शनिवार, 9 मार्च 2024

वोट फार कैश मामले मे सुप्रीम कोर्ट का साराहनीय फैसला

बसंत कुमार
सर्वोच्च न्यायालय ने पैसा लेकर वोट देने के मामले में सांसदो विधायको पर अपराधिक मुकदमा चलाये जाने वाली छुट को अभी हाल मे दिये हुए फैसले से समाप्त कर दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव केश मे 1998 मे पांच जजो की बेंच द्वारा दिये गए फैसले को पलटते हुए सात जजो की बेंच ने यह फैसला सुनाकर यह सुनिश्चित कर दिया है कि सांसदो/ विधायको सदन मे भाषण देने या वोट डालने के लिए रिश्वत लेने का दोषी पाये जाने पर कानूनी संरक्षण को समाप्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि कानून के समक्ष खास और आम दोनों ही नागरिक एक समान है। सात जजो की संविधान पीठ जिसने यह फैसला सुनाया उसमे मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्र चूड, जस्टिस ए ए बोपन्ना, जस्टिस एम एम सुंदरेश, जस्टिस पी एस नरसिम्हा, जस्टिस जे वी परदिवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे। 
  इस निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने कहा " माननीय सर्वोच्च् न्यायालय का यह निर्णय देश मे राजनीति को स्वच्छ करेगा और देश की लोकतंत्रिक व्यवस्था मे लोगो का विश्वास और गहरा होगा। अब यह प्रश्न उठता है कि जिस प्रकार से चुनाव की राजनीति मे संसद और विधान परिषद मे पहुँचने वाले अधिकांश नेता करोडो या अरबो के मालिक है और इन धनाड्यो के आगे चाल चरित्र और सत्यनिष्ठा वाले नेताओ कार्य कार्ताओ की पूंछ नही होती तो राजनीति कैसे स्वच्छ होगी, चाहे कोई भी पार्टी हो आज की चुनाव की राजनीति में टिकट बाटते उम्मीदवार की शिक्षा, योग्यता इम नदारी देखने के बजाय उसकी सम्पति देखती है वह अलग बात है कि वह सम्पति कैसे कमाई बनाई गई है। ऐसे लोगो से बनी संसद या विधायिका कैसे नैतिकता के उच्च आयाम स्थापित करेगी।
इससे पूर्व संविधान के अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 195 के तहत विधान मंडलों और संसद के सदस्यों के सदस्यों को रिश्वत लेने के मामले मे अपराधिक मामलों से छुट मिलती थी, यह छूट 1998 मे सर्वोच्च न्यायालय के पी वी नरसिम्हा राव मामले मे दिये गए जजमेंट के कारण मिली थी, जिसके कारण निर्वाचित प्रतिनिधि वोट के बदले नोट के मामलो मे बच जाते थे। इस बार सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय मे अपने ही पुराने (1998) के फैसले को उलट दिया है अर्थात अब उन्हे संसदीय विशेषधिकार के तहत रिश्वत खोरी की छुट नही दी जा सकती। यह निर्णय देते हुए मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्र चूड ने टिप्पड़ी करते हुए कहा " हम मानते है कि रिश्वत खोरी संसदीय विशेषधिकार  नही है, माननीय सांसदो द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार और रिश्वत खोरी भारत के संसदीय लोकतंत्र को बरबाद कर देगा "। इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए देश के पूर्व मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा" जब जनता जनादेश देकर आपको चुनती है, इसके बाद ऐसे लोग जो जनता के जनादेश के साथ विश्वास घात करते हैं तो उन्हे ना तो कानूनी संरक्षण मिल सकता है ना ही सियासी संरक्षण मिल सकता है।
वास्तव मे अनुच्छेद 19(1)(A) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को मान्यता देता है और 105(2) और 194(2) का उद्देश्य प्रथम तया अपराधिक कानून के उल्लंघन के लिए दंडात्मक कार्यवाही शुरु करने से प्रतिरक्षा प्रदान नही करता, जो संसद सदस्य के रूप मे अधिकारों और करतव्यो के प्रयोग से स्वतंत्रत रूप से उत्पन्न हो सकता है, ऐसे मामले मे सांसद को विशेषधिकार के रूप मे तभी छूट दी जा सकती है जब दिया गया भाषण या वोट देनदारी को जन्म देने वाली कार्यवायी के लिए एक आवश्यक एवं अभिन्न अंग हो
सर्वोच्च न्यायालय मे यह मामला सीता सोरेन की अपील पर आया, यह मामला एक जन प्रतिनिधि की रिश्वत खोरी से संबंधित है। इस मामले के तार पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव से से जुड़े हुए हैं। उनकी सरकार को 1993 मे अविश्वास मत के दौरान, बचाने के लिए दी गयी रिश्वत के मामले से थी, जिसमे झारखंड मुक्ति मोर्चा के तत्कालीन अद्यक्ष सिबु सोरेन और उनकी पार्टी के चार सांसद शामिल थे जहा सांसदो ने सरकार बचाने के लिए वोट देने के बदले मे रिश्वत ली थी, सीता सोरेन को जन सेवक के तौर पर गलत काम करने के साथ अपराधिक साजिश रचकर जनसेवक की गरिमा घटाने वाला काम करने का आरोपी बनाया गया था। इस मामले मे अनुच्छेद 194 के प्रावधान 2 के अनुसार जन प्राधिनिधियो को उनके सदन मे वोट डालने के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे मे घसीटा नहीं जा सकता।
पर सर्वोच्च न्यायालय की खंड पीठ द्वारा यह फैसला आने से समय समय पर सांसदो द्वारा किये गए रिश्वत खोरी के मामलों पर अब अपराधिक प्रक्रिया का सामना करना होगा, अभी कुछ माह पूर्व टी एम सी की सांसद महुआ मोयित्रा द्वारा पैसा लेकर प्रश्न पूछने के आरोप पर सदस्यता रद्द कर दी गयी तो क्या रिश्वत के मामले मे दोषी पाए जाने पर सदस्यता रद्द किया जाना ही काफी था जबकि इनके विरुद्ध सरकारी कर्मचारी की भाँति भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत कार्यवाही क्यों नही की गयी और जब ऐसा होगा तभी हमारे जन प्रतिनिधियों के मन में कानून के प्रति सम्मान और उसके उल्लंघन पर सजा का डर व्याप्त होगा, हमारे सांसदो द्वारा पैसा लेकर प्रश्न पूछने का मामला हो या फिर पैसा लेकर सरकार के समर्थन मे वोट डालने का मामला हो यह बुराई तब तक नही रुकेगी जब तक सभी राजनीतिक दलों द्वारा धन बल देख कर टिकट दिया जाता रहेगा क्योकि जो लोग पैसे के बल पर सांसद बनेंगे उनसे कभी भी इमान दारी की राजनीति की अपेक्षा नही की जा सकती, इसलिए धन कुबेरो का अनुचित तरीके से कमाए धन का उपयोग राजनीति मे रुकना चाहिए।
भारत के संसद के इतिहास मे कुछ सदस्यों द्वारा संसद के अंदर करोडो रुपये की गड्डिया लहराते हुए सांसदो की तस्वीर आज भी लोगो के मन मस्तिस्क मे छाई हुई है और जल्द ही यह भ्रम टूटना चाहिए कि पैसे के बल पर कोई संसद मे पहुँच सकता है या पैसे के बल पर सरकारे बन बिगड़ सकती है हमे उन आदर्शो का पुन: पालन करना सिखना होगा जो स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री और गुलजारी लाल नंदा जैसे नेताओ ने स्थापित किया था।

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