनाव है, जिसमें जनता पूरी तरह मौन है। उसकी चाल-ढाल या भाव-भंगिमा, किसी से कुछ झलक ही नहीं रहा है कि उसकी दिशा क्या है? तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। भांति-भांति के विवेचन किए जा रहे हैं। उन्होंने आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए भी जितना परिश्रम नहीं किया होगा, उतना परिश्रम वे चुनाव की रुझान जानने के लिए गहरे पानी में पैठ लगाकर कर रहे हैं। तमाम ‘गधों’ को ‘बाप’ बना रहे हैं कि शायद उनसे ही कुछ संकेत मिल जाय, लेकिन ‘गधे’ भी काम नहीं आ रहे हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने ज्योतिषियों के चुनाव-परिणामों को जो पटकनी दी थी, उसके बाद ज्योतिषियों को मौन रहने में ही अपनी इज्जत सुरक्षित लग रही है। अब कहीं से किसी भी ज्योतिशी की कोई भविष्यवाणी नहीं सुनाई देती है। 

सबसे ज्यादा खलबली उन अफसरों में है, जो मलाई काटने के आदी रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में ऐसे ही अफसरों की चर्चा करते हुए कहा था-‘कुछ अफसर अपार क्षमता से परिपूर्ण होते हैं। महाभ्रष्ट होने के बावजूद उनमें यह योग्यता होती है कि वे हाकिम की इच्छा पूरी करने में पटु होते हैं और इसलिए जो भी सत्ता में आता है, ये उसके नजदीकी हो जाते हैं।’ उत्तर प्रदेश में कुछ दशकों से यही हो रहा है तथा महाभ्रष्ट अफसर चांदी काट रहे हैं। यहां हजारों-करोड़ की कमाई कर चुकने वाले अफसरों की ही नहीं, ऐसे लिपिकों आदि की भी लम्बी जमात है। कायदे से उन्हें जेल में होना चाहिए, लेकिन वे अपनी ‘कलाबाजी’ का इस्तेमाल कर सारे सुख-वैभव का उपभोग कर रहे हैं। वे किसी एक हाकिम की आंखों के तारे होते हैं तो अपनी पटाने की कला के बल पर उस हाकिम के कट्टर विरोधी के सत्ता में आ जाने पर उसकी आंख की पुतली बन जाने में सफल होते हैं। जनता को भी जिज्ञासा है कि अब यदि कहीं वर्तमान सत्ता की धुरविरोधी सत्ता आ गई तो वर्तमान समय में सोना-चांदी काट रहे अफसरों की बड़ी फौज का क्या होगा?

भविष्य का परिदृश्य साफ न होने के कारण ये ‘कलाबाज’ अफसर विभिन्न माध्यमों से अलग-अलग पार्टियों के खास लोगों तक पहुंचने की कोशिश में जुट गए हैं। वे बड़ी पार्टियों के ही नहीं, छोटी पार्टियों के भी प्रभावशाली लोगों को साध रहे हैं, ताकि यदि गठबंधन की सरकार बने तो वे उन छोटे दलों के माध्यम से ‘माखन वाली हांडी’ तक पहुंच सकें। कांग्रेस का दर्द ही यह हो गया था कि वह सत्ता के अभाव में ऐसी दयनीय स्थिति में पहुंच गई कि उसके पास चाटुकारी के लिए अफसर झांकने भी नहीं आते और ‘तबादला-पोस्टिंग’ के सुख से वह वंचित है। इसीलिए वह गठबंधन हेतु लालायित थी तथा उसके सौभाग्य से अखिलेश यादव के रूप में उसे उद्धारकर्ता मिल गया। अखिलेश यादव यदि उसे एक भी सीट नहीं देते तो भी वह सपा से गठबंधन के लिए तैयार हो जाती। यही कारण है कि उसके कई विधायक विपक्ष की भूमिका में होने के बावजूद मुख्यमंत्री की चाटुकारी की भूमिका निभाते थे। मायावती तक पहुंचना लगभग असम्भव होता है तथा उनके पास अपने चहेते अफसरों की बड़ी सूची है। वे अफसर अभी किनारे पड़े माला जप रहे हैं। सुना जा रहा है कि मायावती सत्ता में आईं तो शशांक शेखर के अभाव में वह कुंवर फतेह बहादुर को कैबिनेट सचिव बनाएंगी। एक अफसर, जो कभी उनका सबसे खास हुआ करता था और सपा के सत्तारूढ़ होने पर अखिलेश यादव का निकटवर्ती हो गया, उसके बारे में सुना जा रहा है कि वह फिर मायावती के निकट जाने की जुगाड़ में है तथा वह सफल हो गया तो वह मुख्यमंत्री बनने पर मायावती का प्रमुख सचिव बनेगा।

जुगाड़ू अफसर भारतीय जनता पार्टी को साधने में भी अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। मुझे आश्चर्य हुआ कि जब भारतीय जनता पार्टी के एक खास व्यक्ति ने ऐसे जुगाड़ू अफसरों का पक्ष लेते हुए कहा कि उन अफसरों की कुछ भी पृष्टभूमि रही हो, नई सरकार यदि उनकी योग्यता का इस्तेमाल करती है तो हर्ज क्या है? हमेशा चांदी काटने वाले ऐसे जुगाड़ू अफसर भारतीय जनता पार्टी की कमजोर कडि़यों को टटोल रहे हैं। भाजपा के एक कद्दावर नेता को भी उन कमजोर कडि़यों में माना जा रहा है। जुगाड़ू अफसर पटाने की क्रिया में धन-बल का तो इस्तेमाल करते ही हैं, जाति-बल का भी पूरा उपयोग करते हैं। हमारे यहां पैसे के बाद जाति ऐसा चुम्बक है, जो बड़ी आसानी से किसी को अपने साथ चिपकाने में सफल हो जाता है। लखनऊ में मेरे एक मित्र रामेश्वर प्रसाद सिंह थे, जो यहां पूर्वाेत्तर एवं उत्तर रेलवे में मंडल रेल प्रबंधक रह चुके थे। चूंकि मैं जातिवाद का कट्टर विरोधी हूं और उसे हिन्दू समाज का सबसे बड़ा षत्रु मानता हूं, इसलिए मुझे किसी की जाति जानने में कभी कोई रुचि नहीं होती। अटल-सरकार में जब नीतीश कुमार रेलमंत्री बने थे तो मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ था कि रामेश्वर प्रसाद सिंह कुर्मी हैं और इसी वजह से वह कुर्मी नीतीश कुमार के निकट हो गए। उस समय वे रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष बनने में भी सफल हो गए थे। बहरहाल, उत्तर प्रदेश की नौकरशाही पूरी शिद्दत से यह जानने में जुटी हुई है कि उत्तर प्रदेश में ऊंट किस करवट बैठने वाला है?    

आईएस आतंकवादियों की गिरफ्तारी भयभीत करने वाला

 

अवधेश कुमार

निश्चित रुप से इस खबर से देशभर में भय और सनसनाहट का माहौल बना हुआ है। यह पहली बार है जब देश में इस्लामी स्टेट यानी आईएसआईएस के दो संदिग्ध आतंकवादी पकड़े गए हैं। जी हां, गुजरात पुलिस की माने तो दोनों आतंकवादियों को उस समय गिरफ्तार किया गया जब वे अलग-अलग विस्फोटक बनाने में लगे हुए थे। उनके पास से विस्फोटक सामग्रियों के अलावा जिहादी साहित्य बरामद किए गए हैं। जो कुछ इनसे पूछताछ के बारे में गुजरात के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने बताया है उसके अनुसार ये चोटिला स्थिज चामुंडा मंदिर सहित कई धार्मिक स्थलों पर हमला करने की योजना बना चुके थे। साथ ही ये अन्य जगहों पर रासायनिक हमले की योजना भी बना रहे थे। कहने की आवश्यकता नहीं कि इनकी योजना कितनी खतरनाक थी। मजे की बात देखिए कि पकड़े गए वसीम और नईम दोनों सगे भाई हैं तथा इनके पिता आरिफ रमोड़िया जिला स्तर के क्रिकेट अंपायर भी है। पिता का कहना है कि दोनों की गतिविधियों के बारे उनको कोई जानकारी नहीं है। संभव है पिता सच बोेले रहे हों, क्योंकि कोई भारतीय पिता अपने बेटे को इस तरह आतंकवादी बनते नहीं देखना चाहेगा। किंतु गुजरात आतंकवाद निरोधक दस्ता यदि कई महीनों से इन पर नजर रख रहा था और पुख्ता सूचना और सबूत के बाद गिरफ्तार किया है तो इस समय हमारे पास इसे सच स्वीकारना ही होगा।

जबसे यह खबर आई कि आईएस ने दक्षिण एशिया के लिए अपना कमाडर नियुक्त कर दिया है और वह यहां गतिविधियां चलाने की कोशिश में है तब से ही आतंकवाद के जानकार भारत को लेकर चिंतित थे। हालांकि अभी तक आईएस से प्रभावित होकर देश से भागने वाले के बारे में सूचनाएं थीं, कुछ युवक भागते हुए पकड़े गए.....कई सोशल मीडिया के माध्यम से आईएस का प्रचार करते तथा उसके लिए युवाओं का मानस बदलने के काम में लगे भी पकड़ में आए। पिछले माह एनआईए ने एक केरल निवासी को भी आईएस के संदिग्ध आतंकी के तौर पर गिरफ्तार किया था तथा पिछले वर्ष राजस्थान के आतंकवादी निरोधक दस्ते ने सीकर जिले से आईएस के एक ऑपरेटिव को गिरफ्तार किया था। इस पर आतंकवादी संगठन को धन स्थानांतरित करने का आरोप लगा है। इस प्रकार आईएस का किसी तरह हमारे यहां विस्तार हो रहा है यह तो स्पष्ट लग रहा था किंतु बाजाब्ता योजना बनाकर हमला करने वाले आईएस के आतंकवादी हमारी जमीन पर पैदा हो चुके हैं ऐसी सूचना पहली बार मिल रही है। जैसा पुलिस बता रही है ये दोनों भाई लगातार देश के बाहर आईएसआईएस आतंकवादियों के साथ स्काइप, ट्विटर और सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए संपर्क में थे। इसके अनुसार दोनों आईएस के प्रचारक अब्दुस सामी कासमी से संबंध बनाए हुए थे।

हमारे पड़ोस बंगलादेश में आईएस का हमला हो चुका है और काफी लोगों की पकड़ धकड़ हुई है। हाल ही में पाकिस्तान में सूफी दरगाह पर हुए बड़े आत्मघाती हमलों की जिम्मेवारी आईएस ने ली थी। इसे देखते हुए हमारी चिंता यह थी कि ये कहीं हमारे यहां भी न पहुंच जाए। हालांकि कश्मीर घाटी में आईएस के झंडे लहराते हुए दिखने के बावजूद वहां भी अभी तक आईएस की किसी गतिविधि की सूचना नहीं है। इस तरह गुजरात में हुई गिरफ्तारी भारत के लिए आसन्न खतरे का संदेश है जिसके बाद पूर्व से कहीं ज्याद चिंता करने और चौकन्ना होने की आवश्यकता है। इस तरह के आतंकवावदियों को लोन वुल्फ कहते हैं। इनका सीधा संगठन से रिश्ता हो, या संगठन की योजना से ये हमला करने आवश्यक नहीं। उससे प्रभावित होकर अकेले योजना बनाकर ये हमला करते हैं। यानी जिस तरह भेड़िया दवे पांव आकर अकेले हमला करता है वैसे ही ये करते हैं। दुनिया में ऐसे कई हमले हो चुके हैं। फ्रांस के नीस शहर का हमला हम भूले नहीं होंगे। पिछले वर्ष फ्रांस के लोग 14 जुलाई की रात बास्तिल के पतन की वर्षगांठ के जश्न में थे और एक आतंकवादी ट्रक लेकर घुसा तथा लोगों को रौंदता चला गया। 90 लोग मारे गए तथा 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। जश्न सेकेण्डांें में मातम में बदल गया। इसी तरह 13 जून को अमेरिका के फ्लोरिडा में समलैंगिक पल्स नाइट क्लब में एक बंदूकधारी ने हमला कर 49 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। उसने तो पुलिस को फोन करके कहा कि मैं आईएस का समर्थक हूं।

ऐसे और कई हमलों का यहा जिक्र किया जा सकता है। यह आईएस की नई रणनीति है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। सितंबर, 2014 में इस्लामिक स्टेट के मुख्य प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल-अदनानी ने अपने एक भाषण में इस्लामिक स्टेट के समर्थकों से यह अपील की थी कि वे अब अपने स्तर पर हमले करें। यानी आप अकेले निजी तौर पर हमले करने की तैयारी करें। अदनानी ने अपने भाषण में कहा था कि जो कोई भी हथियार आपके हाथ आए, उसी से हमला बोल दें। उसने कहा था कि अगर तुम्हें बम या गोली नहीं मिलते तो उनके सिर को पत्थर से फोड़ दो, या उन्हें छुरा घोंप दो, या उन पर अपनी कार चढ़ा दो, या उन्हें किसी ऊंची जगह से फेंक दो, उनका गला घोंट दो, या उन्हें जहर दे दो ...अगर तुम यह भी नहीं कर पा रहे हो, तो उनके घर, उनकी कार, उनके कारोबार को राख कर दो, उनकी फसलें तबाह कर दो। और कुछ नहीं, तो उनके चेहरे पर थूक दो। इसे हम लोन वुल्फ आतंकवाद विचार कह सकते हैं। इसको अमली जामा पहनाना आरंभ हो चुका है। वैसे भी आईएस इस समय इराक एवं सीरिया में भारी हमलों से पस्त है। इसलिए दुनिया के जिस क्षेत्र के लिए अल बगदादी ने खिलाफत यानी खलीफे के साम्राज्य की घोषणा की है सब जगह संगठित समूह में जाकर लड़ना या तथाकथित जेहाद करना उसके लिए संभव नहीं है। इसलिए यह रास्ता ज्यादा आसान है।

लेकिन दुनिया के लिए यह सबसे बड़ा खतरा और सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसे लोगों को पकड़ पाना खुफिया एजेंसियों के लिए आसान नहीं होता। कौन कहां किस समय किस चीज को हथियार बनाकर आतंकवादी बन जाए आप कल्पना नहीं कर सकते। पिछले वर्ष फ्रांस के पहले बंाग्लादेश में जो दूसरा हमला हुआ उसमें स्थानीय आतंकवादी थे जिनके हाथों छूंड़ा था और स्थानीय स्तर पर उनने बम बनाया था। क्यूबेक में एक आतंकवादी ने दो कनाडाई सैनिकों पर अपनी कार चढ़ा दी थी। वैसे भी चाहे आईएस हो या अल कायदा या ऐसे दूसरे संगठन ये एक विचार भी हैं जो लोगों को मजहबी उन्माद से भरकर उनके भीतर हिंसा करने की उद्याम प्रेरणा पैदा करते हैं। इससे ये स्वयं अपना संपर्क विकसित करते हैं, विस्तार करते हैं, विस्फोटक से लेकर संसाधन तक की स्वयं व्यवस्था करते हैं और योजना बनाकर हमला भी खुद ही करते हैं। न तो फ्रांस में हमला करने वाले का आईएस संगठन से सीधा संबंध था न अमेरिका के क्लब पर हमला करने वालों का।

गुजरात में पकड़े गए दोनों भाइयों के बारे में विस्तृत सूचना मिलनी अभी शेष है, लेकिन यदि ये वाकई आईएस के वुल्फ आतंकवादी हैं तो फिर यह मानकर चलना पड़ेगा कि इनकी संख्या इन दो तक ही सीमित नहीं हो सकती। ये देश में अन्यत्र भी फैले होंगे। जो लोग अभी भी आईएस के खतरे को दूर की कौड़ी मानकर उस पर चिंता करने वालों का उपहास उड़ाते थे उनको कम से कम अब अपने विचार बदल लेने चाहिए। हाल ही में आईएस के चंगुल से छूटने वाले भारतीय डॉक्टर के रामामूर्ति ने कहा है कि आईएस भारत में ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच अपनी सोच को फैलाना चाहता है। रामामूर्ति के मुताबिक आईएस में शामिल युवा बेहद पढ़े लिखे हैं उन्हें भारत के बारे में काफी कुछ जानकारी हैं। यहां तक की वह यह भी जानते हैं कि यहां की विकास दर कितनी है और शिक्षा में भारत कितना विकसित है। इन्हीं  वजहों से भारत उनका पसंदीदा देश बन गया है। राममूर्ति को दो साल पहले लीबिया से आईएसआईएस न अपहरण कर लिया था। जो व्यक्ति इतने ंलंबे समय तक आईएस के चंगुल में रहा हो उससे ज्यादा पुख्ता जानकारी भारत के संदर्भ में उनकी सोच के बारे में और कौन दे सकता है। इस प्रकार भारत को इस नए खतरे के बारे में समग्रता से विचार कर इससे सफलतापूर्वक निपटने के लिए हर क्षण तैयार रहना होगा।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

 

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